रिश्तों के अस्तित्व पर संकट!

आज के समय में आधुनिकता का बढ़ता प्रचलन, पारिवारिक रिश्तों से बढ़ती दूरियां, आधुनिक जीवनशैली में एक-दूसरे के लिए समय का अभाव, बढ़ता संवादहीनता, अपनेपन की भावना का अभाव, माता-पिता की आपसी कलह, रूढिगत परंपराएं, संयुक्त परिवार का विखंडन, बच्चों को घर में दादा-दादी और नाना-नानी का प्यार न मिल पाना जैसे कई अन्य कारण आज के समय में परिवार के बिखरने के कारण होने के साथ-साथ सभी रिश्तो के अस्तित्व पर संकट का मूल कारण भी है. आज के आधुनिक समय में हर रोज कई परिवार टूटता है, तों कई रिश्ते अपना मूल अस्तित्व खो देते है. कभी पिता-पुत्री का संबंध सामने आता है, तो कभी अपने ही संतान द्वारा मारे जाने की खबर आती है , तों कभी सम्पति के लिए बेरहमी से बुजुर्गो का क़त्ल कर दिया जाता है. तों आईये आज हम पारिवारिक विघटन और रिश्तो के अस्तित्व पर संकट के मूल कारणों पर नजर डालती है- विनय सिंह के संग.

परिवार में आधुनिकता का बढ़ना

आधुनिकता नये अनुभवों, नई उपलब्धियों की ग्रहणशीलता और स्वीकार्यता है. प्यार की वेदना , वेदना का आनन्द तथा आनन्द की वेदना के आयाम की कोई समझ इन्हें नहीं होती. ये बस लेना ही जानते हैं , बाते शेयर करने के आनन्द की कोई ललक नहीं. आधुनिक विकास के साथ मनुष्य का मन बदलने लगा. त्याग और बलिदान के बदले जीवन में लोभ और भोग का व्यक्तिवादी वर्चस्व बढ़ने लगा. व्यक्तिवाद का दबाव जितना बढ़ता गया, व्यक्तित्व का प्रसार उतना ही घटता गया.

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ये स्नेह और भागीदारी की अनुभूति से परिचित ही नहीं हो पाते. उन्हें पता ही नहीं होता कि प्यार क्या होता है. आधुनिकता ने नारियों के सम्मुख अभूतपूर्व सुयोग की सम्भावनाओं का आह्वान प्रस्तुत कर दिया है. आधुनिक नारी के सामने चुनौती भी इसके साथ-साथ उभड़ी है. अगर वह नए दिगन्त को नम्रता और कृतज्ञता से अपना अर्घ्य देने को प्रस्तुत होगी, तभी वह कल्याणीया हो सकेगी.

समय का अभाव

आज कल भागदौड की जिंदगी में सभी इतना व्यस्त रहते है कि किसी के पास अपनों को समय देने का समय ही नही है. अब नवविवाहित दंपती शादी के एक महीने बाद ही मूल परिवार से अलग होने का निर्णय ले लेते है. अति-व्यस्तता और अचानक घर-गृहस्थी के बढते दबाव के बीच तालमेल न बिठा पाना नवविवाहित दंपतियो कों अलग होने के लिए उकसाते है. इस बात कों हवा देती है आज कल की आधुनिक नौकरिया (जैसे शिफ्ट डयूटी करने वाले कॉल सेंटर कर्मचारी हो या मीडिया कर्मचारी हो सभी अपने परिवार को अधिक समय नही दे पाते है). इस तरह भावनात्मक तौर पर असंतुलित बनता है और एक खुशहाल परिवार टूट जाता हैं.

पर्दों का असर

आज के समय में छोटे-बड़े पर्दे पर घर-घर की कहानी चल रही है,चाहे वह टीवी सीरियल हो या फ़िल्मी सीन सब में एक आधुनिक परिवार कों दिखाया जा रहा है. टीवी हर घर की जरूरत बन चुका है. छोटे पर्दे पर अश्लील और अनैतिक धारावाहिक या खबरें, फूहड हास्य और स्त्री की गलत छवि को पेश किया जा रहा है और इसका सीधा गलत असर परिवार के युवाओं पर पड़ता है. छोटे और बडे पर्दे पर सेक्स और पारिवारिक हिंसा के दश्य कों देख कर परिवार के नव युवको के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों में भी अनैतिक बदलाव आ रहा है. जो किसी भी सुखी परिवार के लिए दुखदायी है.

एकल परिवार का प्रचलन

भारत में तेजी से एकल परिवार की अवधरणा बढ़ती जा रही है खासकर बड़े शहरों और मेट्रों शहरों. मेट्रो शहर का यह परिवार धीरे-धीरे गाँव और शहर में भी फ़ैल रहा है, जहां वहीं एकल परिवार का प्रचलन.  यह हमारे देश और संस्कृति के खिलाफ है. फिर भी पश्चिम देशी की नकल एवं आधुनिकता के दिखाए ने इस तरह के परिवार कों बढ़ावा दे रहा है. एक ऐसा परिवार जहाँ पति-पत्नी और सिर्फ उनके बच्चे होते है, इस परिवार में दादा-दादी व नाना-नानी का स्थान कही नहीं होता है.

टूटते सयुक्त परिवार

आधुनिकवाद और भौतिकवाद के आपा धापी में दिन प्रतिदिन सयुक्त परिवार के टूटने की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

संयुक्त परिवार के विघटन का सबसे बड़ा दुष्परिणाम नैतिकगुणों के हृास और असंवेदनशीलता के रूप में सामने आया है. सामंजस्य, संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व जैसे गुण संयुक्त परिवार में उपजते और विकसित होते हैं. यहाँ बच्चे ऐसे गुणों को अपने बालपन से ही देखते, समझते और स्वीकार करते हैं. संयुक्त परिवारों में खास तौर पर दादा-दादी और नाना-नानी का सानिध्य मिला होता हैं , उनमें से अधिकांश संस्कारित देखे गए हैं.  माता-पिता का कठोर अनुशासन निश्चित रूप से दादी की गोद में शीतलता का अहसास कराता है और दादा की अंगुली पकड़कर घुमने का अपना अलग ही मज्जा होता है. जो सुख और सुरक्षा का कवच संयुक्त परिवार में मिलता है वह एकल परिवारों में असंभव है.

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परिवार में बढ़ता अकेलापन

आज के बदलते ज़माने में परिवार के  बच्‍चे, जवान एवं  बुजुर्ग सभी किसी ना किसी समय अपने परिवार में ही आप कों अकेला महसूस करते हैं. बढ़ते आधुनिकता, तकनीक का परिवार पर हावी होना और मनोरंजन साधनों में लगातार वृद्धि हमें अपनों से दूर ले जा रही हैं. शादी के बाद कई लोगो के पास परिवार के लिए समय ही नही है, तों कई लोग पैसे कमाने के होड़ में कई दिनों तक अपने बच्चो से भी नही मिल पाते है. जिससे इन लोगो के पारिवारिक रिश्तो पर संकट का बादल छा जाता है.

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