डिलीवरी के बाद से शादीशुदा जिंदगी में तनाव है, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 30 वर्षीय विवाहित महिला हूं. 2 माह पूर्व नौर्मल डिलीवरी के जरिए मैं एक स्वस्थ बच्चे की मां बनी हूं. मेरे पति चाहते हैं कि हम पहले की तरह शारीरिक संबंध बनाएं. लेकिन मैं डरती हूं कि कहीं इस से कुछ परेशानी तो नहीं होगी. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या यह उपयुक्त समय है शारीरिक संबंध बनाने का?

जवाब
आमतौर पर महिलाओं को सामान्य डिलीवरी के 6 हफ्ते के बाद सैक्स संबंध बनाने की सलाह दी जाती है. लेकिन यह प्रत्येक महिला के शारीरिक व मानसिक रूप से तैयार होने पर भी निर्भर करता है. कई बार जल्दबाजी संक्रमण का कारक बन सकती है. इसलिए, आप के लिए यही बेहतर होगा कि आप सैक्स संबंध बनाने से पूर्व एक बार अपनी गाइनीकोलौजिस्ट से अवश्य सलाह कर ले.

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सेक्स के ये चार राज बड़े काम के हैं

वे आपके इशारों को नहीं समझ रहे हैं और आपने तय कर रखा है कि आप भी उन्हें नहीं बताने वालीं कि आप क्या चाहती हैं. पर कुछ तरीके ऐसे भी हैं जिनके सहारे सेक्स के दौरान आप बिन कुछ कहे अपनी इच्छाओं को पूरा करवा सकती हैं.

मादकता हमेशा सेक्सी लौन्जरीज, सेंशुअल परफ्यूम या स्मोकी आंखों में ही नहीं छिपी होती. सच है कि ये चीजें निजी पलों में उत्साह का संचार करती हैं, लेकिन कभी-कभी मन की बात मनवाने के लिए छल और चालाकी से भी गुरेज करें.

अक्सर पुरुषों को हल्का-सा इशारा समझ में नहीं आता और आपका शर्मीलापन लंबे इंतजार का कारण बन सकता है, जबकि र्स्माट चालें इस खेल में आपको मनचाहा नतीजा दे सकती हैं.

अपने भीतर की युवती को बाहर निकालें

वे मूड में नहीं हैं और आप हैं. हो सकता है कि वे सचमुच थके हुए हों या फिर केवल उन्हें थोड़ा उकसाने की जरूरत हो. ऐसे में समय की कसौटी पर खरे उतरे हथियार इस्तेमाल करें. ‘‘जब मैं सेक्स चाहती हूं और वे बहानेबाजी कर रहे होते हैं तो मैं सेक्स के झटपट सेशन का सुझाव देती हूं,’’ कहती हैं रोहिणी. वहीं नित्या कहती हैं, ‘‘मैं लौन्जरी उतारकर स्नग टी-शर्ट पहन लेती हूं. लेकिन ये नहीं दिखती कि मैं इसकी मांग कर रही हूं. फिर यदि वे किताब पढ़ रहे हैं तो मैं उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए फिजूल के सवाल पूछने लगती हूं.’’

इंतजार करवाएं

अपने साथी के साथ सेक्स के दौरान हम जानते हैं कि आगे क्या होनेवाला है. सेक्शुअल गतिविधियों का क्रम जैसे पूरी तरह पता होता है-गर्दन पर चुंबन, होंठों पर गहन चुंबन, नाभि पर चुंबन… इस एकरसता से उबरना चाहती हैं? तो इसे चुहलबाजी के साथ करें. खेलें और उन्हें आनंद से वंचित रखें. जहां बात खुद को बेहतर समझने का खेल खेलने की हो तो पुरुष इसे किसी महिला के साथ खेलने से कभी बोर नहीं होते.

हिम्मत करें

आप उम्मीद करती हैं कि वे घिसी-पिटी सेक्शुअल गतिविधियों के बजाय आपके शरीर के दाएं हिस्से पर ज्यादा समय बिताएं? तो उन्हें चुनौती देने की कोशिश करें. प्रत्येक पुरुष को चुनौती पसंद होती है. वो पूरी बेशर्मी से उसका सामना करेंगे. उनसे कहें कि आपको नहीं लगता कि आप ‘फलां’ चीज में अच्छे हैं और वे तुरंत आपको गलत साबित करने में जुट जाएंगे. यहां तरकीब ये है कि यह बात उन्हें चुनौती देने की तरह कहिए, व्यंग्य या ताने की तरह नहीं.

बाद का प्यार जरूर पाएं

संतुष्टिदायक पलों के बाद उनकी बेरुखी हमेशा ही झगड़े का करण बनता है. इस उन्माद के बाद उन्हें अकेला छोड़ दें, क्योंकि इजेकुलेशन के बाद उनके हार्मोन्स का स्तर उन्हें शिथिल कर देता है और वे आराम करना चाहते हैं. लेकिन कौन-सा पुरुष ये नहीं सुनना चाहता कि निजी पलों के दौरान उसका प्रदर्शन कितना बेहतरीन था? ‘‘जब मैं अपने बौयफ्रेंड को बताती हूं कि कहां-कहां उनका स्पर्श और चुंबन मुझे रोमांचित कर गया और जब उन्होंने कमान संभाली तो मैंने कितनी गर्माहट महसूस की तो वो मुझे अपनी ओर खींचकर आलिंगन में ले लेते हैं. मुझे लगता है जब कोई आपको प्यार करता है और इसका एहसास करता है तो आपको भी उसे ऐसा ही महसूस कराना चाहिए,’’ ये कहना है रानी का.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

 

गर्लफ्रेंड से हर Boyfriend चाहता है ये 5 बातें

आप भले ही बोलें के मेरा ब्वॉयफ्रेंड मुझसे कुछ नहीं छुपाता और हर बात शेयर करता, वह बहुत आपेन है. लेकिन ऐसा नहीं है. कुछ बातें ऐसी होती हैं जो व्वॉयफ्रेंड के दिल में होती हैं लेकिन उसे वह जुबान पर लाना नहीं चाहता.

1. साथ का अहसास

लड़के देखने में बड़े तेज होते हैं. वह हमेशा अपनी गर्लफ्रेंड की तुलना करते रहते हैं. ऐसे में जब आप अपने पार्टनर के साथ कहीं डिनर में जा रही होती हैं तो पूरी तरह से सज संवरकर जाना चाहती हैं. बड़ी सी गाउन और बेहद फैशन के साथ निकलने की कोशिश करती हैं. ब्वॉयफ्रेंड को आपका हमेशा सरल लिबास और कम फैशन भाता है जिससे कि साथ चलने में एक दूसरे का अहसास हो सके. भारी कपड़ों के साथ दूर रहना पड़ता है. उस वक्त आपकी खुशी और घंटों ड्रेस को लेकर बिताए समय का लिहाज कर वह कुछ नहीं बोलता लेकिन दिल में यही होती है सिंपल और सोबर ही आप ज्यादा सुंदर दिखती हैं.

2. शायद रिश्ता गहरा नहीं है

रिलेशनशिप में आने के बाद लड़कों को बातों-बातों में यह अहसास होता है कि शायद उसकी गर्लफ्रेंड की ओर से यह रिश्ता अभी पक्का नहीं है. वह इस कदर अटैच नहीं है जितना की ब्वॉयफ्रेंड. ऐसे में वह अक्सर इस रिश्ते को जांचने की कोशिश करता है लेकिन इस बात को बोलता नहीं. इमोशनली वह अंदर से घुटता रहता है. इसे जांचने के लिए अक्सर वह फिजिकल रिलेशन या किस का सहारा लेता है कि आप क्या बोल रही हैं.

3. फिजिकल रिलेशन

भले ही आपका ब्वॉयफ्रेंड यह बोले की वह रिश्ते में सेक्स को ज्यादा अहमियत नहीं देता लेकिन लड़के ऐसा कतई नहीं हो​ते. अपनी गर्लफ्रेंड के साथ वो सेक्स के बारे में सोचते ही हैं. यह कोई जरूरी नहीं कि हर रोज ही सेक्स करें लेकिन कभी-कभी की तो चाहत होती ही है. इन चीजों को आप खुद भी नोटिस कर सकते हैं. नए रिश्ते में भले ही वह कुछ न बोले लेकिन जैसे ही रिश्ता पुराना होता है. वह अपने घर पर अकेला होने पर ​बुलाता है या फिर आपको यह जरूर बताएगा कि उसके दोस्त का कमरा अक्सर खाली होता है. इन सब बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह क्या चाहता है.

4. दोस्तों के साथ नाइट आउट

लड़कों की हमेशा यह ख्वाहिश रखते हैं कि उन्हें ऐसी गर्लफ्रेंड मिले जो दोस्तों के साथ उनके नाइटआउट्स पर ऐतराज न करे. हालांकि ज्यादातर लड़कियों को लड़कों के इस तरह के प्लान्स से चिढ़ होती है. ऐसे में लड़के अपनी गर्लफ्रेंड को नाइट आउट के बारे में बोलने से घबराते हैं. इस बारे में जांचने के लिए अक्सर वो अपने दोस्त की नाइट आउट की कहानियां गर्लफ्रेंड को सुनाते हैं लेकिन खुद बोलने में परहेज करते हैं.

5. नजदीक लेकिन थोड़ी दूरी

रिलेशन में आने के साथ ही लड़की को लगता है कि ब्वॉयफ्रेंड पर उसका अधिकार हो गया और हर छोटी बड़ी बातों में उसे शामिल करने लगती है. परंतु लड़के दोस्ती और प्यार में थोड़ा फासला रखना चाहते हैं. उनकी कोशिश यही होती है​ कि उनके हर काम में गर्लफ्रेंड की दखल अंदाजी न हो. ऐसे में जब लड़की जब ज्यादा नजदीक आने लगती है तो उन्हें इस बात को बोलने से कतराते हैं. उनको डर होता है कि कहीं बुरा न मान जाए और रिश्ता खराब न हो जाए. ऐसे में दिल की बात दिल में ही रह जाती है.

अपने युवा बच्चे के दोस्त बनें

कल शाम अपनी पड़ोसिन नविता गुप्ता से मिलने गई तो उन के चेहरे पर परेशानी और झुंझलाहट साफ झलक रही थी. पूछने पर बेचारगी से बोलीं, ‘‘निकिता (उन की 13 वर्षीय बेटी) पिछले कुछ दिनों से खोईखोई, गुमसुम सी रहती है. न पहले की तरह चहकती है, न ही सहेलियों के साथ घूमने जाती है. पूछने पर कोई ढंग का जवाब भी नहीं देती.’’

आजकल ज्यादातर मांएं अपने टीनऐजर बच्चों को ले कर परेशान नजर आती हैं कि दोस्तों से घंटों गप्पें मारेंगे, इंटरनैट पर चैटिंग करते रहेंगे पर हमारे पूछने पर कुछ नहीं मम्मी कह कर चुप्पी साध लेंगे. मुझे अच्छी तरह याद है, अपने जमाने में कालेज के दिनों में मेरी मां मेरी सब से अच्छी दोस्त होती थीं. भलेबुरे का ज्ञान मां ही कराती थीं और मेरी सहेलियों के घर आने पर मम्मी उन से भी खूब घुलमिल कर हर विषय पर बातें करती थीं. इसीलिए आज की पीढ़ी का अपने मांबाप के साथ व्यवहार देख कर मुझे बेहद हैरानी होती है.

क्या है वजह

सचाई की तह तक पहुंचने के लिए मैं ने कुछ किशोरकिशोरियों से चर्चा की.  14 साल की नेहा छूटते ही बोली, ‘‘आंटी, मम्मी एक काम तो बहुत अच्छी तरह करती हैं और वह है टोकाटाकी कि यह न करो, वहां न जाओ, किचन का काम सीखो.’’  10वीं कक्षा की छात्रा स्वाति वैसे तो अपनी मम्मी की पूरी इज्जत करती है पर सारी बातें मम्मी के साथ शेयर करना पसंद नहीं करती.

17 साल की शैली को मलाल है कि मम्मी ने भाई को तो रात 9 बजे तक घर आने की छूट दे रखी है पर मुझ से कहेंगी कि लड़की हो, टाइम पर घर आ जाया करो. कहीं नाक न कटवा देना वगैरह.  कोई व्यक्तिगत समस्या या स्कूल की कोई समस्या आ जाने पर किस से डिस्कस करना पसंद करती हो, पूछने पर 17 वर्षीय मुक्ता बोली, ‘‘बीमार होने पर, अपसैट होने पर या कोई और बड़ी समस्या आने पर सब से पहले मां की याद आती है. वे न केवल बड़े धीरज से सुनती हैं, बल्कि कई बार तो मिनटों में समस्या हल कर के टैंशन फ्री कर देती हैं. मम्मी जैसा तो कोई हो ही नहीं सकता.’’

इन सभी टीनऐजर्स से बातचीत करने पर यह साफ हो जाता है कि खेलने, फिल्म देखने, गपशप करने या मौजमस्ती के लिए भले टीनऐजर दोस्तों को ढूंढ़ें, किंतु जब किसी तरह की समस्या उन के समक्ष आती है, तो वे बेहिचक जिस तरह अपनी मां के पास जा सकते हैं, उस तरह पापा, बहन, भाई या फिर पक्के दोस्त के पास नहीं. ऐसे में मां ही उन की गाइड होती है और बैस्ट फ्रैंड भी.  तो फिर ज्यादातर किशोरकिशोरियां अपनी मां से दोस्ताना रिश्ता कायम क्यों नहीं कर पाते? सच तो यह है कि इस प्रभावात्मक अवस्था में आज के बच्चे यह मान कर चलते हैं कि आज के हिसाब से वे सब कुछ जानते हैं और उन की मांएं कुछ नहीं.

15 वर्षीय ऋतु का कहना है, ‘‘मम्मी जमाने के हिसाब से चलने को तैयार ही नहीं. अच्छे कपड़े पहन कर कालेज जाना, फोन पर दोस्तों से लंबीलंबी बातें करना, महीने में कम से कम  1 बार दोस्तों के साथ मूवी या रेस्तरां जाना कितना वक्त के अनुसार चलने के लिए जरूरी है, ये सब मम्मी नहीं समझतीं.’’

मेरा भानजा नवनीत कहता है, ‘‘पिज्जा और मैकडोनल्ड के बर्गर का स्वाद मम्मी क्या समझेंगी.’’

गलती मातापिता की भी

ईमानदारी से देखें तो आज की तेज रफ्तार जिंदगी में मांबाप शोहरत, रुतबा पूरा करने की होड़ में तो भाग रहे हैं पर अपने बच्चों के मन में संस्कारों के बजाय पैसे की प्रधानता और उम्र से पहले बड़प्पन पैदा कर रहे हैं. पुराने जमाने में बच्चे संयुक्त परिवार में पलते थे, हर चीज भाईबहनों से शेयर की जाती थी. आज एकल परिवारों में 1 या 2 बच्चे होते हैं. बच्चों पर मां का प्रभाव सब से ज्यादा पड़ता है. बेशक पहले के मुकाबले मां और बच्चे में लगाव बढ़ा है. पहले से ज्यादा इन्टैंस भी हुआ है. आज के किशोर यह जरूर चाहते हैं कि मांएं उन्हें समझें, उन की जरूरतें समझें पर मांओं की भी उन से कुछ अपेक्षाएं होती हैं, यह समझने के लिए वे तैयार नहीं होते.

मनोवैज्ञानिक स्नेहा शर्मा के अनुसार, ‘‘आज की पीढ़ी ने आंखें ही उपभोक्तावाद के माहौल में खोली हैं. आज के बच्चे जब मां को यह बताएं कि आप को किस तरह तैयार हो कर, कौन सी ड्रैस पहन कर हमारे स्कूल आना है, तो आप समझ सकते हैं कि बच्चों का मातापिता पर कितना दबाव है.’’  कालेज में लैक्चरर मोहिनी का मानना है, ‘‘नई पीढ़ी द्वारा अपनी बातें मांओं से शेयर न करने के लिए कुछ हद तक मांएं खुद ही जिम्मेदार हैं. नौकरीपेशा मांएं बच्चों को वक्त न दे पाने की मजबूरी को उन्हें ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं दे कर छिपाने की कोशिश करती हैं.’’

स्कूल टीचर निर्मला उदाहरण देते हुए कहती हैं, ‘‘मेरे स्कूल में 12वीं कक्षा की एक छात्रा रोज स्कूल 15-20 मिनट देर से आती थी. उस के मातापिता उस के देर से पहुंचने की पैरवी करते हुए कहते कि क्या हुआ, अगर थोड़ी देर से पहुंचती है? जब मांबाप खुद ही अनुशासन का महत्त्व भूल चुके हों, तो बेटी को क्या अनुशासन सिखाएंगे. अच्छी देखभाल का मतलब अब अच्छा खानापीना, दिखना रह गया है. बच्चों में अच्छे जीवनमूल्य डालना अब अच्छे लालनपालन का हिस्सा नहीं रह गया है.’’

कुछ उन की भी सुनें

मातापिता दोनों के कामकाजी होने की वजह ने भी बच्चों की सोच पर असर डाला है. कामकाजी मातापिता समयसमय पर बच्चों को यह एहसास दिलाते रहते हैं कि वे बड़े हो गए हैं. स्वाभाविक है कि बच्चे भी बड़ों की तरह व्यवहार करने लगें. ऐसी हालत में बच्चों के बचपन के साथसाथ बालसुलभ भोलापन खो गया है और उस की वजह सैटेलाइट की दुनिया में घुला सैक्स और मारधाड़ ले चुका है. मातापिता अपनी टूटीबिखरी आकांक्षाओं को बच्चों के जरीए पूरा करना चाहते हैं. ऐसे हालात में क्या जरूरी नहीं कि मातापिता अपने बच्चों को जो चाहे दें, पर साथ ही अपना बहुमूल्य समय भी उन्हें अवश्य दें.

आखिरकार वे आप के बच्चे हैं, उन के किशोरावस्था में बढ़ते कदम आप की सांसों के साथ जुड़े हैं. इसलिए आप को उन का दोस्त बनना सीखना होगा और इस के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप उन्हें बराबरी का सम्मान दें. उन्हें गलत और सही का ज्ञान करवाएं. कुछ उन की मानें, कुछ अपनी मनवाएं.

मेरी सहेली शर्बरी का बेटा शाम होते ही कार्टून चैनल लगा कर बैठ जाता. दफ्तर से घर आने पर शर्बरी का मन होता कि अपना पसंदीदा टीवी सीरियल देखे. यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा जब उन्होंने डांटनेफटकारने के बजाय बेटे को प्यार से यह समझाया, ‘‘बेटा, रोज शाम को पहले मेरी पसंद का सीरियल देखा करेंगे और फिर तुम्हारा कार्टून चैनल.’’

इस तरह प्यार से समझाई गई बात बेटे की समझ में आ गई और मम्मी उस की सब से अच्छी फ्रैंड भी बन गईं.  दूसरी ओर सुनीता ने अपने बच्चों से सुविधा का संबंध कायम किया हुआ है. खुद मिनी को ‘सिली’, ‘स्टूपिड’ जैसे विशेषणों से पुकारती हैं और फिर जब वही अल्फाज बच्चों के मुंह से निकलते हैं, तो उन्हें डांटती हैं. इस से अच्छा होता सुनीता पहले खुद की जबान पर कंट्रोल करतीं.  अकसर देखने में आता है सैटेलाइट के इस युग में जब हर चैनल सैक्स संबंधी बातों/विज्ञापनों को खुलेआम परोस रहा है तो भी मांएं किशोरावस्था की दहलीज पर खड़ी अपनी बेटियों को सैक्स के बारे में स्वस्थ जानकारी नहीं देतीं. ऊपर से उस विषय की कोई मैग्जीन या किताब पढ़ने पर उन्हें डांट देती हैं, जबकि उन की यह जिज्ञासा सहज और स्वाभाविक है. ऐसे में बेहतर होगा मांएं अपनी ड्यूटी समझें. किशोर बेटियों को सही तरीके से पूरी जानकारी दें ताकि वे अपनी मां पर पूरा विश्वास कर सकें, बेहिचक अपनी समस्याएं उन के सामने रख सकें और भटकें नहीं.

बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार, उन के साथ बिताया गया समय भले ही वह क्वालिटी टाइम बहुत कम हो, उन्हें आप से उन के  रिश्ते की कद्र समझाएगा और तब आप स्वयं अपने प्यारे बच्चों की फ्रैंड, फिलौस्फर और  गाइड होंगी.

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पत्नी कामकाजी हो या होममेकर घर को सुचारु रूप से चलाने में उस का योगदान कमतर नहीं होता. लेकिन विश्वास, समझदारी व समानता के बीच संतुलन बिगड़ने पर आप के बीच गलतफहमी पैदा हो सकती है और फिर कभी न खत्म होने वाली तूतू, मैंमैं. यहां हम चर्चा करने जा रहे हैं उन बातों की, जिन से दूर रह कर आप अपना दांपत्य जीवन सुखी रख सकती हैं.

जब एक लड़की शादी के बाद एक नए घर, नए माहौल और नए लोगों से रूबरू होती है, तो उसे बहुत सारी बातों का खयाल रखना पड़ता है. मसलन, खुद को नए माहौल में ढालना, वहां के लोगों की आदतों, रीतिरिवाजों, कायदेकानूनों, खानपान आदि को समझना. उन की दिनचर्या के मुताबिक खुद की दिनचर्या निर्धारित करना. उन की जरूरतों का ध्यान रखना वगैरहवगैरह. मगर सब से अधिक सावधानी उसे पति के साथ अपने मधुर संबंध विकसित करते वक्त बरतनी पड़ती है. पतिपत्नी के बीच रिश्ता विश्वास व समझदारी से चलता है और आज के आधुनिक समाज में एक और शब्द समानता भी जुड़ चुका है.

1. आप हमेशा सही नहीं हैं:

कुछ युवतियों को यह गलतफहमी होती है कि वे जो करती हैं या कहती हैं वह हमेशा सही होता है. यदि पति किसी काम को कुछ अलग तरीके से करते हैं और आप उस काम को अपने तरीके से करने के लिए मजबूर कर रही हैं, तो आप को अपनी सोच बदलने की जरूरत है. आप के पति या परिवार के अन्य सदस्यों की सोच और तरीका आप से भिन्न हो कर भी सही हो सकता है. आप को धैर्य रख कर उसे देखना व समझना चाहिए.

2. बाल की खाल न निकालें:

देखा गया है कि अविवाहित जोड़े एकदूसरे से ढेर सारे सवालजवाब करते हैं और घंटों बतियाते रहते हैं बिना बोर हुए, बिना थके. मगर शादीशुदा जिंदगी में आमतौर पर ऐसा नहीं होता. आप के ढेरों सवाल और किसी मैटर में बाल की खाल निकालना आप के साथी को बैड फीलिंग दे सकता है. अत: याद रखें कि अब न तो आप उन की गर्लफ्रैंड हैं और न ही वे आप के बौयफ्रैंड.

3. साथी के साथ को दें प्राथमिकता:

कभी पति के सामने रहते परिवार के अन्य सदस्यों को पति से आगे न रखें. अगर आप ऐसा करती हैं, तो आप अनजाने में ही सही अपनी खुशहाल जिंदगी में सूनापन भर रही होती हैं. मान लीजिए आप के पति ने आज आप के साथ मूवी देखने जाने का प्लान बनाया है और आज ही आप की मां आप को फोन कर के शौपिंग मौल में आने को कहती हैं. अगर आप अपने पति को सौरी डार्लिंग बोल कर अपनी मां के पास शौपिंग मौल चली जाती हैं, तो यह पति को बुरा लगेगा. उन के मन में तो यही आएगा कि आप की जिंदगी में उन की अहमियत दूसरे नंबर पर है. यदि आप अपनी मां को सौरी बोल कर फिर कभी आने को कह दें तो आप की मां से आप के रिश्ते में कोई कमी नहीं आएगी.

4. दूसरों के सामने पति की इंसल्ट न करें:

दूसरों के सामने अपने पार्टनर की गलतियां बताना असल में उन की इंसल्ट करना है. ऐसा कर के आप अपने पति को कमतर आंक रही हैं. यदि आप अपने पति की बात बीच में ही काट रही हैं, तो आप उन्हें यह मैसेज दे रही हैं कि आप को उन की कही बातों की कोई परवाह नहीं है.

5. धमकी न दें:

पतिपत्नी के बीच थोड़ीबहुत नोकझोंक तो होती रहती है और इस से प्यार कम भी नहीं होता, बल्कि रूठनेमनाने के बाद प्यार और गहरा होता है. मगर इस नोकझोंक को आप बहस का मुद्दा बना धमकी पर उतर आएं तो अच्छा न होगा. आप ने छोटी सी बात पर ही अपने पति को अलग हो जाने की धमकी दे दी तो आप का प्यार गहरा होने के बजाय खत्म होने लगेगा.

6. शर्मिंदा न करें:

कभीकभी कई बातें ऐसी हो जाती हैं जब कमी आप के पार्टनर की होती है. मगर ऐसे में एक समझदार बीवी चाहे तो अपने पति को शर्मिंदगी से बचा सकती है. मान लीजिए आप कार की ड्राइविंग सीट पर हैं और किसी ऐसे रैस्टोरैंट में खाने जा रही हैं, जहां आप के पति अपने दोस्तों के साथ कई बार जा चुके हैं. काफी देर हो गई, लेकिन आप के पति को रैस्टोरैंट की सही लोकेशन याद नहीं आ रही. ऐसी स्थिति में पति पर झल्लाने या चिल्लाने से आप के पति शर्मिंदा तो होंगे ही, साथ ही आप का डिनर भी खराब होगा. अच्छा यह होगा कि आप कहें अगर वह रैस्टोरैंट नहीं मिल रहा तो मुझे एक और रैस्टोरैंट का पता है जहां हम डिनर कर सकते हैं.

7. पति की इज्जत करें:

कुछ पत्नियों को यह कहते सुना जाता है कि मैं अपने पति की इज्जत तब करूंगी जब वह इस लायक हो जाएगा. ऐसा कर के आप अनजाने में अपने पति को आप की इज्जत न करने की सलाह दे रही हैं. याद रखें यदि आप पति सेप्यार और रिस्पैक्ट से बात करती हैं, तो आप के पति को भी आप से प्यार और इज्जत से बात करने के लिए सोचना ही पड़ेगा. एक बात को बारबार न दोहराएं: किसी काम को ले कर उन्हें उस की याद बारबार न दिलाएं जैसेकि उन की दवा, डाइट, जीवन बीमा की किस्त या घर के किसी और काम की. ऐसा करने से आप उन की पत्नी कम और मालकिन ज्यादा लगेंगी. पति को काम की सूची न बताएं: पत्नियां पति के लिए हमेशा काम की लंबी सूची तैयार रखती हैं. आज यह कर देना, कल यह कर देना, उस तारीख को यह ले कर आना आदि. ऐसा कर के वे पति को यह एहसास करा रही होती हैं कि वे दांपत्य जीवन को सुचारु रूप से चलाने में असफल हो रहे हैं और हमेशा काम का बोझ बना रहता है.

8. अपने घरेलू काम की गिनती न करें:

अकसर पत्नियां पति के आते ही अपनी दिनचर्या को डिटेल में पति को बताने लगती हैं कि आज मैं ने यह काम किया, यह चीज बनाई, यहां गई, ऐसा किया और काम करतेकरते थक गई. ऐसा कर के औफिस से थकहार कर आए पति को आप अपनी भी थकान दे रही होती हैं. विवाद का निबटारा करें खुद: अगर कभी आप के बीच कोई विवाद हो जाए तो उसे खुद ही सुलझाएं. किसी तीसरे को अपनी निजी जिंदगी में कतई शामिल न होने दें.

 

इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे अपने सहकर्मी को कैसे कर सकते हैं सपोर्ट?

आज हर दस में से एक व्‍यक्ति प्रजनन संबंधी समस्‍या का सामना कर रहा है, और किसी भी कार्यस्‍थल पर यह एक बहुत संवेदनशील मामला हो गया है. इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे लोगों को काफी तनाव एवं चिंता का सामना करना पड़ता है. जब इसके साथ-साथ व्‍यक्ति फर्टिलिटी का उपचार कराने से होने वाले शारीरिक दबाव को भी झेलता है तो उसकी उत्‍पादकता, ऊर्जा, और मानसिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है.

डॉ डायना दिव्या क्रैस्टा,  मुख्य मनोवैज्ञानिक, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी सेंटर की बता रही हैं ऎसे उपाय जो इनफर्टिलिटी के दौर से गुजर रहे अपने सहकर्मी को सपोर्ट कर सके.

डायना दिव्या क्रैस्टा का कहना है कि -सांस्‍कृतिक रूप से, इनफर्टिलिटी और प्रेग्‍नेंसी लॉस को लेकर काफी वर्जनाएँ हैं. दुर्भाग्‍यवश, कपल्‍स जिस पीड़ा को सहते हैं, वह सामाजिक स्‍तर पर वास्‍तविक ‘लॉस’ के तौर पर वाकई प्रमाणित नहीं है. लेकिन यदि कोई आपके बेहद करीब है, जैसे कि आपका दोस्‍त या सहकर्मी जो कुछ इसी तरह के दौर से गुजर रहा है, तो हमें नीचे दी गई कुछ बातें ध्‍यान में रखनी चाहिए :

ध्यान दें और धैर्यपूर्वक सुनें-

सबसे पहले उनकी बात सुनें, उन्‍हें गले लगायें और उनके दिमाग में क्‍या चल रहा है, उसे आपके साथ शेयर करने का मौका दें.  खुली बातचीत सहयोगी एवं समावेशी कार्यस्‍थल की नींव है. अपने वर्कफोर्स को उन चिकित्‍सा स्थितियों को समझने पर जोर देने और सहयोग देने के लिए प्रोत्‍साहित करें जिनकी वजह से नियोक्‍ताओं को अधिक लचीलापन या अनुकूलन का अवसर प्रदान करने की जरूरत पड़ सकती है. कर्मचारियों पर ध्‍यान देने वाली संस्‍कृ‍ति का निर्माण करें जहाँ कर्मचारी प्रजनन संबंधी समस्‍याओं के बारे में खुलकर बातचीत और अपने दुख-दर्द आपस में साझा कर सकें.

संस्‍कृति में बदलाव शिक्षा पर निर्भर है-

सहयोग देने से पहले (या नीतियाँ बनाने से पहले), उन उपचारों के बारे में पूरी जानकारी पाना महत्‍वपूर्ण है जिन्‍हें कर्मचारी ले रहा है. इनफर्टिलिटी को किसी दूसरी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या से अलग नहीं करना चाहिए और न इससे डरना चाहिए. इसमें उपचार की जरूरत होती है और संस्‍थानों को इनफर्टिलिटी के सम्बन्ध में भी वैसे ही रिस्‍पॉन्‍स करना चाहिए जैसे वह दूसरी स्‍वास्‍थ्‍य स्थितियों को लेकर करते हैं.

उपचार की अलग-अलग प्रतिक्रिया-

हम आमतौर पर ‘फर्टिलिटी ट्रीटमेंट’ को ‘आईवीएफ’ (इन विट्रो फर्टि‍लाइजेशन) से जोड़कर देखते हैं, लेकिन इसमें कुछ दूसरे प्रोटोकॉल भी होते हैं जैसेकि ‘ओवुलेशन इंडक्‍शन’ या ‘आइयूआइ’ या फिर ‘सरोगेसी’ जिनमें चीरफाड़ या और कभी-कभी जटिल हस्‍तक्षेप करने पड़ते हैं. प्रत्‍येक आइवीएफ साइकल हर दूसरे साइकल से एकदम अलग हो सकता है क्‍योंकि हर व्‍यक्ति उपचार को लेकर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है.

लचीले बने रहना ही कुंजी है-

कई लोग परिवार को बढ़ाने को एक सीधी प्रक्रिया के तौर पर नहीं देखते हैं. हो सकता है कि, कर्मचारी अपनी इनफर्टिलिटी जाँच का भले ही सीधे खुलासा नहीं करें,  उन्‍हें अपने खुद के (या पार्टनर के) इलाज के लिए काम करने के ज्‍यादा लचीले शेड्यूल या अस्‍थायी इंतजाम पर चर्चा करने की जरूरत भी महसूस हो सकती है. व्‍यक्ति के रूटीन में बदलावों (या टेलीकम्‍युटिंग) की अनुमति देनी चाहिए ताकि वह अपने समय को उपचार की जरूरतों तथा बार-बार फर्टिलिटी क्‍लीनिक जाने के अनुसार अस्‍थायी रूप से समायोजित कर सके. इससे कर्मचारी को काम और जिंदगीके बीच बेहतर संतुलन बनाने में मदद मिल सकती है और उसे अपने संस्‍थान से लगाव का अहसास होता है तथा वह अपनी पेशागत भूमिकाओं एवं कर्तव्‍यों के लिए प्रशंसा मिलती है.

सपोर्ट ग्रुप्‍स का निर्माण करें-

फर्टिलिटी का इलाज करा रहे रोगियों का आमतौर पर यह मानना होता है कि उन्‍हें वही लोग समझ सकते हैं जो वाकई इस अनुभव से गुजर रहे हैं. चर्चा के लिए ग्रुप बनाने का सुझाव दें और निजी तौर पर सहयोग प्रदान करें या फिर रोगियों को सपोर्ट करने के लिए उनके मौजूदा ग्रुप में शामिल हों तथा गर्भधारण की कोशिश कर रहे कपल्‍स की भावनात्‍मक सेहत सुधारने की दिशा में काम करें. ग्रुप सभी कर्मचारियों के लिए खुला होना चाहिए, इनमें चिकित्‍सा संबंधी चुनौती का सामना कर रहे रोगी से लेकर, बच्‍चे को खोने का दर्द झेल रहे लोग और इनफर्टिलिटी का सामना कर रहे कपल्‍स शामिल हो सकते हैं. इस तरह के ग्रुप्‍स अलगाव के अहसास को दूर करने में मदद कर सकते हैं और लोगों को उनकी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के नजरिये को बहाल करने में मददगार हो सकते हैं. ये ग्रुप्‍स कपल्‍स को आश्‍वासन दे सकते हैं कि जिंदगी के इस कठिन दौर में वे अकेले नहीं हैं.

सहयोग प्रदान करें

इनफर्टिलिटी के कारण महिला और पुरुष मैनेज करने योग्‍य तनाव से मैनेज नहीं किये जाने वाले तनाव की ओर बढ़ सकते हैं. या फिर उन्‍हें गंभीर मानसिक बीमारियाँ भी हो सकती हैं जैसे चिंता, उदासी और यहाँ तक कि वे सदमे का शिकार भी हो सकते हैं. अपने कर्मचारी पर नजर रखना बहुत महत्‍वपूर्ण है, और यह उन तक पहुँचने के योग्य बात है, जैसे कि एक कर्मचारी सहायता कार्यक्रम या परामर्शी सेवा उपयोगी हो सकती है.

हमें बातचीत के सभी मार्ग भी खुले रखने चाहिए  ताकि हर किसी को ऐसा लगे कि उसे पूरा सपोर्ट मिल रहा है. जैसे कि, कर्मचारी को हर सप्‍ताह एक ईमेल भेजकर उसकी जानकारी ले सकते हैं या फिर साप्‍ताहिक रूप से आमने-सामने बैठकर बात कर सकते हैं.

अगर आपके संगठन में कई कर्मचारियों का उपचार चल रहा है तो उनमें से उन सभी कर्मचारियों को खोजने की कोशिश करें जिन्‍हें नेटवर्क के जरिए एक-दूसरे के सपोर्ट की आवश्यकता है.

कैसे करें बढ़ते बच्चों की परवरिश

‘‘जब फोन पर पिज्जा, बर्गर और्डर करना होता है तब आप के मुंह से न नहीं निकलता, गेम्स और मूवीज की डीवीडी खरीदते वक्त मना नहीं करते, दिनरात टीवी से चिपके रहते हो, मौल में पापा के 2-3 हजार फालतू चीजों पर खर्च करवा देते हो, दोस्तों के साथ खेलने जाने में कभी लेट नहीं होते, लेकिन पढ़ाई के वक्त यह फुरती कहां गायब हो जाती है? जरा सा काम करने को कहा नहीं कि मुंह फूल जाता है. आप जाओ मेरे सामने से वरना थप्पड़ जड़ दूंगा,’’ ऐसे संवाद हर उस घर में सुने जा सकते हैं, जिस में 10 या उस से ज्यादा की उम्र का बच्चा हो. डांट के इस संशोधित संस्करण का मूल स्वरूप शायद बड़ेबूढ़ों को याद हो, लेकिन अभी जो पीढ़ी यह जिम्मेदारी उठा रही है, उस ने बहुत ज्यादा बदलाव डांट की भाषा में नहीं किए हैं. तूतड़ाक की शैली खत्म हो गई है. बच्चों को अब सम्मानजनक तरीके से झाड़ लगाई जाती है. यह जरूर यथासंभव ध्यान रखा जाता है कि गुस्से को काबू रखते हुए बच्चों को मारा न जाए, क्योंकि परवरिश का यह वाकई असभ्य तरीका है.

सभ्य और आधुनिक तरीका यह है कि बच्चा इस बात को समझे और जाने कि अभिभावक उस के दुश्मन नहीं, बल्कि हितैषी हैं. यह दीगर बात है कि 40-50 साल पहले के अभिभावक भी यही चाहते थे बस फर्क इतना सा था कि डांट खाने वाले बच्चों की तादाद 3-4 या फिर इस से भी ज्यादा होती थी. जब गुस्सा बरदाश्त नहीं होता था तो बच्चों की पिटाई भी कर दी जाती थी  देखा जाए तो भावनात्मक तौर पर बदला कुछ खास नहीं है. अभिभावकों का बच्चों को कुछ बनाने का जज्बा और ख्वाहिश ज्यों की त्यों है और दूसरी तरफ बच्चों की जिद भी बरकरार है. बदलाव घरों में आए हैं. वे अब आलीशान हो गए हैं. उन में कूलर, फ्रिज, एसी लगे हैं, ज्यादातर घरों के बाहर छोटी या बड़ी कार खड़ी होती है. आज के बच्चे पहले के बच्चों की तरह स्कूल पैदल दोस्तों के साथ कूदतेफांदते मस्ती करते नहीं जाते, बल्कि बस या वैन में जाते हैं. आज के बच्चे सुबह उठ कर मम्मीपापा को गुडमौर्निंग कहते हैं. पहले के बच्चों की तरह उन के पांव नहीं छूते. आज जो मातापिता खड़ेखड़े 3-4 हजार बच्चों की जरूरत पर खर्च कर देते हैं उन्हें कभीकभार याद आता है कि उन्हें चवन्नी की जलेबियां या चाट खाने के लिए भी कितनी चापलूसी और घर के काम करने पड़ते थे. लेकिन उन का सोचना है कि उन्होंने जो सहा वह अपने बच्चों को नहीं सहने देंगे, उन्हें तकलीफें नहीं उठाने देंगे. यह मानसिकता हर दशक में बलवती होती रही है और यही वह वजह है जिस ने परवरिश को लगातार सुधारा है. दूसरे शब्दों में कहें तो पेरैंटिंग को स्मार्ट और गुणवत्ता वाला बनाया है.

पेरैंटिंग का बदलता दौर

गुजरे दौर से बगैर तुलना किए आज की पेरैंटिंग को नहीं समझा जा सकता और न ही यह कि क्यों हमेशा समझदार होता बच्चा ही इस के दायरे में ज्यादा आता है. दरअसल, आज भी बढ़ता बच्चा अभिभावकों की अधूरी इच्छाओं और सपनों को पूरा करने वाला पात्र होता है. पहले अभिभावकों के पास विकल्प होते थे. अगर 3 बेटे हैं, तो एक का कलैक्टर, दूसरे का डाक्टर और तीसरे का इंजीनियर बनना तय रहता था. यह और बात है कि ज्यादातर क्लर्क बन कर रह जाते थे. अब इच्छाएं और सपने थोपे नहीं जाते. बड़ा होता बच्चा खुद तय कर लेता है कि उसे क्या बनना है. अच्छी बात यह है कि इस पर अभिभावकों को कोई ऐतराज भी नहीं होता, क्योंकि वे जानतेमानते हैं कि अब बच्चे उम्र से पहले बड़े और सयाने हो चले हैं. इलैक्ट्रौनिक्स क्रांति ने पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया है. लिहाजा, उन की समझ और फैसले पर शक या एतराज करना बेमानी है. बस इतना भर करना है कि बच्चा पढ़े, अनुशासित जिंदगी जीए, खूब खाएपीए और स्वस्थ रहे. शरारतें, शैतानी भी करे, लेकिन हद में रह कर. एक बड़ा बदलाव यह भी आया है कि अब पारिवारिक व सामाजिक प्रतिस्पर्धा खत्म सी हो चली है. तमाम सर्वे बताते हैं कि अब 2 बच्चे भी 50 फीसदी से कम दंपती ही पैदा कर रहे हैं. बढ़ती उम्र बड़ी संवेदनशील, नाजुक और खतरनाक होती है. बच्चा समझदार होते ही वजूद की लड़ाई लड़ना शुरू कर देता है. पर जिस तरह का अभिभावकों का साथ वह चाहता है वैसा नहीं मिलता. नतीजतन, वह जिद्दी, अंतर्मुखी चिड़चिड़ा और गुस्सैल होता जाता है. आर्थिक रूप से मातापिता पर निर्भरता उसे बागी नहीं होने देती. बौंडिंग की वजह भावनात्मक कम आर्थिक ज्यादा हो चली है जिस में हैरानी की बात यह है कि बच्चा मातापिता से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से समझता है.

बनें स्मार्ट पेरैंट

जमाना स्मार्ट और क्वालिटी पेरैंटिंग का है. अगर आप वाकई बच्चों को कुछ बनते देखना चाहते हैं, तो उन की परवरिश भी आप को निम्न स्मार्ट तरीकों से ही करनी होगी.

समझें बच्चों की दुनिया

सरकार और अदालत की मंशा के मुताबिक पहले यह स्वीकार लें कि 9-10 साल का बच्चा अब दरअसल में टीनऐजर है और काल्पनिक दुनिया धीरेधीरे छोड़ रहा है. इसी वक्त उसे अभिभावक की सब से ज्यादा जरूरत होती है. इस उम्र में जिज्ञासाएं और प्राथमिकताएं तेजी से बदलती हैं. बच्चा यह नहीं पूछता कि दुनिया किस ने बनाई. वह यह पूछने लगता है कि दुनिया ऐसी क्यों है? ऐसे कई सवालों के जवाब देने जरूरी हैं. आप खुद को अपडेट रखें. मां या पिता की भूमिका से बाहर निकलें और बच्चों के दोस्त बनें. स्कूल और खेल के मैदान में उस के हमउम्र दोस्त कोई निष्कर्ष नहीं देते. वे चर्चा भर करते हैं यानी घरों में जो उन्हें बतायासिखाया जाता है उसे ऐक्सचेंज करते हैं. यह न मान लें कि यही उम्र कैरियर बनाने की है, बल्कि यह समझ लें कि यह वह उम्र है, जो उसे आत्मविश्वासी बनाती है. इसलिए उस पर अपनी इच्छाए न थोपें. उसे कैरियर को ले कर डराएं नहीं, उलटे मौजमस्ती करने दें और खेलनेकूदने दें. इस उम्र में शारीरिक और मानसिक विकास व बदलाव एकसाथ होते हैं. ये कुदरती होते हैं. इन में अड़ंगा न बनें. ज्यादातर अभिभावक यह समझने की गलती कर बैठते हैं कि बच्चा उन की बात नहीं मान कर गलती कर रहा है. ज्यादा सख्ती करेंगे तो वह आप की बात मान तो लेगा, लेकिन उस में जो असुरक्षा की भावना आएगी उसे शायद ही आप कभी दूर कर पाएं.

उसे वक्त दें

बच्चों के बजाय अभिभावक अपनी दिनचर्या देखें तो पाएंगे कि टीवी, इंटरनैट, स्मार्ट फोन और दूसरे फालतू के कामों में वे बच्चों से ज्यादा व्यस्त रहते हैं. आजकल दफ्तर या व्यवसाय में 15-16 घंटे लगना आम बात है. इस वक्त के बाद आप बच्चों को मुश्किल से 2 घंटे भी नहीं देते और देते भी हैं तो ज्यादातर वक्त उसे समझाते रहते हैं, नसीहतें देते रहते हैं. इस से आप को झूठी तसल्ली जिम्मेदारी निभाने की होती है पर बच्चों को कुछ हासिल नहीं होता. बच्चों को जितना ज्यादा हो सके समय दें. उन के साथ खेलें, घूमेंफिरें. खुद भी बच्चा बन जाएं. भूल जाएं कि आप उस के पेरैंट हैं. यही याद रखें कि आप उस के दोस्त हैं. 12 वर्षीय उद्भव का कहना है कि उस के मम्मीपापा उसे हमेशा डांटते रहते हैं कि फालतू के काम करते रहते हो, जबकि खुद मम्मी टीवी सीरियलों में आंखें गड़ाए रहती हैं और पापा शाम को दोस्तों के साथ निकलते हैं, तो देर रात लौटते हैं. तब तक अकसर मैं सो चुका होता हूं. यह केवल उद्भव की नहीं, बल्कि पूरी पीढ़ी की शिकायत है जो असहज हो कर पेरैंट्स को फ्रैंड नहीं, बल्कि फाइनैंसर समझ बैठी है. 9 साल बाद की उम्र के  बाद बच्चा पहले के मुकाबले आप के ज्यादा करीब आना चाहता है पर दिक्कत यह है कि आप खुद दूर हो जाते हैं और यह मानने की गलती कर बैठते हैं कि अब वह बड़ा हो गया है, अपने काम खुद करने लगा है. अब सारा फोकस स्टडी पर करना है जिस के लिए अच्छे महंगे स्कूल के अलावा कोचिंग और ट्यूटर का इंतजाम काफी है. इस तरह कुछ ज्यादा पैसे खर्च कर आप दरअसल अपना वक्त बचा रहे होते हैं जिस पर अधिकार बच्चों का है, इसलिए उसे वक्त दें और होमवर्क खुद कराएं.

उस के साथ खेलें भी

 11 साल का नमन कहता है कि जब मम्मीपापा कालोनी में उस के साथ बैडमिंटन खेलते हैं या सोने से पहले कैरम खेलते हैं, तो उसे बहुत अच्छा लगता है. यह पढ़ाई और घर की दूसरी जिम्मेदारियों से इतर एक अलग किस्म की शेयरिंग है, जिस से बच्चों का मनोरंजन भी होता है और विकास भी. इस से वे पेरैंट्स को वाकई अपने पास पाते हैं.

प्रलोभन में हरज नहीं

स्मार्ट पेरैटिंग का एक अच्छा फंडा यह है कि बच्चों को कहें कि अगर इस पूरे महीने उस ने वक्त पर होमवर्क किया तो आउटिंग के लिए ले जाएंगे बजाय इस के कि उस से यह कहें कि शैतानी न करो तो इस के ऐवज में चौकलेट या आइसक्रीम दिलाएंगे. गलत लालच दे कर आप उसे गलती करने को प्रोत्साहित करने की गलती न करें यानी भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल न हो. 12 वर्षीय अनुष्का को जब भी चौकलेट चाहिए होती है तो वह शैतानी शुरू कर देती है. जब डांटफटकार से नहीं मानती तो मम्मीपापा थकहार कर चौकलेट दिला देते हैं. यह तरीका गलत है. बच्चों को अच्छे काम के लिए प्रलोभन दें.

प्यार करें

याद करें कि कब आखिरी बार आप ने अपने बच्चों को उसी तरह सीने से लगा कर प्यार किया था जैसा 4-5 साल की उम्र में करते थे. ध्यान न आए तो हरज की बात नहीं, लेकिन उस के बालों में हाथ फिराएं, पीठ सहलाएं, गाल थपथपाएं, उसे गले से लगाएं. ऐसा करने पर आप उस में जो बदलाव पाएंगे वे सख्ती करने पर नहीं पा सकते थे.

निगरानी भी करें

भोपाल के एनआईटी के प्रोफैसर राजेश पटेरिया कहते हैं कि इस उम्र में बच्चों की निगरानी बहुत जरूरी है. बच्चा खेलने कहांकहां जाता है और किन व कैसे बच्चों के साथ खेलता है, उस की घर के बाहर की गतिविधियां कैसी हैं, बाहर से जो सीख कर आता है उसे घर में भी दोहराता है, इन हरकतों पर ध्यान रखें. नौकरों व ट्यूटर पर भी नजर रखनी जरूरी है कि कहीं वे बच्चे को गलत बातें तो नहीं सिखा रहे. अगर वह गलत संगत में है, तो फौरन संभल जाएं. इस उम्र में आजादी की चाह कुदरती होती  है और अकसर छूट मिलने पर बच्चा इस का बेजा इस्तेमाल कर खुद को बड़ा समझने की नादानी करता है. उस पर अंकुश बेहद जरूरी है. अगर उस का खर्च बढ़ रहा है तो इस की छानबीन करें व यह भी मालूम करते रहें कि पौकेट मनी वह कहां और कैसे खर्च करता है.

पढ़नेलिखने को प्रेरित करें

बढ़ती उम्र के बच्चे टीवी और कंप्यूटर की लत के शिकार होते हैं और समझाने पर समझने को तैयार नहीं होते कि उपकरण उन्हें कैसेकैसे नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह लत छुड़ाने का तरीका बदलें. उन्हें बारबार समझाएं या डांटे नहीं, बल्कि उन का ध्यान अच्छी किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने में लगाने की कोशिश करें. उन्हें बताएं कि पढ़नेलिखने से उन की भाषा व व्याकरण सुधरेगा जो कैरियर में सहायक होगा. खाली वक्त में बच्चों को कोई मनपसंद दिलचस्प विषय दे कर लिखने के लिए प्रेरित करें. वे कैसा भी लिखें उन की तारीफ करें. उन्हें अच्छे साहित्य व लेखकों के बारे में बताएं. उन की गलतियां भी सुधारें.

अनुशासन व शिष्टाचार जरूरी है

स्मार्ट पेरैंटिंग की एक जरूरी शर्त बच्चे को अनुशासन सिखाना भी है. मसलन जब मेहमान आएं तो उन से उस का परिचय कराएं. आगंतुकों से कैसे पेश आना है यह शिष्टाचार उसे जरूर सिखाएं. इस से उस का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.

उपहार दें

बढ़ती उम्र के बच्चे लेटैस्ट गैजेट्स चाहते हैं. उन्हें यह जरूरत व उपयोगिता के मुताबिक दें पर साथ ही उन की रुचियों पर भी ध्यान दें. इस से उन की गलत मांगें तो कम होंगी ही, साथ ही कलात्मक अभिरुचियां भी बढ़ेंगी. डांटने और फटकारने को ही पेरैंटिंग न समझें. इसे कम करें. नए दौर के बच्चे किसी भी तरह के दबाव से जल्दी टूटने लगते हैं. उन्हें हमेशा प्यार से समझाएं. खुद को बदलें बच्चे खुदबखुद बदलने लगेेंगे.

 

इकलौती संतान की पेरेंट्स ऐसे करें देखभाल

आजकल लोगों की औसत आयु बढ़ गई है. लोग ज्यादा जीने लगे हैं. देश में बुजुर्गों की संख्या 1961 से लगातार बढ़ रही है और 2021 में देश में बुजुर्गों की आबादी 13.8 करोड़ पार हो गई है. 2031 में उन की कुल आबादी 19.38 करोड़ होने का अनुमान है. ‘नैशनल स्टैटिक्स औफिस’ की एक स्टडी में यह बात सामने आई. वैसे तो यह सुकून की बात है. लेकिन इन की आबादी बढ़ने से एक नई समस्या भी खड़ी हो गई है.

दरअसल, आज के समय में अकसर घरों में एक ही संतान होती है. बच्चों की जिम्मेदारी उठाना और उन की पढ़ाई का खर्च इतना महंगा हो गया है कि लोग एक से ज्यादा बच्चे अफोर्ड नहीं कर पाते. यही नहीं कामकाजी महिलाएं और सिंगल परिवार होने की वजह से भी बहुत से लोग एक से ज्यादा बच्चों के बारे में सोच नहीं पाते. ऐसे में समस्या तब आती है जब बच्चे बड़े होते हैं और मांबाप बूढ़े हो जाते हैं.

उम्र के इस दौर में पेरैंट्स को बच्चों के सहारे की जरूरत पढ़ती है. मगर उन की देखभाल करने के लिए घर में कोई नहीं रह जाता क्योंकि अकसर पढ़ाई या नौकरी के लिए लड़के मैट्रो सिटीज में चले जाते हैं या फिर अगर बेटी है तो उसे ससुराल जाना पड़ता है. अगर बेटा उसी शहर में नौकरी करता है या अपना बिजनैस है तो मांबाप के साथ रहता है, वरना दूर चला जाता है. मुसीबत तब आती है जब पेरैंट्स में से एक यानी माता या पिता की मौत हो जाती है. तब दूसरा शख्स घर में बिलकुल अकेला रह जाता है.

बड़ी जिम्मेदारी

जब कोई लड़का या लड़की अपने मां-बाप की इकलौती संतान होती है तो उस पर अपना कैरियर बनाने के साथसाथ पेरैंट्स की देखभाल की भी जिम्मेदारी होती है. उसे कई बार इस वजह से समझौता भी करना पड़ता है क्योंकि उस के अलावा पेरैंट्स का कोई और सहारा नहीं होता. पेरैंट्स अपनी जिंदगी में कमाई हुई सारी दौलत और अपना पूरा प्यार अपने इकलौते बच्चे के नाम करते हैं.

ऐसे में बच्चे का भी दायित्व बनता है कि वह अपने पेरैंट्स के लिए कुछ करे. ज्यादातर बच्चे अपने पेरैंट्स की देखभाल करना भी चाहते हैं, मगर परिस्थितियां अनुकूल नहीं होतीं.

आइए, जानते हैं किस परिस्थिति में आप किस तरह अपने पेरैंट्स की देखभाल कर सकते हैं:

जब बेटी इकलौती संतान है

29 साल की दिव्या अपने मांबाप की इकलौती संतान है. उसे एक बेटा और एक बेटी है. वह एक स्कूल में टीचर है. वैसे उस का पति विशाल उस से बहुत प्यार करता है और उस का खयाल भी रखता है, घर में किसी चीज की कमी नहीं है, मगर दिव्या अपने मम्मीपापा को ले कर परेशान रहती है क्योंकि विशाल अपने ससुराल से ज्यादा संबंध नहीं रखता.

दिव्या के पापा को 2 बार हार्ट अटैक आ चुका है. मां से उन की देखभाल ठीक से नहीं होती. उन की आमदनी का पैंशन के अलावा कोई और साधन नहीं. जो रुपए जमा थे वे बेटी की पढ़ाई और शादी में खर्च हो गए. ऐसे में आर्थिक समस्याएं भी पैदा हो जाती थीं. कभीकभार दिव्या उन को पैसे दे देती तो विशाल को अच्छा नहीं लगता क्योंकि दिव्या के घर वालों से उसे बिलकुल लगाव नहीं था.

कभी दिव्या के मांबाप आते तो भी उन के साथ विशाल नौर्मल बातचीत नहीं करता. इस बात से वह बहुत दुखी रहती. दिव्या को इस बात की टैंशन रहती है कि अपने बूढ़े हो चुके मांबाप का खयाल कैसे रखे. उन का खयाल रखने के लिए और कोई नहीं है. इकलौती संतान होने के नाते वह उन के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझती है, मगर कुछ कर नहीं पाती क्योंकि वह अपने पति से भी झगड़ा लेना मोल नहीं चाहती है.

उसका पति सास-ससुर की कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. वह कभीकभी तलाक लेने की बात सोचती है, मगर बच्चों की तरफ देख कर चुप रह जाती है. उस के मांबाप भी उसे ऐसा करने से साफ मना करते हैं.

ऐसे हालात में आखिर एक दिन दिव्या ने अपने पति विशाल से सवाल किया, ‘‘यदि मेरे मातापिता के स्थान पर तुम्हारे मातापिता होते तो भी क्या तुम ऐसा ही करते? जिस तरह से तुम्हारे बूढ़े मातापिता की जिम्मेदारी हम दोनों मिल कर उठाते हैं वैसे ही मेरे मातापिता का खयाल भी तो दोनों को ही रखना चाहिए. उन की मेरे सिवा कोई औलाद नहीं. मेरी पढ़ाई और शादी में उन्होंने सारे रुपए लगा दिए. ऐसे में उन्हें कभी डाक्टर को दिखाना हो या आर्थिक मदद करनी हो तब तुम पीछे क्यों हट जाते हो?’’

इस सवाल पर विशाल कोई जवाब नहीं दे सका. उस रात दिव्या ने देखा कि उस के सासससुर विशाल को कुछ समझ रहे हैं. अगली बार जब दिव्या मां को डाक्टर को दिखाने जा रही थी तब विशाल खुद आगे आया और कहने लगा कि चलो साथ चलते हैं. यह सुन दिव्या को अपने पति पर बहुत प्यार आया.

कोई सहारा नहीं

दरअसल, शादी के बाद पतिपत्नी जीवनसाथी बन जाते हैं. जीवन की राह में आने वाले हर सुखदुख में उन्हें एकदूसरे का साथ देना चाहिए. इस काम में केवल स्त्री के पति को ही नहीं बल्कि उस के सासससुर को भी खयाल रखना चाहिए कि यदि बहू की मां या बाप को कोई परेशानी है तो वे अपनी बहू की सहायता करें और उस का साथ दें, उस के पति यानी अपने बेटे को समझएं.

मगर हमारी सोसाइटी में स्थिति बहुत अलग रहती है. हमारे देश में लड़की की शादी करने के बाद लड़की के घर जाना या उस के घर खाना और रहना भी परंपराओं के अनुसार वर्जित माना गया है. घर में बेटा बहू हो तो यह रिवाज चल सकता है. लेकिन अगर वह पुत्री इकलौती संतान है और मांबाप का उस के सिवा कोई और सहारा नहीं है तो ऐसे में क्या पुत्री के दिल में यह सवाल नहीं उठेगा कि वह अपने बूढ़े मांबाप का सहारा क्यों नहीं बन सकती? खासकर जब मां या पिताजी में से कोई अकेला रह जाता है तब बेटी उन्हें अपने घर रखना चाहती है. पर अकसर ऐसे में उसे ससुराल वालों और खुद अपने पति की भी नाराजगी सहनी पड़ती है.

पेरैंट्स का सम्मान अपेक्षित

मुश्किल घड़ी में मांबाप का पुत्री के घर जा कर रहने में कोई हरज नहीं होना चाहिए. महत्त्वपूर्ण बात यह है कि के दामाद और उन के रिश्तेदार पेरैंट्स के साथ सम्मान से पेश आएं. सामान्यतया यह देखा जाता है कि माता या पिता का बेटी के घर जा कर रहने पर कुछ दिन तो बेटी के घर वाले उन का सम्मान करते हैं, लेकिन बाद में धीरेधीरे उन के व्यवहार में परिवर्तन आता जाता है. ऐसे में लड़की के मातापिता में हीनभावना उत्पन्न होने लग जाती है.

जब बेटा दूसरे शहर या विदेश में रहता हो

अकसर बच्चों को अच्छी पढ़ाई या फिर नौकरी के लिए अपना शहर छोड़ना पड़ता है. बाद में कई बार बच्चे विदेश या मैट्रो सिटीज में नौकरी मिलने पर शादी कर के वहीं सैटल भी हो जाते हैं. ऐसे में पुराने घर में मांबाप अकेले रह जाते हैं. अपने कैरियर के लिए बच्चे वापस लौटने का जोखिम नहीं उठाना चाहते, मगर वे ओल्ड पेरैंट्स के प्रति अपने दायित्व से भी मुंह नहीं मोड़ सकते. कई बार मां या बाप अकेले रह जाते हैं तब स्थिति ज्यादा खराब होती है. ऐसी स्थिति में बेटा अपने मांबाप की देखभाल के लिए कुछ इस तरह के तरीके अपना सकता है:

–  अपने पेरैंट्स के घर के पास रहने वाले किसी दोस्त को यह जिम्मेदारी दे सकता है कि रोज शाम में एक बार औफिस से लौटते हुए वह आप के पेरैंट्स से मिलता जाए ताकि किसी तरह की सेहत से जुड़ी परेशानी की जानकारी आप को समय रहते मिल जाए और अर्जेन्सी होने पर आप का दोस्त उन्हें अस्पताल पहुंचा सके. इस के बदले में आप अपने दोस्त की किसी और तरह से हैल्प कर सकते हैं.

–  अपने पेरैंट्स के साथ एक विश्वसनीय नौकरानी को पूरे दिन के लिए रख दें. वह खाना बनाने और साफसफाई के अलावा बुजुर्ग पेरैंट्स की देखभाल भी कर ले जैसे दवा देना, मालिश करना, टहलाना, बाल धोना, फल काटना जैसे छोटेमोटे कामों में भी मदद कर दे.

–  समय रहते उन का मैडिक्लेम जरूर करा लें.

पति की आदतों से परेशान हो गई हूं, मै क्या करुं?

सवाल

मैं 23 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 2 साल हो चुके हैं पर मेरे पति आज भी उतने ही रोमांटिक मूड में रहते हैं. हर रोज सहवास करना चाहते हैं. मायके भी नहीं जाने देते. मैं 2 सालों में मुश्किल से 8-10 दिन मायके में रही होऊंगी, जबकि मेरी सहेलियां कई महीने मायके में रहती हैं. किसी भी सहेली का पति इतना सैक्सी नहीं है जितने मेरे पति हैं. कभी कभी तो मुझे डर लगने लगता है कि कहीं वे सैक्स ऐडिक्ट तो नहीं हैं? बताएं क्या करूं?

जवाब

आप को खुश होना चाहिए कि आप को इतना प्रेम करने वाला पति मिला है और आप बेवजह परेशान हैं. जहां तक कामुकता या सैक्स के प्रति अधिक रुझान की बात है, तो यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है. इसलिए अपनी सहेलियों के पतियों से न तो आप को पति की तुलना करनी चाहिए और न ही इतनी अंतरंग बातें दूसरों के सामने उजागर करनी चाहिए. पति के साथ का बेहिचक आनंद उठाएं.

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प्यार, रोमांस फिर शादी ये चलन सदियों से चला आ रहा है. दो युगलों के बीच प्यार एक पराकाष्ठा को पार तब करता है जब दोनों का मिलन आत्मा से होता है. प्यार का समागम आत्मा और शरीर दोनों से ही होता है. जब नवविवाहिता आती है तो धारणा यह बनती है कि अब दोनों का शारीरिक मिलन तय है, पर यह गलत है. हालांकि, शारीरिक मिलन यानि कि सेक्स जीवन का एक आधार है एक नई पीढ़ी को तैयार करने का. पर नवविवाहित जोड़ों को सेक्स से संबंधी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है. या यूं कहें कि कुछ मतभेद जो उनके दिलों में कई सवाल बनकर खड़े हो जाते हैं. सेक्स से जुड़े वो कौन-से मतभेद हैं जो उनको एक-दूसरे के करीब नहीं आने देते –

  • सेक्स से जुड़ा संदेह
  • गर्भ निरोधकों का प्रयोग
  • पराकाष्ठा का अभाव
  • कुछ मिथक
  • संचार का अभाव

सेक्स से जुड़ा संदेह –

सेक्स से जुड़ा सबसे बड़ा मतभेद तो संदेह होता है. जिनकी नई शादी हुई होती है उनके लिए सब कुछ नया-नया होता है. वह अपने आपको असहज महसूस करते हैं. उन्हें संदेह रहता है कि क्या वह अपने जीवनसाथी को संतुष्ट कर सकेंगे. शादी के बाद कुछ व्यक्ति अपने आपको नियंत्रण कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं. इसीलिए उन्हें डाउट रहता है. शादी के बाद वह दिन में कई बार सेक्स करना पसंद करते हैं. दोनों ही युगल यह सोचकर सुख का आनंद नहीं ले पाते कि कहीं उनका साथी उनके बारे में क्या सोच रहा होगा. वो असहज फील करते हैं. हालांकि एक समय बाद  वह यह सोचकर सहज हो जाते हैं कि दोनों के लिए सेक्स वास्तव में कितना सामान्य है. एक दूसरे के प्रति वह जरूरतमंद महसूस कर सकता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- न्यूली मैरिड कपल और सेक्स मिथक

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

क्या है स्लीप डायवोर्स

आलोक के खर्राटे पूरे कमरे में गूंज रहे थे. सीमा कभी करवटें बदलती, कभी तकिया कानों पर रखती, तो कभी सिर आलोक के पैरों की तरफ करती. यही सब करतेकरते रोज रात को 3 बज जाते थे. सुबह उठती तो उस का सिर भारी रहता. बातबात पर चिढ़ती रहती, दिन भर औफिस में काम करना मुश्किल हो जाता. तबीयत हर समय बिगड़ी रहने लगी तो दोनों डाक्टर के पास गए. डाक्टर ने पूरी बात सुनने के बाद स्लीप डायवोर्स के बारे में बात करते हुए दोनों को अलगअलग सोने की सलाह दी, तो दोनों हैरानपरेशान घर लौट आए. 1 हफ्ते में ही भरपूर नींद के बाद सीमा प्रसन्नचित्त और चुस्तदुरुस्त दिखने लगी, तो दोनों इस से खुश हुए और फिर डाक्टर को जा कर धन्यवाद दिया.

आहत न हों भावनाएं

मनोचिकित्सकों के अनुसार, कई पतिपत्नी ऐसे होते हैं, जो अलगअलग सोना चाहते हैं. कारण कई हैं, साथी के बारबार करवट बदलने से, बिस्तर में खर्राटे भरने से नींद डिस्टर्ब होने के कारण वे अलग सोना तो चाहते हैं पर साथी की भावनाएं आहत न हों, इसलिए कह नहीं पाते. कई पतिपत्नी ऐसे भी होते हैं, जो एकदूसरे को प्यार तो बहुत करते हैं पर सोना अलगअलग चाहते हैं और चली आ रही परंपराओं के अनुसार पतिपत्नी को एक बैडरूम में ही सोना चाहिए पर अपने रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए जब भी अकेले सोने का मन करे, तो स्लीप डायवोर्स की स्थिति को समझ लेना चाहिए.

स्लीप डायवोर्स है क्या

इसे नाइट डायवोर्स भी कहते हैं. इस का मतलब है पतिपत्नी का अलगअलग सोना. ठीक से न सोने से रिश्ते के साथसाथ हैल्थ भी प्रभावित होती है. कई पतिपत्नियों को जिन्हें नींद न आने की समस्या होती है. उन्हें अलगअलग सोने की सलाह दी जाती है ताकि उन की नींद का स्तर सुधर सके. कम सोने से रिश्ते पर, घर की अन्य समस्याओं पर इस का नकारात्मक असर पड़ सकता है. डाक्टरों के अनुसार, अलगअलग सोने में कुछ भी गलत नहीं है. वास्तव में इस से पतिपत्नी का रिश्ता और मजबूत होता देखा गया है. साथ ही सोना है, यह पुरानी सोच है. कई घरों में पति सुबह जल्दी उठता है, मौर्निंग वौक पर जाता है, जबकि पत्नी थोड़ी देर और सोना चाहती है. यदि वे साथ सोते हैं, तो पत्नी जरूर डिस्टर्ब होगी. तब पति अपनी पत्नी को डिस्टर्ब न करने के खयाल से अपनी सैर छोड़ देता है, जिस से भविष्य में किसी भी तरह की समस्या हो सकती है.

एक दूसरे का खयाल

पढ़नेलिखने की शौकीन कविता बंसल का कहना है, ‘‘मुझे सोने से पहले कुछ पढ़ना अच्छा लगता है. आजकल मैं कुछ कविताएं भी लिख रही हूं. दिन भर घर की व्यस्तता में समय नहीं मिल पाता है. रात में सब कामों से फ्री होने पर मुझे एकांत में अपना यह शौक पूरा करने का समय मिलता है. यदि मैं बैडरूम में रहूंगी तो दिन भर के थके पति को आराम नहीं मिल पाएगा, उन की नींद जरा सी आवाज से ही खुल जाती है, इसलिए मैं दूसरे रूम में ही सो जाती हूं. एकदूसरे के आराम का खयाल रखने से हमारे रिश्ते में प्यार बढ़ा ही है.’’

पतिपत्नी के रिश्ते में सब से महत्त्वपूर्ण चीज है प्यार और विश्वास. अगर साथ सोने से एकदूसरे के आराम और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा हो तो स्लीप डायवोर्स में कोई बुराई नहीं है. अगर एकदूसरे के आराम, नींद का खयाल रखते हुए अलग सो लिया जाए, तो इस से इस रिश्ते को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, बल्कि यह और मजबूत ही होगा, एकदूसरे के लिए प्यार और सम्मान बढ़ेगा. एकदूसरे का खयाल रख कर प्यार से रहें, खुश रहें, चैन से सोएं और सोने दें.

 

शादी के बाद मुझे किसी और से प्यार हो गया है?

सवाल-

मैं कालेज टाइम में किसी लड़के से बहुत प्यार करती थी. मगर कभी उस से अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकी. बाद में मेरी अरेंज्ड मैरिज हो गई. पति काफी अंडरस्टैंडिंग और केयरिंग नेचर के हैं. मैं अपनी जिंदगी में काफी खुश थी, मगर एक दिन अचानक जिंदगी में तूफान आ गया. दरअसल, फेसबुक पर उसी लड़के का मैसेज आया कि वह मु  झ से बात करना चाहता है. मेरे मन में दबा प्यार फिर से जाग उठा. मैं ने तुरंत उस के मैसेज का जवाब दिया. फेसबुक पर हमारी दोस्ती फिर से परवान चढ़ने लगी. मैं अपना खाली समय उस से बातें करने में गुजारने लगी. धीरेधीरे शर्म और संकोच की दीवारें गिरने लगीं. फिर एक दिन उस ने मु  झे अकेले में मिलने बुलाया. मैं उस के इरादों से वाकिफ हूं, इसलिए हिम्मत नहीं हो रही कि इतना बड़ा कदम उठाऊं या नहीं. उधर मन में दबा प्यार मु  झे यह कदम उठाने की जिद कर रहा है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

यह बात सच है कि पहले प्यार को इंसान कभी नहीं भूल पाता, मगर जब जिंदगी आगे बढ़ चुकी हो तो लौट कर उस राह जाना मूर्खता होगी. वैसे भी आप को कोई अपने पति से शिकायत नहीं है. ऐसे में प्रेमी से रिश्ता जोड़ कर नाहक अपनी परेशानियां न बढ़ाएं.

उस लड़के को स्पष्ट रूप से ताकीद कर दें कि आप उस से केवल हैल्दी फ्रैंडशिप की उम्मीद रखती हैं, जो आप के जीवन की एकरसता दूर कर मन को सुकून और प्रेरणा दे. मगर शारीरिक रूप से जुड़ कर आप इस रिश्ते के साथसाथ अपने वैवाहिक रिश्ते के साथ भी अन्याय करेंगी. इसलिए देर न करते हुए बिना किसी तरह की दुविधा मन में लिए अपने प्रेमी से इस बारे में बात कर उसे अपना फैसला सुनाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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