Father’s day Special: बेस्ट डैड नहीं, पिता बनने की करें कोशिश 

हमेशा से महिलाओं को ही मल्टी टास्क करने वाली माना जाता रहा है, जबकि आज पुरुषों को भी ये जिम्मेदारी निभानी पड़ती है, क्योंकि बड़े शहरों में कई परिवार ऐसे है जहाँ महिलायें कैरियर की व्यस्तता की वजह से परिवार के लिए समय नहीं दे पाती है, या कम देती है, ऐसे में पिता को ही बच्चे को सम्हालना पड़ता है. धीरे-धीरे बच्चे और उनके पिता के बीच तालमेल बनता जाता है. इसमें सिंगल फादर भी कई है, जिन्हें किसी हादसे या घटना का शिकार होना पड़ा. पत्नी के गुजर जाने या डिवोर्स के बाद बच्चे को सम्हालने की जिम्मेदारी उन्होंने खुद ली और वे बच्चे को खुद पलना चाहते है.

मुश्किलें आती है, पर वे एक समय के बाद निकल भी जाती है. एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाले तुहिन को कुछ ऐसी ही समस्याओं से गुजरना पड़ा. जब उनकी पत्नी ने ढाई साल की बेटी तिलोत्तमा को छोड़कर अपने पुराने प्रेमी के साथ चली गयी और डिवोर्स ले ली. बच्चे को साथ न ले जाने की भी इच्छा प्रकट की, ऐसे में तुहिन ने बच्चे को सम्हालने की जिम्मेदारी ली और उसमें पूरी तरह से खड़ा उतरने की कोशिश कर रहे है.

वे कहते है कि डिवोर्स के कुछ दिन पहले से मेरी पत्नी बच्चे का ध्यान नहीं रखती थी, किसी तरह उसे डे केयर में डालकर ऑफिस चली जाती थी. मैं जब शाम को उसे घर लाने जाता तो, अधिकतर वह भूखी होती थी और मैं कुछ बनाकर खिलाता था. पूछने पर कुछ न कुछ बहाने दे दिया करती थी. कुछ संमय तक ऐसा चलने के बाद जब एक दिन मैंने इस बारें में उससे बात की, तो पता चला कि वह इस विवाह से खुश नहीं और डिवोर्स चाहती है. बेटी को ले जाना भी नहीं चाहती.

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मैंने इसे स्वीकार किया और तबसे बेटी की परवरिश कर रहा हूँ. कुछ लोगों ने मुझे दुबारा शादी करने की सलाह दी, पर मैं मानसिक रूप से तैयार नहीं. अब मेरी बेटी 5 साल की हो चुकी है और समझदार भी है. किसी बात पर जिद करने पर उसे समझाना अब आसान हो गया है. अब वह काफी हद तक समझदार हो चुकी है. पहले कई बार जब छोटी थी, तो मुझे समस्या आती थी, पर उस समय मेरी माँ और पिता ने बहुत सहयोग दिया. कई बार बेटी बीमार भी पड़ी.

मैंने रात-रात भर जागकर उसकी देखभाल की, पर मैं खुशनसीब हूँ कि मेरी किसी भी परेशानी में मेरी माँ हमेशा साथ रही. मेरे माता-पिता का साथ न होने पर कैरियर के साथ बच्ची को सम्हालना शायद मुश्किल होता. सिंगल पैरेंट बनना कोई नहीं चाहता. हालात उसे बनाती है. वैसे तो माता-पिता दोनों का प्यार बच्चे के लिए चाहिए, पर परिस्थिति से निपटना कई बार पड़ता है. आज मेरी बेटी मेरे लिए सबसे बड़ी प्रायोरिटी है. उसकी सही तरीके से परवरिश करना ही मेरा लक्ष्य है.

ये सही है कि सिंगल फादर बनना आसान नहीं होता, क्योंकि बच्चे की परवरिश में उसकी मानसिक और शारीरिक दोनों अवस्थाओं का ध्यान लगातार रखना पड़ता है. माँ बच्चे के काफी नजदीक होती है, जबकि पिता नहीं. बच्चे के साथ पिता का संवाद भी अमूमन कम होता है, लेकिन आज सिंगल फादर की अवधारणा बढ़ी है और कई पिता इस निर्णय से खुश भी है, ऐसे में सही परवरिश के लिए बच्चे के साथ अच्छी संवाद होने की जरुरत होती है, ताकि एडजस्टमेंट बच्चे और पिता के बीच अच्छा हो.

इस बारें में मनोवैज्ञानिक सुनेत्रा बैनर्जी कहती है कि सिंगल फादर बनना एक चुनौती होती है, इसमें भी बेटे और बेटी की परवरिश के पैमाने अलग होते है. बचपन से ही बच्चे में क्या सही क्या गलत है इसे बताते रहना चाहिए जिसके लिए जरुरी होता है, अच्छी कम्युनीकेशन का होना, जिसके द्वारा आप बच्चे की हर उम्र में उसके शारीरिक और मानसिक बदलाव को अच्छी तरह से समझ सकते है. आप एक अच्छे पिता बनने की कोशिश करें, बेस्ट डैड बनने की नहीं. कुछ टिप्स निम्न है,

  • बच्चे को बड़ा करने में अनुशासन, वर्क और पर्सनल लाइफ के बीच सामंजस्य को मेंटेन करने की जरुरत,
  • खुद की देखभाल के साथ-साथ बच्चे की मानसिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक और शारीरिक विकास को समझते रहना, क्योंकि एकल पिता दो भूमिकाएं निभाते है, 
  • वैसे आजकल मात-पिता की भूमिका में काफी अंतर नहीं रहा, सिंगल फादर बनना, खुद एक बच्चे की पूरी जिम्मेदारी लेना ही बड़ी बात होती है, जो धीरे-धीरे आसान होती जाती है, 
  • डिवोर्सी पिता के अंदर अधिकतर अपराधबोध होता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चा उनकी वजह से ऐसी परिस्थिति से गुजर रहा है, ऐसे में कई बार पिता बच्चे की अनचाहे जिद को पूरा कर माँ की कमी को पूरा करना चाहते है, जो बच्चे के साथ गलत होता है, ऐसा कभी न करें, आप खुद को बच्चे का पालनहार समझे.

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  • हमेशा उसे सही गलत के फर्क को समझाने की कोशिश करें, ये काम बच्चे के साथ बैठकर या कही बाहर जाकर खुले परिवेश में करें, उसपर ट्रस्ट रखें.
  • एक धैर्यवान लिसनर बने, बच्चे की बात को सुनकर फिर अपनी बात कहें, पिता के पास अक्सर हर बात का समाधान होता है और बच्चे ये जानते है, लेकिन कहाँ तक आप इसे पूरा करेंगे, इसका मापदंड भी उन्हें समझाए. 
  • अगर बेटी हो तो उनका ध्यान सिंगल फादर को अधिक रखना पड़ता है, मनोवैज्ञानिक शब्दों में इलेक्ट्राकाम्प्लेक्स यानि बेटी का पिता के प्रति और बेटे का माँ के प्रति आकर्षण का होना माना जाता है, बेटी के जीवन में उसका पिता पहला पुरुष होता है, जो पुरूष की मानक को सेट करता है, जिसके द्वारा उसके जीवन में पुरुष की एक छवि बनती है, जिसे वह सम्मान देती है और खुद को उसके साथ रहकर सुरक्षित महसूस करती है, जो बाद में पति या बॉयफ्रेंड का रूप लेता है, पिता को उसके जीवन का आदर्श होना जरुरी होता है.
  • प्युबर्टी स्टेज में ये काम और अधिक मुश्किल बेटी के क्षेत्र में होता है, क्योंकि तब बेटी में शारीरिक और मानसिक दोनों बदलाव होने शुरू होता है, सिंगल फादर को एक दोस्त के जैसे इन सभी समस्याओं से निपटना पड़ता है, इमोशनल सपोर्ट बच्चे और पिता का एक दूसरे से होना जरुरी, इसके लिए बच्चे के साथ क्वालिटी समय बिताएं.
  • बेस्ट डैड बनने की नहीं, पिता बनने की कोशिश करें, ओवर प्रोटेक्टिव न बने, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करें, लड़के अधिक एग्रेसिव होते है, उन्हें थोड़ी अधिक अनुशासित करने की जरुरत होती है. जबकि लडकियां सेंसेटिव होती है, उन्हें धैर्य के साथ समझाना पड़ता है.
  • कई बार ऐसा देखा गया है कि सिंगल फादर बच्चे की देखभाल करते-करते पर्सनल लाइफ का त्याग करते रहते है, वे कही आना जाना या दोस्तों के साथ समय नहीं बिताते, ऐसे में उनमें फ्रस्ट्रेशन आ जाता है, ऐसा कभी न करें, अपने लिए समय अवश्य निकाले, बच्चा, काम और पर्सनल लाइफ में बैलेंस अवश्य करें.
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