पैरिस में टीचर का गला काटना धार्मिक कट्टरवादियों की सब से घिनौनी मिसाल है 

लेखक- शाहनवाज

हम आम लोग अपने जीवन में जब किसी से नाराज हो जाते हैं, जब किसी से गुस्सा हो जाते हैं तो उस व्यक्ति के प्रति हम अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं, अपना गुस्सा जाहिर करते है. ये नाराजगी हम कई तरह से जाहिर करते हैं. कुछ लोग किसी से नाराज हो जाने पर उस से बात करना छोड़ देते हैं. कुछ बात तो करते हैं लेकिन रूठे हुए स्वर में बात करते हैं. कुछ लोग अपनी नाराजगी उसी व्यक्ति के सामने उसे दो चार सुना कर अपने मन का बोझ हल्का कर लिया करते हैं. आधुनिक समाज में लोगों की एक दुसरे के साथ सहमती या असहमति तो होती ही है. लेकिन जो लोग धार्मिक कट्टरवाद से बीमार होते हैं, वें नाराज होने पर हमें हमेशा अपने आप को बचाने के लिए सोचना चाहिए.

जी हां. धार्मिक कट्टरवाद की बिमारी से जुझ रहे लोग यदि आप से नाराज हो जाए, गुस्सा हो जाएं या फिर आप की बात से असहमत हो जाए तो उस के नतीजे बड़े ही भयानक हो सकते है. पैरिस में कुछ दिनों पहले हुई एक घटना इस का सब से ताजा उदाहरण है की किसी भी धर्म के कट्टरपंथी पागलखाने में मानसिक रूप से बीमार लोगों से भी ज्यादा बीमार और इस समाज के लिए बड़ा खतरा है. धार्मिक कट्टरपंथी पृथ्वी में पाए जाने वाले जहरीले जीवों से भी ज्यादा जहरीले है. जहरीले जीव तो फिर भी पृथ्वी के इकोसिस्टम के लिए महत्वपूर्ण हैं, परन्तु कट्टरपंथी शरीर में पाए जाने वाले पैरासाइट की तरह होते है.

पैरिस में टीचर के साथ हुए हमले का पूरा मामला

दुनिया के नक्शे पर यूरोप कई देशों का समूह है. यूरोप में एक देश फ्रांस जिस की राजधानी पैरिस में बीते दिनों 16 अक्टूबर की दोपहर कुछ ऐसा हुआ जिस की चर्चा पुरे विश्व में हो रही है. 18 वर्षीय एक छात्र ने स्कूल के इतिहास के टीचर पर हमला किया और उन का गला रेत दिया.

और यह सब उस 18 वर्षीय छात्र ने केवल इसीलिए किया क्योंकि इतिहास के टीचर, सेमुअल पैटी अपनी क्लास में अभिव्यक्ति की आजादी (फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन) का उदाहरण देने के लिए पैगम्बर मुहम्मद से जुड़े एक कार्टून को दिखाया था. इस्लाम को मान ने वाला यह शख्स कथित तौर पर कार्टून के दिखाए जाने पर नाराज था.

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शुक्रवार 16 अक्टूबर की दोपहर 18 वर्षीय इस युवक ने कॉन्फ्लैंस सौं होनोरी नाम के एक स्कूल के पास सेमुअल पैटी (शिक्षक) पर हमला किया और इस वारदात को अंजाम दिया. स्थानीय लोगों ने पुलिस को सुचना दी. मौके पर पहुंची पुलिस ने युवक को चारो ओर से घेर लिया. युवक ने अपनी जेब से छिपाई हुई बंदूक निकाल कर धमकी देने लगा. अंत में पुलिस ने उसे गोली मारी जिस से उस की मौत हो गई.

कार्टून पर पहले भी हो चूका है कई बार विवाद

शार्ली हेब्दो द्वारा सन 2005 में डेनमार्क के एक अखबार में धार्मिक अंधविश्वासों और कट्टरपंथी विचार धारा पर चोट करते हुए, पैगम्बर मुहम्मद पर व्यंगात्मक एक कार्टून प्रकाशित किया गया था. इस के प्रकाशित होने के बाद ही इस कार्टून को ले कर दुनिया भर में भारी बवाल हुआ था. फिर इस के अगले ही साल 2006 में शार्ली एब्दो मैगजीन में इस कार्टून को छापा गया. बवाल फिर से मचा.

लेकिन सन 2015 में कुछ इस्लामी बंदूकधारियों ने फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो की संपादकीय टीम को एक हत्याकांड में मार गिराया. इस हमले में कुल 12 लोगों की जान गई. जिन में 5 कार्टूनिस्ट, 1 अर्थशास्त्री, 2 एडिटर, 1 रखरखाव करने वाला श्रमिक, 1 मेहमान और 2 पुलिसकर्मी थे. इन के अलावा 11 लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए. इस पुरे हमले के दौरान हमलावर धार्मिक नारे लगा रहे थे और साथ में कह रहे थे की “हमने पैगंबर का बदला ले लिया”.

ये सब घटित होने के बाद अभिव्यक्ति की आजादी में विश्वास रखने वाले लोग, छात्रों और अन्य स्वतंत्र लोगों ने मिल कर ‘मैं भी शार्ली’ का नारा बुलंद किया.

लोगों की सहनशीलता हो रही है खत्म

ये वाकया तो शार्ली हेब्दो के द्वारा बनाए गए कार्टून का था. परंतु हम अपने जीवन में ही ऐसे कई लोगों से मिलते हैं जो की आलोचना नहीं सहन कर पाते. अक्सर लोग उन चीजो को ले कर आलोचना नहीं सहन कर पाते जिन्हें वें अपने सब से करीब महसूस करते हैं. धार्मिक लोग अक्सर लोगों के सवालों से बचते हैं. क्योंकि उन्हें अपने धर्म के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान नहीं होता. सम्पूर्ण ज्ञान तो मस्जिद में बैठे किसी मौलवी को या फिर मंदिर में बैठे किसी पंडित को भी नहीं होता. वें बस आंखे मूंद कर उन चीजो पर भरोसा कर लेते हैं जो की उन्हें किसी अन्य के द्वारा धर्म के नाम पर सिखाई जाती हैं और समझाई जाती है.

मेरे स्कूल के दिनों में विज्ञान के हमारे अध्यापक, जिन के हाथ की सभी उँगलियों पर अंगूठी रहती थी और गले में रुद्राक्ष की एक मोटी सी माला, स्कूल में सामाजिक विज्ञानं के नए टीचर के साथ उन की बहस हो गई. बात सिर्फ इतनी सी थी की नए टीचर ने उन के हाथ में सभी उँगलियों पर अंगुठियां देख उन पर तंज कसते हुए पूछा की “ये अंगुठियां शौक से पहनते हैं या फिर किसी बाबा ने हिदायत दी है पहनने के लिए?”. इतनी सी बात पर हमारे विज्ञान के टीचर उन की इस बात से चिढ़ गए. दो चार करते करते बात इतनी आगे बढ़ गई की विज्ञान वाले सर ने नए टीचर पर हाथ उठा दिया.

यदि हम अपने समाज को आधुनिक कहते है तो आधुनिकता वैज्ञानिकता को बढ़ावा देता है न की अंध विश्वास, पोंगापन और कट्टरवाद को. इतिहास में एक समय पृथ्वी पर ऐसा भी था जब धर्म ही सब से श्रेष्ठ कानून था. चाहे वह विश्व का कोई भी देश क्यों न हो, समाज का पहिया धर्म के नाम पर ही चलता था. धीरे धीरे विज्ञान ने धर्म को रिप्लेस कर दिया और इसी लिए ही हम आज कल के समाज को आधुनिक कहते हैं, जहां हर एक चीज के पीछे विज्ञान काम करता है.

परंतु लोगों के दिमाग में रूढ़ीवादी समाज का हैंगओवर अभी तक नहीं उतरा है. चाहे वह कोई भी देश का कोई भी धर्म का धार्मिक कट्टरवादी क्यों न हो, उन के लिए वही पुराना समाज जो की धार्मिक कानूनों से चलता था वही बेहतर होता है. इसीलिए वें अपने धर्म के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने के लिए कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार हो जाते है. यही वजह है की वें किसी तरह की कोई बहस में नहीं पड़ना चाहते. न तो आलोचना स्वीकार करते हैं और न ही उन बातों में किसी तरह का कोई तर्क मिलता है. पैरिस में इतिहास के टीचर के साथ हुई यह घटना यही जाहिर करती है की लोग कितना असहनशील हो चुके हैं. वें तर्क का जवाब तर्क से न दे कर लोगों पर हमला करने पर उतारू है.

क्या धर्म इतना ही कमज़ोर है?

पैरिस में सेमुअल पैटी के साथ हुई घटना में देखने को मिला की किस तरह से आधुनिक और एडवांस देशों में भी धार्मिक अंध विश्वास और कट्टरवाद मौजूद रहता है. एक बार फिर से यदि हम पैरिस में हुई हत्या के बारे में पुनः परिक्षण करे तो हमें समझ आएगा की सेमुअल पैटी क्लास में छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी (फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन) का उदाहरण देने के लिए पैगम्बर मुहम्मद पर बनाया गया कार्टून ही तो दिखा रहे थे.

यदि इस में किसी भी व्यक्ति को कुछ भी आपत्ति थी तो उसे भी तो अपनी बात कहने का पूरा हक था. लेकिन हमलावर ने तर्क का सहारा न लेते हुए सेमुअल पैटी को जान से मार दिया. आखिर ऐसा क्या था की हमलावर को हिंसा करने पर उतरना पड़ा? क्या धर्म की आलोचना करने से धर्म का अस्तित्व मिट्टी में मिल जाता है? क्या लोगों का भगवान इतना कमजोर है की अपने खिलाफ होने वाली आलोचनाएं नहीं सहन कर सकता? अगर सच में लोगों का भगवान कमजोर है तो फिर लोग कमजोर भगवान को पूजते ही क्यों हैं भला?

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फ्रांस दुनिया का एक ऐसा देश हैं जहां की जनसंख्या में हर पांचवां व्यक्ति पूर्ण रूप से नास्तिक है. इस का अर्थ है की फ्रांस एक ऐसा देश हैं जहां लोग वैज्ञानिक तरीकों से चीजो को देखते और समझते हैं. वें गाहे बगाहे ऐसे ही किसी की कही सुनी बात पर भरोसा नहीं करते. इसीलिए वहां चीजो को समझने के लिए बहस का सहारा लिया जाता है. तर्क किये जाते हैं.

अब आते हैं महत्वपूर्ण सवालों पर. धर्म की आलोचना करने पर क्या धर्म का अस्तित्व खतरे में आ जाता है? जाहिर सी बात है की जब हम किसी के अन्दर कोई कमी देखते है तभी हम उन की आलोचना करते हैं. यदि धार्मिक कट्टरवादियों को अपने धर्म में पर इतना ही भरोसा है तो वें अपने तर्कों के साथ अपनी बात को सत्यापित क्यों नहीं करते? किसी भी सभ्य समाज की पहचान यही होती है की वें बात कर के अपनी परेशानियों को दूर करते है, वैज्ञानिक तथ्यों पर यकीन करते हैं और वैज्ञानिक मूल्यों को अपने जीवन में उतारते हैं. लेकिन धार्मिक कट्टरवादी दुनिया में प्रगति कर रहे आधुनिकता को खत्म करना चाहते हैं. वें समाज को बर्बर युग में वापिस ले जाना चाहते है.

इसका एक सब से बड़ा उदाहरण है की जब आप कभी किसी कट्टरवादी से बात करे तो वें हमेशा पुराने समय की वकालत करता दिखाई देगा. चाहे वह किसी भी धर्म से क्यों न हो, चाहे वो मौलवी हो, पंडित हो, पादरी हो या कोई भी हो. धार्मिक पोंगेपन पर, अंध विश्वास पर यदि आलोचना की जाए तो वें आलोचना करने वाले पर पहले गाली गलौच फिर शारीरिक रूप से हिंसा करने पर आमादा हो उठते हैं. ऐसा लगता है मानो यही लोग धर्म के सिक्यूरिटी गार्ड हैं जो हमेशा अपने धर्म की रखवाली करते रहते हैं. आखिर इन सिक्यूरिटी गार्ड की तैनाती कौन करता है भला?

दुनिया में मौजूद बहुसंख्यक धर्म समाज में ये क्लेम करता है की इस श्रृष्टि का निर्माण उन्होंने ही किया है. अगर हम एक पल के लिए इस बात को मान भी ले, तो एक सवाल तो फिर भी हमारे मन में बरकरार रहता है. की जब किसी ने इस सम्पूर्ण श्रृष्टि का निर्माण किया है, वह अपने बनाए हुए चीज की आलोचना से डर गया? क्या इन सभी धर्मों के भगवान इतने कमजोर हैं की वें अपने ऊपर किसी आलोचना को सहन नहीं कर सकते?

इन धार्मिक कट्टरपंथियों का एक ही इलाज है

धर्म को मानने वाला हर व्यक्ति कट्टरपंथी हो ऐसा जरुरी नहीं है. परंतु समस्या तब पैदा होती है जब व्यक्ति खुद को ही सब से समझदार मान ले और बाकी किसी की भी सुनने को राजी ही न हो. धार्मिक कट्टरवाद को समाज से तब तक नहीं उखाड़ा जा सकता जब तक समाज के हर व्यक्ति तक शिक्षा अनिवार्य न कर दी जाए.

लेकिन केवल शिक्षा अनिवार्य करने से ये समस्या खत्म हो जाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है. जरुरी ये है की हमारी शिक्षा व्यवस्था को वैज्ञानिक आधार पर सब के लिए मुहैय्या की जाए. ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति हो इस शिक्षण व्यवस्था में जो वैज्ञानिकी सोच रखते हो. जो प्रगतिशील हो. मेरे स्कूल में हमारे विज्ञान के टीचर की तरह नहीं जो बेशक से पेशे के लिए विज्ञान पढ़ाया करते थे लेकिन जिन्हें अपने खुद के जीवन में विज्ञान से कोई मतलब नहीं था.

हमारी सरकारों को ऐसे रोल मोडलों को समाज में स्थापित करने चाहिए जो तार्किक है, वैज्ञानिक हैं, अंध विश्वासों को तोड़ते है इत्यादि. लेकिन जब हम भारतीय परिपेक्ष में इन सब की बात करते हैं तब ये सब बहुत ही व्यर्थ लगने लगता है. क्योंकि यहां की तो सरकार ही अंध विश्वास फैलाने में माहिर है.

इसीलिए शुरुआत हमें खुद से करनी चाहिए. हम पढ़ी लिखी समझदार जमात (लोगों का समूह) के लोग एक कदम आगे बढ़ कर कम से कम अपने जीवन में फैले अंधविश्वासों को रोक लगा सकते है. पैरिस में कट्टरपंथियों द्वारा सेमुअल पैटी की मृत्यु की व्याख्या मानवता के इतिहास में सब से घिनौने कृत्य में रूप में की जानी चाहिए. और समाज में ऐसा कभी न हो इसीलिए हमें आज से कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए.

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