जिद और जनून ने दिलाया मुकाम: रेणु भाटिया

‘‘मैं ने दिल्ली प्रैस के लिए मौडलिंग की है…’’ जब हरियाणा महिला आयोग की नई अध्यक्षा बनी रेणु भाटिया ने इतना कहा तो मैं खुश हो उठा. कुछकुछ वैसा ही सुकून भी मिला जैसा रेणु भाटिया को अपने गृहराज्य कश्मीर के बारे में सोच और सुन कर मिलता होगा. पर 10वीं क्लास करते हुए ही हरियाणा के फरीदाबाद में ब्याही गई रेणु भाटिया का अब तक का सफर आसान भी नहीं रहा है क्योंकि उन्होंने अपने बचपन में ही मातापिता को खो दिया था.

फिल्म ‘वक्त’ और वह  हादसा

बात तब की है जब हिंदी की सुपरहिट फिल्म ‘वक्त’ ने खूबसूरत कश्मीर के सिनेमाघरों पर पहले दिन दस्तक दी थी. उस फिल्म में सुनील दत्त ने एक बड़ी गाड़ी चलाई थी, जो रेणु भाटिया के पिता की थी. पूरा परिवार इस बात से खुश था और सिनेमाघर में जा कर अपनी उस कार को बड़ी स्क्रीन पर देखना चाहता था.

ऐसा हुआ भी और जब परिवार फिल्म देख कर घर लौटा तो फिल्म ‘वक्त’ का एक खास सीन असलियत में इस परिवार पर कहर बरपा गया. जैसे फिल्म में जलजला आने पर बलराज साहनी का हंसताखेलता परिवार बिखर जाता है, कुछ वैसा ही रेणु भाटिया के घर पर भी हुआ. घर की छत गिरी और उन के मातापिता उस टूटे आशियाने में घायल हो कर हमेशा के लिए खामोश हो गए.

उस समय रेणु भटिया तीसरी क्लास में पढ़ती थीं. इस हादसे के बाद उन का लालनपालन ताऊजी ने किया और 10वीं क्लास का इम्तिहान देतेदेते उन की शादी फरीदाबाद के ओमप्रकाश भाटिया से हो गई. पर रेणु भाटिया की सोच थी कि किसी महिला का शादी कर लेना और फिर बच्चे पैदा करना ही मकसद नहीं होना चाहिए. वे अपना एक अलग मुकाम बनाना चाहती थीं, जिस में उन के पति और सास ने भरपूर सहयोग दिया खासकर उन की सास शांति देवी ने.

दिल्ली प्रैस, दूरदर्शन और मौडलिंग

रेणु भाटिया ने बताया, ‘‘एक पत्रकार के जरीए मुझे दिल्ली प्रैस के बारे में पता चला और वहां बतौर मौडल मेरे कुछ फोटो खींचे गए, जिन्हें दिल्ली प्रैस की पत्रिकाओं में इस्तेमाल किया गया. सच कहूं तो उस से पहले मुझे पता ही नहीं था कि मौडलिंग किस बला का नाम है.

‘‘इस के बाद मैं ने शौकिया मौडलिंग शुरू कर दी, पर इसे कैरियर नहीं बनाया. हां, मैं बचपन में जब दूरदर्शन देखती थी, तो न्यूज रीडर सलमा सुलतान की बहुत बड़ी फैन थी. मैं भी उन की तरह न्यूज रीडर बनना चाहती थी. पर ऐसा करने के लिए ग्रैजुएट होना जरूरी था. जब घर पर इस बारे में चर्चा की तो मेरे पति ने कहा कि दिक्कत क्या है, तुम आगे पढ़ाई करो.

‘‘फिर तो मुझ में जोश जाग गया और आगे की पढ़ाई मेरठ से पूरी की. इस के बाद मैं दूरदर्शन गई जहां सलमा सुलतानजी के अलावा कुछ और लोगों ने मेरा इंटरव्यू लिया, पर मैं रिजैक्ट हो गई, क्योंकि टैलीविजन के लिहाज से मैं खूबसूरत नहीं थी. पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा 6 महीने बाद इंटरव्यू दिया और सलैक्ट हो गई. उस समय कोई और चैनल नहीं था, तो मैं मशहूर भी हो गई थी. तब मैं ने हरियाणा सरकार के लिए 30-40 डौक्यूमैंटरी फिल्में भी बनाई थीं.’’

राजनीति और बेनजीर भुट्टो

1994 में भारतीय जनता पार्टी ने रेणु भाटिया से संपर्क किया और नए बन रहे फरीदाबाद नगर निगम का चुनाव लड़ने का औफर दिया.

इस सिलसिले में रेणु भाटिया ने बताया, ‘‘चूंकि मैं उस समय मीडिया जगत में काफी मशहूर हो गई थी, तो मुझे लगा कि वह साड़ी बांधना, चूड़ी पहनना, बिंदी लगाना मेरे बस की बात नहीं है, तो मैं ने उस समय चुनाव नहीं लड़ा.

‘‘मगर जब 2000 में दोबारा चुनाव आया, तो मैं ने चुनाव लड़ने का मन बनाया और सब से ज्यादा वोटों से जीती. फिर 2005 में केवल एक महिला मेरे खिलाफ खड़ी हुई थीं, जिन की जमानत जब्त हुई थी. मैं फरीदाबाद की डिप्टी मेयर भी बनी थी.’’

रेणु भाटिया ने ‘भारतीय बेनजीर भुट्टो’ होने का गौरव भी हासिल किया है. इस रोचक किस्से के बारे में उन्होंने बताया, ‘‘यह वह समय था जब दूरदर्शन पर ‘तमस’ आया था और उसे ले कर कुछ राजनीतिक कंट्रोवर्सी भी हो गई थी. उसी समय किसी प्रोड्यूसर ने मेरे साथ एक फिल्म बनानी शुरू की थी, जिस में राजीव गांधी और बेनजीर भुट्टो का पुराना रिश्ता दिखाया जाना था. वे शायद कुछ ऐसा जाहिर करना चाहते थे कि अगर उन दोनों का रिश्ता हो जाता तो भारत के हालात कुछ और होते.

‘‘पर वह प्रोजैक्ट पूरा नहीं हुआ और इस बाद को शायद 2 दशक बीत गए. फिर अचानक मुझे एक दिन ‘अमर उजाला’ से फोन आया और कहा कि वे लोग अभी मुझ से मिलना चाहते हैं. उस समय मुझे बुखार था और मैं ने उन्हें अगले दिन आने को कहा. पर वे बोले कि आप पहले टीवी देखिए. मैं ने टीवी खोला तो खबरों में बेनजीर भुट्टो की हत्या का मामला दिखाया जा रहा था. तब अमर उजाला वालों ने कहा कि पाकिस्तान की बेनजीर की हत्या हुई है, हिंदुस्तान में एक बेनजीर अब भी है.

‘‘फिर वे बोले लोग कि हम आप के घर आ रहे हैं, आप सफेद सूट में बेनजीर के लुक में तैयार रहिए. हम आप का फोटो लेना चाहते हैं. अगले दिन अमर उजाला के कवर पेज की हैडलाइन थी कि एक बेनजीर हिंदुस्तान में भी है.

‘‘3-4 दिन के बाद स्टार न्यूज वालों ने मुझे ले कर बेनजीर भुट्टो पर 40 मिनट की फिल्म बनाने की पेशकश की और उस की शूटिंग भी वे पाकिस्तान के लाहौर में करना चाहते थे, पर कागजी कार्यवाही में किसी ने हमें चेताया कि असली बेनजीर मार दी गईं, नकली भी मार देंगे, तो हम ने अरावली की पहाडि़यों के आसपास ही सारी शूटिंग पूरी की.’’

महिला आयोग और बड़ी जिम्मेदारी

अब जब रेणु भाटिया हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्षा बनी हैं और उन्हें नई जिम्मेदारी दी गई है, तो उन से उम्मीदें भी काफी बढ़ गई हैं.

जब देश में महिला पुलिस थाने हैं, तो महिला आयोग जैसी संस्था की जरूरत ही क्या है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि जब हम सब लोग अपने फर्ज को समझेंगे तो हक हमें अपनेआप मिलेंगे. सच कहूं तो मैं निजी तौर पर महिला आरक्षण के खिलाफ हूं क्योंकि जो महिला खुद में सक्षम है उसे आरक्षण की कोई जरूरत नहीं है. महिला आयोग की जरूरत यहीं पर खास हो जाती है क्योंकि वह महिलाओं को और मजबूत बनाने की दिशा में काम करता है.

‘‘अमूमन आम लोगों के दिमाग में थाने का एक हौआ बना हुआ है कि वहां तो ‘एसएचओ साहब’ मिलेंगे जिस की कोई समस्या होती है, वह पहले से डरा होता है. लेकिन अगर आप को कानून की थोड़ीबहुत जानकारी है, आप बेखौफ हैं तो मुझे लगता है कि आप अपनी बात आसानी से कह सकते हैं.

‘‘महिला आयोग महिलाओं को मजबूत बनाने की प्रेरणा देता है और चूंकि महिला आयोग में महिला ही आप की फरियाद सुनती है तो थाने में किसी मर्द के सामने अपनी बात कहने से ज्यादा महिला आयोग को बताना आसान होता है.

‘‘वैसे महिला थाने भी इसी बात को ध्यान में रख कर खोले गए हैं, जहां पीडि़ताएं अपनी बात रखती भी हैं. महिला आयोग इन से सुप्रीम होता है जहां फैसले भी कराए जाते हैं और वह थानों पर निगरानी रखने का काम भी करता है.

‘‘जब आप किसी पीडि़ता को इंसाफ दिलवाते हैं, तो बहुत संतुष्टि मिलती है. हम ने दूसरे राज्यों से जबरदस्ती लाई गई महिलाओं को छुड़ा कर उन्हें वापस घर भेजा तो बड़ा सुकून मिला. एनआरआई बेटियों को इंसाफ दिलाने में बड़ी राहत मिलती है क्योंकि उन के केस बड़े पेचीदा होते हैं.

‘‘यहां मैं एक और बात कहूंगी कि महिलाओं को अपनी बात दमदार तरीके से रखनी चाहिए, फिर चाहे वे कोई भी भाषा बोलती हों. मेरा मानना है कि भले ही आप किसी वंचित परिवार से हैं और हिंदी मीडियम से पढ़ी हैं तो भी अपने को कमतर न समझें.

‘‘हाल ही में मैं ने पंजाब यूनिवर्सिटी में कानून का एक सैशन अटैंड किया था, जिस में पंजाब की एक महिला वकील ने अपनी दलील पंजाबी और हिंदी भाषा में पेश की थी और सब से बेहतर तरीके से पेश की थी.

‘‘याद रखिए किसी महिला की तरक्की में सब से बड़ी बाधा उस की खुद की कमजोरी होती है. उसे अपने पर आए कष्टों को लांघना सीखना होगा. महिला आयोग इसी बात की सीख महिलाओं को देता है. हम स्कूलकालेज में वर्कशौप चलाते हैं, लड़कियों को साइबर क्राइम के प्रति जागरूक करते हैं.

‘‘आखिर में एक बात जरूर कहूंगी कि मैं अपने युवा समय में एथलीट रही हूं तो लड़कियों और महिलाओं से भी यही उम्मीद करना चाहूंगी कि वे किसी खिलाड़ी की तरह कसरत और खेल को अपने जीवन में थोड़ी जगह जरूर दें क्योंकि ये दोनों हमें जिंदगी की दूसरी जिम्मेदारियों से तालमेल करना सिखाते हैं.’’

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