आज कॉम्पिटिशन बहुत है – रेनू ददलानी

क्लासिक और ट्रेडिशनल डिजाईन को सालों से अपने पोशाको में शामिल करने वाली डिज़ाइनर रेनू ददलानी दिल्ली की है. उन्होंने हमेशा कुछ अलग और चुनौतीपूर्ण डिजाईन को बनाने की कोशिश की है, जिसमें साथ दिया उनके परिवार वालों ने. उनके हिसाब से पारंपरिक एथनिक ड्रेस कभी पुराने नहीं होते, इसे एक जेनरेशन से दूसरा जेनरेशन आराम से पहन सकता है. डिज़ाइनर रेनू ददलानी के नाम से प्रसिद्ध उनकी ब्रांड हर जगह पौपुलर है. कोरोना संक्रमण में डिज़ाइनर्स समस्या ग्रस्त है, लेकिन रेनू के पोशाक किसी भी खास अवसर पर पहनने लायक और विश्वसनीय होने की वजह से उनके व्यवसाय पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है. उनकी खासियत चिकनकारी, पारसी गारा और कश्मीरी कढ़ाई जैसे जमवार, तिला अदि है, जिसमें साड़ी, लहंगा, कुर्ती आदि हर तरह के पोशाक मिलते है. पिछले 20 सालों से वह इस क्षेत्र में है. रेनू से उनकी लम्बी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-आपको इस फील्ड में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मुझे हमेशा से डिज़ाइनर आबू जानी के कपडे पसंद थे. पहले मैं गारमेंट की फील्ड में नहीं थी, लेकिन जब मैंने निर्णय लिया, तो हैण्डक्राफ्ट लक्जरी में ही काम करने को सोची. गाँव के कारीगरों को लेकर काम करना शुरू किया और उनके काम को फैशन में शालीनता का रूप दिया. इसके लिए मैंने कोई कौम्प्रमाइज नहीं किया. मैंने क्राफ्ट के बारें में पूरी अध्ययन कर फिर काम करना शुरू किया था. जैसे चिकनकारी के स्टिचेस कई तरीके के होते है, जिसे आम इंसान नहीं समझ पाता. इसे मैंने स्टडी से जाना और पहचाना. मेरी कामयाबी के पीछे मेरे कारीगर है, जिन्हें मेरी सोच को कपडे पर बखूबी उतारना आता है. 

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सवाल- कारीगरों का सहयोग आपके साथ कैसा रहता है? 

उनका सहयोग सालों से रहा है. कारीगर केवल काम ही नहीं करते थे, बल्कि वे इस कला को जीते है. लखनऊ, श्रीनगर, कोलकाता आदि जगहों पर सूदूर गांव में रहकर भी वे अपने काम को लेकर बहुत ही जोशीले होते है, क्योंकि उससे ही उनकी रोजी रोटी भी चलती है. मेरी ब्रांड ने इन्हें उनकी कारीगरी की पहचान करवाकर, उन्हें एक अलग अच्छी जिंदगी दी है. साथ ही इस हैण्डक्राफ्ट को विश्व में भी फ़ैलाने के बारें में सोचा है, क्योंकि विश्वसनीय चिकनकारी, जामवार, पारसी गारा के कपडे मिलना आज बहुत मुश्किल है. 

सवाल- आपने दो दशकों से काम किया है, फैशन वर्ल्ड में कितने बदलाव आये है? 

अभी लोग हैण्ड क्राफ्ट के बारें में अधिक जागरूक हो चुके है. लोग कम खरीदते है. पर ऐसी चीजे खरीदते है, जिसका फैशन कभी न जाएँ. मेरे सभी पोशाक लेगेसी के रूप में है, जो एक जेनरेशन से दूसरे जेनरेशन को दिया जा सकता है. इसका मूल्य दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता है. 

सवाल- इस बार फैशन में कौन से रंग है?

उत्सव में मिंट ग्रीन, वेडिंग में पेस्टल और अर्दी कलर्स. ब्राइडल पोशाक में गरारा, शरारा और लहंगा. 

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सवाल- आपने एक लम्बी जर्नी तय की है, कितना मुश्किल था, क्या-क्या समस्याएं आई?

शुरू-शुरू में बहुत मुश्किल था, क्योंकि मैं कढ़ाई के बारें में पूरी जानकारी रखना चाहती थी. इसके लिए मैंने बहुत ट्रेवल किया, कारीगरों से मिली. सभी कारीगर रिमोट गाँव में रहते है. मैंने इसके बारें में पढ़ी. कपडे बनाने की ये प्रक्रिया आसान नहीं. डाईंग, प्रींटिंग, सैंपलिंग, कढ़ाई करना आदि बहुत सारे काम होते है. अंतिम एक प्रौडक्ट बनने में 6 महीने से दो साल तक लगते है. इसके लिए सही देख-रेख बहुत जरुरी होता है, ताकि जो डिजाईन मैने सोचा है, वह 6 महीने बाद वैसा ही बनकर आयेगा, इसकी गारंटी नहीं होती. मैं खुशनसीब हूँ कि मेरे कारीगर हमेशा अपना सबसे अच्छा काम कर देते है, जो हमें चाहिए. 20 साल से वे सभी कारीगर आजतक जुड़े है और वे जानते है कि मुझे क्या चाहिए, इसलिए अधिक समस्या नहीं होती. हर बार अलग डिजाईन देना बहुत कठिन होता है, पर मैं देती हूँ. यही वजह है कि मेरे ग्राहक मुझसे हमेशा जुड़े रहते है. हर बार हम नया और बेहतर चीज उन्हें दिया जाता है. क्वालिटी और काम में किसी भी प्रकार की कमी मैं नहीं करती. आज कॉम्पिटिशन बहुत है, इसलिए अच्छा काम देना जरुरी है. 

सवाल- आपने अपने काम की शुरुआत कितने बजट से किया?

मैंने सूती चिकनकारी सूट से, जिसके लिए 50 हज़ार रूपये लगे थे, काम शुरू किया था. अभी 100 कारीगर मेरे साथ है और ये सभी एक परिवार की तरह मेरे साथ जुड़े हुए है. इसके अलावा मेरे साथ टीम में कई लोग बहुत एक्टिव है, जिसकी वजह से मुझे अधिक ट्रेवल नहीं करना पड़ता और काम हो जाता है. 

सवाल- फैशन को लक्जरी में माना जाता है और अभी कोरोना संक्रमण की वजह से डिज़ाइनर्स के आगे एक बड़ी चुनौती है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

कोविड 19 सबके लिए चुनौती है, लेकिन मेरे पोशाक के लिए ये समय सकारात्मक है, क्योंकि पहले लोग बाज़ार जाकर सामान खरीदते है, अब वे ऑनलाइन शौपिंग कर रहे है. ऑनलाइन स्टडी कर उन्हें पता चलता है कि हैण्ड क्राफ्ट का फैशन कभी नहीं जायेगा. आजकल लोग कम, थॉटफुल शौपिंग और वैल्यू फॉर मनी को अधिक देखते है. सस्टेनेबिलिटी जो आज कही जाती है, उसे मैंने आज से 20 साल पहले से ही ध्यान दिया था और ग्राहकों में जागरूकता फैलाई थी. 

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सवाल- फैशन को अपडेट कैसे करती है?

मैं साल में 2 से 3 बार अपडेट करती हूँ. इसमें डिजाईन, फैब्रिक्स, कलर्स, मोटिफ्स आदि के साथ बदलाव करते है. कढ़ाई तो बदला नहीं जा सकता, इन सब चीजो का बदलाव कर उनमें नया लुक लाते है. इसमें कारीगरों का ख़ास हाथ होता है, क्योंकि वे मेरी डिजाईन को उसी रूप में कपड़ो पर उकेरते है. 

सवाल- आपकी ब्रांड महिला सशक्तिकरण पर कितना काम करती है?

सारा काम वुमन इम्पावरमेंट पर ही होता है. 90 प्रतिशत सशक्त कारीगर महिलाएं ही है. चिकनकारी में सारी महिलाएं है. कोविड 19 के समय में मेरा काम चलता रहा. उनको घर से काम करने की सहूलियत दी है. उनको पूरे पैसे दिए जाते है.  ये कारीगर लखनऊ, श्रीनगर और कोलकाता के रिमोट गाँवों में रहते है. 

सवाल- आगे की योजनायें क्या है?

मेरी योजना है कि मैं अपनी ब्रांड को और अधिक लोगों तक पहुँचाऊ और लोगों को हैण्डक्राफ्ट के बारें में जागरूकता फैलाऊ, ताकि ये कला अदृश्य न हो जाय. 

सवाल- आपके काम में परिवार का सहयोग कितना रहा?

इस बारें में मैं बहुत लकी हूँ. परिवार के सहयोग के बिना कोई महिला काम नहीं कर सकती. मेरे पति ने, जब बच्चे छोटे थे, तब से लेकर आजतक सहयोग कर रहे है. उनके खुद का व्यवसाय होने के बावजूद वे सुबह से शाम तक मेरे सवाल-र्शनी में रहते थे. वित्तीय से लेकर, मानसिक, हर समय उन्होंने मेरा साथ दिया है. बच्चों ने भी मुझे बहुत सहयोग दिया है. वे अलग क्षेत्र में है, पर मेरी दो बहुएं है, वे मेरे व्यवसाय को आगे सम्हाल लेगी. 

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सवाल- क्या महिलाओं के लिए कोई सन्देश देना चाहती है?

सभी कामकाजी महिलाएं, जो इस समय घर और ऑफिस दोनों को सम्हाल रही है. उनके लिए ये समय कठिन अवश्य है, लेकिन महिलाओं को आत्मनिर्भर होना बहुत जरुरी है, जिससे उनका आत्मसम्मान बनी रहे. 

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