Republic Day 2024: सारा खान से लेकर मोनिका सिंह तक, इस बार ऐसे मनाएंगे गणतंत्र दिवस

इस वर्ष 2024 में भारत का 75वां गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है, जो अपने आप में एक बड़ी बात है. इसी दिन वर्ष 1950 को भारत सरकार अधिनियम (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था. इस दिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है. हर साल की तरह इस साल भी हिंदी मनोरंजन की दुनिया के सेलेब्स इस दिन को अच्छी तरह से मना रहे हैं, क्या कहते हैं, जानें

किरण खोजे

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फिल्म हिंदी मीडियम फेम अभिनेत्री किरण खोजे कहती हैं कि मैं भारत की नागरिक होने पर गर्व महसूस करती हूं. यह एक ऐसा देश है, जहां हर प्रकार की संस्कृति है, जिसमे कई प्रकार के उत्सव, डांस, संगीत का आनंद लिया जा सकता है. इस देश की भौगोलिक स्थिति ऐसी है, जहाँ हर तरह की प्राकृतिक सुन्दरता देखने को मिलती है. ये देश बहुत अनोखा है, यहां हर प्रकार के फ़ूड खाने को मिलते है, जो और कहीं मिल नहीं सकता. हर 10 से 15 किलोमीट पर फ़ूड और पहनावे में यहाँ एक नया एक्सपीरियंस होता है. यहां की इतनी सारी अलग भाषाएँ सुनना मुझे बहुत पसंद होता है, लेकिन एक चीज जो मुझे यहां की पसंद नहीं होती, वह है भ्रष्टाचार, जो एक यूनिवर्सल इशू है, इसे अगर ठीक किया जा सकता है, तो इस देश से अच्छी और सुकून भरी जिंदगी कही नहीं मिल सकती.

सचिन पारिख

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अभिनेता सचिन पारिख कहते है कि इस दिन केवल मैं ही नहीं मेरा पूरा परिवार कही बाहर घूमने जाना पसंद करते है. मुझे ख़ुशी इस बात से होती है कि इस देश की प्राकृतिक सुन्दरता बहुत अधिक है, क्योंकि यहाँ हर प्रकार के लैंडस्केप मिलते है. पहाड़ और वर्फ से लेकर मरुस्थल हर स्थान पर एक अलग दृश्य देखने को मिलता है. इस बार गणतंत्र दिवस डायमंड जुबली मनाने जा रहे है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैं देश का नागरिक हूँ. हालांकि देश ने काफी प्रगति की है, लेकिन आगे और अधिक होने की उम्मीद कर रहा हूँ.

मोनिका सिंह

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एक्ट्रेस मोनिका सिंह कहती है कि मुझे देश की इतने सारे पर्व, फ़ूड और पहनावे की वैरायटी बहुत पसंद है. यहाँ हर जगह के खाने में एक अलग तरह का प्यार झलकता है, जो वहां के लोगों के रहन – सहन को बताती है, लेकिन यहां कचरे का अच्छी तरह से मैनेजमेंट अभी भी नहीं हो पाया है, जिसे करने पर देश अधिक अच्छा बन सकेगा.

गुरप्रीत सिंह

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टीवी शो चांद जलने लगा में अभिनय कर रहे अभिनेता गुरप्रीत सिंह कहते है कि इतनी सारी संस्कृति के साथ इस देश में रहते हुए मैं बहुत प्राउड फील करता हूँ. खुद के भावनाओं की अभिव्यक्त करने की आजादी के इस पर्व को मैं सेलिब्रेट करना हर साल पसंद करता हूँ, लेकिन अभी भी हमारे देश में कुछ खामियां है, जिसे ठीक करना बहुत जरुरी है, जिसमे यूथ के लिए अधिक जॉब क्रिएट करना, सभी रास्तों को दुरुस्त बनाना आदि कई चीजे है, जिसे ठीक करने पर देश की जनता अच्छी रह सकती है. इसके अलावा भ्रष्टाचार को ख़त्म करना और लीगल सिस्टम में तेजी लाने से ही सकारात्मक बदलाव देश में अधिक दिख सकेगा.

यशाश्री मासुरकर

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खूबसूरत अदाकारा यशाश्री मासुरकर कहती है कि देश का इतिहास और संस्कृति मुझे एक प्राउड इंडियन फील कराती है. हमारे देश के लोग किसी का आदर सत्कार करना बहुत अच्छी तरह से जानते है, लेकिन एक बात जो मुझे यहाँ की पसंद नहीं वह है, अनुसाशन. हालाँकि अभी हमारे देश में उचित संसाधनों की कमी है, लेकिन अगर लोग डिसिप्लिन में रहे, तो हमारी लाइफ अधिक बेहतर हो सकती है.

सारा खान

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अभिनेत्री सारा कहती है कि मैं ऐसे देश में रहती हूँ जहाँ की संस्कृति और परंपरा बहुत अच्छी है. यहाँ की सुरक्षा और बचाव की प्रक्रियां पहले से काफी सुधर चुकी है. इसके आगे मेरा कहना है कि देश के हर नागरिक के माइंड सेट को बदलने की आवश्यकता है, जिसमे देश की उन्नति, सबके प्रति सम्मान और समान भाव बनाये रखने की भावना होनी चाहिए.

26 January Special: परंपराएं- क्या सही थी शशि की सोच

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26 January Special: परंपराएं- भाग 2- क्या सही थी शशि की सोच

मेरे मुंह से निकल गया था, ‘‘जूली, मुझे तो खेद इस बात का रहता है कि मेरी बेटी की अभी तक शादी नहीं हुई है. मैं तो उस दिन की बेसब्री से प्रतीक्षा करती हूं जब वह अपने बच्चों को मेरे पास छोड़ कर जाने की स्थिति में हो.’’

‘‘शायद यह संस्कृतियों का अंतर है,’’ जूली ने कहा, ‘‘मैं मानती हूं कि नई पीढ़ी को आगे बढ़ते देखने से बड़ा सुख तो कोई दूसरा नहीं परंतु मार्क और फियोना को भी तो हमारी सुविधा का ध्यान रखना चाहिए. हमेशा यह मान लेना कि हमें किसी भी तरह की कोई कठिनाई नहीं होगी, यह भी तो ठीक नहीं.’’

जूली के उत्तर पर मुझे काफी आश्चर्य हुआ, क्योंकि मैं जानती थी कि यदि उसे सचमुच किसी बात की चिंता है तो यह कि किस तरह सिमोन का भी घर दोबारा बस जाए. वह उसे किसी न किसी तरह ऐसे स्थानों पर भेजती रहती थी जहां उस की मुलाकात किसी अच्छे युवक से हो जाए. वह स्वयं हर मुलाकात में न केवल पूरी रुचि लेती थी बल्कि उस के बारे में मुझे भी आ कर बताती थी.

एक दिन जब जूली काम पर आई तो उसे देखते ही मैं समझ गई कि कुछ गड़बड़ है. पहले तो वह टालमटोल करती रही किंतु अंत में उस ने बताया, ‘‘सिमोन की बात फिर एक बार टूट गई. लगभग 3 सप्ताह पहले सिमोन के बौयफ्रैंड ने उसे एक रौक म्यूजिक कंसर्ट में उस के साथ चलने को कहा था. उसी दिन सिमोन की एक पक्की सहेली का जन्मदिन भी था. वैसे भी सिमोन को रौक म्यूजिक ज्यादा पसंद नहीं. जब सिमोन ने अपनी मजबूरी बताई तो बौयफ्रैंड ने कुछ नहीं कहा. वह अकेला ही चला गया. उस के बाद उस की ओर से कुछ सुनाई नहीं दिया. न फोन, न मैसेज. सिमोन ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की. परंतु कोई उत्तर नहीं.

‘‘गत रविवार को वह हिम्मत कर के उस स्थान पर गई जहां उस का बौयफ्रैंड अकसर शाम बिताता है. वहां उस ने उसे एक लड़की के साथ देखा. सिमोन को गुस्सा तो बहुत आया परंतु कोई हंगामा खड़ा न करने के विचार से वहां से चुपचाप चली आई. शायद बौयफ्रैंड ने उसे देख लिया था. कुछ समय बाद सिमोन के मोबाइल पर संदेश छोड़ दिया, ‘सौरी’.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कोई स्पष्टीकरण?’’

‘‘नहीं. केवल यह कि वह लड़की उस की रुचियों को ज्यादा अच्छी तरह समझती है. शशि, मुझे तब से लगातार ऐसा महसूस हो रहा है कि सिमोन नहीं, मैं अपने लिए जीवनसाथी ढूंढ़ने में असफल हो गई हूं.’’

मेरे अपने परिवार में भी अपनी पुत्री शिवानी के लिए वर ढूंढ़ने की प्रक्रिया जोरशोर से चल रही थी. मैं भी जूली को हर छोटीबड़ी घटना की जानकारी देती रहती थी. किस तरह हम विज्ञापनों में से कुछ नाम चुनते, उन के परिवारों से संपर्क करते और आशा करते कि इस बार बात बन जाए. किस तरह ऐसे परिवारों में से कुछ से 4-5 की टोली हमारे घर आती.

कुछ परिवार लड़कालड़की को सीधा संपर्क करने की सलाह देते. मैं सोचती कि चाहे संपर्क सीधा करें या परिवार के साथ आएं, बात तो आगे बढ़ाएं.

आशानिराशा के हिंडोले में महीनों तक झूलने के बाद, जब आखिरकार शिवानी की स्वीकृति से एक परिवार में उस का संबंध होना निश्चित हो गया तो मेरी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. मैं ने जूली को भी यह शुभ समाचार सुनाया. वह प्रसन्न हो कर बोली, ‘‘बधाई. मैं शिवानी के विवाह में अवश्य सम्मिलित होऊंगी. और याद रहे, मैं तुम्हारी परंपराओं से बहुत प्रभावित हूं. उन के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहती हूं. इसलिए तुम मुझे विवाह के सभी छोटेबड़े कार्यक्रमों के लिए निमंत्रित करती रहना.’’

विवाह के कार्यक्रमों की शृंखला में एक था भात. उस दिन मेरे भाई और भाभी सपरिवार भात ले कर आए थे. मेरी सूचना के आधार पर जूली सुबह से ही हमारे घर आ गई थी. मेरे हर काम में वह साथ रही. वह सबकुछ देखनासमझना चाहती थी. जब भातइयों की टोली को हमारे घर के दरवाजे पर रोक दिया गया तो जूली आश्चर्यचकित उत्सुकता के साथ मुझ से आ सटी थी. उस ने देखा कि किस प्रकार भातइयों को एक पटरे पर खड़ा कर के बारीबारी से उन की आरती उतारी गई और किस प्रकार भात की सामग्री भेंट की गई. उस में वस्त्र, आभूषण और मिठाइयां व अन्य उपहार सम्मिलित थे. अवसर मिलने पर मैं ने जूली को बताया, ‘‘इसी प्रकार बेटी के पिता के भाईबहनों की ओर से भी उपहार आएंगे. ये परंपराएं सभी को साथ ले कर चलने की भावना से विकसित हुई हैं. वृहत परिवार की प्रतिभागिता का एक परिष्कृत रूप तो है ही, साथ में विवाह पर होने वाले खर्चों को बांटने का अनूठा तरीका भी है. दादादादी, नानानानी, चाचाचाची, मामामामी, फूफाफूफी सभी खर्च के बोझ को बांटने के काम में उत्साह के साथ भाग लेते हैं,’’ मेरे इस स्पष्टीकरण से जूली बहुत प्रभावित हुई थी.

शिवानी को चुन्नी चढ़ाने की रस्म के लिए उस के ससुराल से लगभग 30 लोग आए थे. हमारी ओर से भी इतने ही सदस्य रहे होंगे, जिन में से एक जूली थी. हमारा घर विशेष रूप से बड़ा नहीं है. इतने लोग किस तरह उस में समा गए वह जूली के लिए एक अलग ही अनुभव था. परंतु उस से भी अधिक उस के मन को प्रफुल्लित कर डाला था चुन्नी के झीने कपड़े के पीछे छिपे नए परिवार के संरक्षण के भाव ने.

शिवानी के विवाह के कुछ समय बाद जूली ने मुझे सूचना दी कि उस के विवाह की 40वीं वर्षगांठ आने वाली है जिस पर वह एक आयोजन करेगी, ‘‘अभी से डायरी में लिख कर रख लो, 20 अगस्त. तुम्हें अपने पति के साथ आना होगा. स्थान है बुश म्यूज होटल.’’

बुश म्यूज होटल को कौन नहीं जानता. 150 साल पुराना है वह होटल. कहते हैं कि एक समय बड़ी संख्या में घोड़ागाडि़यां खड़ी करने की व्यवस्था उस से ज्यादा किसी अन्य होटल में नहीं थी. समय के साथ हुए परिवर्तनों के कारण अब ग्राहक घोड़ागाडि़यों के बदले कारों में आते थे. जूली ने मुझे बताया कि उस के लिए होटल के मैनेजर ने वही कमरा नंबर101 बुक कर दिया था, जिस में उस ने 40 वर्ष पूर्व अपनी सुहागरात मनाई थी.

यद्यपि वह होटल आबादी वाले क्षेत्र में नहीं था, मैं उस के सामने से अनगिनत बार गुजर चुकी थी. भीतर जाने का वह पहला अवसर था. वह एक भव्य होटल है, इस का आभास इमारत में जाने वाली सड़क पर जाते ही हो गया. होटल का मुख्यद्वार मुख्य सड़क पर नहीं, होटल के पिछवाड़े था. उस तक जाने के लिए एक लंबी, पतली सड़क बनी थी, जो दोनों ओर फूलों की क्यारियों में ढक गई लगती थी. उन क्यारियों के पार मखमली घास के मैदान थे जो टेम्स नदी के तट तक फैले हुए थे. अभी मैं और मेरे पति मानवनिर्मित उस प्राकृतिक सौंदर्य के प्रबल प्रभाव को अपने चारों ओर अनुभव कर ही रहे थे कि जा पहुंचे मुख्यद्वार के सामने. वह एक होटल का नहीं, किसी प्राचीन ग्रीक मंदिर का द्वार लगा.

26 January Special: परंपराएं- भाग 3- क्या सही थी शशि की सोच

प्रवेश करने पर स्वागत करने वालों की छोटी सी टोली दिखाई दी, जो अपनेआप में महत्त्वपूर्ण नहीं थी, परंतु जो वहां हुआ वह बड़ा नाटकीय था. स्वागतियों का सरदार एक लंबा, तगड़ा पहरेदार लगता था. उस ने लाल रंग की सुगठित वरदी पहनी हुई थी और वह प्रत्येक मेहमान के आगमन की घोषणा कर रहा था. अभी मैं इस दृश्य को अपनी आंखों में भर ही रही थी कि घोषणा सुनाई दी, ‘सावधान, सर्वमान्य श्रीमती और श्री मजूमदार पधार रहे हैं.’ उस घोेषणा में लयबद्धता थी, एकरूपता थी, यदि आप मेहमान हैं तो अवश्य ही माननीय होंगे.

जिस परिसर में मेहमान एकत्र हो रहे थे वह भोजकक्ष से सटा था. वहीं पर सब के लिए अल्पाहार और पेय आदि की व्यवस्था थी. उस की छत से लटकता, तराशे कांच से बना हुआ विशाल झाड़फानूस अपने चारों ओर एक भव्य आभा बिखेर रहा था. वे प्रकाशपुंज सचमुच एक विचित्र विलासमय गरिमा से भरे थे. जूली और उस का पति कीथ, मेहमानों का स्वागत बड़ी तन्मयता से कर रहे थे. जब जूली की नजर मुझ पर पड़ी, वह उस विशाल कमरे में एकत्र लगभग 300 मेहमानों को लांघ कर मेरी ओर लपकी. उस ने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और बोली, ‘‘मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि तुम्हें यहां देख कर मुझे कितनी प्रसन्नता हो रही है.’’

फिर वह मुझे अपनी बचपन की सहेली डौरिस की ओर खींच कर ले गई, ‘‘मैं ने तुम दोनों को एक ही मेज पर रखा है. मुझे विश्वास है कि तुम दोनों एकदूसरे से बात करने में नहीं थकोगी.’’

जूली ने ठीक ही कहा था. डौरिस  जूली की बचपन की सहेली  थी. प्राथमिक शिक्षा से ले कर विश्वविद्यालय तक वे साथ ही पढ़ी थीं. बिना किसी भूमिका के डौरिस ने मुझ से कहा, ‘‘क्या तुम मेरे हैट के बारे में नहीं पूछोगी?’’

पुआल से बना, डौरिस के कंधों पर पूरी तरह छाया वह हैट मुझे कुछ पुराना सा लगा. मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कहूं.

‘‘हां, अवश्य बताइए. एकदम बिरला लगता है,’’ मैं बोली.

‘‘वह तो है. यह हैट मैं ने जूली के विवाह पर पहना था.’’

‘‘क्या कहा, 40 साल पुराना, मैं नहीं मानती.’’

‘‘मेरा विश्वास करो. चाहो तो बाद में जूली से पूछ लेना. लेकिन इस हैट की कहानी यहीं समाप्त नहीं हो जाती. जब जूली की शादी हुई, मैं फैशन के मामले में बिलकुल नादान थी. विवाह के अवसर पर जब मैं चर्च पहुंची तो मैं ने देखा कि मेरे अलावा सभी स्त्रियों ने हैट लगाए हुए थे. मेरे असमंजस को मेरी दादी ने भांप लिया और अपना हैट उतार कर मेरे सिर पर रख दिया.’’

‘‘अविश्वसनीय, इस का मतलब यह हुआ कि न केवल तुम ने इसे 40 वर्ष पूर्व जूली के विवाह में पहना बल्कि यह उस से भी पुराना है.’’

‘‘हां, इस के किनारों पर लगी पाइपिंग के अतिरिक्त यह वैसा का वैसा है, जैसा मेरी दादी ने मुझे दिया था.’’

धीरेधीरे सभी मेहमानों से मेरी दुआसलाम हो गई. जूली की मौसी की पुत्री अपने पति पाम्पडूस के साथ ग्रीस से आई थी. जूली के पति के भाई विलियम और उस की पत्नी न्यूयार्क से आए थे. पीटर आस्ट्रेलिया से, डेविड हौंगकौंग से. आयरलैंड, जरमनी, स्पेन और इटली से भी रिश्तेदार आए थे. इंगलैंड और स्कौटलैंड से आए मेहमानों की संख्या अधिक थी.

स्पष्ट था कि उस पार्टी में परिवार और घनिष्ठ मित्रों के अलावा कोई और व्यक्ति नहीं था. जूली ने मुझे इतना निकट समझा, इस के लिए मुझे स्वयं पर गर्व हुआ.

मेहमानों के इस जमावड़े में एक थी जूली की भांजी, कैथरीन. वह विकलांग थी और ह्वील चेयर पर आई थी. सभी रिश्तेदार उस से मिलने के लिए होड़ लगाते मालूम हो रहे थे. 23 वर्षीय कैथरीन के पैरों की बनावट कुछ ऐसी थी कि कुछ देर के लिए खड़ी तो अवश्य हो सकती थी परंतु अधिक चलफिर नहीं सकती थी. वह आयकर विभाग में काम करती थी और अपनी अपंगता के होते हुए भी एक विचित्र प्रकार के आत्मविश्वास से भरी लगती थी.

जब हम भोज के लिए अपनी पूर्वनिर्धारित मेज पर पहुंचे तो उस पर तैनात वेटर ने मेरा विशेष स्वागत किया. ‘‘निश्ंिचत रहिए, आप दोनों के लिए शाकाहारी भोजन की विशेष व्यवस्था की गई है. आशा है आप को हमारा व्यंजन चुनाव पसंद आएगा.’’

‘‘ओह, धन्यवाद, हम ने तो इस बारे में सोचा भी नहीं था. मुझे विश्वास है कि सबकुछ स्वादिष्ठ ही होगा.’’

हमारी मुख्य तश्तरियों पर व्यंजन सूची के अतिरिक्त एक पुस्तिका रखी थी. मैं ने उसे उठाया, तो जाना कि वह एक व्यंजन नुस्खा पुस्तक थी. डौरिस ने मेरे कान में कहा, ‘‘इस पुस्तक को जूली के वृहत परिवार ने तैयार किया है, सभी ने उस के लिए कुछ न कुछ लिखा है. पुस्तक तो एक बहाना है जिस के माध्यम से उन लोगों ने 1 लाख पाउंड एकत्र किए जिस से एक घर खरीद कर उसे आधुनिक सुविधाओं से संपन्न कर कैथरीन को सौंप दिया. मेरा अनुमान है कि वृहत परिवार के प्रत्येक वयस्क सदस्य ने औसतन 1 हजार पाउंड इस काम के लिए दिए थे.’’

उस कल्पनातीत उदारता की बात सुन कर मेरे मन में जूली के परिवार के प्रति एक विशेष आदरभाव उभर आया. कोई दिखावा नहीं, कोई आडंबर नहीं. एक पारिवारिक समस्या थी, जिस का आकलन किया गया और फिर सभी ने यथासामर्थ्य उस के लिए योगदान किया. न दया, न भावनाओं का अतिरेक और न ही कृत्य के लिए प्रशंसा की चाह.

भोज की समाप्ति और चायकौफी परोसे जाने के बीच एक परदे पर जूली और कीथ के वैवाहिक जीवन की झलकियां छायाचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत की गईं. पृष्ठभूमि में आवाज शायद मार्क की थी. हरेक चित्र एक पूरी कहानी था. उस चित्रमाला में उन के पहले मकान का चित्र था. पालतू बिल्ली थी. कीथ के मातापिता, भाईबहन और उन के बच्चों को यथोचित स्थान दिया गया था. मार्क और फियोना के बापटाइज होने, उन के प्रथम दिन स्कूल जाने आदि महत्त्वपूर्ण दिनों की यादें गुथी थीं. वरौनिका का पहली बार घुड़सवारी करने का प्रयत्न, 3 टांग की दौड़ और तैराकी में जीते पुरस्कार, सभी दर्ज थे. और अंत में कीथ के साथ जूली का चित्र उस पोशाक में जिसे पहन कर वह पहली बार कीथ से मिली थी.

इस के बाद सारी रोशनियां बंद कर दी गईं. भोजकक्ष पूरी तरह अंधेरे में डूब गया था. और तब 2-3 क्षण के अंतराल के बाद मंच रोशनियों से जगमगा गया. उस चमकीले प्रकाशपुंज में स्नान करती एक कन्या खड़ी थी. समझने और पहचानने में सभी को कठिनाई हुई. वह जूली नहीं, 15 वर्षीया वरौनिका थी, वही पोशाक पहने हुए जिसे पहन कर जूली पहली बार कीथ से मिली थी. लाल रंग की उस लंबी पोशाक में व्याप्त सफेद रंग की वृत्ताकार बुंदकियां छठे दशक के फैशन की प्रदर्शनी करती जान पड़ती थीं. सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया था.

कुछ क्षण उस कृत्रिम ज्योत्स्ना में स्नान करने के बाद वरौनिका मंच से नीचे उतर आई. वह बारीबारी से हरेक मेज पर गई और वहां बैठे लोगों के साथ उस ने बड़े चाव से छायाचित्र खिंचवाए. जब वह मेरे पास पहुंची तो मैं ने उस से कहा, ‘‘वरौनिका, तुम इस ड्रैस में बहुत सुंदर लग रही हो.’’

वह इतरा कर खड़ी हो गई, ‘‘हां, ठीक अपनी दादी की तरह.’’

मैं ने उस का माथा चूमा. मैं कल्पना की अपनी दुनिया में चली गई और सोचने लगी कि क्या मेरी अपनी पौत्री मेरी किसी पोशाक को इतने गर्व से पहनेगी?

26 January Special: परंपराएं- भाग 1- क्या सही थी शशि की सोच

जूली से मेरी पहली मुलाकात वर्षों  पहले तब हुई थी जब मैं ने इंगलैंड के एक छोटे शहर से स्थानीय जल आपूर्ति कंपनी के मरम्मत एवं देखभाल विभाग में काम करना शुरू किया था. हमारे विभाग का अध्यक्ष ऐरिक, मुझे एकएक कर के सभी कर्मियों के पास ले गया और उन से मेरा परिचय कराया. पहले परिचय में इतने नाम और चेहरे कैसे याद हो सकते थे, परंतु वह एक अनिवार्य औपचारिकता थी, जिसे ऐरिक निभा रहा था.

जब हम एक महिला के पास पहुंचे, वह दूरभाष पर किसी व्यक्ति का संदेश ले रही थी. दूसरी ओर से कोई चिल्लाए जा रहा था, और वह ‘जी हां’ और ‘हूं’ आदि से अधिक कुछ कह नहीं पा रही थी. ऐरिक और मैं थोड़ा हट कर प्रतीक्षा में खड़े हो गए थे. आखिरकार वह एकतरफा वार्त्ता समाप्त हुई.

‘‘ये हैं जूली, हमारे विभाग की मणि. ये न हों तो हम न जाने क्या करें,’’ ऐरिक ने परिचय कराया, ‘‘जूली यहां आने वाली सभी शिकायतें एकत्र करती हैं.’’

‘‘पहले तो इतनी शिकायतें नहीं आती थीं. जो आती थीं उन का समाधान ढूंढ़ना भी कठिन नहीं होता था. परंतु अब तो जैसे लोगों को शिकायत करने का शौक ही हो गया है,’’ जूली मुसकराई.

‘‘ये हैं शशि मजूमदार. आशा है मैं ने उच्चारण ठीक किया,’’ ऐरिक ने कहा, ‘‘ये आप के और इंजीनियरों की टोलियों के बीच कड़ी का काम करेंगी. आशा है आप दोनों महिलाएं एकदूसरे का काम पसंद करेंगी.’’

जूली मेरी ही तरह छोटे कद की,    इकहरे बदन वाली थी. आयु में   मुझ से 7-8 वर्ष अधिक थी, परंतु दूर से दिखने वाले कुछ अंतरों के बावजूद हमारी रुचियों में बहुत समानता थी. हम ने न केवल एकदूसरे को पसंद किया बल्कि शीघ्र ही मित्र भी बन गईं. यद्यपि जूली की मेज इमारत की पहली मंजिल पर थी और मैं बैठती थी तीसरी मंजिल पर, फिर भी चाहे मिनट दो मिनट के लिए ही सही, हम दिन में 1-2 बार अवश्य मिलती थीं. लंच तो सदैव ही साथ करती थीं और खूब गपें मारती थीं.

जूली दिन में प्राप्त हुई शिकायतों का सारांश तैयार कर के मेरे पास भेज देती थी. उन में से अधिकांश बिल की भरपाई या आपूर्ति काटे जाने आदि से संबंधित होती थीं, जिन्हें मैं सीधे वित्त विभाग को भेज देती थी. कुछ पत्रों का उत्तर ‘असुविधा के लिए क्षमायाचना’ होता, जिन्हें जनसंपर्क विभाग के लोग संभालते थे. शेष मरम्मत और रखरखाव की समस्याओं से जुड़े होते थे. उन्हें मैं ऐरिक के इंजीनियरों की टोलियों के पास भेज देती ताकि उपयुक्त कार्यवाही की जा सके.

बहुधा जूली शिकायत करने वालों के चटपटे किस्से सुनाती. ऐसे ही टैलीफोन पर मुआवजे के लिए गरजने वाले एक आदमी की नकल करते हुए जूली ने कहा, ‘‘पिछले 4 सालों में 2 बार बरसात का पानी मेरे घर में घुस चुका है. दोनों बार सारे कालीन खराब हुए और फर्नीचर भी बरबाद हुआ.’’

फिर जरा रुक कर उस ने आगे कहा, ‘‘अब अगर मौसम बदल जाने के कारण बरसात अधिक होने लगे तो वह बेचारा क्या करे जल आपूर्ति कंपनी से खमियाजा लेने के अतिरिक्त. घर की ड्योढ़ी 4-5 इंच ऊंची करना या बरसात होने से कुछ समय पहले रेत से भरी 3-4 बोरियां अपने दरवाजे के सामने रखना तो बड़े झंझट का काम था, जो उस की सोच से बाहर भी था.’’

‘‘बेचारा,’’ हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला.

इसी प्रकार एक दिन जूली ने एक स्त्री की करुण गाथा सुनाई. उस दिन वाटर सप्लाई कंपनी के लोग आ कर उस के घर का पानी का कनैक्शन बंद कर गए थे. वह नाराजगी से भरी सीधी टैलीफोन पर थी, ‘मेरे परिवार में 2 छोटे बच्चे हैं, एक पति. कैसे उन का पालन करूं? आप लोग मनमानी करते हो. किसी की सुविधाअसुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं. बस, उठे और टोंटी बंद कर डाली,’ सुबकतेसुबकते वह स्त्री मुझे संबोधित कर के बोली, ‘मिस, यदि मेरी जगह आप होतीं तो क्या करतीं?’ जूली ने मुझे बताया कि उस ने उस स्त्री से कुछ नहीं कहा. फिर बड़े नाटकीय ढंग से मेरे अति निकट आ कर बोली, ‘‘मैं अपना बिल अवश्य चुकाती और यह नौबत आने ही न देती.’’

एक व्यक्ति के गरजनेभड़कने की कथा जूली अकसर सुनाती थी. उस दिन वह बड़े उत्साह से आ कर बोली, ‘‘आज वही आदमी फिर फोन पर था. वही, जो पहाड़ी पर बने एक मकान की छठी मंजिल पर बने एक फ्लैट में रहता है. आज वह फिर भड़का, ‘गरमियां शुरू हो गई हैं और बरसात भी कई दिनों से नहीं हुई है. बताओ कि किस दिन से पानी का राशन शुरू होगा?’ मैं ने कहा, ‘श्रीमानजी, हमारी कोई नीति पानी का राशन करने की नहीं है. सूखे की स्थिति में पानी का प्रैशर घट जाने के कारण कुछ ऊंचे स्थानों में पानी घंटे दो घंटे के लिए नहीं पहुंच पाता. लेकिन बताइए कि क्या पानी आज भी बंद है?’ उस ने कहा कि आज तो बंद नहीं है. इस पर मैं थोड़ा झुंझला गई और मैं ने कहा, ‘तो आज क्यों फोन कर रहे हो?’ उस ने तुरंत फोन रख दिया.’’

मैं ने जूली को सलाह दी, ‘‘यदि वह व्यक्ति दोबारा फोन करे तो उस से कहना कि उस के लिए यह अच्छा है कि वह इस शहर में रहता है. यदि वह भारत जैसे देश के किसी शहर में जा कर एक पहाड़ी पर बने मकान की ऊंची मंजिल में फ्लैट ले कर रहे तो जितने समय यहां पानी नहीं आता उतने समय आए पानी से उसे काम चलाना पड़ेगा.’’

‘‘तुम जानती हो शशि, मैं ऐसा नहीं कह सकती,’’ जूली ने कहा, ‘‘और यदि कहा, तो तुम जानती हो कि मुझे क्या उत्तर मिलेगा. तुम्हारा बस चले तो इस देश में भी वैसा ही हो जाए.’’

इस के बाद हम दोनों के लिए काम करना कठिन हो गया. हम दोनों उस काल्पनिक उत्तर के बारे में सोचसोच कर बहुत देर तक हंसती रहीं.

हमारी गपशप सहकर्मियों या शिकायत करने वालों की चर्चा तक ही सीमित नहीं रहती थी. हम लोग अकसर हर विषय पर बातें करते थे. कंपनी की गपशप पर कानाफूसी, अखबारों में छपी चटपटी खबरें, पारिवारिक गतिविधियां, सभी कुछ. जूली के 2 बच्चे थे. 1 बेटा और  1 बेटी. बेटे का नाम मार्क था. वह विवाह के बाद अपनी पत्नी फियोना के साथ रहता था. बेटी सिमोन का विवाह तो अवश्य हुआ परंतु 1 ही वर्ष के भीतर तलाक हो गया था. उस के बाद वह वापस अपने मातापिता के साथ रहने लगी थी. एक दिन जब जूली काम पर आई तो उस के चेहरे को देख कर मैं समझ गई कि अवश्य ही कुछ बात है. पूछने पर उस ने बताया कि वह मार्क से तंग आ गई है. जूली के अनुसार मार्क और फियोना पिछले बृहस्पतिवार उस के घर आए थे. उन्होंने केवल इतना बताया कि वे लंबे सप्ताहांत के लिए प्राग जा रहे हैं और अपनी पुत्री, वरौनिका को हमारे पास छोड़ गए.

‘‘यह तो ठीक है कि वरौनिका हमें प्रिय है,’’ जूली ने बताया, ‘‘और उस की देखभाल करना कुछ कठिन नहीं परंतु उन्हें यह तो सोचना चाहिए कि हमारी भी अपनी जिंदगी है. हम पूरे सप्ताह वरौनिका के साथ ही लगे रहे. कहीं भी नहीं जा पाए.’’

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