रेत का समंदर: जब जूलिया मार्टिन की हरीश से हुई मुलाकात

Serial Story: रेत का समंदर (भाग-3)

आधापौना घंटा उन्होंने आराम किया होगा कि अम्माजी ने उन को बाजरे की रोटी और गुड़ की डली थमा दी. साथ में रेगिस्तानी इलाके में मिलने वाली झाड़ी की चटनी भी थी. ऐसा खाना उन के लिए निहायत रूखासूखा था, लेकिन भूख सख्त लगी होने से उन को वह बहुत स्वादिष्ठ लगा. खाना खाने के बाद दोनों पुआल के उसी ढेर पर सो गए.

वह झोंपड़ा रहमत अली खान का था. वह इलाके का जमींदार था. रेगिस्तानी इलाके में खेती कहींकहीं होती थी. शाम ढलते ही रहमत अली खान और उस के चार बेटे ढाणी में आए. एक अनजान ऊंट को, जिस की पीठ पर 2 आदमियों के बैठने वाली कीमती काठी बंधी थी, झोंपड़े के एहाते में चारा खाते देख चौंके.

कौन आया था ढाणी में, कोई पाक रेंजर या सेना का अफसर, लेकिन यहां क्यों आया?

रहमत अली ने झोंपड़े के दरवाजे की सांकल बजाई. अपने बेटे को देखते ही अम्माजी ने उस को अंदर आने का इशारा किया. पुआल पर सो रहे जोड़े को देख कर रहमत अली चौंका, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

‘‘परली तरफ से भटक कर आया जोड़ा है. रात को चली आंधी में ऊंट भटक गया. सरहद पर लगी बाड़ की तार उखड़ गई होगी.’’

बातचीत की आवाज से जोड़े की नींद खुल गई. दोनों उठ कर बैठ गए.

‘‘सलाम साहब. सलाम मेमसाहब.’’

‘‘सलाम.’’

‘‘यह पाकिस्तानी इलाका है. यह ढाणी मेरी है.’’

‘‘हम भटक कर इधर आ गए.

अब आप ही हमें कोई रास्ता बता दीजिए,’’ हरीश ने विनम्रतापूर्वक उस से कहा.

‘‘अब तो रात होने वाली है. कल सुबह आप को अपने साथ ले चलूंगा,’’ रहमत अली ने उसे आश्वासन देते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मेहरबानी,’’ हरीश ने उम्मीद भरी आंखों से देख कर कहा.

रात को उन की अच्छी आवभगत हुई. सुबह अभी पौ भी नहीं फटी थी कि पाकिस्तानी रेंजरों का एक दस्ता ऊंटों पर सवारी करता ढाणी के समीप आ कर रुका. रहमत अली से कइयों का परिचय था. कई बार वे उस के आतिथ्य का आनंद ले चुके थे.

ऊंटों की हुंकार सुन कर रहमत अली के साथ परिवार के कई और लोगों की भी नींद खुल गई. आंखें मलता रहमत अली बाहर आया.

‘‘सलाम, हुजूर.’’

‘‘सलाम, रहमत अली. कैसे हो?’’

ऊंट से उतरते सुपरिंटेंडैंट रेंजर ने पूछा.

‘‘आप की दुआ से सब खैरियत है. बहुत दिनों बाद दीदार हुए आप के. क्या हालचाल हैं?’’

‘‘सब खैरियत है.’’

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सारे रेंजर ढाणी में चले आए. उन की आवभगत हुई, जलपान का इंतजाम हुआ, तभी अहाते में बंधे ऊंटों में हड़कंप सा मच गया. रहमत अली के ऊंटों में एक नया ऊंट आया था. उस अजनबी ऊंट को अपने रेवड़ में शामिल होना ऊंटों को शायद सहन नहीं हुआ था.

‘‘क्या हुआ?’’ सुपरिंटेंडैंट ने पूछा.

‘‘ऊंट शायद लड़ पड़े हैं.’’

‘‘कोई ऊंट किसी ऊंटनी पर आशिक हुआ होगा. उस का दूसरा आशिक उस से लड़ पड़ा होगा.’’

सब खिलखिला कर हंस पड़े. सब उठ कर ऊंटों के रेवड़ तक पहुंचे. एक ऊंट की पीठ पर कीमती काठी बंधी थी.

‘‘इतनी बढि़या काठी तो अमीरलोग या सैरसपाटा करने वाले सैलानियों के ऊंटों पर होती है. यह ऊंट किस का है?’’

रहमत अली हकबकाया, फिर संभल गया.

‘‘हुजूर, कल रात मेरा भतीजा आया था. उस को ऊंट की सवारी का शौक है. ऊंट मेरा है. काठी वह खुद लाया था. कराची में काम करता है.’’

‘‘ओह. अच्छा रहमत अली, खुदा हाफिज.’’

रेंजर ऊंटों पर सवार हुए और चले गए. रहमत अली और सब की जान में जान आई. अगर हरीश और मेमसाहब के बारे में पता चल जाता तो वे पकड़े जाते, साथ में पनाह देने के इलजाम में रहमत अली भी फंसता.

तब तक सब जाग चुके थे. रेंजर के बारे में पता चलने पर हरीश और जूलिया भी चिंता में पड़ गए.

‘‘मेरे पास पाकिस्तान का वीजा तो है लेकिन सब कागजात तो रिसोर्ट के कमरे में हैं,’’ जूलिया ने कहा.

‘‘मेमसाहब, रेंजर अब इलाके में गश्त पर हैं. दिन में बाहर निकलना खतरनाक है. आप को शाम ढलने पर बाहर ले जा सकते हैं,’’ हरीश ने कहा.

‘‘रात के अंधेरे में फिर रास्ता भटक गए तो?’’ हरीश ने घबरा कर पूछा.

‘‘तसल्ली रखो साहब, इलाके का चप्पाचप्पा मेरा पहचाना हुआ है.’’

 

शाम ढल गई. 2 ऊंट ढाणी से बाहर निकले. एक पर हरीश और मेमसाहब सवार थे, दूसरे पर रहमत अली. ऊंट भारतीय सीमा की दिशा में चल पड़े. शाम का धुंधलका अंधेरे में बदल चुका था. गरमी का अब कोई असर नहीं था. मौसम धीरेधीरे ठंडा होता जा रहा था. दोनों ऊंट अपने रास्ते पर चलते लगातार मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे.

‘‘सफर कितना बाकी है?’’ जूलिया ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘सिर्फ 1 घंटा और लगेगा,’’ रहमत अली ने कहा.

आंखों पर अंधेरे में भी दिख जाने वाली दूरबीन चढ़ाए पाक रेंजर चौकी के आसपास और भारतीय सीमा की तरफ नजर गड़ाए हुए थे.

‘‘सर, 2 ऊंट भारतीय सीमा की तरफ बढ़ रहे हैं,’’ एक सिपाही ने दूरबीन पर निगाह गड़ाए हुए कहा.

‘‘कौन हो सकते हैं?’’

‘‘पता नहीं, सर, एक ऊंट पर 2 सवार बैठे हैं, दूसरे पर केवल 1 सवार है.’’

‘‘वार्निंग के लिए फायर करो.’’

एक हवाई फायर हुआ. रहमत अली समझ गया. अब उस का देखा जाना खतरे से खाली नहीं था. उस ने बगैर एक क्षण गंवाए अपना ऊंट मोड़ लिया.

‘‘साहब, मैं अब वापस जाता हूं. मैं देख लिया गया तो मुश्किल में पड़ जाऊंगा. अब आप खुद आगे जाओ, खुदा हाफिज.’’

रहमत अली ने ऊंट को एड़ लगाई, ऊंट दौड़ चला.

‘‘अब क्या करें?’’ जूलिया ने सहमी आवाज में पूछा.

‘‘हौसला रखो,’’ हरीश ने कहा और ऊंट की पहले रस्सी खींची और फिर ढीली करते हुए उसे टहोका दिया. ऊंट सरपट रेत पर दौड़ पड़ा.

‘‘सर, एक ऊंट वापस दौड़ गया, दूसरा भारतीय सीमा की तरफ दौड़ रहा है,’’ निगहबानी करने वाले सिपाही ने अपने अधिकारी से कहा.

‘‘वापस जाने वाला सवार और ऊंट तो काबू में नहीं आ सकते, कोई लोकल ही होगा. तुम आगे जा रहे ऊंट और उस पर सवार जोड़े को काबू करो.’’

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पहले एक हवाई फायर हुआ. फिर जमीनी फायरों का सिलसिला शुरू हुआ. उस के बाद कई रेंजर अपनेअपने ऊंटों पर सवार हो उस तरफ लपक पड़े.

चांद आसमान पर चढ़ रहा था. रेत का समंदर चांदनी में ऐसे चमक रहा था जैसे चांदी की चादर बिछी हो. 2 सवारों को रात की पिछली पहर से अपनी पीठ पर ढो रहे ऊंट को जैसे खतरे की गंभीरता का एहसास हो चुका था, वह तेजी से सरपट दौड़ रहा था.

‘‘साहब, कमाल की बात है?’’ एक पाक रेंजर ने अपने साथ दौड़ रहे ऊंट पर सवार अफसर से हैरत में कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘भाग रहा ऊंट दोदो सवार उठाए हुए है, लेकिन फिर भी काबू में नहीं आ रहा. हम अकेले सवार हैं लेकिन हमारे ऊंट की स्पीड इतनी नहीं है.’’

‘‘अरे भाई, मौत का डर हर किसी को कुछ ज्यादा ताकत और जोश दिला देता है.’’

भारतीय सीमा में बीती रात को ढह गई तार की बाड़ को भारतीय फौजी ठीक कर रहे थे. उन्होंने हवाई फायरों और फिर जमीनी फायरों की लगातार आवाजें सुनीं. उन्होंने आंखों पर रात के अंधेरे में दिखने वाली दूरबीनें लगा कर देखा. एक ऊंट पर 2 सवार सामने से आ रहे थे.

फौजियों को ध्यान आया कि कल रात से ऊंट पर सवार एक टूरिस्ट जोड़ा लापता था. उन को सारा मामला समझ में आ गया. धीरेधीरे पाक रेंजर पीछा करते आ रहे थे.

भारतीय फौजियों ने फौरन अपना मोरचा संभाल लिया. ऊंट पर सवार जोड़े ने जैसे ही सीमा को पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश किया, उन्होंने पहले हवाई फायर किया, फिर सर्चलाइट का प्रकाश फेंका.

पाक रेंजर वापस लौट गए. हरीश और जूलिया देर रात को सेना  की मदद से सुरक्षित अपने रिसोर्ट में पहुंच गए. अपने कमरे में पहुंच उन्होंने राहत की सांस ली. पर तब तक रेत के इस समंदर में सैर करतेकरते जूलिया हरीश को अपना दिल दे चुकी थी. हरीश को भी जूलिया भा गई थी. जब दोनों जयपुर लौटे, हरीश ने अपने घर में दिल की बात कह दी. हरीश के मातापिता सब समझ गए. जूलिया मार्टिन का भी पूरा परिवार भारत आया. दोनों की शादी बहुत धूमधाम से हुई.

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Serial Story: रेत का समंदर (भाग-2)

दृश्य रोमांटिक था. जूलिया ऊंट वाले की आंखों की चमक से उस की शरारत को समझ गई और मुसकराई. हरीश भी मुसकराया. दोनों एक ही ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट वाला ऊंट की रस्सी थामे आगेआगे चला. ऊंट हिचकोले खाता, दोनों के शरीर आपस में टकराते, पहले थोड़ा संकोच हुआ फिर दोनों को मजा आने लगा.

ऊंट वाला तजरबेकार था. जोड़ों का इस तरह मौजमस्ती करना और अठखेलियां करना उस का देखाजाना था.

‘‘साहब, ऊंट इस इलाके को पहचानता है. मैं एक जगह बैठ जाता हूं, यह आप को घुमाता रहेगा. इस को बिठाना हो तो इस के कंधे को पांव से हलका टहोका देना. यह बैठ जाएगा. खड़ा करना हो तब भी ऐसा ही करना.’’

ऊंट वाला रस्सी जूलिया को थमा कर एक तरफ चला गया. ऊंट गोलाकार घूमता हुआ एक दायरे से दूसरे दायरे में चलता रहा. दूरदूर तक रेत किसी समंदर के पानी की तरह फैला हुआ था. टिब्बों के पीछे जोड़े एकदूसरे में खोए हुए थे.

हिचकोले लगने से जूलिया और हरीश के शरीर आपस में टकराते, पीछे हटते फिर टकराते. जूलिया एकाएक उचकी और पलट कर सीधी हो हरीश की तरफ मुंह कर के बैठ गई. अब दोनों आमनेसामने थे. सीने से सीना टकरा रहा था. थोड़ी देर ऐसा चला, फिर जूलिया ने बांहें फैला हरीश को अपनी बांहों में भर लिया. हरीश ने ऊंट को पांव का टहोका दिया, वह बैठ गया.

दोनों नीचे उतर रेत के नरम बिस्तर पर जा लेटे. दोनों के हाथ एकदूसरे की तरफ बढ़े, आंखें एकदूसरे में कुछ ढूंढ़ रही थीं दोनों दीनदुनिया से बेखबर धीरेधीरे एकदूसरे में समाते गए.

आसमान में सीधा दिखता चांद धीरेधीरे पश्चिम दिशा की तरफ उतरने लगा. रात गहरी और ठंडी होती गई. देह की उत्तेजना थम चुकी थी. दोनों एकदूसरे की बांहों में समाए मीठी नींद के आगोश में थे. ऊंट भी सो गया था.

शांत शीतल रात के आखिरी पहर में हवा अचानक तेज हो गई. मीठी नींद का आनंद लेते जोड़े अचकचा कर उठ बैठे. सब अपनेअपने कपड़े संभालते ऊंटों पर सवार होने लगे. अनुभवी ऊंट वाले मौसम का रुख समझ गए. रेगिस्तानी आंधी आ रही थी. कइयों ने अपनेअपने ऊंट बिठा दिए और सवारियों को उन के पीछे आंधी थम जाने तक ओट में बैठे रहने को कहा.

जूलिया और हरीश के ऊंट वाले का कहीं पता नहीं था. आंधी अभी बहुत तेज नहीं हुई थी.

‘‘हम ऊंट पर सवार हो कर चलते हैं. गोल चक्कर काट लेते हैं. ऊंट वाला शायद इधरउधर ही हो,’’ जूलिया ने कहा.

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ऊंट धीरेधीरे दायरे में चलने लगा. तभी आंधी एकदम तेज हो गई. घबरा कर ऊंट सरपट दौड़ पड़ा. हरीश ने टहोके पर टहोके दिए. लेकिन थमने के बजाय वह तो तेजी से दौड़ने लगा. हरीश के पीछे बैठी जूलिया ने उस को पीछे से बांहों में कस कर जकड़ लिया.

आंधी का वेग बढ़ता गया. सुहानी चांदनी रात रेतीली अंधियारी रात में बदल गई. तेज अंधड़ का यह भयावना रूप जूलिया को बेसब्र बना रहा था.

वह ऊंची आवाज में लगातार बोले जा रही थी, ‘‘ऊंट को बिठाने की कोशिश करो.’’

हरीश ने रस्सी  कस कर खींची, टहोका दिया. ऊंट धीरेधीरे थमने लगा. सामने एक जंगली झाड़ दिखा. ऊंट वहीं रुक गया. फिर से टहोका देने पर वहीं बैठ गया. दोनों उतर गए. आंधी शांत हो रही थी.

रात बीत चुकी थी. मौसम साफ था. दोनों उठे और ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट खड़ा हो चलने लगा. दोनों ने बेचैन नजरों से इधरउधर देखा. हर तरफ जैसे रेत का समंदर फैला था. कहींकहीं रेतीला सपाट मैदान था तो कहीं ऊंचेनीचे रेत के टिब्बे. कहीं भी कोई आबादी, जानवर, आदमी या पेड़पौधे कुछ भी नहीं. सब तरफ रेत ही रेत.

‘‘हम रिसोर्ट से किस दिशा में हैं?’’ जूलिया ने भरसक अपनी घबराहट को काबू में रखते हुए कहा.

जूलिया के इस सवाल का जवाब हरीश क्या देता. उस ने ऊंट की रस्सी को एक बार खींचा और ढीला छोड़ दिया. ऊंट हिचकोले देता धीरेधीरे चल पड़ा. हालात समझ से बाहर थे.

परिस्थिति जो कराए, यही भावना दोनों के भीतर भर रही थी. ऊंट जाने कहां किस लक्ष्य की ओर चल रहा था. दोनों चुपचाप बैठे चारों तरफ देख रहे थे. प्यास से गला सूख रहा था, भूख भी लग आई थी. रात के रोमांस, उमंग और उत्तेजना का अब कहीं कोई वजूद नहीं था, मानो नींद में कोई सुंदर सपना देख लिया हो.

‘‘सुना है इस इलाके के साथ पाकिस्तान का इलाका लगा हुआ है,’’ काफी देर बाद खामोशी तोड़ते हुए जूलिया ने कहा.

‘‘हां, साथ का इलाका पाकिस्तान का है लेकिन सीमा पर कांटेदार बाड़ है.’’

‘‘रेत के तूफान में बाड़ उजड़ भी तो सकती है,’’ जूलिया की आवाज में डर छिपा था.

‘‘आप का मतलब है हम कहीं भटक कर पाकिस्तान की सीमा में तो प्रवेश नहीं कर गए?’’ हरीश चौंका.

‘‘मेरा अंदाजा तो यही है. ऊंट को चलतेचलते 3-4 घंटे हो चुके हैं. अगर हम रिसोर्ट के करीब होते या भारतीय सीमा में होते तो अब तक कहीं न कहीं तो पहुंच गए होते,’’ जूलिया ने बहुत इत्मीनान से परिस्थिति को समझने की कोशिश की.

‘‘थोड़ा आगे चलो, फिर ऊंट की दिशा मोड़ते हैं. पाकिस्तान भारत के पश्चिम में है. सूरज हमारे पूर्व से अब सीधा आसमान में हमारे सिर के ऊपर है. इस हिसाब से हम जैसलमेर के उस टूरिस्ट रिसोर्ट से पश्चिम में हैं. पाकिस्तान में न भी हों, तब भी पश्चिम दिशा में काफी दूर चले आए हैं,’’ अब जैसे हरीश की चेतना भी जगी.

ऊंट आगे बढ़ता रहा.

‘‘प्यास से मेरा गला सूख रहा है,’’ हरीश ने बर्दाश्त न कर पाने की दशा में कह ही दिया.

‘‘अपनी उंगली से अंगूठी उतार कर चूस लो,’’ जूलिया को व्यावहारिक समझ अधिक थी.

हरीश ने ऐसा ही किया. जूलिया भी अपनी उंगली मुंह में डाल कर चूसने लगी. थूक और लार गले की खुश्की को दूर करने लगे. तभी कुछ देख कर हरीश चौंका और जोर से बोला, ‘‘सामने कोई गांव है.’’

कुछ नजदीक पहुंचने पर मिट्टी की कच्ची दीवारों और बांस व पेड़ की डालियों से बने झोपड़े दिखने लगे. वह गांव पाकिस्तानी था या भारतीय, अभी यह समझ में नहीं आ रहा था. सीमा के दोनों तरफ के गांव, खासकर रेगिस्तानी इलाके के गांव एकसमान ही हैं. आखिर भारत और पाकिस्तान कभी एक देश ही तो थे.

‘‘यह गांव भारतीय है या पाकिस्तानी?’’ जूलिया ने पूछा.

‘‘रेगिस्तानी इलाके में जहांतहां ऐसे कुछेक झोंपड़े बने होते हैं, इन को ढाणी कहा जाता है, गांव नहीं. ढाणी भारतीय इलाके में हो या पाकिस्तानी इलाके में, एक समान ही दिखते हैं. यहां के लोगों का पहनावा, खानपान और बोली सब एक जैसी होती है.’’

‘‘अगर यह ढाणी पाकिस्तान में हुई तो?’’

‘‘देखा जाएगा. प्यास से गला खुश्क है, भूख से अंतडि़यां सूख रही हैं. ऊंट भी प्यासा है, अब वहीं चलते हैं.’’

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ऊंट ढाणी के करीब पहुंचा. आसमान पर चढ़ता सूरज आग बरसा रहा था. दोपहर अभी चढ़ी नहीं थी लेकिन गरमी से धरती और आसमान सब तप रहा था.

ढाणी में मुश्किल से 10-12 झोपडि़यां थीं. सब के दरवाजे बंद थे. एक बड़े एहाते में एक बड़ा पोखर था जिस में जमा पानी का रंग लगभग हरा था. उस के किनारों पर काई जमा थी.

ऊंट पानी देखते ही मचला. हरीश ने टहोका दिया. ऊंट बैठ गया. दोनों के उतरते ही ऊंट पानी के पोखर की तरफ लपका और सड़ापसड़ाप की आवाज के साथ पानी गटकने लगा.

प्यास से गला तो जूलिया और हरीश का भी सूख रहा था, लेकिन दोनों ऊंट की तरह पोखर का पुराना, काई वाला पानी कैसे पीते?

दोनों ने चारों तरफ नजर दौड़ाई. पोखर के चारों तरफ झोंपडि़यों के दरवाजे बंद थे. किस का दरवाजा खटखटाएं. तभी सामने की झोंपड़ी का दरवाजा खुला. एक वृद्धा ने, जिस ने झालरचुनटदार घाघरा व चोली पहन रखी थी और सिर पर दुपट्टा डाल रखा था, दरवाजे से बाहर झांका.

एक वृद्धा को यों देख हरीश उस के घर के दरवाजे के सामने गया और बोला, ‘‘अम्माजी, पांय लागूं.’’

‘‘जीते रहो, बेटा. यहां कैसे आए?’’

‘‘आंधी में ऊंट रास्ता भटक कर इधर चला आया.’’

‘‘कहां से आए हो?’’

‘‘जैसलमेर से.’’

‘‘हाय रब्बा, यह तो मुन्ना बाओ का इलाका है, पाकिस्तान है. यहां रेंजरों ने तुम्हें देख लिया तो गोली मार देंगे. जल्दी से अंदर चले आओ.’’

जूलिया मार्टिन का अंदाजा सही था. रेत के तूफान में ऊंट रास्ता भटक कर पाकिस्तान में प्रवेश कर गया था. अब सामने हर पल खतरा दिख रहा था.

‘‘ऊंट को दरवाजे के खंभे के साथ बांध दो और जल्दी से अंदर आ जाओ,’’ अनजान वृद्धा ने चाव और अपनेपन से  कहा.

दोनों ऐसा ही कर जल्दी से झोंपड़े के अंदर चले गए. मिट्टी या गारे की दीवारों से बने उस झोंपड़े में गरमी के मौसम में भी ठंडक थी. मटके का पानी बर्फ के समान शीतल था. गड़वा के बाद गड़वा, लगातार कई गड़वे पानी दोनों ने पिया. फिर अम्माजी ने उन को गुड़ का मीठा ठंडा शरबत पीने को दिया. दोनों फर्श पर पड़े फूस के ढेर पर जा लेटे. अम्माजी बाहर जा कर ऊंट को पुआल और चारा डाल आईं.

आगे पढ़ें- आधापौना घंटा उन्होंने आराम किया होगा कि…

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Serial Story: रेत का समंदर (भाग-1)

हवामहल से बाहर आ कर जूलिया मार्टिन ने इधरउधर देखा, थोड़ी दूर पर आटोरिकशा स्टैंड था, जहां पर काले रंग पर पीली पट्टी वाले कई आटोरिकशा कतार में खड़े थे. सधे कदमों से चलती वह वहां तक पहुंची.

सलवारकमीज पहने और कंधे पर खादी का झोला लटकाए एक अंगरेज मेमसाहब को अपने आटो के समीप आते देख जींस और टीशर्ट पहने दरम्यानी कदकाठी और चुस्त शरीर वाला चालक अपने आटो से बाहर आ गया.

‘‘फोर्ट औफ आमेर,’’ जूलिया ने केवल इतना कहा.

हामी में सिर हिलाते चालक ने पिछली सीट पर बैठने का इशारा किया. सवारी के बैठते ही वह आटो ले कर चल पड़ा.

जूलिया मार्टिन इंगलैंड से भारत घूमने के लिए आई थी. कई शहरों और दर्शनीय स्थलों से घूमघाम कर अब वह जयपुर और राजस्थान के दूसरे दर्शनीय स्थलों को देखने आई थी.

आटोरिकशा को आमेर के किले के बाहर इंतजार करने को कह कर वह किला देखने अंदर चली गई. 2 घंटे बाद बाहर आई तो उस ने देखा आटो चालक पिछली सीट पर अधलेटा सो रहा था. एक बार उस ने सोचा कि उस को झिंझोड़ कर उठा दे. फिर यह सोच कर कि नींद से जगाना ठीक नहीं, वह चालक वाली सीट पर बैठ कर इंतजार करने लगी. और उसे पता भी नहीं चला कि कब वह ऊंघतेऊंघते सो गई.

किले से बाहर आते पर्यटकों ने इस अजीब नजारे को हैरत से देखा. यात्री तो चालक सीट पर बैठा हैंडल पर सिर रखे सो रहा था जबकि चालक पिछली सीट पर अधलेटा सो रहा था.

पहले कौन जागा पता नहीं. घंटेभर बाद दोनों की नींद टूटी. गरम दोपहरी, हलकी-हलकी हवा देती शाम में बदल गई थी.

‘‘मेमसाहब,’’ थोड़ा सकुचाते हुए आटो चालक यानी हरीश बोला.

‘‘डोंट माइंड, आई वाज आल्सो टायर्ड.’’

टूटीफूटी अंगरेजी बोलने और काम  लायक समझने वाला हरीश मुसकराया. जूलिया मार्टिन भी मुसकराई. वह हंसते हुए पिछली सीट पर आ बैठी. आटो स्टार्ट कर हरीश ने सिर घुमा कर उस की तरफ सवालिया लहजे में देखा.

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‘‘बैक टू जयपुर.’’

आटोरिकशा के जयपुर पहुंचतेपहुंचते शाम का अंधेरा छा गया था. उस के बताए लौज के बाहर आटो रोक हरीश ने उस की तरफ देखा.

‘‘कितना चार्ज हुआ?’’

हरीश हिसाब लगाने लगा. आनेजाने का किराया उतना नहीं था जितना समय का चार्ज था. लेकिन वह खुद भी तो झपकी लगतेलगते सो गया था.

‘‘मेमसाहब, जो ठीक समझें, दे दें.’’

इस सादगी भरे जवाब में जूलिया मुसकराई. अभी तक उस का वास्ता ज्यादा पैसा ऐंठने वाले आटो चालकों और दुकानदारों से पड़ा था. उस ने 500-500 रुपए के 2 नोट निकाले और उस की तरफ बढ़ाए. सकुचाते हुए हरीश ने एक नोट थाम लिया और कहा, ‘‘इतना काफी है.’’

हरीश के व्यवहार ने जूलिया मार्टिन को बहुत ही प्रभावित किया.

‘‘कल सुबह यहां आ जाना, 10 बजे,’’ कहती हुई जूलिया मार्टिन लौज के अंदर चली गई. हरीश भी आटो आगे बढ़ा ले चला. अब उस का दिल और अधिक दिहाड़ी बनाने का नहीं था. वह सीधे अपने घर पहुंचा.

उस की मां ने उस को जल्दी आया देख कर पूछा, ‘‘आज जल्दी आ गया?’’

‘‘आज एक अंगरेज मेमसाहब मिल गई थी. उस से सारे दिन की दिहाड़ी बन गई,’’ फिर उस ने सारा वाकेआ बताया. मां के साथ उस के वृद्ध पिता और छोटी बहन भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

अगले दिन हरीश 10 बजे लौज के बाहर आटोरिकशा ले कर जा पहुंचा. जूलिया जैसे उसी का इंतजार कर रही थी. वह लपकती सी बाहर चली आई.

‘‘आज कहां?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘सारा जयपुर.’’

‘‘ठीक है. तेल का खर्चा आप का, मेरी दिहाड़ी 500 रुपए.’’

‘‘ऐसा हिसाब हमारे यहां नहीं होता.’’

‘‘तब कैसा होता है?’’

‘‘वहां तो काफी महंगा पड़ता है. चालक और गाड़ी का किराया अलग, तेल व मरम्मत खर्च अलग.’’

‘‘मैडम, मैं तो सोचता हूं कि भारत के बनिए ही पैसा ऐंठने में चालाक हैं, अब आप के हिसाब से तो आप अंगरेज ज्यादा चालाक हैं.’’

‘‘बातें बढि़या करते हो. आटो चलाओ, सारा दिन तुम्हारी बातें सुनूंगी,’’ जूलिया मार्टिन ने हंसते हुए कहा.

हरीश भी हंसा. आटो पूरे दिन जयपुर के छोटेबड़े बाजार, हर टूरिस्ट स्पौट पर घूमता रहा. सुबह हरीश ने टंकी फुल भरवा ली थी. शाम को जूलिया ने दोबारा टंकी फुल भरवा दी और भुगतान कर दिया.

दिनभर उन के बीच हलकाफुलका हंसीमजाक होता रहा. दोनों ने साथसाथ कभी ढाबे में, कभी होटल में खायापिया. उस के इसरार पर हरीश उस के साथ टूरिस्ट स्पौट भी देखने गया. हरीश उस शाम भी जल्दी घर लौट आया. अगले दिन जयपुर के बाहरी इलाकों वाले टूरिस्ट स्पौट्स देखने का कार्यक्रम बना. 3-4 दिनों तक यही सिलसिला चला.

‘‘हरीश, वह मेमसाहब तेरे पीछे पड़ गई है क्या?’’ मां ने पूछा.

‘‘पता नहीं, एक सवारी है. जहां वह कहती है, उसे घुमा देता हूं.’’

‘‘शहर में और भी तो आटोरिकशा वाले हैं?’’

हरीश खामोश रहा.

अगले दिन जूलिया मार्टिन ने उस को अपने लौज के कमरे में बुलाया.

‘‘आप के परिवार में कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरे मातापिता हैं. छोटी बहन है. बात क्या है?’’

‘‘मैं समाज विज्ञान के एक टौपिक पर शोध कर रही हूं, जिस का ताल्लुक भारतीय समाज से है. इसी सिलसिले में भारत घूमने आई हूं. तथ्य इकट्ठे करने के लिए आप के परिवार से मिलना चाहती हूं.’’

हरीश को बात समझ में आ गई. वह जूलिया को अपने घर ले गया. एक अंगरेज युवती को पंजाबी सलवारकमीज पहने और चुन्नी डाले देख हरीश की

मां बड़ी हैरान हुईं. उन को यह जान कर हैरानी हुई कि वह एक रिसर्च स्कौलर थी.

भारतीय परिवार कैसे होते हैं? रहते कैसे हैं? हालांकि उन की जीवनशैली पर सैकड़ों शोध पहले हो चुके थे लेकिन अब जूलिया भी इस विषय पर रिसर्च कर रही थी.

जूलिया का हरीश के घर आनाजाना शुरू हो गया. हरीश के साथ उस का जयपुर की गलियों, महल्लों में घूमनाफिरना भी होने लगा.

‘‘आप मेरे साथ राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में घूमने चलोगे?’’ एक शाम जूलिया ने पूछा.

‘‘जरूर चलूंगा,’’ हरीश कह तो आया, लेकिन घर में मां ने पूछा, ‘‘तेरी दिहाड़ी का क्या होगा?’’

पहले तो हरीश अचकचाया, फिर जवाब दिया, ‘‘मेमसाहब देंगी.’’

‘‘घुमानेफिराने के लिए गाइड होते हैं?’’

‘‘वह मुझे गाइड ही बनाना चाहती है.’’

‘‘भैया, गाइड बनतेबनते कुछ और न बन जाना,’’ छोटी बहन शरारती लहजे  में बोली.

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टूरिस्ट बस ने जूलिया और उस के गाइड हरीश को जैसलमेर के रेगिस्तानी इलाके में एक टूरिस्ट रिसौर्ट के पास उतार दिया. वहां का प्रति यात्री किराया हरीश को हैरानपरेशान कर देने वाला था, लेकिन मेमसाहब के लिए यह सामान्य बात थी.

मौजमस्ती के कार्यक्रमों में ऊंटों पर रेगिस्तान के सुदूरवर्ती इलाकों का भ्रमण और खानापीना, यही वहां का मुख्य आकर्षण था.

गोरी मेमों को ऊंटों पर बिठा कर चांद की रोशनी में रेत के विशाल मैदान दिखाना, जो किसी समंदर के समान दिखते थे, अलगअलग दिशाओं में सैर करवाना, उन्हें राजस्थानी लोकगीत व नृत्य सुनाना, दिखाना वहां के ऊंट वाले और स्थानीय निवासी बड़े उत्साह से करते. पर्यटक भी शांत व ठंडी हवा में टिब्बों की आड़ में मौजमस्ती करने का अवसर पा कर विशेष उत्साहित होते थे.

‘‘आप इस इलाके में कभी आए हो?’’

‘‘नहीं, मैं ने सारा राजस्थान नहीं देखा,’’ हरीश ने कहा.

‘‘मेमसाहब, आप और साहब अलगअलग ऊंट ले कर क्या करेंगे? एक ही ऊंट काफी है,’’ किराए पर ऊंट देने वाले ने कहा.

‘‘एक ऊंट पर दोनों कैसे बैठेंगे?’’

‘‘वह देखिए, सामने कई जोड़े एक ही ऊंट पर बैठे चले जा रहे हैं,’’ रेत के विस्तार में हौलेहौले जा रहे ऊंटों पर सवार जोड़ों की तरफ इशारा करते हुए ऊंट वाले ने कहा.

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