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दृश्य रोमांटिक था. जूलिया ऊंट वाले की आंखों की चमक से उस की शरारत को समझ गई और मुसकराई. हरीश भी मुसकराया. दोनों एक ही ऊंट पर सवार हो गए. ऊंट वाला ऊंट की रस्सी थामे आगेआगे चला. ऊंट हिचकोले खाता, दोनों के शरीर आपस में टकराते, पहले थोड़ा संकोच हुआ फिर दोनों को मजा आने लगा.

ऊंट वाला तजरबेकार था. जोड़ों का इस तरह मौजमस्ती करना और अठखेलियां करना उस का देखाजाना था.

‘‘साहब, ऊंट इस इलाके को पहचानता है. मैं एक जगह बैठ जाता हूं, यह आप को घुमाता रहेगा. इस को बिठाना हो तो इस के कंधे को पांव से हलका टहोका देना. यह बैठ जाएगा. खड़ा करना हो तब भी ऐसा ही करना.’’

ऊंट वाला रस्सी जूलिया को थमा कर एक तरफ चला गया. ऊंट गोलाकार घूमता हुआ एक दायरे से दूसरे दायरे में चलता रहा. दूरदूर तक रेत किसी समंदर के पानी की तरह फैला हुआ था. टिब्बों के पीछे जोड़े एकदूसरे में खोए हुए थे.

हिचकोले लगने से जूलिया और हरीश के शरीर आपस में टकराते, पीछे हटते फिर टकराते. जूलिया एकाएक उचकी और पलट कर सीधी हो हरीश की तरफ मुंह कर के बैठ गई. अब दोनों आमनेसामने थे. सीने से सीना टकरा रहा था. थोड़ी देर ऐसा चला, फिर जूलिया ने बांहें फैला हरीश को अपनी बांहों में भर लिया. हरीश ने ऊंट को पांव का टहोका दिया, वह बैठ गया.

दोनों नीचे उतर रेत के नरम बिस्तर पर जा लेटे. दोनों के हाथ एकदूसरे की तरफ बढ़े, आंखें एकदूसरे में कुछ ढूंढ़ रही थीं दोनों दीनदुनिया से बेखबर धीरेधीरे एकदूसरे में समाते गए.

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