REVIEW: जानें कैसी है Ayushmann Khurrana की फिल्म Anek

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः टीसीरीज और अनुभव सिन्हा

निर्देशकः अनुभव सिन्हा

कलाकारः आयुश्मान खुराना,एंड्यिा केवीचूसा,शोवोन जमन,अभिनव राज सिंह,मनोज पाहवा,जे डी चक्रवर्ती, शारिक खान,कुमुद मिश्रा

अवधिः दो घंटे 28 मिनट

जब हिंदुत्व की बयानबाजी पूरे देश में क्रूर भेदभाव को बढ़ावा दे रही है,उस दौर में फिल्मकार अनुभव सिन्हा एक फिल्म ‘‘अनेक’’ लेकर आए हैं,जो कि युद्ध,शंाति, नक्सलवाद, नस्लीय भेदभाव आदि को लेकर अनेक सवाल उठाते हुए इस बात पर भी सवाल उठाती है कि भारतीय होने के असली मायने क्या हैं?उपदेशात्मक शैली की यह फिल्म ऐसी उपदेशात्मक फिल्म है,जो राजनीतिक अखंडता को बिना रीढ़ की हड्डी वाले सिनेमाई परिदृश्य में पेश करती है. फिल्म पूर्वोत्तर भारतीयों के दिलों की कहानी सुनाती है.  फिल्म इस कटु सत्य को भी रेखांकित करती है कि सिर्फ 24 किमी चैड़े गलियारे से बाकी देश से जुड़े उत्तर पूर्व के राज्यों के किसानों की पूरी फसल हाईवे पर खड़े ट्रकों में सड़ जाती है,क्योंकि उन्हें दूसरी तरफ से आती फौज की गाड़ियों के लिए जगह बनानी होती है. फिल्म यह सवाल भी उठाती है कि कोई तो है जो चाहता है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों और पूर्वोत्तर में अशांति ही बनी रहे. फिल्म में एक किरदार का संवाद-‘‘शांति एक व्यक्तिपरक परिकल्पना है. ‘‘बहुत कुछ कह जाता है.

1947 में भारत को आजादी मिलने के साथ ही हमसे ही अलग होकर पाकिस्तान बना था. उस वक्त कई छोटे छोटे राज्य भारत का हिस्सा बन गए थे. जम्मू व कश्मीर धारा 370 के साथ भारत से जुड़े थे और पूर्वोत्तर के सात राज्य धारा 371 के तहत भारत के साथ जुड़े. पर आजादी के ेबाद से ही कश्मीर में आतंकवादी व अलगाव वादी संगठन हावी रहे हैं,जिन्हे पाकिस्तान का साथ भी मिलता आ रहा है. कश्मीर में जो कुछ होता रहता है,उसकी खबरें हिंदू मुस्लिम के नाम पर काफी प्रचारित की जाती रही हंै. अब कश्मीर से धारा 370 खत्म हो गयी है. तो वही आजादी के बाद से ही पूर्वोत्तर राज्यों मंे भी अलगाव वादी सक्रिय हैं. वहां पर आए दिन हिंसा होती रहती है. कश्मीर के मुकाबले पूर्वोत्तर राज्यांे की जनता की समस्याएं अलग हैं. उन्हे अलगाव वादियों की यातनाएं तो सहन करनी ही पड़ती ै,साथ में उन्हे हर दिन नस्लीय भेदभाव का भी सामना करना पड़ता. भारत के ेदूसरे राज्यों के लोग उन्हे भारतीय की बजाय चीनी कह कर ज्यादा संबोधित करते हैं. इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों की जमीन हकीकत क्या है,वहा कौन सा अलगाव वादी गुट ड्ग्स व अन्य अवैध ध्ंाधों से जुड़ा हुआ है,इसकी भी खबरें पूरे देश के लोगों तक नही पहुॅच पाती है. यदि यह कहा जाए कि पूर्वाेत्तर के सात राज्य वास्तव में भारत से अलग थलग पड़े हुए हंै,तो शायद गलत नहीं होगा. कश्मीर की तरह पूर्वोत्तर राज्य सदैव मीडिया की सूर्खियांे में नही रहते.  अनुभव सिन्हा ने अपनी फिल्म ‘अनेक’ में पूर्वोत्तर राज्यों की जमीनी सच्चाई को उजागर करने का एक प्रयास किया है.  यह फिल्म पढ़े लिखे व राजनीतिक रूप से जागरूक लोगों के दिलों को झकझोरती है,मगर ना समझ व पूर्वोत्तर राज्यों से पूरी तरह से अनभिज्ञ दर्शकों को यह फिल्म बोर लग सकती है.

कहानी

पूर्वोत्तर भारतीय मुक्केबाज एडो ( एंड्रिया केविचुसा) राष्ट्रीय टीम में एक स्थान अर्जित करने का सपना देख रही है,मगर वह देश के उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है,जहां  उसके अपने लोग हर दिन नस्लीय दुव्र्यवहार सहते हैं. भारतीय अधिकारी ऐडोे की बजाय हरियाणा की लड़की के पक्ष मे हैं,क्योकि एडो ‘चीनी या चिंकी नजर आती ैहै, जबकि हरियाणवी लड़की भारतीय नजर आती है. पर एडो का कोच हार नही मान राह.  एडो के स्कूल शिक्षक पिता वांगनाओ (मिफाम ओत्सल) सरकारी बलों के खिलाफ एक विद्रोही समूह जॉनसन का गुप्त रूप से नेतृत्व कर रहे हैं,जो अपनी सांस्कृतिक पहचान को छीनने से बचाना चाहते हैंपर पिता की इस सच्चाई से एडो अनभिज्ञ है. . इनके बीच भारत सरकार का एक अंडरकवर एजेंट अमन उर्फ जोशुआ (आयुष्मान खुराना) खड़ा होता है,जो अपनी वफादारी की परीक्षा देता है.  वह गांव वालों के बीच घुलमिल जाता है. उसका वांगनाआके केघर आना जाना है. मुक्केबाज एडो उससे प्यार करने लगती है, जिसका जोशुआ फायदा उठाता रहता है.

जोशुआ पूर्वोत्तर के अलगाववादी जनजातियों के दो युद्धरत गुटों के बीच शांति समझौता करने की कोशिश कर रहा है. जोशुआ ने वांगनाओं पर नजर रखने के लिए ही युवा महिला मुक्केबाज ऐडो से प्यार @दोस्ती का नाटक कर रहा है.  जोशुआ की योजना वांगनाओं को बड़ी मछली टाइगर सांगा के खिलाफ खड़ा करना है.  टाइगर और जॉनसन दोनों आतंकवादी गुट हैं और अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त हैं. यह दोनों अवैध रूप से टोल एकत्र करने,हथियार के कारोबार,हिंसा से लेकर ड्ग्स के ध्ंाधे में लिप्त हैं. जोशुआ भी ड्रग्स और बंदूकों की आपूर्ति करने के लिए मैदान में उतरकर उन्ही के बीच का होने की बात साबित करने में सफल हो जाता है.

इधर टाइगर सांगा एक लंबा टीवी साक्षात्कार देता है. जिसकी वजह से भारत सरकार,मंत्री व दिल्ली पुलिस सक्रिय होती है. भारत सरकार की तरफ से मध्यस्थता करने की जिम्मेदारी कश्मीर निवासी अबरार बट्ट (मनोज पाहवा ) को दी जाती है. टाइगर सांगा से बात होती है. अब्रारर इस बात वर अडिग है कि भारतीय ंसंविधान व भारतीय झंडा रहेगा. टाइगर सांगा उन्हें 1940 के दशक में किए गए कुछ वादों की याद दिलाते हुए भारत सरकार पर उन पर मुकरने का आरोप लगाते हैं. तब अब्ररार ‘जॉनसन’ के नाम को मोहरा के तौर पर उपयोग करते है. लोग इस बात से अनजान हैं कि ‘जॉनसन‘ एक छद्म नाम है, जिसे भारत ने टाइगर सांगा की ताकत पर लगाम लाने के लिए प्रेरित किया है.

उधर अबरार बट्ट ने अमन उर्फ जोशुआ के खिलाफ भी कुछ लोगों को लगा रखा है,जो उन्हे खबर करते हंै कि अमन तो एडो के प्यार में है. तब उसके हर कदम पर निगरानी की जाने लगती है. अमन के फोन टेप किए जाने लगते हैं. इस बीच वांगनाओं मैम्यार जा चुका है. उसे हमेशा के लिए खत्म करने के लिए सैनिक कमांडो की टुकड़ी के साथ अमन को भेजा जाता है. अमन अपने एक अन्य साथी की मदद से अबरार की इच्छा के विपरीत वांगनाओं को गिरफ्तार कर दिल्ली ले आता है. और भारत सरकार को टाइगर सांगा के आपराधिक होने के ढेर सारे सबूत भी देता है.

लेखन व निर्देशन

अनुभव सिन्हा इससे पहले ‘आर्टिकल 15’ व ‘मुल्क’ सहित कई बेहतरीन फिल्में बना चुके हैं. मगर ‘अनेक’ कई जगहों पर राजनीतिक व्याख्यान या भारत में अलगाववादी आंदोलनों पर प्रवचन की तरह लगती है. फिल्म एक साथ उन दो प्रश्नों से निपटता है,जिन्होंने कई समावेशी भारतीय विचारकों को परेशान किया हैः एक भारतीय कौन है? और दूसरा क्या राज्यों को उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर पहचानना सही है, जब उन्हें मध्य भारत या उत्तर भारत की स्थिति से देखा जाए? फिल्म में हिंसा व खूनखराबा कुछ ज्यादा ही भर दिया गया है. बेवजह दो गुटों या पुलिस बल व अलगाव वादियों के बीच मुठभेड़ के लंबे लंबे दृश्य ठूॅंसकर फिल्म की लंबायी बढ़ा दी गयी है. फिल्म को एडिट टेबल पर कसे जाने की जरुरत है. कहानी के स्तर पर नयापन इतना ही है कि लोग समझ सकेंगे कि पूर्वाेत्तर राज्यों की समस्या कितनी विकराल रूप ले चुकी है. फिल्म में मुक्केबाजी की प्रतियोगिता के दौरान जब हरियाणा की बॉक्सर एडा से कहती हैं कि इंडिया तेरे बाप का है तो एडा  उसे पंच मारकर कहती हैं कि इंडिया किसी के बाप का नहीं हैं.  इंडिया सबका है. यही वह बात है,जिसे हर भारतीय को समझाने के लिए फिल्मकार ने यह फिल्म बनायी है. मगर फिल्म की गति धीमी और सब कुछ बहुत नीरस है.

बतौर निर्देशक अनुभव सिन्हा ने बेहतरीन काम किया है. वह एक ऐसे विषय पर फिल्म लेकर आए हैं,जिस पर ज्यादा से ज्यादा काम किया जाना चाहिए. उन्होने फिल्म के लिए कलाकारों का चयन भी एकदम सटीक ही किया है. लेकिन अनुभव सिन्हा ने फिल्म की शुरूआत बहुत गलत ढंग से की है. फिल्म की शुरूआत होती है,एक नाइट क्लब से जहां से नायिका एडो को गिरफ्तार किया जाता है.  जबकि उसकी कोई गलती नही है. ऐसा महज नाइट क्लब चलाने वाले व पुलिस के बीच आपसी मतभेद के कारण किया जाता है. इसके अलावा

बतौंर फिल्म सर्जक अनुभव सिन्हा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह अपनी फिल्म में सवाल उठाते हैं,मगर किसी भी बात का स्पष्ट कारण नही बताते. जब आप पूर्वोत्तर राज्यों के गुरिल्ला लड़ाकों के खिलाफ खुलकर नहीं हैं, तो एक वैध स्पष्टीकरण जरूरी है. ृृयह फिल्म राष्ट्र और उत्तर पूर्व के नेताओं के बीच संघर्ष के पीछे के कारण को उचित स्पष्टीकरण देने में विफल रहती है. क्या विचारधाराएं हैं, क्या मांगें हैं, किससे लड़ रहे हैं?

भारत सरकार द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के साथ तिस तरह का छलावा किया जाता रहता है,उसी छलावे के प्रतीक स्वरूप फिल्मकार ने एडा और जोशवा की प्रेम कहानी को छलावा के रूप में पेश किया है.

फिल्म का नाम भी भ्रामक ही है.  फिल्म के नाम से फिल्म का विषय स्पष्ट नही होता.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो लीक से हटकर फिल्में करते आ रहे अभिनेता आयुश्मान खुराना ने इस फिल्म में अमन उर्फ जोशुआ का किरदार निभाया है. मगर  वह एक्शन दृश्यों में बुरी तरह से मात खा गए हैं. पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों का दर्द अवश्य आयुश्मान ख्ुाराना की झुंझलाहट से साफ तौर पर उजागर होती है. वह गंभीर दृश्यों मेंं ज्यादा जमते हैं. फिल्म के अबरार बट्ट के किरदार में मनोज पाहवा में काफी संजीदा व सधा हुआ अभिनय किया है. कई दृश्यों में वह भारत के सुरक्षा सलाहकर अजीत दोवाल की याद दिलाते हैं. जबकि मंत्री के किरदार में कुमुद मिश्रा का अभिनय जानदार है. उनकी मुस्कान बहुत कुछ कह जाती है. अबरार के निर्देश पर जोशोआ उर्फ अमन की राह में रोड़ा बनने वाले तेलंगाना राज्य से आने वाले एजेंट के किरदार में जेडी चक्रवर्ती  का अभिनय ठीक ठाक है. भारत के लिए मुक्केबाजी करने के लिए आतुर उत्त्र पूर्व राज्य की एडा के किरदार में एंड्रिया केविचुसा का अभिनय शानदार है. उसके चेहरे से नस्लीय भेदभाव के दर्द को समझा जा सकता है. पवलीना हजारिका के किरदार में दीप्लिना डेका ने कमाल का अभिनय किया है. वह दर्शकों को अंत तक याद रह जाती हैं. शोवन जमान,राज सिंह, अजी बगरिया, शारिक खान, हनी यादव, मुबाशीर बशीर बेग, अमीर हुसैन आशिक और लोइटोंगबाम दोरेंद्र का अभिनय ठीक ठाक है.

ये भी पढ़ें- Sidhu Moose Wala की हत्या सेलेब्स ने जताया दुख, कही ये बात

मलाल रिव्यू: शानदार अभिनय के साथ कमजोर फिल्म

रेटिंगः दो स्टार
निर्माताः संजय लीला भंसाली, महावीर जैन,भूषण कुमार व किशन कुमार
निर्देशकः मंगेश हड़वले
कलाकारः शरमिन सहगल, मीजान जाफरी, समीर धर्माधिकारी,अंकुर बिस्ट व अन्य
अवधिः दो घंटे, 17 मिनट

2004 की सफल तमिल फिल्म ‘‘ सेवन जी रेनबो कालोनी’’ की हिंदी रीमेक फिल्म ‘‘मलाल’’ नब्बे के दशक की प्रेम कहानी है, मगर फिल्मकार ने इस प्रेम कहानी में नब्बे के दशक में मुंबई में महाराष्ट्रियन बनाम उत्तर भारतीय का जो मुद्दा था, उसे जबरन ठूंसने का प्रयास कर फिल्म को तबाह कर डाला. लेखक व निर्देशक ने अपनी गलती से फिल्म को इतना तबाह किया कि इस फिल्म से करियर की शुरूआत कर रहे शरमिन सहगल और मीजान जाफरी भी अपने बेहतरीन अभिनय से फिल्म को नहीं बचा सके.

इतना ही नहीं फिल्म ‘‘मलाल’’ के निर्माता, सह पटकथा लेखक व संगीतकार संजय लीला भंसाली हैं. मगर ‘मलाल’से भंसाली की प्रेम कहानी प्रधान फिल्मों में मौजूद रहने वाला गहरा व जटिल प्यार तथा भव्यता गायब है. प्यार इंसान को तबाही या उंचाई पर ले जा सकता है, इस मुद्दे को भी फिल्मकार गंभीरता से पेश नहीं कर पाएं.

कहानीः
फिल्म की कहानी नब्बे के दशक में मुंबई के महाराष्ट्रियन बाहुल्य इलाके में क्रिकेट मैच से शुरू होती है. इस क्रिकेट मैच में राजनेता सावंत (समीर धर्माधिकारी) की टीम जब हार के कगार पर पहुंच जाती है, तो सावंत के इशारे पर उनके सहयोगी जाधव अम्पायर को इशारा करते हैं और सावंत की टीम एक रन से मैच जीत जाती है, मगर विरोधी टीम की तरफ के खिलाड़ी शिवा मोरे (मीजान जाफरी) को अम्पायर के गलत निर्णय पर गुस्सा आता है और वह अम्पायर की जमकर पिटाई करता है. जिसे देख सावंत अपनी टीम की हार स्वीकार कर ट्राफी शिवा मोरे को दिलाते हैं. सावंत, जाधव से कहते हैं कि शिवा को आफिस में मिलने के लिए बुलाया जाए, क्योंकि यह उनके काम का है. शिवा ट्राफी लेकर जब चाल के अपने घर में जाता है, तो सीढ़ियों पर उसकी मुठभेड़ आस्था त्रिपाठी (शरमिन सहगल) से होती है, जो कि उसी चाल में प्रोफेसर भोसले के मकान में किराए पर अपने माता-पिता व छोटे भाई के साथ रहने आयी है. आस्था के पिता अमीर थे और शेयर बाजार में बहुत बड़े दलाल थे. मगर शेयर बाजार में ऐसा नुकसान हुआ कि उन्हे चाल में किराए पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. स्टौक शिवा मोरे चाल में रहने वाला टपोरी किस्म का बदमाश महाराष्ट्रियन लड़का है, जिससे उसके माता पिता भी परेशान रहते हैं. मगर सावंत, शिवा से कहता है कि उसे तो अपने मराठी माणुस की मदद करनी चाहिए और उत्तर भारतीयों को भगाना चाहिए. इससे शिवा को जोश आ जाता है और वह फोन करके प्रोफेसर भोसले से कहता है कि वह एक उत्तर भारतीय को अपना चाल का घर किराए पर देकर अच्छा नही कर रहा हैं. इस पर प्रोफेसर भोसले उसे डांट देता है. शिवा की मां सहित चाल में रह रहे सभी निवासी आस्था व उसके परिवार के साथ अच्छे संबंध जोड़ लेते हैं, मगर शिवा उसे पसंद नहीं करता. सीए की पढ़ाई कर रही आस्था चाल में रह रहे सभी बच्चो को छत पर ट्यूशन पढ़ाने लगती है, ट्यूशन पढ़ने वालों मे शिवा की बहन भी है.

ये भी पढ़ें- धूमधाम से हुआ सांसद नुसरत जहां का वेडिंग रिसेप्शन, देखें फोटोज

एक दिन शिवा अपने बदमाश दोस्तों के साथ शराब की बोटलों के साथ छत पर पहुंचते हैं. आस्था के साथ उसका विवाद होता है. आस्था कहती है कि वह इंडियन है और मुंबई भी इंडिया है,  इसलिए यहां हर इंडियन को रहने का हक है. उसके बाद आस्था मराठी भाषा में शिवा को जवाब देती हैं, जिससे शिवा सारा टपोरीपना गायब हो जाता है और वह आस्था को दिल दे बैठता है. अब शिवा, सावंत से भी दूरी बना लेता है. इधर आस्था के माता पिता उसकी शादी विदेश से पढ़ाई करके लौटे अमीर लड़के आदित्य से तय कर देते हैं. जबकि शिवा, आस्था को टूटकर चाहने लगता है और शिवा की जिस बुराई को आस्था पसंद नही करती, वह सारी बुराइयां वह छोड़ने लगता है. धीरे-धीरे शिवा मारा-मारी करना, शराब पीना, सिगरेट पीना छोड़ देता है.

आस्था के प्यार में शिवा अपनी जिंदगी की दिशा व दशा दोनों बदल देता है. एक दिन आस्था अपने माता-पिता के सामने शिवा से स्वीकार करती है कि वह शिवा से बहुत प्यार करती है, मगर उससे ज्यादा प्यार वह अपने पिता से करती है. पिता के आदेश के चलते वह शादी सिर्फ आदित्य से करेगी. यानी कि प्यार पर कर्तव्य भारी पड़ जाता है. आस्था एक मशहूर शेयर ब्रोकर के यहां शिवा को नौकरी दिलवा देती है, बैंक में उसका खाता खुलवा देती है, उसके बाद वह शिवा के साथ अपनी सहेली के घर में कुछ समय बिताती है. वापसी में शिवा कहता है कि वह आस्था के पिता को मनाने का प्रयास करेगा. मगर कहानी कुछ अलग ही रूप ले लेती है.

लेखन व निर्देशनः
फिल्म ‘‘मलाल’ देखकर इस बात का अहसास ही नहीं होता कि इसका निर्देशन 11 वर्ष पहले राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त दिल को छू लेने वाली मराठी भाषा की फिल्म ‘‘टिंग्या’’ का निर्देशन करने वाले निर्देशक मंगेश हडवले ने किया है. फिल्मकार ने कहानी 1998 में शुरू करते हुए उस वक्त मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ शिवसेना का जो रूख था, उसे चित्रित किया, मगर पांच मिनट बाद ही फिल्मकार यह मुद्दा पूरी तरह से भूल गए. पांच मिनट पूरी फिल्म में कहीं भी नेता सावंत नजर नहीं आए. इंटरवल से पहले फिल्म बहुत बेकार है. इंटरवल से पहले फिल्मकार ने बेवजह ही डांस व एक्शन सीन्स भरे हैं. मगर इंटरवल के बाद सही मायनों में प्रेम कहानी शुरू होती है. पर जरुरत से ज्यादा मेलोड्रामा है.

फिल्मकार महाराष्ट्रियन परिवेश और चाल के जीवन का यथार्थ चित्रण करने में जरुर सफल रहे हैं. यूं तो यह एक तमिल फिल्म का रीमेक है, मगर दर्शक को फिल्म देखते हुए ‘‘तेरे नाम’’ सहित कुछ पुरानी फिल्मों की याद आ जाती है. फिल्म के कुछ संवाद हालिया रिलीज फिल्म ‘‘कबीर सिंह’’ की याद दिला देते हैं.

ये भी पढ़ें- अफेयर की खबरों के बीच मिजान की फिल्म देखने पहुंचीं नव्या नवेली

अभिनयः

महाराष्ट्रियन टपोरी किस्म के बदमाश या यूं कहें कि गुंडे किस्म के शिवा के किरदार को परदे पर जीवंत करने में मीजान काफी हद तक सफल रहे हैं. उनके चेहरे पर गम, दर्द व प्यार के भाव भी बाखूबी उभरते हैं. एक्शन सीन हो या इमोशनल या फिर रोमांस का मसला हो हर जगह मीजान प्रभावित करते हैं. डांस में उन्हे अभी थोड़ी और मेहनत करने की जरुरत है. आस्था के किरदार के साथ शरमिन सहगल ने भी न्याय किया है. वह मासूम व सुंदर नजर आयी हैं. लेकिन कमजोर पटकथा व कमजोर चरित्र चित्रण के चलते इन दोनों की प्रतिभा भी ठीक से उभर नहीं पाती. समीर धर्माधिकारी ने यह फिल्म क्यों की, यह बात समझ से परे हैं.

फिल्म खत्म होने के बाद दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है, उसकी समझ में नहीं आता कि आखिर फिल्म बनाई ही क्यो गयी?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें