यह भेदभाव नहीं चलेगा

देश में गरीब-अमीर की खाई को चौड़ा करने के लिए हर शहर में पते के अनुसार वर्ग भेद कर लिया गया था. एक जमाने में एक ही गली में छोटे और बड़े मकान हुआ करते थे पर अब लगभग हर शहर में या उपशहर में अमीरों के इलाके अलग हैं, मध्यवर्गों के अलग, गरीबों के अलग, मजदूरों के अलग. इन में भी धर्म और जाति का भेदभाव था. अब ऊंचे घरों की औरतों का गरीबों से संबंध केवल घरेलू नौकरों तक सीमित रह गया है. अब तो सब्जी वालों की दुकानें भी मौलों में खुलने लगी हैं जहां गरीब सब्जी वाला या सब्जी वाली नहीं दिखती.

इस वर्ग भेद का मतलब यह भी है कि ऊंचों के इलाके साफसुथरे, बड़ी गाडि़यों वाले,बागों से भरपूर दिखेंगे. वहां हर घर या सोसायटी के बाहर चौकीदार की कोठरी होगी, मार्केट्स दूर होंगी, ज्यादातर गेटड इलाके होंगे. सफाई वाले नियमित दिखेंगे, मकान लिपेपुते होंगे. लगेगा ही नहीं कि ये गरीब देश के हिस्से हैं. विदेशों से जो भारतीय लौट कर आए हैं या जो विदेशी भारत में रह रहे हैं वे यहीं रहते हैं.

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पर अब गंदगी जमीनों और सड़कों से उठ गई है. प्रदूषण ने सारे शहरों पर कब्जा कर लिया. अमीरगरीब का भेद खत्म कर दिया है. जो गंदी हवा अब गरीबों की बस्ती में मिल रही है वही अमीरों की बस्ती में है. प्रदूषण अद्भुत इक्वेलाइजर हुआ है. कामवालियां अब खांसते हुए घर में आती हैं, तो मालकिन भी उसी तरह खांस और हांफ रही होती है. खुला आसमान तो है ही नहीं तो पेड़ों से ढकी सड़कों का क्या लाभ?

प्रदूषण को कोसने वाले भूल रहे हैं कि इस देश की 90% जनता तो हमेशा ही प्रदूषण  झेलती रही है, कभी जमीनी तो कभी हवा का. अब प्रकृति ने बदला लिया है. उस ने कहा है कि उस के लिए सब बराबर हैं. यह ऊंचनीच रखो अपने पास. वह सब को सताएगी बराबर सा.

केरल, पटना, मुंबई, चेन्नई में यही वर्षा के पानी ने किया था जब भयंकर बारिश ने अमीरों की बस्तियों को भी डुबो दिया था और गरीबों की बस्तियों को भी. ग्लोबल वार्मिंग से हो सकता है कि अगली गरमियों में मेम साहबें भी फेल होते एअरकंडीशनरों और बंद होती बिजली की मार  झेलें और गरीब भी. प्रकृति ने सबक सिखा दिया है कि यह नकली भेदभाव नहीं चलेगा.

अगर प्रदूषण से बचना है तो साहबों और मेम साहबों दोनों को आम लोगों की सुध लेनी होगी. उन्हें नकार या इग्नोर कर के देश, समाज, दुनिया नहीं चल सकती. प्रदूषण एक से दूसरे शहर, एक से दूसरे देश में जा रहा है. वह पहाड़ों को पार कर रहा है, समुद्र लांघ रहा है. उस की मार से बचना है तो हरेक का खयाल रखना ही होगा.

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कुछ लोग भले हरी टीशर्ट पहन कर मुंह पर मास्क लगा कर हवा में  झाड़ू ले कर सड़कें साफ कर के या सिक्युरिटी एजेंसियों और कैमरों की भीड़ के साथ समुद्रतट पर कूड़ा बटोर कर वाहवाही लूट लें पर मिस पौल्यूशन को खुश नहीं कर सकते. इस के लिए तो गरीबों, मध्यवर्गों और अमीरों सब को कंधे से कंधा मिला कर चलना होगा. पर यह कहीं संभव नहीं है. रंग, जाति, धर्म, मूल स्थान का भेदभाव भी रहेगा, पैसे का भी, सुंदरता का भी और इसीलिए मिस पौल्यूशन वैंप बनी रहेगी, प्रेमिका नहीं बनेगी.

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