देश में गरीब-अमीर की खाई को चौड़ा करने के लिए हर शहर में पते के अनुसार वर्ग भेद कर लिया गया था. एक जमाने में एक ही गली में छोटे और बड़े मकान हुआ करते थे पर अब लगभग हर शहर में या उपशहर में अमीरों के इलाके अलग हैं, मध्यवर्गों के अलग, गरीबों के अलग, मजदूरों के अलग. इन में भी धर्म और जाति का भेदभाव था. अब ऊंचे घरों की औरतों का गरीबों से संबंध केवल घरेलू नौकरों तक सीमित रह गया है. अब तो सब्जी वालों की दुकानें भी मौलों में खुलने लगी हैं जहां गरीब सब्जी वाला या सब्जी वाली नहीं दिखती.

इस वर्ग भेद का मतलब यह भी है कि ऊंचों के इलाके साफसुथरे, बड़ी गाडि़यों वाले,बागों से भरपूर दिखेंगे. वहां हर घर या सोसायटी के बाहर चौकीदार की कोठरी होगी, मार्केट्स दूर होंगी, ज्यादातर गेटड इलाके होंगे. सफाई वाले नियमित दिखेंगे, मकान लिपेपुते होंगे. लगेगा ही नहीं कि ये गरीब देश के हिस्से हैं. विदेशों से जो भारतीय लौट कर आए हैं या जो विदेशी भारत में रह रहे हैं वे यहीं रहते हैं.

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पर अब गंदगी जमीनों और सड़कों से उठ गई है. प्रदूषण ने सारे शहरों पर कब्जा कर लिया. अमीरगरीब का भेद खत्म कर दिया है. जो गंदी हवा अब गरीबों की बस्ती में मिल रही है वही अमीरों की बस्ती में है. प्रदूषण अद्भुत इक्वेलाइजर हुआ है. कामवालियां अब खांसते हुए घर में आती हैं, तो मालकिन भी उसी तरह खांस और हांफ रही होती है. खुला आसमान तो है ही नहीं तो पेड़ों से ढकी सड़कों का क्या लाभ?

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