रोहित: क्या सुधर पाया वह

हमेशा की तरह आज भी स्टाफरूम में चर्चा का विषय था 9वीं कक्षा का छात्र रोहित, जिस की दादागीरी से उस के सहपाठी ही नहीं बल्कि अन्य कक्षाओं के छात्रों सहित टीचर्स भी परेशान थे. प्राचार्य भी उस की शिकायत सुनसुन कर परेशान हो गए थे. न जाने कितनी बार उसे अपने औफिस में बुला कर हर तरह से समझाने की कोशिश कर चुके थे, पर नतीजा सिफर ही था.

रोहित पर किसी भी बात का कोई असर नहीं होता था. उस के गलत आचरण को निशाना बना कर उस पर कोई कड़ी कार्यवाही भी नहीं की जा सकती थी कारण कि वह फैक्टरी मजदूर यूनियन के प्रमुख का बेटा था और उन से सभी का वास्ता पड़ता रहता था. कैमिस्टरी की टीचर संगीता को देखते ही बायोलौजी टीचर मीना ने कहा, ‘‘मैडम, इस बार तो 9वीं कक्षा की क्लास टीचर आप होंगी. संभल कर रहिएगा, रोहित अपने आतंक से सभी को परेशान करता रहता है.’’

‘‘कोई बात नहीं मिस. हम उसे देख लेंगे. है तो 15 साल का किशोर ही न. उस से क्या परेशान होना. आप तो बायोलौजी से हैं. आप को पता ही होगा, इस उम्र के बच्चों के शरीर में न जाने कितने हारमोनल बदलाव होते रहते हैं. अगर सभी तरह के वातावरण अनुकूल नहीं हुए तो नकारात्मक प्रवृत्तियां घर कर लेती हैं. समय पर अगर उन्हें हर प्रकार की भावनात्मक मदद व प्रोत्साहन मिले तो वे अपनेआप ही अनुशासित हो जाते हैं.’’

‘‘ठीक है मैम. लेकिन उस पर उद्दंडता इतनी हावी है कि उस का सुधरना नामुमकिन है.’’

मैथ्स के सर भी चुप नहीं रहे, ‘‘जो भी हो मैडम, पर मैथ्स में उस का दिमाग कमाल का है. कठिन से कठिन सवाल को चुटकियों में हल कर लेता है. पता नहीं अन्य विषयों में उस के इतने कम अंक क्यों आते हैं?’’

‘‘डिबेट वगैरा में तो अच्छा बोलता है. बस, उसे टोकाटाकी अच्छी नहीं लगती. हां, यह अलग बात है कि वह बस में खिड़की के पास बैठने के लिए हमेशा मारपीट पर उतर आता है. वहां बैठे टीचर्स की भी उसे कोई परवा नहीं रहती.’’

‘‘मैं ने तो न जाने कितनी बार उसे लड़कियों की ओर कागज के गोले फेंकते पकड़ा है, जिन में अनर्गल बातें लिखी रहती हैं,’’ हिंदी वाले सर बोले. हिंदी वाले सर की बात को काटते हुए संगीता मैम ने कहा, ‘‘छोडि़ए सर, अब उस आतंकवादी को मुझे देखना है,’’ कहते हुए वे स्टाफरूम से निकल गईं. 9वीं कक्षा में क्लास टीचर के रूप में संगीता मैम का आज पहला दिन था. वे अटैंडैंस ले रही थीं कि अचानक उन्हें लगा जैसे अभीअभी कोई क्लास में आया हो.

‘‘क्लास में कौन आया है अभी?’’ संगीता मैम ने पूछा, लेकिन कोई उत्तर न पा कर दोबारा बोलीं, ‘‘जो भी अभी आया है खड़ा हो जाए.’’ प्रत्युत्तर में रोहित को खड़ा होते देख कर संगीता मैम ने कहा, ‘‘रोहित, तुम क्लास से बाहर जाओ और आने की आज्ञा ले कर क्लास में आओ.’’ रोहित ने इसे अपनी बेइज्जती समझा. उस ने क्रोध भरी नजरों से संगीता मैम को देखा और दरवाजे को जोर से बंद करते हुए बाहर चला गया. क्लास समाप्ति की घंटी बजते ही संगीता मैम बाहर आईं तो उन्होंने रोहित को बाहर खड़ा पाया. उसे कैमिस्टरी लैब में आने को कहते हुए वे आगे बढ़ गईं. उम्मीद तो नहीं थी कि रोहित उन के कहने पर वहां आएगा, लेकिन अपने आने से पहले रोहित को वहां पर देख कर वे मुसकरा उठीं.

‘‘अच्छा रोहित, मुझे यह बताओ कि तुम क्लास में फिर क्यों नहीं आए? इस से तो तुम्हारा ही नुकसान हुआ न. आज मैं ने ‘औरगैनिक कैमिस्टरी, कैमिस्टरी की कौन सी ब्रांच है, इस की क्या उपयोगिता है?’ नामक पाठ पढ़ाया है. अब तुम्हें कौन समझाएगा? अनुशासित हो कर पढ़ने के लिए बच्चे स्कूल आते हैं. सभी टीचर्स को तुम से कोई न कोई शिकायत है. तुम ऐसे क्यों हो? क्यों इतनी उद्दंडता पर उतर आते हो? घर में अपने मम्मीपापा के साथ भी ऐसे ही करते हो क्या?’’ कहते हुए संगीता मैम ने उस की पीठ क्या सहलाई रोहित रो पड़ा. संगीता मैम ने उसे पहले जीभर कर रोने दिया. फिर जब उस के मन का सारा गुबार निकल गया तो उन्होंने रोहित को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘संकोच की कोई बात नहीं है रोहित. अपने मन की बात कहो. जो भी दुख है उसे बाहर निकालो. तुम्हारी जो भी समस्या है तुम बेझिझक मुझ से कह सकते हो. यहां कोई नहीं है तुम्हें कुछ कहने वाला. तुम्हारा मजाक कम से कम मैं तो नहीं उड़ाऊंगी. इतना विश्वास तुम मुझ पर कर सकते हो.’’

आज तक किसी टीचर ने उस की दुखती रग पर हाथ नहीं रखा था. उन सभी से डांटफटकार के साथ आतंकवादी की उपाधि पा कर वह दिनोदिन उद्दंड होता ही गया. आज पहली बार किसी ने उस के असामान्य व्यवहार का कारण पूछा तो वह भी स्वयं को रोक नहीं पाया. संगीता मैम का प्यार एवं विश्वास भरा आश्वासन पाते ही वह सबकुछ उगलने लगा.

‘‘घर में हम दोनों भाइयों को देखने वाला है ही कौन मैम. जब से होश संभाला मम्मीपापा को हमेशा झगड़ते हुए ही पाया. प्यारदुलार के बदले उन दोनों का क्रोध हम दोनों भाइयों पर कहर बन कर टूटता रहा है. अकारण ही हम भी उन की गालियों का शिकार हो जाते हैं. घर का ऐसा माहौल है कि हंसना तो दूर की बात है, हम खुल कर सांस भी नहीं ले पाते. मम्मीपापा का प्यार हम दोनों ने आज तक जाना नहीं,’’ कहता हुआ रोहित सुबकने लगा. रोहित के बारे में जान कर संगीता मैम को बहुत दुख हुआ. वे उस दिन स्कूल से ही रोहित के घर गईं और अपने अनगिनत प्रश्नों के घेरे में उस के मम्मीपापा को खड़ा कर के समझाते हुए उन की भर्त्सना की. बच्चों के भविष्य का वास्ता दिया, तो उन दोनों ने भी अपने सुधरने का आश्वासन दे कर संगीता मैम को निराश नहीं किया.

दूसरे दिन सर्वसम्मति से रोहित को क्लास मौनीटर बनाते हुए संगीता मैम ने उसे ढेर सारी जिम्मेदारी सौंप दी. फिर तो रोहित के अंतरमन से वर्षों का दबा हीनभावना का सारा अंधकार जाता रहा. अब आत्मविश्वास की ज्योति से जगमगाते हुए एक नए रोहित का जन्म हुआ. देखते ही देखते सब टीचर्स का मानसम्मान करता वह सब का प्रिय बन गया. संगीता मैम ने भी ऐसे चमत्कार की उम्मीद नहीं की थी. हर साल लुढ़क कर पास होने वाला रोहित अब क्लास में ही नहीं स्कूल की भी सारी गतिविधियों में प्रथम आ कर सब को आश्चर्यचकित करने लगा था. ‘यूथ पार्लियामैंट’ नामक एकांकी में प्रधानमंत्री की भूमिका निभा कर वह सारे जोन में प्रथम आया. दिल्ली के मावलंकर सभागार में उसे पुरस्कृत किया गया. सारे अखबार, टीवी चैनल्स पर वह न जाने कितने दिन तक छाया रहा.

‘‘अरे भाई, रोहित तो हमारे स्कूल का बड़ा होनहार छात्र है,’’ जो टीचर्स उस की शिकायतें करते नहीं थकते थे उन की जबान पर अब यही शब्द थे. रोहित के मम्मीपापा के पैर तो जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. वे संगीता मैम को धन्यवाद देते नहीं थक रहे थे. स्कूल को सभी तरह से गौरवान्वित करता रोहित अब सब का प्रिय छात्र बन गया था.

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