सच के फूल: क्या हुआ था सुधा के साथ

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सच के फूल- भाग 4: क्या हुआ था सुधा के साथ

रमाकांत न्यूज देख रहे थे. वह जा कर चुपचाप वहां खड़ी हो गई. उन्होंने एक बार उसे देखा और न्यूज देखने लगे. वह फिर भी खड़ी रही. जब देर तक पापा ने कुछ नहीं कहा तब वह उन के पास चली गई और धीरे से बोली, ‘‘पापा.’’

रमाकांत ने सिर उठा कर देखा तो वह बोली, ‘‘पापा मैं कुछ कहना चाहती हूं.’’

‘‘अब कहने को क्या रह गया है?’’

व नाराज हो उठने ही वाले थे कि सुधा ने दौड़ कर पापा के पैर पकड़ लिए, ‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए. मुझ से बहुत भारी भूल हो गई पापा.’’

सुधा के रोने की आवाज सुन कर मां और दीपू दोनों पास आ कर खडे़ हो गए. सुधा जोरजोर से रो रही थी और बोल रही थी, ‘‘पापा एक बार मुझे माफ कर दीजिए. अब मैं वही करूंगी जो आप लोग कहेंगे. मुझे पता है मैं ने आप सभी लोगों का दिल दुखाया है. इस भूल के लिए मैं दिल से माफी मांगती हूं. विश्वास कीजिए अब मैं एक अच्छी बेटी…’’

रोतेरोते सुधा बेहोश हो गई. मां और पापा दोनों ने उसे पकड़ कर सोफे पर बैठाया. दीपू दौड़ कर पानी ले आया.

‘‘सुधा पानी पी लो,’’ सुधा को होश आया तो देखा पापा का हाथ सुधा के सिर के नीचे था. उस के आंख खोलने के बाद हटा लिया और उठ कर जाने लगे.

सुधा ने उन का हाथ पकड़ लिया और कातर स्वर में बोली, ‘‘पापा.’’

‘‘जाओ आराम करो… तबीयत खराब हो जाएगी,’’ बोल कर रमाकांत कमरे में चले गए.

सुधा ने मां से पूछा, ‘‘मां पापा बहुत नाराज हैं न.’’

‘‘देखो सुधा नाराजगी कोई केतली में गरम होता पानी तो नहीं न कि ढक्कन हटाए और भाप की तरह गुस्सा खत्म. पापा को तुम जानती हो उन के मन को ठेस लगी है समय लगेगा… पापा को थोड़ा समय देना होगा. जाओ सो जाओ वरना तबीयत खराब हो जाएगी.’’

सुधा बो िझल कदमों से अपने कमरे में चली गई. नींद नहीं आ रही थी पर अब वह  हताशा से थोड़ा उबर रही थी. पापा नाराज हैं पर अभी भी उतना ही प्यार करते हैं. वह कितनी बेवकूफ थी जो सबकुछ भूल कर उस धोखेबाज के साथ चल दी. कहीं गलती से शादी हो जाती तब? अब तो उस के बारे में सोचना भी गुनाह है. बस एक बार पापा माफ कर दें. कुदरत मेरे मांपापा को हमेशा खुश रखना, वह मन से प्रार्थना करने लगी.

सभी सामान्य होने की कोशिश कर रहे थे. सुधा को वापस आए अब कुछ समय हो गया था. एक दिन रात के खाने के समय रमाकांत ने सुधा से पूछा, ‘‘कितने दिनों तक कालेज नहीं जाना है.’’

‘‘अगर आप कहेंगे तभी जाऊंगी,’’ खुश हो कर सुधा ने धीरे से कहा, ‘‘कल आधार दे देना. नया नंबर लेना है,’’ सुधा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.वह कालेज जाने की बात से खुश थी.

सुबह तैयार हो कर पापा के साथ जाने को थी कि भारती आ गईं बोली, ‘‘कितने दिन मैं कालेज नहीं गई… मु झे अपने नोट्स दे देना.’’

सुधा क्या बोले. तब तक मां ने कह दिया, ‘‘यह भी नहीं जा पाई. पहले मेरी तबीयत खराब हो गई, फिर इस की. देखो न चेहरा कैसे सूख गया है.’’

मां देवी है कैसे बात संभाल लेती है. उसे अपनी मां पर गर्व हो रहा था. सुधा की मां के मन से चैन गायब हो गया था. मां को अभी मोबाइल देना नहीं जंच रहा था. थोड़ी निगरानी रखनी पडेगी. विश्वास रखना अच्छी बात है, लेकिन एकदम से खुला छोड़ देने में खतरा है. कहीं वह लड़का रास्ते में आया तब.

सुधा एक अच्छी लडकी थी. साफ मन की थी बस थोड़ी नादान बेवकूफ थी. इस उम्र में लड़कियां सपनों की दुनिया में रहती हैं. उन्हें वरदी वाला लड़का बहुत भाता है, फिर नौर्थ बिहार में तो आईएएस और आईपीएस का बड़ा बोलबाला होता है. हर मां सोचती है कि काश उस का दामाद आईएस या आईपीएस हो. उसी तरह हर लड़की का भी यही सपना रहता है.

सुधा उम्र के जिस दौर से गुजर रही थी उस में सपनों में जीने में मजा आता है. वह हकीकत की दुनिया से परे दुनिया है. कुछ लोग इस उम्र को बडे़ सलीके से लेते हैं. कुछ सपनों की दुनिया बना कर खुद को बरबाद कर डालते हैं. अब लीला देवी को सुधा के विवाह की चिंता सताने लगी. वह स्वयं कम शिक्षित थी. पहले मां की इच्छा थी कि वह सुधा को उच्य से उच्य शिक्षा दिलाए पर अब परिस्थितियां बदल गई थीं. मन में शंकाओं ने डेरा जमा लिया था कि कहीं वह लफंगा सुधा को हानि न पहुंचाने की कोशिश करे. सुधा की मां ने अपना फैसला सुना दिया.

सुधा का जीवन अब सामान्य हो चला था. वह अपने व्यवहार से सभी को संतुष्ट करने के प्रयास में सफल हो रही थी. वह सब से अधिक कालेज जाने से खुश थी. सुधा एक अच्छी छात्रा थी. अच्छे नंबरों से पास होती थी. वह अर्थशात्र में बी.ए. कर रही थी. उस का सपना प्रोफैसर बनने का था. परीक्षा भी नजदीक है. मात्र 2 महीने ही बचे हैं. बस एक बात उसे खटक रही थी कि मांपापा जल्दी उस की शादी कराना चाहते हैं. इतना सम झ में तो आ गया कि यह शीघ्रता किस कारण से हो रही है. मां तो उस के उच्य शिक्षा के पक्ष में थी. उस का मन कचोट उठा कि अभी तो उस का मन मांपापा के साथ रहने को कर रहा था.

वक्त बीतते देर नहीं लगती. सुधा की परीक्षा खत्म हो गई थी. खाली समय काटते नहीं कटता. पहले स्कैचिंग पेंटिंग का शौक था, लेकिन उस छिछोरे के कारण सबकुछ छूट गया था. उस ने स्कैचिंग फिर शुरू की. उस के पापा ने उसे स्कैच करते देखा तो लीला देवी की नाराजगी की परवाह न करते हुए उस का नाम पेंटिंग स्कूल में लिखा दिया.

विवाह के लिए लड़के की खोज जारी थी किसी परिचित ने एक अच्छा रिश्ता बताया. लड़का जमशेदपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर के बैंगलुरु में कार्यरत था. उस की एक बड़ी बहन है जिस की शादी हो चुकी है. वह कोलकाता में रहती है. मातापिता पटना में हैं. रमाकांत ने पत्नी लीला से चर्चा की. लीला देवी को बैंगलुरु का नाम सुन कर थोड़ा दुख लगा कि बेटी दूर चली जाएगी. पर एक बात की खुशी थी कि ससुराल पटना में है तब बेटी से मिलना हो पाएगा. बातचीत शुरू हुई. सारी बात तय हो गई. कुंडली भी अच्छी मिली. बस अब इंतजार लड़के का था. लीला देवी ने लडके की तसवीर सुधा को दिखाना चाही.

सुधा देखने के लिए तैयार नहीं थी, ‘‘मां मुझे नहीं देखनी है तुम लोगों ने देखी मेरे लिए यही काफी है… तुम लोगों से ज्यादा मेरा भला कौन सोच सकता है.’’

1 महीने बाद खबर आई कि लड़का 1 सप्ताह के लिए आने वाला है लड़की को दिखा दिया जाए. बहुत डांटफटकार के बाद सुधा पार्लर गई. शाम को सुधा तैयार हो रही थी. वह बहुत घबराई हुई थी. जब किसी लडकी की शादी की बात चलती है तब उस के दिल में कितनी तमन्नाएं, कितने अरमान, हसरतें अंगड़ाइयां लेने लगती हैं. पर सुधा के साथ ऐसा कुछ नहीं था. रोमांच का तो नामोनिशान नहीं था. अतीत की घटना, आने वाले पल की आशंका सब मिल कर उसे खुश नहीं होने दे रहे थे. मां तैयार हो कर सुधा को देखने आई सुधा को तैयार देख कर बोली, ‘‘काजल नहीं लगाया,. लगा ले आंखें सुना लग रही हैं.’’

सच के फूल- भाग 5: क्या हुआ था सुधा के साथ

सुधा काजल लगा रही थी. निहार रही थी कि कितनी सुंदर लग रही है मेरी बेटी… काश, सब ठीक हो जाए. वैसे सुधा देखने में सुंदर थी. समय पर सब लोग निकल गए. रैस्टोरैंट में तीन तरफ से बड़ा सोफा और सामने सिंगलसिंगल सोफा थे. बीच में बड़ी टेबल थी. बड़े सोफे पर मां और पापा के बीच सुधा बैठी.

सुधा को अब घबराहट होने लगी. बोली, ‘‘मां डर लग रहा है.’’

‘‘डरने का क्या बात है. यह समय तो हर लड़की की जिंदगी में आता है… सब ठीक हो जाएगा. घबराओ मत आराम से बैठो.’’

तभी हलचल हुई… सुधा को एक बैगनी रंग की साड़ी दिखाई दी. मां ने सुधा की

कुहनी पर स्पर्श कर खडे़ हो कर प्रणाम करने को कहा. सुधा खड़ी हुई. उस ने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और एक बार नजर उठा कर देखा तो उस का मन धक से रह गया. सामने बैठे व्यक्ति को देख उस के होश उड़ चुके थे. ये वही सज्जन थे जो उस दिन ट्रेन में मिले थे और अच्छी सीख दी थी. वह स्तब्ध जड़वत सी रह गई. मां ने उसे पकड़ कर बैठाया. वह महिला सुधा के पास आ कर बैठ गई थी. सुधा का हाथ थाम लिया लगातार सुधा को निहार रही थी. फिर बोली, ‘‘आप की बेटी बड़ी प्यारी है.’’

लीला देवी के होठों पर मुसकान फैल गई. सुधा अभी तक कांप रही थी. लीला देवी को लगा वह नर्वस है इस कारण कांप रही है.

तभी महिला ने पूछा, ‘‘तुम पेंटिंग सीख रही हो?’’

सुधा कुछ बोल नहीं सकी बस सिर हिला कर स्वीकृति दी.

‘‘गौतमजी कहां रह गए.’’ रमाकांत ने पूछा?

‘‘गाड़ी पार्क कर आ रहा है.’’

सुधा को लग रहा था अभी अंकल उठेंगे और कहेंगे हमें अपने बेटे की शादी आप की लड़की से नहीं करनी है हम जा रहे हैं. सुधा ने नजर उठा कर देखा.

रमाकांत अंकल से बात करने में व्यस्त थे और मां उस महिला से बातें कर रही थी.

तभी वह महिला बोली, ‘‘गौतम तुम अगर बात करना चाहते हो तो कर लो.’’

‘‘हांहां जाओ तुम लोग भी आपस में बातें कर लो. वहां टेबल ठीक किया है सुधा जाओ.’’

सुधा चुपचाप उस गौतम के पीछे चल दी.

‘‘आप पेंटिंग सीख रही है?’’

सुधा ने सिर हिला कर स्वीकार किया.

‘‘आगे पढ़ने के बारे में क्या सोचती हो?’’

‘‘इच्छा तो है.’’

‘‘चलो कुछ बोली तो,’’ कह कर वह हंसने लगा.

सुधा ने अब उसे ठीक से देखा. एक नजर में ही वह अच्छा लगा. पर कौन जाने क्या हो? वेटर नाश्ता लिए ले आया था.

‘‘और क्या हौबी हैं आप की?’’ उस ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की.

‘‘पुराने गाने सुनना और खाली वक्त में स्कैचिंग करना.’’

उस के लंबे बालों को देख कर वह बोला, ‘‘आप के बाल बहुत सुंदर है.’’

सुधा शरमा गई. तभी उधर से बुलाया जाने लगा. दोनों जाने लगे. तभी गौरव ने सुधा से मोबाइल नंबर मांगा तो सुधा  िझ झकने लगी. तब वह बोला, ‘‘ठीक है रहने दीजिए.’’

रमाकांत ने बताया वे लोग रात में खबर करेंगे. गाड़ी में सभी बहुत खुश लग रहे थे मां ने कहा, ‘‘परिवार तो अच्छा है… स्वभाव भी ठीक लगा. लड़के की मां खूब बातें करती है.’’

सुधा ने भी यह नोट किया कि वह लगातार बात कर रही थी. सभी लोग खुश थे पर सुधा का मन आशंकाओं से घिरा था. एक हलचल मची थी कि सत्य नंगा होता है… सही… सत्य बड़ा कठोर भी होता है… उसे अब सारी बातें मांपापा को बतानी पडे़गी. उन के मन में आशा के लड्डू फूट रहे हैं. कहीं वे टूट गए तब परिणाम बहुत दुखद होगा. रात लीला देवी खाना बनाने गई तो सुधा वहां जा पहुंची और बोली, ‘‘मां सुनो बहुत जरूरी बात बतानी है.’’

‘‘हां बोलो.’’

मां खुश थी सुधा ने ट्रेन की सारी बातें बता दीं. लीला देवी सोच में पड़ गई कि अब क्या होगा… राह दिखाना और बहू बनाना दोनों में बहुत फर्क है. जमाना कितना भी आगे चला जाये पर कोई भी सभ्य परिवार जानबू झ कर एक भागी हुई लड़की से अपने बेटे की शादी नहीं करेगा. अब तो तय है कि उधर से न ही होगा यह बात सुधा के पापा को जल्दी बतानी होगी. यह सोच वह अपने कमरे में चली गई. रमाकांत कमरे में फाइल देख रहे थे.

लीला देवी बोली, ‘‘सुनिए, कुछ कहना है.’’

‘‘हां बोलो,’’ उन्होंने बिना देखे कहा.

लीला देवी ने जैसे कहने के लिए अपना मुंह खोलना चाहा वैसे ही रमाकांत का मोबाइल बज उठा, ‘‘एक मिनट.’’

उन्होंने फोन उठाया फोन जगेश्वर नाथ का था. लीला देवी का दिल जोर से धड़कने लगा. अभी वह उन के बारे में सोच ही रही थी कि उन का फोन आ गया. कहीं वह गश खा कर गिर न पड़े, इसलिए अपने बैड पर बैठ गई और पति का मुंह देखने लगी. पति की मुख मुद्रा तो हर्ष की लग रही थी. चेहरे पर मुसकान भी झलक रही थी. वह उत्तेजना में जा कर पास खड़ी हो गई.

‘‘जी अरे नहीं इतना तो समय लेना ही चाहिए… हांहां आप को भी बहुतबहुत बधाई. हां हम सुधा की मां को बता देंगे. ठीक है जी प्रणाम.’’

रमाकांत का चेहरा बता रहा था सब कुशलमंगल है. वह अपनी पत्नी की ओर लपके. उन्होंने लीला देवी के दोनों कंधे पकड़ कर खुश हो कहा, ‘‘लीला हमारी बेटी का ब्याह पक्का हो गया.’’

सुधा की मां जगेश्वर नाथ का मन ही मन धन्यवाद करने लगी. सच में बहुत सज्जन पुरुष हैं. आजकल कहां ऐसे आदमी मिलते हैं…

जोगेश्वरजी सुधा से ट्रेन में मिल चुके सुधा के पापा को यह बताना अभी ठीक नहीं हैं कितना खुश हैं सब सुन कर… चिंता में पड़ जाएंगे. जब सोने जाएंगे तब आराम से बात कर के बताएंगे.

तभी याद आया सुधा किचन में होगी बेचारी बेकार में परेशान होगी उस को यह खबर भी दे देते हैं. उस के मन का बो झ हट जाएगा.

सुधा का हृदय जोगेश्वर अंकल के लिए श्रद्धा से भर गया. सुधा अच्छा महसूस करने लगी. उसे याद आया कि गौतम ने उस का मोबाइल नंबर मांगा था. उस ने मां को बताया तो वह बोली, ‘‘दे देती दिक्कत की कोई बात नहीं थी. ठहरो हम भिजवा देते हैं.’’

लीला देवी ने अपनी होने वाली समधिन को बधाई देने के लिए उन्होंने फोन किया. तब सुधा की सास ने स्वयं सुधा का मोबाइल नंबर मांग लिया. नंबर देने के दूसरे दिन गौतम का फोन आ गया. वह 2 दिनों के लिए जमशेदपुर जा रहा है. जाने के पहले शाम को सुधा से कैफेटेरिया में मिलना चाहता है. सुधा सोचने लगी थोड़ी देर पहले उसे लगा उस ने जंग जीत ली पर अब उसे गौतम से मिलना है क्या करे. सारी कहानी जानते हुए जोगेश्वर अंकल ने शादी पक्की कर दी… क्या सच में उन्होंने अपने लड़के को नहीं बताया होगा ऐसा हो सकता है क्या? कहीं ऐसा तो नहीं कि गौतम को सब पता हो. वह सुधा के मुंह से सुनना चाहता है?

शायद नहीं अंकल खुद मना नहीं कर पाए. चाहते हैं गौतम मना करे. छी: उन समान आदमी पर वह कैसे शक कर सकती है. यह भी तो हो सकता है कि इन सब बातों को कोई महत्त्व नहीं दिया हो. सुधा सोच में पड गई अपने अतीत को… वह तो उस के जीवन का नासूर बन चुका है. सुधा चाहे न चाहे उस से भाग नहीं सकती है. क्या करे जिंदगी सामने खड़ी पुकार रही है. बस जा कर थाम लेना है पर वह जहां भी जाएगी ये सारी चीजें उस के साथसाथ चलेंगी. चुप रह कर और आगे बढ़ कर जिंदगी को गले लगा ले अथवा जो भी हुआ उसे गौतम को बता दे. वैसे खतरा दोनों में है गौतम मना भी कर सकता है. हो सकता है अपमानित भी करे.

सच के फूल- भाग 3: क्या हुआ था सुधा के साथ

सुबह जब नींद खुली तो उसे बहुत अच्छा लगा. वह अपनेआप को तरोताजा पा रही थी. होंठों पर मुसकान थी कि तभी यादों का एक रेला सारी ताजगी उड़ा ले गया. वह फिर सहम गई और चुपचाप वाशरूम में घुस गई. उसे आज घर कुछ ज्यादा शांत लगा. वैसे सुधा का घर शांत ही रहता है. उस के पापा बहुत नियम और कायदे के पक्के हैं. आज की खामोशी थोड़ी बो िझल लग रही थी. उसे सुबह ही चाय पीने की आदत थी, इसलिए वह चाय बनाने रसोई में पहुंची.

‘‘चाय पीओगी मां?’’ उस ने पैन उठाते हुए प्यार से मां से पूछा.

‘‘नहीं,’’ मां की कड़क आवाज से डर गई.

‘‘हमें पापा के साथ पी चुके हैं तुम पी लो.‘‘

वह चुपचाप चाय बनाने लगी. उस ने निश्चय कर लिया पापा के औफिस जाते वह मां से बात करेगी. दीपक भी स्कूल जा चुका था. चाय ले कर वह अपने कमरे में आ कर पढ़ने की टेबल को ठीक करने लगी. पता नहीं आगे पढ़ पाएगी या नहीं. सभी लोग उस पर इतनी जल्दी विश्वास नहीं कर सकते हैं. कहीं कालेज से नाम ही न कटवा दें. वह जिद्द भी नहीं कर सकती. लीला देवी कमरे में आई और टेबल के पास खडी़ हो बोली, ‘‘क्या कर रही हो सुधा?’’

‘‘कुछ नहीं मां… आओ न,’’ सुधा ने मां को अपने बैड पर बैठाया और फिर खुद जमीन पर बैठ अपना सिर मां की गोद में रख दिया.

‘‘मां हमें तुम से कुछ बात करनी है.’’

‘‘हां बोल.’’

मां के पैर पकड़ बोली, ‘‘मु झे माफ कर दो मां मु झ से बहुत बड़ी भूल हो गई. मैं बहुत पछतावे में हूं… मां मैं बहकावे आ गई थी,’’ और वह फूटफूट कर रो रही थी.

‘‘सुधा इधर देखो अपना सिर उठाओ और बताओ क्या हुआ. देखो सब सचसच बताना… घर की इज्जत तो रही नहीं अपना इज्जत भी गंवा आई,’’ लीला देवी कठोरता से बोली.

‘‘नहीं मां मैं घर से भागी जरूर थी पर मुझे अपने मान का पूरा खयाल था मां. मुझे अपनी इज्जत का खतरा लगा तभी तो वापस आ गई.’’

‘‘कहां गई थी?’’

‘‘मां मुझ से गलती हो गई मां. मैं उस के बातों में आ गई थी.’’

‘‘कहां गई थी?’’

‘‘हम दिल्ली गए… दूसरे दिन ही गरीब रथ से भाग आई. मैं बच गई मां… तुम लोगों के आशीर्वाद से मैं बच गई मां.’’

‘‘तुम लोग एक रात…’’

‘‘नहीं मां,’’ सुधा बीच में बात काट कर बोली, ‘‘जिस दिन गए उस दिन रात ट्रेन में थे. तुम मेरा विश्वास करो मां मैं सच बोल रही हूं. वह बोला कि दिल्ली में उस के मामा रहते हैं जो शादी करवा देंगे. लेकिन जब वह मामा के घर न ले जा कर एक गंदे होटल में ले गया उसी समय मैं सम झ गई कि वह  झूठा है. में ने उस पर विश्वास कर भूल कर दी है. फिर मैं चालाकी से भाग निकली. मां तुम मुझे डांटो, मारो… मैं ने काम ही ऐसा किया है पर एक नादान सम झ कर माफ कर दो मां… प्लीज मां बस एक बार,’’ सुधा रोती जा रही थी.

‘‘तुम उस से शादी करना चाहती हो?’’

‘‘नहीं मां नहीं यही तो मेरी सब से बड़ी भूल थी.’’

‘‘फिर गई क्यों?’’

‘‘मेरी बेवकूफी थी मां. वह मुझ से बोला था कि वह आईएएस के मैन्स में आ गया है और उस के पापा उस की शादी अपने दोस्त की बेटी से जबरदस्ती करवाना चाहते हैं.’’

‘‘तुम उस के साथ शादी करना चाहती थी तभी न…’’

‘‘हां पहले मैं उसे खोना नहीं चाहती थी पर मैं जान गई वह एक नंबर का  झूठा इंसान है. वह आईएएस भी नहीं होगा… मुझ से भूल हो गई मां… मुझे माफ कर दो.’’

‘‘ये सब कब से चल रहा है… कब से मिलनाजुलना है?’’

सुधा चुप रही.

‘‘बताओ?’’

‘‘3 महीने से.’’

‘‘बस 3 महीने में तुझे इतना विश्वास हो गया कि घर से पैर निकाल दिए और

23 बरस तक जिन मांबाप के साथ रही उन से एक बार भी पूछना जरूरी नहीं सम झा…. जो मां 9 महीने पेट में रखी उस पर भी विश्वास नहीं रहा… तुमने तो मेरे आंचल में दाग लगा दिया. जिस दिन तुम गई तुम्हारे पापा उस दिन इतने दुखी और हताश थे. बोले लीला कहां चूक हो गई… हम ने तो कभी भी अपने अम्मांबाबूजी का दिल नहीं दुखाया. जैसा वे बोलते गए हम वैसे करते गए. कहीं तुम ने नहीं अपने मांबाप का दिल दुखाया था.’’

सुधा को 1-1 बात हथौडे़ की तरह दिल पर लग रही थी.

‘‘मां… मुझे नादान सम झ कर माफ कर दो… तुम जो भी सजा देना चाहती हो दे दो पर बस माफ कर दो,’’ और वह मां से लिपट कर रोने लगी.

‘‘मैं क्या सजा दू तुझे… तुझे जो भी सजा देंगे उस का दर्द भी तो हमीं को होगा. तुम मेरी देह का अंश हो काट कर नहीं फेंक सकते,’’ लीला देवी का गला रुंध गया.

यह देख कर सुधा बौखला गई, ‘‘मां तुम रो मत मेरी जैसे नालायक बेटी के लिए रो मत… अपने हिस्से का रोना मुझे दे दो.’’

तब मां ने उस के गाल पर एक चपत लगाई, ‘‘पगली ऐसे नहीं बोलते हैं.’’

‘‘मां तुम मुझे माफ कर दो न.’’

‘‘सुधा हम नाराज नहीं हैं… मन में तकलीफ बहुत है जो जिंदगी भर रहेगी. हम लोगों की परवरिश पर अब सवाल तो लग ही गया न,’’ मां ने गंभीरता से कहा.

सुधा के पास इस का कोई जवाब नहीं था. वह चुप रही. मां का रोना उस के मन को आहत कर गया. सच में उस ने बहुत भारी भूल कर दी… परिवार की इज्जत और उन के सम्मान को ठेस पहुंचाई. थोड़ी देर तक दोनों ही अपने हिस्से का दर्द लिए चुप बैठी रही.

शाम को रमाकांत घर आए पर ग्लानि से भरी सुधा कमरे से बाहर नहीं निकली. मां ने चाय पकड़ाई और अपने कमरे में चली गई. रमाकांत कभी भी अपने कमरे में चाय नहीं पीते हैं. शायद मां सारी स्थिति बताने गई है. अब पापा का रिएक्शन क्या होगा जो भी होगा… वह इन सब बातों के लिए तैयार है. इतने अच्छे मातापिता के लिए उसे कुदरत को शुक्रिया कहना चाहिए.

सुधा के लिए समय जैसे बीत नहीं रहा था. कपड़ों की अलमारी ठीक करने की नीयत से  वह अलमारी के पास खड़ी हो गई. उसे पता लग गया कि अलमारी को अच्छे से खंगाला गया है.

कमरे में बैठा दीपू ध्यान से उस की गतिविधियों को देख रहा था. आखिर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘दीदी एक बात पूछूं.’’

‘‘हां पूछो न क्या पूछना है.’’

‘‘तुम अपने कालेज ग्रुप के साथ पिकनिक पर नहीं गई थीं न… हम लोगों से नाराज हो कर कहीं चली गई थी.’’

सुधा को जैसे  झटका सा लगा वह कपड़े जमीन में फेंक दीपू को ओर दौड़ी और उससे लिपट कर रोने लगी, ‘‘नहीं दीपू किसी से नाराज हो कर नहीं गई थी. मुझ से भूल हो गई थी मुझे माफ कर दो दीपू.’’

दीपू 10वीं कक्षा में था. उसे घर के माहौल से कुछकुछ अंदाजा हो रहा था कि दीदी के साथ कुछ तो गड़बड़ है. लड़कियों जरा जल्दी सम झदार हो जाती हैं. लड़के संसारिक मामलों से थोड़ा अनजान रहते हैं.

‘‘तुम तो परची में पता दे गई थी पर सब लोग बहुत घबराए हुए थे.’’

सुधा दीपू को कैसे बताए कि वह पता नहीं बस एक नोट लिख कर गई थी, ‘‘मैं घर छोड़ कर जा रही हूं, 4 दिन बाद आऊंगी.’’

थोड़ी देर रोनेधोने का दौर चला. अब सुधा ने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि किसी तरह पापा को मनाना होगा. पापा नियम के बहुत पक्के हैं. सोने से पहले 10 बजे के न्यूज की हैडलाइन जरूर देखते हैं. वह रात के 10 बजने का इंतजार करने लगी.

सच के फूल- भाग 6: क्या हुआ था सुधा के साथ

अचानक उस के दिमाग में एक खयाल कौंधा. कहीं ऐसा तो नहीं

गौतम को अंकल ने सब बता दिया हो. वे दोनों सुधा को परखना चाहते हो कि यह लड़की कितनी सच्ची है. चलो अब दिमाग नहीं लगाना है मांपापा से बात कर के कोई निर्णय लेंगे.

खाना खाने के समय पापा ने कहा, ‘‘मुझे ड्राइवर औफिस छोड़ कर आ जाएगा… तुम ड्राइवर के साथ चली जाना.’’

सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह तो

दूसरी  दुनिया में उल झी थी. खाने के बाद सुधा पापा के कमरे में जाने का इंतजार करने लगी. वह दबे पांव कमरे में पहुंची. लगता है मां सब बता चुकी थी क्योंकि पापा का चेहरा थोडा़ सा चिंतित लग रहा था.

सुध पलंग के पास जा कर खड़ी हो गई. बोली, ‘‘ पापा कुछ कहना है.’’

रमाकांत शायद अंदेशा लगा चुके थे कि सुधा जरुर असमंजस में होगी. उन्होंने उस की ओर देखा सुधा ने खुद को संयत किया और कहा, ‘‘पापा कल मैं क्या करूं? मेरा मतलब है पापा कल मुझे गौतमजी को सब बता देना चाहिए?’’

‘‘सुधा तुम्हारे मन में क्या चल रहा है पहले यह बताओ?’’ रमाकांत ने पूछा.

‘‘पापा अगर उन्हें पता नहीं होगा और बाद में पता चला तब और दूसरी बात यह है हो सकता है पता हो… मु झे चैक करना चाह रहें हों… पापा मैं डर कर सारा जीवन नहीं बिता पाऊंगी बता देगें तब हो सकता है वह मना कर दें यही न लेकिन बाद में कहीं से पता चला तब तो पूरा जीवन बरबाद हो जाएगा.’’

रमाकांत को लगा समय के  झं झावात ने

सुधा को मजबूत और सम झदार बना दिया है. थोड़ा सोचने के बाद बोले, ‘‘सुधा जो तुम्हारा

मन गवाही देता है वही करो अगर तुम को लगता है कि गौतम को बता देना चाहिए तुम उस को सब सच बता दो वैसे हमें भी यह सही लग रहा है… यह तुम्हारी जिंदगी का फैसला है तुम्हें ही निर्णय लेना होगा हम को लगता है तुम जो भी फैसला लोगी सही होगा. हम लोग हमेशा तुम्हारे साथ हैं.’’

लीला देवी को यह बात बिलकुल ही नहीं जंच

रही थी. सुधा अब आत्मविश्वास से भर गई. जब से सुधा के साथ वह अप्रिय घटना हुई है. वह सम झदार हो गई है… जिंदगी के तथ्यों को गहराई से आंकने लगी है. फिर आज पापा ने उस के मनोबल को बढ़ा दिया है. सोने की चेष्टा की… नींद कोसों दूर थी. जिंदगी की विकट परीक्षा थी… पास हो गई तो खुशियां ही खुशियां और अगर फेल तो पूरे परिवार को दुखदर्द मिलने वाला था.

उस ने अपने कैनवास पर जो मैलाकुचैला रंग थोपा था उसे ही तो मिटाना होगा. अंकल ने सही कहा था सत्य नंगा होता है. इस के लिए हिम्मत चाहिए. यह हिम्मत अब उसे अपने

जिंदगी के कैनवास को साफ करने के लिए लगानी होगी.

गौतम से मिलने के लिए सुधा अलमारी के पास जा खड़ी हुई. क्या पहना जाए यह भी एक चिंता का विषय था. तभी उसे अपनी क्लासमेट रानी की याद आई. वह हाथ की रेखा देखती थीं सारी लडकियां हाथ दिखाती भी थीं और उस का मजाक भी बनाती थीं. उस ने सुधा को बताया था जब भी वह मुश्किल हालात में हो तब सफेद कपड़े को पहने अगर पहन नहीं पाए तब एक सफेद कपड़ा ही पास में रख ले.

सुधा को ये सब बकवास लगता था. पर आज मन हो रहा था उस के कहे को एकबार आजमाया जाए. उस ने अलमारी से अपनी पसंद का एक सफेद कुरता व सफेद चूड़ीदार और

चुन्नी निकाल लिया. कानों के लिए छोटे औक्साइड हैंगिंग निकाले. तैयार हो कर जब मां को दिखाने गई.

लीला देवी अपनी बेटी को बडे़ प्यार से निहारा फिर बोली, ‘‘क्या तुम ने सफेद कपड़े पहन लिए… रंगीन कपड़े पहनने चाहिए थे.’’

सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. मां ने कुदरत को प्रणाम कर जाने को कहा. सुधा जब तक आंखों से ओ झल नहीं हुई तब तक उस की मां देखती रही. सब कुशलमंगल हो की कामना करने लगी.

सुधा जब कैफेटेरिया पहुंची तब देखा कि गोतम सीढि़यों के पास खडा था. वह गोतम के साथ चल दी गौतम ने कोने में एक सीट रिजर्व कर रखी थी. उस ने जब बैठने का इशारा किया तो वह बैठ गई. आज उस ने गौतम को गौर से देखा अच्छा स्मार्ट लग रहा था. आज उस ने भी जींस और लैमन कलर की टीशर्ट पहन रखी थी जो उस पर काफी जंच रही थी. उस ने वेटर को इशारे से बुलाया. सुधा का मन हुआ कि वह मुड़ कर देखे कि पीछे क्या गड़बड़ हो रही है पर हिम्मत नहीं हुई.

गौतम लिली के फूलों का गुलदस्ता ले कर आया था. सुधा के हाथों में देते हुए बोला, ‘‘फ्लौवर फौर लवली लेडी.’’

सुधा ने मुसकराते हुए थैक्स कहा और फिर दोनों बैठ गए.

‘‘मां से पूछ कर आई हैं न?’’

गौतम का परिहास वह तुरत सम झ गई. उस ने फोन नंबर नहीं दिया था इसी बात की वह खिंचाई कर रहा था.

‘‘दूसरे दिन दे दिया…’’ जब हम मांगें तो.

‘‘उस समय शादी तय नहीं हुई थी,’’ सुधा ने बीच से ही बात काटते हुए कहा.

‘‘स्मार्ट आंसर,’’ गौतम ने खुश हो कर कहा, ‘‘क्या खाना है?’’

‘‘आप जो भी मंगा लें.’’

गौतम ने वेटर को बुला कर और्डर दिया. सुधा को अपनी बात बताने की जल्दी मची थी.

‘‘आज आप बहुत सुंदर लग रही है,’’ गौतम ने कहा, ‘‘अब आप नाराज न हो जाना… मैं फ्लर्ट करने की कोशिश नहीं कर रही हूं… दरअसल, आप पर सफेद रंग बहुत सूट कर रहा है.’’

‘‘नहीं मुझे तो खुशी हो रही,’’ सुधा ने चंचलता से जवाब दिया.

‘‘अगेन स्मार्ट आंसर.’’

गौतम का चुलबुलापन उसे अच्छा लग रहा था. काश यह वक्त यहीं रुक जाता.

तभी गौतम ने कहा, ‘‘मु झे 2 दिन के लिए जमशेदपुर जाना है. सोच रहा था उधर से दिल्ली वापस चला जाऊंगा, इसलिए मिलना चाहता था पर पापा कह रहे हैं परसों के बाद का दिन अच्छा है सगाई कर के जाओ.’’

‘‘सगाई?’’ सुधा का दिल जोर से धड़का.

‘‘मैं ने कहा अक्तूबर में आ कर कर लेंगे. तब नाराज हो गए. इस कारण मु झे अब दोबारा वापस आना होगा?’’

सुधा बोलने को तड़प रही थी. उस ने अपना मन कड़ा किया और गौतम से बोली, ‘‘मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं.’’

‘‘बोलिए न तभी से मैं ही बोले जा रहा हूं.’’

सुधा धीरेधीरे सारी बातें बताने लगी… बीचबीच में वह गौतम को देखती भी जा रही थी. उस का चेहरा सख्त्त होता जा रहा था. विकी से मुलाकात रोज क्लास बंक कालेज के पास में मिलना… घर से पैसे चोरी कर भागना और फिर उस के धोखे का पता लगने पर वापस घर सकुशल लौट आना… उस ने जोगेश्वर अंकल से मिलने की बात नहीं बताई.

गौतम के चेहरे के भाव प्रति पल बदल रहे थे. उस ने वेटर से बिल लाने को

कहा सुधा सम झ गई सब खत्म हो गया. ऐसा जीवनसाथी उसे कहां मिलेगा.

वेटर ने बिल ला कर दिया. गौतम ने बिना कुछ बोले उस में पैसे रखे. सुधा ग्लानि, क्षोभ से भरी तिलमिला कर खडी हो गई, जिस के कारण वह लड़खड़ा गई. गौतम ने  झट से उसे सहारा दे कर थाम लिया. सुधा रो रही थी. गौतम के स्पर्श से वह और विचलित हो गई. उस की हिचकियां बंध गईं.

गौतम ने उसे दोनों हाथों में थामकर कहा, ‘‘सुधा इधर देखो?’’

सुधा रोती जा रही थी. उस ने देखा

गौतम ने उस के आंसुओं को अपनी हथेली

पर समेट लिया और बोला, ‘‘सुधा इधर देखो

मेरी तरफ.‘‘

सुधा ने भीगी आंखों से गौतम को देखा.

उस ने कहा, ‘‘यह क्या है?’’

सुधा ने देखा हथेली पर आंसू फैलने की तैयारी कर रहे थे.

‘‘ऐसा स्पष्ट मन और सच्चा साथी मु झे कहां मिलेगा?’’ वह बोला.

यह सुन कर सुधा गौतम के सीने से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. उस का सफेद कैनवास इंद्रधनुषी रंगों से रंगीन हो गया था.सच के फूल खिलखिला उठे…

सच के फूल- भाग 1: क्या हुआ था सुधा के साथ

सुधा भागती चली जा रही थी, भागते हुए उसे पता नहीं चला कि वह कितनी दूर आ गई है. दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया हो. उसे जल्दी से जल्दी इस शहर से भाग जाना है. उसे सम झ में आ गया था वह अच्छे से बेवकूफ बनी है. घर से भाग कर उस ने भारी भूल कर दी. विकी ने उसे धोखा दिया है. अगर वह आज भागने में कामयाब हो गई  तभी वह बच पाएगी.  दिल्ली शहर उस के लिए एकदम नया है. वह स्टेशन जाएगी और किसी तरह…

तभी किसी ने उसे पकड़ कर खींचा, ‘‘अरे दीदी देख कर चलो न अभी मोटर के नीचे आ जाती.’’

सुधा कांपने लगी. उसे लगा जैसे विकी ने उसे पकड़ लिया. ये स्कूल से लौटते छोटे बच्चे थे बच्चे आगे बढ़ गए. उस ने औटो को रोका, ‘‘मैडम आप अकेली जाएंगी या मैं और सवारी बैठा लूं.’’

‘नहींनहीं हम को स्टेशन जाना है… ट्रेन पकड़नी है… जल्दी है.’’

‘‘एक सवारी का ज्यादा लगेगा.’’

‘‘ठीक है चलो.’’

संयत हो बोली, ‘‘आप बिहार से है.’’

सुधा घबडाई हुई थी उसे गुस्सा आ गया ‘‘काहे बिहारी को नहीं बैठाते हो उतर जायें.’’

‘‘ अरे नहीं नहीं मैडम इहां का लोग तनी ‘मैं’ ‘मैं’ करके बतियाता है इसी कारण.’’

सुधा को अगर विकी पर शक नहीं होता तब वह भाग भी नहीं पाती. कितना कमीना है विकी उसे बरबाद करना चाहता था. कैसे चालाकी से वह भागी है. वह होटल में घुसी तभी उसे संदेह हो गया था. कितना गंदा लग रहा था वह होटल और वह बूढ़ा रिसैप्शिनष्ट… मोटे चश्में के अंदर से  कितनी गंदी तरह से घूर रहा था. वह बारबार विकी को उस के मामा के यहां चलने के लिए बोल रही थी पर वह सुन नहीं रहा था. फिर भी वह आश्वस्त थी. उस ने घर से भागकर कोई गलती नहीं की है. वह विकी से प्यार करती है. वह जानती है पापा कभी तैयार नहीं होंगे क्योंकि दोनों की जाति अलगअलग है.

जब सुधा वाशरूम गई तो उस ने अपने कानों से सुन लिया, ‘‘हां यार मेरे साथ भाग कर आई है.’’

‘‘शादी करने?’’

‘‘अरे नहीं यार ऐसे सब से शादी करता रहूंगा… तब तो अब तक मेरी 7-8 शादियां हो गई होतीं.’’

अगर सुधा उस का फोन नहीं सुन पाती तब आज उस की इज्जत तारतार हो चुकी होती सोच कर वह अंदर तक कांप गई. वह अभी तक की घटनाओं को याद करने लगी. अभी कल की ही बात है. वह ट्यूशन के बहाने विकी के साथ निकली थी. विकी ने उस से कुछ पैसे लाने को कहा था. मां के बटुए से 17 हजार नकद और मां के कुछ गहने भी ले लिए थे. उस ने सारे पैसे विकी को दे दिए थे.

‘‘बस इतने ही?’’ विकी ने कहा.

‘‘और है देती हूं वाशरूम से आ कर,’’ वाशरूम में जाते उसे सारा मामला सम झ आ गया.

जब उस ने देर लगाई तब विकी ने पुकारा, ‘‘सुधा सब ठीक है न?’’

‘‘हां सब ठीक है आ रही हूं.’’

आ कर उस ने विकी से कहा, ‘‘विकी डियर देखो न बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई है.’’

‘‘क्या हुआ?’’ विकी अधीर होने लगा.

‘‘कैसे बताऊं मु झे शर्म आ रही है,’’ सुधा  िझ झकने लगी.

‘‘अरे यार बताओ न अब हम से शर्म कैसी… बताओ जल्दी.’’

‘‘विकी वह बात है कि…’’ वह रुक गई विकी घबरा गया. बोला, ‘‘जल्दी बताओ न सुधा.’’

‘‘मु झे पीरियड आ गया है तुरंत पैड चाहिए.’’

‘‘ले कर नहीं आई हो?’’ वह  झल्ला कर बोला.

‘‘पागल हो किसी तरह भाग कर आई हूं तुम ला दो न.’’

‘‘मैं कैसे लाऊं तुम खुद जा कर ले आओ.’’

‘‘दुकान कहां है… मैं कैसे…’’

‘‘होटल से बाहर जा कर बाएं जाना वहां मैडिकल स्टोर है.’’

‘‘पैसा दो,’’ वह बोली.

‘‘जेवर लाई हो न… हम बोले थे न…’’

‘‘नहीं ला पाई बैंक में हैं,’’ उस ने  झूठ बोला.

‘‘कितने का मिलता है पैड.’’

‘‘मुझे क्या पता मां लाती है.’’

‘‘लो बस वही लेना और खर्च मत करना… बगल में है दुकान पैदल जाना… पैसे बचाने हैं.’’

‘‘हां मैं अभी ले कर आती हूं.’’

बस फिर वह भाग निकली. अगर वह भाग नहीं पाती तब? उस की आंखों में आंसू आ गए. तभी ड्राइवर क मोबाइल बजा तो उसे याद आया उस का मोबाइल तो वहीं छूट गया चार्ज में लगा रह गया. अच्छा हुआ अब वह मेरी लोकेशन पता नहीं लगा पाएगा. अब तक तो उसे पता चल गया होगा कि मैं उस के चंगुल से भाग चुकी हूं.

स्टेशन उतर कर सुधा तेजी से वेटिंगरूम की ओर बढ़ गई. उस ने वाशरूम में जा कर कुरते के अंदर छिपाया हुआ छोटा बटुआ निकाला जिस के बारे में उस ने विकी को नहीं बताया था. उस में मां के कुछ जेवरों के साथ 13 सौ रुपए थे.

कितनी गंदी औलाद है वह… अपने मांबाप की इज्जत की थोड़ी भी परवाह नहीं की. क्या हाल हो रहा होगा उन लोगों का. पापा और मां का सोच वह फूटफूट कर रोने लगी. जब मन शांत हो गया तब सोचने लगी कि कहीं विकी उसे स्टेशन ढूंढ़ने न चला आए पर कैसे बाहर निकले. बाहर अभी भी खतरा है. टिकट तो लेना है कैसे लूं.

तभी पास में 2 औरतें आ कर बैठ गईं, ‘‘दीदी मैं टिकट ले कर आ रही हूं, तुम यहीं बैठो. आप जरा मेरी दीदी को देखेंगी इस की तबीयत ठीक नहीं है,’’ सुधा को देख कर एक औरत बोली,

‘‘पर मु झे भी टिकट लेना है,’’ सुधा बोली.

‘‘मैं जा रही हूं. आप बता दीजिए.’’

‘‘मेरा टिकट पटना के गरीब रथ में चेयर कार का ले लीजिएगा,’’ उस ने पर्स से पैसे निकाल कर दे दिए. दोनों बहनें टिकट ले कर चली गईं.

ट्रेन समय पर थी. सुधा ने चुन्नी से अपने पूरे मुंह को कवर कर लिया कि कहीं कोई पहचान वाला न मिल जाए. बैठने के बाद उसे घर की यादें सताने लगीं. जब वह घर जाएगी तो क्या होगा? अगर मांपापा ने घर के अंदर घुसने नहीं दिया तब?

वह सोच में थी तभी बगल की सीट पर एक सज्जन आ कर बैठे. वे लगातार सुधा को देख रहे थे. सुधा की रोती आंखों को देख कर उन को कुछ शंका हो रही थी. सुधा कोशिश कर रही थी कि वह सामान्य रहे पर मन की चिंताएं, परेशानियां उसे सामान्य नहीं रहने दे रही थीं. घर से भागना मांबाप की बेइज्जती, विश्वास को ठेस पहुंचाना सब उसे और विह्ववल कर रहे थे.

उन सज्जन से नहीं रहा गया तो उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम ने किसी को खो दिया है?’’

वह कुछ नहीं बोली पर रोना जारी था.

‘‘मु झे लगता है बेटा तुम से कोई बहुत बड़ी गलती हो गई है.’’

सुधा ने बडे़ अचरज से उन को देखा कि यह आदमी है या कोई देवदूत… मन की बात इन्हें कैसे पता चल गई.

‘‘देखो रोओ मत शांत हो कर मु झे बताओ शायद मैं मदद कर सकूं.’’

सुधा बो िझल बैठी थी उसे लगा सचमुच शायद मदद कर दें. उस ने धीरेधीरे सारी बातें बता दीं. उसे कैसे विकी ने  झूठे प्यार के जाल में फंसाया फिर घर से भागने को उकसाया… पैसे मंगवाना…

वे चुपचाप सुनते रहे फिर पूछा, ‘‘कहां रहती हो और कहां जा रही हो?’’

‘‘ मेरा घर पटना में है, लेकिन मैं गया अपनी सहेली के यहां जा रही हूं.’’

‘‘ घर क्यों नहीं?’’

‘‘किस मुंह से जाऊं टिकट पटना का है पर हिम्मत नहीं हो रही है,’’ और वह रोने लगी.

सच के फूल- भाग 2: क्या हुआ था सुधा के साथ

उन्होंने चुप रहने को कहा और बोले, ‘‘सुनो मांबाप से बढ़ कर माफ करने वाला कोई नहीं है. तुम सीधा अपने घर जाओ और सब सचसच बता दो. सचाई में बड़ी ताकत होती है. वे लोग तुम्हारे पछतावे को भी सम झेंगे और माफ भी करेंगे साथ ही सीने से लगाएंगे.’’

‘‘और मैं कैसे अपनेआप को माफ कर पाएंगी,’’ कह कर सुधा रोने लगी.

‘‘अपनेआप को सुधार कर एक अच्छी बेटी बन कर,’’ अंकल ने सम झाया, ‘‘देखो बेटी कुदरत ने सभी को सोचनेसम झने की बराबर शक्ति दी है. जो लोग इस का सही उपयोग करते हैं वे हमेशा विजयी होते हैं. हां हम सभी आखिर हैं तो मनुष्य ही न गलतियां भी हो जाती हैं. पर सही मनुष्य वही है जो अपनी गलतियों को सम झे, माने और उन से सबक ले, सचाई के साथ आगे बढ़े. हां एक बात और याद रखना सच नंगा होता है. उस को देखने और बोलने के लिए बड़ी हिम्मत की जरूरत होती है. यह भी सम झ लो तुम को अब हिम्मत से काम लेना होगा.’’

‘‘अगर मांपापा ने माफ नहीं किया और घर से निकाल दिया तब?’’ सुधा का मन शंकाओं से घिरा था.

‘‘तुम अभी बच्ची हो इसलिए अभी नहीं सम झोगी पर मेरा विश्वास करो वे तुम्हारे मातापिता हैं. तुम किस दर्द से गुजर रही हो तुम बताओ या न बताओ उन को सब पता होगा. अच्छा अब रोना बंद करो और कुछ अच्छी बात सोचो.’’

‘‘अंकल आप कहां जा रहे हैं?’’ सुधा थोड़ा सामान्य हो चली थी.

‘‘मैं भी पटना ही जा रहा हूं. वहीं रहता हूं. पटना में मैं फिजिक्स का प्रोफैसर हूं. दिल्ली में सेमिनार अटैंड करने आया था… लेकिन ट्रेन से उतरने के बाद मैं तुम को नहीं पहचानता.’’

सुधा उन की बात सुन कर हंसने लगी. ट्रेन से उतरने के बाद सुधा ने दोनों हाथ जोड़ कर उन को नमस्ते की. फिर दो कदम आगे बढ़ी और वापस आ कर उस ने अंकल के पैर छू लिए. दोनों की आंखें भर आईं. उन्होंने सुधा के सिर पर हाथ रख कर रुंधे गले से आशीर्वाद दिया, ‘‘कुदरत तुम्हें सही राह दिखाए,’’ और फिर बिना देखे आगे बढ़ गए.

सुधा उस देवपुरुष को भीगी आंखों से जाते देखती रही. अब असली परीक्षा थी… वह घर से संपर्क करे. पहले फोन पर बात कर ले या सीधे घर चली जाए. अगर उन लोगों ने उसे घर में घुसने न दिया तब? पहले बात करते हैं पता चल जाएगा वह घर जा सकती है या नहीं. वह मां को मोबाइल लगाने लगी. लंबी रिंग बजी पर किसी ने फोन नहीं उठाया. वैसे भी मां अपरिचित का फोन नहीं उठातीं. मां को लगातार फोन लगाएंगे तभी उन को शक होगा सोच वह लगातार फोन मिलाने लगी.

इस बार किसी ने उठाया. कहा, ‘‘हैलो.’’

वह कुछ बोल ही नहीं पाई.

‘‘इसीलिए हम अननोन नंबर नहीं उठाते है,’’ मां का गुस्से वाला स्वर था.

सुधा ने  झट से फोन बंद कर दिया.पर फोन काटने से काम नहीं चलेगा बात तो करनी ही पडे़गी. इस बार बात करनी ही है चाहे जो उठाए… उस ने फिर फोन लगाया, ‘‘हैलोहैलो,’’ सुधा सिसकने लगी.

‘‘सुधासुधा तुम हो… बोलो बेटा कहां से फोन कर रही हो. रोओ मत बेटा तुम ठीक हो न?’’

फोन पापा ने उठाया था. सुधा रोती जा रही थी. तभी मां की आवाज आई, ‘‘सुधा कैसी हो बेटी? कहां से बोल रही हो बताओ? हम सभी बहुत परेशान हैं. किसी मुश्किल में तो नहीं हो न बोलो न बेटी. तुम ठीक हो न…’’

सुधा को अपने लिए ‘बेटा’ या ‘बेटी’ शब्द की आशा नहीं थी. उन लोगों की विह्वलता देख उस का मन पीड़ा से भर गया. वह रोरो कर बोलने लगी, ‘‘मां मैं सुधा… पटना स्टेशन से बोल रही हूं…’’ आगे वह बोल नहीं पाई.

‘‘तुम स्टेशन पर रहो. वहीं पास में मंदिर है वहीं पर रुको हम लोग आ रहे हैं. वहीं रहना बेटा कहीं जाना मत. बस हम आ रहे हैं.’’

मां के भीगे स्वर सुधा के आहत मन को चीरते चले गए. वह मंदिर के पास चुपचाप बैठ गई. उस ने अपना मुंह ढक लिया था. शहर उस का था कोई भी पहचान सकता था. करीब 20 मिनट के भीतर उसे मां लीला देवी व पापा रमाकांत दिखे. दोनों के चेहरे का रंग गायब था. सुधा को अपनी गलती और अपने मातापिता की दशा देख कर फिर रोना आ गया वह मां से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी.

सुधा के मातापिता ने उसे संभालते हुए गाड़ी में बैठाया. एक ओर मां दृढ़ता के साथ हाथ पकड़ कर बैठी दूसरी ओर पापा ने उस के हाथ को बड़ी कठोरता से पकड़ रखा था जैसे कहना चाहते हो कि हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं… तुम को प्यार करते हैं. कभी भी चाहे जो भी परिस्थिति हो साथ नहीं छोड़ सकते. तुम को अकेले नहीं छोड़ सकते हैं. मां कभी आंसू पोछती, कभी चुन्नी संभालती तो कभी बड़े प्यार से हवा से  झूलते बालों को चेहरे से हटा रही थी. दोनों के बीच में बैठी सुधा किसी डरीसहमी हुई बच्ची की तरह रोतीसिसकती चली जा रही थी. घर पहुंच कर सुधा सीधे अपने कमरे में जा कर दीवार से लग कर दहाड़ मार रोने लगी. मां चुप कराने को आगे बढ़ने लगी.

तब रमाकांत ने कहा, ‘‘उसे रो लेने दो.’’

सुधा का इस तरह रोना लीला देवी के कलेजे को चीर रहा था. जब बरदाश्त नहीं हुआ तब वह सुधा को चुप कराने लगी.

घर में सब लोग सामान्य होने की कोशिश कर रहे थे. सुधा के लिए यह बड़ा मुश्किल लग रहा था पर घर वालों का साहस उस का हौसला बढ़ा रहा था. सुधा वक्त की मारी खुद को कैसे इतनी जल्दी माफ कर दे. इतने भोलेभाले मातापिता के साथ उसे अपनेआप को सही लड़की और अच्छी बेटी बन कर दिखाना है और वह बन कर दिखाएगी, फिर से मांपापा का खोया विश्वास हासिल करेगी. अभी तक किसी ने भी यहां तक कि उस के छोटे भाई दीपू ने भी नहीं पूछा शायद पापा की हिदायत होगी. खाना खाते वक्त उस ने मां से अपने पास सोने का आग्रह किया.

तब उन्होंने कहा, ‘‘हां बेटा वैसे भी मैं तुम्हारे साथ ही सोने वाली थी.’’

सुधा सम झ गई आज मां उस से सारी बातें जानना चाहती हैं.ठीक है वह सब सचसच बता देगी कुछ भी नहीं छिपाएगी.

मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मां चुपचाप सो गई जैसे कुछ हुआ ही नहीं. सुधा के लिए ये सब असहनीय हो रहा था. सब लोग उसे एक बार भी डांट क्यों नहीं रहे हैं न फटकार लगा रहे हैं. ऐसे मातापिता के लिए उस ने कितनी घृणित बात सोची कैसे कि ‘घर में घुसने नहीं देंगे.

सुधा की नींद उड़ गई थी. वह सारी बातें बता कर अपना मन हलका करना चाहती थी. सब की खामोशी उस के मन को जला रही थी. उस के पास तो  अब नाराजगी या रूठने का हक भी नहीं रहा. मन को चैन नहीं आ रहा था. उस ने सोच लिया यदि मां उस से कुछ भी जानना चाहेगी तब तो ठीक है वरना वह स्वयं ही उन्हें सबकुछ बता देगी. सोचतेसोचते सुधा कब सो गई उसे भी पता नहीं चला.

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