Valentine’s Day: खाली हाथ- जातिवाद के चलते जब प्रेमी अनुरोध पहुंचा पागलखाने

आगरापूरी दुनिया में ‘ताजमहल के शहर’ के नाम से मशहूर है. इसी शहर में स्थित है मानसिक रोगियों के उपचार के लिए मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय. इस संस्थान को कई भारतीय हिंदी फिल्मों में प्रमुखता से दिखाया गया है, हालांकि सच्चाई यह है कि न जाने कितनी भयानक और दुखद कहानियां दफन हैं इस की दीवारों में. आरोही को इस संस्थान में आए 2 महीने ही हुए थे. वह मनोचिकित्सक थी. इस के पहले वह कई निजी अस्पतालों में काम कर चुकी थी. अपनी काबिलीयत और मेहनत के बल पर उस का चयन सरकारी अस्पताल में हो गया था. उस से ज्यादा उस का परिवार इस बात से बहुत खुश था. वैसे भी भारत में आज भी खासकर मध्य वर्ग में सरकारी नौकरी को सफलता का सर्टिफिकेट माना जाता है. आरोही अपना खुद का नर्सिंगहोम खोलना चाहती थी. इस के लिए सरकारी संस्थान का अनुभव होना फायदेमंद रहता है. इसी वजह से वह अपनी मोटी सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर यहां आ गई थी.

वैसे आरोही के घर से दूर आने की एक वजह और भी थी. वह विवाह नहीं करना चाहती थी और यह बात उस का परिवार समझने को तैयार नहीं था. यहां आने के बाद भी रोज उस की मां लड़कों की नई लिस्ट सुनाने के लिए फोन कर देती थीं. जब आरोही विवाह करना चाहती थी तब तो जातबिरादरी की दीवार खड़ी कर दी गई थी और अब जब उस ने जीवन के 35 वसंत देख लिए और उस के छोटे भाई ने विधर्मी लड़की से विवाह कर लिया तो वही लोग उसे किसी से भी विवाह कर लेने की आजादी दे रहे हैं. समय के साथ लोगों की प्राथमिकता भी बदल जाती है. आरोही उन्हें कैसे समझाती कि-

‘सूखे फूलों से खुशबू नहीं आती, किताबों में बंद याद बन रह जाते हैं’ या ‘नींद खुलने पर सपने भी भाप बन उड़ जाते हैं.’

‘‘मैडम,’’

‘‘अरे लता, आओ.’’

‘‘आप कुछ कर रही हैं तो मैं बाद में आ जाती हूं.’’

आरोही ने तुरंत अपनी डायरी बंद कर दी और बोली, ‘‘नहींनहीं कुछ नहीं. तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘216 नंबर बहुत देर से रो रहा है. किसी की भी बात नहीं सुन रहा. आज सिस्टर तबस्सुम भी छुट्टी पर हैं इसलिए…’’

‘‘216 नंबर… यह कैसा नाम है?’’

‘‘वह… मेरा मतलब है बैड नंबर 216.’’

‘‘अच्छा… चलो देखती हूं.’’

चलतेचलते ही आरोही ने जानकारी के लिए पूछ लिया, ‘‘कौन है?’’

‘‘एक प्रोफैसर हैं. बहुत ही प्यारी कविताएं सुनाते हैं. बातें भी कविताओं में ही करते हैं. वैसे तो बहुत शांत हैं, परेशान भी ज्यादा नहीं करते हैं, पर कभीकभी ऐसे ही रोने लगते हैं.’’

‘‘सुनने में तो बहुत इंटरैस्टिंग कैरेक्टर लग रहे हैं.’’

कमरे में दाखिल होते ही आरोही ने देखा कोई 35-40 वर्ष का पुरुष बिस्तर पर अधलेटा रोए जा रहा था.

‘‘सुनो तुम…’’

‘‘आप रुकिए मैडम, मैं बोलती हूं…’’

‘‘हां ठीक है… तुम बोलो.’’

‘‘अनुरोध… रोना बंद करो. देखो मैडम तुम से मिलने आई हैं.’’

इस नाम के उच्चारण मात्र से आरोही परेशान हो गई थी. मगर जब वह पलटा तो सफेद काली और घनी दाढ़ी के बीच भी आरोही ने अनुरोध को पहचान लिया. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह चेतनाशून्य हो कर वहीं गिर गई. होश आने पर वह अपने क्वार्टर में थी. उस के आसपास हौस्पिटल का स्टाफ खड़ा था. सीनियर डाक्टर भी थे.

‘‘तुम्हें क्या हो गया था आरोही?’’ डाक्टर रमा ने पूछा.

‘‘अब कैसा फील कर रही हो?’’ डाक्टर सुधीर के स्वर में भी चिंता झलक रही थी.

‘‘हां मैडम, मैं तो डर ही गई थी… आप को बेहोश होता देख वह पेशैंट भी अचानक चुप हो गया था.’’

‘‘मुझे माफ करना लता और आप सब भी, मेरी वजह से परेशान हो गए…’’

‘‘डोंट बी सिली आरोही. तुम अब

आराम करो हम सब बाद में आते हैं,’’ डाक्टर सुधीर बोले.

‘‘जी मैडम, और किसी चीज की जरूरत हो तो आप फोन कर देना.’’

उन के जाने बाद आरोही ने जितना सोने की कोशिश की उतना ही वह समय उस के सामने जीवंत हो गया, जब आरोही और अनुरोध साथ थे. आरोही और अनुरोध बचपन से साथ थे. स्कूल से कालेज का सफर दोनों ने साथ तय किया था. कालेज में भी उन का विषय एक था- मनोविज्ञान. इस दौरान उन्हें कब एकदूसरे से प्रेम हो गया, यह वे स्वयं नहीं समझ पाए थे. घंटों बैठ कर भविष्य के सपने देखा करते थे. देशविदेश पर चर्चा करते थे. समाज की कुरीतियों को जड़ से मिटाने की बात करते थे. मगर जब स्वयं के लिए लड़ने का समय आया, सामाजिक आडंबर के सामने उन का प्यार हार गया. एक दलित जाति का युवक ब्राह्मण की बेटी से विवाह का सपना भी कैसे देख सकता था. अपने प्रेम के लिए लड़ नहीं पाए थे दोनों और अलग हो गए थे.

आरोही ने तो विवाह नहीं किया, परंतु 4-5 साल के बाद अनुरोध के विवाह की खबर उस ने सुनी थी. उस विवाह की चर्चा भी खूब चली थी उस के घर में. सब ने चाहा था कि आरोही को भी शादी के लिए राजी कर लिया जाए, परंतु वे सफल नहीं हो पाए थे. आज इतने सालों बाद अनुरोध को इस रूप में देख कर स्तब्ध रह गई थी वह. अगले दिन सुबह ही वह दोबारा अनुरोध से मिलने उस के कमरे में गई.

आज अनुरोध शांत था और कुछ लिख भी रहा था. हौस्पिटल की तरफ से उस की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे लिखने के लिए कागज और कलम दे दी गई थी. आज उस के चेहरे से दाढ़ी भी गायब थी और बाल भी छोटे हो गए थे.

‘‘अनु,’’ आरोही ने जानबूझ कर उसे उस नाम से पुकारा जिस नाम से उसे बुलाया करती थी. उसे लगा शायद अनुरोध उसे पहचान ले.

उस ने एक नजर उठा कर आरोही को देखा और फिर वापस अपने काम में लग गया. पलभर को उन की नजरें मिली अवश्य थीं पर उन नजरों में अपने लिए अपरिचित भाव देख कर तड़प गई थी आरोही, मगर उस ने दोबारा कोशिश की, ‘‘क्या लिख रहे हो तुम?’’

उस की तरफ बिना देखे ही वह बोला-

‘सपने टूट जाते हैं, तुम सपनों में आया न करो, मुझे भूल जाओ और मुझे भी याद आया न करो.’

अनुरोध की दयनीय दशा और उस की अपरिचित नजरों को और नहीं झेल पाई आरोही और थोड़ा चैक करने के बाद कमरे से बाहर निकल गई. मगर वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और बाहर आते ही रो पड़ी. अचानक पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘आप अनुरोध को जानती हैं मैडम?’’

पीछे पलटने पर आरोही ने पहली बार देखा सिस्टर तबस्सुम को, जिन के बारे में वह पहले सुन चुकी थी. वे इकलौती थीं जिन की बात अनुरोध मानता भी था और उन से ढेर सारी बातें भी करता था. कई सालों से वह सिस्टर तबस्सुम से काफी हिलमिल गया था.

‘‘मैं… मैं और अनुरोध…’’

‘‘शायद आप वही परी हैं जिस का इंतजार यह पगला पिछले कई सालों से कर रहा है. पिछले कई सालों में आज पहली बार मुसकराते हुए देखा मैं ने अनुरोध को. चलिए मैडम आप के कैबिन में चल कर बात करते हैं.’’

दोनों कैबिन में आ गईं. तबस्सुम का अनुरोध के प्रति अनुराग आरोही देख पा रही थी.

‘‘अनुरोध… ऐसा नहीं था. उस की ऐसी हालत कैसे हुई? क्या आप को कुछ पता है?’’ सिर हिला कर सिस्टर ने अनुरोध की दारुण कहानी शुरू की…

‘‘अनुरोध का चयन मेरठ के कालेज में मनोविज्ञान के व्याख्याता के पद पर हुआ था. इसी दौरान वह एक शादी में हिस्सा लेने मोदी नगर गया था, परंतु उसे यह नहीं पता था कि वह शादी स्वयं उसी की थी.

‘‘उस के मातापिता ने उस के लगातार मना करने से तंग आ कर उस का विवाह उस की जानकारी के बिना ही तय कर दिया था. शादी में बहुत कम लोगों को ही बुलाया गया था. मोदी नगर पहुंचने पर उस के पास विवाह करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने मातापिता के किए की सजा वह एक मासूम लड़की को नहीं दे सकता था और उस का विवाह विनोदिनी से हो गया.

‘‘विवाह के कुछ महीनों बाद ही विनोदिनी ने पढ़ाई के प्रति अपने लगाव को अनुरोध के सामने व्यक्त किया. अनुरोध सदा से स्त्री शिक्षा तथा स्त्री सशक्तीकरण का प्रबल समर्थक रहा था. खासकर उस के समुदाय में तो स्त्री शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय थी. इसीलिए जब उस ने अपनी पत्नी के शिक्षा के प्रति लगाव को देखा तो अभिभूत हो गया.

‘‘विनोदिनी कुशाग्रबुद्धि तो नहीं थी, परंतु परिश्रमी अवश्य थी और उस की इच्छाशक्ति भी प्रबल थी. उस के मातापिता बहू की पढ़ाई के पक्षधर नहीं थे. विनोदिनी के मातापिता भी उसे आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे, परंतु सब के खिलाफ जा कर अनुरोध ने उस का दाखिला अपने ही कालेज के इतिहास विभाग में करा दिया. विनोदिनी को हर तरह का सहयोग दे रहा था अनुरोध.

‘‘शादी के 1 साल बाद ही अनुरोध की मां ने विनोदिनी पर बच्चे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया, परंतु यहां भी अनुरोध अपनी पत्नी के साथ खड़ा रहा. जब तक विनोदिनी की ग्रैजुएशन पूरी नहीं हुई, उन्होंने बच्चे के बारे में सोचा तक नहीं.

‘‘विनोदिनी प्रथम श्रेणी में पास हुई और उस के बाद उस ने पीसीएस में बैठने की अपनी इच्छा अनुरोध को बताई. उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था. अनुरोध ने उस का दाखिला शहर के एक बड़े कोचिंग सैंटर में करा दिया. घर वालों का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था. पहले 2 प्रयास में सफल नहीं हो पाई थी विनोदिनी.

‘‘मगर अनुरोध उसे सदा प्रोत्साहित करता रहता. इसी दौरान विनोदिनी 1 बेटे की मां भी बन गई. परंतु बच्चे को दूध पिलाने के अलावा बच्चे के सारे काम अनुरोध स्वयं करता था. घर के काम और जब वह कालेज जाता था तब बच्चे को संभालने के लिए उस ने एक आया रख ली थी. कभीकभी उस की मां भी गांव से आ जाती थीं. बेटे के इस फैसले से सहमत तो वे भी नहीं थीं, परंतु पोते से उन्हें बहुत लगाव था.

‘‘चौथे प्रयास के दौरान तो विनोदिनी को जमीन पर पैर तक रखने नहीं दिया था अनुरोध ने. अनुरोध की तपस्या विफल नहीं हुई थी. विनोदिनी का चयन पीसीएस में डीएसपी के पद पर हो गया था. वह ट्रेनिंग के लिए मुरादाबाद चली गई. उस समय उन का बेटा अमन मात्र 4 साल का था.

‘‘अनरोध ने आर्थिक और मानसिक दोनों तरह से अपना सहयोग विनोदिनी को दिया. लोगों की बातों से न स्वयं आहत हुआ और न अपनी पत्नी को होने दिया. उस ने विनोदिनी के लिए वह किया जो उस के स्वयं के मातापिता नहीं कर पाए. सही मानों में फैमिनिस्ट था अनुरोध. स्त्रीपुरुष के समान अधिकारों का प्रबल समर्थक.

‘‘जब विनोदिनी की पहली पोस्टिंग अलीगढ़ हुई तो लगा कि उस की समस्याओं का अंत हुआ. अब दोनों साथ रह कर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ेंगे, परंतु वह अंत नहीं आरंभ था अनुरोध की अंतहीन पीड़ा का.

‘‘विनोदिनी के जाने के बाद अनुरोध अपना तबादला अलीगढ़ कराने में लग गया. अमन को भी वह अपने साथ ही ले गई थी. अनुरोध को भी यही सही लगा था कि बच्चा अब कुछ दिन मां के साथ रहे और फिर उस का तबादला भी 6 महीने में अलीगढ़ होने ही वाला था. सबकुछ तय कर रखा था उस ने परंतु नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था उस के लिए.

‘‘विनोदिनी का व्यवहार समय के साथ बदलता चला गया. पद के घमंड में अब वह अनुरोध का अपमान भी करने लग गई थी. उस ने तो मेरठ आना बंद ही कर दिया था, इसलिए अनुरोध को अपने बेटे से मिलने अलीगढ़ जाना पड़ता था. विनोदिनी के कटु व्यवहार का तो वह सामना कर लेता था, परंतु इस बात ने उसे विचलित कर दिया था कि उन के बीच के झगड़े का विपरीत असर उन के बेटे पर हो रहा था.

अब वह शीघ्र ही मेरठ छोड़ना चाहता था. डेढ़ साल बीत गया था, पर उस का तबादला नहीं हो पा रहा था.

‘‘‘प्रिंसिपल साहब, आखिर यह हो क्या रहा है? 6 महीनों में आने वाली मेरी पोस्टिंग, डेढ़ साल में नहीं आई. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?’

‘‘‘अनुरोध तुम्हें तो पता है सरकारी काम में देर हो ही जाती है.’

‘‘‘जी सर… पर इतनी देर नहीं. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे आप जानबूझ कर ऐसा नहीं होने दे रहे?’

‘‘‘अनुरोध…’

‘‘‘आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं सर? क्या हमारा रिश्ता आज का है?’

‘‘‘अनुरोध… कोई है जो जानबूझ कर तुम्हारी पोस्टिंग रोक रहा है.’

‘‘‘कौन?’

‘‘‘तुम्हें तो मैं बहुत समझदार समझता था, जानबूझ कर कब तक आंखें बंद रखोगे?’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘गिरिराज सिंह और विनोदिनी…’

‘‘‘प्रिंसिपल साहब…’ चीख पड़ा अनुरोध.

‘‘अनुरोध के कंधे पर हाथ रख कर प्रिंसिपल साहब बोले,…

‘बेटा, विश्वास करना अच्छी बात है, परंतु अंधविश्वास मूर्खता है. अपनी नींद से जागो.’

‘‘विनोदिनी के बारे में ऐसी बातें अनुरोध ने पहली बार नहीं सुनी थीं, परंतु वह ऐसी सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करता था. उसे लगता था कि विनोदिनी बददिमाग, बदतमीज और घमंडी हो सकती है परंतु चरित्रहीन नहीं.

‘‘2 महीने की छुट्टी ले कर जिस दिन वह अलीगढ़ पहुंचा, घर पर ताला लगा था. वहां पर तैनात सिपाही से पता चला कि मैडम नैनीताल घूमने गई हैं. मगर विनोदिनी ने अनुरोध को इस बारे में कुछ नहीं बताया था.

‘‘7 दिन बाद लौटी थी विनोदिनी परंतु अकेले नहीं, उस के साथ गिरिराज सिंह भी था.

‘‘‘कैसा रहा आप का टूर मैडम?’

‘‘‘उसे देख कर दोनों न चौंके न ही शर्मिंदा हुए. बड़ी बेशर्मी से वह आदमी सामने रखे सोफे पर ऐसे बैठ गया जैसे यह उस का ही घर हो.’

‘‘‘तुम कब आए?’

‘‘विनोदिनी की बात अनसुनी कर अनुरोध गिरिराज सिंह से बोला, ‘मुझे अपनी पत्नी से कुछ बात करनी है. आप इसी वक्त यहां से चले जाएं.’

‘‘‘यह कहीं नहीं जाएगा…’

‘‘‘विनोदिनी चुप रहो…’

‘‘मगर उस दिन गिरिराज सिंह नहीं अनुरोध निकाला गया था उस घर से. विनोदिनी ने हाथ तक उठाया था उस पर.

‘‘गिरिराज और विनोदिनी को लगा था कि इस के बाद अनुरोध दोबारा उन के रिश्ते पर आवाज उठाने की गलती नहीं करेगा, परंतु वे गलत थे.

‘‘टूटा जरूर था अनुरोध पर हारा नहीं था. वह जान गया था कि अब इस रिश्ते

में बचाने जैसा कुछ नहीं था. उसे अब केवल अपने अमन की चिंता थी. इसलिए वह कोर्ट में तलाक के साथ अमन की कस्टडी की अर्जी भी दायर करने वाला था. इस बात का पता लगते ही विनोदिनी ने पूरा प्रयास किया कि वह ऐसा न करे. उन के लाख डरानेधमकाने पर भी अनुरोध पीछे नहीं हटा था. एक नेता और अधिकारी का नाम होने के कारण मीडिया भी इस खबर को प्रमुखता से दिखाने वाली है. इस बात का ज्ञान उन दोनों को था.

‘‘गिरिराज सिंह को अपनी कुरसी और विनोदिनी को अपनी नौकरी की चिंता सताने लगी थी. इसीलिए कोर्ट के बाहर समझौता करने के लिए विनोदिनी ने उसे अपने घर बुलाया.

‘‘जब अनुरोध वहां पहुंचा घर का दरवाजा खुला था. घर के बाहर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. जब बैल बजाने पर भी कोई नहीं आया तो उस ने विनोदिनी का नाम ले कर पुकारा. थोड़ी देर बाद अंदर से एक पुरुष की आवाज आई, ‘इधर चले आइए अनुरोध बाबू.’

‘‘अनुरोध ने अंदर का दरवाजा खोला तो वहां का नजारा देख कर वह हैरान रह गया. बिस्तर पर विनोदिनी और गिरिराज अर्धनग्न लेटे थे. उसे देख कर भी दोनों ने उठने की कोशिश तक नहीं की.

‘‘‘क्या मुझे अपनी रासलीला देखने बुलाया है आप लोगों ने?’

‘‘‘नहींजी… हा… हा… हा… आप को तो एक फिल्म में काम देने बुलाया है.’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘हर बात जानने की जल्दी रहती है तुम्हें… आज भी नहीं बदले तुम,’ विनोदिनी ने कहा.

‘‘‘मतलब समझाओ भई प्रोफैसर साहब को.’’

‘‘इस से पहले कि अनुरोध कुछ समझ पाता उस के सिर पर किसी ने तेज हथियार से वार किया. जब उसे होश आया उस ने स्वयं को इसी बिस्तर पर निर्वस्त्र पाया. सामने पुलिस खड़ी थी और नीचे जमीन पर विनोदिनी बैठी रो रही थी.

‘‘कोर्ट में यह साबित करना मुश्किल नहीं हुआ कि विनोदिनी के साथ जबरदस्ती हुई है. इतना ही नहीं यह भी साबित किया गया कि अनुरोध एक सैक्सहोलिक है और उस का बेटा तक उस के साथ सुरक्षित नहीं है, क्योंकि अपनी इस भूख के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. विनोदिनी के शरीर पर मारपीट के निशान भी पाए गए. अनुरोध के मोबाइल पर कई लड़कियों के साथ आपत्तिजनक फोटो भी पाए गए.

‘‘उस पर घरेलू हिंसा व महिलाओं के संरक्षण अधिनियम कानून के अनुसार केस दर्ज किया गया. उस पर बलात्कार का भी मुकदमा दर्ज किया गया. मीडिया ने भी अनुरोध को एक व्यभिचारी पुरुष की तरह दिखाया. सोशल नैटवर्किंग साइट पर तो बाकायदा एक अभियान चला कर उस के लिए फांसी की सजा की मांग की गई. कोर्ट परिसर में कई बार उस के मातापिता के साथ बदसुलूकी भी की गई.

‘‘अनुरोध के मातापिता का महल्ले वालों ने जीना मुश्किल कर दिया था. जिस दिन कोर्ट ने अनुरोध के खिलाफ फैसला सुनाया उस के काफी पहले से उस की मानसिक हालत खराब होनी शुरू हो चुकी थी. लगातार हो रहे मानसिक उत्पीड़न के साथ जेल में हो रहे शारीरिक उत्पीड़न ने उस की यह दशा कर दी थी. फैसला आने के 10 दिन बाद ही अनुरोध के मातापिता ने आत्महत्या कर ली और अनुरोध को यहां भेज दिया गया. एक आदर्शवादी होनहार लड़के और उस के खुशहाल परिवार का ऐसा अंत…’’

कुछ देर की खामोशी के बाद तबस्सुम फिर बोलीं, ‘‘मैडम, मैं मानती हूं कि घरेलू हिंसा का सामना कई महिलाओं को करना पड़ता है. इसीलिए स्त्रियों की रक्षा हेतु इस कानून का गठन किया गया था.

‘‘परंतु घरेलू हिंसा से पीडि़त पुरुषों का क्या? उन पर उन की स्त्रियों द्वारा की गई मानसिक और शारीरिक हिंसा का क्या?

‘‘अगर पुरुष हाथ उठाए तो वह गलत… नामर्द, परंतु जब स्त्री हाथ उठाए तो क्या? हिंसा कोई भी करे, पुरुष अथवा स्त्री, पति अथवा पत्नी, कानून की नजरों में दोनों समान होने चाहिए. जिस तरह पुरुष द्वारा स्त्री पर हाथ उठाना गलत है उसी प्रकार स्त्री द्वारा पुरुष पर हाथ उठाना भी गलत होना चाहिए. परंतु हमारा समाज तुरंत बिना पूरी बात जाने पुरुष को कठघरे में खड़ा कर देता है.

‘‘ताकतवार कानून स्त्री की सुरक्षा के लिए बनाए गए परंतु आजकल विनोदिनी जैसी कई स्त्रियां इस कानून का प्रयोग कर के अपना स्वार्थ सिद्ध करने लगी हैं.

‘‘वैसे तो कानून से निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है, परंतु इस तरह के केस में ऐसा हो नहीं पाता. वैसे भी कानून तथ्यों पर आधारित होता है और आजकल पैसा और रसूख के बल पर तथ्यों को तोड़ना और अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना आम बात हो गई है. जिस के पास पैसा और ताकत है कानून भी उस के साथ है.

‘‘हां, सही कह रही हैं आप तबस्सुम. अनुरोध जैसे मर्द फैमिनिज्म का सच्चा अर्थ जानते हैं. वे जानते हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकसमान है. न कोई बड़ा, न कोई छोटा. इसलिए गलत करने पर सजा भी एकसमान होनी चाहिए.

‘‘मगर विनोदिनी जैसी कुछ स्त्रियां नारीवाद का गलत चेहरा प्रस्तुत कर रही हैं,’’ लता के अचानक आ जाने से दोनों की बातचीत पर विराम लग गया.

‘‘माफ कीजिएगा वह बैड नंबर 216 को खाना देना था.’’

‘‘अरे हां… तुम चलो मैं आती हूं. चलती हूं मैडम अनुरोध को खाना खिलाने का समय हो गया है.’’

‘‘मैं भी चलती हूं…’’

जब वे दोनों वहां पहुंचीं तो देखा अनुरोध अपने दोनों हाथों को बड़े ध्यान से निहार रहा  था. आरोही उस के पास जा कर बैठ गई. फिर पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो? प्लीज कुछ तो बोलो.’’

कुछ नहीं बोला अनुरोध. उस की तरफ देखा तक नहीं.

सिस्टर तबस्सुम अनुरोध के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘बोलो बेटा, बताओ… तुम चिंता न करो कुदरत ने चाहा तो अब सब ठीक हो जाएगा.’’

इस बार वह उन की तरफ पलटा और फिर अपनी खाली हथेलियों को उन की तरफ फैलाते हुए बोला-

‘ऐ प्यार को मानने वालो, इजहार करना हमें भी सिखाओ. बंद करें हथेली या खोल लें इसे, खो गई हमारी छाया से हमें भी मिलवाओ…

सरिता: क्या पूरा हुआ देव का प्यार

वह ठीक मेरे सामने से गुजरी. एकदम अचानक. मन में बेचैनी सी हुई. उस ने शायद देख लिया था मुझे. लेकिन अनदेखा कर के पल भर में बिलकुल नजदीक से निकल गई. जैसे अजनबी था मैं उस के लिए. कोई जानपहचान ही न हो. इस जन्म में मिले ही न हों कभी. मेरा कोई अधिकार भी न था उस पर कि आवाज दे कर रोक सकूं

और पूछूं कि कैसी हो? क्या चल रहा है आजकल? उस ने भी शायद बात करना नाजायज समझा हो. शायद इस तरह आमनेसामने से निकलने पर उसे लग रहा हो जैसे कोई गुनाह हो गया हो उस से. आज का दिन उस के लिए बुरा साबित हुआ हो. कहां से टकरा गए? क्यों, कैसे देख लिया?

यही वह लड़की थी. लड़की पहले थी अब तो वह महिला थी शादीशुदा. किसी की पत्नी. लेकिन जब मेरी पहली मुलाकात हुई थी उस समय वह लड़की थी. एक सुंदर लड़की, जो मुझ से मिलने के लिए बहाने तलाशती थी. मुझे देखे बिना उसे चैन न आता था.

हम कभी पार्क में, कभी रैस्टोरैंट में, कभी क्लब में तो कभी सिनेमाहाल में मिलते.

धीरेधीरे प्यार परवान चढ़ने लगा. प्रेम के पंख लगते ही हम उड़ने लगे. आसमान की सैर करने लगे. जब मौका मिलता मोबाइल पर बातें करते. एकदूसरे को एसएमएस करते रहते. दोनों दुनिया से बेखबर प्यार में डूबे रहते. बहुत थे उसे देखने वाले. बहुत थे उस के चाहने वाले. लेकिन वह केवल मेरे साथ थी, मेरी थी. वह मुझ से बेइंतहा प्रेम करती थी. देखता तो मैं उसे रहता था. लेकिन मेरे देखने से क्या होता है? ताजमहल को हजारों लोग देखते हैं. बात तो तब थी जब वह मुझे देखे.

कालेज शुरू हो चुका था. वह प्रथम वर्ष में थी और मैं द्वितीय वर्ष में. जैसाकि रिवाज चला आया है कालेजों में नए छात्रों की खिंचाई करना. उन्हें परेशान करना. अपमानित करना. प्रताडि़त करना. इसे परिचय का नाम देने वालों को पता नहीं था कि बाद में यह कुरीति बन कर गंभीर अपराध का रूप धारण कर लेगी.

जब सीनियर छात्रों ने उस से कहा कि वह आई लव यू कहे तो उस ने इनकार कर दिया. लड़कों ने उसे घेर कर बियर पीने को कहा. उस ने इनकार कर दिया. लड़कों ने कहा कि वह अपनी सलवार या कमीज दोनों में से कोई एक उतार दे. उस ने मना कर दिया. सीनियर छात्रों ने इसे अपना अपमान समझा. उन्होंने उस के गालों पर तमाचे मारना शुरू कर दिया. फिर तमाचों की चोट से वह तिलमिला कर चीखने लगी.

सभी सीनियर लड़के बारीबारी आते और जोरदार थप्पड़ मार कर हंसते हुए निकल जाते. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी. मेरा नंबर भी आया. मैं ठीक उस के सामने था. वह डर, क्रोध, अपमान से थरथरा रही थी. मैं उस के नजदीक से निकल गया बिना उसे तमाचा मारे. फिर सीनियर छात्रों ने उसे जबरदस्ती बियर पिला दी. उस के कपड़े फाड़ने की कोशिश की. वह अपमान व पीड़ा से बिलखती हुई वहीं बैठ कर रोने लगी. फिर बियर से उस का सिर भारी होने लगा. उस का चेहरा मेरी नजरों के सामने घूमा. मैं वापस वहीं पहुंचा, जहां उस की रैगिंग हो रही थी. वहां कोई नहीं था. वह बेसुध पड़ी हुई थी. मैं उसे अस्पताल ले गया. उस के मोबाइल से उस के घर का नंबर ले कर उन्हें इतला दी.

उस के पिता शहर के बड़े उद्योगपति थे. हालात मालूम होने पर उन्होंने पुलिस को इतला दी. लड़की के पिता के पास धनबल, राजनीतिक बल था. उन्होंने कालेज की ईंट से ईंट बजा दी. इस से पहले कि लड़कों पर कोई कानूनी काररवाई होती, उन्होंने लड़की से अस्पताल में जा कर माफी मांग ली. बात खत्म हो गई.

उस के पिता ने मेरा शुक्रिया अदा किया. जब छोटी औकात वाले का शुक्रिया अदा किया जाता है तो उसे शुक्रिया के रूप में कुछ रुपए दिए जाते हैं, यह कह कर कि रख लो प्यार से दे रहा हूं. मेरी मना करने की हिम्मत नहीं हुई. न चाहते हुए भी लेने पड़े. एक करोड़पति आदमी, आलीशान कोठी. गेट पर दरबान. लाइन से खड़ी महंगी चमचमाती गाडि़यां. मैं उन के व्यक्तित्व के आगे दब गया था. अगर कालेज के लड़कों को उस के पिता की औकात के बारे में पता होता तो भूल कर भी यह गलती न करते. अब सब उस से संबंध बनाने का प्रयास करने लगे. लेकिन उस ने मुझे देखा उस नजर से, जिस नजर से इस उम्र में हर कोई चाहता है कि उसे देखा जाए. वह मुझे कालेज कैंटीन में ले जाती. यदि मैं पहले से किसी दोस्त के साथ बैठा होता तो वह आ कर कहती ऐक्सक्यूजमी, क्या मैं बैठ सकती हूं? क्या आप हमें अकेला छोड़ सकते हैं? मेरे दोस्त शर्मिंदगी, गुस्से से उठ कर चले जाते.

‘‘हैलो, मैं सरिता,’’ उस ने हाथ बढ़ाया.

‘‘मैं, देव,’’ मैं ने हाथ बढ़ाया.

2 हाथ मिले. आंखें चार हुईं. धड़कनों की गति बढ़ी. कुछ और नजदीकियां बढ़ीं और पास आए. गले मिलने लगे तो धमनियों में रक्त का संचार बढ़ने लगा. कालेज की ओर से पिकनिक टूर हुआ. मैं अपनी आर्थिक स्थिति के चलते जाने को राजी न था. उस ने अपनी तरफ से मेरी फीस अदा की और मुझे यह कह कर ले गई कि पिकनिक तो बहाना है. हमें एकदूसरे के साथ समय बिताने का मौका मिलेगा.

सभी छात्र हिल स्टेशन का लुत्फ उठाते रहे. लेकिन हम दोनों बांहों में बांहें डाले

अपनी ही दुनिया में खोए रहे. प्यारमुहब्बत के वादे करते रहे. हम दोनों एकदूसरे के दिल की गहराइयों में उतर चुके थे.

उस ने कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करती हूं. तुम्हारे बिना जी नहीं सकती.’’

‘‘प्यार तो मैं भी तुम से करता हूं, लेकिन इस प्यार का अंजाम क्या होगा?’’ मैं ने कहा.

‘‘वही जो हर प्यार का होता है.’’

‘‘मैं गरीब हूं.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘अपने पिता से पूछ कर देखना.’’

‘‘यार, प्यार मैं ने किया. शादी मुझे करनी है. जीवन मेरा है. जीना मुझे है. इस में मेरे पिता का क्या लेनादेना?’’

‘‘यह भी पिता से पूछ कर देखना.’’

वह चिढ़ गई. मैं ने उसे मनाने का हर जतन किया. उसे फिल्मी शेरोशायरी सुनाई. प्रेम भरे गीत सुनाए. उस से लिपट गया. उस के गालों को चूमा. उस से माफी मांगी. वह खिलखिला पड़ी. स्वच्छ, पवित्र बहती नदी की तरह. अपने नाम की तरह.

हमारी मुलाकातें बढ़ती गईं. हमारा प्यार बढ़ता गया. कालेज में सब को पता था हमारे प्यार के बारे में. सब जलते थे हमारे प्यार से.

एक दिन सरिता ने कहा, ‘‘मुझे अपने घर के लोगों से मिलवाओ.’’

मैं डर गया. क्या सोचेगी? कहीं मेरी गरीबी का मजाक तो नहीं उड़ाएगी? किस से मिलवाऊं घर में? गरीब महल्ले में 1-2 कमरे का कच्चा मकान. जवानी की दहलीज लांघ चुकी कुंआरी बहन, जिस की शादी दहेज के कारण न हो सकी. विधवा बूढ़ी मां, जिस के मन में ढेरों बोझ, चेहरे पर झुंझलाहट और मुंह में कड़वे बोल थे. क्या कहेगी मां कि मेहनत, मजदूरी कर के पढ़ाने के लिए भेजा और बहन की शादी करने के बजाय खुद इश्क कर रहा है. अपनी शादी की योजना बना रहा है.

खैर, सरिता नहीं मानी. मैं उसे घर ले गया. वह बहन से मिली. मां से मिली. प्यार से बातें हुईं. चायनाश्ता भी. लेकिन सरिता के जाने के बाद मां ने मुझ से कुछ कहा तो नहीं, लेकिन खफाखफा सी नजर जरूर आईं. उन का अनकहा मैं समझ गया. मुझे नौकरी तलाश कर घर चलाना है. मुझे हर हाल में बहन की शादी करनी है. यह मेरा दायित्व है. बाकी सब बाद में. पढ़ाई के साथसाथ में नौकरी के फार्म भी भर रहा था. तैयारी भी कर रहा था नौकरी की. लेकिन हर जगह से नाउम्मीदी, असफलता. घर में घुटन सी होती. पढ़ाई से मन हटने लगा था. लेकिन मेरे हाथ में कुछ न था. मेरे पास एक सीधा रास्ता यह था कि सरिता से शादी कर के घरजमाई बन कर अपनी गरीबी से मुक्ति पा लेता. लेकिन आत्मसम्मान आड़े आता रहा.

सरिता करोड़पति पिता की इकलौती बेटी थी. वह प्यार के खुमार में महल से झोपड़े में आने को तैयार थी. वह मुझे झोपड़े से महल में ले जाने को भी राजी थी. लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं और क्या न करूं? मैं कैसे एक कलकल बहती पावन, शुद्ध साफ नदी का रुख मोड़ कर उसे अपनी गरीबी के दलदल में ले आऊं? कितने दिन रह पाएगी? कैसे उन अभावों को सह पाएगी? क्यों लूं मैं उस से इतनी बड़ी कुरबानी? कैसे मैं उस के घर जा कर अपने जमीर को मार कर उस की अमीरी में अपना मुंह छिपा लूं? क्या सोचेगी मेरी बूढ़ी मां, जिस के पास पूंजी के नाम पर सिर्फ मैं था?

‘‘तुम्हारी समस्या क्या है?’’ सरिता ने पूछा, ‘‘मैं सब में राजी हूं. या तो तुम निकलो अपनी गरीबी से या फिर मुझे ले चलो अपनी गरीबी में. मुझे सिर्फ तुम्हारा साथ चाहिए. जगह जो भी हो. महल हो या झोंपड़ा. जहां तुम वहां मैं. तुम्हारे बिना मुझे महल स्वीकार नहीं.’’

मैं चुप रहा.

‘‘तुम बोलते क्यों नहीं?’’ सरिता ने झल्ला कर कहा.

‘‘मेरे पास बोलने को कुछ नहीं है. मुझे समय चाहिए.’’

समय का काम है गुजरना. समय गुजरता रहा. कालेज पूरा हो चुका था. मैं नौकरी के लिए प्रयास करता रहा. सफलता तो जैसे मेरी दुश्मन थी. सरिता मुझ से मिलती रहती. फोन पर बात करती रहती. गुजरते वक्त के साथ मैं टूट रहा था और सरिता शादी की जिद पर अड़ी थी, जोकि उस के प्यार का हक था.

सरिता का कालेज भी समाप्त हो चुका था. मेरी दुविधा को खत्म करने के लिए सरिता ने अपने पिता से बात की. एक दिन सरिता ने कहा, ‘‘पापा ने घर पर बुलाया है. उन्हें कुछ बात

करनी है.’’

मैं उस विशाल कोठी के सामने खड़ा था. दरबान ने हिकारत के भाव से गेट खोला. विदेशी कुत्ते भूंक रहे थे. मुझे लगा जैसे मेरी गरीबी को दुतकार रहे हों.

विशाल कोठी के बाहर सरिता के पिता बैठे चाय की चुसकियां ले रहे थे.

मैं पहुंचा. उन्होंने बैठने को कहा. उन्होंने नौकर को इशारा किया. नौकर फौरन चाय ले कर आ गया. उन्होंने नौकर को जाने को कहा. अब मैं इस विशाल व्यक्तित्व के सामने खौफ खाए बैठा था. मुझे डर नहीं था, लेकिन मैं अपनी औकात से वाकिफ था.

उन्होंने अपनी रोबदार आवाज में कहा, ‘‘क्या चाहते हो?’’

‘‘जी, कुछ भी तो नहीं,’’ मैं ने अचकचा कर कहा.

‘‘सरिता से शादी करने की हिम्मत है?’’

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘घरजमाई बन सकते हो?’’

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘फिर, आगे क्या सोचा है?’’

मैं चुप रहा.

‘‘शादी तुम कर नहीं सकते. नौकरी तुम्हें मिल नहीं रही. घर की जिम्मेदारियां निभाते जीवन गुजर जाएगा. मेरी बेटी का क्या होगा? उसे मना कर दो. क्यों उस का वक्त बरबाद मेरा मतलब जीवन खराब कर रहे हो?’’

मैं फिर चुप रहा.

‘‘तुम्हारा आत्मविश्वास डगमगा चुका है देव. चलो, एक समझौता करते हैं. सौदा चाहो तो सौदा समझ लो.’’

मैं नजरें झुकाए शांत बैठा था. एक नजर सरिता के पिता को देखता और फिर नजरें झुका लेता.

‘‘मैं अपने दोस्त की कंपनी में तुम्हें नौकरी दिलवा सकता हूं. सुपरवाइजर की पोस्ट खाली है. अच्छी तनख्वाह है. तुम्हारी बहन की शादी के लिए लोन भी दिलवा सकता हूं. बदले में तुम्हें सरिता को छोड़ना होगा.’’

मुझे नौकरी मिल गई. बहन की शादी के लिए पैसा भी. बूढ़ी मां का बोझ उतर गया.

सरिता ने अपने पिता से पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘उस ने अपनी जिम्मेदारी और प्यार में से जिम्मेदारी को चुन लिया है. तुम उसे भूल जाओ. न वह घरजमाई बन कर रहने लायक है और न ही वैसा दामाद जैसा मुझे चाहिए था, पूर्ण समर्पित तुम्हारे प्रति. वह वैसा नहीं है और न ही वह तुम्हें अपनी गरीबी में रखने को राजी है. तुम रह भी नहीं पाओगी. वह जानता है.’’

सरिता मेरे पास आई. उस ने अपना गुस्सा मुझ पर उतारा, ‘‘क्यों किया था

प्यार? क्यों किए थे झूठे वादे? तुम फरेबी निकले. मुझे नहीं पता था कि कालेज में मुझे थप्पड़ न मारने वाला लड़का मुझे बहोशी की हालत में अस्पताल ले जाने वाला वह दिलेर लड़का बेकारी और कर्त्तव्यों के बोझ से इतना दब जाएगा कि अपने प्यार से बच कर भाग निकलेगा.’’

मैं चुप रहा तो मेरी चुप्पी ने उसे तोड़ दिया. वह कलकल बहती पवित्र नदी का शुद्ध जल आज मेरे सितम, मेरी चुप्पी से रुक सा गया था. मानों किसी बड़े बांध में बंध कर उस का प्रवाह रुक गया हो. उस उमड़तीघुमड़ती नदी का पानी मटमैला सा हो चुका था.

‘‘तुम ने मेरा सौदा कर दिया. मुझे बेच दिया अपने कर्त्तव्यों की आड़ में. मुझे कालेज की रैगिंग के वे चांटे, वे कहकहे, वह अपमान उतना भारी नहीं लगा जितनी तुम्हारी खामोशी. तुम अपनी गरीबी, अपनी जिम्मेदारियों, अपनी बेकारी में अपने प्यार को हार चुके हो,’’ और वह चली गई.

आज वर्षों बाद जब सरिता इतने नजदीक से अचानक गुजरी तो यों गुजर गई मानों मैं उस के लिए दुनिया से गुजर गया हूं या शायद दुनिया का सब से गुजरा व्यक्ति था. तभी तो उस ने पल भर रुकना, मेरी तरफ देखना भी गंवारा न समझा.

उस के पीछे उस का पति था. मेरा कालेज का दोस्त. रैगिंग मास्टर.

समर मुझे देख कर रुक गया. बोला, ‘‘अरे देव, तुम यहां कैसे? कैसे हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं अपनी कहो,’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं भी ठीक हूं. पर तुम यहां कैसे?’’ समर ने पूछा.

‘‘भाई समर मैं यहां कपाडि़या से मिलने आया था. पौलिसी के संबंध में वरना इस बड़े और महंगे होटल में मेरी क्या औकात आने की.’’

वह हंसा, ‘‘मैं ही कपाडि़या हूं. मैं ने ही बुलाया था.’’

मैं भौचक्का रह गया. कहा, ‘‘तुम तो समर राठी हो… क्यों मजाक…’’

उस ने मेरी बात काट कर, ‘‘चलो, कौफी पीते हुए बातें करते हैं.’’

मैं एजेंट था. क्लाइंट के पीछे चलना मेरी मजबूरी, मेरी रोजीरोटी थी.

समर ने कौफी मंगवाई. मैं ने फार्म निकाला. मैं उस के बताए अनुसार फार्म भरता गया. नौमिनेशन में सरिता कपाडि़या का नाम आते ही पल भर के लिए हाथ रुक गया.

उस ने हंसते हुए बताया, ‘‘तुम्हारी चुप्पी से सरिता कटी पतंग की तरह हो गई थी. मैं भी मध्यमवर्ग का था. मुझे भी पैसा, ऐशोआराम की जिंदगी चाहिए थी. यों समझ ले कि वह कटी पतंग मैं ने लूट ली. मैं उस के जीवन में आया. उसे प्रेम, दिलासा, अपनापन दिया. उस का दिल बहलाया. वह पहले से टूटी हुई थी. मुझ से जल्दी जुड़ गई. उस के पिता ने शर्त रखी कि तुम्हें घरजमाई बनना होगा. अपना सरनेम चेंज करना होगा. मैं जो चाहता था वह मुझे मिल गया. मैं पूरी तरह कपाडि़या हो कर सरिता और उस के पिता के कहने पर चला. आज मैं कपाडि़या सेठ हूं.’’

तभी सरिता आ गई. उस ने मुझे उचटती निगाह से देखा. मैं ने उसे देख कर पहलू बदला. उस ने कुछ भी पीने से इनकार कर दिया और समर से पूछा, ‘‘ये यहां कैसे?’’

‘‘बहुत दिनों से पौलिसी लेने के लिए फोन कर रहा था. यह मुझे नहीं पहचान पाया. मैं पहचान गया. मैं ने सोचा चलो दोस्त की मदद हो जाएगी.’’

सरिता ने व्यंग्य से कहा, ‘‘कैसे पहचान पाते. तुम ने अपनी जात ही बदल ली,’’ फिर हंसते हुए कहा, ‘‘प्रेम तो कोई तुम से करना सीखे. प्रेम में क्या जाति, क्या धर्म? पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनेआप को बदल ही नहीं पाते.’’

समर ने कहकहा लगाया. इस कहकहे में वह अपना अपमान छिपा गया. उस ने मुझ से पूछा, ‘‘देव, घर में सब कैसे हैं?’’

‘‘ठीक हैं.’’

‘‘मेरा मतलब तुम्हारी पत्नी, बच्चे?’’

‘‘मैं ने अपनी जिम्मेदारी के कारण शादी नहीं की. विधवा बहन के 2 बच्चों का पालनपोषण कर रहा हूं. सुपरवाइजरी की नौकरी छोड़ दी… वह नौकरी मुझे एहसान लगने लगी थी. किसी का कर्ज, कोई सौदा. फिर एलआईसी में एजेंट बन गया. अब दिनरात ग्राहक तलाशता हूं.’’

सरिता की आंखें भर आईं. फिर आंसुओं को रोकते हुए कहा, ‘‘जो लोग जीवन में सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाते, जो लोग जीवन में बड़े फैसले नहीं कर पाते, उन का कुछ नहीं हो सकता.’’

समर को लगा कि कहीं पुराना पे्रम फिर से हिलोरें न मारने लगे. अत: उस ने उठते

हुए कहा, ‘‘अच्छा देव, हमें चलना है. चलो सरिता.’’

देव अपनी फाइल व कागजात समेटने लगा. समर और सरिता बाहर निकल गए.

सरिता यों चल रही थी समर के साथ मानो अंत में हर नदी का अंजाम ही हो खारे सागर में मिल कर मरना. उस ने अपनी नियत स्वीकार ली थी.

देव की एक चुप्पी ने सरिता के जीवन में ऐसा बांध बना दिया कि उसे फिर से कलकल करते बहने के लिए किसी समर रूपी सागर में पनाह लेनी पड़ी. यह जानते हुए भी कि समर ने शादी उस की दौलत की खातिर की है. गंगोतरी की गंगा खारे पानी में मिल कर विलीन हो चुकी थी. उस की सरिता मर चुकी थी. सरिता के मरने में उस का भारी योगदान था. देव की सरिता, समर की सरिता. सागर में विलीन सरिता. उस की चुप्पी से अधूरी, अतृप्त, उदास सरिता.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: सुनिए दिल्ली प्रेस की महिला पत्रिकाओं की खास कहानियां सिर्फ ऑडिबल पर, बिल्कुल मुफ्त

8 मार्च, 2022: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, अमेज़न की एक कंपनी और विश्व में प्रमुख स्पोकन-वर्ड एंटरटेनमेन्ट कंपनी, ऑडिबल और भारत की सबसे बड़ी पत्रिका प्रकाशन कंपनी, दिल्ली प्रेस ने 60 से भी ज्यादा लोकप्रिय हिन्दी कहानियां जारी करने की घोषणा की है। इस प्रकाशन हाउस की सबसे प्रसिद्ध महिला पत्रिका गृहशोभा, सरिता, सरस सलिल और मनोहर कहानियां की कहानियों को ऑडियो फॉर्मेट में ऑडिबल पर बिलकुल मुफ्त में जारी किया गया है ।

ये कहानियां फैमिली ड्रामा और रोमांटिक प्रेम कहानियों वाली विधा में है, जोकि बेहद दिलचस्प और सुनने में आसान हैं। हमारे व्यस्त रहने वाले श्रोताओं के लिये ये कहानियां बिलकुल सटीक हैं, जो उनके ‘व्यस्त समय’ को फुर्सत के पलों में बदल देंगी, यानी मल्टीटास्किंग करते हुए भी इसे सुन सकते हैं। इस माध्यम की प्रकृति ऐसी है कि श्रोता इन कहानियों को घर के काम करते हुए, एक्सरसाइज करते हुए या फिर सोने के पहले के रूटीन को करते-करते भी सुन सकते हैं। इससे श्रोताओं को आनंद के वे निजी पल भी मिलते हैं- बस कानों में ईयरफोन्स लगायें और एक अलग ही दुनिया में खो जायें।

फैमिली ड्रामा जोनर की कुछ चर्चित कहानियों में शामिल हैं:

  • मैं सिर्फ बार्बी डॉल नहीं हूं (गृहशोभा पत्रिका से): यह खुद की सहायता और आत्मविश्वास की कहानी है, जो मनीष और परी के रिश्ते को लेकर बुनी गई है। जब परी को पहली बार पता चलता है कि उसे पीसीओएस है।
  • तालमेल (गृहशोभा पत्रिका से): यह आज के जमाने का फैमिली ड्रामा है। इसमें बूढ़े माता-पिता के संघर्षों और अपने बच्चों के साथ उनके रिश्ते की कहानी है।
  • वसीयत (गृहशोभा पत्रिका से): यह फैमिली ड्रामा, पति की असमय मौत के इर्द-गिर्द घूमता है, वसीयत आपको निश्चित रूप से आखिर तक बांधकर रखेगी।

रोमांस और रिश्ते शैली की अन्य कहानियों में शामिल हैं:

  • हरिनूर (सरस सलिल पत्रिका से): मूल में सांप्रदायिक भेदभाव लिये यह प्रेम कहानी, हरिनूर (शबीना और नीरज का बेटा), यह साबित करती है कि प्यार की हमेशा ही जीत होती है!
  • प्रेम कबूतर (सरिता पत्रिका से): प्यार, दुख और अलग-अलग ट्विस्ट वाली इस कहानी में यह जानने के लिये कि क्या अखिल वाकई पुतुल से प्यार करता है, इस कहानी को सुनें
  • अंतर्दाह (गृहशोभा पत्रिका से): यह एक घुमावदार प्रेम कहानी है, जहां अलका हर किसी के भले के लिये अपनी जिंदगी के साथ आगे बढ़ जाने का फैसला करती है।

शैलेष सवलानी, वीपी एवं कंट्री जीएम, ऑडिबल इंडिया का कहना है, “इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम भारत की कुछ बेहद चर्चित हिन्दी पत्रिकाओं की पहले से मशहूर हिन्दी कहानियों को ऑडियो के जरिये पेश कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि सभी श्रोताओं को इन कहानियों के सुनने का शानदार अनुभव मिलेगा। इसके साथ उन लोगों के लिये एक सहजता भी जुड़ी है जो पूरे दिन मल्टीटास्किंग करते हैं। अभी और आने वाले समय में इस तरह की पहलों के साथ, हम देशभर में अपने श्रोताओं के लिये अनूठा और अलग तरह का कंटेंट लाना जारी रखना चाहते हैं

अनंत नाथ, कार्यकारी प्रकाशक, दिल्ली प्रेस, “हमारी पत्रिकाओं को लाखों श्रोताओं का प्यार और सराहना मिलती है, खासकर महिलाओं की ओर से। इसकी वजह है ये मर्मस्पर्शी और वास्तविक-सी कहानियां हैं जोकि उनकी अलग-अलग भावनाओं से मेल खाती हैं, जिनसे रोजमर्रा के जीवन में वे रूबरू होती हैं। इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर, हम ऑडिबल पर इन चुनिंदा कहानियों को ऑडियो रूप में बड़े पैमाने पर दर्शकों तक लाने के लिये बेहद खुश है।”

ऑडिबल श्रोताओं के आनंद के लिये 2022 के दौरान विभिन्न शैलियों से दिल्ली प्रेस की सबसे प्रसिद्ध महिला पत्रिकाओं से लोकप्रिय हिन्दी कहानियों को ऑडियो रूप में जारी करता रहेगा। अधिक जानकारी के लिये इस स्पेस को देखें।

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About Delhi Press

Delhi Press is one of the oldest and leading magazine publishing houses in India. It publishes a portfolio of 30 magazines across 9 languages, which includes political, general interest, women’s interest, children’s interest, automotive and other special interest magazines. Some of the leading titles are The Caravan, Grihshobha, Sarita, Champak and Manohar Kahaniyan. Besides the print magazines, Delhi Press runs a suite of 7 websites and associated apps and social media handles. The magazines and digital assets have a collective reach of over 30 million each month.

काले और रूखे होंठों से हैं परेशान तो पिंक लिप्स के लिए करें ये काम

गरमी के मौसम में रूखे और काले होंठों की समस्या करीब करीब हर महिला को होती है. कुछ के लिए तो लिपबाम साथ रखना उतना ही जरूरी होता है जितना कि बटुआ. क्योंकि होंठों पर तेल की ग्रंथियां नहीं होतीं और न ही इन पर पर्यावरण से सुरक्षा देने के लिए बाल होते हैं. यही वजह है कि होंठ जल्दी रूखे हो जाते हैं और धूप की वजह से काले पड़ जाते हैं.

ऐसे में गरमी के मौसम में अपने होंठों को देखभाल के लिए अपनाएं ये 10 टिप्स:

  1. होंठों की नमी

त्वचा के लिए सब से ज्यादा जरूरी होता है उसे पर्याप्त नमी प्रदान करना. त्वचा और होंठों में पर्याप्त नमी बरकरार रखने के लिए हर मौसम में शरीर को पानी की जरूरत होती है. खासकर गरमियों में इसलिए इस मौसम में पानी पीएं.

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2. जीभ पर रखें काबू

होंठों पर बार बार जीभ फिराने से होंठ रूखे हो जाते हैं या इन की त्वचा खिंचने लगती है. तब होंठों को मुलायम और नम बनाए रखने के लिए मौइश्चर की जरूरत होती है. इसलिए होंठों पर जीभ फिराने की आदत छोड़ दें.

3. आहार में विटामिन बी शामिल करें

विटामिन बी पर्याप्त मात्रा में न लेने से न सिर्फ आप का पाचनतंत्र प्रभावित होता है, बल्कि इस से आप के होंठों की सेहत भी प्रभावित होती है. होंठों के किनारे और मुंह के कोने सूख कर फट जाते हैं. विटामिन बी की कमी से मुंह में अल्सर भी हो जाता है. ऐसे में सर्दी में होंठों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी लें.

4. धूम्रपान न करें

धूम्रपान से होंठ काले और रूखे हो जाते हैं, इसलिए होंठों की पिंक रंगत के लिए तुरंत धूम्रपान छोड़ दें. सिगरेट पीने वालों के होंठ काले रहते हैं.

पिंक लिप्स के लिए घरेलू नुस्खे…
1. लिप मास्क
शहद और नीबू की कुछ बूंदें मिला कर नियमित रूप से होंठों पर लगाएं. इस से होंठों की रंगत ठीक होगी और वे मुलायम भी रहेंगे. तेल भी होंठों के लिए अच्छा होता है. आप औलिव औयल, सरसों का तेल या लौंग का तेल होंठों पर लगा सकती हैं. इस से होंठ मुलायम और चमकदार रहेंगे. कैस्टर औयल भी होंठों के लिए बेहतरीन है. यह होंठों को फटने अथवा रंगत खराब होने से बचाता है.
2. होंठों के लिए कौस्मैटिक प्रौसिजर

जिन के होंठ पतले हैं और वे उन में उभार चाहती हैं, उन के लिए डर्मल फिलर जुवेडर्म बेहतरीन और प्रभावी विकल्प है. जब यह होंठों पर लगाया जाता है, तब ह्यालुरोनिक ऐसिड बेस्ड फिलर होंठों को उभार देता है. हाइडोफिलिक जैल भी होंठों में नमी का ठहराव बढ़ाता है और रूखे व फटे होंठों को नमी प्रदान करता है. इस का असर 6 से 9 महीने तक बरकरार रहता है.

3. यूवी किरणों से सुरक्षा

सूर्य की यूवी किरणों के संपर्क में आने से होंठों की रंगत फीकी हो जाती है. ऐसे में त्वचा की तरह होंठों को भी यूवी किरणों से सुरक्षित रखने की जरूरत होती है. होंठों को रूखा और काला होने से बचाने के लिए ऐसे बाम या जैल का इस्तेमाल करें, जो सूर्य की यूवी किरणों से सुरक्षा देता हो.

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4. गरमियों के लिए उपयुक्त लिपस्टिक

अगर आप लिपस्टिक लगाती हैं तो ऐसी लिपस्टिक खरीदें जिस में अच्छी मात्रा में मौइश्चराइजर भी हो. लिपस्टिक लगा कर कभी सोए नहीं. सोने से पहले इसे जरूर हटा लें और कोई अच्छा मौइश्चराइजिंग लिपबाम लगाएं. ऐसा बाम न लगाएं जिस में ग्लिसरीन, अल्कोहल, कैमिकल वाले तत्त्व अथवा रैटिनोल हो.

5. होंठों को भी चाहिए स्क्रबिंग

 

होंठों की रंगत सुधारें….

होंठों को काला होने से बचाना चाहती हैं, तो नीबू का इस्तेमाल करें. नीबू में प्राकृतिक ब्लीच होती है, जिस से होंठों के धब्बे आसानी से हलके हो जाते हैं.

होंठों को गुलाबी रंगत देने, उन्हें ठंडा रखने, मौइश्चराइज करने और ऐक्सफोलिएट करने के लिए चुकंदर और गुलाबजल का इस्तेमाल करें.

आप गुलाबजल की कुछ बूंदें शहद में मिला कर भी होंठों पर लगा सकती हैं. अपने होंठों को पोषण और नमी देने के लिए आप इन की औलिव औयल से मसाज भी कर सकती हैं.

होंठों को प्राकृतिक रूप से गुलाबी बनाने के लिए अनार के रस की कुछ बूंदों को होंठों पर मसलें. अनार के रस में पानी और क्रीम मिला कर होंठों पर लगाएं.

-डा. इंदु बलानी

डर्मेटोलौजिस्ट, दिल्ली 

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