पक्की सहेलियां: किराएदार पंखुड़ी के आने क्यों डर गई थी विनिता?

पति निशांत की प्रमोशन और स्थानांतरण के बाद विनिता अपने 5 वर्षीय बेटे विहान को ले कर हजारीबाग से रांची आ गई. महत्त्वाकांक्षी निशांत को वहां की पौश कालोनी अशोक नगर में कपंनी द्वारा किराए का मकान मिला था, जिस में रांची पहुंचते ही वे शिफ्ट हो गए. मकान बड़ा, हवादार और दोमंजिला था. नीचे मकानमालिक रहते थे और ऊपर विनिता का परिवार.

मकान के पार्श्व में बने बड़े गैरेज के ऊपर भी एक बैडरूम वाला छोटा सा फ्लैट बना था, जो खाली पड़ा था. उस फ्लैट को ऊपरी मंजिल से इस तरह जोड़ा गया था कि दोनों फ्लैटों में रहने वाले आनेजाने के लिए कौमन सीढि़यों का उपयोग कर सकें.

रांची आते ही निशांत ने विहान का ऐडमिशन एक अच्छे स्कूल में करवा कर

औफिस जौइन कर लिया. स्कूल ज्यादा दूर नहीं था पर विनिता को स्कूटी चलाना न आने के कारण निशांत को अपनी कार से औफिस जाते समय विहान को स्कूल छोड़ना और लंच टाइम में आते वक्त उसे वापस लाना पड़ता था. कुछ दिनों तक तो ठीक चला पर नई जगह, नया पद और जिम्मेदारियां, इन सब ने निशांत को धीरेधीरे काफी व्यस्त कर दिया. अब निशांत सुबह 9 बजे निकल जाता और शाम के 7-8 बजे तक ही लौट पाता था, वह भी बिलकुल थका हुआ.

एक दिन निशांत ने विनिता से कहा, ‘‘तुम स्कूटी चलाना क्यों नहीं सीख लेतीं? कम से कम विहान को स्कूल पहुंचाने व लाने का तथा दूसरे छोटेमोटे काम तो कर ही सकती हो.’’

‘‘अरे मुझे क्या जरूरत है स्कूटी सीखने या बाहर के काम करने की. ये काम तो मर्दों के होते हैं, मैं तो घर में ही भली,’’ विनिता बोली.

मजबूरन विहान के लिए निशांत ने औटोरिकशा लगवा दिया. उस के बाद निशांत ने इस संबंध में कोई बात नहीं की. घरेलू और मिलनसार स्वभाव की विनिता खुद को घरगृहस्थी के कामों में ही व्यस्त रखती थी. लगभग डेढ़दो महीने उसे अपने घर को सुव्यवस्थित करने में लग गए. मकानमालकिन की मदद से अच्छी बाई मिल गई, तो विनिता ने चैन की सांस ली. विहान के स्कूल से आने के बाद अब वह उसी के साथ व्यस्त रहती.

घर सैट हो गया तो विनिता ने पासपड़ोस में अपनी पहचान बनानी शुरू करनी चाही पर छोटी जगह से आई विनिता को यह पता नहीं था कि ज्यादातर पौश कालोनी में रहने वाले पड़ोसियों का संबंध सिर्फ हायहैलो और स्माइल तक ही सीमित रहता है. कारण, वे सभी अपनेआप में हर तरह की सुविधा से आत्मनिर्भर होते हैं. 1-2 लोगों के साथ दोस्ती भी हुई पर सिर्फ औपचारिक तौर पर. अत: घर का काम खत्म होने पर जब कभी उसे खाली समय मिलता तो या तो वह टीवी देखती या फिर दिल बहलाने के लिए नीचे मकानमालिक के घर चली जाती.

मकानमालिक बुजुर्ग दंपती थे, जिन के बच्चे विदेश में बसे थे. वे साल में 6 महीने विदेश में ही रहते थे अपने बच्चों के पास. गृहकार्य में दक्ष विनिता कभी कुछ विशेष खाना बनाती तो नीचे जरूर भेजती. नए किराएदार निशांत और विनीता के व्यवहार से बुजुर्ग दंपती बहुत संतुष्ट थे. उन तीनों को अपने बच्चों की तरह प्यार करने लगे थे. ये दोनों भी उन्हें आंटीअंकल कह कर बुलाने लगे. ज्यादातर संडे को छुट्टी होने के कारण चारों कभी ऊपर तो कभी नीचे एकसाथ चाय पी लिया करते थे.

ऐसे ही एक संडे की शाम को निशांत और विनिता नीचे आंटीअंकल के साथ चाय पी रहे थे. तभी अंकल ने पूछा, ‘‘बेटा, आप दोनों को अभी छुट्टी ले कर घर तो नहीं जाना है?’’

निशांत ने कहा, ‘‘नहीं अंकल, अभी अगले 6-7 महीने तो सोच भी नहीं सकता, क्योंकि औफिस का बहुत सारा काम पूरा करना है मुझे.’’

विनिता से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘मगर अंकल आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘वह इसलिए कि हम दोनों निश्चिंत हो कर कुछ महीनों के लिए अपने बच्चों से मिलने विदेश उन के पास जा सकें,’’ आंटी ने कहा तो विनिता मन ही मन घबरा गई.

घर आ कर भी विनिता सोचती रही कि इन दोनों के जाने के बाद तो घर सूना हो जाएगा, वह बिलकुल अकेली हो जाएगी. भले ही वह रोज नहीं मिलती उन से, पर कम से कम उन की आवाजें तो आती रहती हैं उस के कानों में.

सोते समय निशांत ने विनिता को सीरियस देखा तो पूछ लिया, ‘‘क्या बात है,

आंटीअंकल के जाने से तुम परेशान क्यों हो रही हो?’’

विनिता ने अपने दिल की बात बताई तो निशांत को भी एहसास हुआ कि वाकई इतने बड़े घर में विनिता अकेली हो जाएगी.

थोड़ी देर बाद विनिता ने कहा, ‘‘निशांत, क्यों न आंटीअंकल को गैरेज वाले फ्लैट में एक किराएदार रखने की सलाह दी जाए, जिस से उन को इनकम हो जाएगी और हम लोगों का सूनापन दूर हो जाएगा.’’

निशांत को विनिता की बात जंच गई. अगले दिन औफिस जाते वक्त निशांत ने जब अंकल से इस बात की चर्चा की तो उन्होंने न केवल किराएदार रखने वाली उन की बात का स्वागत किया, बल्कि नया किराएदार ढूंढ़ने का जिम्मा भी निशांत को ही सौंप दिया.

3-4 दिनों के बाद शाम के समय विनिता नीचे आंटीअंकल के पास बैठी हुई निशांत का इंतजार कर रही थी. तभी चुस्त कपड़े, हाई हील पहने और बड़ा सा बैग कंधे से लटकाए एक आधुनिक सी दिखने वाली लड़की कार से उतर गेट खोल कर अंदर दाखिल हुई. आते ही उस ने बड़ी संजीदगी से पूछा, ‘‘माफ कीजिएगा, क्या उमेशजी का यही घर है?’’

‘‘जी हां, बताइए क्या काम है? मैं ही हूं उमेश,’’ अंकल बोले.

‘‘गुड ईवनिंग सर, मैं पंखुड़ी,’’ कह कर उस ने अंकल से हाथ मिलाया. फिर कहने लगी, ‘‘आज निशांत से पता चला कि आप के घर में एक फ्लैट खाली है किराए के लिए. मैं उसी सिलसिले में आई हूं.’’

‘अच्छा तो यह फैशनेबल सी लड़की किराएदार बनने आई है,’ सोच संकोची स्वभाव की विनिता उठ कर ऊपर जाने लगी. तभी अंकल ने अपनी पत्नी और विनिता से उस का परिचय करवाया. पंखुड़ी ने दोनों की तरफ मुखातिब होते हुए ‘हैलो’ कहा. फिर अंकल से बातचीत करने और फ्लैट देखने चली गई. बड़ा अटपटा लगा विनिता को कि उम्र में इतनी छोटी होने पर भी कितने आराम से उस ने सिर्फ हैलो कहा. कम से कम वह उसे न सही आंटी को नमस्ते तो कह सकती थी, उन की उम्र का लिहाज कर के. खैर, उसे क्या. उस ने मन ही मन सोचा.

अंकल से बात करते समय विनिता ने सुना कि पंखुड़ी एक मल्टी नैशनल कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव पद पर है. वह अंकल से कह रही थी, ‘‘देखिए मेरे वर्किंग आवर्स फिक्स नहीं हैं, शिफ्टों में ड्यूटी करनी पड़ती है. मेरे आनेजाने का समय भी कोई निश्चित नहीं है, कभी देर रात आती हूं तो कभी मुंह अंधेरे निकल जाती हूं. कभीकभी तो टूअर पर भी जाना पड़ता है 2-3 दिनों के लिए. आप को कोई आपत्ति तो नहीं?

‘मैं इस बात को पहले ही पूछ लेना चाहती हूं, क्योंकि अभी जहां मैं रह रही हूं उन्हें इस बात पर आपत्ति है… लोग लड़की के देर रात घर आने को सीधे उस के करैक्टर से जोड़ कर देखते हैं… एकदम घटिया सोच,’’ कह कर वह चुप हो गई.

इस के बाद क्या हुआ, यह पता नहीं. विनिता वहां से अपने घर चली आई. उसे वह लड़की बहुत तेजतर्रार और बिंदास लगी.

उस शाम निशांत काफी देर से घर लौटा. खापी कर तुरंत सो गया. पंखुड़ी के बारे में पूछने का मौका ही नहीं मिला विनिता को. अगले शनिवार की शाम जब देर रात विनिता परिवार सहित शौपिंग कर के लौटी तो देखा खाली पड़े फ्लैट की लाइट जल रही है. शायद कोई नया किराएदार आ गया है. नीचे सीढ़ी का दरवाजा बंद कर के विनिता हैलो करने की नीयत से मिलने गई तो देखा ताला लगा था.

रात करीब 12 बजे घंटी की आवाज से विनिता की नींद खुली. उस ने निशांत को

उठाया और नीचे यह सोच कर भेजा कि अंकलआंटी को कुछ जरूरत तो नहीं?

थोड़ी देर में निशांत वापस आया और सोने लगा तो विनिता ने पूछा, ‘‘कौन था?’’

निशांत ने कहा, ‘‘अंकल की नई किराएदार पंखुड़ी.’’

विनिता ने तुरंत कहा, ‘‘निशांत, तुम कोई घरेलू, समझदार, किराएदार नहीं ढूंढ़ सकते थे अंकल के लिए? वक्तबेवक्त आ जा कर हमें डिस्टर्ब करती रहेगी. अंकल तो चले जाएंगे अपने बच्चों के पास, पर साथ रहना तो हम दोनों को ही है.’’

नींद से भरा निशांत उस समय बात करने के मूड में नहीं था. गुस्से से बोला, ‘‘अरे वह पढ़ीलिखी नौकरी करने वाली लड़की है. वह कब जाए या कब आए इस से हमें क्या फर्क पड़ेगा भला? आज पहला दिन है, अपने साथ सीढ़ी के दरवाजे की चाबी ले जाना भूल गई थी वह,’’ कह कर वह गहरी नींद में सो गया.

विनिता को निशांत का इस तरह बोलना बहुत बुरा लगा. उस दिन पंखुड़ी पर और भी गुस्सा आया. मृदुभाषी और समझदार स्वभाव की विनिता पति की व्यस्तता को समझती थी. उसे इस बात से कोई शिकायत नहीं रहती कि निशांत देर से घर क्यों आता है, बल्कि पति के आने पर मुसकराते हुए वह उसे गरमगरम चाय पिलाती ताकि उस की थकान मिट जाए.

अगली सुबह सब थोड़ी देर से उठे. चाय बनाने लगी तो विनिता को पंखुड़ी का ध्यान आया. उस ने निशांत से पूछे बगैर उस के लिए भी चाय बना दी और दरवाजा खटखटा कर चाय पहुंचा आई. उनींदी आंखों से पंखुड़ी ने दरवाजा खोल कप ले कर थैंक्स कह झट दरवाजा बंद कर लिया.

विनिता सकपका गई. कोई तमीज नहीं कि 2 मिनट बात ही कर लेती. शायद नींद डिस्टर्ब हो गई थी उस की. सारा दिन घर बंद रहा. सो रही होगी, शाम को सजधज

कर पंखुड़ी चाय का कप वापस करने विनिता के पास आई. वैसे तो वह विनिता से मिलने आई थी, पर सारा समय निशांत और विहान से ही इधरउधर की बातें करती रही.

विनिता के पूछने पर कि चाय बनाऊं तुम्हारे लिए पंखुड़ी ने कहा, ‘‘थैंक्स, मैं चाय नहीं पीती.’’ ‘चाय की जगह जरूर यह कुछ और पीती होगी यानी बोतल वाली चाय’ विनिता ने सोचा. फिर यह पूछने पर कि किचन में खाना बनाना अभी शुरू किया या नहीं. पंखुड़ी तपाक से बोली, ‘‘अरे, किचन का झमेला मैं नहीं रखती. कौन कुकिंग करे? समय की बरबादी है. बाहर ही खाती हूं या पैक्ड खाना मंगवा लेती हूं.’’

थोड़ी देर बाद उस ने अपनी कार निकाली और चली दी कहीं घूमने. जाते वक्त हंसते हुए कहा, ‘‘डौंट वरी निशांत आज मैं चाबी साथ लिए जा रही हूं.’’ इस बात पर निशांत और पंखुड़ी ने एक जोरदार ठहाका लगाया, पर पता नहीं हंसमुख स्वभाव वाली विनिता को हंसी क्यों नहीं आई.

रात को सोते समय विनिता ने निशांत से कहा, ‘‘हाय, कैसी है यह पंखुड़ी… लड़कियों वाले तो लक्षण ही नहीं हैं इस में. सारे काम मर्दों वाले करती है, शादी कर के कैसे घर बसाएगी यह? ऐसी ही लड़कियों की ससुराल और पति से नहीं बनती है. पति दुखी रहता है या तलाक हो जाता है. एक मैं थी कालेज पहुंचतेपहुंचते सिलाईकढ़ाई के अलावा घरगृहस्थी का भी सारा काम सीख लिया था?’’

निशांत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘वह खाना बनाना नहीं जानती है, यह कौन सी बुराई हुई उस की? देखती नहीं कितनी स्मार्ट, मेहनती, आत्मनिर्भर और औफिस के कामों में दक्ष है वह… दुखी सिर्फ इस जैसी लड़की के पति ही क्यों, दुखी तो उन

घरेलू पत्नियों के पति भी हो सकते हैं, जो इस आधुनिक जमाने में भी खुद को बस घर की चारदीवारी में ही कैद रखना पसंद करती हैं. छोटेमोटे कामों के लिए भी पूर्णतया पिता, पति, भाई या बेटे पर निर्भर… बदलते समय के साथ ये खुद नहीं बदलती हैं उलटे जो बदल रहा है उस में भी कुछ न कुछ खोट निकालती रहती हैं.’’

विनिता ने निशांत का इशारा समझ लिया था कि पूर्णतया निर्भर होने वाली बात किसे इंगित कर के कही जा रही है. इस के अलावा निशांत द्वारा पंखुड़ी की इतनी तारीफ करना उसे जरा भी नहीं सुहाया. दिल ने हौले से कहा कि सावधान विनिता. ऐसी ही लड़कियां दूसरों का घर तोड़ती हैं. आजकल जब देखो निशांत पंखुड़ी की तारीफ करता रहता है.

कुछ दिनों बाद आंटीअंकल विदेश चले गए. पंखुड़ी अपनी दुनिया में मस्त और विनिता अपनी गृहस्थी में. मगर जानेअनजाने विनिता पंखुड़ी की हर गतिविधि पर ध्यान देने लगी थी कि कब वह आतीजाती है या कौन उसे ले जाने या छोड़ने आता है. ऐसा नहीं था कि पंखुड़ी को इस बात का पता नहीं था. वह सब समझती थी पर जानबूझ कर उसे इगनोर करती, क्योंकि उस के दिमाग में था कि विनिता जैसी हाउसवाइफ के पास कोई काम नहीं होता दिन भर सिवा खाना बनाने और लोगों की जासूसी करने के.

इस तरह आपस में हायहैलो होते हुए भी एक अदृश्य सी दीवार खिंच गई थी दोनों में.

2 नारियां, पढ़ीलिखी, लगभग समान उम्र की पर बिलकुल विपरीत सोच और संस्कारों वाली. एक के लिए पति, बच्चा और घरगृहस्थी ही पूरी दुनिया थी तो दूसरी के लिए घर सिर्फ रहने और सोने का स्थान भर.

एक बार विनिता ने पंखुड़ी को पिछले 24 घंटों से कहीं आतेजाते नहीं देखा. पहले

सोचा कि उसे क्या, वह क्यों चिंता करे पंखुड़ी की? उस की चिंता करने वाले तो कई लोग होंगे या फिर आज कहीं जाने के मूड में नहीं होगी स्मार्ट मैडम. पर जब दिल नहीं माना तो बहाना कर के विहान को भेज दिया यह कह कर कि जाओ पंखुड़ी आंटी के साथ थोड़ी देर खेल आओ. मगर कुछ ही देर में विहान दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘मम्मी… मम्मी… मैं कैसे खेल सकता हूं आंटी के साथ, उन्हें तो बुखार है.’’

बुखार का नाम सुनते ही विनिता तुरंत पंखुड़ी के घर पहुंच गई. घंटी बजाई तो अंदर से धीमी आवाज आई, ‘‘दरवाजा खुला है. अंदर आ जाइए.’’

अंदर दाखिल होने पर विनिता ने देखा कि पंखुड़ी कंबल ओढ़े बिस्तर पर बेसुध पड़ी है. छू कर देखा तो तेज बुखार से बदन तप रहा था. चारों तरफ निगाहें दौड़ाईं, सारा घर अस्तव्यस्त दिख रहा था. एक भी सामान अपनी जगह नहीं. तुरंत भाग कर अपने घर आई, थर्मामीटर और ठंडे पानी से भरा कटोरा लिया और वापस पहुंची पंखुड़ी के पास. बुखार नापा, सिर पर ठंडे पानी की पट्टियां रखनी शुरू कीं. थोड़ी देर बाद बुखार कम हुआ और जब पंखुड़ी ने आंखें खोलीं तो विनिता ने पूछा, ‘‘दवाई ली है या नहीं?’’

पंखुड़ी ने न कहा और फिर इशारे से बताया कि दवा कहां रखी है? विनिता ने उसे बिस्कुट खिला दवा खिलाई और फिर देर तक उस का सिर दबाती रही. जब पंखुड़ी को थोड़ा आराम हुआ तो विनिता अपने घर लौट गई. आधे घंटे बाद वह ब्रैड और गरमगरम सूप ले कर पंखुड़ी के पास लौटी. उस के मना करने पर भी उसे बड़े प्यार से खिलाया. इस तरह पंखुड़ी के ठीक होने तक विनिता ने उस का हर तरह से खयाल रखा.

पंखुड़ी विनिता की नि:स्वार्थ सेवा देख शर्मिंदा थी. उसे अपनी इस सोच पर अफसोस हो रहा था कि विनिता जैसी हाउसवाइफ के पास कोई काम नहीं होता सिवा जासूसी करने और खाना पकाने के. अगर विनिता ने समय पर उस का हाल नहीं लिया होता तो पता नहीं उसे कितने दिनों तक बिस्तर पर रहना पड़ता.

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खैर, इस के बाद विनिता के प्रति पंखुड़ी का नजरिया बदल गया. अब जब भी विनिता के घर आती तो निशांत, विहान के साथसाथ विनिता से भी बातें करती. विनिता की संगति में रह कर अब उस ने अपने घर को भी सुव्यवस्थित रखना शुरू कर दिया था.

आजकल निशांत पहले से भी ज्यादा व्यस्त रहने लगा था. फिर एक दिन चहकता हुआ घर आया. चाय पीते हुए निशांत बता रहा था कि उस के काम से खुश हो कंपनी की तरफ से उसे फ्रांस भेजा जा रहा है प्रशिक्षण लेने के लिए. अगर वह अपने प्रशिक्षण में अच्छा करेगा तो अनुभव हासिल करने के लिए परिवार सहित 2 साल तक उसे फ्रांस में रहने का मौका भी मिल सकता है.

पति की इस उपलब्धि पर विनिता बहुत खुश हुई, लेकिन यह सुन कर कि प्रशिक्षण के दौरान निशांत को अकेले ही जाना है, उस का कोमल मन घबरा उठा. निशांत के बिना अकेले कैसे रह पाएगी वह विहान को ले कर? घर में भी कोई ऐसा फ्री नहीं है, जिसे 3 महीनों के लिए बुला सके. विनिता ने निशांत को बधाई दी फिर धीरे से कहा, ‘‘अगर फ्रांस जाना है तो हम दोनों को भी अपने साथ ले चलो वरना मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दूंगी, क्या तुम ने तनिक सोचा है कि तुम्हारे जाने के बाद यहां मैं अकेले विहान के साथ कैसे रह पाऊंगी 3 महीने?’’

भविष्य के सुनहरे ख्वाब देखने में डूबे निशांत को विनिता की यह बात जरा भी नहीं भाई. झल्लाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी समस्या है मेरी नहीं. कितनी बार कहा कि समय के साथ खुद को बदलो, नईनई जानकारी हासिल करो. बाहर का काम

निबटाना सीखो पर तुम ने तो इन कामों को भी औरतों और मर्दों के नाम पर बांट रखा है.

‘‘अब दिनरात मेहनत करने के बाद यह अवसर हाथ आया है तो क्या तुम्हारी इन बेवकूफियों के चक्कर में मैं इसे हाथ से गंवा दूं? हरगिज नहीं. अगर तुम अकेली नहीं रह सकती तो अभी चली जाओ विहान को ले कर अपनी मां या मेरी मां के घर. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो गई ऐसी पिछड़ी मानसिकता वाली बीवी पा कर,’’ और फिर फ्रैश होने चला गया.

विनिता का दिल धक से रह गया. पति के इस कटु व्यवहार से उस की आंखों से आंसू बहने लगे. लगा उस की तो बसीबसाई गृहस्थी उजड़ जाएगी. साथ ही यह भी महसूस होने लगा कि निशांत भी क्या करे बेचारा, उस के कैरियर का सवाल है. दिल ने कहा इस स्थिति की जिम्मेदार भी काफी हद तक वह खुद ही है.

अब यह बात उस की समझ में आ चुकी थी कि वर्तमान समय में हाउसवाइफ को सिर्फ घर के अंदर वाले काम ही नहीं, बल्कि बाहर वाले जरूरी काम भी आने चाहिए. आज पढ़ीलिखी होने के बावजूद अपने को असफल, हीन और असहाय समझ रही थी. कारण घर के बाहर का कोई काम वह करने के लायक नहीं थी. इतनी बड़ी खुशी मिलने पर भी पतिपत्नी में तनाव उत्पन्न हो गया था.

अगले दिन चाय पीते समय पंखुड़ी भी वहां पहुंच गई. आते ही जोश के साथ निशांत को बधाई दी और पार्टी की मांग करने लगी.

निशांत का गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ था. उस ने कहा, ‘‘अरे कैसी बधाई और कैसी पार्टी पंखुड़ी? मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा इस जिंदगी में कभी.’’

पंखुड़ी को निशांत की बात कुछ समझ नहीं आई. विनिता ने बात छिपानी चाही कि इस बिंदास लड़की से बताने का क्या फायदा, उलटे कहीं इस ने जान लिया तो खूब हंसी उड़ाएगी मेरी, पर गुस्से में निशांत ने अपनी सारी परेशानी पंखुड़ी को सुना

डाली.

विनिता तो मानो शर्म के मारे धरती के अंदर धंसी जा रही थी. मगर सारी बात ध्यान से सुनने के बाद पंखुड़ी हंसने लगी और फिर हंसतेहंसते ही बोली, ‘‘डौंट वरी निशांत, यह भी कोई परेशानी है भला? इस का समाधान तो कुछ दिनों में ही हो जाएगा. आप अपनी पैकिंग और मेरी पार्टी की तैयारी शुरू कर दीजिए.’’

निशांत हैरान सा पंखुड़ी का मुंह देखने लगा. विनिता की तरफ मुखातिब होते हुए पंखुड़ी ने कहा, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं विनिता. अगर कुछ सीखने का पक्का निर्णय कर लिया हो तो आज से ही मैं तुम्हें इंटरनैट का काम सिखाना शुरू कर सकती हूं और निशांत के जाने के पहले धीरेधीरे बाहर के सारे काम भी मैं सिखा दूंगी,’’ और फिर अपना लैपटौप लेने अपने घर चली गई.

विनिता सन्न थी अपनी संकीर्ण सोच पर. जिस पंखुड़ी को वह तेजतर्रार और दूसरों का घर तोड़ने वाली लड़की समझती थी, वह इतनी जिम्मेदार और उसे ले कर इतनी संवेदनशील होगी, इस की तो कल्पना भी विनिता ने नहीं की थी.

मिनटों में पंखुड़ी वापस आ गई. अपना लैपटौप औन करते हुए बोली, ‘‘विनिता मैं तुम्हारी गुरु तो बनूंगी, पर एक शर्त है तुम्हें भी गुरु बनना पड़ेगा मेरी.’’

विनिता के मुंह से निकला, ‘‘भला वह क्यो?’’

पंखुड़ी ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हें देख कर मैं ने भी अपना घर बसाने का फैसला कर लिया है, पर घरगृहस्थी के काम में मैं बिलकुल जीरो हूं. मैं ने महसूस किया है अगर आज के जमाने में हाउसवाइफ के लिए बाहर का काम सीखना जरूरी होता है तो उसी तरह सफल और शांतिपूर्ण घरगृहस्थी चलाने के लिए वर्किंग लेडी को भी घर और किचन का थोड़ाबहुत काम जरूर आना चाहिए. अगर तुम चाहो तो अब हम

दोनों एकदूसरे की टीचर और स्टूडैंट बन कर सीखनेसिखाने का काम कर सकती हैं. मैं तुम्हें बाहर का काम करना सिखाऊंगी और तुम मुझे किचन और घर संभालना.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. यह भी कोई पूछने की बात है?’’ खुश हो कर विनिता ने पंखुड़ी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘पर मेरी भी एक शर्त है कि यह सीखनेसिखाने का काम हम दोनों स्टूडैंटटीचर की तरह नहीं, बल्कि पक्की सहेलियां बन कर करेंगी.’’

‘‘मंजूर है,’’ पंखुड़ी बोली.

फिर एक जोरदार ठहाका लगा, जिस में इन दोनों के अलावा निशांत की आवाज भी शामिल थी. माहौल खुशनुमा बन चुका था.

सीख: जब बहुओं को मिलजुल कर रखने के लिए सास ने निकाली तरकीब

हमारे घर की खुशियों और सुखशांति पर अचानक ही ग्रहण लग गया. पहले हमेशा चुस्तदुरुस्त रहने वाली मां को दिल का दौरा पड़ा. वे घर की मजबूत रीढ़ थीं. उन का आई.सी.यू. में भरती होना हम सब के पैरों तले से जमीन खिसका गया. वे करीब हफ्ते भर अस्पताल में रहीं. इतने समय में ही बड़ी और छोटी भाभी के बीच तनातनी पैदा हो गई.

छोटी भाभी शिखा की विकास भैया से करीब 7 महीने पहले शादी हुई थी. वे औफिस जाती हैं. मां अस्पताल में भरती हुईं तो उन्होंने छुट्टी ले ली.

मां को 48 घंटे के बाद डाक्टर ने खतरे से बाहर घोषित किया तो शिखा भाभी अगले दिन से औफिस जाने लगीं. औफिस में इन दिनों काम का बहुत जोर होने के कारण उन्हें ऐसा करना पड़ा था.

बड़ी भाभी नीरजा को छोटी भाभी का ऐसा करना कतई नहीं जंचा.

‘‘मैं अकेली घर का काम संभालूं या अस्पताल में मांजी के पास रहूं?’’ अपनी देवरानी शिखा को औफिस जाने को तैयार होते देख वे गुस्से से भर गईं, ‘‘किसी एक इनसान के दफ्तर न पहुंचने से वह बंद नहीं हो जाएगा. इस कठिन समय में शिखा का काम में हाथ न बंटाना ठीक नहीं है.’’

‘‘दीदी, मेरी मजबूरी है. मुझे 8-10 दिन औफिस जाना ही पड़ेगा. फिर मैं छुट्टी ले लूंगी और आप खूब आराम करना,’’ शिखा भाभी की सहजता से कही गई इस बात का नीरजा भाभी खामखां ही बुरा मान गईं.

यह सच है कि नीरजा भाभी मां के साथ बड़ी गहराई से जुड़ी हुई हैं. उन की मां उन्हें बचपन में ही छोड़ कर चल बसी थीं. सासबहू के बीच बड़ा मजबूत रिश्ता था और मां को पड़े दिल के दौरे ने नीरजा भाभी को दुख, तनाव व चिंता से भर दिया था.

शिखा भाभी की बात से बड़ी भाभी अचानक बहुत ज्यादा चिढ़ गई थीं.

‘‘बनठन कर औफिस में बस मटरगश्ती करने जाती हो तुम…मैं घर न संभालूं तो तुम्हें आटेदाल का भाव मालूम पड़ जाए…’’ ऐसी कड़वी बातें मुंह से निकाल कर बड़ी भाभी ने शिखा को रुला दिया था.

‘‘मुझे नहीं करनी नौकरी…मैं त्यागपत्र दे दूंगी,’’ उन की इस धमकी को सब ने सुना और घर का माहौल और ज्यादा तनावग्रस्त हो गया.

शिखा भाभी की पगार घर की आर्थिक स्थिति को ठीकठाक बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी. सब जानते थे कि वे जिद्दी स्वभाव की हैं और जिद पर अड़ कर कहीं सचमुच त्यागपत्र न दे दें, इस डर ने पापा को इस मामले में हस्तक्षेप करने को मजबूर कर दिया.

‘‘बहू, उसे दफ्तर जाने दो. हम सब हैं न यहां का काम संभालने के लिए. तुम अपनी सास के साथ अस्पताल में रहो. अंजलि रसोई संभालेगी,’’ पापा ने नीरजा भाभी को गंभीर लहजे में समझाया और उन की आंखों का इशारा समझ मैं रसोई में घुस गई.

राजीव भैया ने नीरजा भाभी को जोर से डांटा, ‘‘इस परेशानी के समय में तुम क्या काम का रोनाधोना ले कर बैठ गई हो. जरूरी न होता तो शिखा कभी औफिस जाने को तैयार न होती. जाओ, उसे मना कर औफिस भेजो.’’

राजीव भैया के सख्त लहजे ने भाभी की आंखों में आंसू ला दिए. उन्होंने नाराजगी भरी खामोशी अख्तियार कर ली. विशेषकर शिखा भाभी से उन की बोलचाल न के बराबर रह गई थी.

अस्पताल से घर लौटी मां को अपनी दोनों बहुओं के बीच चल रहे मनमुटाव का पता पहले दिन ही चल गया.

उन्होंने दोनों बहुओं को अलगअलग और एकसाथ बिठा कर समझाया, पर स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ. दोनों भाभियां आपस में खिंचीखिंची सी रहतीं. उन के ऐसे व्यवहार के चलते घर का माहौल तनावग्रस्त बना रहने लगा.

बड़े भैया से नीरजा भाभी को डांट पड़ती, ‘‘तुम बड़ी हो और इसलिए तुम्हें ज्यादा जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए. बच्चों की तरह मुंह फुला कर घूमना तुम्हें शोभा नहीं देता है.’’

छोटे भैया विकास भी शिखा भाभी के साथ सख्ती से पेश आते.

‘‘तुम्हारे गलत व्यवहार के कारण मां को दुख पहुंच रहा है, शिखा. डाक्टरों ने कहा है कि टैंशन उन के लिए घातक साबित हो सकता है. अगर उन्हें दूसरा अटैक पड़ गया तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा,’’ ऐसी कठोर बातें कह कर विकास भैया शिखा भाभी को रुला डालते.

पापा का काम सब को समझाना था. कभीकभी वे बेचारे बड़े उदास नजर आते. जीवनसंगिनी की बीमारी व घर में घुस आई अशांति के कारण वे थके व टूटे से दिखने लगे थे.

मां ज्यादातर अपने कमरे में पलंग पर लेटी आराम करती रहतीं. बहुओं के मूड की जानकारी उन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्होंने मुझ पर डाली हुई थी. मैं बहुत कुछ बातें उन से छिपा जाती, पर झूठ नहीं बोलती. घर की बिगड़ती जा रही स्थिति को ले कर मां की आंखों में चिंता के भावों को मैं निरंतर बढ़ते देख रही थी.

फिर एक खुशी का मौका आ गया. मेरे 3 साल के भतीजे मोहित का जन्मदिन रविवार को पड़ा. इस अवसर पर घर के बोझिल माहौल को दूर भगाने का प्रयास हम सभी ने दिल से किया था.

शिखा भाभी मोहित के लिए बैटरी से पटरियों पर चलने वाली ट्रेन लाईं. हम सभी बनसंवर कर तैयार हुए. बहुत करीबी रिश्तेदारों व मित्रों के लिए लजीज खाना हलवाई से तैयार कराया गया.

उस दिन खूब मौजमस्ती रही. केक कटा, जम कर खायापिया गया और कुछ देर डांस भी हुआ. यह देख कर हमारी खुशियां दोगुनी हो गईं कि नीरजा और शिखा भाभी खूब खुल कर आपस में हंसबोल रही थीं.

लेकिन रात को एक और घटना ने घर में तनाव और बढ़ा दिया था.

शिखा भाभी ने रात को अपने पहने हुए जेवर मां की अलमारी में रखे तो पाया कि उन का दूसरा सोने का सेट अपनी जगह से गायब था.

उन्होंने मां को बताया. जल्दी ही सैट के गायब होने की खबर घर भर में फैल गई.

दोनों बहुओं के जेवर मां अपनी अलमारी में रखती थीं. उन्होंने अपनी सारी अलमारी खंगाल मारी, पर सैट नहीं मिला.

‘‘मैं ने चाबी या तो नीरजा को दी थी या शिखा को. इन लोगों की लापरवाही के कारण ही किसी को सैट चुराने का मौका मिल गया. घर में आए मेहमानों में से अब किसे चोर समझें?’’ मां का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

मां किसी मेहमान को चोर बता रही थीं और शिखा भाभी ने अपने हावभाव से यह जाहिर किया जैसे चोरी करने का शक उन्हें नीरजा भाभी पर हो.

शिखा भाभी नाराज भी नजर आती थीं और रोंआसी भी. किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि उन से इस मामले में क्या कहें. सैट अपनेआप तो गायब हो नहीं सकता था. किसी ने तो उसे चुराया था और शक की सूई सब से ज्यादा बड़ी भाभी की तरफ घूम जाती क्योंकि मां ने अलमारी की चाबी उन्हें दिन में कई बार दी थी.

हम सभी ड्राइंगरूम में बैठे थे तभी नीरजा भाभी ने गंभीर लहजे में छोटी भाभी से कहा, ‘‘शिखा, मैं ने तुम्हारे सैट को छुआ भी नहीं है. मेरा विश्वास करो कि मैं चोर नहीं हूं.’’

‘‘मैं आप को चोर नहीं कह रही हूं,’’ शिखा भाभी ने जिस ढंग से यह बात कही उस में गुस्से व बड़ी भाभी को अपमानित करने वाले भाव मौजूद थे.

‘‘तुम मुंह से कुछ न भी कहो, पर मन ही मन तुम मुझे ही चोर समझ रही हो.’’

‘‘मेरा सैट चोरी गया है, इसलिए कोई तो चोर है ही.’’

‘‘नीरजा, तुम अपने बेटे के सिर पर हाथ रख कर कह दो कि तुम चोर नहीं हो,’’ तनावग्रस्त बड़े भैया ने अपनी पत्नी को सलाह दी.

‘‘मुझे बेटे की कसम खाने की जरूरत नहीं है…मैं झूठ नहीं बोल रही हूं…अब मेरे कहे का कोई विश्वास करे या न करे यह उस के ऊपर है,’’ ऐसा कह कर जब बड़ी भाभी अपने कमरे की तरफ जाने को मुड़ीं तब उन की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

मोहित के जन्मदिन की खुशियां फिर से तनाव व चिंता में बदल गईं.

छोटी भाभी का मूड आगामी दिनों में उखड़ा ही रहा. इस मामले में बड़ी भाभी कहीं ज्यादा समझदारी दिखा रही थीं. उन्होंने शिखा भाभी के साथ बोलना बंद नहीं किया बल्कि दिन में 1-2 बार जरूर इस बात को दोहरा देतीं कि शिखा उन पर सैट की चोरी का गलत शक कर रही है.

मांने उन दोनों को ही समझाना छोड़ दिया. वे काफी गंभीर रहने लगी थीं. वैसे उन को टैंशन न देने के चक्कर में कोई भी इस विषय को उन के सामने उठाता ही नहीं था.

मोहित के जन्मदिन के करीब 10 दिन बाद मुझे कालेज के एक समारोह में शामिल होना था. उस दिन मैं ने शिखा भाभी का सुंदर नीला सूट पहनने की इजाजत उन से तब ली जब वे बाथरूम में नहा रही थीं.

उन की अलमारी से सूट निकालते हुए मुझे उन का खोया सैट मिल गया. वह तह किए कपड़ों के पीछे छिपा कर रखा गया था.

मैं ने डब्बा जब मां को दिया तब बड़ी भाभी उन के पास बैठी हुई थीं. जब मैं ने सैट मिलने की जगह उन दोनों को बताई तो मां आश्चर्य से और नीरजा भाभी गुस्से से भरती चली गईं.

‘‘मम्मी, आप ने शिखा की चालाकी और मक्कारी देख ली,’’ नीरजा भाभी का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, ‘‘मुझे चोर कहलवा कर सब के सामने अपमानित करवा दिया और डब्बा खुद अपनी अलमारी में छिपा कर रखा था. उसे इस गंदी हरकत की सजा मिलनी ही चाहिए.’’

‘‘तुम अपने गुस्से को काबू में रखो, नीरजा. उसे नहा कर आने दो. फिर मैं उस से पूछताछ करती हूं,’’ मां ने यों कई बार भाभी को समझाया पर वे छोटी भाभी का नाम ले कर लगातार कुछ न कुछ बोलती ही रहीं.

कुछ देर बाद छोटी भाभी सब के सामने पेश हुईं तो मैं ने सैट उन की अलमारी में कपड़ों के पीछे से मिलने की बात दोहरा दी.

सारी बात सुन कर वे जबरदस्त तनाव की शिकार बन गईं. फिर बड़ी भाभी को गुस्से से घूरते हुए उन्होंने मां से कहा, ‘‘मम्मी, चालाक और मक्कार मैं नहीं बल्कि ये हैं. मुझे आप सब की नजरों से गिराने के लिए इन्होंने बड़ी चालाकी से काम लिया है. मेरी अलमारी में सैट मैं ने नहीं बल्कि इन्होंने ही छिपा कर रखा है. ये मुझे इस घर से निकालने पर तुली हुई हैं.’’

नीरजा भाभी ने शिखा भाभी के इस आरोप का जबरदस्त विरोध किया. दोनों के बीच हमारे रोकतेरोकते भी कई कड़वे, तीखे शब्दों का आदानप्रदान हो ही गया.

‘‘खामोश,’’ अचानक मां ने दोनों को ऊंची आवाज में डपटा, तो दोनों सकपकाई सी चुप हो गईं.

‘‘मैं तुम दोनों से 1-1 सवाल पूछती हूं,’’ मां ने गंभीर लहजे में बोलना आरंभ किया, ‘‘शिखा, तुम्हारा सैट मेरी अलमारी से चोरी हुआ तो तुम ने किस सुबूत के आधार पर नीरजा को चोर माना था?’’

शिखा भाभी ने उत्तेजित लहजे में जवाब दिया, ‘‘मम्मी, आप ने चाबी मुझे या इन्हें ही तो दी थी. अपने सैट के गायब होने का शक इन के अलावा और किस पर जाता?’’

‘‘तुम ने मुझ पर शक क्यों नहीं किया?’’

‘‘आप पर चोरी करने का शक पैदा होने का सवाल ही नहीं उठता, मम्मी. आप आदरणीय हैं. सबकुछ आप का ही तो है…अपनी हिफाजत में रखी चीज कोई भला खुद क्यों चुराएगा?’’ छोटी भाभी मां के सवाल का जवाब देतेदेते जबरदस्त उलझन की शिकार बन गई थीं.

अब मां नीरजा भाभी की तरफ घूमीं और उन से पूछा, ‘‘बड़ी बहू, अंजलि को सैट शिखा की अलमारी में मिला. तुम ने सब से पहले शिखा को ही चालाकी व मक्कारी करने का दोषी किस आधार पर कहा?’’

‘‘मम्मी, मैं जानती हूं कि सैट मैं ने नहीं चुराया था. आप की अलमारी से सैट कोई बाहर वाला चुराता तो वह शिखा की अलमारी से न बरामद होता. सैट को शिखा की अलमारी में उस के सिवा और कौन छिपा कर रखेगा?’’ किसी अच्छे जासूस की तरह नीरजा भाभी ने रहस्य खोलने का प्रयास किया.

‘‘अगर सैट पहले मैं ने ही अपनी अलमारी से गायब किया हो तो क्या उसे शिखा की अलमारी में नहीं रख सकती?’’

‘‘आप ने न चोरी की है, न सैट शिखा की अलमारी में रखा है. आप इसे बचाने के लिए ऐसा कह रही हैं.’’

‘‘बिलकुल यही बात मैं भी कहती हूं,’’ शिखा भाभी ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मम्मी, आप समझ रही हैं कि सारी चालाकी बड़ी भाभी की है और सिर्फ इन्हें बचाने को…’’

‘‘यू शटअप.’’

दोनों भाभियां एकदूसरे को फाड़ खाने वाले अंदाज में घूर रही थीं. मां उन दोनों को कुछ पलों तक देखती रहीं. फिर उन्होंने एक गहरी सांस इस अंदाज में ली मानो बहुत दुखी हों.

दोनों भाभियां उन की इस हरकत से चौंकीं और गौर से उन का चेहरा ताकने लगीं.

मां ने दुखी लहजे में कहा, ‘‘तुम दोनों मेरी बात ध्यान से सुनो. सचाई यही है कि शिखा का सैट मैं ने ही अपनी अलमारी से पहले गायब किया और फिर अंजलि के हाथों उसे शिखा की अलमारी से बरामद कराया.’’

दोनों भाभियों ने चौंक कर मेरी तरफ देखा. मैं ने हलकी सी मुसकराहट अपने होंठों पर ला कर कहा, ‘‘मां, सच कह रही हैं. मैं सैट चुन्नी में छिपा कर शिखा भाभी के कमरे में ले गई थी और फिर हाथ में पकड़ कर वापस ले आई. ऐसा मैं ने मां के कहने पर किया था.’’

‘‘मम्मी, आप ने यह गोरखधंधा क्यों किया? अपनी दोनों बहुओं के बीच मनमुटाव कराने के पीछे आप का क्या मकसद रहा?’’ नीरजा भाभी ने यह सवाल शिखा भाभी की तरफ से भी पूछा.

मां एकाएक बड़ी गंभीर व भावुक हो कर बोलीं, ‘‘मैं ने जो किया उस की गहराई में एक सीख तुम दोनों के लिए छिपी है. उसे तुम दोनों जिंदगी भर के लिए गांठ बांध लो.

‘‘देखो, मेरी जिंदगी का अब कोई भरोसा नहीं. मेरे बाद तुम दोनों को ही यह घर चलाना है. राजीव और विकास सदा मिल कर एकसाथ रहें, इस के लिए यह जरूरी है कि तुम दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए प्यार व सम्मान हो.

‘‘सैट से जुड़ी समस्या पैदा करने की जिम्मेदार मैं हूं, पर तुम दोनों में से किसी ने मुझ पर शक क्यों नहीं किया?

‘‘इस का जवाब तुम दोनों ने यही दिया कि मैं तुम्हारे लिए आदरणीय हूं…मेरी छवि ऐसी अच्छी है कि मुझे चोर मानने का खयाल तक तुम दोनों के दिलों में नहीं आया.

‘‘तुम दोनों को आजीवन एकदूसरे का साथ निभाना है. अभी तुम दोनों के दिलों में एकदूसरे पर विश्वास करने की नींव कमजोर है तभी बिना सुबूत तुम दोनों ने एकदूसरे को चोर, चालाक व मक्कार मान लिया.

‘‘आज मैं अपनी दिली इच्छा तुम दोनों को बताती हूं. एकदूसरे पर उतना ही मजबूत विश्वास रखो जितना तुम दोनों मुझ पर रखती हो. कैसी भी परिस्थितियां, घटनाएं या लोगों की बातें कभी इस विश्वास को न डगमगा पाएं ऐसा वचन तुम दोनों से पा कर ही मैं चैन से मर सकूंगी.’’

‘‘मम्मी, ऐसी बात मुंह से मत निकालिए,’’ मां की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछने के बाद नीरजा भाभी उन की छाती से लग गईं.

‘‘आप की इस सीख को मैं हमेशा याद रखूंगी…हमें माफ कर दीजिए,’’ शिखा भाभी भी आंसू बहाती मां की बांहों में समा गईं.

‘‘मैं आज बेहद खुश हूं कि मेरी दोनों बहुएं बेहद समझदार हैं,’’ मां का चेहरा खुशी से दमक उठा और मैं भी भावुक हो उन की छाती से लग गई.

सीख: भाग 3- क्या सुधीर को कभी अपनी गलती का एहसास हो पाया?

बरात विदा होने के दूसरे दिन जया का वापस जाने का प्रोग्राम था, परंतु लता ने मम्मीजी को फोन कर के जया को कुछ दिन रोकने का आग्रह किया तो मम्मीजी मान गई. दो दिन में सब मेहमान विदा हो गए.

अब जया को सुधीर के कटाक्ष रहरह कर याद आने लगे थे और उन्हें सीख देने

की उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. लता के साथ जया ने कनाट प्लेस जा कर जींस, ट्राउजर, लो कट टौप, कमीज आदि खरीदे. सैलून में जा कर फेशियल कराया और बाल सेट कराए.

लता ने उसे बताया कि जींसटौप पहन कर जया खूब सुंदर व मौडर्न लग रही थी. शाम को लता के साथ जया क्लब गई. क्लब में जब स्त्रीपुरुष एकदूसरे के गले में बांहें डाल कर उन्मुक्त डांस करने लगे, तो कुछ लड़कों ने जया के साथ डांस करने की इच्छा प्रकट की. तब सिरदर्द होने का बहाना बना कर जया अपनी कुरसी पर बैठी रही, परंतु वह डांस करते हुए जोड़ों के हावभाव एवं पदसंचालन को भलीभांति देखती रही. जरूरत पड़ने पर वह सुधीर के सामने डांस भी कर सकने हेतु अपने को तैयार कर रही थी. यह काम लगभग प्रतिदिन चलता रहा.

पहले दिन से ही जया लता की फैमिली में घुलमिल गई थी और जल्द ही उस के भाइयों के साथ उस ने खुल कर बात करना सीख लिया था. जल्द ही आधुनिक सोशल लाइफ लीड करने को उस ने अपने को तैयार कर लिया.

लता के पति शैलेंद्र ने जया को लखनऊ वापस जाने के लिए एसी में बर्थ रिजर्व करा दी.

2 सप्ताह बीत जाने पर लता और शैलेंद्र जया को ट्रेन में बैठा आए.

जया ने बादामी ट्राउजर व मैचिंग टौप पहना हुआ था, उस के घुंघराले बाल कंधों तक लटक रहे थे. चेहरे पर हलका मेकअप था. इस ड्रैस में जया बेहद आकर्षक लग रही थी. ट्रेन में बर्थ पर अधलेटी सी वह इंगलिश का एक नावेल पढ़ने लगी कि दूसरी बर्थ पर एक नवयुवक कब आ गया, उस ने ध्यान ही नहीं दिया.

‘‘आप लखनऊ में ही रहती हैं?’’ आवाज सुन कर जया चौंक गई.

‘‘हां, मैं पिछले कई सालों से लखनऊ में ही हूं,’’ जया ने निर्भीक हो कर उत्तर दिया.

‘‘मेरा नाम विजयेंद्र कुमार शुक्ला है,

आप चाहें तो मुझे विजय कह सकती हैं.

मैं आर्मी में कैप्टन हूं. मेरी पोस्टिंग आजकल देहली में है. मैं 1 महीने की छुट्टी पर अपने घर जा रहा हूं. मेरा घर लखनऊ में गोमतीनगर में है,’’ कहतेकहते विजय ने अपना विजिटिंग कार्ड जया के आगे बढ़ा दिया.

‘‘धन्यवाद,’’ कह कर जया ने कार्ड ले लिया. कैप्टन शुक्ला उसे कुछ बातूनी तो लगा, परंतु उस का बेझिझक एवं निर्भीक व्यवहार अच्छा भी लगा.

‘‘क्या आप का परिचय जान सकता हूं?’’ विजय ने पूछा.

‘‘मैं सीतापुर की रहने वाली हूं, लखनऊ यूनिवर्सिटी से होस्टल में रह कर मैं ने एम.ए. पास किया है. इस समय अपनी बहन के पास निरालानगर में रह कर कंपिटिशन की तैयारी कर रही हूं. इसी सिलसिले में दिल्ली गई थी,’’ जया ने सफेद झूठ बोला था. आज उसे अपनी वैवाहिक स्थिति छिपाने में बच्चों द्वारा किए जाने वाले खेल जैसा मजा आ रहा था.

‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई,’’ विजय ने प्रसन्न मुद्रा में कहा.

‘‘मुझे भी,’’ जया ने मन ही मन मुसकराते हुए उत्तर दिया.

फिर रास्ते में विजय तमाम बातें करता रहा और जया उत्सुकता से सुनती रही. जब लखनऊ स्टेशन आ गया, ट्रेन रुकी तो जया ने सिर उठाया. देखा कि सुधीर डब्बे के पास खड़ा है, उसे लेने आया था.

‘‘विजय, तुम्हारे साथ रास्ता कितनी जल्दी पार हो गया, पता ही नहीं चला,’’ जया ने इतनी जोर से कहा कि सुधीर सुन ले.

‘‘अभी तो 1 महीना लखनऊ में ही हूं, मुलाकातें होती रहनी चाहिए,’’ विजय ने अभी तक सुधीर की तरफ ध्यान नहीं दिया था.

‘‘हां, आप का फोन नंबर पास है, फोन करती रहूंगी, अब तो मिलनाजुलना होता ही रहेगा,’’ जया जानबूझ कर खूब जोरजोर से बोल रही थी.

जया ने बड़ी आत्मीयता प्रदर्शित करते हुए विजय से हाथ मिलाया और अटैची हाथ में ले कर खटाखट नीचे उतर गई. सुधीर आश्चर्य से कभी जया को तो कभी विजय को देख रहा था. उस के बोलने की शक्ति समाप्तप्राय हो गई थी.

‘‘अरे भई जल्दी चलो, क्या सोचने लगे? बड़ी गरमी है,’’ प्लेटफार्म पर आते ही जया ने सुधीर का हाथ खींचते हुए कहा.

सुधीर की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. जया के रंगढंग देख कर वह भौचक्का हो रहा था. चुपचाप चल दिया और जया के साथ कार में बैठ कर घर आ गया.

‘‘जया बेटी, 2 हफ्ते में तुम इतनी बदल गई?’’ मम्मीजी ने जया को देख कर आश्चर्य से कहा.

‘‘और मम्मी इन से पूछो कि ट्रेन में इन के साथ वह कौन युवक था, जिस से ये हंसहंस कर बातें कर रही थीं और हाथ मिला कर फिर मिलने का वादा कर के आई हैं,’’ सुधीर गुस्से में बोला.

‘‘अरे मम्मीजी, वे विजय थे, आर्मी में कैप्टन हैं और देहली में पोस्टेड हैं. यहां गोमतीनगर में अपने घर 1 महीने की छुट्टी पर आए हैं. मम्मीजी, वे एक चित्रकार भी हैं, अपनी बनाई हुई कितनी सुंदर पेंटिंग उन्होंने मुझे प्रैजेंट की है. वे प्रतिभावान होने के साथसाथ बहुत सोशल भी हैं, उन के साथ रास्ता कब कट गया, पता ही नहीं चला,’’ यह कहते हुए जया ने कनाट प्लेस से खरीदी हुई एक पेंटिंग मम्मीजी के सामने रख दी.

‘‘अच्छा तो अब आप उन का प्रैजेंट भी लेने लगीं?’’ सुधीर अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा था.

‘‘अरे भई, पत्नी तो हम आप की ही रहेंगी. घड़ी दो घड़ी किसी से हंसबोल कर मन बहला लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा?’’ जया ने सुधीर द्वारा कहे शब्दों को दोहरा दिया.

सुधीर गुस्से से पागल हो रहा था, उस से आगे कुछ बोला नहीं गया, वह उठ कर दूसरे कमरे में चला गया.

‘‘जया बेटी, शंभू ने खाना मेज पर लगा दिया है, नहाधो कर कपड़े चेंज कर लो, फिर कुछ खापी लो,’’ मम्मीजी ने उस समय बात को टालते हुए कहा.

जया बाथरूम में चली गई. नहाधो कर साड़ी पहन कर बाहर निकली. तब मम्मीजी उस की ओर देख कर बोलीं, ‘‘जया, साड़ी पहन कर तुम कितनी सुंदर लगती हो, ये मौडर्न कपड़े अपनी बहूबेटियों को शोभा नहीं देते. अपने देश का पहनावा तो साड़ी ही है.’’

‘‘मम्मीजी, मेरी समझ में नहीं आता मैं उन को कैसे खुश करूं? इतने दिनों से वे मुझे दकियानूसी, अनसोशल कहते रहे और अब जब कुछ नया सीखा है तो भी खुश नहीं हैं,’’ जया ने अपने मन की बात कही.

सुधीर आज जया को विजय के साथ घुलमिल कर बोलते देख कर उद्विग्न था और बगल के कमरे में उस की और मम्मी की बातें सुन रहा था. जया की बातें सुन कर वह वहीं आ गया और अपनी सफाई देता हुआ और मम्मी की ओर देखते हुए बोला, ‘‘मम्मी, मेरा मतलब यह थोड़े ही था कि जया जींस और लो कट टौप पहन कर अल्ट्रा मौडर्न बन जाए और गैरमर्दों के साथ दोस्ती करती फिरे.’’

सुधीर का रोंआसा सा मुंह देख कर जया समझ गई कि सुधीर को अपनी गलती का एहसास हो रहा था, ‘‘अच्छा मम्मीजी, मुझे बड़ी भूख लगी है, थोड़ा खापी लूं, तब बात करेंगे,’’ कहतेकहते जया डाइनिंगरूम की ओर चल दी. वह अपनी सफलता पर मन ही मन फूली नहीं समा रही थी.

Serial Story: पक्की सहेलियां (भाग-3)

इस तरह आपस में हायहैलो होते हुए भी एक अदृश्य सी दीवार खिंच गई थी दोनों में.

2 नारियां, पढ़ीलिखी, लगभग समान उम्र की पर बिलकुल विपरीत सोच और संस्कारों वाली. एक के लिए पति, बच्चा और घरगृहस्थी ही पूरी दुनिया थी तो दूसरी के लिए घर सिर्फ रहने और सोने का स्थान भर.

एक बार विनिता ने पंखुड़ी को पिछले 24 घंटों से कहीं आतेजाते नहीं देखा. पहले

सोचा कि उसे क्या, वह क्यों चिंता करे पंखुड़ी की? उस की चिंता करने वाले तो कई लोग होंगे या फिर आज कहीं जाने के मूड में नहीं होगी स्मार्ट मैडम. पर जब दिल नहीं माना तो बहाना कर के विहान को भेज दिया यह कह कर कि जाओ पंखुड़ी आंटी के साथ थोड़ी देर खेल आओ. मगर कुछ ही देर में विहान दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘मम्मी… मम्मी… मैं कैसे खेल सकता हूं आंटी के साथ, उन्हें तो बुखार है.’’

बुखार का नाम सुनते ही विनिता तुरंत पंखुड़ी के घर पहुंच गई. घंटी बजाई तो अंदर से धीमी आवाज आई, ‘‘दरवाजा खुला है. अंदर आ जाइए.’’

अंदर दाखिल होने पर विनिता ने देखा कि पंखुड़ी कंबल ओढ़े बिस्तर पर बेसुध पड़ी है. छू कर देखा तो तेज बुखार से बदन तप रहा था. चारों तरफ निगाहें दौड़ाईं, सारा घर अस्तव्यस्त दिख रहा था. एक भी सामान अपनी जगह नहीं. तुरंत भाग कर अपने घर आई, थर्मामीटर और ठंडे पानी से भरा कटोरा लिया और वापस पहुंची पंखुड़ी के पास. बुखार नापा, सिर पर ठंडे पानी की पट्टियां रखनी शुरू कीं. थोड़ी देर बाद बुखार कम हुआ और जब पंखुड़ी ने आंखें खोलीं तो विनिता ने पूछा, ‘‘दवाई ली है या नहीं?’’

पंखुड़ी ने न कहा और फिर इशारे से बताया कि दवा कहां रखी है? विनिता ने उसे बिस्कुट खिला दवा खिलाई और फिर देर तक उस का सिर दबाती रही. जब पंखुड़ी को थोड़ा आराम हुआ तो विनिता अपने घर लौट गई. आधे घंटे बाद वह ब्रैड और गरमगरम सूप ले कर पंखुड़ी के पास लौटी. उस के मना करने पर भी उसे बड़े प्यार से खिलाया. इस तरह पंखुड़ी के ठीक होने तक विनिता ने उस का हर तरह से खयाल रखा.

पंखुड़ी विनिता की नि:स्वार्थ सेवा देख शर्मिंदा थी. उसे अपनी इस सोच पर अफसोस हो रहा था कि विनिता जैसी हाउसवाइफ के पास कोई काम नहीं होता सिवा जासूसी करने और खाना पकाने के. अगर विनिता ने समय पर उस का हाल नहीं लिया होता तो पता नहीं उसे कितने दिनों तक बिस्तर पर रहना पड़ता.

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खैर, इस के बाद विनिता के प्रति पंखुड़ी का नजरिया बदल गया. अब जब भी विनिता के घर आती तो निशांत, विहान के साथसाथ विनिता से भी बातें करती. विनिता की संगति में रह कर अब उस ने अपने घर को भी सुव्यवस्थित रखना शुरू कर दिया था.

आजकल निशांत पहले से भी ज्यादा व्यस्त रहने लगा था. फिर एक दिन चहकता हुआ घर आया. चाय पीते हुए निशांत बता रहा था कि उस के काम से खुश हो कंपनी की तरफ से उसे फ्रांस भेजा जा रहा है प्रशिक्षण लेने के लिए. अगर वह अपने प्रशिक्षण में अच्छा करेगा तो अनुभव हासिल करने के लिए परिवार सहित 2 साल तक उसे फ्रांस में रहने का मौका भी मिल सकता है.

पति की इस उपलब्धि पर विनिता बहुत खुश हुई, लेकिन यह सुन कर कि प्रशिक्षण के दौरान निशांत को अकेले ही जाना है, उस का कोमल मन घबरा उठा. निशांत के बिना अकेले कैसे रह पाएगी वह विहान को ले कर? घर में भी कोई ऐसा फ्री नहीं है, जिसे 3 महीनों के लिए बुला सके. विनिता ने निशांत को बधाई दी फिर धीरे से कहा, ‘‘अगर फ्रांस जाना है तो हम दोनों को भी अपने साथ ले चलो वरना मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दूंगी, क्या तुम ने तनिक सोचा है कि तुम्हारे जाने के बाद यहां मैं अकेले विहान के साथ कैसे रह पाऊंगी 3 महीने?’’

भविष्य के सुनहरे ख्वाब देखने में डूबे निशांत को विनिता की यह बात जरा भी नहीं भाई. झल्लाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी समस्या है मेरी नहीं. कितनी बार कहा कि समय के साथ खुद को बदलो, नईनई जानकारी हासिल करो. बाहर का काम

निबटाना सीखो पर तुम ने तो इन कामों को भी औरतों और मर्दों के नाम पर बांट रखा है.

‘‘अब दिनरात मेहनत करने के बाद यह अवसर हाथ आया है तो क्या तुम्हारी इन बेवकूफियों के चक्कर में मैं इसे हाथ से गंवा दूं? हरगिज नहीं. अगर तुम अकेली नहीं रह सकती तो अभी चली जाओ विहान को ले कर अपनी मां या मेरी मां के घर. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो गई ऐसी पिछड़ी मानसिकता वाली बीवी पा कर,’’ और फिर फ्रैश होने चला गया.

विनिता का दिल धक से रह गया. पति के इस कटु व्यवहार से उस की आंखों से आंसू बहने लगे. लगा उस की तो बसीबसाई गृहस्थी उजड़ जाएगी. साथ ही यह भी महसूस होने लगा कि निशांत भी क्या करे बेचारा, उस के कैरियर का सवाल है. दिल ने कहा इस स्थिति की जिम्मेदार भी काफी हद तक वह खुद ही है.

अब यह बात उस की समझ में आ चुकी थी कि वर्तमान समय में हाउसवाइफ को सिर्फ घर के अंदर वाले काम ही नहीं, बल्कि बाहर वाले जरूरी काम भी आने चाहिए. आज पढ़ीलिखी होने के बावजूद अपने को असफल, हीन और असहाय समझ रही थी. कारण घर के बाहर का कोई काम वह करने के लायक नहीं थी. इतनी बड़ी खुशी मिलने पर भी पतिपत्नी में तनाव उत्पन्न हो गया था.

अगले दिन चाय पीते समय पंखुड़ी भी वहां पहुंच गई. आते ही जोश के साथ निशांत को बधाई दी और पार्टी की मांग करने लगी.

निशांत का गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ था. उस ने कहा, ‘‘अरे कैसी बधाई और कैसी पार्टी पंखुड़ी? मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा इस जिंदगी में कभी.’’

पंखुड़ी को निशांत की बात कुछ समझ नहीं आई. विनिता ने बात छिपानी चाही कि इस बिंदास लड़की से बताने का क्या फायदा, उलटे कहीं इस ने जान लिया तो खूब हंसी उड़ाएगी मेरी, पर गुस्से में निशांत ने अपनी सारी परेशानी पंखुड़ी को सुना

डाली.

विनिता तो मानो शर्म के मारे धरती के अंदर धंसी जा रही थी. मगर सारी बात ध्यान से सुनने के बाद पंखुड़ी हंसने लगी और फिर हंसतेहंसते ही बोली, ‘‘डौंट वरी निशांत, यह भी कोई परेशानी है भला? इस का समाधान तो कुछ दिनों में ही हो जाएगा. आप अपनी पैकिंग और मेरी पार्टी की तैयारी शुरू कर दीजिए.’’

निशांत हैरान सा पंखुड़ी का मुंह देखने लगा. विनिता की तरफ मुखातिब होते हुए पंखुड़ी ने कहा, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं विनिता. अगर कुछ सीखने का पक्का निर्णय कर लिया हो तो आज से ही मैं तुम्हें इंटरनैट का काम सिखाना शुरू कर सकती हूं और निशांत के जाने के पहले धीरेधीरे बाहर के सारे काम भी मैं सिखा दूंगी,’’ और फिर अपना लैपटौप लेने अपने घर चली गई.

विनिता सन्न थी अपनी संकीर्ण सोच पर. जिस पंखुड़ी को वह तेजतर्रार और दूसरों का घर तोड़ने वाली लड़की समझती थी, वह इतनी जिम्मेदार और उसे ले कर इतनी संवेदनशील होगी, इस की तो कल्पना भी विनिता ने नहीं की थी.

मिनटों में पंखुड़ी वापस आ गई. अपना लैपटौप औन करते हुए बोली, ‘‘विनिता मैं तुम्हारी गुरु तो बनूंगी, पर एक शर्त है तुम्हें भी गुरु बनना पड़ेगा मेरी.’’

विनिता के मुंह से निकला, ‘‘भला वह क्यो?’’

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पंखुड़ी ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हें देख कर मैं ने भी अपना घर बसाने का फैसला कर लिया है, पर घरगृहस्थी के काम में मैं बिलकुल जीरो हूं. मैं ने महसूस किया है अगर आज के जमाने में हाउसवाइफ के लिए बाहर का काम सीखना जरूरी होता है तो उसी तरह सफल और शांतिपूर्ण घरगृहस्थी चलाने के लिए वर्किंग लेडी को भी घर और किचन का थोड़ाबहुत काम जरूर आना चाहिए. अगर तुम चाहो तो अब हम

दोनों एकदूसरे की टीचर और स्टूडैंट बन कर सीखनेसिखाने का काम कर सकती हैं. मैं तुम्हें बाहर का काम करना सिखाऊंगी और तुम मुझे किचन और घर संभालना.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. यह भी कोई पूछने की बात है?’’ खुश हो कर विनिता ने पंखुड़ी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘पर मेरी भी एक शर्त है कि यह सीखनेसिखाने का काम हम दोनों स्टूडैंटटीचर की तरह नहीं, बल्कि पक्की सहेलियां बन कर करेंगी.’’

‘‘मंजूर है,’’ पंखुड़ी बोली.

फिर एक जोरदार ठहाका लगा, जिस में इन दोनों के अलावा निशांत की आवाज भी शामिल थी. माहौल खुशनुमा बन चुका था.

Serial Story: पक्की सहेलियां (भाग-2)

अंकल से बात करते समय विनिता ने सुना कि पंखुड़ी एक मल्टी नैशनल कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव पद पर है. वह अंकल से कह रही थी, ‘‘देखिए मेरे वर्किंग आवर्स फिक्स नहीं हैं, शिफ्टों में ड्यूटी करनी पड़ती है. मेरे आनेजाने का समय भी कोई निश्चित नहीं है, कभी देर रात आती हूं तो कभी मुंह अंधेरे निकल जाती हूं. कभीकभी तो टूअर पर भी जाना पड़ता है 2-3 दिनों के लिए. आप को कोई आपत्ति तो नहीं?

‘मैं इस बात को पहले ही पूछ लेना चाहती हूं, क्योंकि अभी जहां मैं रह रही हूं उन्हें इस बात पर आपत्ति है… लोग लड़की के देर रात घर आने को सीधे उस के करैक्टर से जोड़ कर देखते हैं… एकदम घटिया सोच,’’ कह कर वह चुप हो गई.

इस के बाद क्या हुआ, यह पता नहीं. विनिता वहां से अपने घर चली आई. उसे वह लड़की बहुत तेजतर्रार और बिंदास लगी.

उस शाम निशांत काफी देर से घर लौटा. खापी कर तुरंत सो गया. पंखुड़ी के बारे में पूछने का मौका ही नहीं मिला विनिता को. अगले शनिवार की शाम जब देर रात विनिता परिवार सहित शौपिंग कर के लौटी तो देखा खाली पड़े फ्लैट की लाइट जल रही है. शायद कोई नया किराएदार आ गया है. नीचे सीढ़ी का दरवाजा बंद कर के विनिता हैलो करने की नीयत से मिलने गई तो देखा ताला लगा था.

रात करीब 12 बजे घंटी की आवाज से विनिता की नींद खुली. उस ने निशांत को

उठाया और नीचे यह सोच कर भेजा कि अंकलआंटी को कुछ जरूरत तो नहीं?

थोड़ी देर में निशांत वापस आया और सोने लगा तो विनिता ने पूछा, ‘‘कौन था?’’

निशांत ने कहा, ‘‘अंकल की नई किराएदार पंखुड़ी.’’

विनिता ने तुरंत कहा, ‘‘निशांत, तुम कोई घरेलू, समझदार, किराएदार नहीं ढूंढ़ सकते थे अंकल के लिए? वक्तबेवक्त आ जा कर हमें डिस्टर्ब करती रहेगी. अंकल तो चले जाएंगे अपने बच्चों के पास, पर साथ रहना तो हम दोनों को ही है.’’

नींद से भरा निशांत उस समय बात करने के मूड में नहीं था. गुस्से से बोला, ‘‘अरे वह पढ़ीलिखी नौकरी करने वाली लड़की है. वह कब जाए या कब आए इस से हमें क्या फर्क पड़ेगा भला? आज पहला दिन है, अपने साथ सीढ़ी के दरवाजे की चाबी ले जाना भूल गई थी वह,’’ कह कर वह गहरी नींद में सो गया.

विनिता को निशांत का इस तरह बोलना बहुत बुरा लगा. उस दिन पंखुड़ी पर और भी गुस्सा आया. मृदुभाषी और समझदार स्वभाव की विनिता पति की व्यस्तता को समझती थी. उसे इस बात से कोई शिकायत नहीं रहती कि निशांत देर से घर क्यों आता है, बल्कि पति के आने पर मुसकराते हुए वह उसे गरमगरम चाय पिलाती ताकि उस की थकान मिट जाए.

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अगली सुबह सब थोड़ी देर से उठे. चाय बनाने लगी तो विनिता को पंखुड़ी का ध्यान आया. उस ने निशांत से पूछे बगैर उस के लिए भी चाय बना दी और दरवाजा खटखटा कर चाय पहुंचा आई. उनींदी आंखों से पंखुड़ी ने दरवाजा खोल कप ले कर थैंक्स कह झट दरवाजा बंद कर लिया.

विनिता सकपका गई. कोई तमीज नहीं कि 2 मिनट बात ही कर लेती. शायद नींद डिस्टर्ब हो गई थी उस की. सारा दिन घर बंद रहा. सो रही होगी, शाम को सजधज

कर पंखुड़ी चाय का कप वापस करने विनिता के पास आई. वैसे तो वह विनिता से मिलने आई थी, पर सारा समय निशांत और विहान से ही इधरउधर की बातें करती रही.

विनिता के पूछने पर कि चाय बनाऊं तुम्हारे लिए पंखुड़ी ने कहा, ‘‘थैंक्स, मैं चाय नहीं पीती.’’ ‘चाय की जगह जरूर यह कुछ और पीती होगी यानी बोतल वाली चाय’ विनिता ने सोचा. फिर यह पूछने पर कि किचन में खाना बनाना अभी शुरू किया या नहीं. पंखुड़ी तपाक से बोली, ‘‘अरे, किचन का झमेला मैं नहीं रखती. कौन कुकिंग करे? समय की बरबादी है. बाहर ही खाती हूं या पैक्ड खाना मंगवा लेती हूं.’’

थोड़ी देर बाद उस ने अपनी कार निकाली और चली दी कहीं घूमने. जाते वक्त हंसते हुए कहा, ‘‘डौंट वरी निशांत आज मैं चाबी साथ लिए जा रही हूं.’’ इस बात पर निशांत और पंखुड़ी ने एक जोरदार ठहाका लगाया, पर पता नहीं हंसमुख स्वभाव वाली विनिता को हंसी क्यों नहीं आई.

रात को सोते समय विनिता ने निशांत से कहा, ‘‘हाय, कैसी है यह पंखुड़ी… लड़कियों वाले तो लक्षण ही नहीं हैं इस में. सारे काम मर्दों वाले करती है, शादी कर के कैसे घर बसाएगी यह? ऐसी ही लड़कियों की ससुराल और पति से नहीं बनती है. पति दुखी रहता है या तलाक हो जाता है. एक मैं थी कालेज पहुंचतेपहुंचते सिलाईकढ़ाई के अलावा घरगृहस्थी का भी सारा काम सीख लिया था?’’

निशांत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘वह खाना बनाना नहीं जानती है, यह कौन सी बुराई हुई उस की? देखती नहीं कितनी स्मार्ट, मेहनती, आत्मनिर्भर और औफिस के कामों में दक्ष है वह… दुखी सिर्फ इस जैसी लड़की के पति ही क्यों, दुखी तो उन

घरेलू पत्नियों के पति भी हो सकते हैं, जो इस आधुनिक जमाने में भी खुद को बस घर की चारदीवारी में ही कैद रखना पसंद करती हैं. छोटेमोटे कामों के लिए भी पूर्णतया पिता, पति, भाई या बेटे पर निर्भर… बदलते समय के साथ ये खुद नहीं बदलती हैं उलटे जो बदल रहा है उस में भी कुछ न कुछ खोट निकालती रहती हैं.’’

विनिता ने निशांत का इशारा समझ लिया था कि पूर्णतया निर्भर होने वाली बात किसे इंगित कर के कही जा रही है. इस के अलावा निशांत द्वारा पंखुड़ी की इतनी तारीफ करना उसे जरा भी नहीं सुहाया. दिल ने हौले से कहा कि सावधान विनिता. ऐसी ही लड़कियां दूसरों का घर तोड़ती हैं. आजकल जब देखो निशांत पंखुड़ी की तारीफ करता रहता है.

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कुछ दिनों बाद आंटीअंकल विदेश चले गए. पंखुड़ी अपनी दुनिया में मस्त और विनिता अपनी गृहस्थी में. मगर जानेअनजाने विनिता पंखुड़ी की हर गतिविधि पर ध्यान देने लगी थी कि कब वह आतीजाती है या कौन उसे ले जाने या छोड़ने आता है. ऐसा नहीं था कि पंखुड़ी को इस बात का पता नहीं था. वह सब समझती थी पर जानबूझ कर उसे इगनोर करती, क्योंकि उस के दिमाग में था कि विनिता जैसी हाउसवाइफ के पास कोई काम नहीं होता दिन भर सिवा खाना बनाने और लोगों की जासूसी करने के.

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Serial Story: पक्की सहेलियां (भाग-1)

पति निशांत की प्रमोशन और स्थानांतरण के बाद विनिता अपने 5 वर्षीय बेटे विहान को ले कर हजारीबाग से रांची आ गई. महत्त्वाकांक्षी निशांत को वहां की पौश कालोनी अशोक नगर में कपंनी द्वारा किराए का मकान मिला था, जिस में रांची पहुंचते ही वे शिफ्ट हो गए. मकान बड़ा, हवादार और दोमंजिला था. नीचे मकानमालिक रहते थे और ऊपर विनिता का परिवार.

मकान के पार्श्व में बने बड़े गैरेज के ऊपर भी एक बैडरूम वाला छोटा सा फ्लैट बना था, जो खाली पड़ा था. उस फ्लैट को ऊपरी मंजिल से इस तरह जोड़ा गया था कि दोनों फ्लैटों में रहने वाले आनेजाने के लिए कौमन सीढि़यों का उपयोग कर सकें.

रांची आते ही निशांत ने विहान का ऐडमिशन एक अच्छे स्कूल में करवा कर

औफिस जौइन कर लिया. स्कूल ज्यादा दूर नहीं था पर विनिता को स्कूटी चलाना न आने के कारण निशांत को अपनी कार से औफिस जाते समय विहान को स्कूल छोड़ना और लंच टाइम में आते वक्त उसे वापस लाना पड़ता था. कुछ दिनों तक तो ठीक चला पर नई जगह, नया पद और जिम्मेदारियां, इन सब ने निशांत को धीरेधीरे काफी व्यस्त कर दिया. अब निशांत सुबह 9 बजे निकल जाता और शाम के 7-8 बजे तक ही लौट पाता था, वह भी बिलकुल थका हुआ.

एक दिन निशांत ने विनिता से कहा, ‘‘तुम स्कूटी चलाना क्यों नहीं सीख लेतीं? कम से कम विहान को स्कूल पहुंचाने व लाने का तथा दूसरे छोटेमोटे काम तो कर ही सकती हो.’’

‘‘अरे मुझे क्या जरूरत है स्कूटी सीखने या बाहर के काम करने की. ये काम तो मर्दों के होते हैं, मैं तो घर में ही भली,’’ विनिता बोली.

मजबूरन विहान के लिए निशांत ने औटोरिकशा लगवा दिया. उस के बाद निशांत ने इस संबंध में कोई बात नहीं की. घरेलू और मिलनसार स्वभाव की विनिता खुद को घरगृहस्थी के कामों में ही व्यस्त रखती थी. लगभग डेढ़दो महीने उसे अपने घर को सुव्यवस्थित करने में लग गए. मकानमालकिन की मदद से अच्छी बाई मिल गई, तो विनिता ने चैन की सांस ली. विहान के स्कूल से आने के बाद अब वह उसी के साथ व्यस्त रहती.

घर सैट हो गया तो विनिता ने पासपड़ोस में अपनी पहचान बनानी शुरू करनी चाही पर छोटी जगह से आई विनिता को यह पता नहीं था कि ज्यादातर पौश कालोनी में रहने वाले पड़ोसियों का संबंध सिर्फ हायहैलो और स्माइल तक ही सीमित रहता है. कारण, वे सभी अपनेआप में हर तरह की सुविधा से आत्मनिर्भर होते हैं. 1-2 लोगों के साथ दोस्ती भी हुई पर सिर्फ औपचारिक तौर पर. अत: घर का काम खत्म होने पर जब कभी उसे खाली समय मिलता तो या तो वह टीवी देखती या फिर दिल बहलाने के लिए नीचे मकानमालिक के घर चली जाती.

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मकानमालिक बुजुर्ग दंपती थे, जिन के बच्चे विदेश में बसे थे. वे साल में 6 महीने विदेश में ही रहते थे अपने बच्चों के पास. गृहकार्य में दक्ष विनिता कभी कुछ विशेष खाना बनाती तो नीचे जरूर भेजती. नए किराएदार निशांत और विनीता के व्यवहार से बुजुर्ग दंपती बहुत संतुष्ट थे. उन तीनों को अपने बच्चों की तरह प्यार करने लगे थे. ये दोनों भी उन्हें आंटीअंकल कह कर बुलाने लगे. ज्यादातर संडे को छुट्टी होने के कारण चारों कभी ऊपर तो कभी नीचे एकसाथ चाय पी लिया करते थे.

ऐसे ही एक संडे की शाम को निशांत और विनिता नीचे आंटीअंकल के साथ चाय पी रहे थे. तभी अंकल ने पूछा, ‘‘बेटा, आप दोनों को अभी छुट्टी ले कर घर तो नहीं जाना है?’’

निशांत ने कहा, ‘‘नहीं अंकल, अभी अगले 6-7 महीने तो सोच भी नहीं सकता, क्योंकि औफिस का बहुत सारा काम पूरा करना है मुझे.’’

विनिता से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘मगर अंकल आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘वह इसलिए कि हम दोनों निश्चिंत हो कर कुछ महीनों के लिए अपने बच्चों से मिलने विदेश उन के पास जा सकें,’’ आंटी ने कहा तो विनिता मन ही मन घबरा गई.

घर आ कर भी विनिता सोचती रही कि इन दोनों के जाने के बाद तो घर सूना हो जाएगा, वह बिलकुल अकेली हो जाएगी. भले ही वह रोज नहीं मिलती उन से, पर कम से कम उन की आवाजें तो आती रहती हैं उस के कानों में.

सोते समय निशांत ने विनिता को सीरियस देखा तो पूछ लिया, ‘‘क्या बात है,

आंटीअंकल के जाने से तुम परेशान क्यों हो रही हो?’’

विनिता ने अपने दिल की बात बताई तो निशांत को भी एहसास हुआ कि वाकई इतने बड़े घर में विनिता अकेली हो जाएगी.

थोड़ी देर बाद विनिता ने कहा, ‘‘निशांत, क्यों न आंटीअंकल को गैरेज वाले फ्लैट में एक किराएदार रखने की सलाह दी जाए, जिस से उन को इनकम हो जाएगी और हम लोगों का सूनापन दूर हो जाएगा.’’

निशांत को विनिता की बात जंच गई. अगले दिन औफिस जाते वक्त निशांत ने जब अंकल से इस बात की चर्चा की तो उन्होंने न केवल किराएदार रखने वाली उन की बात का स्वागत किया, बल्कि नया किराएदार ढूंढ़ने का जिम्मा भी निशांत को ही सौंप दिया.

3-4 दिनों के बाद शाम के समय विनिता नीचे आंटीअंकल के पास बैठी हुई निशांत का इंतजार कर रही थी. तभी चुस्त कपड़े, हाई हील पहने और बड़ा सा बैग कंधे से लटकाए एक आधुनिक सी दिखने वाली लड़की कार से उतर गेट खोल कर अंदर दाखिल हुई. आते ही उस ने बड़ी संजीदगी से पूछा, ‘‘माफ कीजिएगा, क्या उमेशजी का यही घर है?’’

‘‘जी हां, बताइए क्या काम है? मैं ही हूं उमेश,’’ अंकल बोले.

‘‘गुड ईवनिंग सर, मैं पंखुड़ी,’’ कह कर उस ने अंकल से हाथ मिलाया. फिर कहने लगी, ‘‘आज निशांत से पता चला कि आप के घर में एक फ्लैट खाली है किराए के लिए. मैं उसी सिलसिले में आई हूं.’’

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‘अच्छा तो यह फैशनेबल सी लड़की किराएदार बनने आई है,’ सोच संकोची स्वभाव की विनिता उठ कर ऊपर जाने लगी. तभी अंकल ने अपनी पत्नी और विनिता से उस का परिचय करवाया. पंखुड़ी ने दोनों की तरफ मुखातिब होते हुए ‘हैलो’ कहा. फिर अंकल से बातचीत करने और फ्लैट देखने चली गई. बड़ा अटपटा लगा विनिता को कि उम्र में इतनी छोटी होने पर भी कितने आराम से उस ने सिर्फ हैलो कहा. कम से कम वह उसे न सही आंटी को नमस्ते तो कह सकती थी, उन की उम्र का लिहाज कर के. खैर, उसे क्या. उस ने मन ही मन सोचा.

आगे पढ़ें- अंकल से बात करते समय विनिता ने सुना कि..

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