सहनशक्ति से आगे

राजस्थान के जिला धौलपुर के गांव राजाखेड़ा का रहने वाला ऋषि दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी करता था. रहने के लिए उस ने जामुनापार क्षेत्र के मंडावली में किराए का एक

कमरा ले रखा था. ऋषि की पत्नी लक्ष्मी और 3 बच्चे खुशी, अंशु और गुंजन गांव में उस के मातापिता के साथ रहते थे.

2-4 महीने में जब छुट्टी मिलती थी तो वह 10-5 दिन के लिए गांव चला जाता था. पति के बिना लक्ष्मी की जिंदगी बेरंग सी थी, इसलिए जब भी ऋषि छुट्टी में गांव आता तो वह उस पर दबाव डालती कि या तो वह उसे और बच्चों को दिल्ली ले चले या फिर गांव में रह कर खेती करे.

इस बात को ले कर दोनों के बीच कई बार झगड़ा भी हो जाता था. ऋषि लक्ष्मी को समझाता, ‘‘गांव की जमीन पर किसी तरह पक्का मकान बन जाए, फिर दूध की डेयरी खोल कर यहीं साथसाथ रहेंगे. बच्चों का दाखिला भी किसी अच्छे स्कूल में करा देंगे.’’

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ऐसे में लक्ष्मी ठंडी सांस ले कर कहती, ‘‘पता नहीं कभी वह दिन आएगा भी या नहीं.’’

ऋषि जैसेतैसे लक्ष्मी को समझाता और वक्त से ताल मिला कर चलने की कोशिश करता. लक्ष्मी भी इस सब को वक्त के ऊपर छोड़ कर शांत हो जाती.

धौलपुर की सीमा आगरा के थाना क्षेत्र मनसुखपुरा से लगी हुई थी. इसी थाना क्षेत्र के बड़ागांव में ऋषि की पुश्तैनी जमीन थी. ऋषि उसी जमीन पर मकान बनवाना चाहता था. उस के मातापिता भी इस के लिए तैयार थे. लेकिन लक्ष्मी इस से संतुष्ट नहीं थी.

दरअसल उसे लगता था कि अगर ऋषि ने मकान बनवा भी लिया तो भी वह गांव में नहीं रहेगा. क्योंकि उसे दिल्ली का चस्का लग गया है. कभीकभी उसे यह भी लगता कि ऋषि ने दिल्ली में किसी औरत से मन लगा लिया है, इसलिए उस से बहाने बनाता रहता है.

घर के कामधाम और बच्चों में लक्ष्मी का दिन तो गुजर जाता लेकिन रातें काटनी मुश्किल हो जातीं. मोबाइल पर बात कर के मन को बहलाने की कोशिश करती, पर हसरतें उड़ान भरना बंद नहीं करतीं. उसे लगता कि उस की भावनाओं और जरूरतों को कोई समझना नहीं चाहता. न पति, न सासससुर.

दूसरी ओर ऋषि की जिंदगी भी बेहाल थी. वह सुबह को ड्यूटी पर जाता और रात को थकाहारा लौट कर सो जाता. अगली सुबह फिर वही कवायद शुरू हो जाती.

उसे सब से ज्यादा चिंता मकान बनाने की रहती थी, जिस के लिए वह पैसे जोड़ रहा था. पिछली बार जब वह गांव गया था तो उस ने दीपक से ईंटों के भाव वगैरह के बारे में बात भी की थी. पिता की मौत के बाद भट्ठे का काम दीपक ही संभाल रहा था.

ऋषि के घर से दीपक का घर करीब एक किलोमीटर दूर था. जब तब दीपक और ऋषि की मुलाकात होती रहती थी. दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह जानते थे. दीपक भी शादीशुदा था. उस की शादी करीब 4 साल पहले हुई थी. उस का एक बेटा भी था. पिता की मौत के बाद दीपक ने भट्ठे का कारोबार बखूबी संभाल लिया था.

ऋषि सोच रहा था कि यदि दीपक मकान के लिए ईंटें उधार दे दे तो धीरेधीरे वह उस का उधारी चुका देगा. यही सोच कर ऋषि छुट्टी ले कर गांव आया. दीपक के भट्ठे पर जा कर उस ने अपनी परेशानी उसे बताई. साथ ही यह भी कि उसे कितनी ईंटों की जरूरत होगी. हिसाबकिताब लगा कर दीपक और ऋषि के बीच सौदा पक्का हो गया.

सौदा तो हो गया लेकिन ऋषि ने सोचा कि अगर दीपक का मूड बदल गया तो हो सकता है वह ईंटें उधार न दे. यही बात दिमाग में रख कर उस ने दीपक के साथ दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी. एक दिन उस ने दीपक को खाने पर घर बुलाया.

दीपक पहली बार ऋषि के घर गया था, जहां उस ने ऋषि की खूबसूरत पत्नी को देखा. लक्ष्मी बेबाक किस्म की औरत थी. खाना खाते वक्त दीपक का पूरा ध्यान लक्ष्मी पर ही केंद्रित रहा. खाना खत्म होने पर उस ने लक्ष्मी से कहा, ‘‘भाभी, आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

लक्ष्मी उसे तीखी नजरों से देखा और बोली, ‘‘मैं और भी कई काम अच्छे से करती हूं.’’

ऋषि को घर से दीपक वापस तो आ गया पर रात भर बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उसे लगा था कि लक्ष्मी अपने पति से खुश नहीं है. वह लक्ष्मी से दोबारा मिलना चाहता था, लेकिन उस की वजह होनी जरूरी थी, लेकिन फिलहाल वजह कोई नहीं थी. अगले दिन ऋषि का फोन आया तो उस ने बताया कि वह अपनी ड्यूटी पर दिल्ली आ गया है. इसलिए वह ईंटें उस के प्लौट पर पहुंचा देता, जिस से गांव लौटते ही वह काम शुरू करा सके.

ऋषि से बात कर के दीपक का दिल छलांगें भरने लगा, उस ने जवाब में कहा, ‘‘तुम भाभी का मोबाइल नंबर दे दो मैं ईंटें तैयार होते ही उन्हें बता दूंगा.’’

ऋषि ने लक्ष्मी का मोबाइल नंबर दीपक को दे दिया. उस ने सोच लिया कि आगे की बातें लक्ष्मी संभाल लेगी.

कुछ ही दिनों में ऋषि का मकान बन गया. लक्ष्मी खुश थी कि अब वह सासससुर से अलग रह कर मनचाही जिंदगी जी सकेगी. उस ने दीपक की नजरों की भाषा समझ ली थी. वह यह भी जानती थी कि दीपक के पास बहुत पैसा है और उस के पास ख्वाहिशें. ऋषि की कम कमाई की वजह से उस की ख्वाहिशें अधूरी रह गई थीं.

मकान तैयार हो चुका था. पत्नी और बड़ी बेटी खुशी के साथ बड़ागांव स्थित नए मकान में रहने के लिए आ गया. हालांकि उस के मांबाप इस पक्ष में नहीं थे कि लक्ष्मी नए मकान में रहे. दोनों छोटे बच्चों अंशु और गुंजन को दादादादी ने बड़ागांव के मकान में भेजने से इनकार कर दिया. कुछ दिन तक तो खुशी गांव में मां के साथ रही. फिर एक दिन वह दादादादी के पास जाने की जिद करने लगी. इस बीच फोन के जरिए दीपक और लक्ष्मी काफी करीब आ गए थे.

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एक दिन मौका पा कर लक्ष्मी ने दीपक को घर आने का आमंत्रण दे ही दिया. दीपक के घर और ऋषि के नए घर के बीच करीब 3 किलोमीटर की दूरी थी. दीपक और लक्ष्मी के बीच जब मिलने की बात तय हो जाती तो दीपक अपनी मोटरसाइकिल से आ जाता और रात रंगीन कर के सुबह अपने घर लौट जाता था.

8 साल की खुशी एक दिन जिद कर के दादा के साथ राजाखेड़ा आ गई तो लक्ष्मी के सासससुर को बहू और दीपक की दोस्ती के बारे में पता चला. यह बात काफी चिंताजनक थी. एक दिन जानकी और राजाराम गए और लक्ष्मी से पूछा कि दीपक वहां क्यों आता है? लक्ष्मी समझ गई कि खुशी ने बताया होगा.

लक्ष्मी ने तुनक कर कहा, ‘‘लगता है, आप लोगों से मेरी खुशी सहन नहीं होती, जिस का उधार है वह तो लेने आएगा ही. इतना बुरा लग रहा है तो दीपक के पैसे आप ही चुका दीजिए. उसे पैसे मिल जाएंगे तो वह यहां नहीं आएगा.’’

राजाराम जानता था कि ऋषि जल्दी पैसा नहीं चुका पाएगा. लेकिन उसे बताना पड़ेगा कि गांव के लोगों को यह बात पता चल गई है कि राजाखेड़ा के भट्टा मालिक दीपक का लक्ष्मी के साथ मेलजोल काफी बढ़ गया है. लक्ष्मी कई बार दीपक के साथ आगरा में भी देखी गई थी. धीरेधीरे पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा था. कोई और राह न देख राजाराम ने तय कर लिया कि ऋषि को पूरी बात बता दी जाए.

आखिरकार उस ने फोन कर के ऋषि को बुलवा लिया. राजाराम ने ऋषि को समझा कर कहा कि बेहतर होगा कि बहू को अपने साथ दिल्ली में ही रखो. क्योंकि दीपक के साथ उस के नजदीकी संबंधों से बहुत बदनामी हो रही है.

ऋषि को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि लक्ष्मी उस के पीछे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दोस्त के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है.

वह गुस्से में बड़ागांव पहुंचा और लक्ष्मी से पूछताछ की. वह बोली, ‘‘तुम मुझे क्यों दोष दे रहे हो दीपक का कर्जा क्यों नहीं चुका देते?’’

गुस्से में भरे ऋषि ने उसे 2-4 तमाचे जड़ दिए. फिर बोला, ‘‘देख मुझे गुस्सा न दिला. अपना बैग तैयार कर अब तू मेरे पास दिल्ली में रहेगी.’’

‘‘ओह तो अब तुम मुझे जबरन दिल्ली ले जाओगे. मैं तुम्हारी बीवी जरूर हूं, तुम्हारी गुलाम नहीं. शादी के बाद तुम ने मुझे 3 बच्चे तो दे दिए पर अभावों के अलावा कुछ नहीं दिया. अब मैं मनचाहा जीवन जीना चाहती हूं. जो आदमी उधारी तक नहीं चुका सकता वो मेरे लिए क्या करेगा?’’

ऋषि समझ गया कि गुस्सा करने से काम नहीं चलेगा. उसे खुद पर काबू रखना होगा. क्योंकि यदि लक्ष्मी ने कोई गलत कदम उठा लिया तो उस की वजह से पूरे समाज में बदनामी होगी, और 3 बच्चों को संभालना भी मुश्किल हो जाएगा.

उस ने लक्ष्मी को ऊंचनीच समझाने की कोशिश की और कहा कि वह जल्दी ही दीपक का कर्जा चुका देगा, चाहे उसे अपनी जमीन ही क्यों न बेचनी पड़े.

लक्ष्मी को इस सब से कोई मतलब नहीं था. दीपक उसे जब तब उपहार भी देता रहता था. इसलिए वह उसे किसी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी.

अगले दिन वह ऋषि के भट्ठे पर गया. उस ने दीपक को धमकाया कि अगर वह अपनी करनी से बाज नहीं आया तो जान से जाएगा.

दीपक जानता था कि ऋषि बहुत गुस्से वाला है. दूसरे अगर उस की पत्नी को पता चल गया तो वह हंगामा खड़ा कर देगी. ससुराल वाले भी अपनी बेटी उस के यहां से ले जाएंगे.

आशिकी के इस खेल में दोनों पक्षों के लोग परेशान थे, पर ये दिल की लगी का खतरनाक खेल था. लक्ष्मी का फोन आने पर दीपक खुद को रोकने की कोशिश करता. पर लक्ष्मी उसे मजबूर कर देती और वह अपनी बाइक से उस के दरवाजे पर पहुंच जाता.

उधर ऋषि का दिल भी काम में नहीं लग रहा था. कंपनी के बौैस ने कई बार उसे टोका कि वह खुद को संभाले वरना नौकरी से हाथ धो बैठेगा. गांव में कोई कामधंधा नहीं था. अगर नौकरी छूट गई तो फिर वह क्या करेगा. यही सब सोच कर वह काफी तनाव में रहने लगा.

इसी बीच 23 फरवरी को वह गांव आया. वह पहले राजाखेड़ा पहुंचा और अपने पिता से कहा, ‘‘मैं ने कंपनी से कुछ पैसा उधार लिया है. वह मैं दीपक को दे देता हूं. अब मैं ओवरटाइम करूंगा और कंपनी का उधार चुका दूंगा.’’

उस के पिता परेशान हो गए. एक ओर बेटे पर आर्थिक बोझ पड़ रहा था, दूसरी ओर बेलगाम हो गई बहू बिरादरी में उन्हें बदनाम कर रही थी.

दीपक को पैसा देने के लिए ऋषि उस के  भट्ठे पर पहुंच गया. उस ने दीपक को पैसा देते हुए कहा, ‘‘जल्दी ही बाकी का पैसा भी दे दूंगा. लेकिन ये सोच लेना कि अगर तुम ने बड़ागांव में पैर भी रखा तो मारे जाओगे.’’

‘‘तुम मुझे धमका रहे हो, बड़ागांव क्या तुम्हारी जागीर है. मुझे ये सब क्यों सुना रहे हो. अपनी बीवी को क्यों नहीं समझाते. दरअसल, तुम में मर्दानगी है ही नहीं, तभी तो लक्ष्मी तुम से संतुष्ट नहीं है.’’

दीपक की बात सुन कर ऋषि आगबबूला हो गया. उस ने दीपक का गिरेबान पकड़ कर झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘आज के लिए इतना ही काफी है. पर मैं ने जो चेतावनी दी है, उस का खयाल रखना.’’

वहां से लौट कर ऋषि भारी मन घर में घुसने ही वाला था कि तभी गांव के एक लड़के ने टोका, ‘‘ऋषि भैया, आजकल बहुत जल्दीजल्दी घर के चक्कर लगा रहे हो. सब ठीक तो है न?’’

‘‘हां, सब ठीक है. कुछ जरूरी काम था.’’ कह कर ऋषि घर में घुस गया.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब करे तो क्या करे. काफी सोचविचार कर ने के बाद आखिर उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया.

नफरत का गुबार उस के अस्तित्व में कड़वाहट भर गया. उस ने लक्ष्मी से ढंग से बात नहीं की. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. एक बात उस की समझ में नहीं आ रही थी कि इस पूरी स्थिति से कैसे निपटा जाए. कुछ भयानक होने वाला है, इस की आहट तक उसे सुनाई नहीं दी.

24 फरवरी को थाना मनसुखपुरा में तब होहल्ला मच गया जब एक नौजवान खून सने कपड़ों में थाने पहुंचा. थाना इंचार्ज ओ.पी. सिंह थाने में ही थे. मुंशी ने उन्हें बताया कि एक आदमी 2 खून कर के आया है.

ओ.पी. सिंह तुरंत उस व्यक्ति से मिले. उस की हालत देख कर ही वह समझ गए कि वह कोई बड़ा कांड कर के आया है. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बताओ, क्या कर के आए हो?’’

‘‘साहब, मेरी बीवी ने मेरा भरोसा तोड़ दिया. मैं ने गांव में मकान बनाया था. पर मुझे क्या पता था कि मेरी बदचलन बीवी दीपक से आशिकी कर बैठेगी. सर, जब मैं दिल्ली से चला था तो सोचा था कि लक्ष्मी को मना कर इस बार उसे और बच्चों को अपने साथ दिल्ली में रखूंगा. पर जब मैं ने देखा कि वह कमरा बंद कर के अपने यार के साथ मौजमस्ती कर रही है तो मेरा खून खौल उठा.

‘‘सामने फावड़ा रखा था बस फिर क्या था. मैं ने दीपक पर फावड़े से वार किया. और उसे बचाने के लिए लक्ष्मी सामने आई तो सोचा इसे भी मार डालने में ही भलाई है क्योंकि जो सजा एक खून करने पर होती है, वही दूसरा खून कर देने ही मिलेगी. साहब, मैं ने दोनों को मार डाला. आगे कानून जो भी सजा देगा मुझे मंजूर होगा.’’

दीपक की हत्या की खबर जब राजाखेड़ा पहुंची तो वहां हाहाकार मच गया. दीपक के चाचा राजेंद्र ने थाने में हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. दीपक और लक्ष्मी की नादानी से 2 परिवार उजड़ गए.

दरअसल, ऋषि दिल्ली वापस जाने का बहाना बना कर जैसे ही घर से निकला लक्ष्मी ने दीपक को फोन कर  दिया. दीपक को अपने घर में घुसते देख ऋषि हकीकत समझ गया. सब कुछ अपनी आंखों से देखा, तो उस का खून खौल उठा. उस ने दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खुलने पर अंदर बैठे दीपक को बाहर भागने का मौका नहीं दिया और फावड़े से काट दिया. बहुत दिनों से सिर पर बोझ था 2-2 कत्ल करने के बाद सिर का बोझ उतर गया. ऋषि को लग रहा था कि उस ने अपने परिवार के सम्मान की रक्षा की है, पर अब आगे क्या होगा कोेई नहीं जानता.

पोस्टमार्टम के बाद दीपक के शव को उस के घर वाले ले गए पर लक्ष्मी के शव को लेने कोई नहीं आया. सब के होते हुए भी पुलिस ने उस की लाश को लावारिस के रूप में अंतिम संस्कार करा दिया.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां) 

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