यौन उत्पीड़न के खिलाफ उठाएं आवाज

हाल ही में दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत ने पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं संपादक एम. जे. अकबर के आपराधिक मानहानि मुकदमे को खारिज करते हुए कहा कि जीवन और गरिमा के अधिकार की कीमत पर प्रतिष्ठा के अधिकार का संरक्षण नहीं किया जा सकता.फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रिया रमानी के द्वारा किया गया खुलासा दफ्तरों में औरतों के साथ होने वाले यौन शोषण को बाहर लाने में मददगार था.

कोर्ट ने अपने आदेश में साफ़ कहा कि एक महिला को दशकों बाद भी अपनी पंसद के किसी भी मंच पर अपनी शिकायत रखने का अधिकार है. इस तरह के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने को ले कर किसी महिला को दंडित नहीं किया जा सकता है. रमानी के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित नहीं किया जा सका.

दरअसल रमानी ने 2018 में सोशल मीडिया पर चली ‘मी टू’ मुहिम के तहत अकबर के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगाए थे. अकबर ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था साथ ही उन आरोपों को ले कर रमानी के खिलाफ 15 अक्टूबर 2018 को शिकायत भी दायर की थी.

एक तरह से यह फैसला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कभी न कभी आवाज उठाने वाली सभी महिलाओं की जीत है. इस से महिलाओं का यह विश्वास बढ़ेगा कि भले ही कितना भी बड़ा रसूखदार क्यों न हो, उन्हें डरने की जरुरत नहीं क्योंकि कानून उन के साथ है.

कौन हैं प्रिया रमानी और अकबर

प्रिया रमानी मीडिया इंडस्ट्री में लंबे समय से हैं. उन्होंने इंडिया टुडे, इंडियन एक्सप्रेस आदि समूहों के साथ काम किया है. वह अंतरराष्ट्रीय फैशन मैगजीन कॉस्मोपॉलिटन की संपादक और मिंट अखबार में फीचर एडिटर रही हैं.

एमजे अकबर दैनिक अखबार ‘द टेलीग्राफ’ और पत्रिका ‘संडे’ के संस्थापक संपादक रहे हैं. मीडिया इंडस्ट्री में उन्हें एक बड़ी हस्ती के रूप में जाना जाता था. अकबर 1989 में राजनीति में आए. उन्होंने पहले कांग्रेसपार्टी ज्वाइन की और सांसद बने थे. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वे बीजेपी में शामिल हो गए. मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य अकबर मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे.

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क्या है मामला

कहानी 2017 में शुरू होती है जब हॉलीवुड के फेमस प्रोड्यूसर हार्वी वाइनस्टीन के ऊपर कई लड़कियों और औरतों ने यौन शोषण के आरोप लगाए. इन में कई नामी एक्ट्रेस भी शामिल थीं. यहीं से मीटू मूवमेंट की शुरुआत हुई. अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों की औरतें सामने आईं और अपने साथ हुए यौन शोषण पर खुल कर अपनी बात रखी.

इसी दौरान इंडियन जर्नलिस्ट प्रिया रमानी ने भी इस मसले पर वोग मैगज़ीन के लिए एक आर्टिकल लिखा. टाइटल था- ‘दुनिया के सभी हार्वी वाइनस्टीन के लिए’. इस में रमानी ने अपने करियर के पहले पुरुष बॉस के साथ हुई फर्स्ट मीटिंग का ज़िक्र किया. यहां प्रिया ने अपने बॉस का नाम लिए बिना लिखा-

‘ डियर मेल बॉस, आप ने मुझे वर्कप्लेस का पहला सबक सिखाया. मैं तब 23 साल की थी और आप 43 साल के. आप मेरे प्रोफेशनल हीरोज में से एक थे. मैं आप को पढ़ते हुए बड़ी हुई थी. सभी कहते थे कि आप ने देश की पत्रकारिता को बदल दिया है इसलिए मैं आप की टीम का हिस्सा बनना चाहती थी. इसलिए हम ने एक समय सेट किया ताकि आप साउथ मुंबई के एक होटल में मेरा इंटरव्यू कर सकें. मुझे शाम सात बजे बुलाया गया, लेकिन इस बात से मैं परेशान नहीं हुई. मैं जानती थी कि आप बिज़ी एडिटर हैं. जब मैं होटल की लॉबी में पहुंची तब मैं ने आप को कॉल किया. आप ने ऊपर आने को कहा. रूम में डेटिंग जैसा माहौल ज्यादा था, इंटरव्यू का कम. आप ने अपने मिनी बार से मुझे एक ड्रिंक ऑफर की. मैं ने मना किया तो आप ने वोडका पी. मैं और आप इंटरव्यू के लिए आमने-सामने थे. बीच में एक छोटा टेबल था. वहां से मुंबई का मरीन ड्राइव दिख रहा था. आप ने कहा कितना रोमांटिक लग रहा है. आप ने हिंदी फिल्म का पुराना गाना सुनाया और मेरी रुचि पूछने लगे. रात बढ़ती जा रही थी. मुझे घबराहट हो रही थी. कमरे में बिस्तर भी था. आप ने कहा यहां आ जाओ. मैं ने कहा नहीं मैं कुर्सी पर ही ठीक हूं. उस रात मैं किसी तरह बच गई. आप ने

मुझे काम दे दिया. सालों बाद भी आप नहीं बदले. आप के यहां जो भी नई लड़की काम करने आती थी आप उस पर अपना अधिकार समझते थे. आप भद्दे फोन कॉल और मैसेज करने में एक्सपर्ट हैं. ‘

इस आर्टिकल को ले कर 2017 में भारत में कोई हंगामा नहीं हुआ क्योंकि इस में किसी का नाम नहीं था. फिर 2018 के आखिरी महीनों में जब हमारे देश में भी मीटू मूवमेंट शुरू हुआ तो लड़कियों ने अपने साथ हुए यौन शोषण के अनुभवों को सामने रखना शुरू किया. जानेमाने लोगों पर भी संगीन आरोप लगे.
तब प्रिया रमानी सामने आईं और बताया कि 2017 में जिस बॉस की बात वह कर रही थीं, वे MJ अकबर थे. 1994 में जब वह एशियन एज अखबार में काम कर रही थीं तब अकबर उस अखबार के एडिटर थे.
देखते ही देखते अकबर के खिलाफ बोलती हुई और महिलाएं दिखने लगीं. धीरेधीरे यह संख्या एक दर्जन से भी ज्यादा हो गई. ज्यादातर ने यौन शोषण की बात की.

जब ये आरोप लग रहे थे तब अकबर राज्यसभा सांसद और विदेश राज्य मंत्री भी थे. इतने आरोपों के बाद एमजे अकबर ने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. 15 अक्टूबर 2018 के दिन उन्होंने प्रिया रमानी के खिलाफ क्रिमिनल डिफेमेशन केस यानी मानहानि का केस भी फाइल कर दिया. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में प्रिया रमानी के खिलाफ IPC की धारा 499 और 500 यानी डेफेमेशन और पनिशमेंट फॉर डिफेमेशन के तहत केस फाइल हुआ. 41-पृष्ठ के मानहानि के मुकदमे में अकबर ने आरोप लगाया कि प्रिया रमानी के ट्वीट और समाचार पत्र के लेख ने उन की 40 साल से अधिक की प्रतिष्ठा और सद्भावना को खराब किया है जिस की वजह से उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. अकबर की तरफ से यह दबाव भी बनाया गया था कि मामले को रफादफा कर लिया जाए पर प्रिया ने यह नहीं स्वीकारा.

आखिर में प्रिया के ऊपर लगे आरोप गलत साबित हुए. प्रिया ने बिना डरे, बिना थके एक ऐसे आदमी के खिलाफ लड़ाई लड़ी जो उस के मुकाबले बहुत ज्यादा ताकतवर था.

यौन उत्पीड़न या यौन दुर्व्यवहार की घटनाएं अक्सर बंद कमरे में अंजाम दी जाती हैं. कई बार पीड़िता यह समझ भी नहीं पाती कि उस के साथ गलत हो रहा है. खासकर जब सामने वाला शख्स समाज का एक सम्मानित व्यक्ति हो. बाद में जब लड़की को अहसास होता है कि कैसे उस की गरिमा पर आघात हुआ है तो भी कभी शर्म की वजह से और कभी सामने वाले की प्रतिष्ठा के आगे वह खुद को कमजोर महसूस करती है और कुछ बोल नहीं पाती. ऐसे में उस का आत्मविश्वास टूटने लगता है. वह खुद से ही नजरें मिलाने से कतराने लगती है.

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जिंदगी में औरतों को अक्सर ऐसे लोगों का सामना करना पड़ता है जो समाज में भले ही कितने भी सम्मानित व्यक्ति क्यों न हों मगर औरतों के प्रति उन की सोच बहुत ही छोटी और संकुचित होती है. वे

औरतों को महज एक शरीर के रूप में देखते हैं जिस के जरिये अपनी अपूर्ण इच्छाओं और वासनाओं की पूर्ति कर सकें. हमें यह समझना होगा कि समाज में अच्छी पहचान रखने वाला पुरुष भी सेक्शुअल अब्यूजर हो सकता है और एक पुरुष की प्रतिष्ठा बचाने के लिए एक महिला के आत्मसम्मान की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती.

हमेशा होता है भेदभाव

ग्लास सीलिंग वाले हमारे समाज में औरतों के साथ हमेशा ही भेदभाव किया जाता है और उस के रास्ते में मुश्किलें खड़ी की जाती हैं. औरतें कितनी भी योग्यता दिखा लें मगर पुरुष उन्हें अपने हाथ की कठपुतली ही बना कर रखना
चाहते हैं. महिलाएं अपने साथ हो रहे अत्याचारों के मसले पर सिर्फ एक सामान्य वजह से नहीं बोलती हैं और वह है शर्म. वह जानती हैं कि यदि उन्होंने मुंह खोला तो समाज उसे ही कसूरवार समझेगा. खासकर जब सामने वाला बंदा बड़ा रसूखदार हो तो फिर उस की क्या हैसियत. यही वजह है कि कई बार पीड़िता यौन उत्पीड़न के बारे में वर्षों तक एक भी शब्द नहीं बोलती और उस शर्म के साथ जीती रहती है.

बचपन से दी जाती है शिक्षा

हमारे पुरुष प्रधान समाज में बचपन से बच्चों को यही सिखाया जाता है कि लड़कियों को पापा, भाई या पति की हर बात सर झुका कर मान लेनी चाहिए. यानी घर के पुरुष सदस्य ही मालिक हैं और औरतों का काम उन का ख्याल रखना और हुक्म मानना है. यदि लड़कियां किसी बात पर अपने भाई से लड़ने लगती हैं तो मां उसे अलग ले जा कर यह जरूर समझाती है कि बेटा तुझे तो पराए घर जाना है. नए घर में एडजस्ट होना है. इसलिए तुझे दब कर, झुक कर और अपने सम्मान को ताक पर रख कर ही जीना सीखना होगा ताकि कल को दूसरे घर जा कर तू हमारी नाक न कटा आना. जो भाई कहता है वैसा ही कर.

इसी तरह ससुराल जाने के बाद भी घर की महिलाएं नई बहू को पति से दबना और सहनशील बनना ही सिखाती हैं. जबकि लड़के चाहे जितना भी गलत कर लें उन की गलतियां इग्नोर कर दी जाती हैं. उन्हें शह दिया जाता है कि वह घर कीस्त्री के साथ नौकरों जैसा व्यवहार कर सकते हैं. नतीजा यह होता है कि समय के साथ पुरुषों की सोच तानाशाह वाली होने लगती है. वे स्त्रियों को अपनी प्राइवेट प्रॉपर्टी समझने लगते हैं. घर में विकसित हुई यह सोच और नजरिया
धीरेधीरे उन के सामाजिक व्यवहार में परिलक्षित होने लगता है. उन के व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है. पुरुषों की नजरों में स्त्रियां वह खिलौना बन जाती है जिन्हें जब जैसे चाहो अपने इशारों पर नचाया जा सके. उन की सोच और इच्छा को नजरअंदाज कर अपनी अहम की तुष्टि की जा सके.

आजकल औरतें बड़ी संख्या में ऑफिस में पुरुषों के साथ काम करती हैं. ऐसे में कई बार उन्हें कार्यस्थल पर पुरुषों की ज्यादती या यौन दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है;

क्या है कार्यस्थल पर सैक्सुअल हैरेसमेंट

कई बार ऑफिस में पुरुष बॉस या सहकर्मी द्वारा महिलाओं के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है जो महिलाओं को बहुत असहज कर सकता है. ऐसे में उन्हें नौकरी छोड़ने पर भी मजबूर होना पड़ता है. ये हरकतें जानबूझ कर भी की जाती हैं और कई बार गैर-इरादतन भी होती हैं. पुरुषों को लगता है कि औरत को बोलने या टोकने का हक़ नहीं. जबकि वे उन के साथ कुछ भी कर सकते हैं.

मान लीजिए ऑफिस में कोई पुरुष कर्मचारी फाइल लेने या देने के दौरान अपनी महिला कुलीग का हाथ छू लेता है. महिला असहज महसूस करती है और आइंदा ऐसा न करने की ताकीद करती है. इस के बावजूद वह पुरुष इस तरह की हरकत करता रहता है तो यह व्यवहार यौन शोषण में शामिल होगा.

इस सन्दर्भ में क्रिमिनल लॉयर अनुजा कपूर कहती हैं कि यदि कोई पुरुष आप को गलत इंटेंशन के साथ हुए छुए. आप के ब्रेस्ट, हिप्स जैसी जगहों पर हाथ लगाए, कंधे पर हाथ रख कर आप को पकड़ना या जकड़ना चाहे, आप की इच्छा के विरुद्ध आप के हाथों को पकड़े, बहुत करीब आ कर खड़ा हो जाए, आप के स्पेस का आदर न करे, अपनी जुबान से कुछ ऐसा गलत कहे जिसे सुन कर आप कंफर्टेबल महसूस न करें, वह आप को यह कहे कि प्रमोशन चाहिए तो साथ सोना पड़ेगा या तुम मेरे लिए क्या कर सकती हो. ऐसी डिमांड रखे जिसे कोई भी भली लड़की पूरा करना नहीं चाहती, भले ही वह बॉस हो, कुलीग हो या फिर कोई जूनियर ही क्यों न हो. यौन शोषण जुबानी , शारीरिक या हाव भाव के द्वारा किया जा सकता है. यदि पुरुष आप की सहमति के बिना आप को पोर्न मूवी दिखाता है, शराब पिला कर कुछ गलत करता है या हाथ लगाता है, आप को ऐसे मैसेज या मेल करता है या फोटो भेजता है जिन्हें देख कर आप कंफर्टेबल नहीं, ऐसे द्विअर्थी जोक्स भेजता है जो उस की डिग्निटी पर चोट करे तो यह सब यौन शोषण के अंतर्गत आएगा. इसी तरह अगर कोई पुरुष किसी महिला सहकर्मी की शारीरिक बनावट पर कमेंट करता है, उस के साथ सेक्शुअल बातें करने की कोशिश करता है ,गंदे इशारे करता है या फिर सीटी बजाता और घूरना जैसी हरकतें करता है तो यह सब यौन शोषण का हिस्सा हैं. इसी तरह बारबार टकराते हुए जाना या किसी महिला का रास्ता रोकना इस में शामिल होता है.

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हम महिलाओं के एंपावरमेंट और सुरक्षा की बात करते हैं लेकिन जब वे अपने काम वाली जगह ही सुरक्षित नहीं तो उन का विकास कैसे होगा? किसी रसूखदार के नीचे काम करने का मतलब यह नहीं कि वह दब जाए. मगर सच यह भी है कि जबआप रसूखदार लोगों से लड़ते हैं और आप के पास सिर्फ आप की सच्चाई होती है. तब आगे का सफर आप के लिए बहुत ही कठिन हो जाता है.

इस तरह के मामले जहां मानहानि के मामलों में पुरुष महिलाओं की आवाज़ बंद करने की कोशिश करते हैं, महिलाओं में उन के खिलाफ आवाज़ उठाने पर डर पैदा करते हैं. रमानी अकबर केस में कोर्ट का यह फैसला उन औरतों के लिए जो अपनी आवाज़ सामने रखने में हिचकिचाती हैं, एक साहस पूर्ण उदाहरण बनेगा. यह सिर्फ़ एक औरत की एक आदमी के खिलाफ जीत के बारे में नहीं बल्कि हर औरत की दबी हुई आवाज़ की सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ जीत है. कोर्ट का यह फैसला औरतों के लिए एक उम्मीद है कि उनकी आवाज़ व्यर्थ नहीं जा रही बल्कि बदलता समाज उन की आवाज़ सुन सकता है.

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