मरीचिका : मधु के साथ उस रात आखिर क्या हुआ

लेखक- नंदकिशोर बर्वे

मधु अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में किसी अपराधी की तरह सिर झुकाए बुत बनी बैठी थी. पता ही नहीं चला कि वह कितनी देर से ऐसे ही बैठी थी. एकएक पल कईकई साल की तरह बीत रहा था. उसे रहरह कर पिछले कुछ महीनों की उथलपुथल भरी घटनाएं भुलाए नहीं भूल रही थीं.

मधु की नौकरी जब शहर की एक बड़ी कंपनी में लगी थी, तो घर में खुशी का माहौल था. लेकिन साथ ही मम्मीपापा को यह चिंता भी थी कि अपने शहर से दूर उस अनजान बड़े शहर में बेटी को कैसे भेजें? आखिर वह वहां कैसे रहेगी?

फिर उस ने ही मम्मीपापा का हौसला बढ़ाया था और कहा था कि शहर भेज रहे हैं या जंगल में? लाखों लोगों में आप की बेटी अकेले कैसे रहेगी? उस जैसी और भी बेटियां वहां होंगी या नहीं?

जब वे लोग शहर पहुंचे, तो मम्मीपापा उसे नौकरी जौइन करा कर और उस की ही जैसी 3 और लड़कियों के गु्रप में छोड़ कर घर लौट आए. थोड़े ही दिनों के बाद उन में से 2 लड़कियों के रहने का इंतजाम उन के साथियों ने कर दिया.

मधु और एक दूसरी लड़की, जिस का नाम प्रीति था, भी इसी कोशिश में लगी थीं कि रहने का कुछ ठीक से इंतजाम हो जाए, तो जिंदगी ढर्रे पर आ जाए.

एक दिन मधु और प्रीति कंपनी में कैंटीन से लौट रही थीं, तो स्मोकिंग जोन से एक लड़की ने मधु का नाम ले कर आवाज लगाई. वह ठिठक गई कि यहां कौन है, जो उसे नाम ले कर आवाज लगा रहा है?

मधु ने उधर देखा तो एक स्मार्ट सी दिखने वाली लड़की, जिस के हाथ में सिगरेट थी, उसे बुला रही थी. वे दोनों बिना कुछ सोचे उस के पास चली गईं.

‘‘मैं श्वेता हूं. सुना है कि तुम रहने की जगह देख रही हो? मेरे पास जगह है,’’ उस लड़की ने सिगरेट के धुएं का छल्ला छोड़ते हुए कहा.

‘‘हां, लेकिन आप…’’ मधु को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या बोले.

‘‘ऐसी ही हूं मैं. कल मैं इसी समय इधर ही मिलूंगी. सोचो और फैसला लो,’’ उस लड़की ने सिगरेट का आखिरी कश जोर से खींचा और वहां से चली गई.

वे दोनों उसे देखती रह गईं. उन्होंने श्वेता के बारे में पता किया, तो पता चला कि वह खुली सोच वाली लड़की है, पर है दिल की साफ. साथ ही यह भी कि वह तलाकशुदा मातापिता की एकलौती औलाद है, इसीलिए इतनी बिंदास है. उस के पास अपना फ्लैट भी है, जिसे वह नए आने वालों से शेयर करती है.

मधु और प्रीति को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गई. उन्होंने फ्लैट देखा और पसंद आने पर उस के साथ रहने लगीं.

एक दिन श्वेता की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह उस दिन दफ्तर नहीं गई. जब शाम को मधु और प्रीति घर लौटीं, तो उन्होंने श्वेता के साथ एक लड़के को बैठे देखा.

श्वेता ने बताया कि वह लड़का उस का दूर का भाई है और अब उन के साथ ही रहेगा.

यह सुन कर मधु और प्रीति उस पर काफी नाराज हुईं, लेकिन श्वेता इस बात पर अड़ी रही कि वह उस के साथ ही रहेगा. उस ने तो यहां तक कह दिया कि वे चाहें तो अपने रहने का इंतजाम दूसरी जगह कर सकती हैं. यह सुन कर वे सन्न रह गईं.

इस के बाद मधु और प्रीति डरीसहमी उन के साथ रहने लगीं. उन्होंने देखा कि श्वेता का वह दूर का भाई कुछ दिन तो बालकनी में सोता था, लेकिन बाद में वह उस के बैडरूम में ही शिफ्ट हो गया.

जब उन्होंने एतराज किया, तो श्वेता बोली, ‘‘मेरा रिश्तेदार है और मेरा ही फ्लैट है. तुम्हें क्या दिक्कत है?’’

श्वेता का यह रूप देख कर मधु को उस से नफरत हो गई. वैसे, मधु के सीधेसहज स्वभाव के चलते श्वेता उस से उतनी नहीं खुली थी, लेकिन प्रीति से वह खुली हुई थी. वह उस को अपने दैहिक सुख के किस्से सुनाती रहती थी. कई बार मधु को भी यही सबकुछ दिखातीसुनाती, मधु थोड़ी असहज हो जाती.

एक दिन मधु प्रीति और श्वेता दोनों पर इन बातों के लिए खासा नाराज हुई. आखिर में किसी तरह प्रीति ने ही बात संभाली.

मधु ने उसी समय यह तय किया कि वह अब इन लोगों के साथ नहीं रहेगी. वह अगले दिन दफ्तर में पापा की तबीयत खराब होने का बहाना कर के अपने शहर चली गई थी.

घर के लोग मधु के तय समय से 15 दिन पहले ही अचानक आ जाने से खुश तो बहुत थे, पर समझ नहीं सके थे कि वह इतने दिन पहले कैसे आई थी. लेकिन उस ने उस समय घर वालों को यह नहीं बताया कि वह किस वजह से आई थी.

कुछ दिन वहां रुक कर मधु वापस आ गई. उस ने प्रीति को रेलवे स्टेशन से ही फोन लगाया. उस ने बताया, ‘तेरे जाने के बाद अगले दिन ही मैं भी अपने शहर चली गई थी, क्योंकि श्वेता और उस के भाई के साथ रहना मुझे बहुत भारी पड़ रहा था. मेरे घर वाले मुझे नौकरी पर नहीं जाने दे रहे हैं.’

यह सुन कर तो मधु के पैरों तले जमीन खिसक गई. उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि क्या करे, क्या न करे. एक मन कर रहा था कि ट्रेन में बैठ कर घर लौट जाए, लेकिन वह नहीं गई.

मधु ने असीम को फोन लगाया. वह उस के साथ दफ्तर में काम करता था. मधु ने रोंआसा होते हुए बात की, तो उस ने हिम्मत दी, फिर रेलवे स्टेशन आ गया.

असीम ने मधु को समझाबुझा कर श्वेता के फ्लैट पर रहने के लिए राजी किया. वह उसे वहां ले कर भी गया. श्वेता और उस का ‘भाई’, जिस का नाम कुणाल था, उन को देख कर हैरान रह गए. फिर सहज होते हुए श्वेता ने मधु को गले लगा लिया.

‘अरे वाह, तू भी. वैलडन,’  श्वेता ने असीम की ओर देख कर उसे एक आंख मारते हुए कहा.

‘‘तू जैसा समझ रही है, वैसा कुछ भी नहीं है,’’ मधु एकदम सकपका गई.

‘‘कोई बात नहीं यार. शुरू में थोड़ा अटपटा लगता है, फिर मजे ही मजे,’’ श्वेता बोली.

‘‘तू गलत समझ रही है,’’ मधु ने उसे फिर समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने उसे मुंह पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया और फ्रिज से कोल्डड्रिंक निकाल कर सब को देने लगी.

असीम कुछ समझ नहीं पा रहा था या समझ कर भी अनजान बन रहा था, कहना मुश्किल था. फिर बातों ही बातों में श्वेता ने अपने और कुणाल के बारे में सबकुछ बेबाकी से बताया. मधु की उम्मीद के उलट कुणाल ने उन सब को बड़ी सहजता से लिया. जब असीम वापस जाने लगा, तो उस ने कहा कि वह मधु के रहने का दूसरा इंतजाम करेगा और यह भी कि तब तक वह बारबार आता रहेगा. मधु किसी तरह मन मार कर वहीं रहने लगी.

‘हमारी कोई शादी नहीं हुई तो क्या फर्क पड़ता है, देखेंगे… जब जरूरत लगेगी, तब कर लेंगे. ऐसे रहने में क्या बुराई है?’

श्वेता अकसर मधु से बातें करते हुए कहती थी. मधु को कई बार यह भी लगता था कि वह सच ही तो कह रही है.

एक दिन मधु शाम को दफ्तर से घर लौटी, तो पाया कि श्वेता और कुणाल ब्लू फिल्म देख रहे थे.

मधु को लगा, जैसे वह उन दोनों का बैडरूम ही हो. उन के कपड़े यहांवहां बिखरे पड़े थे. शराब की बोतल मेज पर खुली रखी थी. वे दोनों उस फिल्म में पूरी तरह डूबे हुए थे.

अजीब सी आवाजों ने मधु को असहज कर दिया था. वह जल्दी से अपने कमरे की ओर बढ़ी, तो श्वेता ने उस से कहा, ‘‘हमारे साथ बैठो और जिंदगी का मजा लो.’’

मधु ने उसे अनसुना कर के खुद को कमरे में बंद कर लिया. फिर यह सिलसिला चलने लगा. असीम भी अकसर वहीं आ जाता था. मधु आखिर कब तक अपने को बचा पाती. उस पर भी उस माहौल का असर होने लगा था. अब वह भी यह सब देखनेसुनने में मजा लेने लगी थी.

एक शनिवार को असीम ने कहीं पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बनाया, तो मधु मना नहीं कर सकी. वह सारा दिन मजे और मस्ती में बीत गया.

रात होतेहोते बादल घिरने लगे. थोड़ी ही देर में तेज बारिश होने लगी और वे अपने शहर की ओर चल दिए.

मधु के मना करने के बावजूद असीम उसे घर तक छोड़ने आया था और आते ही सोफे पर पसर गया था. थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद आ गई थी.

मधु ने असीम को थोड़ी देर सोने दिया, फिर उसे जगा कर वहां से जाने को कहा.

इतने में टैलीविजन पर उन के फ्लैट के पास वाले मौल में बम धमाका होने की खबर आई. पुलिस हरकत में आती, तब तक वहां दंगा शुरू हो गया था.

श्वेता और कुणाल खुश हो रहे थे कि दंगा होने से कंपनी से छुट्टी मिलेगी और वे मजे करेंगे. असीम वहां से न जा पाने के चलते बेचैन था और मधु  उस से भी ज्यादा परेशान थी कि आखिर रात को वह कहां रुकेगा?

असीम ने जाने की कोशिश की और मधु ने उसे भेजने की, पर पुलिस ने शहर के हालात का हवाला दे कर उस की एक नहीं सुनी. उसे वहीं रुकना पड़ा.

मधु न जाने क्यों मन ही मन डर रही थी. श्वेता और कुणाल सोने चले गए थे. मधु ने असीम को चादरतकिया दे कर सोफे पर सोने को कहा, फिर वह भी सोने चली गई.

अचानक मधु की नींद खुली, तो देखा कि असीम उस के जिस्म से खेल रहा था. वह चीख पड़ी और जोर से चिल्लाई. असीम ने उसे चुप रहने को कहा और उस से जबरदस्ती करने लगा.

मधु किसी कातर चिडि़या की तरह तड़पती ही रह गई और असीम एक कामयाब शिकारी जैसा लग रहा था.

मधु चिल्लाते हुए ड्राइंगरूम में और उस के बाद उस ने श्वेता के बैडरूम का दरवाजा जोर से बजाया.

श्वेता और कुणाल तकरीबन अधनंगे से बाहर आए. वह उन्हें देख कर असहज हो गई और सबकुछ बताया.

‘‘तुम जरा सी बात के लिए इतना चीख रही हो?’’ श्वेता बोली, फिर उस ने कुणाल के कंधे पर सिर रखा और बोली, ‘‘चलो, अपना अधूरा काम पूरा करते हैं.’’

वे दोनों अपने बैडरूम में चले गए.

मधु नीचे फर्श पर बैठी रो रही थी. वहां कोई नहीं था, जिस पर वह भरोसा करती और जो उसे दिलासा देता. फिर वह अपनेआप को किसी तरह संभालने की कोशिश कर रही थी कि उस ने  अपने माथे पर किसी का हाथ महसूस किया. देखा तो असीम था. उस ने उस का हाथ झटक दिया और उसे बेतहाशा पीटने लगी.

असीम उस की मार सहता हुआ थोड़ी देर तक खड़ा रहा. मधु थकहार कर निढाल हो कर बैठ गई.

‘‘लो, पानी पी लो,’’ असीम पानी का गिलास लिए खड़ा था.

मधु ने जोर से झटक कर गिलास फेंक दिया.

‘‘लो, पानी पी लो,’’ असीम फिर से गिलास में पानी भर कर लाया था.

मधु ने जलती आंखों से उसे देखा, तो एक पल के लिए वह सहम गया. फिर उस ने मधु के मुंह से गिलास

लगा दिया.

मधु ने पानी पी कर उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

असीम ने उसे बड़े प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘क्या मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘मुझे नहीं करनी किसी फरेबी से शादी. मैं पुलिस के पास जा रही हूं.’’

मधु हिम्मत कर के उठी.

‘‘शौक से जाओ,’’ कह कर असीम ने फ्लैट का दरवाजा खोल दिया.

मधु बिल्डिंग के बाहर आई. उसे देख कर दरबान चिल्लाया, ‘‘मेम साहब, अंदर जाइए. पुलिस को देखते ही गोली मार देने का आदेश है.’’

तब मधु को उस से पता चला कि शहर के हालात कितने खराब हो गए थे. वह थकहार कर वापस आ गई.

मधु कुछ दिनों तक गुमसुम रही, लेकिन श्वेता के कहने पर वह असीम के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

मधु ने एक दिन पूछा, तो पता चला कि श्वेता पेट से है और कुणाल, जो कल तक दिनरात शादी की बात करता था, शादी से मुकर रहा था.

जब श्वेता उस से शादी के लिए बारबार कहने लगी, तो वह उसे मारनेपीटने लगा.

यह देख कर मधु दौड़ी और उस ने कुणाल को रोका. उस ने उन दोनों को समझाने की कोशिश की, पर वे अपनीअपनी बात पर अड़े हुए थे.

जब श्वेता कुणाल पर ज्यादा दबाव डालने लगी, तो वह शादी करने से एकदम मुकर गया और कभी शादी न करने की बात कह कर वहां से चला गया.

मधु और श्वेता उसे रोकती रह गईं. श्वेता किसी घायल पक्षी की तरह तड़पती रह गई. मधु को उस की यह हालत देख कर दया भी आई और गुस्सा भी.

श्वेता की इस अनचाही खबर के कुछ दिन बाद ही मधु को भी यह एहसास हुआ कि वह भी पेट से है. तब उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस ने असीम से यह ‘खुशखबरी’ कही, तो उस ने लापरवाही से कहा, ‘‘ठीक है, देखते हैं कि क्या हो सकता है.’’

‘‘मतलब? हम जल्दी ही शादी कर लेते हैं,’’ मधु ने खुशी से कहा.

‘‘अभी हम शादी कैसे कर सकते हैं? अभी तो मेरा प्रोजैक्ट चल रहा है. वह पूरा होने में एकाध साल लगेगा, उस के बाद देखा जाएगा,’’ असीम बोला.

‘‘फिर हमारा बच्चा?’’ मधु ने पूछा.

‘‘हमारा नहीं तुम्हारा. वह तुम्हारा सिरदर्द है, मेरा नहीं,’’ असीम बेशर्मी से बोला, तो मधु उस के बदले रूप को देखती रह गई.

मधु जब असीम से शादी करने के लिए बारबार कहने लगी, तो एक दिन वह भाग गया. पता करने पर

मालूम हुआ कि वह तो कंपनी के एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में विदेश जा चुका है. साथ ही, यह भी कि उस का विदेश जाने का तो पहले से ही प्रोग्राम तय था, लेकिन उस ने मधु को इस बारे में हवा तक नहीं लगने दी.

मधु हाथ मलती रह गई. अब वह और श्वेता एक ही दुख की दुखियारी थीं. श्वेता और मधु ने बारीबारी से बच्चा गिराने का फैसला लिया. डाक्टर ने भी भरपूर फायदा उठाया और उन से मोटी रकम ऐंठी.

आज श्वेता की बच्चा गिराने की बारी थी और मधु उस की देखभाल के लिए साथ आई थी. कल को उसे भी तो इसी दौर से गुजरना है.

अचानक दरवाजे पर हुई हलचल ने मधु का ध्यान तोड़ा. नर्सिंग स्टाफ श्वेता को बेसुध हाल में बिस्तर पर लिटा गया.

मधु खुद को श्वेता की जगह रख कर ठगी सी बैठी थी. उन्होंने जिस सुख को अपनी जिंदगी मान लिया था, वह मरीचिका की तरह सिर्फ छलावा साबित हुआ था.

लव आजकल: विनय से शादी क्यों नहीं कर पाई वह

जिम में ट्रेडमिल पर चलतेचलते वैशाली ने सामने लगे शीशे में खुद को देखा. फिर मन ही मन अपने रूपरंग और फिगर पर इतराई कि कौन कहेगा वह इस महीने 35 साल की हो गई है. वह चलने की स्पीड बढ़ाते हुए अब लगभग दौड़ने सी लगी थी. अचानक उसे महसूस हुआ कि उसे कोई देख रहा है. उस ने सामने शीशे में फिर देखा. करीब 25 साल का नवयुवक वेट उठाते हुए उसे चोरीचोरी देख रहा था. वह थोड़ी देर टे्रडमिल पर दौड़ी, फिर साइक्लिंग करने लगी. वह लड़का अब ट्रेडमिल पर था. जिम में हर तरफ शीशे लगे थे. शीशे में ही उस की नजरें कई बार उस लड़के से मिलीं, तो वह अनायास मुसकरा दी. उस की नजरों से शह पा कर वह लड़का भी मुसकरा दिया. दोनों अपनाअपना वर्कआउट करते रहे. अपनी सोसाइटी के इस जिम में वैसे तो वैशाली शाम को आती थी पर शाम को जिस दिन किट्टी पार्टी होती थी, वह जिम सुबह आती थी. अपने पति निखिल के औफिस और 5 वर्ष के बेटे राहुल को स्कूल भेजने के बाद वह आज सुबह 9 बजे ही जिम आ गई थी.

वैशाली ने उस लड़के से आंखमिचौली करते हुए खुद को एक नवयुवती सा महसूस किया. घर आ कर जब तक वह फ्रैश हुई, उस की मेड किरण आ गई, फिर वह काम में व्यस्त हो गई. अगले दिन वैशाली निखिल और राहुल के लिए नाश्ता बना रही थी, तभी अचानक जिम वाला लड़का ध्यान आ गया कि कहीं देखा तो है उसे. कहां, याद नहीं आया. होगा इसी सोसाइटी का, कहीं आतेजाते देखा होगा, फिर सोचा वह लड़का तो सुबह ही होगा. जिम में, शाम को तो दिखेगा नहीं. उस लड़के की तरफ वह पहली नजर में ही आकर्षित हो गई थी. स्मार्ट, हैंडसम लड़का था. वह अपना मन उस से हटा नहीं पाई और निखिल और राहुल के जाने के बाद जिम के लिए तैयार हो गई.

9 बज रहे थे. जा कर देखा, वह लड़का आ चुका था. वैशाली उसे देख कर मुसकरा दी. वह भी मुसकरा दिया. रोज की तरह दोनों अपनीअपनी ऐक्सरसाइज करते रहे. एकदूसरे से जब भी नजरें मिलीं, मुसकराते रहे, कोई बात नहीं हुई. 1 हफ्ता यही रूटीन चलता रहा. दोनों ही एकदूसरे के प्रति आकर्षित थे. वैशाली बहुत खूबसूरत थी, फिगर की उचित देखरेख से बहुत यंग दिखती थी. एक दिन वह लड़का वैशाली के जिम से निकलने पर साथसाथ चलता हुआ अपना परिचय देने लगा. ‘‘मैं विनय हूं, अभीअभी एक कंपनी में जौब शुरू की है.’’

वैशाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं वैशाली.

विनय बोला, ‘‘मैं जानता हूं, आप मेरे सामने वाली बिल्डिंग में ही रहती हैं.’’

वैशाली चौंकी, ‘‘आप को कैसे पता?’’

‘‘मैं आप की सहेली रेनू का देवर हूं, आप को मैं ने 1-2 बार अपने घर पर देखा भी है, शायद आप ने ध्यान नहीं दिया होगा. आप के बेटे राहुल की मेरी भाभी कभीकभी ड्राइंग में हैल्प करती हैं.’’

वैशाली हंस दी, ‘‘हां, रेनू की ड्राइंग अच्छी है, कई बार चार्ट बनाने में रेनू ने उस की हैल्प की है.’’

दोनों बातें करतेकरते अपनी बिल्डिंग तक पहुंच गए थे. वैशाली घर आ कर भी विनय के खयालों में डूबी रही… कितनी अच्छी स्माइल है, कितना स्मार्ट है और मुझ जैसी 1 बेटे की मां को पसंद करता है, यह उस की आंखों से साफ महसूस होता है. विनय को भी वैशाली अच्छी लगी थी. कहीं से एक बच्चे की मां नहीं लगती. जिम में वर्कआउट करते हुए तो एक कालेज गोइंग गर्ल ही लगती है. दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोचने लगे थे. अब वैशाली शाम की जगह सुबह 9 बजे ही जिम जाने लगी थी, जहां अब मुख्य आकर्षण विनय ही था और यही हाल विनय का भी था. पहले वह कभीकभार जिम से छुट्टी भी कर लेता था पर जब से वैशाली से दोस्ती हुई थी, उसे देखने के चक्कर में कतई छुट्टी नहीं करता था. और अब तो दोनों के मोबाइल फोन के नंबरों का भी आदानप्रदान हो चुका था. सोमवार को जिम बंद रहता था. उस दिन दोनों बेचैनी से एकदूसरे से फोन पर बात करते. निखिल अपनी पत्नी की हरकतों से अनजान अपने काम और परिवार की जिम्मेदारियों को हंसीखुशी निभाने वाले एक सभ्य पुरुष थे. वैशाली के जोर देने पर विनय अब वैशालीजी की जगह वैशाली पर आ गया था. 2 साल पहले ही निखिल का ट्रांसफर दिल्ली से मुंबई हुआ था पर उन्हें अकसर किसी न किसी काम से दिल्ली जाना पड़ता रहता था.

एक दिन निखिल 3-4 दिनों के लिए दिल्ली गए तो वैशाली ने राहुल के स्कूल जाने के बाद विनय को घर बुलाया. जिम से दोनों ने छुट्टी कर पहली बार अपने रिश्ते को एक कदम और आगे बढ़ा दिया. विनय पहली बार वैशाली के घर आया था. दोनों के बीच पहली बार शारीरिक संबंध भी बन गए.

विनय ने कहा, ‘‘सौरी वैशाली, शायद मुझे नहीं आना चाहिए था.’’

‘‘कोई बात नहीं विनय, बस अब मेरा साथ कभी न छोड़ना.’’

‘‘पर वैशाली, तुम्हारे पति को कभी भनक लग गई तो?’’

‘‘नहींनहीं, यह नहीं होना चाहिए, बहुत गड़बड़ हो जाएगी, बहुत संभल कर रहना होगा.’’

वैसे भी महानगरों में कौन क्या कर रहा है, इस बात से किसी को मतलब नहीं होता है और फिर किसी के पास समय ही कहां होता है. उस के बाद दोनों अकसर अकेले में मिलते रहते थे. वैशाली तनमन से विनय के प्यार में डूबी थी. विनय अकसर औफिस से हाफडे लेता था, दोनों के संबंधों के 6 महीने कब बीत गए, दोनों को ही पता न चला. वैशाली मशीनी ढंग से अपनी घर की जिम्मेदारियां पूरी करती और विनय के खयालों में डूबी रहती. एक दिन वैशाली किट्टी पार्टी में गई थी. वहां रेनू भी थी. रेनू ने उत्साहपूर्ण स्वर में सब को बताया, ‘‘बहुत जल्दी एक गुड न्यूज दूंगी तुम लोगों को.’’

सब पूछने लगीं, ‘‘जल्दी बताओ.’’

रेनू हंसी, ‘‘अभी नहीं, डेट तो पक्की होने दो.’’

अनीता ने पूछा, ‘‘कैसी डेट? बता न.’’

‘‘विनय के लिए लड़की देखी है, सब को पसंद आ गई है, बहुत अच्छी है, बस शादी की डेट फिक्स करनी बाकी है.’’

वैशाली को गहरा झटका लगा, ‘‘क्या? विनय के लिए?’’

‘‘हां भई, अब तो अच्छीखासी जौब कर रहा है… उस की जिम्मेदारी भी पूरी कर दें.’’

रेखा ने पूछा, ‘‘वैसे तो आजकल लड़के खुद ही लड़की पसंद कर लेते हैं. उस ने कोई लड़की खुद नहीं पसंद की?’’

‘‘नहीं भई, मेरा देवर तो बहुत ही प्यारा है, मांपिताजी ने कई बार पूछा, उस ने हमेशा यही कहा, आप लोग जहां कहोगे मैं कर लूंगा.’’

वैशाली ने अपनी कांपती आवाज पर नियंत्रण रखते हुए पूछा, ‘‘उस ने हां कर दी है?’’

‘‘और क्या?’’

वैशाली ने फिर पूछा, ‘‘उस ने देख ली लड़की?’’

‘‘हां भई, हम सब गए थे लड़की के घर. सब तय हो गया है. बस डेट फिक्स करनी है, 2-3 महीने के अंदर शादी हो जाएगी.’’

वैशाली के दिल पर गहरी चोट लगी. वह मन ही मन फुफकार रही थी. फिर, ‘‘कुछ जरूरी काम है,’’ कह कर वह किट्टी पार्टी से उठ कर बाहर निकल आई और फिर तुरंत विनय को फोन मिलाया, ‘‘मुझे तुम से मिलना है, विनय, अभी इसी वक्त.’’

‘‘कल जिम में मिलते हैं न सुबह.’’

‘‘नहीं, अभी, फौरन मुझ से मिलो.’’

‘‘क्या हुआ, अभी मुश्किल है, मैं औफिस में हूं.’’

‘‘ठीक है, जिम में सुबह मिलते हैं.’’

रात वैशाली ने जैसे जाग कर गुजारी, एक पल भी उसे नींद नहीं आई. निखिल ने उसे बेचैन सा देखा, तो कई बार उस का माथा सहलाया, पूछा, ‘‘तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, ऐसे ही,’’ कह कर वह मन ही मन छटपटाती रही, पति के स्नेहिल स्पर्श से भी उसे चैन नहीं मिला. जिस विनय के प्यार में रातदिन डूब कर उसे अपना सब कुछ सौंप दिया और उस ने उसे कुछ बताया भी नहीं, इतना बड़ा धोखा…

सुबह निखिल और राहुल के जाते ही वैशाली जिम पहुंच गई. वहां अकेले एक कोने में पहुंच कर वैशाली गुर्रा पड़ी, ‘‘यह क्या सुना मैं ने कल? तुम विवाह कर रहे हो?’’

‘‘हां, मैं बताने वाला था पर मौका नहीं मिला, फिर मैं भूल गया, सौरी.’’

‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई विवाह के लिए हां कहते हुए?’’

‘‘शर्म कैसी वैशाली?’’

‘‘हमारे बीच जो संबंध है उस के बाद भी यह पूछ रहे हो? धोखा दे रहे हो मुझे?’’ वैशाली का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था.

आतेजाते लोगों की नजरें उन पर न पड़ें, यह सोच कर विनय ने कहा, ‘‘अभी मैं तुम्हारे घर आता हूं, वहीं बात करते हैं, यहां ठीक नहीं रहेगा.’’ वैशाली उसी समय घर चली गई.

विनय भी थोड़ी देर में पहुंच गया. बोला, ‘‘क्या हो गया? इतना गुस्सा क्यों कर रही हो?’’

‘‘तुम किसी से विवाह करने की सोच भी कैसे सकते हो? हमारा जो रिश्ता है…’’

विनय ने बीच में ही बात काटी, ‘‘हमारा जो रिश्ता है, वह रहेगा न, परेशान क्यों हो?’’

‘‘कैसे रहेगा? कल तुम्हारी पत्नी होगी, कैसे रहेगा रिश्ता?’’

‘‘तुम्हारे भी तो पति हैं, तुम ने रखा न मुझ से रिश्ता?’’

‘‘नहीं, मैं यह नहीं सहन करूंगी, तुम शादी नहीं कर सकते किसी से.’’

‘‘यह तो गलत बात कर रही हो तुम.’’

‘‘नहीं, तुम सोचना भी मत यह वरना…’’

विनय को भी गुस्सा आ गया, ‘‘धमकी दे रही हो? मेरा परिवार है, मातापिता हैं… वे जहां कहेंगे, मैं विवाह करूंगा.’’

वैशाली जैसे फुफकार उठी, ‘‘मैं देखती हूं कैसे मेरे साथ रंगरलियां मना कर तुम कहीं और रिश्ता जोड़ते हो.’’

विनय उसे शांत करने की कोशिश में खुद को असफल होता देख बोला, ‘‘अभी मैं जा रहा हूं, कल मिलता हूं, जिम नहीं जाएंगे, यहीं बैठ कर बात करेंगे.’’ दिन में कई बार वैशाली ने विनय को फोन पर बुराभला कहा, उसे धमकी दी… पूरा दिन विनय को वैशाली के बिगड़े तेवर परेशान करते रहे. वैशाली का रौद्र रूप, उस का धमकी देना उसे बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करता रहा. विनय बहुत तेज दिमाग का लड़का था. वह पूरी स्थिति को अच्छी तरह सोचतासमझता रहा. पहले की मोहिनी, गर्विता सुंदरी वैशाली एक घायल नागिन की तरह फुफकारती विनय को अपना नया रूप दिखा गई थी.

अगले दिन विनय वैशाली से मिलने नहीं जा पाया. उसे औफिस जल्दी जाना था. वैशाली फोन पर चिल्लाती रही. शाम को विनय घर पहुंचा तो हंसीखुशी का माहौल था. अगले महीने की डेट फिक्स हो चुकी थी. 10 दिन बाद सगाई थी. विनय को वैशाली का क्रोधित रूप याद आता रहा. वह मन ही मन बहुत परेशान था. अगली सुबह विनय ने वैशाली के फ्लैट की डोरबैल बजाई. उतरा मुंह लिए वैशाली ने दरवाजा खोला, विनय को दुख हुआ. अब कुछ भी हो रहा हो, दोनों ने इस से पहले काफी समय प्यार भरा बिताया था. उस ने वैशाली के कंधे पर हाथ रखते हुए प्यार से कहा, ‘‘क्यों टैंशन में हो? मैं कहीं भागा तो नहीं जा रहा… हम मिलते रहेंगे.’’

‘‘नहीं, तुम विवाह के लिए मना कर दो, मैं तुम्हारी पत्नी को सहन नहीं करूंगी.’’

‘‘क्यों? मैं ने कभी तुम्हारे पति को कुछ कहा है?’’

वैशाली गुर्राई, ‘‘वह सब मैं नहीं जानती, तुम ने विवाह किया तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

विनय चुपचाप पैंट की जेब में हाथ डाल कर खड़ा हो गया, बोला, ‘‘मैं कुछ नहीं कर सकता अब… 10 दिन बाद सगाई है मेरी.’’

‘‘तो ठीक है, मैं भी देखती हूं कैसे विवाह करते हो तुम?’’

‘‘क्या करोगी?’’

‘‘मैं सब को बताऊंगी कि तुम ने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. अभी इसी समय चिल्लाऊंगी, बदनाम कर दूंगी तुम्हें, इतने दिन मेरे साथ मौजमस्ती कर तुम आराम से किसी और के साथ घर नहीं बसा सकते.’’ वैशाली गुस्से में चिल्लाए जा रही थी.

अचानक विनय ने कहा, ‘‘ठीक है, फिर अब मैं चलता हूं और तुम्हें नेक सलाह देना चाहता हूं, कोई गलत हरकत करने की स्थिति में तुम नहीं हो इसलिए मेरे बारे में कुछ गलत कहनेकरने की सोचना भी मत.’’

‘‘मतलब? क्या कर लोगे?’’

‘‘चाहता तो नहीं था यह सब पर तुम्हारी धमकियां और गुस्सा यह सब करने पर मजबूर कर गया, लो सुनो,’’ कह कर विनय ने पैंट की जेब से अपना फोन निकाला और बटन औन करते ही वैशाली की गुस्से से भरी आवाज कमरे में गूंज गई, ‘इतने दिन मेरे साथ मौजमस्ती…’

यह सुनते ही वैशाली के चेहरे का रंग उड़ गया. विनय कह रहा था, ‘‘यह सब मैं करना नहीं चाहता था पर अगर तुम ने मुझे बदनाम किया तो तुम्हारे पति भी यह सुनेंगे. जो भी हमारे बीच हुआ, अच्छाबुरा, उस का जिम्मेदार मैं अकेला नहीं हूं. दोस्त बन कर हम हमेशा साथ रह सकते थे पर तुम ने धमकियां देदे कर इस की गुंजाइश भी नहीं छोड़ी. अब तुम अपने रास्ते मैं अपने रास्ते,’’ और फिर विनय चला गया. वैशाली चोट खाई नागिन की तरह उसे जाते देख फुफकारती रह गई.

अपहरण: रायन दंपती का जब दिखावा पड़ा महंगा

नीरव शांति भी कितनी जानलेवा हो सकती है इस का ऋचा को रायन दंपती के कमरे में जा कर ही आभास हुआ था. बडे़ से सजेधजे ड्राइंगरूम में 20-25 लोग बैठे थे पर किसी के पास कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. बीचबीच में बज रही फोन की घंटी ही इस घोर शांति को भंग कर रही थी. ऋषभ और सारंगी रायन शहर के धनवान दंपती थे.

ऋषभ रायन की व्यापारिक कामयाबी का लोहा सभी मानते थे. उधर सारंगी के हर हावभाव से झलकता था कि वह अभिजात्य वर्ग से हैं. कई समाजसेवी और गैरसरकारी संगठनों से वह जुड़ी थीं. उन के समाज सेवा के कार्यों की तो सराहना होती ही थी, मीडिया व समाचारपत्रों में  भी उन की अच्छीखासी पैठ थी.

ऐसे नामीगिरामी परिवार के इकलौते पुत्र आर्यन का अपहरण कर लिया गया था. दिनरात मित्रों से घिरे रहने वाले आर्यन का भला कौन शत्रु हो सकता है? ऋचा की आंखों के सामने आर्यन का हंसता चेहरा तैर गया था. आर्यन के अपहरण के बाद सारंगी का रोरो कर बुरा हाल था. ऋषभ उसे सांत्वना देने के अलावा कुछ नहीं कह पा रहे थे. बीचबीच में उन्हें पुलिस वालों के सवालों का उत्तर भी देना पड़ता था. शहर में जो भी सुनता दौड़ा चला आता. कब? क्या? कैसे हुआ? इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए ऋषभ पस्त हो गए थे.

अपने  लाड़ले पुत्र का अपहरण, ऊपर से पुलिस और मीडिया वालों के तीखे सवाल…वह बहुत कठिनाई से खुद पर संयम रख पा रहे थे. उन के मित्रों व संबंधियों ने यह भार अपने कंधों पर उठा लिया था. वह केवल दोनों हाथ जोड़ कर मुसकराने की असफल कोशिश क रते थे.

काफी देर तक निरुद्देश्य बैठे रहने के बाद ऋचा और रोमेश ने रायन दंपती से विदा ली थी. वैसे उस तनाव में किसी से विदा लेना न लेना अर्थहीन था. बातबात पर ठहाके  लगाने, चुटकुले सुनाने वाले ऋषभ रायन सामान्य व्यवहार में भी स्वयं को असमर्थ पा रहे थे.

कार में बैठते समय ऋचा को अपनी पिछली किटी पार्टी याद आ गई. पार्टी में सारंगी बड़े उत्साह से आर्यन के जन्मदिन के बारे में क्लब के सदस्यों को बता रही थी :

‘अगले माह अपनी पार्टी सारंगी के यहां होगी,’ ऋचा ने रुपए गिन कर सारंगी की ओर बढ़ाते हुए कहा था.

‘क्या? मेरे यहां? नहींनहीं. अगले माह मैं अपने यहां पार्टी नहीं रख पाऊंगी. आर्यन का जन्मदिन है न. बड़ी तैयारी करनी है. किसी को चाहिए तो इस माह चिट ले ले, मुझे कोई आपत्ति नहीं है,’ सारंगी अपना पर्स खोल छोटे से आईने में अपनी छवि निहारती और लिपस्टिक ठीक करती हुई बड़ी अदा से बोली थी.

‘मुझे नहीं लगता कि यह इतनी बड़ी समस्या है?’ तवांगी बोली, ‘आर्यन का जन्मदिन जून के अंत में है. आज तो पहली मई है. जन्मदिन क्या 2 माह तक मनाओगी?’

उस की इस बात पर ऋचा के साथ रूपा और मीना भी खिलखिला पड़ीं तो सारंगी का चेहरा तमतमा गया था.

‘मेरे इकलौते बेटे का जन्मदिन है. उस के लिए 2 माह तो क्या 2 वर्ष भी कम हैं,’ सारंगी रूखे स्वर में बोली थी.

‘कोई बात नहीं, इस माह की किटी पार्टी मैं अपने यहां रख लेती हूं, पर उस में आने के लिए तो समय निकाल लेना,’ रूपा ने सारंगी को शांत करने का प्रयत्न किया था.

‘देखूंगी, कोई वादा नहीं करती,’ सारंगी का उत्तर था.

‘पार्टी में तो आना ही पड़ेगा. यह बात तो पहले दिन ही तय हो गई थी कि चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, कोई सदस्या पार्टी में आने से मना नहीं करेगी,’ रूपा अड़ गई थी.

‘छोड़ो न इस बहस को, चलो, अपना पत्ता फेंको, सारंगी को तुम्हारे यहां पार्टी में लाने का जिम्मा मेरा रहा,’ ऋचा ने चर्चा पर वहीं विराम लगाया था.

‘क्या उपहार दे रही हो आर्यन को?’ अचानक ही ऋचा ने बात का रुख मोड़ दिया था.

‘ऋषभ ने मर्सीडीज मंगवाई है. आर्यन की यही मांग थी. छोेटीमोटी वस्तुओं पर तो वह हाथ रखता ही नहीं. वैसे भी हमारा एक ही बेटा है और इस बार ऐसी शानदार पार्टी देंगे कि शहर  में उस की चर्चा साल भर होती रहेगी.’

‘लेकिन सारंगी, 14 साल के बच्चे को कार का उपहार, तुम्हें डर नहीं लगता?’ ऋचा ने प्रश्न किया तो वहां बैठी सभी महिलाओं की प्रश्नवाचक निगाहें सारंगी पर टिक गई थीं.

‘14 वर्षीय? आर्यन तो पिछले 2 सालों से कार चला रहा है,’ सारंगी ने गर्वपूर्ण स्वर में बताया था.

‘लाइसेंस का कैसे करोगी? 14 साल के बच्चे को ड्राइविंग  लाइसेंस कौन देगा?’

‘इन छोटीछोटी बातों की चिंता मिडिल क्लास के लोग करते हैं हम नहीं. आर्यन का लाइसेंस तो 2 साल पहले ही बन गया था. वैसे भी उस की सहायता के लिए एक ड्राइवर हमेशा उस के साथ रहेगा,’ अपनी बात पूरी करते हुए सारंगी मुसकराई थी. अपनी सहेलियों के चेहरों पर आए प्रशंसा और ईर्ष्या के भाव देख कर सारंगी पुलक उठी थी.

किटी पार्टी समाप्त होने तक चर्चा आर्यन और उस के जन्मदिन के इर्दगिर्द ही घूमती रही थी.

‘अच्छा, अब मैं चलूंगी,’ सारंगी अचानक उठ खड़ी हुई और बोली, ‘आज अपने मित्रों के साथ वह छुट्टियां बिताने मालदीव जा रहा है. मैं जरा जल्दी में हूं.’

‘अच्छा, अब हमें भी चलना चाहिए,’ रूपा और मीना भी उठ खड़ी हुई थीं.

‘बैठो न कुछ देर, अब तो सारंगी चली गई है, वह जब तक यहां रहती है केवल अपना गुणगान करती रहती है. हम तो खुल कर हंसबोल भी नहीं सकते,’ ऋचा और कुछ अन्य सहेलियां बोली थीं.

‘मैं ने तो मना किया था पर सारंगी ने ऐसी जिद पकड़ी कि उसे शामिल करना पड़ा. पर आप लोग नहीं चाहतीं तो अगली चिट में साफ मना कर देंगे. मुझे भी लगता है कि सारंगी का दंभ बढ़ता ही जा रहा है.’ ऋचा ने आश्वासन दिया था.

उस का बेटा प्रसाद, जो आर्यन का सहपाठी था, बोर्ड की परीक्षा में सारे प्रांत में प्रथम आया था और अब फोन पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था.

सारंगी का स्वर सुनते ही ऋचा को लगा कि प्रसाद की कामयाबी पर उसे बधाई देने के लिए ही फोन किया है. पर सारंगी तो दूर की हांक रही थी. छुट्टियां मनाने आर्यन गया था पर उस का असर सारंगी पर दिख रहा था. वह चटखारे लेले कर आर्यन की मालदीव में छुट्टी का विस्तार से वर्णन कर रही थी पर एक बार भी प्रसाद की उपलब्धि का नाम तक नहीं लिया था.

‘कल ही प्रसाद का परीक्षाफल आया है,’ ऋचा बोली, ‘‘मेरा बेटा पूरे प्रांत में प्रथम आया है. आजकल तो कालिज में दाखिले के लिए भी प्रवेश परीक्षा देनी होती है. प्रसाद उसी की तैयारी में जुटा है.’

‘ओह हां, मैं तो भूल ही गई थी. आर्यन बता रहा था. आर्यन ने भी अच्छा किया है. वह तो पूरे 10 हजार रुपए ले कर अपने मित्रों के साथ मस्ती करने गया है. उसे कालिज में दाखिले के लिए दिनरात एक करने की आवश्यकता नहीं है.’

‘क्यों? अभी से पढ़ाई छोड़ कर पिता के साथ बिजनेस करने का इरादा है क्या?’

‘क्या कह रही हो? ऋषभ रायन का बेटा इतनी सी आयु में क्या बिजनेस करेगा? वह आगे की पढ़ाई के लिए स्विट्जरलैंड जा रहा है. मुझे तो मध्यवर्गीय बच्चों पर बड़ा तरस आता है. आधा जीवन तो किताबों में सिर खपाए रहते हैं. शेष आधा 10 से 5 हजार की नौकरी में,’ सारंगी ने सहानुभूति जताते हुए कहा था पर ऋचा के कानों में मानो किसी ने पिघला सीसा उडे़ल दिया था.

‘समझती क्या है अपनेआप को? मेरे प्रसाद से तुलना करेगी आर्यन की?’ फोन रखते ही चीख उठी थी ऋचा.

‘क्या हुआ? बड़े क्रोध में हो? किस से बात कर रही थीं?’ समाचारपत्र पढ़ते रोमेश ने चौंक कर सिर उठाया था.

‘सारंगी थी. कभीकभी ऐसी बेहूदा बातें करती है कि सहन नहीं होतीं.’

‘तुम्हारी प्यारी सहेली है सारंगी. पता नहीं कैसे सहन कर लेती हो उसे,’ रोमेश तल्खी से बोले थे.

‘दिल की बुरी नहीं है. बस, कभीकभी…’ ऋचा हकला गई थी.

‘हांहां कहो न…चुप क्यों हो गईं? कभीकभी दौलत के नशे में ऊटपटांग बातें करने लगती हैं तुम्हारी सारंगी जी…’

‘छोड़ो यह सब, प्रसाद पूरे प्रांत में प्रथम आया है. चलो, कहीं बाहर चलते हैं,’ ऋचा ने किताबों में सिर गड़ाए बैठे प्रसाद को देख कर कहा था.

‘क्या हुआ, मां?’ प्रसाद ने चौंक कर सिर उठाया था.

‘कुछ नहीं, तुम्हारी इस कामयाबी से हम बहुत खुश हैं. तुम जल्दी से तैयार हो कर आ जाओ. आज बाहर जाने का बहुत मन है,’ ऋचा ने आग्रह किया था.

‘ठीक है मां, पर कल हम कुछ मित्र मिल कर पार्टी दे रहे हैं यह भूल मत जाना,’ प्रसाद ने याद दिलाया था.

‘मुझे अच्छी तरह याद है, मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं. इतनी कड़ी मेहनत के बाद वैसे भी यह तुम्हारा अधिकार बनता है,’ ऋचा ने प्रसाद को दुलारते हुए कहा था.

रोमेश चुपचाप बैठे मां-बेटे के संवाद को सुन रहे थे. प्रसाद तैयार होने चला गया तो उन्होंने ऋचा पर गहरी नजर डालते हुए निश्वास ली थी.

‘क्या है? ऐसे क्यों देख रहे हो? जाना है, तैयार नहीं होना क्या?’ ऋचा ने प्रश्न किया था.

‘मैं सोच रहा था कि अपने अहं की तुष्टि के लिए मातापिता अपने बच्चों को भी नहीं बख्शते हैं.’

‘क्या मतलब?’

‘यही कि प्रसाद को उस के पुराने स्कूल से निकाल कर जीनियस इंटरनेशनल में डालने की जिद तुम ने ही की थी, क्योंकि वहां तुम्हारी सहेली सारंगी का पुत्र पढ़ता था. तुम ने इसे सम्मान का प्रश्न बना लिया था.’

‘तो इस में बुरा क्या था. आजकल छात्र स्कूल में केवल पढ़ने ही नहीं जाते, संपर्क सूत्र विकसित करने भी जाते हैं. इस का लाभ प्रसाद को बाद में मिलेगा. वैसे भी बच्चों के विद्यालय के स्तर से ही मातापिता के स्तर का पता चलता है,’ ऋचा ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा था.

‘हां, पर प्रसाद इन वर्षों में किस तनाव से गुजरा है इस का तुम्हें थोड़ा सा भी आभास नहीं है. आर्यन और उस के मित्रों ने प्रसाद और उस के जैसे बच्चों को उपहास का पात्र बना कर रख दिया. अधिकतर शिक्षक भी आर्यन और उस के मित्रों का ही पक्ष लेते थे. यह तो प्रसाद की पढ़ाई में लगन ने उसे बचा लिया, नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता.’

‘जो भी हुआ अच्छा ही हुआ. यहां पढ़ कर प्रसाद पूरे प्रांत में प्रथम आया है. पुराने स्कूल में होता तो न जाने क्या हाल होता.’

‘हां, मैं तुम्हें भी सलाह दूंगा. मित्रता अपने स्तर के लोगों में ही शोभा देती है. अपनी क्षमता से अधिक तेजी से दौड़ोगी तो मुंह के बल गिरोगी.’

तभी प्रसाद तैयार हो कर आ गया तो ऋचा और रोमेश की बहस को वहीं विराम लग गया. पूरे परिवार ने पहले फिल्म देखने और फिर क्लब जा कर भोजन करने का निर्णय लिया था. वहीं भोजन करते समय उन्हें आर्यन के अपहरण का समाचार मिला था. टीवी पर आर्यन का छायाचित्र देख कर यह संशय भी जाता रहा था कि वह आर्यन रायन ही था.

ऋचा, रोमेश और प्रसाद का खाना बीच में ही अधूरा रह गया. तीनों चुपचाप भोजन कक्ष से बाहर आ गए थे. ऋचा वहां से सीधे जाना चाहती थी जबकि रोमेश, प्रसाद के साथ वहां जाने के पक्ष में नहीं थे. उन्हें डर था कि प्रसाद के वहां जाने पर न केवल ऋषभ और सारंगी बल्कि पुलिस और मीडिया भी उस से पूछताछ प्रारंभ कर देंगे.

प्रसाद पिता का रुख देख कर चुप रह गया था. ऋचा ने भी दोचार बार जोर डाला था पर रोमेश के कहने पर मान गई थी.

रायन कैसल यानी ऋषभ के घर पहुंच कर ऋचा को लगा कि शायद रोमेश की बात ही सही थी. सदा मित्रों से घिरे रहने वाले आर्यन का एक भी मित्र वहां नहीं था. दबे स्वर में लोग यह भी बात कर रहे थे कि आर्यन के तथाकथित मित्रों ने ही उस का अपहरण कर लिया और अब 10 करोड़ की फिरौती की मांग की थी.

कार रुकी तो ऋचा की तंद्रा टूटी, वह कार से उतर कर घर में आ गई.

प्र्रसाद की अपने मित्रों के साथ सफलता की पार्टी धरी की धरी रह गई थी. उस के अन्य मित्रों के मातापिता ने अपनेअपने पुत्र को न केवल किसी पार्टी में जाने से मना कर दिया, उन के घर से निकलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था.

रोमेश 2-3 बार ऋचा के साथ रायन कैसल गए थे पर अब उन्हें वहां बारबार जाने की कोई तुक नजर नहीं आती थी. हां, ऋचा जरूर दिन में 3-4 चक्कर लगाती, सारंगी को सांत्वना देती पर समझ नहीं पाती थी कि बुरी तरह टूट चुकी सारंगी से क्या कहे.

‘‘धीरज रखो सारंगी, मुझे पूरा विश्वास है कि आर्यन सहीसलामत लौट आएगा. कोई उस का बाल भी बांका नहीं कर सकता,’’ बहुत सोचविचार कर एक दिन बोली थी ऋचा.

‘‘तुम सारंगी की सहेली हो न बेटी,’’ तभी अचानक ऋषभ की मां पूछ बैठी थीं.

‘‘जी.’’

‘‘तो तुम ने समझाया नहीं कि बेटे की हर इच्छा पूरी करना ही मां का धर्म नहीं होता. मैं ने हर बार मना किया कि आर्यन के हाथ में इतना धन मत दो. पर सारंगी को तो अपनी शानोशौकत के सामने कुछ नजर ही नहीं आता था. मैं तो पुराने जमाने की हूं, नए जमाने के रंगढंग क्या समझूं. जाओ, अब जा कर मेरे आर्यन को ले आओ,’’ एक ही सांस में बोल कर वह बिलख कर रोने लगी थीं.

ऋषभ और कुछ अन्य संबंधी उन्हें उठा कर ले गए थे पर बड़े से हाल में सन्नाटा छा गया था और ऋषभ की मां की सिसकियां देर तक गूंजती रही थीं.

ऋचा कुछ देर तक सारंगी को सांत्वना देती रही थी, फिर चुपचाप उठ कर चली आई थी. उस ने रोमेश को सारी बात बताई तो वह भी सोच में डूब गए थे.

पति रोमेश को गंभीर देख ऋचा बोली, ‘‘एक सप्ताह होने को आया पर आर्यन का कहीं पता नहीं है. पुलिस भी हाथ पर हाथ रख कर बैठी है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है, ऋषभ बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं. कल तो रायन दंपती की अपहरणकर्ताओं के नाम अपील भी प्रसारित की गई थी. पुलिस भी पूरा प्रयत्न कर रही है,’’ रोमेश ने मत व्यक्त किया था.

‘‘मेरे मित्र कह रहे थे कि रायन अंकल ने फिरौती के रुपए भी दे दिए हैं पर आर्यन का अभी तक पता नहीं है,’’ प्रसाद ने रहस्योद्घाटन किया था.

कुछ देर तक आर्यन के बारे में चिंता कर के पूरा परिवार सो गया था.

रात में दरवाजे की घंटी के स्वर से ऋचा की नींद खुल गई. झांक कर देखा तो कोई नजर नहीं आया. घबरा कर उस ने रोमेश को जगाया.

रोमेश ने दरवाजा खोला तो कोई नीचे गिरा पड़ा था. उठा कर मुंह देखा तो दोनों चौंक कर पीछे हट गए. फटे कपडे़ में आर्यन जमीन पर पड़ा था जिस के शरीर पर जहांतहां चोट के निशान थे. फिर तो प्रसाद की सहायता से उसे उठा कर वे अंदर ले आए. आननफानन में रायन दंपती को खबर की और आर्यन को अपनी गाड़ी में डाल कर अस्पताल ले गए.

आर्यन वहां तक कैसे पहुंचा यह सभी के लिए एक पहेली थी. उधर बेहोश पडे़ आर्यन के होश में आने की प्रतीक्षा थी. पहली बार रोमेश ने निरीह पिता की मजबूरी देखी थी. आज ऋषभ की सारी दौलत बेमानी हो गई थी.

‘‘आर्यन ठीक हो जाएगा न,’’ उन्होंने रोमेश से पूछा था. उन्होंने उन का हाथ दबा कर मौन आश्वासन दिया था.

कलंक: एक गलत फैसले ने बदल दी तीन जिंदगियां

उस रात 9 बजे ही ठंड बहुत बढ़ गई थी. संजय, नरेश और आलोक ने गरमाहट पाने के लिए सड़क के किनारे कार रोक कर शराब पी. नशे के चलते सामने आती अकेली लड़की को देख कर उन के भीतर का शैतान जागा तो वे उस लड़की को छेड़ने से खुद को रोक नहीं पाए.

‘‘जानेमन, इतनी रात को अकेली क्यों घूम रही हो? किसी प्यार करने वाले की तलाश है तो हमें आजमा लो,’’ आसपास किसी को न देख कर नरेश ने उस लड़की को ऊंची आवाज में छेड़ा.

‘‘शटअप एंड गो टू हैल, यू बास्टर्ड,’’ उस लड़की ने बिना देर किए अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘तुम साथ चलो तो ‘हैल’ में भी मौजमस्ती रहेगी, स्वीटहार्ट.’’

‘‘तेरे साथ जाने को पुलिस को बुलाऊं?’’ लड़की ने अपना मोबाइल फोन उन्हें दिखा कर सवाल पूछा.

‘‘पुलिस को बीच में क्यों ला रही हो मेरी जान?’’

‘‘पुलिस नहीं चाहिए तो अपनी मां या बहनों…’’

वह लड़की चीख पाती उस से पहले ही संजय ने उस का मुंह दबोच लिया और झटके से उस लड़की को गोद में उठा कर कार की तरफ बढ़ते हुए अपने दोस्तों को गुस्से से निर्देश दिए, ‘‘इस ‘बिच’ को अब सबक सिखा कर ही छोड़ेंगे. कार स्टार्ट करो. मैं इस की बोटीबोटी कर दूंगा अगर इस ने अपने मुंह से ‘चूं’ भी की.’’

आलोक कूद कर ड्राइवर की सीट पर बैठा और नरेश ने लड़की को काबू में रखने के लिए संजय की मदद की. कार झटके से चल पड़ी.

उस चौड़ी सड़क पर कार सरपट भाग रही थी. संजय ने उस लड़की का मुंह दबा रखा था और नरेश उसे हाथपैर नहीं हिलाने दे रहा था.

‘‘अगर अब जरा भी हिली या चिल्लाई तो तेरा गला दबा दूंगा.’’

संजय की आंखों में उभरी हिंसा को पढ़ कर वह लड़की इतना ज्यादा डरी कि उस का पूरा शरीर बेजान हो गया.

‘‘अब कोई किसी का नाम नहीं लेगा और इस की आंखें भी बंद कर दो,’’ आलोक ने उन दोनों को हिदायत दी और कार को तेज गति से शहर की बाहरी सीमा की तरफ दौड़ाता रहा.

एक उजाड़ पड़े ढाबे के पीछे ले जा कर आलोक ने कार रोकी. उन की धमकियों से डरी लड़की के साथ मारपीट कर के उन तीनों ने बारीबारी से उस लड़की के साथ बलात्कार किया.

लड़की किसी भी तरह का विरोध करने की स्थिति में नहीं थी. बस, हादसे के दौरान उस की बड़ीबड़ी आंखों से आंसू बहते रहे थे.

लौटते हुए संजय ने लड़की को धमकाते हुए कहा, ‘‘अगर पुलिस में रिपोर्ट करने गई, तो हम तुझे फिर ढूंढ़ लेंगे, स्वीटहार्ट. अगर हमारी फिर मुलाकात हुई तो तेजाब की शीशी होगी हमारे हाथ में तेरा यह सुंदर चेहरा बिगाड़ने के लिए.’’

तीनों ने जहां उस लड़की को सड़क पर उतारा. वहीं पास की दीवार के पास 4 दोस्त लघुशंका करने को रुके थे. अंधेरा होने के कारण उन तीनों को वे चारों दिखाई नहीं दिए थे.

उन में से एक की ऊंची आवाज ने इन तीनों को बुरी तरह चौंका दिया, ‘‘हे… कौन हो तुम लोग? इस लड़की को यहां फेंक कर क्यों भाग रहे हो?’’

‘‘रुको जर…सोनू, तू कार का नंबर नोट कर, मुझे सारा मामला गड़बड़ लग रहा है,’’ एक दूसरे आदमी की आवाज उन तक पहुंची तो वे फटाफट कार में वापस घुसे और आलोक ने झटके से कार सड़क पर दौड़ा दी.

‘‘संजय, तुझे तो मैं जिंदा नहीं छोड़ूंगी,’’ उस लड़की की क्रोध से भरी यह चेतावनी उन तीनों के मन में डर और चिंता की तेज लहर उठा गई.

‘‘उसे मेरा नाम कैसे पता लगा?’’ संजय ने डर से कांपती आवाज में सवाल पूछा.

‘‘शायद हम दोनों में से किसी के मुंह से अनजाने में निकल गया होगा,’’ नरेश ने चिंतित लहजे में जवाब दिया.

‘‘आज मारे गए हमसब. मैं ने उन आदमियों में से एक को अपनी हथेली पर कार का नंबर लिखते हुए देखा है. उस लड़की को ‘संजय’ नाम पता है. पुलिस को हमें ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं आएगी,’’ आलोक की इस बात को सुन कर उन दोनों का चेहरा पीला पड़ चुका था.

नरेश ने अचानक सहनशक्ति खो कर संजय से चिढ़े लहजे में पूछा, ‘‘बेवकूफ इनसान, क्या जरूरत थी तुझे उस लड़की को उठा कर कार में डालने की?’’

‘‘यार, उस ने हमारी मांबहन…तो मैं ने अपना आपा खो दिया,’’ संजय ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तो उसे उलटी हजार गालियां दे लेता…दोचार थप्पड़ मार लेता. तू उसे उठा कर कार में न डालता, तो हमारी इस गंभीर मुसीबत की जड़ तो न उगती.’’

‘‘अरे, अब आपस में लड़ने के बजाय यह सोचो कि अपनी जान बचाने को हमें क्या करना चाहिए,’’ आलोक की इस सलाह को सुन कर उन दोनों ने अपनेअपने दिमाग को इस गंभीर मुसीबत का समाधान ढूंढ़ने में लगा दिया.

पुलिस उन तक पहुंचे, इस से पहले ही उन्हें अपने बचाव के लिए कदम उठाने होंगे, इस महत्त्वपूर्ण पहलू को समझ कर उन तीनों ने आपस में कार में बैठ कर सलाहमशविरा किया.

अपनी जान बचाने के लिए वे तीनों सब से पहले आलोक के चाचा रामनाथ के पास पहुंचे. वे 2 फैक्टरियों के मालिक थे और राजनीतिबाजों से उन की काफी जानपहचान थी.

रामनाथ ने अकेले में उन तीनों से पूरी घटना की जानकारी ली. आलोक को ही अधिकतर उन के सवालों के जवाब देने पड़े. शर्मिंदा तो वे तीनों ही नजर आ रहे थे, पर सब बताते हुए आलोक ने खुद को मारे शर्म और बेइज्जती के एहसास से जमीन में गड़ता हुआ महसूस किया.

‘‘अंकल, हम मानते हैं कि हम से गलती हुई है पर ऐसा गलत काम हम जिंदगी में फिर कभी नहीं करेंगे. बस, इस बार हमारी जान बचा लीजिए.’’

‘‘दिल तो ऐसा कर रहा है कि तुम सब को जूते मारते हुए मैं खुद पुलिस स्टेशन ले जाऊं, लेकिन मजबूर हूं. अपने बड़े भैया को मैं ने वचन दिया था कि उन के परिवार का पूरा खयाल रखूंगा. तुम तीनों के लिए किसी से कुछ सहायता मांगते हुए मुझे बहुत शर्म आएगी,’’ संजय को आग्नेय दृष्टि से घूरने के बाद रामनाथ ने मोबाइल पर अपने एक वकील दोस्त राकेश मिश्रा का नंबर मिलाया.

राकेश मिश्रा को बुखार ने जकड़ा हुआ था. सारी बात उन को संक्षेप में बता कर रामनाथ ने उन से अगले कदम के बारे में सलाह मांगी.

‘‘जिस इलाके से उस लड़की को तुम्हारे भतीजे और उस के दोनों दोस्तों ने उठाया था, वहां के एसएचओ से जानपहचान निकालनी होगी. रामनाथ, मैं तुम्हें 10-15 मिनट बाद फोन करता हूं,’’ बारबार खांसी होने के कारण वकील साहब को बोलने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘इन तीनों को अब क्या करना चाहिए?’’

‘‘इन्हें घर मत भेजो. ये एक बार पुलिस के हाथ में आ गए तो मामला टेढ़ा हो जाएगा.’’

‘‘इन्हें मैं अपने फार्म हाउस में भेज देता हूं.’’

‘‘उस कार में इन्हें मत भेजना जिसे इन्होंने रेप के लिए इस्तेमाल किया था बल्कि कार को कहीं छिपा दो.’’

‘‘थैंक्यू, माई फ्रैंड.’’

‘‘मुझे थैंक्यू मत बोलो, रामनाथ. उस थाना अध्यक्ष को अपने पक्ष में करना बहुत जरूरी है. तुम्हें रुपयों का इंतजाम रखना होगा.’’

‘‘कितने रुपयों का?’’

‘‘मामला लाखों में ही निबटेगा मेरे दोस्त.’’

‘‘जो जरूरी है वह खर्चा तो अब करेंगे ही. इन तीनों की जलील हरकत का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा. तुम मुझे जल्दी से दोबारा फोन करो,’’ रामनाथ ने फोन काटा और परेशान अंदाज में अपनी कनपटियां मसलने लगे थे.

उन की खामोशी से इन तीनों की घबराहट व चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई. संजय के पिता की माली हालत अच्छी नहीं थी. इसलिए रुपए खर्च करने की बात सुन कर उस के माथे पर पसीना झलक उठा था.

‘‘फोन कर के तुम दोनों अपनेअपने पिता को यहीं बुला लो. सब मिल कर ही अब इस मामले को निबटाने की कोशिश करेंगे,’’ रामनाथ की इस सलाह पर अमल करने में सब से ज्यादा परेशानी नरेश ने महसूस की थी.

नरेश का रिश्ता कुछ सप्ताह पहले ही तय हुआ था. अगले महीने उस की शादी होने की तारीख भी तय हो चुकी थी. वह रेप के मामले में फंस सकता है, यह जानकारी वह अपने मातापिता व छोटी बहन तक बिलकुल भी नहीं पहुंचने देना चाहता था. उन तीनों की नजरों में गिर कर उन की खुशियां नष्ट करने की कल्पना ही उस के मन को कंपा रही थी. मन के किसी कोने में रिश्ता टूट जाने का भय भी अपनी जड़ें जमाने लगा था.

नरेश अपने पिता को सूचित न करे, यह बात रामनाथ ने स्वीकार नहीं की. मजबूरन उसे अपने पिता को फौरन वहां पहुंचने के लिए फोन करना पड़ा. ऐसा करते हुए उसे संजय अपना सब से बड़ा दुश्मन प्रतीत हो रहा था.

करीब घंटे भर बाद वकील राकेश का फोन आया.

‘‘रामनाथ, उस इलाके के थानाप्रभारी का नाम सतीश है. मैं ने थानेदार को सब समझा दिया है. वह हमारी मदद करेगा पर इस काम के लिए 10 लाख मांग रहा है.’’

‘‘क्या उस लड़की ने रिपोर्ट लिखवा दी है?’’ रामनाथ ने चिंतित स्वर में सवाल पूछा.

‘‘अभी तो रिपोर्ट करने थाने में कोई नहीं आया है. वैसे भी रिपोर्ट लिखाने की नौबत न आए, इसी में हमारा फायदा है. थानेदार सतीश तुम से फोन पर बात करेगा. लड़की का मुंह फौरन रुपयों से बंद करना पड़ेगा. तुम 4-5 लाख कैश का इंतजाम तो तुरंत कर लो.’’

‘‘ठीक है. मैं रुपयों का इंतजाम कर के रखता हूं.’’

संजय के लिए 2 लाख की रकम जुटा पाना नामुमकिन सा ही था. उस के पिता साधारण सी नौकरी कर रहे थे. वह तो अपने दोस्तों की दौलत के बल पर ही ऐश करता आया था. जहां कभी मारपीट करने या किसी को डरानेधमकाने की नौबत आती, वह सब से आगे हो जाता. उस के इसी गुण के कारण उस की मित्रमंडली उसे अपने साथ रखती थी.

वह इस वक्त मामूली रकम भी नहीं जुटा पाएगा, इस सच ने आलोक, नरेश और रामनाथ से उसे बड़ी कड़वी बातें सुनवा दीं.

कुछ देर तो संजय उन की चुभने वाली बातें खामोशी से सुनता रहा, पर अचानक उस के सब्र का घड़ा फूटा और वह बुरी तरह से भड़क उठा था.

‘‘मेरे पीछे हाथ धो कर मत पड़ो तुम सब. जिंदगी में कभी न कभी मैं तुम लोगों को अपने हिस्से की रकम लौटा दूंगा. वैसे मुझे जेल जाने से डर नहीं लगता. हां, तुम दोनों अपने बारे में जरूर सोच लो कि जेल में सड़ना कैसा लगेगा?’’ यों गुस्सा दिखा कर संजय ने उन्हें अपने पीछे पड़ने से रोक दिया था.

थानेदार ने कुछ देर बाद रामनाथ से फोन पर बात की और पैसे के इंतजाम पर जोर डालते हुए कहा कि जरूरत पड़ी तो रात में आप को बुला लूंगा या सुबह मैं खुद ही आ जाऊंगा.

नरेश के पिता विजय कपूर ने जब रामनाथ की कोठी में कदम रखा तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

रामनाथ ने उन्हें जब उन तीनों की करतूत बताई तो उन की आंखों में आंसू भर आए थे.

अपने बेटे की तरफ देखे बिना विजय कपूर ने भरे गले से रामनाथ से प्रार्थना की, ‘‘सर, आप इस समस्या को सुलझवाइए, प्लीज. अगले महीने मेरे घर में शादी है. उस में कुछ व्यवधान पड़ा तो मेरी पत्नी जीतेजी मर जाएगी.’’

अपने पिता की आंखों में आंसू देख कर नरेश इतना शर्मिंदा हुआ कि वह उन के सामने से उठ कर बाहर बगीचे में निकल आया.

अब संजय व आलोेक के लिए भी उन दोनों के सामने बैठना असह्य हो गया तो वे भी वहां से उठे और बगीचे में नरेश के पास आ गए.

चिंता और घबराहट ने उन तीनों के मन को जकड़ रखा था. आपस में बातें करने का मन नहीं किया तो वे कुरसियों पर बैठ कर सोचविचार की दुनिया में खो गए.

उस अनजान लड़की के रेप करने से जुड़ी यादें उन के जेहन में रहरह कर उभर आतीं. कई तसवीरें उन के मन में उभरतीं और कई बातें ध्यान में आतीं.

इस वक्त तो बलात्कार से जुड़ी उन की हर याद उन्हें पुलिस के शिकंजे में फंस जाने की आशंका की याद दिला रही थी. जेल जाने के डर के साथसाथ अपने घर वालों और समाज की नजरों में सदा के लिए गिर जाने का भय उन तीनों के दिलों को डरा रहा था. डर और चिंता के ऐसे भावों के चलते वे तीनों ही अब अपने किए पर पछता रहे थे.

संजय का व्यक्तित्व इन दोनों से अलग था. इसलिए सब से पहले उस ने ही इस समस्या को अलग ढंग से देखना शुरू किया.

‘‘हो सकता है कि वह लड़की पुलिस के पास जाए ही नहीं,’’ संजय के मुंह से निकले इस वाक्य को सुन कर नरेश और आलोक चौंक कर सीधे बैठ गए.

‘‘वह रिपोर्ट जरूर करेगी…’’ नरेश ने परेशान लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर बलात्कार होने का ढिंढोरा पीट कर हमेशा के लिए लोगों की सहानुभूति दिखाने या मजाक उड़ाने वाली नजरों का सामना करना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होगा,’’ आलोक ने अपने मन की बात कही.

‘‘वह रिपोर्ट करना भी चाहे तो भी उस के घर वाले उसे ऐसा करने से रोक सकते हैं. अगर रिपोर्ट लिखाने को तैयार होते तो अब तक उन्हें ऐसा कर देना चाहिए था,’’ संजय ने अपनी राय के पक्ष में एक और बात कही.

‘‘मुझे तो एक अजीब सा डर सता रहा है,’’ नरेश ने सहमी सी आवाज में वार्त्तालाप को नया मोड़ दिया.

‘‘कैसा डर?’’

‘‘अगर उस लड़की ने कहीं आत्महत्या कर ली तो हमें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकेगा.’’

‘‘उस लड़की का मर जाना उलटे हमारे हक में होगा. तब रेप हम ने किया है, इस का कोई गवाह नहीं रहेगा,’’ संजय ने क्रूर मुसकान होंठों पर ला कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश की.

‘‘लड़की आत्महत्या कर के मर गई तो उस के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट रेप दिखलाएगी. पुलिस की तहकीकात होगी और हम जरूर पकड़े जाएंगे. यह एसएचओ भी तब हमें नहीं बचा पाएगा. इसलिए उस लड़की के आत्महत्या करने की कामना मत करो बेवकूफो,’’ आलोक ने उन दोनों को डपट दिया.

‘‘मुझे लगता है एसएचओ को इतनी जल्दी बीच में ला कर हम ने भयंकर भूल की है, वह अब हमारा पिंड नहीं छोड़ेगा. लड़की ने रिपोर्ट न भी की तो भी वह रुपए जरूर खाएगा,’’ संजय ने अपनी खीज जाहिर की.

‘‘तू इस बात की फिक्र क्यों कर रहा है? रेप करने में सब से आगे था और अब रुपए निकालने में तू सब से पीछे है.’’

आलोक के इस कथन ने संजय के तनबदन में आग सी लगा दी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘अपना हिस्सा मैं दूंगा. मुझे चाहे लूटपाट करनी पड़े या चोरी, पर तुम लोगों को मेरा हिस्सा मिल जाएगा.’’

संजय ने उसी समय मन ही मन जल्द से जल्द अमीर बनने का निर्णय लिया. उस का एक चचेरा भाई लूटपाट और चोरी करने वाले गिरोह का सदस्य था. उस ने उस के गिरोह में शामिल होने का पक्का मन उसी पल बना लिया. उस ने अभावों व जिल्लत की जिंदगी और न जीने की सौगंध खा ली.

नरेश उस वक्त का सामना करने से डर रहा था जब वह अपनी मां व जवान बहन के सामने होगा. एक बलात्कारी होने का ठप्पा माथे पर लगा कर इन दोनों के सामने खड़े होने की कल्पना कर के ही उस की रूह कांप रही थी. जब आंतरिक तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया तो अचानक उस की रुलाई फूट पड़ी.

रामनाथ ने अब उन्हें अपने फार्महाउस में भेजने का विचार बदल दिया क्योंकि एसएचओ उन से सवाल करने का इच्छुक था. उन के सोने का इंतजाम उन्होंने मेहमानों के कमरे में किया.

विजय कपूर अपने बेटे नरेश का इंतजार करतेकरते सो गए, पर वह कमरे में नहीं आया. उस की अपने पिता के सवालों का सामना करने की हिम्मत ही नहीं हुई थी.

सारी रात उन तीनों की आंखों से नींद कोसों दूर रही. उस अनजान लड़की से बलात्कार करना ज्यादा मुश्किल साबित नहीं हुआ था, पर अब पकड़े जाने व परिवार व समाज की नजरों में अपमानित होने के डर ने उन तीनों की हालत खराब कर रखी थी.

सुबह 7 बजे के करीब थानेदार सतीश श्रीवास्तव रामनाथ की कोठी पर अपनी कार से अकेला मिलने आया.

उस का सामना इन तीनों ने डरते हुए किया. थाने में बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाने वह अनजान लड़की रातभर नहीं आई थी, लेकिन थानेदार फिर भी 50 हजार रुपए रामनाथ से ले गया.

‘‘मैं अपनी वरदी को दांव पर लगा कर आप के भतीजे और उस के दोस्तों की सहायता को तैयार हुआ हूं,’’ थानेदार ने रामनाथ से कहा, ‘‘मेरे रजामंद होने की फीस है यह 50 हजार रुपए. वह लड़की थाने न आई तो इन तीनों की खुशकिस्मती, नहीं तो 10 लाख का इंतजाम रखिएगा,’’ इतना कह कर वह उन को घूरता हुआ बोला, ‘‘और तुम तीनों पर मैं भविष्य में नजर रखूंगा. अपनी जवानी को काबू में रखना सीखो, नहीं तो एक दिन बुरी तरह पछताओगे,’’ कठोर स्वर में ऐसी चेतावनी दे कर थानेदार चला गया था.

वे तीनों 9 बजे के आसपास रामनाथ की कोठी से अपनेअपने घरों को जाने के लिए बाहर आए. उस लड़की का रेप करने के बाद करीब 1 दिन गुजर गया था. उसे रेप करने का मजा उन्हें सोचने पर भी याद नहीं आ रहा था.

इस वक्त उन तीनों के दिमाग में कई तरह के भय घूम रहे थे. कटे बालों वाली लंबे कद की किसी भी लड़की पर नजर पड़ते ही पहचाने जाने का डर उन में उभर आता. खाकी वरदी वाले पर नजर पड़ते ही जेल जाने का भय सताता. अपने घर वालों का सामना करने से वे मन ही मन डर रहे थे. उस वक्त की कल्पना कर के उन की रूह कांप जाती जब समाज की नजरों में वे बलात्कारी बन कर सदा जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर होंगे.

अगर तीनों का बस चलता तो वे वक्त को उलटा घुमा कर उस लड़की को रेप करने की घटना घटने से जरूर रोक देते. सिर्फ 12 घंटे में उन की हालत भय, चिंता, तनाव और समाज में बेइज्जती होने के एहसास से खस्ता हो गई थी. इस तरह की मानसिक यंत्रणा उन्हें जिंदगी भर भोगनी पड़ सकती है, इस एहसास के चलते वे तीनों अपनेआप और एकदूसरे को बारबार कोस रहे थे.

अपराध : क्या नीलकंठ को हुआ गलती का एहसास

एंबुलैंस का सायरन बज रहा था. लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था.

सही रास्ते पर: क्यों मुस्कुराई थी लक्ष्मी

भूख के मारे लक्ष्मी की अंतडि़यां ऐंठी जा रही थीं. वह दिनभर मजदूरी के लिए इधरउधर भटकती रही, मगर उसे कहीं भी मजदूरी नहीं मिली.

आज शहर बंद था. वजह थी कि कल दिनदहाड़े भरे बाजार में सत्ता पक्ष के एक खास कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई थी.

इस हत्या के पीछे जो भी  वजह रही हो, मगर इस से शहर की राजनीति गरमा गई थी. हत्यारा खून कर के फरार हो चुका था. दिनभर पूरे शहर में पार्टी वाले पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाते रहे.

सुबह जब लक्ष्मी शासकीय भवन पर मजदूरी करने गई थी, तब ठेकेदार के अलावा वहां कोई नहीं था.

उसे देख कर ठेकेदार मुसकराते हुए बोला, ‘‘लक्ष्मी, आज काम बंद है… कल आना.’’

‘‘क्यों ठेकेदार साहब?’’ लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘पूरा शहर बंद है न इसलिए,’’ ठेकेदार ने जवाब दिया.

‘‘पर, आप ने काम क्यों बंद कर दिया ठेकेदार साहब?’’ लक्ष्मी ने फिर पूछा.

‘‘मुझे नुकसान कराना है क्या? और फिर जिस नेता का खून हुआ है, उस ने मुझे यह ठेका दिलवाया था, इसलिए मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उस की याद में एक दिन के लिए काम बंद कर दूं,’’ ठेकेदार ने बताया.

‘‘ठेकेदार साहब, बंद का असर आप पर तो नहीं पड़ेगा, मगर हमारे पेट पर जरूर पड़ेगा,’’ लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तो मैं क्या करूं? मैं ने रोजरोज काम देने का ठेका नहीं लिया है. जा, कल टाइम पर आ जाना. आज जहां मजदूरी मिले, वहां जा कर कर ले,’’ ठेकेदार ने टका सा जवाब दे कर उसे वहां से भगा दिया.

लक्ष्मी निराश हो कर वहां से चल दी. फिर वह काम तलाशने उसी चौराहे पर आ गई, जहां रोज आ कर बैठती थी. वहां सारे मजदूर जमा होते थे और अपनी जरूरत के मुताबिक लोग वहां से उन्हें ले जाते थे. मगर लक्ष्मी को वहां पहुंचने में देर हो गई थी. सारा चौराहा मजदूरों से तकरीबन खाली हो चुका था.

कुछ बचेखुचे मजदूर ही वहां बैठे हुए थे. लक्ष्मी भी उन के बीच जा कर बैठ गई. मगर काफी देर बैठने के बाद भी उसे काम के लिए कोई नहीं ले गया.

थोड़ी देर बाद लक्ष्मी वहां से उठ कर काम की तलाश में काफी देर तक इधरउधर भटकती रही, मगर उसे कहीं काम नहीं मिला.

घर में लक्ष्मी के 2 बच्चों और सास के अलावा कोई नहीं था. समाज की नजरों में मांगीलाल उस का पति था, मगर उस ने एक दूसरी औरत रख ली थी. वह सारी कमाई

उसी पर उड़ाता था. उस औरत के बारे में लक्ष्मी कभी कुछ कहती तो वह उसे मारतापीटता था.

शुरूशुरू में तो मांगीलाल लक्ष्मी को कुछ खर्चा देता था, मगर बाद में उस

ने वह भी देना बंद कर दिया, इसलिए

वह मजदूरी करने लगी. कभीकभी तो मांगीलाल उस की मजदूरी भी छीन कर ले जाता था और दारू में उड़ा देता था.

लक्ष्मी ने कुछ पैसे साड़ी के आंचल में छिपा कर रखे थे. उस ने सोचा था कि जिस दिन मजदूरी नहीं मिलेगी, उस दिन यह बचा हुआ पैसा काम आएगा, मगर मांगीलाल ने वे छिपे पैसे भी जबरन छीन लिए थे.

जब दोपहर हो गई, तो लक्ष्मी थकहार कर घर लौट आई. डब्बे में एक भी रोटी नहीं बची थी. सब रोटियां सास और उस के दोनों बच्चे खा चुके थे. घर में पकाने के लिए भी कुछ नहीं था.

लक्ष्मी दिनभर शहर के इस छोर से उस छोर तक भूखी ही काम के लिए भटकती रही. उसे शाम के राशन का इंतजाम जो करना था. मगर शाम तक भी उसे कोई काम नहीं मिला. तब वह एक होटल के पास आ कर बैठ गई.

यह वही होटल है, जहां शहर के रईस लोग आएदिन पार्टियां करते रहते हैं और उन्हें मजदूरों की जरूरत पड़ती रहती है. मगर वहां पर भी उसे बैठेबैठे रात हो गई.

‘‘क्या कोई ग्राहक नहीं मिला? चलेगी मेरे साथ?’’ पास खड़े एक आदमी ने लक्ष्मी से पूछा.

उस आदमी की आंखों में वासना झलक रही थी. वह लक्ष्मी को देह धंधा करने वाली औरत समझ रहा था.

लक्ष्मी बोली, ‘‘फोकट में ही ले जाएगा या पैसे भी देगा?’’

‘‘हां दूंगा… कितने लेगी?’’ उस आदमी ने पूछा.

‘‘दिनभर काम करती हूं, तो मुझे

50 रुपए मिलते हैं,’’ लक्ष्मी ने बताया.

‘‘चल, मैं तुझे 50 रुपए ही दूंगा,’’ उस ने कहा, तो लक्ष्मी की इच्छा हुई कि उस के मुंह पर थूक दे, मगर उसे जोरों की भूख लग रही थी.

लक्ष्मी ने सोचा, ‘मांगीलाल भी तो मेरे जिस्म से खेल कर चला जाता है. और फिर मुझे अब मजदूरी भी कौन देगा?’

‘‘क्या सोच रही है?’’ उसे चुप देख उस आदमी ने पूछा.

‘‘लगता है, मेरी तरह तू भी बहुत भूखा है. तेरी घरवाली नहीं है क्या?’’ लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘अभी तो कुंआरा हूं,’’ वह बोला.

‘‘तो शादी क्यों नहीं कर लेता है?’’ लक्ष्मी ने दोबारा पूछा.

‘‘खुद अपना पेट तो पूरी तरह भर नहीं पाता हूं, फिर उसे क्या खिलाऊंगा?’’ वह बोला.

‘‘सही बात है. जो आदमी अपनी घरवाली को खिला नहीं सकता, वह मरद नहीं होता है…’’ कह कर लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘कहां ले जाएगा मुझे?’’

‘‘शहर के बाहर एक खंडहर है, जहां अंधेरा रहता?है,’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है, मुझे तो पैसों से मतलब है,’’ लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तो चल मेरे पीछेपीछे,’’ उस आदमी ने कहा और लक्ष्मी उस के पीछेपीछे चलने लगी.

वह आदमी पीछे मुड़ कर देख लेता कि वह औरत आ रही है या नहीं. मगर लक्ष्मी उस के पीछेपीछे साए की तरह चल रही थी.

अभी लक्ष्मी एक चौराहा पार कर ही रही थी कि सामने से मांगीलाल आता दिखाई दिया. वह डर के मारे कांप उठी.

मांगीलाल ने पास आ कर पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘तुम पूछने वाले कौन हो?’’ लक्ष्मी ने नफरत से कहा.

‘‘तुम्हारा पति…’’ मांगीलाल बोला.

‘‘खुद को पति कहते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती…’’ लक्ष्मी गुस्से से बोली, ‘‘जो आदमी अपने बीवीबच्चों और मां को भूखाप्यासा छोड़ कर दूसरी औरत पर कमाई लुटाए, वह किसी का पति कहलाने लायक नहीं होता.’’

मांगीलाल नीची गरदन कर के चुपचाप किसी मुजरिम की तरह सुनता रहा.

‘‘मगर, तुम जा कहां रही हो?’’ मांगीलाल ने फिर पूछा.

‘‘कहीं भी जाऊं… वैसे भी तुम ने तो मियांबीवी का रिश्ता उसी दिन तोड़ दिया था, जिस दिन तुम दूसरी औरत के साथ रहने लगे थे.’’

‘‘देखो लक्ष्मी, तुम अपनी हद से ज्यादा बढ़ कर बात कर रही हो. मैं तुम्हारा पति हूं. चलो, घर चलो,’’ मांगीलाल भड़क उठा.

‘‘नहीं जाना मुझे तुम्हारे साथ. देखो, मैं उस आदमी के साथ जा रही हूं. वह मुझे 50 रुपए दे रहा है,’’ कह कर लक्ष्मी ने मुड़ कर देखा, मगर वह आदमी तो उन का झगड़ा देख कर वहां से भाग चुका था.

यह देख कर लक्ष्मी बोली, ‘‘आखिर भगा दिया न उसे…’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम धंधा करने लगी हो,’’ मांगीलाल गुस्से से बोला.

‘‘हमें अपने पेट की भूख मिटाने के लिए यही करना पड़ेगा. तुम तो दूसरी औरत के साथ मस्त रहते हो. मुझे तुम्हारी मां और दोनों बच्चों को देखना पड़ता है.

‘‘आज दिनभर काम नहीं मिला. आखिर क्या करती? घर में न आटा?है, न चावल,’’ कहते हुए लक्ष्मी ने दिनभर की भड़ास निकाल दी.

वह आगे बोली, ‘‘अब कहां से उन लोगों के खाने का इंतजाम करूं?’’

‘‘लक्ष्मी, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मुझे माफ कर दो. अब मैं तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा,’’ माफी मांगते हुए मांगीलाल बोला.

‘‘रहने दो. तुम्हारा क्या भरोसा? यह बात तो तुम कई बार कह चुके हो. फिर भी तुम से वह औरत नहीं छूटती है. उस के पीछे तुम ने मुझे कितना मारापीटा है…’’ लक्ष्मी ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं कोई दूसरा ग्राहक ढूंढ़ती हूं. पेट की आग तो बुझानी ही पड़ेगी न.’’

‘‘नहीं लक्ष्मी, अब तुम कहीं नहीं जाओगी और न ही मजदूरी करोगी,’’ मांगीलाल ने लक्ष्मी को रोकते हुए कहा.

‘‘अगर मजदूरी नहीं करूंगी तो मेरा, तुम्हारे बच्चों का और तुम्हारी मां का पेट कैसे भरेगा?’’ लक्ष्मी चिढ़ कर बोली.

‘‘मैं कमा कर खिलाऊंगा सब को,’’ मांगीलाल बोला.

‘‘तुम कमा कर खिलाओगे… कभी आईने में अपना चेहरा देखा है?’’

‘‘हां लक्ष्मी, तुम्हें जितना ताना देना हो दो, जो कहना है कह लो, मगर मैं बहुत शर्मिंदा हूं. क्या तुम मुझे माफ नहीं करोगी?’’ मांगीलाल गिड़गिड़ाया.

‘‘माफ उसे किया जाता?है, जिस की आंखों में शर्म हो. मैं तुम पर कैसे यकीन कर लूं कि तुम सही रास्ते पर आ जाओगे?’’ लक्ष्मी ने सवाल दागा.

‘‘हां, तुम्हें यकीन आएगा भी कैसे? मैं ने तुम्हारे साथ काम ही ऐसा किया है, मगर मैं अब पिछली जिंदगी छोड़ कर तुम्हारे साथ पूरी तरह रहना चाहता हूं. यकीन न हो तो मुझे एक महीने की मुहलत दे दो,’’ मांगीलाल बोला.

‘‘मगर, मेरी भी 2 शर्तें हैं?’’ लक्ष्मी ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारी हर शर्त मानने को तैयार हूं,’’ मांगीलाल ने कहा.

‘‘सब से पहले तो उस औरत को छोड़ना होगा. दूसरा, दारू पीना भी छोड़ना होगा,’’ लक्ष्मी बोली.

‘‘मुझे तुम्हारी ये दोनों शर्तें मंजूर हैं,’’ मांगीलाल बोला.

‘‘तो फिर चलो घर, पहले राशन ले लो. सभी भूखे होंगे,’’ लक्ष्मी बोली.

‘‘हां लक्ष्मी, अब तो तुम जो कहोगी, वही मैं करूंगा,’’ कह कर मांगीलाल मुसकरा दिया. बदले में लक्ष्मी भी भूखे पेट मुसकरा दी. मगर आज तो उस की मुसकान में सुख छिपा था.

मांगीलाल चलतेचलते बोला, ‘‘आज मैं बहुत राहत महसूस कर रहा हूं लक्ष्मी. मैं अपने रास्ते से भटक गया था. तुम मुझे सही रास्ते पर ले आई हो.’’

मांगीलाल सोच रहा था कि लक्ष्मी कुछ बोलेगी, पर जवाब देने के बजाय वह मुसकरा दी.

सम्मान की जीत: क्या हुआ था रूबी के साथ

‘‘तुम्हें मुझ से शादी कर के पछतावा होता होगा न रूबी…’’ करन ने इमोशनल होते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, पर आज आप ऐसी बातें क्यों ले कर बैठ गए हैं,’’ रूबी ने कहा.

‘‘क्योंकि… मैं एक नाकाम मर्द हूं… मैं घर में निठल्ला बैठा रहता हूं … तुम से शादी करने के 6 साल बाद भी तुम्हें वे सारी खुशियां नहीं दे पाया, जिन का मैं ने तुम से कभी वादा किया था,’’ करन ने रूबी की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है. आप ने मुझे सबकुछ दिया है… 2 इतने अच्छे बच्चे… यह छोटा सा खूबसूरत घर… यह सब आप ही बदौलत ही तो है,’’ रूबी ने करन के चेहरे पर प्यार का एक चुंबन देते हुए कहा. करन ने भी रूबी को अपनी बांहों में कस लिया.

गोपालगंज नामक गांव में ही रूबी और करन के घर थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना होता था और घर के बाहर दोनों का प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ रहा था. दोनों ने शादी की योजना भी बना ली थी, साथ ही दोनों यह भी जानते थे कि यह शादी दोनों के घर वालों को मंजूर नहीं होगी, क्योंकि दोनों की जातियां इस मामले में सब से बड़ा रोड़ा थीं.

करन ब्राह्मण परिवार का लड़का था और उस का छोटा भाई पारस राजनीति में घुस चुका था और गांव का प्रधान बन गया था. रूबी एक गड़रिया की बेटी थी.

इस इश्क के चलते रूबी शादी से पहले ही पेट से हो गई थी और अब इन दोनों पर शादी करने की मजबूरी और भी बढ़ गई थी. फिर क्या था, दोनों ने अपनेअपने घर पर विवाह प्रस्ताव रखा,  पर दोनों ही परिवारों ने शादी के लिए मना कर दिया. इस के बाद इन दोनों ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ एक मंदिर में शादी कर ली.

पर दोनों के ही घर वाले उन्हें अपनाने और घर में पनाह देने के खिलाफ थे, इसलिए रूबी और करन को उसी गांव में अलग रहना पड़ा.

दोनों ने गांव के एक कोने में एक झोंपड़ी बना ली थी, दोनों का जीवन प्रेमपूर्वक गुजरने लगा. करन के पास तो कोई कामधाम नहीं था, इसलिए रूबी को ही घर के मुखिया की तरह घर चलाने की जिम्मेदारी लेनी पड़ी.

गोपालगंज से 15 किलोमीटर दूर एक कसबे के एक पोस्ट औफिस में रूबी को कच्चे तौर पर लिखापढ़ी का काम मिल गया था. उसे रोज सुबह 12 बजे से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी देनी पड़ती थी, पर वह मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटी.

धीरेधीरे रूबी की मेहनत रंग लाई. घर में चार पैसे आने लगे, तो समय को मानो पंख लग गए और इसी दौरान रूबी 2 बेटियों की मां भी बन गई थी.

रूबी ने उन के पालनपोषण और अपने काम में बहुत अच्छा तालमेल बिठा लिया था. बच्चों की दिक्कत कभी उस के काम के आड़े नहीं आई, जिस का श्रेय करन को भी जाता है, क्योंकि जब भी रूबी बाहर जाती है, करन पर घर रह कर बच्चों का ध्यान रखता है.

रूबी ने कसबे के स्कूल जा कर इंटरमीडिएट तक पढ़ाई कर ली थी और उस के बाद प्राइवेट फार्म भर कर ग्रेजुएशन भी कर ली थी.

बचपन से ही रूबी को समाजसेवा करने का बहुत शौक था. उस के मन में गरीबों के लिए खूब दया का भाव था, इसलिए वह अब पोस्ट औफिस में डाक को छांटने और लिखापढ़ी के काम के साथसाथ शहर की एक समाजसेवी संस्था के साथ जुड़ गई थी, जो महिलाओं पर हो रहे जोरजुल्म के खिलाफ काम करती थी.

इस संस्था से जुड़ कर रूबी को मशहूरी मिलनी भी शुरू हो गई थी. शुरुआत में तो वह महिलाओं में जनजागरण करने के लिए पैदल ही गांवगांव घूमती थी, इस काम में उस की सहायक महिलाएं भी उस के साथ होती थीं, पर जब काम का दायरा बढ़ा तो

उस ने अपने लिए एक ईरिकशा भी खरीद लिया.

फिर क्या था, वह खुद आगे ड्राइविंग सीट पर बैठ जाती और पीछे अपनी सहायक महिला दोस्तों को

वह खुद बिठा लेती और गांवों में महिलाओं को सचेत करती और उन्हें आत्मनिर्भर होने का संदेश देती.

…धीरेधीरे रूबी पूरे इलाके में रिकशे वाली भाभी के नाम से जानी जाने लगी.

समाजसेवा का काम बढ़ जाने के चलते रूबी ने पोस्ट औफिस वाला काम भी छोड़ दिया था और अपने को पूरी तरह से समाजसेवा में लगा दिया.

गैरजाति में शादी कर लेने के चलते रूबी और करन पहले से ही गांव के सवर्ण लोगों की आंख में बालू की तरह खटक रहे थे, ऊपर से रूबी के इस समाजसेवा वाले काम ने घमंडी मर्दों के लिए एक और परेशानी खड़ी कर दी थी.

गांव के लोगों को लगने लगा कि अगर रूबी इसी तरह से लोगों को अपने होने वाले जोरजुल्म के खिलाफ जागरूक करती रही, तो एक दिन मर्दों का दबदबा ही खत्म हो जाएगा.

एक दिन जब रूबी अपने ईरिकशा से काम के बाद वापस आ रही थी, तो करन के छोटे भाई पारस, जो गांव का प्रधान भी था, ने उस का रास्ता रोक लिया.

‘‘क्या भाभी… कहां चक्कर में पड़ी हो… इस झमेले वाले काम के चक्कर में जरा अपनी कोमल काया को तो देखो… कैसी काली पड़ गई हो,’’ पारस ने रूबी के सीने पर नजरें गड़ाते हुए कहा. दिनरात मेहनत करने से तुम्हारा मांस तो गल ही गया है… सूख कर कांटा होती जा रही हो और इन कोमल हाथों में ईरिकशा चला कर छाले पड़ गए हैं…

‘‘क्या इसी दिन के लिए तुम ने भैया से शादी की थी कि तुम्हें गलियों की धूल खानी पड़े…’’ पारस की नजरें अब भी रूबी के शरीर का मुआयना कर रही थीं.

‘‘क्या… भैया… आज बड़ी चिंता हो रही है मेरी…’’ रूबी ने ऊंची आवाज

में कहा.

‘‘क्यों नहीं होगी चिंता… अब आप भले ही नीची जाति की हों… पर अब तो मेरी भाभी बन गई हो न… तो हम लोग अपनी भाभी की चिंता नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?

‘‘वैसे, सच कहते हैं भाभी… तुम्हें देखने से यह नहीं लगता है कि तुम

2 बच्चों को पैदा कर चुकी हो… बड़ा फिगर मेंटेन किया है आप ने.’’

‘‘ये आप किस तरह की बातें कर रहे हो? आखिर चाहते क्या हो…?’’ रूबी की आवाज तेज थी.

‘‘कुछ नहीं भाभी… बस इतना चाहते हैं कि आप एक रात के लिए हमारे साथ सो जाओ. बस… कसम से… खुश कर देंगे आप को…’’

पारस अपनी बात को अभी खत्म भी नहीं कर पाया था कि तभी रूबी के एक तेज हाथ का जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा

पारस गाल पकड़ कर रह गया. कुछ दूरी पर खड़े लोगों ने भी यह मंजर देख लिया था.

अचानक पड़े थप्पड़ के चलते और मौके की नजाकत को देखते हुए पारस वहां से तुरंत हट गया. मन में रूबी से बदला लेने की बात ठान ली.

उस दिन की घटना का जिक्र रूबी ने किसी से नहीं किया और सामान्य हो कर काम करती रही.

जिस समाजसेवी संस्था के लिए रूबी काम करती थी, वह संस्था उस के द्वारा की जा रही कोशिशों से काफी खुश थी और रूबी अपने काम को और भी बढ़ाने में लगी हुई थी.

दिनभर जनसंपर्क के बाद जब रूबी शाम को घर लौटती, तो पति और बच्चे घर के दरवाजे पर इंतजार करते मिलते. उन्हें देख कर उस की सारी थकान मिट जाती और वह अपनी बच्चियों को अपने बांहों में भर लेती और अपनी स्नेहभरी आंखों से अपने पति को भी धन्यवाद देती कि उस ने बेटियों का ध्यान रखा.

आज जब काम के बाद रूबी घर लौट रही थी, तो उस की दोनों बेटियां गांव की टौफी और चिप्स की दुकान पर चिप्स खरीदती दिखीं, उन्हें इस तरह बाहर का सामान खरीदने के लिए रूबी ने पैसे तो दिए नहीं थे, फिर इन के पास पैसे कहां से आए…?

‘‘अरे, तुम यहां चिप्स खरीद रही हो… पर यह तो बताओ कि तुम्हारे पास चिप्स के लिए पैसे कहां से आए…?’’ रूबी ने उन्हें बहला कर पूछा.

‘‘मां… हमें पापा ने पैसे दिए थे और यह भी कह रहे थे कि बाहर जा कर खेलना… तभी हम लोग बाहर घूम रहे हैं,’’ बड़ी बेटी ने जवाब दिया.

न जाने क्यों, पर रूबी को यह बात कुछ अजीब सी लगी, पर फिर भी उस ने सोचा कि बच्चे अकेले करन को परेशान कर रहे होंगे, तभी उस ने पैसे दे कर बाहर भेज दिया होगा. इसी सोच के साथ वह बच्चों को ले कर घर आ गई.

घर में करन बिस्तर पर पड़ा हुआ आराम कर रहा था. रूबी के घर पहुंचने पर भी वह लेटा रहा और सिरदर्द होने की बात भी बताई. रूबी ने हाथपैर धो कर चाय बनाई और दोनों साथ बैठ कर पीने लगे.

चाय पीने के बाद जब रूबी रसोईघर में काम करने गई, तो वहां उस को एक पायल मिली. पायल देख कर उसे लगा कि क्या उस के पीछे किसी से करन का मामला तो नहीं चल रहा है?

रूबी ने वह पायल अपने पास रख ली और करन से इस बात का जिक्र तक नहीं किया.

एक दिन की बात है. रूबी काम से थकीहारी आ रही थी. उस ने देखा कि उस की दोनों बेटियां उसी दुकान पर फिर से कुछ खाने का सामान खरीद रही थीं. आज वह चौंक उठी थी, क्योंकि इस तरह से बच्चियों को पैसे ले कर दुकान पर आना उसे ठीक नहीं लग रहा था.

‘‘अरे आज फिर पापा ने पैसे दिए क्या?’’ रूबी ने पूछा.

‘‘नहीं मां… आज हमारे घर में गांव की एक आंटी आईं और उन्होंने ही हमें पैसे दिए.’’

बच्चों की बात पर सीधा भरोसा करने के बजाय रूबी ने घर जा कर देखना ही उचित समझा.

घर का दरवाजा अंदर से बंद था. अंदर क्या हो रहा है, यह जानने के लिए रूबी ने दरवाजे के र्झिरी से आंख लगा दी तो अंदर का सीन देख कर वह दंग रह गई. कमरे में करन किसी औरत पर झुका हुआ था और अपने होंठों से उस औरत के पूरे शरीर पर चुंबन ले रहा था, वह  औरत भी करन का पूरा साथ दे रही थी.

यह सब देख कर रूबी वहीं धम्म से दरवाजे पर बैठ गई. आंसुओं की धारा उस की आंखों से बहे जा रही थी.

कुछ देर बाद ‘खटाक’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला और एक औरत अपनी साड़ी के पल्लू को सही करते हुए बाहर निकली. रूबी ने उसे पहचान लिया था. यह गांव की ही एक औरत थी, जिस का पति बाहर शहर में ही रहता है और तीजत्योहार पर ही आता है. गांव में यह औरत अपने ससुर के साथ रहती है.

रूबी उस औरत से एक भी शब्द न कह पाई, अलबत्ता वह औरत पूरी बेशर्मी से रूबी को देख कर मुसकराते हुए चली गई.

रूबी बड़ी मुश्किल से अंदर गई. करन ने रूबी से हाथ जोड़ लिए. ‘‘मैं बेकुसूर हूं रूबी… यह औरत गांव में बिना मर्द के रहती है… आज जबरन कमरे में घुस आई… और बच्चों को बाहर भेज दिया. फिर मुझ से कहने लगी कि अगर मैं ने उस की प्यास नहीं

बुझाई, तो वह मुझ पर बलात्कार का आरोप लगा देगी… अब तुम्हीं बताओ… मैं क्या करता… मैं मजबूर था,’’ रोने लगा था करन.

रूबी कुछ नहीं बोल सकी. शायद अभी उस में सहीगलत का फैसला करने की हिम्मत नहीं रह गई थी.

अगले 15 दिनों तक रूबी अपने पति का बरताव देखने और नजर रखने की गरज से काम पर नहीं गई और न ही घर से बाहर निकली. इन दिनों में करन ने बड़ा ही संयमित जीवन बिताया. रोज नहाधो कर पूजापाठ में ही रमा रहना उस के रोज के कामों में शामिल था. उस का आचरण देख कर रूबी को लगने लगा कि करन जो कह रहा था, वही सही है. गलती करन की नहीं है, गलती उसी औरत की ही है.

कुछ दिनों बाद सबकुछ पहले की  तरह ही हो गया. फिर रूबी काम पर जाने लगी. उसे विश्वास हो चला था कि उस का पति उस से सच बोल रहा है, पर उस का यह विश्वास तब गलत साबित हो गया, जब उस ने एक बार फिर करन और उस औरत को एकसाथ संबंध बनाते हुए पकड़ लिया.

रूबी दुख और गुस्से में डूब गई थी और अब उस ने मन ही मन कुछ कठोर फैसला ले लिया था.

रूबी अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर सीधे गांव के प्रधान पारस के पास पहुंची. उसे देख कर पारस की बांछें खिल गईं.

‘‘अरे… अरे भाभीजी… आज हमारे दरवाजे पर आई हैं… अरे, धन्य भाग्य हमारे… बताइए, हमारे लिए क्या

आदेश है?’’

‘‘करन का एक दूसरी औरत के साथ गलत संबंध है… मैं खुद अपनी आंखों से उन दोनों को गलत काम करते देख चुकी हूं… मुझे इंसाफ मिलना चाहिए… अब मैं करन के साथ और नहीं रहना चाहती हूं… तुम इस गांव के प्रधान हो, इसलिए मैं तुम्हारे पास आई हूं.’’

‘‘सही कहा आप ने भाभीजी…  मैं इस गांव का प्रधान हूं… और इस नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं लोगों की मदद करूं और आप की भी… पर, गांव का प्रधान कोई भी फैसला अकेला नहीं

सुना सकता. उस के लिए पंचायत बुलानी पड़ेगी…

‘‘और भाभीजी आप का मामला तो बहुत संगीन है… तो हम ऐसा करते हैं कि कल ही पंचायत बुला लेते हैं. आप कल सुबह 11 बजे पंचायत भवन में आ जाना… तब तक हम करन भैया को भी संदेश पहुंचवा देते हैं.’’

यह सुन कर रूबी वहां से चली आई और अगले दिन 11 बजने का इंतजार करने लगी.

अगले दिन ठीक 10 बजे पंचायत बुलाई गई, जिस में दोनों पक्षों के लोग भी थे. रूबी के मातापिता भी थे, पर करन के मातापिता ने यह कह कर आने से मना कर दिया कि लड़के ने अपनी मरजी से निचली जाति में शादी की है, अब हमें उस से कोई मतलब नहीं है… जैसा किया है… वैसा भुगते… लिहाजा, करन अपना पक्ष खुद ही रखने वाला था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू हुई. पहले रूबी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया.

‘‘मैं कहना चाहती हूं कि मैं ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर करन से शादी की थी, जिस से मैं

खुश भी थी, पर अब मेरे पति के गांव की ही दूसरी औरत के साथ गलत संबंध बन गए हैं, जिन्हें मैं ने अपनी आंखों से देखा है.

‘‘इस के बावजूद मैं ने करन को संभलने का एक मौका भी दिया, पर वह फिर भी गलत काम करता रहा, इसलिए मैं उस के साथ और नहीं रहना चाहती. मैं करन से तलाक लेना चाहती हूं. कार्यवाही आगे कोर्ट तक ले जाने से पहले मैं पंचायत की इजाजत चाहती हूं.’’

इस के बाद करन बोला, ‘‘मैं ने तो गले में कंठी धारण कर रखी है. मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता. और सारा गांव जानता है कि जब रूबी काम पर जाती है, तो मैं अपनी बेटियों के साथ घर पर रहता हूं. अब अपनी बेटियों के सामने कोई भला ऐसा काम कैसे कर सकता है… फिर भी रूबी के पास मेरे खिलाफ कोई सुबूत हो तो वह अभी पेश करे. अगर आरोप सही निकलेगा, तो मैं तुरंत ही तलाक दे दूंगा.’’

पारस तो पहले से ही रूबी से बदला लेना चाहता था, पर ऐसा कर नहीं पा रहा था. आज उस के सामने रूबी को जलील करने का अच्छा मौका था और पंचायत में भी सभी पारस की मंडली के ही लोग थे.

पारस द्वारा पंचायत का फैसला सुनाया गया, ‘‘रूबी किसी भी तरह से अपने पति को गुनाहगार साबित नहीं कर पाई और न ही करन के खिलाफ कोई सुबूत ही पेश कर पाई है. पंचायत को लगता है कि करन बेकुसूर है, इसलिए पंचायत के मुताबिक दोनों को एकसाथ ही रहना होगा. इन का तलाक नहीं कराया जा सकता.

‘‘रूबी ने अपने बेकुसूर पति पर बेवजह आरोप लगाए और पंचायत का समय खराब किया, इसलिए रूबी को सजा भुगतनी होगी.

‘‘रूबी को यह पंचायत 30,000 रुपए बतौर जुर्माना जमा करने का हुक्म देती है. और पैसे न जमा कर पाने की हालत में रूबी पर कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है. जुर्माना परसों शाम तक प्रधान के पास जमा हो जाना चाहिए.’’

यह फैसला सुन कर रूबी टूट गई थी. जो रूबी कुछ दिनों पहले तक महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जगा रही थी, वही रूबी जिस ने अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर शादी की थी, उसे ही धोखा मिला.

और सब बातों के साथसाथ रूबी के सामने इतने पैसे जुर्माने के तौर पर जमा करने का हुक्म भी बजाना था, नहीं तो जालिम पंचायत न जाने क्या करवा दे.

एक दिन बीत गया था. पोस्ट औफिस में कुछ पैसे जमा थे और कुछ संदूक में थे, उन्हें मिला कर 20,000 रुपए ही हो सके. जब और पैसे का इंतजाम नहीं हो सका, तो तय समय पर रूबी इतने ही पैसों को ले कर पंचायत के सामने पहुंची और जुर्माने के पूरे पैसे जमा कर पाने में अपनी मजबूरी दिखाई.

प्रधान पारस ने बोलना शुरू किया, ‘‘रूबी हमारी भाभी लगती हैं… ये कहें तो हम सारा जुर्माना खुद ही जमा कर देंगे, पर क्यों करें, इंसाफ और धर्म के हाथों मजबूर हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते… और हमारी रूबी भाभी जुर्माना नहीं जमा कर पाई हैं, इसलिए पंचों का फैसला है कि इन को बाकी के बचे 10,000 रुपयों के बदले दूसरी तरह का जुर्माना देना होगा.

‘‘और वह जुर्माना यह होगा कि हमारे खेत में जितना कटा हुआ गेहूं पड़ा हुआ है, उसे किसी भी तरह से हमारे आंगन तक पहुंचाना होगा.’’

एक बार फिर यह पंचायती फरमान सुन कर रूबी दंग रह गई थी,

हां, शायद भाग ही जाती, पर दो बच्चियों को छोड़ कर जाना संभव नहीं था. और फिर करन का क्या भरोसा?

‘‘बोलो… जुर्माने के तौर पर दी जाने वाली सजा मंजूर है तुम्हें?’’ प्रधान पारस की आवाज गूंजी. कोई चारा नहीं था उस अबला रूबी के पास, पर वह इस समय एक ऐसे दर्द में थी, जिस से एक दूसरी औरत ही समझ सकती है.

रूबी ने हिम्मत जुटाई और सभी के सामने बोल दिया, ‘‘फैसला मंजूर है, पर मैं अभी यह सजा नहीं झेल सकती.’’

‘‘पर क्यों?’’ एक पंच बोला.

‘‘क्योंकि, मैं रजस्वला हूं…’’

सारी बैठी औरतें सन्न रह गईं और आपस में खुसुरफुसुर करने लगीं.

‘‘मैं इस समय कोई भारी चीज नहीं उठा पाऊंगी, इसलिए मैं विनती करती हूं कि मेरी यह सजा माफ कर दी जाए.’’

प्रधान और पंचायत के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. और नहीं किसी औरत के प्रति इस हालत में जरा भी हमदर्दी आई.

लिहाजा रूबी को पंचायत की बात माननी पड़ी. उस ने खेत में पड़ा गेहूं बोरियों में भरना शुरू किया और बोरी को लादलाद कर प्रधान के घर में रखना शुरू कर दिया, सूरज ऊपर तप रहा था, रूबी की आंखों में आंसू थे, पर वह अपने को किसी जाल में फंसा हुआ महसूस कर रही थी.

वह अभी कुछ ही बोरे रख पाई थी कि उस के पैर कांपने लगे. उस की जांघें छलनी हो गई थीं. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह और नहीं सह सकी और वहीं बेहोश हो गई.

रूबी की आंख जब खुली, तो उस ने अपने आसपास सभी साथियों को पाया, जो समाजसेवा के काम में रूबी के साथ ईरिकशे पर बैठ कर जाती थीं, उन लोगों ने ही रूबी को अस्पताल में भरती कराया और उस से बिलकुल भी चिंता न करने की सलाह दी.

जब अस्पताल से रूबी को छुट्टी मिली, तो वह वहां से अपनी साथियों की मदद से महिला आयोग पहुंची, जहां उस ने अपने ऊपर हुए जुल्म की दास्तां बताई और यह भी बताया कि किस तरह से उस का पति एक दूसरी औरत के साथ जिस्मानी संबंध रखे हुए है, जबकि उन दोनों ने आपसी सहमति से प्रेम विवाह किया था.

महिला आयोग ने रूबी से हमदर्दी तो दिखाई, पर यह भी कहा कि आप पढ़ीलिखी लगती हैं… और जब तक आप के पास अपने पति के खिलाफ दूसरी महिला के साथ संबंध होने का कोई सुबूत नहीं होगा. तब तक हम

चाह कर भी आप की कोई मदद नहीं कर पाएंगे.

रूबी निराश हो कर वहां से लौट आई और यह सोचने लगी कि सुबूत कैसे जुटाया जाए.

फिर कुछ दिन बीतने के बाद रूबी एक दिन दोपहर में चोरीछुपे अपने गांव के घर में पहुंची और दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा करन ने खोला और रूबी को देखते ही बिफर गया, ‘‘तू फिर यहां आ गई अपनी शक्ल दिखाने के लिए.’’

‘‘करन… एक मिनट मेरी बात तो सुनो… हम ने तो प्रेम विवाह किया था, फिर मुझ से इतनी नफरत क्यों?’’ रूबी ने पूछा.

‘‘प्रेम विवाह… हुंह… क्या तुम नहीं जानती कि हम दोनों अलगअलग जाति से संबंध रखते हैं… और हमारे गांव में किसी भी छोटी जाति वाली लड़की से शादी करने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता… पूरे गांव ने मेरा बहिष्कार कर दिया… मैं अब और नहीं सह सकता… और फिर तुम्हारे अंदर भी मैं ने एक कमाऊ औरत होने का अहंकार देखा… तुम काम से आ कर मुझ पर अहसान दिखाती थी और अकसर ही मेरा बिस्तर बिना गरम किए ही सो जाती थी. और मैं रातभर करवट बदलता रहता था… और फिर तुम्हारे भी तो बाहर और भी कई मर्दों के साथ संबंध हैं, इसीलिए मैं ने भी इस औरत के साथ संबंध बना लिया है और आगे भी मैं इसी के साथ रहूंगा,’’ करन ने सब स्वीकार कर लिया.

‘‘पर, मैं ने तुम से प्रेम…’’ रूबी का स्वर बीच में ही रुक गया.

‘‘हट साली… गड़रिया की जाति… चली है एक ब्राह्मण से इश्क लड़ाने… भाग जा यहां से और दोबारा इस दरवाजे पर मत आना,’’ दहाड़ उठा था करन.

रूबी पीछे चल दी, आगे चल कर उस ने अपने हैंडबैग में छुपा खुफिया कैमरा निकाला और उस में होने वाली रिकौर्डिंग बंद की और अब उस के चेहरे पर विजयी मुसकान थी.

ये वीडियो रिकौर्डिंग उस ने कोर्ट में पेश की, जहां पर करन को अपने पत्नी को मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के लिए और दूसरी महिला से संबंध रखने के आरोप में सजा सुनाई गई.

यही नहीं, पंचायत द्वारा एक स्त्री पर अमानवीय व्यवहार करने के जुर्म में पंचायत के सभी सदस्यों को भी सजा दी गई और प्रधान को तत्काल प्रभाव से उस के पद से भी हटा दिया गया.

ये एक औरत की जीत थी, उस के सम्मान की जीत…

3 किरदारों का अनूठा नाटक: क्या था सिकंदर का प्लान

पिछला टेलीफोन उस के लिए परेशानी भरा था. दूसरा फोन तो उसे खौफजदा करने के लिए काफी था. दोनों टेलीफोन दिन के वक्त आए थे. तब जब उस का हसबैंड सिकंदर अपने औफिस में था और वह घर पर अकेली थी.

‘‘मिसेज सिकंदर,’’ फोन पर एक अजनबी औरत की आवाज सुनाई दी.

‘‘हां, बोल रही हूं. आप कौन हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने कहा.

‘‘एक दोस्त हूं. मकसद है आप की मदद करना. क्या आप सलिलि को जानती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘तो क्या आप सलिलि हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने पूछा.

‘‘नहीं मिसेज सिकंदर, सलिलि तो आप के शौहर की सेक्रेटरी का नाम है. मिस्टर सिकंदर और सलिलि के बीच जो चल रहा है, आप के लिए ठीक नहीं है. मेरा फर्ज है कि मैं आप को सही हालात की जानकारी दे दूं.’’

मिसेज सिकंदर गुस्से से चिल्लाई, ‘‘यह सब फालतू बकवास है. सलिलि मेरे शौहर की सेक्रेटरी जरूर है. वह उस का जिक्र भी करते हैं. पर उन का उस से कोई चक्कर है, यह बिलकुल गलत है. सलिलि को दिल की बीमारी है, इसलिए वह उस से हमदर्दी रखते हैं. अबकी बार तो वह कह रहे थे, अगर अब उस ने ज्यादा छुट्टियां लीं तो उसे नौकरी से निकाल देंगे.’’

दूसरी तरफ से औरत की जहरीली हंसी की आवाज आई, ‘‘हां, आप यह सच कह रही हैं मिसेज सिकंदर. सलिलि को दिल की बीमारी है, लेकिन वह दूसरी तरह की दिल की बीमारी है. वैसे मुझे सलिलि से कोई जलन नहीं है. मैं तो आप का भला चाहती हूं. आप यह मालूम करने की कोशिश करें कि जब आप के शौहर पिछले महीने बिजनैस के सिलसिले में सिंगापुर गए थे, उस वक्त उन की खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि कहां थी?’’

‘‘आप हद से आगे बढ़ रही हैं मैडम, अपनी बेहूदा बकवास बंद कीजिए.’’ गुस्से से मिसेज सिकंदर ने फोन रख दिया. दोनों हाथों से सिर थाम कर मिसेज सिकंदर सोच में डूब गईं.

उन्हें याद आया, जब पिछले महीने सिकंदर बिजनैस के लिए सिंगापुर गया था, तो उस ने उसे सिंगापुर के उस होटल का नाम बताया था, जहां वह ठहरने वाला था. लेकिन एक जरूरी काम के सिलसिले में जब उस ने सिकंदर को होटल फोन किया था तो होटल से बताया गया था कि सिकंदर नाम का कोई आदमी उन के होटल में नहीं ठहरा है. उस वक्त उस ने सोचा था कि सिकंदर ने किसी वजह से होटल बदल लिया होगा. लेकिन अब?

सिकंदर से उस की शादी किसी रोमांस का नतीजा नहीं थी. उसे कहीं देख कर सिकंदर ने उस के हुस्न की तारीफ की तो वह सोच में पड़ गई थी. वह सिकंदर से उम्र में बड़ी थी. देखने में भी कोई खास अच्छी नहीं थी. उसे अपने हुस्न के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी.

सिकंदर ने उस से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि वह एक बड़ी दौलत और जायदाद की वारिस थी. 14 साल से वह सिकंदर के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रही थी. सिकंदर देखने में स्मार्ट था और बेहद जहीन भी.

उस ने रोमा की दौलत को इस तरह बिजनैस में लगाया कि कारोबार चमक उठा. बिजनैस खूब फलफूल रहा था. 14 साल के अरसे में उन की शादी को एक शानदार कारोबारी समझौता कहा जा सकता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे और इस कामयाब फायदेमंद कौंट्रैक्ट को तोड़ने पर राजी नहीं थे. दोनों ही खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे थे.

शाम को सिकंदर की वापसी पर रोमा ने फोन काल के बारे में कुछ नहीं बताया. एक हफ्ता आराम से गुजरा. इस बार किसी आदमी का फोन था. जिस ने उसे दहशतजदा कर दिया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘इस बारे में आप को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. जो मैं कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो मिसेज सिकंदर. मैं एक पेशेवर कातिल हूं. मैं मोटी रकम के बदले किसी का भी कत्ल कर सकता हूं. शायद यह जान कर आप को ताज्जुब होगा कि आप के शौहर सिकंदर ने आप को कत्ल करने के लिए मुझे 10 लाख रुपए की औफर दी है.’’

रोमा डर कर चिल्लाई, ‘‘तुम पागल हो गए हो या मजाक कर रहे हो? मेरा शौहर हरगिज ऐसा नहीं कर सकता.’’

मरदाना आवाज फिर उभरी, ‘‘अगर आप को आप के शौहर के औफर के बारे में न बताता तो शायद मैं पागल कहलाता. मैं हर काम बहुत सोचसमझ कर करता हूं. 10 लाख का औफर मिलने के बाद मैं ने अपने शिकार के बारे में जानकारी हासिल की और आप तक पहुंचा.

‘‘मैं कोई मामूली ठग या चोर नहीं हूं. अपने मैदान का कामयाब खिलाड़ी हूं. मैं इस तरह कत्ल करता हूं कि मौत नेचुरल लगे. किसी को भी कोई शक न हो. मैं अपने काम में कभी भी नाकाम नहीं रहा.’’

मिसेज सिकंदर ने कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘यह सब क्या कह रहे हो तुम, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

अजनबी मर्द की आवाज गूंजी, ‘‘मैं आप को सब समझाता हूं. आप के हसबैंड की औफर कबूल करने के बाद मुझे आप के बारे में पता लगा कि सारी दौलत की मालिक आप हैं. आप का शौहर आप का कत्ल करवाने के बाद पूरी दौलत का मालिक बनना चाहता है.

‘‘तब मुझे एक खयाल आया कि अगर मिसेज सिकंदर मुझे डबल रकम देने पर राजी हो जाएं तो मैं उन की जगह उन के शौहर को ही ठिकाने लगा दूं. आप क्या कहती हैं, इस बारे में मिसेज सिकंदर?’’

मिसेज सिकंदर खौफ से चीखीं, ‘‘तुम एकदम पागल आदमी हो. मैं पुलिस को खबर कर रही हूं.’’

मर्द ने जोरों से हंसते हुए कहा, ‘‘पुलिस, आप उन्हें क्या बताएंगी. चलिए, अगर उन्होंने यकीन कर भी लिया तो आप मुझे कहां तलाश करेंगी? मैं पीसीओ से फोन कर रहा हूं. आप बेकार की बातें छोड़ें और गौर करें. आप दोनों में से कोई एक मरने वाला है. अब रहा सवाल यह कि मरने वाला कौन होगा? आप या आप का शौहर? इस का फैसला आप को करना होगा. आप तसल्ली से सोच लें. कल मैं इसी वक्त फिर फोन करूंगा. आप का आखिरी फैसला जानने के लिए.’’

दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

शाम को सिकंदर घर नहीं आया. उस ने फोन कर दिया कि औफिस में काम ज्यादा है, वह देर रात तक काम करेगा. उस ने सोचा कि सलिलि के साथ ऐश करेगा. जब आधी रात को सिकंदर बैडरूम में दाखिल हुआ तो वह जाग रही थी और कुछ सोच रही थी.

सोचतेसोचते वह इस फैसले पर पहुंच गई कि सुबह सिकंदर को टेलीफोन के बारे में बताएगी. मगर सिर्फ पहले फोन के बारे में. वह उस से कहेगी कि अगर उसे कोई कीप रखनी है तो रखे. उसे कोई ऐतराज नहीं, पर यह बात राज रहे. कोई बदनामी न हो.

वह आखिर दूसरे फोन के बारे में क्या बताती कि एक आदमी ने कहा है कि मुझे कत्ल करने के लिए 10 लाख का औफर दिया गया है. अगर मैं औफर डबल कर दूं तो मेरी जगह वह मारा जाएगा. शायद यह सुन कर सिकंदर उसे पागलखाने में दाखिल करा दे.

फिर उसे खयाल आया कि क्यों न वह उस अजनबी मर्द के दूसरे फोन का इंतजार करे. हो सकता है बातचीत के दौरान उस की कोई ऐसी गलती पकड़ में आ जाए, जिस की वजह से सिकंदर और पुलिस दोनों को उस की बात का यकीन आ जाए. फिर उसे पागलखाने में डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसे लगा कि पहले फोन के बारे में भी बताने की भी क्या जरूरत है. वह उस की कहानी सुन कर खूब हंसेगा. अफेयर से इनकार करेगा और चौकन्ना हो जाएगा.

जैसेजैसे वह सोच रही थी, उसे लग रहा था कि फोन करने वाला आदमी पागल है. आखिर सिकंदर उस का कत्ल क्यों करवाएगा? वह खुद बूढ़ा हो रहा है, तोंद निकल आई है. अब क्या इश्क लड़ाएगा. पर यह बात भी सच है कि वह उसे तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि सारी दौलत उस के हाथ से निकल जाएगी.

पर अचानक एक खयाल ने उसे डरा दिया कि अगर आज वह मर जाती है तो सारी दौलत का मालिक सिकंदर होगा. इस तरह उसे अपनी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा और वह सलिलि से शादी करने के लिए आजाद हो जाएगा.

इसी सोचविचार में सारी रात कट गई. दूसरे दिन जब फोन की घंटी बजी तो उसी मरदाना आवाज ने पूछा, ‘‘मैडम, आप ने क्या फैसला किया?’’

रोमा की पेशानी पसीने से भीग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. मैं तुम्हें 20 लाख दूंगी, तुम शिकार बदल दो. पर शिकार सिकंदर नहीं, सलिलि होगी.’’

‘‘बहुत अच्छा फैसला है, मतलब अब इस लड़की को ठिकाने लगाना है.’’ मरदाना आवाज ने पूछा.

‘‘हां, मेरे शौहर के बजाए उस की सेक्रेटरी सलिलि को कत्ल करना बेहतर है. क्योंकि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था, जैसे सलिलि और सिकंदर के अफेयर के बारे में सारी दुनिया जानती है. सलिलि के न रहने से वह खुद ही वफादार बन जाएगा और अगर उस ने अपनी बीवी को कत्ल कराने की कोशिश की थी तो वह उस से खौफजदा भी रहेगा.’’

उस के दिमाग में एक खयाल और आया कि ये सारी बातें लिख कर अपने वकील के पास हिफाजत से रखवा देगी कि उस की अननेचुरल डैथ के बाद इसे खोला जाए और मौत का जिम्मेदार सिकंदर को ठहराया जाए.

फोन में मरदाना आवाज उभरी, ‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि शिकार कौन है? मैं अपना काम बहुत ईमानदारी और सलीके से करता हूं. मैं आज ही आप के शौहर के औफर से इनकार कर दूंगा.

‘‘आप का काम हो जाने के बाद फिर कभी आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगी, पर एकदो चीजें बहुत जरूरी हैं. मैं अपनी फीस एडवांस में नहीं मांग रहा हूं पर आप को मेरे बताए पते पर मेरे कहे मुताबिक एक खत लिख कर भेजना पड़ेगा. मेरा पता है— रूस्तम, पोस्ट बौक्स-911, रौयल पैलेस.’’

रोमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या लिखना होगा?’’

‘‘आप को लिखना होगा कि आप ने 20 लाख के एवज में मुझे हायर किया है कि मैं आप के शौहर की सेक्रेटरी सलिलि फर्नांडीज को कत्ल कर दूं.’’ मरदानी आवाज सुनाई दी.

रोमा चीख पड़ी, ‘‘नहीं, हरगिज नहीं. इस तरह तो मैं कत्ल में शामिल हो जाऊंगी.’’

‘‘बेशक, पर यह खत मेरे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इसे लिखने के बाद आप मेरे बारे में छानबीन नहीं करेंगी. यही खत मेरी फीस की गारंटी भी है. जब आप को सबूत मिल जाए कि सलिलि मर चुकी है, आप मुझे 20 लाख की रकम भेजेंगी. उस के मिलते ही कुरियर से आप को आप का खत वापस मिल जाएगा.’’

‘‘नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ रोमा ने चिल्ला कर कहा.

‘‘मुझे बहुत दुख है मैडम कि आप के शौहर आप से कहीं ज्यादा अक्लमंद हैं. उन्होंने मेरी हर बात मंजूर कर ली थी. अब मैं आप के शौहर से ही सौदा कर लेता हूं.’’

रोमा ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘ठहरो, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है. बताओ, मुझे क्या लिखना है?’’

‘‘हां, यह ठीक है. आप कागज पेन ले लें, मैं आप को लिखवाता हूं.’’

रोमा ने कांपते हाथों से खत लिखा. फिर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को खबर करूंगा कि आप खत भेज दें. खत मिलने के 2-3 दिन के अंदर ही अखबार में आप को सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर मिल जाएगी. फिर मैं आप को रकम के बारे में बताऊंगा कि कहां और कैसे भेजनी है. और फिर आप का खत आप को वापस मिल जाएगा. इस के बाद हमारा ताल्लुक खत्म.’’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

2 दिन बाद फिर फोन आया. उस ने खत भेजने की हिदायत दी. रोमा ने खत रवाना कर दिया. तीसरे दिन अखबार में सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर छपी कि कल रात सलिलि फर्नांडीस की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

रोमा का शौहर सिकंदर काम के सिलसिले में कलकत्ता गया हुआ था. अब उसे कोई फिक्र नहीं थी. वह कहां जाता है, कहां ठहरता है, क्या करता है.

दूसरे दिन उसी आदमी ने रकम के बारे में कई हिदायतें दीं. रोमा ने अलगअलग बैंकों से रकम निकलवाई. कुछ अपने पास से मिलाई और बड़ी ईमानदारी से वहां पैसा पहुंचा दिया, जहां कहा गया था. वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पेशेवर कातिल भी अपने वादे का पक्का निकला. दूसरे रोज ही रोमा को कुरियर से उस का खत वापस मिल गया. उस ने फौरन उसे जला दिया और चैन की नींद सो गई.

उसी रात रोमा का शौहर रोमा से कई सौ मील दूर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि के साथ एक शानदार होटल में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहा था. सलिलि ने पूछा, ‘‘सिकंदर, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब कैसे हो गया? आखिर कैसे तुम ने मेरी मौत की खबर छपवा दी?’’

सिकंदर ने शराब का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘बहुत आसानी से, तुम्हारे मरने की खबर और रकम मैं ने अखबार वालों को भेज दी थी और उस के साथ एक परचा रखा था—‘सलिलि फर्नांडीस का कोई रिश्तेदार या करीबी इस शहर में नहीं है और वह मेरी कंपनी में मुलाजिम थी. उस की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आती है. उस के सारे मामलात मैं ही देख रहा हूं. बस अखबार के जरिए उस की मौत की खबर दुनिया को बताना चाहता हूं.’

उन लोगों ने दूसरे दिन ही यह खबर छाप दी. अच्छा जानेमन, तुम यह बताओ कि तुम ने फ्लैट छोड़ते वक्त अपनी मकान मालकिन से क्या कहा?’’

‘‘मैं ने मकान मालकिन से कहा था कि मैं दिल की मरीज हूं. अपने शहर वापस जा कर अपने डाक्टर से इलाज कराऊंगी, क्योंकि अब तकलीफ बहुत बढ़ गई है.’’

‘‘शाबाश, तुम्हें मुंबई आए अभी बहुत कम अरसा हुआ है. कोई तुम्हें जानता भी नहीं है, न कोई दोस्त है. अब तुम दूरदराज के इलाके में एक शानदार फ्लैट ले कर ठाठ से रहना. अपना नाम और पहचान भी बदल लेना. रोमा से मिले 20 लाख रुपए मैं किसी बिजनैस में लगा दूंगा ताकि हर महीने गुजारे के लिए अच्छीखासी रकम मिलती रहे.’’

‘‘डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो, सारी रकम मेरे नाम पर लगा रहे हो.’’

‘‘क्यों नहीं डियर, पहली बार टेलीफोन करने वाली तुम खुद थीं. तुम्हीं ने तो प्लान कामयाब बनाया.’’

‘‘मगर सिकंदर, सारी प्लानिंग तो तुम्हारी थी. तुम ने कितनी कामयाबी से आवाज बदल कर कातिल का रोल अदा किया. तुम्हारी आवाज सुन कर तो मैं भी धोखा खा गई थी. तुम वाकई में बहुत बड़े कलाकार हो.’’

‘‘चलो, फालतू बातें छोड़ो, अब हमारे मिलने में कोई रुकावट नहीं रहेगी. टूर का बहाना कर के मैं तुम्हारे पास आ जाया करूंगा. उधर रोमा अपनी दौलत पर नाज करते हुए चैन से सोएगी. अब मुझ पर शक भी नहीं करेगी.’’

वह काली रात: क्या हुआ था रंजना के साथ

जैसे ही रंजना औफिस से आ कर घर में घुसीं, बहू रश्मि पानी का गिलास उन के हाथ में थमाते हुए खुशी से हुलसते हुए बोली, मांजी, 2 दिनों बाद मेरी दीदी अपने परिवार सहित भोपाल घूमने आ रही हैं. आज ही उन्होंने फोन पर बताया.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है. तुम्हारी दीदीजीजाजी पहली बार यहां आ रहे हैं, उन की खातिरदारी में कोई कोरकसर मत रखना. बाजार से लाने वाले सामान की लिस्ट आज ही अपने पापा को दे देना, वे ले आएंगे.’’

‘‘हां मां, मैं ने तो आने वाले 3 दिनों में घूमने और खानेपीने की पूरी प्लानिंग भी कर ली है. मां, दीदी पहली बार हमारे घर आ रही हैं, यह सोच कर ही मन खुशी से बावरा हुआ जा रहा है,’’ रश्मि कहते हुए खुशी से ओतप्रोत थी.

‘‘बड़ी बहन मेरे लिए बहुत खास है. 12वीं कक्षा में पापा ने जबरदस्ती मुझे साइंस दिलवा दी थी और मैं फेल हो गई थी. मैं शुरू से प्रत्येक क्लास में अव्वल रहने की वजह से अपनी असफलता को सहन नहीं कर पा रही थी और निराशा से घिर कर धीरेधीरे डिप्रैशन में जाने लगी थी. तब दीदी की शादी को 2 महीने ही हुए थे. मेरी बिगड़ती हालत को देख कर दीदी बिना कुछ सोचेविचारे मुझे अपने साथ अपनी ससुराल ले गईर् थीं. जगह बदलने और दीदीजीजाजी के प्यार से मैं धीरेधीरे अपने दुख से उबरने लगी थी. मेरा मनोबल बढ़ाने में जीजाजी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उन्हीं की मेहनत और प्यार का फल है कि डौक्टरेट कर के आज कालेज में पढ़ा कर खुशहाल जिंदगी जी रही हूं. मां, कितना मुश्किल होता होगा अपनी नईनवेली गृहस्थी में किसी तीसरे, वह भी जवान बहन को शामिल करना,’’ रश्मि ने अपनी दीदी की सुनहरी यादों को ताजा करते हुए अपनी सास से कहा.

‘‘हां, सो तो है बेटा, पर तुम उन की यादों में ही खोई रहोगी कि कुछ तैयारी भी करोगी. दीदी के कितने बच्चे हैं?’’ रंजना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘2 बेटे हैं मां, बड़ा बेटा अमन इंजीनियरिंग के आखिरी साल में है और छोटा अर्णव 12वीं कर रहा  है,’’ रश्मि ने खुशी से उत्तर दिया.

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए रंजना ने अपने

2 कमरों के छोटे से घर पर नजर डाली जो 4 लोगों के आ जाने से भर जाता था. उन्होंने पति के साथ मिल कर बड़े जतन से इस घर को उस समय बनाया था जब बेटे का जन्म हुआ था. तब आर्थिक स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं थी. सो, किसी तरह 2 कमरे बनवा लिए थे. उस के बाद परिवार बड़ा हो गया पर घर उतना ही रहा. कितनी बार सोचा भी कि ऊपर 2 कमरे और बनवा लें, ताकि किसी के आने पर परेशानी न हो, पर सुरसा की तरह मुंह फाड़ती इस महंगाई में थोड़ा सा पैसा बचाना भी मुश्किल हो जाता है. खैर, देखा जाएगा.

2 दिनों बाद सुबह ही रश्मि की दीदी परिवार सहित आ गईं. सभी लोग हंसमुख और व्यवहारकुशल थे. शीघ्र ही रश्मि के दोनों बच्चे 12 वर्षीय धु्रव और 8 वर्षीया ध्वनि दीदी के बेटों के साथ घुलमिल गए. पुरुष देशविदेश की चर्चाओं में व्यस्त हो गए. वहीं रश्मि और उस की दीदी किचन में खाना बनाने के साथसाथ गपों में मशगूल हो गईं. रंजना स्वयं भी नाश्ता कर के अपने औफिस के लिए रवाना हो गईर्ं.

नहाधो कर सब ने भरपेट नाश्ता किया. रश्मि ने खाना बना कर पैक कर लिया ताकि घूमतेघूमते भूख लगने पर खाया जा सके. पूरे दिन भोपाल घूमने के बाद रात का खाना सब ने बाहर ही खाया. मातापिता के लिए खाना रश्मि के पति ने पैक करवा लिया. घर आ कर ताश की महफिल जम गई जिस में रंजना और उन के रिटायर्ड पति भी शामिल थे.

रात्रि में हौल में जमीन पर ही सब के बिस्तर लगा दिए गए. सभी बच्चे एकसाथ ही सोए. बाकी सदस्य भी वहीं एडजस्ट हो गए. रश्मि की दीदी ने पहले ही साफ कह दिया था कि मम्मीपापा अपने कमरे में ही लेटेंगे ताकि उन्हें कोई डिस्टर्ब न करे. अपने रात्रिकालीन कार्य और दवाइयां इत्यादि लेने के बाद जब रंजना हौल में आईं तो कम जगह में भी सब को इतने प्यार से लेटे देख कर उन्हें बड़ी खुशी हुई. अचानक बच्चों के बीच ध्वनि को लेटे देख कर उन का माथा ठनका, वे अचानक बहुत बेचैन हो उठीं और बहू रश्मि को अपने कमरे में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, ध्वनि अभी छोटी है, उसे पास सुलाओ.’’

‘‘मां, वह नहीं मान रही. अपने भाइयों के पास ही सोने की जिद कर रही है. सोने दीजिए न, दिनभर के थके हैं सारे बच्चे, एक बार आंख लगेगी तो रात कब बीत जाएगी, पता भी नहीं चलेगा,’’ कह कर रश्मि वहां से खिसक गईं.

वे सोचने लगीं, ‘यह तो सही है कि थकान में रात कब बीत जाती है, पता नहीं चलता, पर रात ही तो वह समय है जब सब सो रहे होते हैं और करने वाले अपना खेल कर जाते हैं. रात ही तो वह पहर होता है जब चोर लाखोंकरोड़ों पर हाथ साफ करते हैं. दिन में कुलीनता, शालीनता, सज्जनता और करीबी रिश्तों का नकाब पहनने वाले अपने लोग ही अपनी हवस पूरी करने के लिए रात में सारे रिश्तों को तारतार कर देते हैं.

कहते हैं न, दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है, सो, उन का मन नहीं माना और कुछ देर बाद ही वे फिर हौल में जा पहुंचीं. ध्वनि उसी स्थान पर लेटी थी. उन्होंने धीरे से उस के पास जा कर न जाने कान में क्या कहा कि वह तुरंत अपनी दादी के साथ चल दी. बड़े प्यार से अपनी बगल में लिटा कर वे ध्वनि को कहानी सुनाने लगीं और कुछ ही देर में ध्वनि नींद की आगोश में चली गई. पर नातेरिश्तों पर कतई भरोसा न करने वाला उन का विद्रोही मन अतीत के गलियारे में जा पहुंचा.

तब वे भी अपनी पोती ध्वनि की उम्र की ही थीं. परिवार में उन के अलावा

4 वर्षीया एक छोटी बहन थी. मां गांव की अल्पशिक्षित सीधीसादी महिला थीं. एक बार ताउजी का 23 वर्षीय बेटा मुन्नू उन के घर दोचार दिनों के लिए कोई प्रतियोगी परीक्षा देने आया था. भाई के आने से घर में सभी बहुत खुश थे, आखिर वह पहली बार जो आया था. गरमी का मौसम था. उस समय कूलरएसी तो होते नहीं थे, सो, मां ने खुले छोटे से आंगन में जमीन पर ही बिस्तर लगा दिए थे.

वे अपने पिता से कहानी सुनाने की जिद कर रही थीं कि तभी भाई ने कहानी सुनाने का वास्ता दे कर उसे अपने पास बुला लिया. वह भी खुशीखुशी भैया के पास कहानी सुनतेसुनते सो गई. आधी रात को जब सब सोए थे, अचानक उन्हें अपने निचले वस्त्र के भीतर कुछ होने का एहसास हुआ. कुछ समझ नहीं आने पर वे अचकचाईं और करवट ले कर लेट गईं. कुछ देर बाद भाई ने दोबारा उन्हें अपनी ओर कर लिया और वही कार्य फिर से शुरू कर दिया. न जाने क्यों उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था. जब असहनीय हो गया तो एक झटके से उठी और जा कर मां से चिपक कर लेट गई. उस दिन बहुत देर तक नींद ही नहीं आई. वह समझ ही नहीं पा रही थीं कि आखिर भैया उस के साथ क्या कर रहे थे?

8 साल की बच्ची क्या जाने कि उस के ही चचेरे भाई ने उस के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था. उस समय मोबाइल, टीवी और सोशल मीडिया तो था नहीं जो मां के बिना बताए ही सब पता चल जाता. यह सब तो उसे बाद में समझ आया कि उस दिन भाई अपनी ही चचेरी बहन के साथ…छि… सोच कर उस का मन आज भी मुन्नू भैया के प्रति घृणा से भर उठता है. अगले दिन सुबह मां ने पूछा, ‘क्या हुआ रात को उठ कर मेरे पास क्यों आ गई थी.’

उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहे? सो वह ‘कुछ नहीं, ऐसे ही’ कह कर बाहर चली गई. उस समय तो क्या वह तो आज तक मां से नहीं कह पाई कि उन के लाड़ले भतीजे ने उस के साथ क्या किया था. पर क्या वह उस समय मां को बताती तो मां उस की बातों पर भरोसा करतीं? शायद नहीं, क्योंकि मां की नजर में वह तो बच्ची थी और मुन्नू भैया उन के लाड़ले भतीजे.

उस जमाने में मांबेटी में संकोच की एक दीवार रहती थी. वे इतने खुल कर हर मुद्दे पर बात नहीं करती थीं जैसे कि आज की मांबेटियां करती हैं. वह कभी किसी से इस विषय में बोल तो नहीं पाई परंतु पुरुषों और सैक्स के प्रति एक अनजाना सा भय मन में समा गया. पुरानी यादों की परतें थीं कि धीरेधीरे खुलती ही जा रही थीं. समय बीतता गया. जब उन्होंने जवानी की दहलीज पर पैर रखा तो मातापिता को शादी की चिंता सताने लगी. आखिर एक दिन वह भी आया जब पेशे से प्रोफैसर बसंत उन के जीवन में आए.

उन्हें याद है जब वे शादी कर के ससुराल आईं तो बहुत डरी हुई थीं. पति बसंत बहुत सुलझे और समझदार इंसान थे. उन्होंने आम पुरुषों की तरह संबंध बनाने की कोई जल्दबाजी नहीं की. जब सारे मेहमान चले गए तो एक दिन परिस्थितियां और माहौल अनुकूल देख कर बसंत ने जब उन के साथ संबंध बनाने की कोशिश करनी चाही तो वे घबरा कर पसीनापसीना हो गईं और उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी. इस के बाद जब भी बसंत उन के नजदीक आने की कोशिश करते, उन की यही स्थिति हो जाती.

उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कई बार रंजना से इस का कारण जानने की कोशिश की परंतु रंजना हर बार टाल गईं. एक दिन जब घर में कोई नहीं था, समझदार बसंत ने मानो समस्या हल करने का बीड़ा ही उठा लिया. वे रंजना का हाथ पकड़ कर जमीन पर बैठ गए और बड़े प्यार से इस मनोदशा का कारण पूछने लगे. पहले तो रंजना चुप रहीं पर फिर बसंत के प्यारभरे स्पर्श से सालों से जमी बर्फ की पर्त मानो पिघलने को आतुर हो उठी, उन की आंखों से आंसुओं के रूप में लावा बह निकला और रोतेरोते पूरी बात उन्होंने बसंत को कह सुनाई, जिस का सार यह था कि जब भी बसंत उन के नजदीक आते हैं उन्हें वह काली रात याद आ जाती है और वे घबरा उठती हैं.

बसंत कुछ देर तो शांत रहे, वातावरण में चारों ओर मौन पसर गया. वे मन ही मन घबराने लगीं कि न जाने बसंत की प्रतिक्रिया क्या होगी. परंतु कुछ देर बाद माहौल की खामोशी को तोड़ते हुए बसंत उठ कर उन की बगल में बैठ गए, रंजना का हाथ अपने हाथ में ले कर बड़े ही प्यार से बोले, ‘रंजू, जो हुआ उसे एक बुरा सपना समझ कर भूल जाओ. तुम्हारी उस में कोई गलती नहीं थी. गलती तो तुम्हारे उस भाई की थी जिस ने एक कोमल कली को कुचलने का प्रयास किया. जिस ने तुम्हारे मातापिता के साथ विश्वासघात किया. जिस ने रिश्तों की गरिमा को तारतार कर दिया. वह भाई के नाम पर कलंक है. जहां तक मां का सवाल है वे यह कभी सपने में भी नहीं सोच पाईं होंगी कि उन का सगा भतीजा ऐसा कुकृत्य कर सकता है. परंतु अब मैं तुम्हारे साथ हूं. हम पतिपत्नी हैं. तुम्हारा और मेरा हर सुखदुख साझा है.

‘कल हम एक मनोवैज्ञानिक काउंसलर के पास चलेंगे जिस से तुम अपने मन की सारी पीड़ा को बाहर ला कर अपने और मेरे जीवन को सुखमय बना पाओगी. इतना भरोसा रखो अपने इस नाचीज जीवनसाथी पर कि जब तक तुम स्वयं को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर लेतीं मैं कोई जल्दबाजी नहीं करूंगा. बस, इतना प्रौमिस जरूर चाहूंगा कि यदि भविष्य में हमारी कोई बेटी होगी तो उसे तुम संभाल कर रखोगी. उसे किसी भी हालत में परिचितअपरिचित की हवस का शिकार नहीं होने दोगी. बोलो, मेरा साथ देने को तैयार हो.’

‘हां, बसंत, मैं अपनी बेटी तो क्या इस संसार की किसी भी बेटी को उस तरह की मानसिक यातना से नहीं गुजरने दूंगी, जिसे मैं ने भोगा है, पर मुझे अभी कुछ वक्त और चाहिए,’ रंजना ने बसंत का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, तो बसंत मुसकराते हुए प्यार से बोले, ‘यह बंदा ताउम्र अपनी खूबसूरत पत्नी की सहमति का इंतजार करेगा.’

अचानक रंजना कुछ सोचते हुए बोलीं, ‘बसंत, मैं धन्य हूं जो मुझे तुम जैसा समझदार पति मिला. मुझे लगता है हर महिला बाल्यावस्था में कभी न कभी पुरुषों द्वारा इस प्रकार से शोषित होती होगी. अगर आज तुम्हारे जैसा समझदार पति नहीं होता तो मुझ पर क्या बीतती.’

‘तुम बिलकुल सही कह रही हो, कितने परिवारों में ऐसा ही दर्द अपने मन में समेटे महिलाएं जबरदस्ती पति के सम्मुख समर्पित हो जाती हैं. कितनी महिलाएं अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं और कितनों के इसी कारण से परिवार टूट जाया करते हैं, जबकि इस प्रकार की घटनाओं में महिला पूरी तरह निर्दोष होती है, क्योंकि बाल्यावस्था में तो वह इन सब के माने भी नहीं जानती. चलो, अब कुछ खाने को दो, बहुत जोरों से भूख लगी है,’ बसंत ने कहा तो वे मानो विचारों से जागी और फटाफट चायनाश्ता ले कर आ गईं.

कुछ दिनों की कांउसलिंग सैशन के बाद वे सामान्य हो गईं और एक दिन जब वे नहा कर बाथरूम से निकली ही थीं कि बसंत ने उन्हें अपने बाहुपाश में बांध लिया और सैक्सुअल नजरों से उन की ओर देखते हुए बोले, ‘‘अब कंट्रोल नहीं होता, बोलो, हां है न.’’

बसंत की प्यारभरी मदहोश कर देने वाली नजरों में मानो वे खो सी गईं और खुद को बसंत को सौंपने से रोक ही नहीं पाईं. बसंत ने उन्हें 2 प्यारे और खूबसूरत से बच्चे दिए. बेटी रूपा और बेटा रूपेश. उन्हें अच्छी तरह याद है जैसे ही रूपा बड़ी होने लगी, वे रूपा को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देती थीं. दोनों बच्चों के साथ बसंत और उन्होंने ऐसा दोस्ताना रिश्ता कायम किया था कि बच्चे अपनी हर छोटीबड़ी बात मातापिता से ही शेयर करते थे.

वे चारों आपस में मातापिता कम दोस्त ज्यादा थे. बेटी रूपा जैसे ही 7-8 वर्ष की हुई, उन्होंने उसे अच्छीबुरी भावनाओं, स्पर्श और नजरों का फर्क भलीभांति समझाया. ताकि उस के जीवन में कभी कोई रात काली न हो. सोचतेसोचते कब आंख लग गई, उन्हें पता ही नहीं चला. सुबह आंख देर से खुली तो देखा कि सभी केरवा डैम जाने की तैयारी में थे. वे भी फटाफट तैयार हो कर औफिस के लिए निकल लीं. अगले दिन रश्मि की दीदी का सुबह की ट्रेन से जाने का प्रोग्राम था. 3 दिन कैसे हंसीखुशी में बीत गए, पता ही नहीं चला.

कटी पतंग: बुशरा की डायरी में क्या था लिखा

लेखिका- दिव्या शर्मा

बिस्तर पर एक औरत की लाश पड़ी थी. इंस्पैक्टर ने कमरे का जायजा लेना शुरू किया. कमरे में एक छोटी सी खिड़की थी, जिस पर एक मोटा परदा डला था.

इंस्पैक्टर लाश के नजदीक पहुंच कर ठिठक गई. बैड के पास एक डायरी गिरी हुई थी. उस ने कौंस्टेबल को इशारा कर डायरी अपने पास मंगवाई और पन्ने पलटने लगी. उन पन्नों में लिखी कहानी इंस्पैक्टर की आंखों के सामने चलचित्र की तरह चलनी लगी…

“1जनवरी, 2007

“थैंक यू अब्बू… इस सुंदर डायरी के लिए.

“बुशरा मलिक,

मकान नंबर 10, करीमगंज.”

“3 जनवरी, 2007

“ठीक तो कहता है फैजल कि मैं खूबसूरत हूं, मुझे फिल्मों में होना चाहिए. आज उस की बात सुन कर पहली बार इतने गौर से खुद को आईने में निहारा.

“सुन डायरी, तू तो मेरी दोस्त है ना…इसलिए तुझे आज अपने दिल की बात बताती हूं. फैजल मुझे बेइंतहा मोहब्बत करता है लेकिन बताता नहीं. सब जानती हूं मैं. मुझे जलाने के लिए रूखसाना से बातें करता रहता है जैसेकि मैं सच में जलूंगी…

“मुझे तो मुंबई जाना है. मौका देख कर अब्बू से बात करूंगी लेकिन तब तक यह बात अपने दिल में छिपाए रखना, समझ गई ना…

“चल अब सोती हूं.”

“5 जनवरी,2007

“अब्बू ने आज मुझे बहुत डांटा. बस, इतना ही तो कहा था कि मुझे औडिशन देना है मौडलिंग के लिए. अब्बू कहते हैं कि यह काम शरीफ घरानों की लड़कियों के लिए नहीं है. अब्बू यह क्या बात हुई भला, आप इतने पढेलिखे हैं फिर भी ऐसी बातें करते हैं? आप तो बिलकुल दकियानूसी नहीं थे.

“मैं एक दिन मुंबई जरूर जाऊंगी और देखना, अब्बू आप को अपनी बुशरा पर नाज होगा.”

“10जनवरी, 2007

“आज जन्मदिन है मेरा. अब्बू ने मुझे सोने के झुमके दिए हैं तोहफे में. बहुत प्यार करते हैं मुझे अब्बू. फैजल ने मेकअप बौक्स दिया है. मगर छिपा लिया मैं ने. कोई देख लेता तो तुफान आ जाता.”

“14फरवरी, 2007

“तूझे पता है कि आज फैजल ने मुझे आई लव यू कहा. मुझे बहुत शर्म आई. 4 महीने हो गए हैं फैजल को हमारे शहर में नौकरी करते. बता रहा था कि मुंबई में घर है उस का. मुझ से कहता है कि मुझे हीरोइन बनाएगा, चाहे कुछ भी करना पड़े.

“कह रहा था कि तुम्हारे लिए खुद को भी गिरवी रख दूंगा लेकिन तुम्हारा ख्वाब जरूर पूरा करूंगा…पागल है सच में. ऐसे भी कोई इश्क करता है क्या?”

“20 मार्च, 2007

“आज फिर अम्मी से बात करने की कोशिश की कि अब्बू को समझाए. लेकिन मेरी बात तो हिमाकत लगती है सब को. कह रही थीं कि 19 साल की हो गई हो अब निकाह कर के रूखसत कर देंगी घर से.

“मेरी ख्वाहिश, मेरे अरमानों की फिक्र बस फैजल को है. बेइंतहा मोहब्बत करता है मुझ से. मेरी आंखों में जानें क्या ढूंढ़ते रहता है…बावला है पूरा.

“देख, तुझे बता रही हूं अपने दिल का हाल, लेकिन तू किसी को न कहना.

अब तू भी सो जा. कल फिर तुझ पर मेरी कलम मेरा हाल लिखेगी…”

“5 अप्रैल, 2007

“कल फैजल मुंबई जा रहा है और मैं भी उस के साथ ही चली जाऊंगी. जब सपनों को पूरा कर लूंगी तभी लौट कर आऊंगी. थोड़े से गहने रख लिए हैं साथ में. जरूरत पड़ गई तो बेचारा फैजल कितना करेगा?

“क्या कहा, यह गलत है? अरे, यह गहने अम्मी के नहीं हैं. मेरे निकाह के लिए ही तो बनवाए हैं अम्मी ने. तो इन पर मेरा हक हुआ न…और फिर एक बार हीरोइन बन गई तो ऐसे कितने ही गहने खरीदवा दूंगी अम्मी को…हाय, आज की रात न जाने कैसे बीतेगी.

“तू बहुत बातें करती है डायरी. मुझे भी उलझा देती है नामुराद. चल अब सोती हूं, कल बहुत तैयारी करनी है.”

“10 जनवरी, 2008

“बहुत दिनों बाद तुझे उठा रही हूं डायरी. क्या करती, हिम्मत न थी इन नापाक हाथों से तुझे हाथ लगाने की.

अब्बू बहुत मोहब्बत से मेरे लिए लाए थे तुझे. “आज तुझे सीने से लगाया तो लगा कि अब्बू करीब हैं. मैं मुंबई आ कर अपने अब्बू की बुशरा न रही. अब रोज नए किरदार में खुद को ढालती हूं. रोज बिछती हूं, रोज सिकुड़ती हूं. मरना चाहती हूं लेकिन एक बार अपने अम्मीअब्बू को देख लूं बस.

“किसी तरह मुझे मौका मिल जाए यहां से निकलने का. हीरोइन बनने आई थी लेकिन मालूम न था यह ख्वाहिश मुझे यों तबाह कर देगी. सीने में दर्द उठ रहा है लेकिन तुझ से भी न कहूंगी. यह तो मुझे ही सहना होगा.”

“6 फरवरी, 2008

“जल्दी वापस चली जाऊंगी अपने शहर. एक बार जीभर देख लूं सब को. बस एक बार. फिर तो मर जाऊंगी. 10 बज रहे हैं और मैं यहां अकेली… थकी हुई. आज अगर घर में होती तो अम्मी की गोद में सिर रख कर लेटी होती. अब्बू की लाई कुल्फी खा रही होती लेकिन अब…”

“14 मार्च, 2008

“आज लौट आई हूं वापस अपने शहर लेकिन घर नहीं जा सकती. क्या मुंह दिखाऊंगी किसी को? कैसे कर सकूंगी अब्बू का सामना? कैसे कहूंगी कि आप की बुशरा सब खो चुकी है उस शहर में…

“कैसे कहूं कि फैजल ने नोच दी आप के घर की आबरू. वह बेच गया मुझे मंडी में. बन गई मैं धंधेवाली. नीलाम कर दी बुशरा ने आप की इज्जत. अब तो बस मरने का इंतजार है. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“20 जून, 2008

“अखबार में आज अपनी गुमशुदगी की खबर पढी. 1 साल से अधिक हो गए मुझे घर छोड़े लेकिन वे आज भी मुझे याद करते हैं.

“मन करता है जा कर अम्मी के गले लग जाऊं. अब्बू के कदमों में बैठ कर रो लूं. लेकिन नहीं कर सकती ऐसा. मेरे गुनाह इतने छोटे नहीं. मैं इन्हीं अंधेरे में सही हूं. कम से कम मुझे ढूंढ़ तो ना पाएंगे

“मैं अपनी नापाक शरीर ले कर आप के पास नहीं आ सकती, अब्बू. अकेली बैठी हूं इस छोटे से कमरे में. दम घुटता है मेरा यहां. क्या बनना चाहा और क्या बन गई मैं…

“जिस्म से रोज कपड़े उतरते हैं, रोज आदमी बदलते हैं लेकिन मैं तो वही रहती हूं बेशर्म की पुतली बुशरा. कीड़े रेंगते हैं मेरे जिस्म पर. घिनौनी हो गई हूं मैं. क्यों जिंदा हूं? काश कि मौत आ जाए मुझे…”

“20 जुलाई, 2008

“जी न माना तो चली गई आज चुपचाप अब्बू की दुकान पर. बस दूर से देख आई उन्हें. उन की आंखों में दर्द था…

“कितना नाज था उन्हें मुझ पर लेकिन मैं ने… मैं उन से नजरें नहीं मिला सकती.

“काश कि कुदरत मेरे गुनाहों को माफ कर दे, मेरे अब्बू के चेहरे पर हंसी खिला दे. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“8 सितंबर, 2008

“दुल्हा बना कितना सुंदर लग रहा था मेरा भाई. मन कर रहा था झूम कर नाचूं…लेकिन…बस दूर से ही देख सकी मैं.

“आज अम्मी ने हरा लिबास पहना था. वैसा ही लिबास जैसा मुझे पसंद है. पर वे बुझी हुई लग रही थीं…वे मुझे भूली नहीं.

“बस एक बार भाभी का चेहरा देख पाती लेकिन यह नापाक साया उन पर नहीं डाल सकती. मैं रो रही हूं अब्बू. मुझे ले जाओ यहां से.

“अम्मी मुझे माफ कर दो. मुझे पनाह दे दो अम्मी…

“यह मैं क्या कह रही हूं? नहीं… नहीं… मुझे मरना होगा. अपनी गंदगी का साया अपने घर पर न डालूंगी. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“6 अक्तूबर, 2008

“बुखार से बदन तप रहा है लेकिन मुझ से ज्यादा तपन इन भूखों के शरीर में लगी है. इस शरीर से बेइंतहा मोहब्बत थी मुझे, इस पर गुरूर कर फैजल पर यकीन किया था… लेकिन अब… अब नफरत हो गई… कुदरत अब किसी और बुशरा को उस कमीने के चंगुल में न फंसने देना.

“अब्बू, आप की बुशरा से गुनाह हो गया… मुझे माफ कर दो अब्बू…आप सही कहते थे कि मुंबई बहुत गंदा शहर है. काश, मौत आ जाए मुझे…”

“10 अक्तूबर, 2008

“अपने इस जिस्म पर गुमान कर घर से निकल गई थी… देखो अब्बू… आप की बुशरा इलाज से भी महरूम है. मेरी छींक पर भी बेचैन हो उठते थे आप और आज कैसी गलीच जिंदगी जी रही हूं मैं… काश, मुझे मौत आ जाए…”

“15 अक्तूबर, 2008

“हिम्मत नहीं बची है अब. मौत करीब लग रही है. आज मैं मर जाऊंगी. कुदरत का बुलावा आ गया है. लेकिन मेरे बारे में मेरे परिवार को पता न चले. उन्हें पता न चले कि अब्बू की बुशरा अब धंधेवाली…

“काश, कोई इस जिस्म को लावारिस समझ खाक में मिला दे…”

उस के मासूम चेहरे पर अब भी नजामत दिख रही थी, भले ही प्राण नहीं था शरीर में. इंस्पैक्टर को आंखों में कुछ नमी सी महसूस हुई. डायरी को बंद कर उस ने एक ठंडी सांस ली और फिर मोहब्बत की शिकार ख्वाब देखने वाली बुशरा के मरे जिस्म को उस ने लवारिस लाश में शामिल कर दिया.

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