शादी की रस्में चढ़ावे का फेरा

शादी की रस्मों में चढ़ावे की शुरुआत लड़कालड़की की कुंडली मिलान से शुरू होती है. पहले लड़कालड़की तलाशने का काम पंडित करते थे. अब यह काम घर वालों को खुद करना होता है. चढ़ावे की रकम जजमान की हैसियत से तय होती है. इस के बाद भी हर रस्म में कम से कम चढ़ावा अब ₹11 सौ से शुरू होता है.

औसतन यह ₹51 सौ होता है. कुंडली मिलाने के बाद शादी की तारीख निकाली जाती है. इस में भी ₹11 से ₹51 सौ का चढ़ावा चढ़ता है. गोदभराई, इंगेजमेंट में ₹51 सौ से कम कोई पंडित चढ़ावा नहीं लेता है. इस के बाद तिलक और जनेऊ संस्कार होता है. यहां भी ₹51 सौ से कम चढ़ावा नहीं चढ़ता है. कथा में तमाम दूसरे लोग भी पैसे चढ़ाते हैं. ये पैसे भी पंडित के खाते में ही जाते हैं.

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शादी के दिन द्वारपूजा की रस्म में कम से कम ₹51 सौ के चड़ावा से शुरुआत होती है. इस के बाद फेरे कराने की सब से प्रमुख रस्म होती है. यहां मामला ₹11 हजार पर पहुंच जाता है. शादी के बाद विदाई के समय भी ₹51 सौ से विदाई होती है.

शादी में चढ़ावे की रस्म में सब से प्रमुख बात यह होती है कि चढ़ावा लड़का और लड़की दोनों पक्षों के पंडित लेते हैं. इस में भी लड़के वाले को दोगुना देना होता है. इस का अर्थ यह है कि अगर लड़की वाला किसी रस्म में ₹सौ दक्षिणा चढ़ाता है तो लड़के वाले को 2 सौ रुपए चढ़ाने होते हैं.

ऐसे में अगर लड़के वाले पर चढ़ावे का बो झ डबल हो जाता है. एक शादी में औसतन ₹20 हजार का चढ़ावा एक पंडित को देना पड़ता है. शादी के बाद लड़की के पहली बार गर्भवती होने और बच्चे के जन्म संस्कार के साथ दूसरे रीतिरिवाज फिर से शुरू हो जाते हैं.

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