बौलीवुड में रहा ऐंटी हीरोज का बोलबाला

हिंदी फिल्मों में एक हीरो की छवि अच्छे इंसान की होती है. फिल्मी इतिहास गवाह है कि फिल्म का हीरो बेहद अच्छा, रिश्तों को निभाने वाला, पौजिटिव, 10 गुंडों को अकेला पीटने वाला, दर्शकों का चहेता होता है और यही दर्शकों का प्यारा हीरो जब गुंडों से मार खाता है तो उस हीरो को प्यार करने वाले दर्शक अपने पसंदीदा हीरो को मार खाते हुए भी नहीं देख पाते. दर्शकों का प्यार ही होता है जो एक हीरो को सुपरस्टार के सफर तक ले जाता है.

लेकिन यही स्टार जिस में अपने अभिनय के जरीए कुछ अलग कर दिखाने की लालसा होती है तो वह अपनी इमेज से बाहर निकल कर खलनायक अर्थात ऐंटी हीरो बन कर भी दर्शकों को लुभाने आ जाता है.

अपने फैवरिट हीरो को खलनायक के रूप में देख कर भी दर्शक उस से नफरत नहीं कर पाते बल्कि एक ऐक्टर के तौर पर अलग तरह का किरदार निभाने के लिए उसे दर्शकों का और ज्यादा प्यार मिलने लगता है. जैसेकि हाल ही में प्रदर्शित रणबीर कपूर और बौबी देओल द्वारा अभिनीत फिल्म ‘ऐनिमल’ में दोनों ही हीरो नैगेटिव भूमिका में थे बावजूद इस के दर्शकों ने बतौर ऐंटी हीरो न सिर्फ रणबीर और बौबी को पसंद किया बल्कि इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर सफलता के सारे रिकौर्ड भी तोड़ दिए.

इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि सच्चा कलाकार वही होता है जो किरदारों में विभिन्नता पेश करे. आज के दौर में कलाकारों में अच्छा किरदार निभाने की होड़ के चलते ज्यादातर हीरोज इमेज की कैद से बाहर निकल गए हैं और अलग तरह का किरदार निभाने के लिए नायक से खलनायक बनने को भी तैयार हैं. जैसेकि शाहरुख खान, संजय दत्त, बौबी देओल, रणबीर कपूर, रणवीर सिंह आदि कई ऐसे ऐक्टर हैं जिन्होंने नायक से खलनायक बन कर ढेर सारी लोकप्रियता बटोरी है.

पेश है, इसी पर खास नजर:

खलनायक का बोलबाला

अमिताभ बच्चन, संजय दत्त से ले कर शाहरुख खान, रणवीर सिंह, अक्षय कुमार तक ऐंटी हीरो की भूमिका निभाने के आकर्षण से कोई नहीं बच पाया.

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि हीरो का किरदार निभाने में जितना मजा आता है उस से कहीं ज्यादा नैगेटिव किरदार निभाने में मजा आता है. इस के पीछे खास वजह यह है कि ऐंटी हीरो या विलेन के किरदार में ऐक्टर को अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का ज्यादा मौका मिलता है जैसेकि अमिताभ बच्चन ने फिल्म ‘डौन’ और ‘सत्ते पर सत्ता,’ ‘अग्निपथ’ फिल्मों में नैगेटिव किरदार निभा कर लोकप्रियता हासिल की थी.

शाहरुख का डर

इसी तरह जब शाहरुख खान ने बतौर ऐंटी हीरो फिल्म ‘बाजीगर’ में अपनी ही हीरोइन को छत से नीचे फेंक कर मौत के घाट उतार दिया था तो लोगों के मुंह से चीख निकल गई थी. शाहरुख खान यहीं नहीं रुके. उन्होंने फिल्म ‘डर’ में बतौर एंटी हीरो जहां जूही चावला को डराया, वही ‘अंजाम’ फिल्म में बतौर एंटी हीरो माधुरी दीक्षित को खून के आसू रुला दिया था. संजय दत्त फिल्म ‘खलनायक’ में नायक से खलनायक बन कर आए तो दर्शकों ने उन के इस रूप को भी बहुत पसंद किया. इस फिल्म के बाद संजय दत्त ने फिल्म ‘अग्निपथ’ में कांचा चीना का किरदार निभाया था जो आज भी लोगों के जेहन में है.

हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘के जी एफ 2’ में भी संजय दत्त खतरनाक विलेन की भूमिका में नजर आए. संजय दत्त की तरह अक्षय कुमार भी ‘2.0,’ ‘बच्चन पांडे,’ ‘ब्लू,’ ‘खिलाड़ी 420’ ‘अजनबी’ में ऐंटी हीरो की भूमिका में नजर आ चुके हैं. इसी तरह रणवीर सिंह बतौर खिलजी ‘पद्मावत’ फिल्म में, मनोज बाजपेई ‘सत्या’ और ‘बैंडिट क्वीन’ में, सैफ अली खान ‘ओमकारा,’ ‘आदि पुरुष,’ शाहिद कपूर फिल्म ‘कमीने’ में, विवेक ओबेराय ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ में. अजय देवगन फिल्म ‘खाकी,’ ‘कंपनी,’ ‘काल,’ में वरुण धवन ‘बदलापुर’ में, नवाजुद्दीन सिद्दीकी ‘गैंग्स औफ वासेपुर,’ ‘किक,’ ‘साइको रमन,’ ‘हीरोपंती 2’ में, जौन अब्राहम ‘धूम’ और ‘पठान,’ अर्जुन रामपाल ‘धाकड़’ में नैगेटिव किरदार निभा चुके हैं.

दर्शकों की तालियां

कहने का तात्पर्य यह है कि बौलीवुड के ज्यादातर नामीगिरामी ऐक्टरों ने ऐंटीहीरो की नैगेटिव भूमिका निभाई है.

ऐसे में कहना गलत न होगा कि जिस तरह बुराई के बिना अच्छाई को कोई नहीं पहचान सकता उसी तरह किसी भी फिल्म में विलेन के बिना हीरो की कोई अहमियत नहीं है क्योंकि जब बुराई होगी तभी तो अच्छाई का पता चलेगा. जब विलेन को गालियां मिलेंगी तभी तो हीरो को तालियां मिलेंगी.

आने वाली फिल्मों में

सनी देओल जहां फिल्म ‘कसाई’ में नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे वहीं रणबीर कपूर द्वारा अभिनीत ‘रामायण’ फिल्म में साउथ ऐक्टर यश रावण के नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे.

सूत्रों के अनुसार रितिक रोशन ‘ब्रह्मास्त्र पार्ट 2’ में नैगेटिव किरदार देवा के रूप में नजर आएंगे. बौबी देओल आने वाली साउथ फिल्म जो हिंदी में भी बनेगी ‘हरा हरण बीरा मल्लू’ में विलेन के किरदार में नजर आएंगे.

इस फिल्म के साथसाथ साउथ की एक और फिल्म ‘कनबूबा’ है जो एक पीरियड फिल्म है इस फिल्म में भी बौबी देओल नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे. संजय दत्त फिल्म ‘द वर्जनत्री’ में विलेन के किरदार में नजर आएंगे. ‘एनिमल पार्क पार्ट 2’ में ‘ऐनिमल’ के ही विलेन रणबीर कपूर नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे. सैफ अली खान भी फिल्म ‘देवारा’ में नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे. हीरो अर्जुन कपूर भी ‘सिंघम अगेन’ में नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे. मोहित सूरी के डाइरैक्शन में बनी फिल्म ‘साइको’ में अक्षय कुमार नैगेटिव किरदार में नजर आएंगे.   –

अब नहीं बनेगी टाइगर वर्सेस पठान

12 नवंबर,दीवाली के दिन आदित्य चोपड़ा ने अपने प्रोडक्शन हाउस ‘यशराज फिल्मस’ के बैनर तले बनी ‘स्पाई युनिवर्स’ की फिल्म ‘‘टाइगर 3’’ को पूरे विश्व के सिनेमाघरों में प्रदर्शित की थी.फिल्म देखने के बाद दर्शकों को बड़ी निराशा हुई थी. फिल्म ‘टाइगर 3’ में भारतीय लोकतंत्र को बचाने की बात करने की बजाय टाइगर पाकिस्तानी आईएसआई एजंसी के साथ मिलकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की सुरक्षा की लड़ाई लड़ते हैं.फिल्म में बेसिर पैर की कहानी है. आदित्य चोपड़ा को अहसास था कि उनकी यह फिल्म लोगों को पसंद नहीं आएगी.इसी के चलते यशराज फिल्मस ने अपनी प्रथा को तोड़ते हुए फिल्म का प्रेस शो आयोजित करने की बजाय हर पत्रकार को ‘बुक माई शो’ का वाउचर भेजा था.इसके अलावा ‘बल्क बुकिंग’ और ‘कारपोरेट बुकिंग’ कर दर्शकों तक मुफ्त में फिल्म देखने के लिए टिकटें पहुॅचायी गयीं.लेकिन फिल्म को दर्शक नहीं मिल रहे थे.तब फिल्म के प्रदर्शन के दस दिन बाद सलमान खान ने भी पत्रकारों को ग्रुप इंटरव्यू दिया,जिसमें सिर्फ ‘टाइगर 3’ का ही गुणगान किया.फिल्म के प्रदर्शन के साथ ही पूरी पी आर मशीनरी ‘टाइगर 3’ को अति सफलतम फिल्म साबित करने में जुट गयी थी.सभी ‘समोसा क्रीटिक्स’ भी जमकर इस फिल्म के पक्ष में माहौल बनाने के लिए ताकत लगा दी। हर दिन बाक्स आफिस के गलत आंकड़े पेश किए गए.

मगर अफसोस साढ़े तीन सौ करोड़ की लागत में मनीष शर्मा के निर्देषन में बनी फिल्म ‘‘टाइगर 3’’ अपने प्रदर्शन के 19 दिन बाद भी अपनी लागत वसूल नही कर पायी.यदि हम ‘यशराज फिल्मस’ के ही आंकड़ों पर यकीन करें,तो यह फिल्म अब तक लगभग 280 करोड़ ही कमा सकी है.सभी जानते हैं कि इसमें से कई तरह के खर्च और जीएसटी  आदि निकालने के बाद निर्माता के हिस्से बामुश्किल 15 से बीस प्रतिशत की ही रकम आती है.यानी कि ‘टाइगर 3’ बाक्स आफिस पर बुरी तरह से असफल हो चुकी है.और ‘यशराज फिल्मस’ को कई सौ करोड़ का नुकसान हो चुका है.मगर अभी भी यशराज फिल्मस खुलकर कबूल करन को तैयार नही है कि उसे ‘टाइगर 3’ में भी नुकसान हुआ.

लेकिन यशराज फिल्मस ने एक बड़ा कदम उठाते हुए मार्च 2024 में फिल्म ‘‘टाइगर वर्सेस पठान’ की जो शूटिंग शुरू होने वाली थी,उसे  रद्द करते हुए ऐलान किया है कि इस फिल्म की शूटिंग 2024 में नही होगी.ज्ञातब्य है कि इस फिल्म में शाहरुख खान के साथ सलमान खान अभिनय करने वाले थे.यह दोनों कलाकार घर पर खाली बैठे हुए हैं.यह भी ‘स्पाई युनिवर्स’ की ही अगली फिल्म है.पर सूत्रों पर यकीन किया जाए तो, 2024 क्या,अब यह फिल्म कभी नही बनेगी.

हम यहां याद दिला दें कि  ‘टाइगर 3’ सीरीज की ही 2017 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा है’’ ने  लगभग 340 करोड़ कमाए थे.पर ‘टाइगर 3’ तो वहां तक भी नही पहुॅच पायी है. इतना ही नहीं इसी सीरीज की पहली फिल्म ‘‘एक था टाइगर’’,जो कि 15 अगस्त 2012को प्रदर्शित हुई थी. 75 करोड़ की लागत वाली इस फिल्म ने 335 करोड़ कमाए थे. अब इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ‘‘टाइगर 3’’ कितनी बुरी तरह से असफल हुई है. यह हालत तब है जब ‘यशराज फिल्मस’ ‘टाइगर 3’ बाक्स आफिस के आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर बता रहा है.

फिल्म समीक्षाः ‘‘पठान: बेहतरीन एक्शन, बेहतरीन लोकेशन,बाकी सब शून्य…’’

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माता: आदित्य चोपड़ा

पटकथा लेखक: श्रीधर राघवन

निर्देषक: सिद्धार्थ आनंद

कलाकार: ष्षाहरुख खान,जौन अब्राहम,दीपिका पादुकोण, आषुतोष राणा,डिंपल कापड़िया, सिद्धांत घेगड़मल,गौतम रोडे,गेवी चहल,षाजी चैहान, दिगंत हजारिका, सलमान खान व अन्य.

अवधि: दो घंटे 26 मिनट

‘ये इश्क नही आसान’, ‘दुनिया मेरी जेब में’,‘शहंशाह ’ जैसी फिल्मों के निर्माता बिट्टू आनंद के बेटे सिद्धार्थ आनंद ने बतौर निर्देषक फिल्म ‘‘सलाम नमस्ते’’ से कैरियर की षुरूआत की थी.उसके बाद उन्होने ‘तारा रम पम’,‘बचना ऐ हसीनों’,‘अनजाना अनजानी’,‘बैंग बैंग’ और ‘वाॅर’ जैसी फिल्मंे निर्देषित कर चुके हैं.सिद्धार्थ आनंद निर्देषित पिछली फिल्म ‘‘वार’’ 2019 में रिलीज हुई थी,जो कि आदित्य चोपड़ा निर्मित ‘वायआरएफ स्पाई युनिवर्स’ की तीसरी फिल्म थी.और लगभग साढ़े तीन वर्ष बाद  बतौर निर्देषक सिद्धार्थ आनंद नई फिल्म ‘‘पठान’’ लेकर आए हैं, जिसका निर्माण ‘यषराज फिल्मस’ के बैनर तले आदित्य चोपड़ा ने किया है. फिल्म ‘पठान’,‘वायआरएफ स्पाई युनिवर्स’ की चैथी फिल्म है.फिल्म ‘पठान’ पर ‘यषराज फिल्मस’के साथ ही इसके मुख्य अभिनेता षाहरुख खान ने भी काफी उम्मीदें लगा रखी हैं.2022 में ‘यषराज फिल्मस’ की सभी फिल्में बुरी तरह से असफल हो चुकी हैं.जबकि षाहरुख खान की पिछली फिल्म ‘‘जीरो’’ 2018 में प्रदर्षित हुई थी,जिसने बाक्स आफिस पर पानी तक नहीं मांगा था.फिल्म ‘पठान’ को तमिल व तेलगू में भी डब करके प्रदर्षित किया गया है.‘यषराज फिल्मस’ की यह पहली फिल्म है,जिसे आईमैक्स कैमरों के साथ फिल्माया गया है.

dipika

‘यषराज फिल्मस’ ने फिल्म ‘पठान’ का जब पहला गाना अपने यूट्यूब चैनल पर रिलीज किया था,उस वक्त से ही वह गाना और  फिल्म विवादों में रही है.उस वक्त बौयकौट गैंग ने दीपिका पादुकोण की भगवा रंग की बिकनी को लेकर आपत्ति दर्ज करायी थी.पर अफसोस की बात यह है कि फिल्म ‘पठान’ में भगवा रंग कुछ ज्यादा ही फैला है.फिल्म देखकर दर्षक की समझ में ेआता है कि भगवा रंग तो ‘आईएसआई’ के एजंटांे को भी हिंदुस्तान की तरफ खीच लेता है.

कहानीः

एक्षन प्रधान,देषभक्ति व जासूसी फिल्म ‘‘पठान’’ की कहानी के केंद्र में राॅ एजेंट फिरोज पठान (षाहरुख खान) और पूर्व ‘राॅ’ अफसर जिम्मी (जौन अब्राहम) और पाकिस्तानी खुफिया एजंसी की जासूस डाॅ. रूबैया मोहसीन (दीपिका पादुकोण) और पाकिस्तानी आईएसआई जरनल हैं.फिल्म की षुरूआत 5 अगस्त 2019 से होती है,जब कष्मीर से धारा 370 हटाए जाने की खबर से बौखलाया हुआ पाकिस्तानी सेना का जनरल अपनी मनमानी करते हुए पूर भारत को नेस्तानाबूद करने का सौदा जिम्मी से करता है. जिम्मी दक्षिण अफ्रीका के खतरनाक हथियार विक्रताओं से हथियार खरीदने का सौदा करता है.जहां पर पठान घायलअवस्था में बंदी है.फिर कहानी तीन साल के बाद षुरू राॅ के आफिस से षुरू होती है.जब एक खुफिया पुलिस अफसर (सिद्धांत घेगड़मल),राॅ की अफसर नंदिनी को सूचना देता है कि पठान की तस्वीर नजर आयी है.अब नंदिनी उस अफसर के साथ पठान से मिलने निकलती है.विमान में बैठने के बाद वह पठान की कहानी बताती है कि राॅ प्रमुख कर्नल लूथरा ( आषुतोष राणा ) राॅ के हर एजेंट को कुछ समझता नही है.एक दिन खबर मिलती है कि दुबई में हो रहे वैज्ञानिकों के सम्मेलन में भारत के दो वैज्ञानिक भी होंगे तथा मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्पति है.कर्नल लूथरा भारत के राष्ट्पति की पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं.पठान अपनी टीम के साथ आतकंवादियों को पकड़ने की जिम्मेदारी लेता है.कर्नल लूथरा राष्ट्पति व वैज्ञानिकों अलग अलग राह पर भेज देते हैं.जिम्मी वैज्ञानिको के सामने आकर उन्हे अपने कब्जे मंेकर लेता है,पठान पहुॅचता है,पर जिम्मी के हाथों परास्त हो जाता है.उसके हाथ कुछ नही आता.यहीं पर जिम्मी की बातों से खुलासा होता है कि जिम्मी एक पूर्व राॅ अफसर है,जिसे सरकार ने मरने के लिए छोड़ दिया था.भारत सरकार के रिकार्ड मंे राॅ अफसर जिम्मी की मौत हो चुकी है और उसे षौर्य पदक से नवाजा जा चुका है.इसलिए अब जिम्मी भी भारत के खिलाफ है.अब वह पैसे के लिए पाकिस्तानी आईएसआई एजंसंी के जनरल के लिए काम करता है.फिर एक दिन पता चलता है कि लंदन में डांॅ रूबया के एकाउंट से बहुत बड़ी रकम जिम्मी को ट्ांसफर हुई है. पठान जानकारी निकाल कर स्पेन पहुॅचता है?जहां पता चलता है कि उसे जिम्मी ने वहां बुलाने के ेलिए यह खबर राॅ तक भिजवायी थी.डाॅ रूबिया आईएसआई एजेट हैं और जिम्मी के साथ काम कर रही है.पर उसका दिल पठान पर आ जाता है,इसलिए वह जिम्मी के गुंडांे ेसे उसे बचाती है और फिर उसके ेसाथ मिलकर रक्तबीज लेने जाती है.रक्तबीज हाथ में आते ही डाॅ. रूबिया अपनी असलियत पा आ जाती है और पठान को बताती है कि उसने तो जिम्मी के कहने पर उसके ेसाथ यह नाटक किया क्योंकि रक्तबीज उसकी मदद के बिना पाना मुष्किल था.पठान को मौत के मंुहाने पर छोड़ देती है.रक्तबीज की मदद से जिम्मी रूस के एक षहर में बंदी बनाए गए भारतीय वैज्ञानिक से ऐसा वायरस बनवा रहा है जिसे छोड़ देने पर पूरे भारत के लोग ‘स्माल फाॅक्स’ की बीमारी से ग्रसित होकर एक सप्ताह के अंदर मौत के मंुह में समा जाएंगे.अब पठान की लड़ाई देष को बचाने के लिए जिम्मी से है.बीच में टाइगर (सलमान खान) भी पठान की मदद के लिए आ जाते हैं.अंततः  यह लड़ाई कई मोड़ांे से गुजरती है और नंदिनी सहित कई राॅ के अफसर व वैज्ञानिको की मौत के बाद जिम्मी की चाल असफल हो जाती है.पठान को अब नंदिनी की जगह बैठा दिया जाता है.

लेखन व निर्देषनः

फिल्म बहुत तेज गति से दौड़ती है,मगर पटकथा मंे काफी गड़बड़ियंा हैं. कहानी कब वर्तमान मंे और कब अतीत में चल रही है,पता ही नही चलता.पूरी फिल्म एक खास अजेंडे के तहत बनायी गयी है.फिल्म मेंपाकिसतानी एजेट रूबिया भगवा रंग के कपड़े व भगवा रंग की बिकनी पहनती है और अंततः भारत के पक्ष में कदम उठाती हैं.फिल्म में ंअफगानिस्तान को दोस्त बताया गया है.यानीकि ‘अखंड ’भारत का सपना साकार होने वाला है,षायद ऐसा फिल्मकार मानते हैं. फिल्म अजेंडे के तहत बनायी गयी है,इसका अहसास इस बात से होता है कि भारत को बर्बाद करने की जिम्मेदारी एक भारतीय राॅ एजंसी के एजेंट जिम्मी ने उठाया है.जिम्मी कहता है कि- ‘भारत माता’ ने उसे क्या दिया.भारत माता ने उसकी मां को मरवा दिया.उसके पिता को बम से उड़वा दिया.वगैरह वगैरह..इन संवादांे से जिसे जो अर्थ लगाने हो लगाए.पर देष के राजनीतिक घटनाक्रमों व घटनाओं को इन संवादांे सेे जोड़कर देखे,तो कुछ बातें साफ तौर पर समझ में आ सकती हैं कि फिल्मकार कहना क्या चाहता है? पर क्या इस तरह के संवाद व इस तरह के किरदार को फिल्म में प्रधानता देकर हमारी अपनी ‘राॅ’ के  कार्यरत लोगों का उत्साह खत्म नही कर रहे हैं? अब तक हमेषा यह होता रहा है कि जब भी फिल्मकार किसी अजेंडे के तहत फिल्म बनाता है तो फिल्म की कहानी व उसकी अंतर आत्मा गायब हो जाती है. इसलिए फिल्म देखना दुष्कर हो जाता है.फिल्म में एक्यान दृष्य बहुत अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं. एक्षन के षौकीन इंज्वाॅय कर सकते हैं.फिल्म में कुछ खूबसूरत लोकेषन हैं.तो वहीं कई दृष्य देखकर फिल्मकार व लेखक की सोच पर तरस आता है.मसलन-विमान के ऐसी डक के अंदर ‘वायरस’ रक्तबीज है.राॅ अफसर विमान के पायलट को उसके नाम से फोन कर कहते है कि वह देखे.पायलट एसी डक मंे वायरस रक्तबीज के होने की पुष्टि करता है.पर पायलट के चेहरे पर या विमान यात्रियों के चेहरे पर कोई भय नजर नही आता.फिर कर्नल लूथरा आदेष देते हैं कि विमान को दिल्ली षहर से बाहर ले जाओ और पूरे विमान को गिरा दो.जबकि ‘एटीसी’ कंट्ोलर ही विमान के पायलट से फ्लाइट का नाम लेकर बात करता है.राॅ अफसर कर्नल लूथरा मिसाइल से विमान को गिराने का आदेष देते है,मिसाइल छूटने के बाद उसका रास्ता भी मुड़वा देेते हैं.यानीकि बेवकूफी की घटनाए भरी पड़ी हैं.फिल्म के अंत में प्रमोषन गाने के ेबाद पठान(षाहरुख खान  )और टाइगर (सलमान खान)एक साथ रूस में उसी टूटे हुए पुल पर नजर आते हैं, और कहते है कि अब हमने बहुत कर लिया.अब दूसरो को करने देते हैंफिर किसे दे,यह काम का नहीख्,यह बेकार है.अंत में कहते है कि हमें ही यह सब करना पड़ेगा,हम बच्चों के हाथ में नही सौंप सकते.अब इस दृष्य की जरुरत व मायने हर दर्षक अपने अपने हिसाब से निकालेगा..फिर विरोध होना स्वाभाविक है.रूस में बर्फ के उपर के एक्षन दृष्य अतिबचकाने व मोबाइल गेम की तरह नजर आते हैं.

संवाद लेखक अब्बास टायरवाला के कुछ संवाद अति सतही हैं.

कैमरामैन बेजामिन जस्पेर ने बेहतरीन काम किया है.पर संगीतकार विषाल षेखर निराष करते हैं.

अभिनयः

पठान के किरदार में षाहरुख खान नही जमे.एक्षन दृष्यों में बहुत षिथिल नजर आते हैं.उनके ेचेहरे पर भी उम्र झलकती है.जिम्मी

के किरदार में जौन अब्राहम को माफ किया जा सकता है क्योंकि वह पहले ही कह चुके हैं कि उनके किरदार के साथ और उनके साथ न्याय नही हुआ.पाकिस्तानी एजेंट रूबैया के किरदार में दीपिका पादुकोण के हिस्से कुछ एक्षन दृष्यों के अलावा सिर्फ जिस्म की नुमाइष करना व खूबसूरत लगने के अलावा कुछ आया ही नही.खूफिया एजेंट होते हुए जब आप किसी को फंसा रही है,तो उस वक्त जो चेहरे पर कुटिल भाव होने चाहिए,वह दीपिका के चेहरे पर नही आते.डिंपल कापड़िया,प्रकाष बेलावड़े व आषुतोष राणा की प्रतिभा को जाया किया गया है.

शाहरूख खान की “पठान” और नेताओं की नौटंकी

शाहरूख खान की बहुप्रतीक्षित फिल्म पठान आते आते ही बहुचर्चित हो गई है. मगर पठान फिल्म के मद्देनजर देश का माहौल विषाक्त करने का अपराधी कौन है यह जानना समझना जागरूक व्यक्ति के लिए जरूरी है . सच तो यह है कि किसी वस्त्र के रंग पर जिस तरह आलोचना और गरमा गरमी का माहौल देश में बनाया गया है वह कई संदेहों को पैदा करता है और बताता है कि आज भारतीय जनता पार्टी के सत्तासीन होने के बाद स्थितियां किस तरह असहिष्णु होती चली जा रही है. यह भी समझने की बात है कि सैकड़ों सालों से भारत में सभी जाति समुदाय के लोगों, धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं इसीलिए कहा भी गया है कि अनेकता में एकता भारत की विशेषता है. किसी भी सरकार अथवा राजनीतिक पार्टी को इस भावना को मजबूत करने का काम करना चाहिए लोगों में आपसी संबंध में सामंजस्य और शांति सद्भाव का संदेश देना चाहिए.

आज की कुछ एक राजनीतिक पार्टियां और उसकी इकाइयां देश का माहौल बिगाड़ने का काम कर रहे हैं जोकि सीधे-सीधे अवांछित लोगों का काम भी कहा जा सकता है.यहां यह भी सत्य है कि हाल ही में आमिर खान की भी एक फिल्म आई थी और भारतीय जनता पार्टी का दस्ता उसे मटिया मेट करने में लग गया और उनके सौभाग्य से यह फिल्म नहीं चली तो वे अपनी पीठ थपथपाने लगे यहां यह भी एक बड़ा सच है कि अगर पठान फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हो जाती है तो ऐसे लोगों के गाल पर एक करारी थप्पड़ कही जा सकती है. इससे यह भी सिद्ध हो सकता है कि हमारे देश में चाहे कुछ लोग कितना ही सामाजिक धार्मिक खाई खोदने का काम करें मगर देश की जनता आवाम आपसी सौहार्द के साथ रहते आई है और आगे भी रहेगी.

दरअसल,पठान फिल्म के गाने में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के भगवा कपड़े पहन एक फिल्मांकन पर नौटंकी की जा रही है . देश की आवाम को यह समझाया जा रहा जा रहा है कि यह सब शाहरुख खान की फिल्में में इसलिए है क्योंकि वह मुसलमान है इस तरह धर्म विशेष के प्रति असहिष्णुता का बीज बोया जा रहा है जो कि भारतीय संस्कृति और ताने-बाने के खिलाफ है.

नेताओं की तलवारबाजी

पठान फिल्म के आते ही देश के चिर परिचित नेताओं के मानो ज्ञान चक्षु खुल गए हैं और वह इस पर अपनी राय कुछ इस तरह दे रहे हैं मानो नेताजी जो कह देंगे वही अंतिम सत्य है.
दरअसल, ऐसे मसलों पर नेताओं के समाचार जो सुर्खियों में प्रकाशित होते हैं और चर्चा में आ जाते हैं की जगह बौद्धिक विभूतियों के बयान प्रकाशित होने चाहिए ताकि लोगों को एक प्रेरणा मिल सके और देश का माहौल सद्भाव पूर्ण हो जाए. मगर अब नेताओं में जुबानी जंग छिड़ी हुई है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि भगवा रंग त्याग का प्रतीक है. आज उसे बजरंगी गुंडे पहन रहे हैं. बताएं कि उन्होंने क्या त्याग किया है.‌ भुपेश बघेल ने कहा -“पहनना और धारण करना दोनों में अंतर है जब कोई समाज और परिवार को त्याग देता है, उसके बाद वो भगवा या गेरुआ रंग धारण करता है, लेकिन अब वे बताएंगे कि उन्होंने समाज के लिए क्या त्याग किया है .”

दूसरी तरफ हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने भूपेश बघेल को राक्षस तक कह दिया .छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बयान पर हरियाणा के गृह मंत्री मानो बौखला गए और उन्हें राक्षस प्रकृति का कह दिया. वे बोले हिंदू संस्कृति का अध्ययन करें , हर युग में देवता और राक्षस रहे हैं अनिल विज ने कहा कि मुझे लगता है भूपेश बघेल आज के राक्षस प्रकृति के महानुभाव हैं. दरअसल यह समझने वाली सच्चाई है कि चाहे भूपेश बघेल हो अनिल विज दोनों ही पठान फिल्म की मूवी के संदर्भ में आपस में वाक् युद्ध में लगे हुए हैं और यही स्थिति देशभर में नेताओं के बीच बनी हुई है एक तरफ है भगवा रंग में रंगे भाजपाई और दूसरी तरफ है कांग्रेस और अन्य दल के नेता.

REVIEW: आर माधवन का नया आयाम है ‘रॉकेट्रीः द नाम्बी इफेक्ट’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः सरिता माधवन, आर माधवन, वर्गीस मूलन और विजय मूलन

लेखक व निर्देशकः आर माधवन

कलाकारःआर माधवन,  सिमरन,  रजित कपूर, राजीव रवींद्रनाथन,  कार्तिक कुमार,  शाहरुख खान,  गुलशन ग्रोवर व अन्य

अवधिः दो घटे 37 मिनट

एनसीसी कैडेट के रूप में अच्छी प्रतिभा दिखाने के चलते चार वर्ष तक ब्रिटिश आर्मी से ट्रेनिंग लेकर फौजी बनकर लौटे आर माधवन को चार माह उम्र ज्यादा हो जाने के कारण भारतीय सेना का हिस्सा बनने से वंचित रह जाने के बाद आर माधन ने इंजीनियरिंरग की पढऋाई की. फिर वह स्पीकिंग स्किल व पर्सनालिटी डेवलवपेंट के प्रोफेसर बने. फिर टीवी सीरियलों में उन्हे अभिनय करने का अवसर मिला. टीवी पर 1800  एपीसोडों में अभिनय करने के बाद आर माधवन को मणि रत्नम ने तमिल फिल्म में रोमांटिक हीरो बना दिया और वह तमिल फिल्मों के सुपर स्टार बन गए. फिर कई तरह के किरदार निभाए. आनंद एल राय के निर्देशन में ‘तनु वेड्स मनु’ में अभिनय कर सिनेमा को एक नई दिशा देने का भी काम किया. फिर ‘साला खडूस’ का निर्माण किया और अब बतौर लेखक, निर्देशक व अभिनेता आर माधवन फिल्म ‘‘रॉकेट्रीः द नाम्बी इफेक्ट’’ लेकर आए हैं. आर माधवन हमेशा उन फिल्मों को हिस्सा बनने का प्रयास करते आए हैं, जो कि आम जीवन का प्रतिबिंब बने. आर माधवन की नई फिल्म ‘‘रॉकेट्रीः द नांबी इफेक्ट’ बहुत ही अलग तरह की फिल्म है. बौलीवुड के फिल्मकार इस तरह की फिल्में बनाने से दूर रहना पसंद करते हैं. यह एक विज्ञान व इसरो वैज्ञानिक फिल्म होते हुए भी भावनाओ से ओतप्रोत है.  इसकी कहानी भावपूर्ण है. दर्शक फिल्म के माध्यम से त्रिवेंद्रम निवासी इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायण के जीवन व कृतित्व से रूबरू होते हुए उनके साथ हुए अन्याय को भी महसूस करते हैं. फिल्म ‘रॉकेट्रीः द नांबी इफेक्ट’ न जुनूनी लोगों की दास्तां है, जो अपने घर व परिवार को हाशिए पर ढकेल कर काम में ही अपनी जिंदगी लगा देते हैं. मगर उनके अपने ही उनकी पीठ पर छूरा घोंप देते हैं.

इस फिल्म की गुणवत्ता का अहसास इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म को देखते हुए स्वयं महान वैज्ञानिक नंबी नारायण रो रहे थे.

कहानीः

फिल्म की कहानी इसरो के मशहूर वैज्ञानिक रहे नंबी नारायण की कहानी है. लिक्विड इंजन व क्रायजनिक इंजन बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है. वह विक्रम साराभाई के शिष्य रहे. बाद मंे अब्दुल कलाम आजाद व सतीश धवन के साथ भी काम किया. नारायणन ने नासा फैलोशिप अर्जित कर 1969 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया. वहां पर अपनी प्रतिभा के बल पर महज दस माह के रिकॉर्ड समय में प्रोफेसर लुइगी क्रोको के तहत रासायनिक रॉकेट प्रणोदन में अपनी थीसिस पूरी की. उसके बाद उन्हे नासा में नौकरी करने का आफर भी मिला था. मगर वह क्रायजिनक इंजन पर भारत में ही काम करने के मकसद से नासा का आफर ठुकरा कर भारत आ गए. यहां  इसरो की नौकरी करते हुए नम्बी नारायण ने विज्ञान जगत में कई अनोखे प्रयोग किए. उन्हेाने ‘विकास’ रॉकेट का इजाद किया. यह विकास इंजन ही इसरो से भेजे जाने वाले सभी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जा रहा है. 1992 में भारत ने क्रायोजेनिक ईंधन-आधारित इंजन विकसित करने के मकसद से चार इंजनों की खरीद का सौदा रूस के साथ किया था. मगर अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्लू बुश के दबाव में रूस ऐसा नही कर पा रहा था. तब नंबी नारायण के प्रयासों से  भारत ने दो मॉकअप के साथ चार क्रायोजेनिक इंजन बनाने के लिए रूस के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए. और अमरीकी सैनिकों की नजरों से बचाकर इन्हे भारत लाने में सफल हुए थे. मगर तभी 1994 में नंबी नारायण पर पाकिस्तान को रॉकेट साइंस तकनीक बेचने का आरोप लगा. उन्हे काफी यातनाएं दी गयीं. अंततः साल की अदालती लड़ाई के बाद उन्हे सारे आरोपों से बरी कर दिया गया. 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने नंबी नारायण को पद्मभू षण से सम्मानित किया. 24 वर्षों बाद उनकी गरिमा वापस लौटी, लेकिन अगर उन्हें इसरो में यह समय काम करने को मिला होता, तो शायद भारत रॉकेट साइंस में किसी अन्य मुकाम पर होता.

मगर हमारे भारत देश में अक्सर जीनियस या यूं कहें कि अति बुद्धिमान लोगों के साथ राजनीति के तहत या अन्य वजहों से ऐसी बदसलूकी हो जाती है और ऐसे लोगों के बारे में कहीं कोई सुध नही लेता है और उन्हे लंबे वक्त तक निर्दोष होते हुए भी तमाम पीड़ाओं से गुजरना पड़ता है. फिल्म के अंत में शाहरुख खान राष्ट् की तरफ से नंबी से माफी मांगते है, मगर माफी देने से इंकार करते हुए नंबी कहतेहैं-‘अगर मैं निर्दोष था, तो कोई तो दोषी था. आखिर वह दोषी कौन था. ’’

लेखन व निर्देशनः

आर माधवन एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ ही अच्छे लेखक भी हैं. वह पहले भी कुछ फिल्में लिख चुके हैं. कुछ फिल्मों के संवाद लिख चुके हैं. मगर निर्देशन में उनका यह पहला कदम है. उनकी माने तो पहले कोई दूसरा निर्देशक था, मगर ऐन वक्त पर उसके छोड़ देने पर आर माधवन को खुद ही निर्देशन की बागडोर भी संभालनी पड़ी. परिणामतः कुछ निर्देशकीय कमियां भी नजर आती हैं. आर माधवन ने इस कहानी को बयां करने के लिए एक अलग तरीका अपनाया है. बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान नंबी नारायण का इंटरव्यू लेते हैं और तब नंबी के मंुह से शाहरुख खान उनकी कहानी सुनते हैं. पर मूल कहानी शुरू होने से पहले नंबी नारायण की गिरफ्तारी व उनके परिवार के साथ पहले दिन जो कुछ हुआ था, उसके दृश्य आते हैं, इसकी जरुरत नही थी. इसके अलावा फिल्म में कई दृश्य अंग्रेजी भाषा में हैं. आर माधवन ने ऐसा फिल्म को पूरी तरह से वास्तविक बनाए रखने के लिए किया है. मगर वह उन दृश्यों में ‘हिंदी’ में ‘सब टाइटल्स’दे सकते थे. इससे दर्शक के लिए फिल्म से जुड़ना आसान हो जाता. इसके बावजूद इस विज्ञान फिल्म को जिस तरह से आर माधवन ने परदे पर उतारा है, वह एक भावनात्मक फिल्म के रूप मंे दर्शको के दिलो तक पहुंचती है. इंटरवल से पहले के हिस्से में वैज्ञानिक शब्दों का उपयोग जरुर दर्शकों को थोड़ा परेशान करता है. मगर इंटरवल के बाद कहानी काफी इमोशनल है और दर्शक नंबी के उस इमोशन को मकसूस करता है. फिल्म को वास्तविक बनाए रखने के लिए पूरी फिल्म वास्तविक लोकेशनों पर ही फिल्मायी गयी है. फिल्म का वीएफएक्स भी कमाल का है. 1969 से लेकर अब के माहौल को जीवंत करना एक निर्देशक के तौर पर उनकी सबसे बड़ी चुनौती रही है, जिसे  सफलता पूर्वक अंजाम देने में वह सफल रहे हैं. फिल्म में कई ऐसे दृश्य है जो कि बिना संवादों के भी काफी कुछ कह जाते हें. मसलन एक दृश्य है. अदालत से जमानत पर रिहा होने के बाद जब  नंबी अपनी पत्नी मीरा संग उसे अस्पातल में दिखाकर वापस लौट रहे होते हैं, तब भीषण बारिश हो रही है और पानी में भीग रहे तिरंगे के नीचे यह दंपति बेबस खड़ा है. क्योंकि कोई भी रिक्शावाला या गाड़ी वाला उन्हे बैठाने को तैयार नही है.

पता नही क्यों वास्तविकता गढ़ते हुए भी आर माधवन ने हाल ही में गिरफ्तार किए गए पूर्व आई बी अधिकारी आर बी श्रीकुमार का नाम नहीं लिया, जो कि 1994 में केरला में ही तैनात थे.

अभिनयः

नंबी नारायण के किरदार में आर माधवन ने शानदार अभिनय किया है.  आर माधवन ने अपने अभिनय के बल पर 29 वर्ष से लेकर 70 वर्ष तक की उम्र के नंबी नारायण को परदे पर जीवंतता प्रदान की है. इसके लिए आर माधवन ने प्रोस्थेटिक मेकअप का उपयोग नहीं किया है. उन्होने नंबी नारायण की ही तरह अपने दंातों को दिखाने के निए अपना जबड़ा तक टुड़वाया. बाल भी रंगे और बालो को असली नजर आने के ेलिए 18 घ्ंाटे कुर्सी पर बैठकर रंगवाते थे. पूरी फिल्म को अपने कंधो पर उठाकर आर माधवन ने अपनी अभिनय प्रतिभा के नए आयाम पेश किए हैं. नंबी नारायण की पत्नी मीरा के किरदार में तमिल अदाकारा सिमरन ने भी बेहतरीन अभिनय किया है. उन्होने पति का घर में समय न दे पाने से लेकर देशभक्त पति के उपर झूठा इल्जाम लगने की पीड़ा को बाखूबी परदे पर दिखाया है.

नंबी नारायण से इंटरव्यू लेने वाले अभिनेता शाहरुख खान अपनी पहचान के साथ ही है. उन्होंने इंटरव्यू लेने वाले के किरदार को बहुत बेहतरीन तरीके से न सिर्फ निभाया है बल्कि अपने अभिनय से नंबी की पीड़ा का अहसास करते हुए भी नजर आते हैं. लंबे समय बाद शाहरुख खान ने छोटे किरदार में ही सही मगर बेहतरीन परफार्म किया है.

नारकोटिक्स की समस्या है बड़ी और विशाल

शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को एक शिप क्रूज में खाना होने से पहले नारकोटिक्स विभाग वालों द्वारा पकड़ लेना एक तमाशा बन गया है. जब देश की मुसीबतों का अंत दिख नहीं रहा है, एक छोटे से मामले को जिस तरह जनमानस में तूल दी गई उस से लगता है कि हम लोग हमेशा से वास्तविक खतरों को भुला कर निरर्थक कामों में दिल बहलाने के पूरी तरह आदी हो गए हैं.

दुकान नहीं चल रही हो, पत्नी को बिमारी हो गई हो, बेटे के अच्छे अंक नहीं आ रहे हो, कर्ज भारी बड़ रहा हो, टैक्स वालों का हमला हो रहा हो. हमारे यहां हवन, मां की चौकी, तीर्थ यात्रा आदि एक आम बात है. ये सक असल समस्या से क्षणिक घुटकारा तो दिला देते हैं पर समस्या वहीं रहती है. ये सब बहुत सा धन व समय ले लेती हैं जो समस्या सुलझाने में लग सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर गए जहां उन्हें न राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ज्यादा भाव दिया न उपराष्ट्रपति भारतीय खून वाली कमला हैरिस ने और आस्ट्रेलिया व जापान के नेता अपने में मगन रहे. उस खिन्नता को देश की समस्याओं से दूर करने की जगह मोदी जी तुरंत रात देर को संसद भवन के नए निर्माण के कैमरों की टीम के साथ पहुंच गए जहां एक कुशल अनुभवी आर्कीटैक्ट की तरह ब्लूङ्क्षप्रट देखते हुए नजर आए. यह फोटोशूट निरर्थक था. देश के किसान अंादोलन से जूझना है, बढ़ती बेरोजगारी और मंहगाई से जूझना है, कोयला संकट से जूझना है पर एक आम नागरिक की तरह हम धाॢमक स्टंटबाजी में लगे रहते है.

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किसान बेबात में अपने खेत छोड़ कर देश भर में सडक़ों पर नहीं उतरे हैं. भारत सरकार जिन 3 कृषि कानूनों को थोपने में लगी है वे किसी समस्या का हल नहीं हैं. किसानों की ओर से न तो मंडियां भंग करने की मांग हो रही  थी, न कांट्रेक्ट पर जमीन देने की. किसान तो मिनिमम सपोर्ट प्राइस मांग रहे थे क्योंकि उन्हें आज खुले भाव में बिचौलियों की मेहरबानी से सही दाम नहीं मिल रहे. खेती की अर्थव्यवस्था सरकारी दखलअंदाजी से डगमगा रही है और बजाए इसे ठीक करने के पहले अमेरिकी दौरा किया गया और वहां से खिन्न हो कर लौटने पर संसद निर्माण देखने निकल पड़े.

नारकोटिक्स की समस्या बड़ी और विशाल है. पहले अमेरिका, अफगानिस्तान से ही आफीम के उत्पादन पर रोकटोक लगा कर इस व्यापार पर अंकुश लगाए रखना था पर अब तालिबानियों के राज में अमेरिका की कुछ नहीं चलेगी. ऐसे में एक मुसलिम सितारे के बेटे को ले कर हो हल्ला मचाया और सरकारी मशीनरी का उपयोग केवल जनता का दिल बहलाने के लिए करना है. यह ध्यान बंटा सकता है पर खंडहर होते देश को नहीं बना सकता. दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका जैसे देशों से भी बुरे हालत में जा रहे देश को भटकाने की जिम्मेदारी उन्हीं लोगों की है जो सही समस्याओं को नहीं देख पा रहे.

तथा बुरा है, गलत है, व्यापार जानलेवा है पर सितारों के बच्चों को आड़ में ङ्क्षहदूमुसलिम स्कोर करना और जानलेवा है.

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Judiciary और एजेंसी के जाल में फंसे Aryan Khan, पढ़ें खबर

बुरी लत चाहे ड्रग्स की हो या किसी दूसरे चीज की….कानून के हिसाब से सबकुछ होने की जरुरत है…… नामचीन व्यक्ति……क्रिकेट और हिंदी सिनेमा जगत के सेलेब्रिटी को जनता का प्यार बहुत मिलता है……उन्हें एक घड़ी पहनने का ब्रांड 5 करोड़ देती है……क्यों दे रही है?….जनता के लिए ही दे रही है, क्योंकि जनता उसे ही पहनना चाहेगी….और ब्रांड का काम बन जाता है ……एक आम इंसान को कोई ब्रांड5 करोड़ तो क्या 5 रुपये तक नहीं देती ….. अगर ब्रांड का फायदा सेलेब्रिटी को मिलता है, तो आपके बारें में जनता जानना भी चाहती है….इसे टाला नहीं जा सकता…क्योंकि आपने अगर इंडोर्समेंट का फायदा उठाया है, तो आपके जीवन में किसी का हस्तक्षेप न हो, ऐसा संभव नहीं. ऐसे ही कुछ बातों को कह रही थी, मुंबई हाईकोर्ट की वकील, सोशल एक्टिविस्ट और फॉर्मर ब्यूरोक्रेट आभा सिंह. व्यस्त दिनचर्या के बावजूद उन्होंने बात की और कहा कि कोर्ट का आर्यन खान को बेल न देना,मेरी समझ से बाहर है.

अंधा नहीं है कानून

आभा सिंह कहती है कि कानून कभी अंधा नहीं होता, जो सबूत सही ढंग से पेश न कर तोड़-मरोड़ कर रख दिया जाता है और जज उसी सबूत के आधार पर अपना निर्णय देता है. कई बार न्याय देने में देर हो जाती है, क्योंकि 50 प्रतिशत सीट कोर्ट में खाली है, जिसे अभी तक भरा नहीं गया. कानून अंधे होने की बात के बारें में गौर करें, तो आर्यन खान के पास से न तो ड्रग मिली और न ही उसके ब्लड टेस्ट में भी ड्रग लेने की कोई सबूत मिला, लेकिन 20 दिनों से वह जेल में है. इसलिए अबसबको लगने लगाहै कि सरकारी तंत्र किसी को कभी भी फंसा सकता है. अगर न्यायतंत्र इन एजेंसियों के आगे हल्की पड़ जाती है और एजेंसी की बातों को सही ढंग से नहीं परखती, तब लोग समझने लगते है कि कानून वाकई अंधा है.

न्यायतंत्र को परखने की है जरुरत

वकील आभा का कहना है कि इस देश में तो अब ये लगता है कि अगर आप एक नामचीन इंसान है, तो कुछ भी गलत किसी के साथ होने पर पूरा परिवार उसे भुगतता है. एजेंसी सही ढंग से कानून नहीं लगाती, इसलिए न्यायतंत्र को परखने की जरुरत है. कोई भी एजेंसी अगर गलत कानून लगाती है, तो उनपर कार्यवाई की जानी चाहिए, ताकि जनता को लगे कि कानून उनको सुरक्षा देने के लिए है, न कि दुरूपयोग कर अत्याचार करने की है.

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पोलिटिसाइज़ हो गई है एजेंसिया

सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति वी एम कनाडे, जो मुंबई की लोकायुक्त है और पिछले 40 साल से कानून के क्षेत्र में काम कर रहे है. उन्होंने आर्यन के बेल के बारें में कहा कि आर्यन के वकील ने हाई कोर्ट में फिर से एप्लीकेशन दिया है, जो हाईकोर्ट में मंगलवार को सुनवाई होगी. कानून के बारें आज जनता का विश्वास क्यों उठने लगा है पूछने पर न्यायमूर्ति कनाडे कहते है कि अगर आशा के अनुसार न्याय नहीं मिलता, तो लोग कानून में विश्वास नहीं रखते और आशा के अनुसार न्याय मिलने पर लोग न्याय पर विश्वास जताते है, लेकिन ये भी सही है कि जुडीशियरी लास्ट रिसोर्ट होती है और लोग उसपर सबसे अधिक विश्वास रखते है. मेरा अनुभव ये कहता है कि आज पोलिटिकल लड़ाई बहुत चल रही है. किसी भी निर्णय को पॉलिटिक्स के हिसाब से देखी जा रही है, यह सही नहीं है. मैं 16 साल जज रहा हूँ. नॉर्मली हम राजनीति में नहीं जाते, कानून के हिसाब से निर्णय देते है. इसके अलावा आज न्यायालयों में जजों और वकीलों की संख्या बहुत कम है, खाली स्थानों को जल्दी भरने की बहुत जरुरत है.

न्यायतंत्र पर विश्वास कम होने की वजह लॉयर आभा सिंहबताती है कि 84 वर्ष के स्टेन स्वामी की मृत्यु जेल में ही हो गयी, लेकिन उन्हें बेल नहीं मिला. मुझे लगता है कि पुलिस और कई एजेंसियां राजनीतिकरण का हिस्सा बन चुकी है. ये इस तरह के केस बनाती है. पिछले कुछ दिनों पहले एक बात सामने आई थी कि प्रधानमंत्री मोदी को किसी ने जान से मारने की धमकी दी है, फिर पता चला कि लैपटॉप पर ये मेसेज आया है.सबको पता है कि आज लोग मेल हैक कर क्या-क्या कर लेते है. ये बातें कितनी झूठी और बनावटी हो सकती है, ऐसे में आर्यन के व्हाट्स एप मेसेज को इतनी तवज्जों क्यों दी जा रही है? राईट टू लिबर्टी को बचाने केलिए सुप्रीम कोर्ट को नयी गाइडलाइन्स लानी पड़ेगी. आज देश के सारे हाई नेटवर्क वाले लोग देश छोड़कर चले जा रहे है,ऐसे में देश, एक अच्छा देश कैसे बन सकता है? हर नेता चाहते है कि पुलिस उनके सामने घुटने टेके, लेकिन न्यायतंत्र को देखना चाहिए कि पुलिसवाला क्या गलत कर रहा है? अगर अरेस्ट करने का पॉवर पुलिस को मिला है, तो कोर्ट बेल दे सकती है, लेकिन जुडीशियरी अगर अपने कानून को न देखकर दूसरी तरफ देखने लगे, तो अराजकता फैलती है.

सहानुभूति की है जरुरत

इसके आगे आभा का कहना है कि आर्यन को बिना किसी प्रूफ के जेल में डाले हुए है. असल में नारकोटिक ड्रग्स एंड साईकोट्रोपिक सबस्टेन्स (NDPS) एक्ट 1985 के तहत बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस कोतवाल ने रिया चक्रवर्ती को बेल तो दिया था, लेकिन उस समय NDPSएक्ट को उन्होंने नॉन बेलेबल कहा था. इसलिए आर्यन को बेल नहीं मिल रही है, लेकिन ये भी सच है कि पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई छोटा अमाउंट पर्सनल यूज़ के लिए कंज्यूम करता है, तो उसे बेल दे दी जाय, क्योंकि आपको उस इन्सान से सहानुभूति रखनी है, उसके एडिक्शन को छुड़ावाना, इलाज करवाना आदि की जरुरत है. यहाँ आर्यन के पास केवल 13 ग्राम ड्रग ही मिला है,जबकि हमारे देश में होली पर लोग चरस, गांजा आदि के प्रयोग कर ठंडाई बनाते है. अगर ड्रग को रोकना है, तो उन्हें ड्रग बेचने वाले पेडलर और  ड्रग सिंडिकेट को पकड़ने की जरुरत है. उन्हें पकड़ न पाने की स्थिति में बॉलीवुड और कॉलेज के बच्चों को पकड़ रहे है, जो सॉफ्ट टारगेट होते है और उन्हें पकड़कर मीडिया में तमाशा कर रहे है. जबकि ये बच्चे ड्रग सिंडिकेट के शिकार है और उनका परिवार बच्चों की इन आदतों से परेशान है. इंडिया में ड्रग, दवाइयों और कुछ खास चीजों के लिए लीगल है, जबकि कई देशों में इसे लीगल कर दिया गया है. इस तरह से अगर बच्चे अरेस्ट होने लगे, तो आधी जनता जेल में होगी. मेरा सुझाव है कि जब आर्यन के बेल की बात आगे हाई कोर्ट में सुना जाएँ, तो जस्टिस कोतवाल के बात को अलग रखकर, उस बच्चे को बेल दी जाय. NDPS एक्ट 1985 की सेक्शन 39 में लिखा हुआ है कि बच्चे के उम्र और पिछले आचरण को देखते हुए,उसे बेल दीजिये. नॉन बेलेबल का कोई सवाल नहीं उठता.

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सरकार की दोहरी नीति

23 साल के आर्यन को बेल न मिल पाने की वजह से फेंस और हिंदी सिनेमा जगत से जुड़े सभी लोग परेशान और दुखी है. एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ कहते है कि ड्रग्स कई प्रकार के होते है और क्राइम भी उसी हिसाब गिना जाता है. चरस और गांजा दो हज़ार सालों से साधु संत, व्यापारी और मेहनत करने वाले किसान,बदन दर्द को कम करने के लिए, सोने से पहले एक चिलम मारते है,उसे  ड्रग्स नहीं कहा जा सकता. जो नैचुरल पदार्थ ओपियम को प्रोसेस कर बनाया जाता है,वह ड्रग कहलाता है. ऐसे कई गांजा और चरस के ठेके को सरकार लाइसेंस देती है. फिर ये ड्रग कैसे हो सकती है?ये एक प्रकार की हिपोक्रेसी हुई. एक हाथ से सरकार गांव खेड़े में, साधु संत और अखाड़े वालों को मादक पदार्थों के सेवन की पूरी छूट देती हैऔर दूसरी तरफ कॉलेज जाने वाले एक बच्चे के पॉकेट से 10 ग्राम की कुछ भी मिलने पर पोलिटिकल एफिलियेशन के अनुसार छोड़ते है या जेल भेज देते है. इस प्रकार कानून की कोई पॉवर नहीं है. इससे जो कोई भी पॉवर में आएगा, वह दूसरे के पीछे पड़ेगा. यहाँ आर्यन खान से अधिक शाहरुख़ खान के पीछे सब पड़े है.ये एक प्रकार की दुश्मनी है,जिसे वे इस तरीके से निकाल रहे है,क्योंकि जिस चीज को 2 हज़ार साल से लोग प्रयोग करते आ रहे है, उसे गैर कानूनी नहीं कहा जा सकता.एनसीबी और सीबीआई सब सरकार के टट्टू है. एक 23 साल के बच्चे को जेल में डाल दिया और जो रियल में क्रिमिनल है, जिसने 4 लोगों को कुचल दिया, वह आराम से घूम रहा है. बिगड़ी हुई न्याय व्यवस्था को जनता महसूस कर रही है, क्योंकि सरकार दोहरी निति पर चल रही है, अपनों के लिए अलग कानून और दूसरों के लिए अलग कानून बनाए है.

बिके हुए है न्यूज़ चैनल्स

न्यूज़ चैनेल टीआर पी के लिए कुछ भी तमाशा कर रही है. आर्यन एडल्ट है, उसने जो किया, खुद से किया है. शाहरुख़ का नाम क्यों आ रहा है, जबकि अरबाज़ मर्चेंट और मुनमुन धमेचा के पेरेंट्स को कोई सामने नहीं ला रहे है. उन्होंने भी तो अपराध किया है. इसका अर्थ ये हुआ की मिडिया भी इसी गेम में फंसी हुई है, बिकीहुई है, तभी किसी पर कीचड़ उछाल रही है. मिडिया को सही बातें रखने की आवश्यकता है. जब दो हज़ार करोड़ ड्रग के साथ अदानी पोर्ट पर पकड़ा गया, उसे एक छोटी सी जगह पर पेज में छुपा हुआ न्यूज़ आइटम दिखा. जबकि आर्यन खान के साथ शाहरुख़ को जोड़कर न्यूज़ चैनेल हेड लाइन बनाती है. मुझे दुःख इस बात से है कि देश की न्यायतंत्र आज सरकार के टट्टू बन चुके है, जबकि उन्हें कानून के अनुसार निर्णय देना चाहिए. कानून के सामने सब बराबर है, टीआरपी के लिए टीवी चैनेल्स फेवरिटीज्म नहीं दिखा सकती.

इस प्रकार तथ्य यह है कि क्रूज ड्रग्स पार्टी मामले में आर्यन खान अभी भी जेल में है. सेशंस कोर्ट ने बुधवार 20 अक्तूबर को आर्यन की जमानत याचिका खारिज कर दी. आर्यन के साथ ही अरबाज मर्चेंट और मुनमुन धमेचा की जमानत याचिका खारिज कर दिया गया है. दरअसल आर्यन को 2 अक्टूबर को मुंबई से गोवा जा रही क्रूज पर रेव पार्टी में छापेमारी के बाद एनसीबी ने पहले हिरासत में लिया और फिर गिरफ्तार कर लिया. इसमें आर्यन के साथ 8 लोगों को भी ग‍िरफ्तार किया गया. आर्यन फिलहाल मुंबई के आर्थर रोड जेल में 14 दिनों की न्‍याय‍िक हिरासत में कैद है.अगली सुनवाई 26 अक्तूबर को होगी, अब देखना है कि आर्यन खान को बेल मिलेगी या नहीं.

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कानूनी दांव-पेंच में बुरे फंसे किंग खान के बेटे Aryan Khan

2 अक्तूबर को अभिनेता शाहरुख खान (Shahrukh Khan) के बेटे आर्यन खान (Aryan Khan ) को मुंबई से गोवा जा रहे क्रूज में चल रही ड्रग्स पार्टी (Drugs Party) मामले में एनसीबी (NCB) (नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो) ने गिरफ्तार किया. मामले में आर्यन के अलावा गिरफ्तार दो अन्य अरबाज मर्चेंट और मुनमुन धमेचा को मुंबई के किला कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को 7 अक्टूबर तक कस्टडी में रखने का फैसला सुनाया गया. पता चला है कि आर्यन के पास भी ड्रग्स मिले है. इस मामले में इन तीनों के अलावा 5 अभियुक भी गिरफ्तार किये गए है, जिनसे पूछताछ जारी है. आज आर्यन खान को बेल मिलेगी या नहीं इसपर कोर्ट में बहस चल रही है. इस मामले की चर्चा में आने के बाद देशभर में रेव पार्टी की जमकर आलोचना हो रही है. लोग जानना चाहते है, आखिर रेव पार्टी में कई बार मॉडल्स और सेलेब्रिटी किड्स ही क्यों पकडे जाते है और इसमें होता क्या है? आइये जाने रेव पार्टी की शुरुआत कहाँ और कैसे हुई.

दम मारो दम…….’ वर्ष 1971 की इस गाने को शायद सभी जानते होंगे, क्योंकि उस दौर की इस गाने को यूथ ने बहुत पसंद किया था. ये गाना फिल्म ‘हरे कृष्ण हरे राम’ की रेव पार्टी का ही है, जिसमें सभी यूथ ड्रग्स लेते हुए मौज-मस्ती करते हुए दिख रहे है और अभिनेता देवानंद अपनी बहन और अभिनेत्री जीनत अमान को वहां से घर ले जाने की कोशिश कर रहे है. दरअसल रेव पार्टी होती ही ऐसी है, जहाँ आने वाले लोग सब भूलकर मौज मस्ती में डूब जाते है और वहां उन्हें एक अनुभूति होती है.

कब हुई शुरुआत

रेव पार्टी (Rave Party) की शुरुआत यूरोप के देशों में 60 के दशक में होने वाली पार्टियां शराब और शवाब तक सीमित थी, लेकिन 80 के दशक में इसका स्वरूप बदलने लगा और इसने रेव पार्टी का रूप ले लिया. 90 के दशक के शुरुआत में कई देशों में रेव पार्टियां होने लगी.‘रेव’ शब्द का अर्थ एक डांस पार्टी से है, जो रातभर चलती रहती है. इसमें एक डीजे गाना बजाता है और उसमे लोग संगीत की धुन पर थिरकने के साथ-साथ खूब मौज-मस्ती करते है. ये पार्टिया अधिकतर बंद कमरे में कम रौशनी में चलती है. इसकी जानकारी केवल उसमे आने वाले चंद लोगों को ही होती है.

 

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अमेरिकी कानून विभाग कहता है कि 80 के दशक की डांस पा​र्टीज से ही रेव पार्टी की शुरुआत हुई. डांस पार्टीही धीरे-धीरे रेव पार्टी में बदल गई. इसमें संगीत की धुन के साथशौक और ड्रग्‍स जुड़ते चले गए, इससे यूथ में रेव पार्टियों की लोकप्रियता बढ़ती गई.

भारत में इसकी शुरुआत गोवा से हुई, जहाँ हिप्पियों ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन अब ये हिमाचल की कुल्लू घाटी, बेंगलुरु, पुणे, मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, चेन्नई आदि कई शहर रेव हॉटस्पॉट बनकर उभरे है.

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रेव पार्टी में होता क्या है

रेव पार्टियों में डांस, मस्ती, धमाल, शराब, ड्रग्स आदि की पूरी छूट होती है. ये पार्टियां रात-रात भर चलती हैं. इन पार्टियों में जाने वाले लोगों को मोटा फीस के तौर पर मोटा पैसा देना पड़ता है. पार्टियों में अंदर लाऊड संगीत बजते रहते हैं और युवा मस्ती और नशे में चूर होते है. खाना-पीना, ड्रिंक्स, शराब, सिगरेट आदि के अलावा कोकीन, हशीश, चरस, एलएसडी(लिसर्जिक एसिड डाईएथिलेमाइड)आदि ड्रग्‍स का इंतजाम रहता है.

कुछ रेव पार्टियों में सेक्स के लिए ‘चिल रूम्‍स’ भी होते है. एनसीबी के अधिकारियों की मानें तो रेव पार्टियां केवल पार्टी सर्किट से जुड़े हुए कुछ चुनिंदा लोगों के लिए आयोजित की

 

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क्या है रिश्ता दोनों से

आर्यन के साथ दो नाम जिनकी कस्टडी 7 अक्तूबर तक है, उसमें मुनमुन धमेचा और अरबाज़ मर्चेंट का नाम जुड़ा है, आखिर ये दोनों है कौन और आर्यन के साथ इनका रिश्ता क्या है?

39 वर्षीय मुनमुनधमेचा फैशन जगत की एक चर्चित मॉडल है, जो मध्यप्रदेश के सागर जिले की है, लेकिन सागर में उनके परिवार का कोई भी नहीं रहता. व्यवसायी परिवार की मुनमुन ने पिछले साल अपनी माँ और इससे पहले अपनी पिता को खो चुकी है. उनका एक भाई प्रिंस धमेचा है, जो नौकरी की वजह से दिल्ली में रहते है. इस मॉडल की इन्स्टाग्राम पर 70 हज़ार से अधिक फैन फोलोवर्स है, जबकि अरबाज़ खान एक अभिनेता है और फिल्मों में काम के लिए संघर्ष कर रहा है उसकी पहचान आर्यन खान और सुहाना खान दोनों के अलावा कई स्टार किड्स के साथ है,इन्स्टाग्राम पर अरबाज़ की तस्वीरें कई बार अभिनेत्री पूजा बेदी की बेटी अलाया फ़र्निचरवाला के साथ देखी गयी, जिन्हें वह डेटिंग कर रहा था. अरबाज़ के पिता असलम मुंबई में एक वकील है और लकड़ी की व्यवसाय भी सम्हालते है. उनके नाना मुंबई हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज है, जो बांद्रा में रहते है. आर्यन खान और अरबाज़ मर्चेंट दोनों स्कूल फ्रेंड है.

फिल्मों में आने की थी तैयारी

ये सही है कि ये पार्टियाँ काफी महँगी होती है, इसलिए इसमें आने वाले सभी पैसे वाले घरों से होते है. हालाँकि अभिनेता शाहरुख़ खान ने अपने बेटे को अच्छी परवरिश के लिए इंडस्ट्री से दूर विदेश में रखा था, लेकिन गलत संगत और नशे के आदी होने की वजह से जेल की हवा खानी पड़ रही है. बॉलीवुड सितारे या उनके बच्चे कानून और पुलिस के लिए सॉफ्ट टारगेट होते है, इसलिए इन्हें पकड़ने पर लोगों में चर्चा अधिक होती है और उन्हें इसका हर्जाना भुगतना पड़ता है. इसके कई सबूत है, जिसकी वजह से बॉलीवुड के कई सितारे बदनाम हुए, उनका कैरियर बर्बाद हो गया. आर्यन खान अब फिल्मों में उतरने के लिए तैयार हो रहे है, ऐसे में इस तरह की बदनामी उनकी फ़िल्मी कैरियर पर असर अवश्य डालेगी.

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रहना पड़ेगा जेल में

आर्यन खान की एनसीबी कस्टडी आज 7 अक्टूबर को खत्म होने वाली थी. आज उनके वकील उनकी जमानत के लिए अर्जी भी दी थी,लेकिन आज देर शाम फैसला आया है कि आर्यन जेल जाएंगे, हालांकि बेल के लिए उनके वकील ने अर्जी दी थी, पर जज ने आर्यन खान और 7 अभियुक्तों को जेल भेजने को कहा है, लेकिन परिवार वालों को सभी अभियुक्तों से मिलने की अनुमति भी दी है, जिसके परिणामस्वरुप गौरी खान अपने बेटे आर्यन से मिलने एनसीबी दफ्तर पहुंची है. आज रात ये सभी 8 अभियुक्त एन सी बी के दफ्तर के लॉकअप में न्यायायिक हिरासत में रहेंगे, क्योंकि इन सभी ने कोविड 19 का टेस्ट नहीं करवाया है और जेल अधिकारी ने इन्हें जेल में रखने से इनकार कर दिया है.

कितनी घातक होती है ये पार्टियाँ

ड्रग का ये धंधा विश्वव्यापी है, इसमें फंसने वाले अधिकतर यूथ ही होते है. बॉलीवुड ही नहीं, देश के अधिकतर मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में खासकर होस्टल में रहने वाले यूथ इसकी चपेट में आते है, जिन्हें पेरेंट्स काफी पैसे खर्च कर उच्च शिक्षा के लिए भेजते है, जिसकी जानकारी उन्हें नहीं होती. इस धंधे का फायदा इन ड्रग्स माफियाओं को होता है और नशे की आदी से यूथ खुद को नहीं निकाल पाते और इस दलदल में फंसते जाते है, इससे उनकी शिक्षा उनका भविष्य सब बेकार हो जाती है, क्योंकि ये बदनाम हो जाते है और आम लोगों के बीच अपनी जिंदगी नहीं बिता पाते, जिससे असामयिक मृत्यु और कई जानलेवा बीमारी के शिकार हो जाते है. ड्रग्स के विरुद्ध हर देश में कानून सख्त है, लेकिन इन ड्रग सप्लायरों का काम चलता रहता है, वजह समझना मुश्किल है, पर एक यूथ का भविष्य बेकार हो जाता है.

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Instagram Credit- Viral Bhayani

बॉडी कलर का मजाक उड़ाने वालों पर भड़की शाहरूख की बेटी सुहाना तो लोगों ने पूछा ये सवाल

दुनिया में किसी के स्किन कलर का मजाक उड़ाना बेहद बड़ा अपराध है. लेकिन ये अपराध आज भी होता है. वहीं इस मामले में आम आदमी से लेकर सेलेब्स भी इसके शिकार हुआ है. हाल ही में बॉलीवुड के किंग खान यानी शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान भी इस रंगभेद का शिकार हुई हैं, जिसका खुलासा उन्होंने अपने एक सोशलमीडिया पोस्ट के जरिए किया है. लेकिन अब वह इस पोस्ट को लेकर खुद ही ट्रोल हो गई हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला….

सुहाना भी हुई हैं रंगभेद का शिकार

दरअसल, सुहाना खान ने अपने पोस्ट के जरिए बताया है कि इंडियन होने के बावजूद लोग उनके स्किन के कलर का मजाक उड़ाते हैं, जो बेहद गलत है. इसी को लेकर अपने सोशलमीडिया अकाउंट पर सुहाना खान का यह पोस्ट शेयर किया है और लिखा कि लोग कब तक रंगभेद टिप्पणी करते रहेंगे क्योंकि इससे समाज में असमानता फैलती है. साथ ही ये भी लिखा कि हर इंडियन का रंग भूरा ही होता है. भूरे में अलग-अलग शेड हो सकते हैं लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है?

 

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There’s a lot going on right now and this is one of the issues we need to fix!! this isn’t just about me, it’s about every young girl/boy who has grown up feeling inferior for absolutely no reason. Here are just a few of the comments made about my appearance. I’ve been told I’m ugly because of my skin tone, by full grown men and women, since I was 12 years old. Other than the fact that these are actual adults, what’s sad is that we are all indian, which automatically makes us brown – yes we come in different shades but no matter how much you try to distance yourself from the melanin, you just can’t. Hating on your own people just means that you are painfully insecure. I’m sorry if social media, Indian matchmaking or even your own families have convinced you, that if you’re not 5″7 and fair you’re not beautiful. I hope it helps to know that I’m 5″3 and brown and I am extremely happy about it and you should be too. #endcolourism

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कलर पर टिप्प्णी करते हैं लोग

सुहाना खान ने लोगों के मैसेज शेयर करते हुए कहा है कि लोग उन्हें काली-कलूटी कहकर बुलाते हैं और उनके इंस्टाग्राम पर बहुत भद्दे-भद्दे मैसेज आते हैं, जिनमें लोग उन्हें बदसूरत कहते हैं, जिसे पढ़कर उनके दिमाग में नकारात्मक ख्याल आते हैं.

शाहरूख पर उठाया सवाल

सुहाना खान के इस पोस्ट करने के बाद जहां कुछ लोग उनका साथ दे रहे हैं तो वहीं कुछ लोग उनका विरोध कर रहे हैं. दरअसल, लोगों का सुहाना से सवाल है कि अगर उन्हें रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता है तो फिर शाहरुख खान फेयरनेसक्रीम का प्रचार क्यों करते हैं ?

बता दें, शाहरूख खान फेयर एंड हैंडसम ब्रैंड का प्रचार करते हैं, जिसमें गोरे होने का जिक्र किया गया है. वहीं बीते दिनों अमेरिका के ब्लैक लाइफ मैटर कैंपेन के चलते फेयर एंड लवली ने अपने ब्रांड से फेयर का नाम हटा दिया है.

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#lockdown: बेली डांस करती नजर आई सुहाना खान, देखें फोटोज

कोरोना वायरस महामारी के कारण लोग 21 दिन के लॉक डाउन में अपने-अपने घरों में सेल्फ आइसोलेशन में जीवन व्यतीत कर रहें हैं.  ऐसे मुश्किल समय में बॉलीवुड स्टार लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं तो कुछ अपने टेलेंटे को निखार रहें हैं.  ऐसे में स्टार किड्स  भी पीछे नहीं है. इन दिनों किंग खान यानी शाहरुख खान (Shahrukh Khan) की बेटी सुहाना खान (Suhana Khan) ऑनलाइन बेली डांस की ट्रेनिंग लेती नजर आ रही हैं. बेली डांस की एक फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है, जिसे सुहाना की टीचर संजना मुथरेजा ने अपने इंस्टाग्राम एकाउंट से शेयर किया है.

 

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Three’s a crowd 👋🏼

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इस फोटो में सुहाना खान और उनकी बेली डांस टीचर सुहाना खान वीडियो कॉल पर एक-दूसरे के साथ  बातचीत करते दिखाई दे रहीं हैं. बेली डांस टीचर संजना मुथरेजा ने इस फोटो को पोस्ट करते हुए लिखा, “अपने आप को रोल्स के साथ चुनौतियां देते हुए. सुहाना खान के साथ बेली डांस की ऑनलाइन क्लासेस.”

 

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Experimenting💄

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सुहाना खान की अभी बॉलीवुड में इंट्री नहीं हुई है, लेकिन उनकी फैन फॅालोइंग लाखों में है. उनके नाम पर एक फैन क्लब भी है. सुहाना खान की फोटो अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती है. हाल ही में किंग खान की पत्नी और सुहाना की मां, गौरी खान ने सुहाना खान की कुछ फोटो भी पोस्ट की थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि सुहाना घर में रहते हुए मेकअप ट्यूटोरियल लेती नजर आ रही हैं. इन फोटो में सुहाना खान बहुत खूबसूरत लग रहीं थीं. वैसे भी सुहाना अपने लुक को लेकर चर्चा में रहती हैं.

 

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🥱

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आपको बता दे सुहाना खान न्यूयॅार्क से पढाई कर रही हैं। यहां वो अभिनय और डांस की क्लासेस ले रही हैं। स्टार किड्स होने की वजह से  सुहाना को भी एक्टिंग करने का शौक है और वे अपने स्कूल और कॉलेज के थिएटर ग्रुप का हिस्सा रही हैं. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद सुहाना खान अपना बॉलीवुड डेब्यू करेंगी.

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