शाकुंतलम फिल्म रिव्यू: उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती सामंथा प्रभु की ये फिल्म

  • रेटिंग: पांच में से एक स्टार
  • निर्माता: दिल राजू
  • निर्देशक: गुना सेखर
  • कलाकार: सामंथा प्रभु,मोहन देव,मोहन बाबू,सचिन खेड़ेकर, अदिति बालन, अनन्या नागलिया, प्रकाश राज,मधू, गौतमी,कबीर बेदी,जिषु सेन गुप्ता, कबीर दुहान सिंह,अल्लू अरहा व अन्य.  
  • अवधिः दो घंटे 22 मिनट
  • प्रदर्षन की तारीख: 14 अप्रैल 2023

केजीएफ ,आर आर आर व कंतारा जैसी दक्षिण भारतीय फिल्मों के हिंदी में सफल होने के बाद हर दक्षिण भाषी फिल्म को हिंदी में रिलीज करने की होड़ सी लग गयी है. मगर किसी को भी इस बात की परवाह नही है कि उनकी फिल्म हिंदी भाषी क्षेत्रों के अनुरूप है या नहीं.

दक्षिण भारत के वेलमाकुचा वेंकट रामन्ना रेड्डी जो कि फिल्म जगत में दिल राजू के नाम से मशहूर हैं,अब तक तेलगू भाषा में चालिस फिल्मों का निर्माण कर चुके दिल राजू कालीदास लिखित संस्कृत भाषा के नाटक ‘‘अभिज्ञान शाकुंतलम’’ पर आधारित फिल्म ‘‘शाकुंतलम’’ लेकर आए हैं.

गुना सेखर के निर्देशन में मूलतः तेगुलू भाषा में बनी इस फिल्म को हिंदी में डब कर ‘‘शाकुंतलम’’ के नाम से प्रदर्शित किया गया है. फिल्मकार ने फिल्म की शुरूआत में ही इसे धार्मिक फिल्म की संज्ञा दे दी है. एक राजा और एक ऋषि कन्या का प्रेम विवाह धार्मिक होता है? यह एक अलग विचारणीय प्रष्न है.

कुछ दिन पहले मुंबई में एक प्रेस काफ्रेंस में दिल राजू ने दावा किया था कि उन्होेने हौलीवुड स्टूडियो ‘डिज्नी’ को मात देने वाली फिल्म बनायी है. मगर इस फिल्म को देखने के बाद अहसास होता है कि उनका दावा ‘पानी का बताषा’ के अलावा कुछ नही है. इस फिल्म में आत्मा ही नही है.

इस फिल्म को देखना समय व पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ नही है. वैसे ‘ द कष्मीर फाइल्स’ की ही तर्ज पर आर एस एस ने ‘‘शाकुंतलम’’ को सफल बनाने में जुट गया है. गुरुवार को आर एस एस के कई दिग्गज इस फिल्म को देखने आए. इतना ही नही प्रेस कांफ्रेंस में दिल राजू ने हिंदी बोलते हुए ऐलान किया था कि भाषाओं की विविधता के बावजूद ‘हम सब एक हैं.

 

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कहानीः

ऋषि विश्वामित्र अपनी ताकत बढ़ाने के लिए तपस्या करना शुरू करते हैं,इससे इंद्र भगवान को अपना सिंहासन खोने का डर सताने लगता है. इसलिए वह देवलोक की अप्सरा मेनका को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए पृथ्वी पर भेजते हैं. विश्वामित्र से संभोग के बाद ,जिसे वह देवलोक नहीं ले जा सकती, इसलिए पृथ्वी पर ही छोड़कर वापस लौट जाती हैं. ऋषि कण्व (सचिन खेडेकर)अपने आश्रम के पास पड़ी इस नवजात बच्ची को अ पना कर उसे शकुंतला (सामंथा) नाम देते हैं. और उसे अपनी बेटी के रूप में पालते हैं.

कई वर्षों के बाद जंगल में शकुंतला की मुलाकात राजा दुष्यंत (देव मोहन) से होती है और दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते है. वह गंधर्व विवाह करते हैं. शकुंतला गर्भवती हो जाती है. दुष्यंत कुछ समय बाद आकर शकुंतला को अपने राज्य में ले जाने का वचन देते हैं. दुष्यंत के आने के इंतजार में खोयी शाकुंतला को ऋषि दुर्वासा (मोहन बाबू) के आने का पता नही चलता.

तब ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण दुष्यंत,शकुंतला को भूल जाता है. उसके बाद शाकुंतला के जीवन की कठिनाइयों, श्राप मुक्ति व दुष्यंत से संबंध जुड़ने की कहानी है.

लेखन व निर्देशन:

पौराणिक कथाओं को पारंपरिक स्वरूप में बताना एक साहसिक आह्वान है,जिस पर निर्देशक गुना सेखर व निर्माता दिल राजू खरे नहीं उतरे हैं. यह न प्रेम कहानी है और न ही अच्छाई पर बुराई की जीत उभर कर आती है. एक्शन दृष्य तो ऐसे हैं, जैसे कि बच्चे आपस में लड़ रहे हों.

फिल्मकार गुना सेखर का कहानी कहने और पात्रों को चित्रित करने का तरीका बिल्कुल भी प्रभावशाली नहीं है. शकंुतला और दुष्यंत की प्रेम कहानी में रोमांच के साथ पीड़ा भी है. मगर इस फिल्म में यह दोनों चीजें गायब हैं. ऐसा लगता है जैसे कि भगवान इंद्र स्वर्ग में अपना सिंहासन सुरक्षित रखने के लिए ही दुष्यंत व शाकुंतला के बीच प्रेम रचा. मतलब इंसानी भावनाओं और इंसान की प्रेम की अनुभूति का कोई औचित्य ही फिल्म में नजर नही आता.

जब दुष्यंत के बेटे की मां बनने जा रही शाकुंतला खुद को विस्मृत कर चुके राजा दुष्यंत से मिलने उनके राज दरबार में पहुंचती है, उस वक्त राज दरबार के मंत्री आदि जिस तरह के अपशब्दों का प्रयोग शाकुंतला का प्रयोग कर शकुंतला को दंड देने की मांग करते हैं, वह पांच हजार वर्ष या 700 वर्ष पहले अथवा वर्तमान सरकार के लिए भी शोभाजनक नही है. राजा के मंत्री के बात करने में शालीनता होती है, मगर राजा दुष्यंत का राज दरबार तो ‘मछली बाजार’ नजर आता है. मंत्री गण अनपढ़ गंवार से भी निचले स्तर पर उतर आते हैं.

इतना ही नही राज दरबार से बाहर जा रही गर्भवती शकुंतला पर राज दरबारी व आम जनता जिस तरह से पत्थर बरसाते हुए पीछा करते हैं, वह कतई शोभा नही देता. क्या वास्तव में यह दृष्य कालीदास लिखित ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’का हिस्सा हैं? क्या सिनेमाई स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी नारी जाति का इस स्तर पर अपमान करने का हक मिल जाता है? फिल्मकारो ने यह भी जिस तरह से ऋषि दुर्वासा को शाकुंतला को श्राप देते हुए दिखाया है, वह तरीका भी सही नही है. अमूमन पुराने वक्त में ऋषि श्राप देने के लिए पवित्र जल इंसान के शरीर पर फेकते हुए श्राप बोलते थे. यहां श्राप देन के बाद दुर्वासा जल फेकते हैं.

फिल्म का वीएफएक्स व स्पेशल इफेक्ट्स त्रुटिपूर्ण है. शाकुंतला का परिचय देने वाले दृष्य में जंगल में पेड़ों के नीचे खड़ी षाकंुतला की सुंदरता के चारों ओर तितली के झुंड दिखाए गए हैं,यह तितलियां कम कागज की फुलझड़ियाँ नजर आती हैं. वीएफएक्स का कमाल यह है कि स्क्रीन पर बाघ की बजाय एक डमी मूर्ति वाला बाघ नजर आता है. बर्फ से ढंके पर्वत पर हर चरित्र न के बराबर व साधारण कपड़ों में ही नजर आते हैं. इतना ही नही चारों ओर बर्फबारी हो रही है,लेकिन किसी भी किरदार के शरीर या उनकी वेशभूषा पर एक परत बर्फ नहीं गिरती है. . है न निर्देशक की सोच का कमाल. . .  गीत संगीत प्रभावित नही करता. एडीटर कई जगह मात खा गए हैं.

 

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फिल्म के संवाद भी अजीबो गरीब हैं. कहीं अति शुद्ध हिंदी है,तो कहीं आम तौर पर बोली जाने वाली हिंदी है. तो कही संस्कृतनिष्ठ हिंदी है. कहीं ‘क्षमा’ या ‘माफी’ के लिए ‘क्षम्य’ शब्द का उपयोग किया गया है. शायद प्राचीन काल में स्त्रियाँ अपने होठों को रंगने के लिए गेरु या गेरुए रंग का उपयोग करती थीं,पर इस फिल्म में षाकंुतला के किरदार में अभिनेत्री सामंथा रूथ प्रभू हर दृष्य में लाल रंग की सबसे चमकदार लिपस्टिक लगाए ही नजर आती हैं.

कास्ट्यूम डिजाइनर नीता लुल्ला ने हर किरदार की पोषाक गढ़ते वक्त उस काल को पेश करने का सटीक प्रयास किया है. ोखर वी जोसेफ की सिनेमैटोग्राफी काफी औसत है.

अभिनयः

पूरी फिल्म में सामंथा रूथ प्रभू और देव मोहन के बीच कोई वास्तविक केमिस्ट्री नजर नहीं आती. वास्तव में युवा अभिनेता हर दृष्य में अपनी सह कलाकार व दिग्गज अदाकारा सामंथ के ‘औरा’ तले दबे नजर आते हैं. शायद अभिनय करते समय वह भूल गए थे कि वह सामंथा के साथ अभिनय कर रहे हैं, न कि वह वह जिस अदाकारा के प्रशंसक हैं, उससे मिल रहे हैं. इसके लिए कहीं न कहीं निर्देशक भी दोषी हैं.

प्रेम में खोयी,राजा से गंधर्व विवाह,गर्भवती होने के बाद पति का उसे विस्मृत करने के साथ ही सभी के सामने अपमानित करने की पीड़ा, खुद व जन्म लेने वाली संतान के अनिश्चित भविष्य की जो पीड़ा है, उसे सामंथा प्रभू अपने अभिनय से चित्रित करने में पूरी तरह से विफल रही हैं.

तो वहीं राज दुष्यंत के किरदार में मोहन देव भी निराश करते हैं. यहां तक कि अनुभवी कलाकार मधु और गौतमी भी निराश करती हैं. दुर्वासा ऋषि के छोटे किरदार में अभिनेता मोहन बाबू अपनी छाप छोड़ जाते हैं. असुर राक्षस के किरदार में कबीर दूहन सिंह कोई करतब नही दिखा पाते.

सचिन खेडेकर,कबीर बेदी,सुब्बा राजू, जिशु सेनगुप्ता, अदिति बालन, गौतमी, और हरीश उथमन जैसे प्रतिभाशाली अभिनेताओं के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.

प्रियंवदा के किरदार में अदिति बालन अधिक आकर्षक लग रही थीं. दुष्यंत व शाकुंतला के बेटे सर्वदमन उर्फ भारत के किरदार में बाल कलाकार अल्लू अरहा (अभिनेता अलु अर्जन की बेटी) हर किसी का मन मोह लेती है. यदि सामंथा व मोहन देव ने इस बाल कलाकार से संवाद अदायगी सीख ली होती, तो कुछ इनका भला हो जाता.

 

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