धर्म के नाम पर आपस में लड़ना बंद करें- शमा सिकंदर

धारावाहिक ये मेरी लाइफ है से चर्चित होने वाली अभिनेत्री शमा सिकंदर राजस्थान के मकराना शहर की है. उसने कई धारावाहिकों, फिल्मों और वेब सीरीज में काम किया है.  स्वभाव से बोल्ड और आत्मविश्वास से परिपूर्ण शमा को इंडस्ट्री में अपनी पहल बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. उसकी एक प्रोडक्शन हाउस ‘शमा सिकंदर फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड’ भी है.

इनदिनों शमा लॉक डाउन में घर पर बैठकर उन सभी कार्यों को निपटा रही है, जिसे वह व्यस्त रूटीन में नहीं कर पाती. उनसे बात करना रोचक था पेश है अंश.

सवाल-अभी आप क्या कर रही है?

आज मेरी हेल्पर जो घर पर मेरे साथ ही रहती है आलू पालक बनायीं है. मेरे पास कुछ केक बैटर पड़े है, जिसे मैं केक बना रही हूं. रात में कुछ मीठा खाने की इच्छा होती है, जो अब नहीं मिल पाता, इसलिए मैंने ग्लूटेन फ्री आलमंड केक और पास्ता बनाया है. कुछ हेल्दी फ़ूड खाने की कोशिश कर रही हूं. इसके अलावा मिक्स वर्कआउट करती हूं.

सवाल-अभिनय की इच्छा कहां से पैदा हुई?

मैं बचपन से ही अभिनय करने में तेज़ हूं. स्कूल बंक करने के लिए सफाई से झूठ बोला करती थी. जब भी स्कूल में नाटक होता था तो मेरे पिता को लगता था कि मैं अभिनय कर सकती हूं और वे मुझे नाटकों में भाग लेने के लिए कहते थे. उन्हें फिल्में देखने का बहुत शौक था.मैं उस समय बहुत ‘शाय नेचर’ की थी मुझमें हिम्मत नहीं थी कि मैं अभिनय करू,पर उनके कहने पर मैं करने लगी थी. छोटे शहर में रहने के बावजूद भी वे चाहते थे कि मैं अपनी पढ़ाई जारी रखूँ. उन्होंने हर तरह की आज़ादी दी,पर मुझे अपने आपको समझने में काफी समय लगा कि मैं अभिनय कर सकती हूं.

मेरे पिता का मार्बल का व्यवसाय था, उन्होंने कई सेलिब्रिटी के घर पर मार्बल का काम करवाया था. काम के दौरान वे मुंबई आते रहते थे, कई बार मेरा पूरा परिवार उनकी पार्टियों में शामिल होते थे, ऐसे में पिता को लगा कि मैं अभिनय कर सकती हूं और मुझे एक्टिंग स्कूल में प्रशिक्षण के लिए डाल दिया . पहले तो मुझे अभिनय पसंद नहीं था और लगता था कि मैं सुंदर नहीं हूं ,मैं अभिनेत्री नहीं बन सकती,पर धीरे-धीरे मुझे भी अच्छा लगने लगा.

सवाल-आपकी अब तक की जर्नी से कैसी रही ?

मैं एक छोटे शहर से हूं  ऐसे में मुंबई में आना और काम करना मेरे लिए चुनौती थी. मैंने 13 साल की उम्र में अभिनय शुरू कर दिया था, जो मेरे लिए चुनौती थी. मेरा कोई गॉड फादर नहीं था, इसलिए समस्या और अधिक होती थी. मैंने काम अधिक नहीं किया,लेकिन जो भी किया,वह अच्छा किया. इससे मेरे अंदर कई बार घमंड भी आये , पर मुझे जिंदगी ने इतनी पछाड़ लगाई कि मैं वापस सही हो गयी. मैंने जिंदगी में आभारी रहना सीखा है. मुझे कभी लगा नहीं था कि मैं यहाँ तक पहुँच पाऊँगी. मेरी डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर ने मुझे इसकी सीख दी है. मैंने अपनी जिंदगी को पूरे शानोशौकत से जी है और अब कोई मलाल रह नहीं गया है. मैंने आंसू भर- भर के पिया है और खुशियाँ को भी बहुत एन्जॉय किया है. मैं आज मौत से भी नहीं घबराती. मैंने हमेशा से मुसीबतों को ओपर्चुनिटी समझा है.

सवाल- पहला ब्रेक कब मिला ?

मैंने 13 साल की उम्र में काम करना शुरू कर दिया था. इसकी वजह हमारी वित्तीय अवस्था का अचानक ख़राब हो जाना था .परिवार काफी आर्थिक तंगी से गुजर रही थी. मैं परिवार में बड़ी हूं और जब पिता की ये हालत देखी, तो काम करने की ठान ली. कोशिश की और फिरोज खान ने फिल्म ‘प्रेम अगन’ में मुझे पहला ब्रेक दिया.

मुझे याद आता है कि एक रात  मैंने अपनी माता-पिता को रोते हुए देखा था. तब मुंबई में दंगे चल रहे थे,ऐसे में पैसे की व्यवस्था कैसे होगी,कैसे वे हमें भरपेट भोजन देंगे इसकी चिंता उन्हें सता रही थी,क्योंकि व्यवसाय ठप हो गया था.हम सब दंगे के शिकार थे. उसके बाद पिता को वापस अपनी आर्थिक अवस्था सुधारने में काफी वक़्त लगा,लेकिन तब तक हमारे पास घर चलाने के लिए कुछ नहीं था. इसलिए मुझे जल्दी काम करना पड़ा,क्योंकि उस समय मेरा मन भी पढ़ाई में नहीं लगता था. घर चलाना है बस यही सोचती थी, क्योंकि मुझसे छोटे तीन भाई- बहनों को सम्हालना था.

वहां से मेरा अभिनय कैरियर शुरू हुआ ,मैं छोटी-छोटी भूमिका जो भी मिलता उसे करने लगी थी,मुझे डांस आती थी, इसलिए  एक्स्ट्रा में खडी हो जाती थी,कोरियोग्राफर जो डांस सिखाते थे वही मुझे हर जगह ले जाते थे, ऐसे कर जो चार पांच सौ रूपये मिलते थे, वही बहुत बड़ी बात उस ज़माने में हुआ करती थी. जब मैंने  पहली कमाई 500 रुपये लेकर मम्मी के हाथ में दिया तो वह मुझे गले लगाकर रोने लगी थी.

सवाल- लॉक डाउन के बाद इंडस्ट्री में भी काफी बदलाव लाने की जरुरत है, कैसे क्या करना संभव हो सकेगा?

मेरी दो फीचर फिल्म थी, जो शुरू होने वाली थी और ये लॉक डाउन हो गया. आगे क्या होगा किसी के लिए कुछ भी कहना संभव नहीं है. लॉक डाउन के उठने के बाद भी दर्शकों को सिनेमा घरों तक आने में डर लगा रहेगा, क्योंकि भीड़भाड़ वाले जगहों पर लोग जाना पसंद नहीं करेंगे, ऐसे में इंडस्ट्री को नया रुख अख्तियार करने की आवश्यकता होगी और वे शायद कर भी रहे होंगे,क्योंकि फिल्मों में शूटिंग के वक़्त 300 से 400 लोग पूरी यूनिट में होते है. मेकअप मैन हमारे चेहरे को नजदीक से मेकअप करते रहते है. बहुत सारा रिस्क है, कैसे क्या होगा बताना मुश्किल है. मुझे लगता है, जो ऑनलाइन बने पड़े है उसे ही धीरे-धीरे रिलीज किया जायेगा.जब भी इस बारें में सोचती हूं तो निगेटिव ख्याल आते है इसलिए मैंने अब सोचना बंद कर दिया है.

सवाल-मेंटल हेल्थ को आपने अच्छी तरह से हमेशा हैंडल किया है इस परिवेश में किस तरह की सलाह सबको देना चाहती है?

नकारात्मक बातों को कभी भी सोचना सही नहीं होता, जिस बात का आपको पता नहीं, उसके बारें में न सोचना ही बेहतर होता है. इस लॉक डाउन के बाद कुछ बहुत अच्छा हो जाय और परिस्थिति पहले से कही और अधिक अच्छा हो जाय ये भी हो सकता है. तनाव होता है, उससे निकलने का रास्ता भी खुद को ही निकालना पड़ता है. मेरे हिसाब से कोई भी तनाव इतना बड़ा नहीं होता,जिससे आप निकल न सके.

सवाल-आपकी पर्सनल लाइफ कैसी चल रही है?

मेरे पार्टनर व्यवसायी जेम्स मिलायर्न है, उनके साथ मेरी सगाई हो चुकी है. मेरे साथ मुंबई में रहते है. शादी करने वाली हूं. हम दोनों की बोन्डिंग बहुत अच्छी है. मुंबई में ही वे मिले थे. मैं उनके साथ आजकल टिकटोक पर वीडियो बना रही हूं.

सवाल-क्या मेसेज देना चाहती है?

इस लॉक डाउन से दुखी न हो, जो मिल रहा है उसका आभार व्यक्त करें. धरती को सभी ने बहुत बर्बाद किया है. अभी डिटोक्स का समय है. इसे अच्छी तरह से हो जाने दे और इधर-उधर घूमने के बजाय घर में रहने का प्रयत्न करें. इसके अलावा इंसान अपने असल धर्म को समझे. धर्म के नाम पर आपस में लड़ना अब बंद करें.

महिला सशक्तिकरण में फिल्मों व महिला कलाकारों ने काम किया- शमा सिकंदर

पौपुलर टीवी व फिल्म एक्ट्रेस शमा सिकंदर 21 वर्ष के अपने करियर में हर माध्यम पर काम कर चुकी हैं. उन्होने करियर व जिंदगी के बीच सामंजस्य बैठाना सीख लिया है. शमा सिकंदर खुद को ‘‘महिला सशक्तीकरण और उत्थान’’की ध्वजवाहक मानती हैं.

खुद शमा सिकंदर कहती हैं-‘‘सिनेमा ने मुद्दों को मुख्यधारा में लाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. तो वहीं महिलाओं ने स्क्रीन सेल्यूलाइड के परदे पर महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले किरदार निभाए.  और ऐसा कई दशकों से होता रहा है.  फिर चाहे वह फिल्म‘मदर इंडिया’में नरगिस दत्त का किरदार रहा हो. फिल्म‘अर्थ’में शबाना आजमी हों या फिल्म‘कहानी’में विद्या बालन हो. अथवा फिल्म ‘‘शोले’’में बसंती के किरदार में हेमा मालिनी का अभिनय रहा हो. क्या हम ‘मदर इंडिया’या ‘शोले’की बसंती को कभी भुला सकते हैं. देखिए, महिलाओं के लिए सदैव मुद्दे सर्वोपरि रहे हैं और कोई भी मुद्दा ऐसा नहीं है,जिस पर महिलाएं आंखें मूंदे रहें. हमें मुद्दों को स्वीकार करना होगा और समाज को एक समाधान की ओर बढ़ना होगा.

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फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’में श्रीदेवीजी का किरदार भी इसी दिशा में एक सफल प्रयास था. श्रीदेवी ने तमाम फिल्मों में बेहतरीन काम किया.  भारतीय फिल्में पूरे विश्व में आधुनिक भारतीय महिला का प्रतिनिधित्व करती हैं. उनका प्रदर्शन शानदार रहा है. हम इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि राष्ट्रव्यापी रूप से हमारे पास हर क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण का एक समान स्तर है और महिलाओं और पुरुषों के नेतृत्व में एक बड़ा सामूहिक प्रयास करना होगा. मैं सभी से फिल्म देखने का आग्रह करती हूं. यह इस महिला दिवस पर आप सबसे अच्छी बात कर सकते हैं. महिला सशक्तीकरण पर ‘‘थप्पड़’’एक बेहतरीन फिल्में बनी है.  और सभी महिलाएं इसे देखने के बाद अपने लिए एक स्टैंड लेंगी. ‘‘

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शमा सिकंदर आगे कहती हैं-‘‘मुझे लगता है कि एक औरत  में बहुत सारी खूबियां होती हैं. हर औरत एक साथ कई काम सफलता पूर्वक कर सकती है,बशर्ते उसे इस बात का अहसास हो. अगर आपको पता है कि आप कर सकते हैं,तो आपको जरूर करना चाहिए. एक जिंदगी है,जितना कर सकते हैं,उतना कीजिए. मुझे नहीं लगता कि कहीं कोई सीमा है. यदि कोई किसी महिला से कहता है कि आपको यह काम नहीं करना चाहिए,तो वह पूरी तरह से गलत है. कम से कम मैं तो इसे पूर्णरूपेण गलत मानती हॅूं. मुझे लगता है कि मैं बहुत सारी चीजें अच्छे से कर सकती हूं,इसलिए कर रही हॅूं. मैंने हर तनाव और दबाव को झेला है. मैने खुद को मजबूत बनाने और सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ने का ही काम किया है. मेरी राय में हर महिला को दूसरो के लिए प्रेरणास्रोत बनना चाहिए. ’’

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