और बाइज्जत बरी…

17जनवरी, 2014 को सुनंदा पुष्कर नई दिल्ली के 7 स्टार होटल लीला पैलेस के सुइट नंबर 345 में मृत पाई गईं. प्रथम दृष्टया यह सभी को आत्महत्या का मामला लगा.

19 जनवरी, 2014 को सुनंदा पुष्कर का पोस्ट मार्टम हुआ. डाक्टरों ने कहा कि यह अचानक अप्राकृतिक मौत का मामला लगता है. उन के शरीर में ऐंटी ऐंग्जाइटी दवा अल्प्राजोलम के नाममात्र के संकेत मिले हैं. सुनंदा के हाथों पर एक दर्जन से ज्यादा चोट के निशान थे. उन के गाल पर घर्षण का एक निशान था और उन की बाईं हथेली के किनारे पर दांत से काटे का निशान था.

सुनंदा पुष्कर की मौत की जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपी गई. लेकिन मामला 2 दिन बाद वापस दिल्ली पुलिस को ट्रांसफर कर दिया गया.

जुलाई, 2014 में सुनंदा पुष्कर का पोस्ट मार्टम करने वाले पैनल के लीडर एम्स के डाक्टर सुधीर गुप्ता ने दावा किया कि उन पर औटोप्सी  रिपोर्ट में हेरफेर करने के लिए दबाव बनाया गया था. सुधीर गुप्ता ने केट यानी केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में एक हलफनामा दायर कर आरोप लगाया कि उन पर मामले को छिपाने और क्वाटर मैडिकल रिपोर्ट देने के लिए दबाव बनाया गया. सुधीर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सुनंदा के शरीर पर चोट के 15 निशान थे जिन में से अधिकांश ने मौत में योगदान नहीं दिया. बकौल डाक्टर सुधीर गुप्ता सुनंदा के पेट में अल्प्राजोलम दवा की अधिक मात्रा मौजूद थी.

जनवरी, 2015 में दिल्ली के तत्कालीन पुलिस आयुक्त बीएस बस्सी ने कहा कि सुनंदा पुष्कर ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उन की हत्या की गई है. इस के बाद दिल्ली पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

फरवरी, 2016 में दिल्ली पुलिस के विशेष जांच दल ने शशि थरूर से पूछताछ की जिस में उन्होंने कहा कि सुनंदा की मौत दवा की ओवर डोज के कारण हुई.

जुलाई, 2017 में भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली हाई कोर्ट से मांग की कि इस मामले की जांच सीबीआई के नेतृत्व वाले विशेष जांच दल से अदालत की निगरानी में करवाई जाए.

2018 में दिल्ली पुलिस ने शशि थरूर पर अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर को आत्महत्या के लिए उकसाने (आईपीसी की धारा 306) और क्रूरता (धारा 498ए) का आरोप लगाया. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें इस मामले में मुजरिम माना.

15 मई, 2018 को पुलिस ने शशि थरूर के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया.

जुलाई, 2018 में एक सैसन कोर्ट ने शशि थरूर को इस मामले में अग्रिम जमानत दी, जिसे बाद में नियमित जमानत में बदल दिया गया.

12 अप्रैल, 2021 को अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा.

ये भी पढ़ें- जनसंख्या नियंत्रण और समाज

18 अगस्त, 2021 को एक वर्चुवल सुनवाई में अदालत ने शशि थरूर को बरी कर दिया. अपना फैसले में अदालत ने कहा कि शशि थरूर के खिलाफ उन्हें ऐसा कोई साक्ष्य नजर नहीं आया जिस के आधार पर उन के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी जा सके. कोई भी जांच या रिपोर्ट सीधे तौर पर उन्हें कठघरे में खड़ा नहीं कर रही है इसलिए शशि थरूर को आरोपमुक्त किया जाता है.

यह हाई प्रोफाइल मामला जो बाद में टांयटांय फिस्स साबित हुआ पूरे साढ़े 7 साल चला लेकिन इस का जिम्मेदार शनि नाम का वह काल्पनिक क्रूर ग्रह नहीं है जो ज्योतिषियों की आमदनी का बड़ा जरीया है, जिस का खौफ भारतीयों के दिलोदिमाग में इस तरह बैठा दिया गया है कि वे इस से छुटकारा पाने के लिए मुहमांगी दानदक्षिणा देने को तैयार रहते हैं.

शशि थरूर पर कानूनी प्रक्रिया का शनि था जिस ने उन्हें साढ़े 7 साल चैन से न तो खानेपीने और न ही सोने दिया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सामान्य जिंदगी जीते हुए पूरे आत्मविश्वास से लड़े और जीते भी.

ऐसी थी इन की लव स्टोरी

सुनंदा पुष्कर उतनी ही सुंदर थीं जितना कि कश्मीर के बोमाई इलाके में जन्मी एक कश्मीरी पंडित परिवार की लड़की को होना चाहिए. सुनंदा के पिता पुष्कर नाथ दास सेना में लैफ्टिनैंट कर्नल थे. सुनंदा जितनी खुबसूरत थीं उतनी ही मेहनती, हिम्मती और महत्त्वाकांक्षी भी थीं. स्कूली और कालेज की पढ़ाई सुनंदा ने श्रीनगर के गवर्नमैंट ‘कालेज फौर वूमन’ से की और बतौर कैरियर बजाय नौकरी के बिजनैस को चुना. सुनंदा की पहली शादी कश्मीर के ही संजय रैना से हुई थी लेकिन दोनों में 3 साल में ही खटपट होने लगी जिस के चलते तलाक हो गया.

3 साल बाद ही 1991 में सुनंदा ने सुजीत मेनन नाम के व्यापारी से दूसरी शादी कर ली और दोनों व्यापार के लिए दुबई चले गए. व्यापार शुरू में तो ठीक चला पर बाद में जब घाटा होने लगा तो सुजीत भारत आ गए. इन दोनों को तब तक एक बेटा हो चुका था जिस का नाम इन्होंने शिव मेनन रखा.

सुजीत की 1997 में एक ऐक्सीडैंट में मौत हो गई तो सुनंदा टूट गईं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने दम पर बेटे की परवरिश करती रहीं. दुबई में उन्होंने ‘ऐक्सप्रैस’ नाम की इवेंट कंपनी शुरू की थी जो तरहतरह के इवेंट आयोजित करती थी. जिंदगी चलाने और पैसा कमाने के लिए सुनंदा ने कई नौकरियां भी कीं और आर्टिफिशियल ज्वैलरी का काम भी किया.

पैसा कमाने पर ज्यादा फोकस

बेटे शिव की एक बीमारी के इलाज के लिए सुनंदा लंबे वक्त तक कनाडा में रहीं और वहां की नागरिकता भी उन्होंने ले ली. दुबई वापस आने के बाद उन्होंने कई कंपनियों के साथ काम किया और खासा पैसा बनाया इतना कि दुबई के पौश इलाकों में उन्होंने 3 मकान ले लिए. पहले पति से तलाक और दूसरे की मौत का दुख सुनंदा भूलने लगीं क्योंकि उन्होंने लगातार खुद को व्यस्त रखा और ज्यादा से ज्यादा फोकस पैसा कमाने पर किया जो उन के लिए बहुत जरूरी थी.

सदमों से उबर चुकी सुनंदा को फिर सहारे की जरूरत महसूस हुई जो पूरी शशि थरूर जैसी नामी हस्ती से हुई. इन दोनों की पहली मुलाकात 2008 में दिल्ली में इंपीरियल अवार्ड समारोह में हुई थी. यहीं दोनों में दोस्ती हो गई. 1 साल दोनों एकदूसरे को डेट करते रहे. तब सुनंदा 46 साल की थीं और शशि थरूर 52 साल के थे. फिर दोनों दुबई में मिले तब सुनंदा वहीं रहती थीं.

दोनों परिपक्व थे, लिहाजा उन्होंने रोमांस के साथसाथ दुनियाजहान की भी बातें कीं और आने वाली जिंदगी की भी प्लानिंग की. शशि थरूर तब केंद्रीय मंत्रिमंडल में थे इसलिए उन्हें काफी संभल कर रहना पड़ता था.

छिपा नहीं प्यार

मगर यह प्यार छिपा नहीं रह सका लिहाजा सस्पेंस खत्म करते हुए दोनों ने न केवल शादी की घोषणा कर दी बल्कि 22 अगस्त, 2010 को शादी कर भी ली.

यह शादी शशि थरूर के पैतृक गांव पल्लल्कड में समारोहपूर्वक हुई जिस की चर्चा सिर्फ केरल में ही नहीं बल्कि पूरे देश और विदेशों में भी हुई थी. तिरुअनंतपुरम में भी प्रीतिभोज हुआ था और उस के बाद शशिसुनंदा हनीमून मनाने स्पेन के लिए उड़ लिए थे. दिलचस्प बात यह थी कि दुलहन की तरह दूल्हे की भी तीसरी शादी थी.

सब से आकर्षक और सोशल मीडिया पर सैक्सी व रोमांटिक सांसद के खिताब से नवाज दिए गए शशि थरूर की पहली शादी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और नेहरु मंत्रिमंडल में शामिल रहे कैलाश नाथ काटजू की पोती तिलोत्तमा मुखर्जी से 1981 में हुई थी.

तिलोत्तमा भी कालेज में बेहद लोकप्रिय थीं उस पर बेमिसाल खूबसूरत भी तो शशि उम्र में अपने से बड़ी इस लड़की पर मर मिटे. दोनों आधुनिक और अमीर परिवारों से थे, इसलिए कोई अड़चन उन की लव मैरिज में नहीं आई. शादी के बाद तिलोत्तमा नागपुर के एक कालेज में पढ़ाने लगीं और शशि संयुक्त राष्ट्र से जुड़ गए. शादी के बाद दूसरे साल ही इस कपल को जुड़वां बेटे हुए. नामालूम वजहों के चलते दोनों 2007 में अलग हो गए. तिलोत्तमा न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर हो गईं.

जाग उठी महत्त्वाकांक्षाएं

इस शादी के टूटने के बाद अफवाह यह उड़ी थी कि शशि का अफेयर संयुक्त राष्ट्र के एक विभाग की डिप्टी सैक्रेटी चेरिस्टा गिल से चल रहा था जो तिलोत्तमा को नागवार गुजरा था. इन दोनों के रोमांस के चर्चे भी संयुक्त राष्ट्र के गलियारे में होने लगे थे. सच क्या है यह तो शशि थरूर ही बेहतर बता सकते हैं, लेकिन अफवाहें निराधार नहीं थीं. उन्होंने 2007 में चेरिस्टा से शादी कर ली. अब तक वे संयुक्त राष्ट्र में डिप्टी सैक्रेटरी बन चुके थे जो पूरे देश के लिए गर्व की बात थी.

2008 में शशि थरूर देश वापस आ गए और कांग्रेस जौइन कर ली और 2009 का चुनाव जीत कर लोक सभा भी पहुंचे. इस खूबसूरत नेता को लोगों ने हाथोंहाथ लिया तो उन की महत्त्वाकांक्षाएं और भी सिर उठाने लगीं. लेकिन चेरिस्टा को भारतीय आवोहवा रास नहीं आई और एक तलाक और हो गया. हालांकि इस तलाक की वजह सुनंदा पुष्कर से उन की बढ़ती नजदीकियां भी आंकी गई थीं.

फिर आई मेहर

लगता ऐसा है कि शशि थरूर को पहले शादी फिर किसी और से रोमांस और फिर पत्नी को तलाक देने की लत सी पड़ती जा रही थी. सुनंदा ने उन के इस स्वभाव के बारे में शायद ज्यादा नहीं सोचा था या फिर ज्यादा ही सोच लिया होगा इसलिए वे डिप्रैशन की शिकार रहने लगीं. अब चर्चा उड़ी शशि थरूर और पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के अफेयर की जो शशि की जिंदगी में घोषित तौर पर आई तीनों महिलाओं से कम सुंदर और कम प्रतिभाशाली नहीं थीं.

जैसे ही एक दिन अपनेआप में घुट रहीं सुनंदा ने ट्विटर पर अपने पति के नए प्यार का अनावरण कर डाला तो फिर हल्ला मचा जो विवाद में उस वक्त बदला जब मेहर ने सोशल मीडिया पर इस पर प्रतिक्रिया दी. लगा ऐसा था मानों झग्गीझेंपड़ी की 2 औरतें साड़ी कमर में खोंसे एकदूसरे से कह रही हों कि संभाल कर क्यों नहीं रखती अपने खसम को और जबाव में दूसरी उसी टोन में कह रही है कि संभाल कर तो तू अपनेआप को रख… यहांवहां कमर मटकाती घूमती रहती है.

ये भी पढ़ें- मनमाफिक मकान मिलना है मुश्किल

मीडिया ने इस बार भी खूब चटखारे लिए तो शशिसुनंदा को संयुक्त बयान जारी कर अपनी निजी जिंदगी और गृहस्थी की दुहाई देनी पड़ी. लेकिन सुनंदा की मौत के कुछ दिन बाद ही ये अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि शशि अब मेहर से निकाह कर लेंगे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता पर मुकदमा चला तो शशि थरूर को पहली दफा कानून के माने समझ आए और अपना दर्द उन्होंने जताया भी जो आमतौर पर हर उस पति का है जिस पर घरेलू हिंसा का केस दर्ज है या फिर तलाक का मुकदमा चल रहा है.

बेनाम भी हैं परेशान

यह दर्द वही महसूस और बयान कर सकता है जिस ने झठे आरोपों से छुटकारा पाने के लिए सालोंसाल अदालत की चौखट पर एडि़यां रगड़ी हों. इस यंत्रणा को भोपाल के एक पत्रकार योगेश तिवारी के मामले से सहज समझ जा सकता है जिन के तलाक के मुकदमे का निबटारा 14 साल बाद भी नहीं हो पा रहा.

निचली अदालत ने तलाक की डिक्री दी तो पत्नी हाई कोर्ट पहुंच गई जो 11 साल में तय नहीं कर पा रहा कि तलाक का निचली अदालत का फैसला सही था या नहीं. हां उस ने पत्नी को स्थगन आदेश जरूर दे दिया.

अब मैं यह तय नहीं कर पा रहा कि मैं शादीशुदा हूं, अविवाहित हूं या फिर तलाकशुदा हूं. योगेश कहते हैं कि मेरी वैवाहिक स्थिति कानूनन क्या है यह बताने को कोई तैयार नहीं. मैं अब अधेड़ हो चला हूं, लेकिन जब तक हाई कोर्ट अपना फैसला नहीं देता तब तक मैं दूसरी शादी भी नहीं कर सकता. 14 साल से मैं कानूनी ज्यादतियों का शिकार हो रहा हूं. मैं किस से अपना दुखड़ा रोऊं. समाज और रिश्तेदारी में खूब बदनामी हो चुकी है.

क्या शादी करना और पटरी न बैठने पर तलाक के लिए अदालत जाना अपराध है? अदालतें और कानून क्यों पतिपत्नी की परेशानियां नहीं समझते?

कोर्ट की चिंता

ये परेशानियां हर वे पति और पत्नी भुगत  रहे हैं जिन्होंने अदालत का रुख किया. लेकिन चूंकि अदालत के बाहर शादी तो की जा सकती

है पर तलाक नहीं दिया जा सकता इसलिए  लोग इस और इस से जुड़े कानूनों को कोसते नजर आते हैं तो वे गलत कहीं से नहीं हैं.

अकेले जबलपुर हाई कोर्ट में तलाक के करीब  10 हजार योगेश जैसे मामले निबटारे की बाट  देख रहे हैं.

फिर देशभर के दूसरे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अलावा निचली अदालतों का क्या हाल होगा सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. बुढ़ाते कई पतिपत्नी अब नई जिंदगी की आस छोड़ने लगे हैं तो दोषी कानून नहीं तो और कौन है?

घरेलू हिंसा के कानून पर अब अदालतें खुद चिंता जताने लगी हैं कि इस का दुरुपयोग ज्यादा होने लगा है तो इस मासूमियत और अदा पर हंसी भी आती है और रोना भी कि कानून इस तरह बनाए ही क्यों जाते हैं जिन का दुरुपयोग होना संभव हो. योगेश जैसे पीडि़तों और भुक्तभोगियों से कोई सबक क्यों नहीं लिया जाता. कोई तलाक चाहता है चाहे वह पति हो या फिर  पत्नी उसे शादी के बंधन से जल्दी छुटकारा क्यों नहीं मिलता?

क्रूरता नहीं है तलाक

तलाक कोई क्रूरता नहीं है बल्कि क्रूरता से बचने का सब से आसान रास्ता है. जब पतिपत्नी का एक छत के नीचे रहना वजहें कुछ भी हों दूभर हो जाए तो उन्हें साथ रहने की नसीहत क्यों दी जाती है इस सवाल का जबाव ही फसाद और परेशानियों की असल जड़ है. कोई पत्नी या पति अदालत तलाक के लिए जाता है तो परिवार और समाज की निगाह में तो गुनहगार हो ही जाता है लेकिन कानून भी उसे बख्शता नहीं.

अदालत परिवार परामर्श केंद्र और दूसरी सरकारी एजेंसियां सुलह के लिए दबाव क्यों बनाती हैं? यहां से शुरू होती है परिक्रमा जिस से पीडि़तों को मिलता तो कुछ नहीं उलटे काफी कुछ छिन जाता है. मसलन, मानसिक शांति, प्रतिष्ठा, पैसा और सामाजिक स्थिरता जो सामान्य जिंदगी जीने के लिए हवा, पानी और भोजन की तरह जरूरी हैं.

फसाद की एक बड़ी जड़ तलाक से जड़े दूसरे कानून भी हैं. विदिशा की एक वकील उषा विक्रोल बताती हैं कि जल्दी तलाक के लिए अकसर महिलाएं पति और ससुराल बालों के खिलाफ दहेज मांगने और प्रताड़ना की झठी शिकायत दर्ज करा देती हैं और तुरंत ही भरणपोषण का भी दावा कर देती हैं जिस से एकसाथ 3 मुकदमे एक ही मंशा और मामले के चलने लगते हैं.

इन में अलगअलग तारीखें पड़ती रहती हैं और धीरेधीरे सुलह की गुंजाइश भी खत्म होती जाती है. पत्नी सोचती है कि पति तलाक देने में आनाकानी कर रहा है और पति सोचता है कि जिस औरत ने झठे आरोप लगा दिए अब तो उस के साथ सुलह व गुजर और भी मुश्किल है.

पतिपत्नी में से किस की कितनी गलती इस बात के कोई माने नहीं. उषा कहती हैं कि तलाक कानून और प्रक्रिया को नल या बिजली के कनैक्शन की तरह होना चाहिए कि एक आवेदन से वे कट जाएं. इस से मुमकिन है तलाक की दर बढ़ जाए पर उस में हरज क्या है. कानूनी अड़चनों और देरी के डर से हैरानपरेशान लोग अदालत ही न आएं यह कौन सा न्याय होगा और आने के बाद लोगों की हालत देख तरस आए यह भी न्याय नहीं कहा जा सकता. कुछ नहीं बल्कि कई मुवक्किलों की हालत देख कर तो लगता है कि पंचायत का जमाना ही ठीक था जब एक चबूतरे पर बैठे 4-5 लोग तलाक का फैसला सुना देते थे. अब तो फैसला ही मुश्किल हो चला है.

यह दर्द वही महसूस और बयान कर सकता है जिस ने झूठे आरोपों से छुटकारा पाने के लिए सालोंसाल अदालत की चौखट पर एडि़यां रगड़ी हों.

कानून के फ्रेम में थरूर

कानून की वेवजह की देर जो अंधेर से कम नहीं के फ्रेम में शशि थरूर भी फिट होते हैं जो मुमकिन है राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार हुए हों. लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि सुनवाई और फैसलों में गैरजरूरी देरी क्यों? अदालत से बरी होने के बाद उन की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि यह अकेले उन की नहीं बल्कि लाखोंकरोड़ों लोगों की व्यथा है.

उन का 2 बार आसानी से तलाक हुआ क्योंकि दोनों ही पक्ष पर्याप्त शिक्षित, आधुनिक और परिपक्व होने के अलावा समझदार भी थे. लेकिन सुनंदा की मौत के बाद उन्हें कानूनी कू्ररता का एहसास हुआ तो उन्होंने फैसला देने वाली न्यायाधीश गीतांजलि गोयल का आभार व्यक्त करने के बाद कहा-

यह साढ़े 7 साल की पूर्ण यातना थी. यह उस डरावने सपने का अंत है जिस ने मेरी दिवंगत पत्नी सुनंदा के दुखद निधन के बाद मुझे घेर लिया था.

? मैं ने भारतीय न्यायपालिका में अपने विश्वास की वजह से दर्जनों निराधार आरोपों और मीडिया में की गई बदनामी को

धैर्यपूर्वक झेला है और न्यायपालिका में आज मेरा विश्वास सही साबित हुआ है.

? हमारी न्यायप्रणाली में अकसर सजा ही  होती है.

ये भी पढे़ं-जनसंख्या विस्फोट से अधिक खतरनाक है क्लाइमेट चेंज, जानें यहां

न्याय मिलने के बाद मैं और मेरा परिवार सुनंदा का शोक शांति से मना पाएंगे. लेकिन सब से ज्यादा अहम शशि थरूर के वकील विकास पाहवा का यह कहना उल्लेखनीय रहा कि पुलिस ने जो आत्महत्या के लिए उकसाने और क्रूरता के आरोप थरूर पर लगाए थे वे बेतुके थे. यह बात अदालत में साबित भी हो चुकी है जिस के चलते जो यंत्रणाएं शशि थरूर ने भुगतीं और जो दूसरे लोग भुगत रहे हैं उन्हें राहत देने के लिए कोई राह क्यों नहीं तलाशी जा रही? पुलिस और सीबीआई जैसी संस्थाओं को सरकार का तोता कहा जाने लगा है तो इसमें गलत क्या है? किसी आत्महत्या के 4 साल बाद किसी को अभियुक्त बनाया जाना और आत्महत्या को हत्या का मामला बनाए जाने की कोशिश करना कानून की हत्या नहीं तो क्या है जिसे करता कोई और है और सजा बेगुनाहों को भुगतना पड़ती है?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें