Serial Story: शायद (भाग-1)

‘‘मेरेसपनों को हकीकत में बदलने वाले आप क्या हो, आप नहीं समझ सकते. आप के लंबे से घने ब्राउन बालों में उंगलियां फिराना ऐसा है जैसे जंगल की किसी घनेरी शाम में अल्हड़ प्रेमी के साथ रात बिताने का ख्वाब. आप का चेहरा तो जैसे भोर का सूरज. 6 फुट की आप की बलिष्ठ काया मेरे लिए तूफान का रास्ता रोक लेगी. प्रद्युमन, मैं वापस आऊंगी तो आप प्रांजल को एक भाई देंगे वादा करो… आप के शरीर का अंश अपनी देह में सजाना चाहती हूं मैं.’’

‘‘प्रेक्षा, अभी तुम्हारी पढ़ने की उम्र है. इन खयालों को अब दिल से निकाल फेंको. तुम्हें कई सालों से यही समझा रहा हूं मैं… विद्या साधना मांगती है. तुम्हारा ध्यान इतना भटकता क्यों है? क्यों तुम अपने मन को इतनी खुली छूट देती हो? कैरियर बनाने का समय है यह, यह क्यों नहीं समझती?’’

‘‘चलो कुछ भी नहीं कहूंगी आप से फिर कभी, बल्कि बात ही नहीं करूंगी आप से.’’

‘‘प्रेक्षा,’’ वे उसे अपनी ओर खींच आलिंगन में बांध उस के होंठों पर मिठास से भरपूर चुंबन रख देते हैं. फिर कहते हैं, ‘‘तुम्हारा कैरियर से ध्यान न बंटे यही चाहता हूं न मैं.’’

‘‘पर मेरा ध्यान तुम्हारी ओर तब तक रहेगा जब तक तुम मुझ पर पूरी तरह ध्यान नहीं दोगे,’’ मोहपाश में डूबीडूबी सी प्रेक्षा ने प्यार जताया.

‘‘मेरे प्यार को नहीं समझती तुम?’’

‘‘समझती हूं, तभी तो तुम्हारे आगोश में डूबी रहना चाहती.’’

‘‘अब तो तुम 19 साल की हो गई, बड़ी हो गई हो न… अब और ध्यान न भटकने दो… तुम्हें इतनी दूर पिलानी भेज कर मैं कितना चिंतित रहूंगा मैं ही जानता हूं, लेकिन हमेशा रिजल्ट अच्छा करोगी तो ये 4 साल निकाल ही लूंगा.’’

‘‘तुम्हारे ऊपर सालभर के प्रांजल की जिम्मेदारी दे कर जा रही हूं. एक तो पहले तुम्हारा ही खानेपीने और सोने का ठिकाना न था, कोई देखभाल को न था. अब कोचिंग की जिम्मेदारी के साथ मेरी गलती का खमियाजा भी… सौरी प्रद्युमनजी मुझे माफ कर दो.’’

एक बार फिर प्रेक्षा को प्रद्युमन ने कस कर आलिंगन में बांध लिया. प्यार से उस का कान मरोड़ते हुए बोले, ‘‘इस छोटी सी नासमझ बच्ची को अब बड़ीबड़ी बातें करना आ गया है… अब जरूर अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह समझेगी. तुम प्यारी बच्ची हो. तुम्हारे लिए सबकुछ करूंगा, पिलानी से पढ़ाई खत्म कर के आओ तुरंत प्रांजल को एक बहन से नवाजूंगा.’’

ये भी पढ़ें- गाड़ी बुला रही है- क्या हुआ मुक्कू के साथ?

प्रेक्षा ने प्रद्युमन का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘हां ठीक है, लेकिन खबरदार जो फिर कभी बच्ची कहा.’’

समंदर सी गहरी और चांद सी शीतल नजर डाल प्यार से निहारते हुए प्रद्युमन ने कहा, ‘‘चलोचलो, ट्रेन का समय हो रहा है?’’

प्रद्युमन प्रांजल को गोद में उठाए सामान सहित प्रेक्षा को लिए स्टेशन की ओर निकल गए.

प्रेक्षा जिस से इतना लाड़ जता रही थी वे प्रद्युमन हैं. 44 साल के नौजवान से दिखते अधेड़. इन का अपना दोमंजिला मकान है, पुराना है. इन के पिता का मकान, जिन्हें अभीअभी इन्होंने नए सिरे से सजा कर कुछ लग्जरी रूप दिया है. वैसे तो वे शौकीनमिजाज ही हैं, लेकिन कारण यह भी है कि इन के घर अब एक परी जो हमेशा के लिए आ गई है उन की प्रेक्षा.

जिंदगी से जूझती बिस्तर पर पड़ी मां के काफी करीब रहे प्रद्युमन. उन का हर काम अपने हाथों से करने के लिए उन्होंने कभी नौकरी की तलाश ही नहीं की, जबकि मैथ बेस्ड साइंस के स्कौलर हैं वे.

इकलौता बेटा और बीमार मां, एकदूसरे को ले कर स्नेह की डोर में

बंधे, एकदूसरे को ले कर असुरक्षित. कभी शादी का खयाल न आतेआते 42 साल के हो चुके थे प्रद्युमन, जब प्रेक्षा से उन का पाला पड़ा. हां, पाला ही. समझ जाएंगे क्यों.

अपनी इच्छाओं और वासनाओं को मार कर मां के प्रति अदम्य सेवा की भावना से ओतप्रोत यह शख्स अपनी कोचिंग में आने वाले बच्चों के प्रति भी बहुत संवेदनशील था. प्रद्युमन हर बच्चे से साल के क्व10 हजार लेते, लेकिन बदले में उन की सफलता के प्रति इस से 10 गुना ज्यादा समर्पित रहते. इन में से कई बच्चे खुद ही अपने कैरियर के प्रति जागरूक थे, लेकिन कई बच्चे ऐसे भी थे, जिन्हें सही दिशा में प्रेरित करने के लिए उन्हें बड़ी जुगत लगानी पड़ती. इन्हीं में एक प्रेक्षा थी. यह 17 साल की 11वीं कक्षा में पढ़ती एक दुबलीपतली बालिका थी. थी तो वह छोटी सी बालिका, लेकिन अब जैसे उस की काया में वसंत का उल्लास बस प्रकट होने ही वाला था. वह पढ़ने में खासकर मैथ में तेज थी, लेकिन उम्र का कच्चापन उस के मन के बालक को हमेशा ही इधरउधर दौड़ा देता. वह भटक जाती… पढ़ाई कम होती. प्रेम विलास के सपने ज्यादा देखे जाते, कैरियर पर फोकस उसे ऊबा देता.

प्रद्युमन की मां का देहांत हो गया. कुछ दूर के रिश्तेदारों का आनाजाना लगा, कई लोग कई तरह की सलाह ले कर आगे आए. उन में से एक मुख्य सलाह थी कि प्रद्युमन की मां के खाली कमरे को वह पेइंग गैस्ट के रहने के लिए दे दे. दरअसल, एक रिश्तेदार के पहचान के लड़के को इस शहर में एक कमरा चाहिए था, जहां पेइंग गैस्ट की तरह रह कर वह 12वीं कक्षा के बाद कोचिंग इंस्टिट्यूट में इंजीनियरिंग की तैयारी कर सके.

रिश्तेदार ने प्रद्युमन को उस की मां के जाने के बाद के अकेलापन भरने के लिए इतना समझाया कि आखिर प्रद्युमन भी इस बात पर राजी हो गए कि उस लड़के को पेइंग गैस्ट की तरह रहने दिया जाए. बुरा भी क्या था अगर कुछ रुपए और आ रहे हैं? सच तो यह भी था कि आजकल मां का खाली कमरा उन्हें बारबार मां की याद दिलाता और वे दुखी हो जाते.

ये भी पढ़ें- दर्द का रिश्ता- क्या हुआ अमृता के साथ?

इस विकल्प में प्रद्युमन की सहमति की मुहर लगते ही रिश्तेदार के पहचान के लड़के की समस्या हल हो गई.

गेहुआं रंग, मध्यम हाइट, हाथ में एक सूटकेस, पीठ पर बैग और दूसरे हाथ में गिटार ले कर निर्वाण आ पहुंचा. घर के पीछे की सीढि़यों से ऊपर का कमरा बता दिया प्रद्युमन ने. निर्वाण इस बड़े शहर में इंजीनियरिंग कोचिंग के लिए आया था. उस के छोटे से शहर में इस तरह की अच्छी कोचिंग की सुविधा नहीं थी

और एक नामी इंस्टिट्यूट में कोचिंग के लिए भेजने का मतलब ही था उस के घर वालों का अटैची भर कर सपनों का बोझ साथ भेजना. उसे पूरी तैयारी के साथ जेईई की ऐंट्रेंस परीक्षा में बैठना था.

आगे पढ़ें- प्रद्युमन के घर निर्वाण को सारी सुविधाएं थीं…

Serial Story: शायद (भाग-2)

पहला भाग पढ़ने के लिए- शायद भाग-1

प्रद्युमन के घर निर्वाण को सारी सुविधाएं थीं. पढ़ाई के साथसाथ वह आसानी से गिटार के रियाज का समय भी निकाल लेता था. गिटार उस का पैशन था. जब वह एक के बाद एक गानों की धुन पर उंगलियां थिरकाता तो नीचे कोचिंग में बैठी प्रेक्षा अपनी सुधबुध खो देती. महीन सपने सतरंगी रथ पर बैठ इंद्रधनुष के पार चले जाते. अनुभूतियां सिहर कर सिर से पांव तक दौड़ जातीं और जब वह चौंक कर देखती तो गणित के सवाल पर उस की कलम मुंह के बल चारों खाने चित्त पड़ी मिलती.प्रद्युमन की सभी बच्चों पर बराबर नजर थी, लेकिन प्रेक्षा पर उन का ध्यान आजकल ज्यादा ही रहता. परीक्षाएं शुरू होने वाली थीं पर इस लड़की का हाल कुछ सही नहीं था. सारा सिखाया हुआ भूलती जा रही थी, स्कूल की कौपी में बारबार खराब प्रदर्शन था. डांटने और चिंता व्यक्त करते रहने से जब प्रेक्षा पर कोई असर नहीं हुआ तो प्रद्युमन ने एक दिन अकेले में उसे रोक लिया. वे कुरसी पर बैठे थे. प्रेक्षा सिर झुकाए सामने खड़ी थी. उन में बातचीत कुछ यों हुई-

‘‘और कितना समझाऊं तुम्हें? क्यों न अब तुम्हारे पापा को खबर करूं? पर वे इतना रुपया खर्च कर रहये हैं… कुछ तो उम्मीद होगी तुम से… मैं यह नहीं कहता कि सौ प्र्रतिशत लाओ, लेकिन कुछ तो रिटर्न दोगी उन्हें.’’

‘‘पापा से न कहना प्लीज.’’

‘‘क्यों? उन्हें पता चलना चाहिए?’’

‘‘पापा को इस कोचिंग के बारे में पता नहीं है.’’

‘‘क्यों क्व10 हजार तुम्हारी मां ने तो दिए नहीं होंगे… नौकरी तो वे करती नहीं.’’

‘‘मां ने ही दिए, अपने कुछ गहने बेच कर.’’

‘‘क्या समस्या है? मुझे बताओ?’’

‘‘हम 3 बहनें हैं, मां चाहती हैं हम तीनों ही खूब पढ़ेलिखें और घर में लड़कों की कमी को पूरा करें, पर पापा को इन बातों से चिढ़ है. खासकर मुझ से… मेरी जगह उन्हें एक लड़के की चाह थी.

‘‘मेरी दीदी मुंबई में नौकरी करती हैं. वे वहां बहुत खुश हैं. वे अपने बौयफ्रैंड से शादी करने वाली हैं, हमें हमेशा ढेरों तसवीरें दिखाती रहती हैं… उन्हें पापा से अब कोई मतलब नहीं और न ही पापा उस की जिंदगी में दखल देते हैं. हम दोनों बहनों की वे जल्द शादी कर देंगे, लेकिन मैं अपनी पसंद की जिंदगी जीना चाहती हूं.’’

प्रद्युमन ने प्रेक्षा के घर वालों से सलाह करने की बात छोड़ दी, लेकिन उन की चिंता दिनोंदिन बढ़ती गई.

चोरीछिपे वैसे तो निर्वाण से प्रेक्षा की नजरें टकरातीं, लेकिन जहां इस की प्रेरणा ही हो वहां रोके से कौन रुका है? तो दोस्ती की शुरुआत कुछ इस तरह हुई-

निर्वाण ऊपर अपने कमरे में गिटार बजा रहा था. उस की धुनों ने प्रेक्षा की

कोमल कल्पनाओं में पंख लगा दिए. एक दिन उस ने जल्द पढ़ाई खत्म कर घर जाने की छुट्टी मांगी और अपना बैग समेट कर बाहर निकल आई. पीछे की  सीढि़यों का रास्ता पकड़ा उस ने और सीधे निर्वाण के कमरे के दरवाजे की ओट पकड़ कर लगभग उस के सामने खड़ी हो गई. आंखों में प्रशंसा, होंठों पर सलज्ज मुसकान, कच्ची सी कली का आगे बढ़ कर इस तरह मान प्रदर्शन नए शहर में नई उम्र के लड़के को भला क्यों न अच्छा लगता? इश्क की बग्घी चल पड़ी उन की. अब दोनों को अपनी इस भरी व्यस्तता के बीच प्यार के लिए भी समय निकालना था. दोनों तालमेल बैठाते रहे.

परीक्षाएं शुरू हो चुकी थीं. प्रेक्षा की तबीयत कुछ दुविधा में डालने वाली थी. घबराहट, भय, निर्वाण को खोने की शंका ने उसे परेशान कर दिया था. जैसेतैसे परीक्षा में ध्यान लगाने के बावजूद वह 11वीं कक्षा की परीक्षा में सफल नहीं हो पाई.

ये भी पढ़ें- लंबी कहानी: न जानें क्यों भाग-3

प्रद्युमन मर्माहत थे. उन की स्थिति कुछ विकट हो गई. उन्होंने प्रेक्षा की मां से प्रेक्षा की ट्यूशन फीस ली हुई थी. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद प्रेक्षा का प्रदर्शन बचा नहीं पाए. उन्होंने प्रेक्षा से बातचीत बंद कर दी. प्रेक्षा भी अब यहां नहीं आ पा रही थी.

समय कुछ और बीत गया. निर्वाण का जेईई में चयन हो गया और फिर रातोंरात वह प्रद्युमन से हिसाब चुकता कर के ज्यादा कुछ बोले बिना निकल गया.

इस के 10 दिन के बाद प्रेक्षा प्रद्युमन के घर आई और सब से पहले बेचैन सी निर्वाण को मिलने ऊपर गई. अपने अंदेशे को निर्वाण से साझा करना था उसे, लेकिन खाली कमरे की दीवारों ने उस के गाल पर करारा थप्पड़ जड़ दिया. वह हैरान सी हर दीवार को ताकती रही. वह दौड़ती हुई नीचे आई. ट्यूशन वाले बच्चों की आज छुट्टी थी.

वह प्रद्युमन के आगे जा कर खड़ी हो गई. बड़ा रोष था मन में. कहीं प्रद्युमन सर ने ही तो जाने का रास्ता नहीं दिखा दिया उसे? उन्हें पता तो चल ही रहा था उन दोनों के बारे में… सोचते हुए प्रेक्षा की सांसें फूल आईं. वह अपनी परीक्षा और रिजल्ट के बारे में भूल चुकी थी. निर्वाण के साथ उस के भविष्य के सपनों की चिंदीचिंदी बिखर जाना अभी उस का सब से बड़ा सच था और जिस के लिए प्रद्युमन नामक वास्तव के इस कठोर धरातल को वह पहला जिम्मेदार मान चुकी थी.

लुटीपिटी हांफती वह प्रद्युमन से पूछ रही थी, ‘‘निर्वाण क्यों चला गया? रोष से भरी प्रेक्षा लगभग फट पड़ी थी प्रद्युमन पर.’’

प्रद्युमन अचरज से भर गए, लेकिन तुरंत उन्हें प्रेक्षा की स्थिति का भान हुआ और फिर कुछ सहज हो गए. प्रेक्षा का हाथ पकड़ कर सब से पहले तो वे उसे अपने नजदीक लाए और फिर कहा, ‘‘प्रेक्षा, मैं ने निर्वाण से जाने को नहीं कहा. तुम वहम में इतना डूब गई हो कि तुम्हारे सिर के ऊपर से कितने ही युग निकल कर चले गए, तुम्हें पता ही नहीं चला. तुम 11वीं कक्षा में फेल हो चुकी हो. निर्वाण की कोचिंग समाप्त हो चुकी है. उस ने अपने सपने को पकड़ लिया है. उस का इंजीनियरिंग में चयन हो गया है और वह वापस चला गया, तुम्हें कुछ भी बताए बिना. अब तुम भी होश में आओ, उसे लगभग झंझोड़ते हुए प्रद्युमन आवेश में आ गए थे.

आगे पढ़ें- प्रेक्षा रोते हुए वहीं जमीन पर बैठ गई…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें