संगीत की बदलती दुनिया के बारें में क्या कहती है सिंगर प्रिया सरैया

सिर्फ 6 साल की उम्र से संगीत की क्षेत्र में कदम रखने वाली गायिका और गीतकार प्रिया सरैया मुंबई की है. उन्होंने गान्धर्व महाविद्यालय से हिन्दुस्तानी क्लासिकल संगीत की ट्रेनिंग ली है. इसके बाद लंदन, ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ़ म्यूजिक, मुंबई ब्रांच से वेस्टर्न म्यूजिक का  प्रशिक्षण लिया है.इसके बाद वह कल्यानजी आनंदजी के साथ कई वर्षो तक स्टेज शो की और तालीम ली. काम के दौरान उनकी मुलाकात संगीतकार, गायक जिगर सरैया से हुई और कई साल की परिचय के बाद शादी की और एक बेटे माहित की माँ बनी. उनकी इस जर्नी में उनके ससुर मुकुल सरैया ने काफी सहयोग दिया है. मृदुभाषी और शांत प्रिया सरैया ने संगीत क्षेत्र के बारें में बात की पेश है अंश.

सवाल- संगीत की क्षेत्र में कैसे आना हुआ, किससे आप प्रेरित हुई?

मैने छोटी उम्र से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना शुरू किया. आगे बढ़ने पर मेरी मुलाकात संगीतकार पद्मश्री कल्याण-आनंद जी से हुई. उनके साथ रहते हुए मैंने बहुत सारे स्टेज शो किये. उन्होंने ही स्टेज शो का दौर शुरू किया था. इस तरह से मेरा उनके साथ 16 साल का एसोसिएशन स्टेज शो के लिए रहा. आगे कुछ नया करने की सोच ने मुझे गीतकार बना दिया, क्योंकि बचपन से ही मुझे लिखने का शौक था, लेकिन उसे प्रोफेशनल तरीके से नहीं किया था. इसके अलावा कई नामी-गिरामी लोगों से मिलना, आई.पी.आर.एस. में काम करना, जहाँ बड़े-बड़े लेखक और कंपोजर आते है. उनके साथ मिलकर मैंने बहुत सारे काम सीखे और हिंदी सिनेमा में मैंने गीतकार के रूप में भी काम किया.

परिवार में कोई भी संगीत से जुड़े नहीं है, लेकिन संगीत सबको पसंद है. मेरे दादाजी रतिलाल पांचाल बहुत अच्छा गाते थे, प्रोफेशनली कोई जुड़ा नहीं था. मैं परिवार की पहली लड़की हूं ,जिसे संगीत में इतनी उपलब्धि मिली है. कल्याण जी से मेरी मुलाकात स्कूल की एक कम्पटीशन में हुई थी, वहां जज के रूप में वे आये थे और मुझे चुना था. उन्होंने ही मेरे परेंट्स से कहा था कि मुझे संगीत की तालीम देने पर मैं अच्छा कर सकती हूं. मेरे पेरेंट्स ने उनकी बात मानी और आज मैं यहाँ हूं. मेरे पिता जीतेन्द्र पांचाल इंजिनियर है और इंटीरियर डेकोरेटर का काम करते है, माँ हंसा पांचाल हाउसवाइफ है.

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सवाल- आपके साथ परिवार का सहयोग कितना था?

पूरे परिवार का ही सहयोग रहा है, आज से 25 साल पहले जब मैं स्टेज शो में जाती थी, आज की तरह टीवी रियलिटी शो नहीं थी. संगीत और नृत्य को हॉबी ही माना जाता था, ऐसे में लड़कियों का बाहर जाकर शो करने को लोग अच्छा नहीं मानते थे, कईयों ने यहाँ तक कहा कि बेटी को रात-रात भर आप बाहर क्यों रखते हो? ऐसी कई कमेंट्स पेरेंट्स को सुनने पड़ते थे, पर उन्होंने आगे की बात सोचकर तालीम दी. लड़की और लड़के में कभी फर्क नहीं समझा.

सवाल- जिगर सरैया से मिलना कैसे हुआ?

उनसे मैं फेसबुक के ज़रिये मिली थी. हिंदी फिल्म ‘फालतू’ का काम चल रहा था. उन्होंने फेसबुक के जरिये एक यंग राइटर चाहते थे, क्योंकि फिल्म कॉलेज बेस्ड थी और शब्द यंग बच्चों को ध्यान में रखकर लिखना था. मैं उनसे स्टूडियों में जाकर मिली और काम शुरू किया. वे जो भी धुन बनाते थे, मैं उसमे शब्द भरने का काम डमी में करती थी, जिसे निर्देशक और निर्माता सभी ने पसंद किया. इस तरह से मैंने करीब 20 फिल्मों के शब्द लिखे है.

सवाल- क्या दोनों एक क्षेत्र से होने की वजह से कभी किसी गीत को लेकर मतभेद हुई?

ये सामान्य है और बहुत बार होता है, क्योंकि ये ह्युमन एक्सप्रेशन है. कई बार लड़ाईयां भी होती है, लेकिन जब गाना तैयार होकर आता है और लोग पसंद करते है, तो सब भूल जाते है.

सवाल- आजकल फिल्मों में गाने कम रह गयी है, रियल कहानियों को लोग पसंद कर रहे है,जिसमे गाने कम होते है,ऐसे में प्ले बैक सिंगर की भूमिका हिंदी फिल्मों में कितनी रह जाती है?

फिल्मों में गाने भले ही कम हो, लेकिन इंडिपेंडेंट गानों का क्रेज़ बढ़ा है. सारे सिंगर्स इंडिपेंडेंटली अपनी टैलेंट को दिखा रहे है. सिंगर्स अभी कंपोज करने के अलावा गाने को लिख भी रहे है. कलाकार को बाँध कर नहीं रखा जा सकता.

सवाल- आज अभिनय करने वाले भी गाना गा रहे है और उनके स्वर में किसी प्रकार की कमी को तकनीक के सहारे ठीक कर लिया जाता है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

मेरा मानना है कि पुराने ज़माने में भी अभिनय करने वाले गाया भी करते थे, जिसमें किशोर कुमार, गीता दत्त,नूरजहाँ आदि थे, लेकिन उनकी आवाज अच्छी थी. आज तकनीक से कुछ गानों को ठीक भले ही कर लें, एक समय बाद सिंगर जरुरी है. सारे लोग अपने शौक पूरे कर रहे है और मंच मिलने पर ये करना सही भी है.

सवाल- गीत के बोल पहले जैसे खूबसूरत अब नहीं है, सुर बनाने के बाद उसमें बोल फिट कर दिये जाते है,इसे कैसे आप लेती है?

गानों में कवितायेँ कम हो रही है, इस बात से मैं सहमत हूं और एक लेखक होने की वजह से मैं इसकी महत्व को समझती हूं. इसमें मैं श्रोता जो गानों को सुनती और हिट बनाती है, उनके लिए वे जो सुनना चाहते है, उसे ही वे बनाते है, कविताओं के शौक़ीन लोग इरशाद कामिल और अमिताभ भट्टाचार्या के गाने सुनते है. ये तो चलने वाला है.

सवाल- पहले संगीत के बोल कहानी के आधार पर लिखी जाती रही है, क्योंकि हिंदी फिल्मों में गीत भी कहानी को आगे बढाती है, अब गानों को पहले बनाकर फिल्मों में फिट कर दिया जाता है, क्या इसकी वजह से फिल्मो की कहानी और गानों का तालमेल सही हो पाता है?

पहले साल में 3 से 4 फिल्में बनती थी, अब साल में 250 से 300 फिल्में बनती है. अब प्रोड्यूसर को फटाफट गाने चाहिए, वे रुक नहीं सकते, समय नहीं है. पहले लिरिक्स लिखने वालो को काफी समय शब्दों को लिखने के लिए मिलता था. इससे वे कहानी को सुनकर उसके आधार पर एक फ्रेश कविता संगीतकार को दे पाते थे और गाने अच्छे बनते थे. मैंने तेरे नाल इश्क हो गया, बदलापुर आदि के गाने सिचुएशन के आधार पर लिखे है, कुछ निर्माता, निर्देशक बोल लिखने के लिए आज भी काफी समय देते है.

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सवाल- आगे की योजनायें क्या है?

पेंडेमिक ख़त्म होने के बाद खुलकर गानों का लिखना, गाना और शो करने की इच्छा है.

सवाल- नए सिंगर्स के लिए क्या मेसेज देना चाहती है?

रियलिटी शो की वजह से आज के गायकों को मंच मिलता है, लेकिन इसके बाद इंडस्ट्री में कायम रहने के लिए उन्हें आगे बढ़ने की भूख कम दिखाई पड़ती है, क्योंकि सबको काम मिल जाता है. शार्टटर्म प्रसिद्धी के बाद उन्हें उस ताज के ईगो को हटाकर अधिक मेहनत और सीखने की जरुरत होती है, ताकि वे आगे भी अच्छा काम कर सकें.

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