अगर आपका भी है इकलौता बच्चा तो हो जाएं सावधान

जिन मातापिता का एक ही बेटा या बेटी है, वे सावधान हो जाएं. एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जिन दंपतियों का एक ही बच्चा है तो उस के मोटापे का शिकार होने की संभावना 2 या 2 से अधिक बच्चों वाले परिवार की तुलना में ज्यादा होती है. यह अध्ययन 12,700 बच्चों पर किया गया. यह अध्ययन यूरोपीय रिसर्च प्रोजैक्ट आईडैंटिफिकेशन ऐंड प्रिवैंशन औफ डाइटरी ऐंड लाइफस्टाइल इंडस्ट हैल्थ इफैक्ट्स इन चिल्ड्रन ऐंड इंफैक्ट्स का हिस्सा है. इस प्रोजैक्ट का उद्देश्य 2 से 9 साल तक के बच्चों के खानपान, जीवनशैली और मोटापा व उस के प्रभावों पर गौर करना है. यूनिवर्सिटी औफ गोथेनबर्ग स्थित साहग्रैस्का ऐकैडमी में अनुसंधानकर्ता मोनिका हंसबर्गर का कहना है कि जिस परिवार में एक ही बच्चा है, उस में मोटापे का खतरा ज्यादा बच्चों वाले परिवार की तुलना में 50% से अधिक होता है. इस की वजह छोटे परिवार का माहौल और पारिवारिक संरचना में अंतर हो सकता है. अध्ययन के अनुसार यूरोप में 2.20 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार हैं. इटली, साइप्रस और स्पेन में बच्चों में मोटापा यूरोप के उत्तरी देशों की तुलना में 3 गुना अधिक है.

बीमारियों का खतरा

लगभग 70% मोटे बच्चों के भारीभरकम वयस्क में स्थानांतरित होने की पूरी आशंका रहती है. एकतिहाई बच्चे अपनी किशोरावस्था तक मोटे हो जाते हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 13 से 16 साल के बीच की उम्र सीमा में हर 10 में से 1 स्कूली बच्चा मोटापे का शिकार है. ऐसोचैम द्वारा विश्व हृदय दिवस के ठीक पहले किए गए सर्वेक्षण में 25 निजी और सरकारी स्कूलों के 3,000 बच्चों को शामिल किया गया. बच्चों में तेजी से बदलती जीवनशैली और खानपान की आदतों को इस के लिए जिम्मेदार बताया गया. लगभग 35% अभिभावक अपने बच्चों को रोज 40 से 100 रुपए दिन के समय कैंटीन में भोजन करने के लिए देते हैं, जबकि 51% बच्चे 30-40 रुपए पास्ता और नूडल्स में खर्च करते हैं. सर्वेक्षण में कहा गया है कि मोटापे के शिकार बच्चों में हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा 35% तक बढ़ जाता है. मोटे बच्चों में उच्च रक्तचाप, उच्च कोलैस्ट्रौल स्तर, मधुमेह और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है.

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अगर आप का बच्चा मोटा है

क्या आप नहीं चाहेंगे कि आप का बच्चा ताउम्र स्वस्थ और निरोगी रहे? लेकिन यदि वह बचपन में ही मोटापे की गिरफ्त में आ गया तो उस का परिणाम उसे ताउम्र भुगतना पड़ेगा. मोटापे से संबंधित नौनकम्युनिकेबल बीमारियां जैसे टाइप-2 डायबिटीज, मैलाइटस, इंसुलिन रैजिसटैंस, मैटाबोलिक सिंड्रोम और पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम ओवरवेट बच्चों को शिकार बना सकते हैं. यदि आप का बच्चा मोटा है तो उसे कैंसर का खतरा अन्य बच्चों की अपेक्षा ज्यादा है. वजन बढ़ने के कारण 10 तरह के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. मैडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि मोटापे के कारण गर्भाशय का कैंसर बढ़ने का खतरा ज्यादा है. इस के बाद पित्ताशय, गुरदा, गर्भाशय, थायराइड और ब्लड कैंसर की बारी आती है. बौडी मास इंडैक्स ज्यादा होने के कारण लिवर, मलाशय, अंडाशय और स्तन कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है. लंदन स्कूल औफ हाइजीन ऐंड ट्रीपकल मैडिसिन के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन 50 लाख लोगों पर किया. वैसे मोटापा सौ रोगों की जड़ है. इस से उच्च रक्तचाप और हृदय रोग होने की आशंका भी बढ़ जाती है. जर्नल न्यूट्रीशन ऐंड डायबिटीज में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, बच्चों में मोटापे का संबंध उन का खानपान, उन की टीवी देखने की आदत और घर के बाहर खेलने जाने के वक्त पर बहुत निर्भर करता है और इस में मातापिता की भूमिका महत्त्वपूर्ण है. अध्ययन के अनुसार जिस परिवार में 1 ही बच्चा है, वह मुश्किल से ही बाहर खेलने जाता है. वह घर में ही दुबका रहता है और शिक्षा का स्तर भी प्राय: कम ही होता है. उस का अधिकांश वक्त बैडरूम में टीवी देखने में व्यतीत होता है.

परेशानी का सबब

एक शोध से पता चला है कि 97% इकलौते बच्चे ओवरइटिंग और ओवरडाइट के कारण मोटापे के शिकार हुए हैं. शोध में 5 से 8 साल की आयु के इकलौते स्कूली बच्चों को शामिल किया गया था. यह भी पाया गया कि ये बच्चे अपनी डाइट की तुलना में ऐक्सरसाइज बहुत कम करते हैं. एक सर्वे से पता चलता है कि 8 से 18 साल की उम्र के बच्चे औसतन 3 घंटे प्रतिदिन टीवी देखने में खर्च करते हैं. इकलौता बच्चा आमतौर पर घर पर ही रहता है. मैदानी खेलों से उस का कोई नाता नहीं रहता. पलंग या कुरसी पर बैठेबैठे या तो वह वीडियो गेम खेलता है या फिर टीवी देखता है. टीवी के सामने बैठ कर ही वह भोजन करता है. इस से उसे इस बात का पता ही नहीं चलता कि कितना खा गया. शुरू में तो मांबाप अपने इकलौते को गोलमटोल होते देख बडे़ खुश होते हैं, लेकिन जब वह ओवरवेट या गुब्बारे की भांति फूलता चला जाता है, तो उन्हें चिंता सताने लगती है. सच भी है, यदि 5 साल के बच्चे का वजन 75 किलोग्राम और 8 साल के बच्चे का वजन 140 किलोग्राम हो जाए तो यह न केवल बच्चों के लिए अपितु मातापिता के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है.

उड़ता है मजाक

सोशल मीडिया पर मोटापे को ले कर तकलीफदेह और डराने वाले मजाक बहुत ज्यादा होते हैं. विशेष कर ट्विटर ऐसे चुटकुलों का अहम ठिकाना बना हुआ है. अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट औफ हैल्थ के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन ब्लौग, ट्विटर, फेसबुक, फोरम, लिकर और यूट्यूब जैसी सोशल साइटों पर वजन को ले कर होने वाली चर्चाओं को ले कर किया गया. इस में ट्विटर शीर्ष पर रहा जहां मोटापे का सब से ज्यादा मजाक उड़ाया जाता है और कमैंट किए जाते हैं. ट्विटर के बाद फेसबुक दूसरे स्थान पर है. शोधकर्ताओं ने 2 महीनों के दौरान 13.7 लाख पोस्ट का अध्ययन किया, जिन में फैट, ओबेस, ओबैसिटी या ओवरवेट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था. इन में सर्वाधिक इस्तेमाल ‘फैट’ शब्द का हुआ और ज्यादातर यह प्रयोग नकारात्मक था. जाहिर है ऐसे कमैंट्स से बच्चों में हीनभावना पैदा होती है और वे कुंठा के शिकार हो जाते हैं. वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह बात सामने आई है कि बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों के मोटापे के प्रति समय के बाद चेतते हैं. वे तब अपने बच्चों के बारे में जान पाते हैं जब वे मोटापे की गिरफ्त में पूरी तरह आ चुके होते हैं.

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शारीरिक मेहनत भी है जरूरी

बच्चे स्लिप और चुस्तदुरुस्त हों तो ही अच्छे लगते हैं. इसलिए शैशव अवस्था से ही उन के मोटापे पर निगरानी रखें. उन का खानपान इस प्रकार निर्धारित करें कि वे कभी मोटापे का शिकार न हों. बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए पोषक आहार मिलना जरूरी तो है पर वह संतुलित होना चाहिए. किसी भी चीज की अति बुरी होती है. अपने बच्चों की फिटनैस पर ध्यान दें. इस के लिए कमर्शियल फिटनैस क्लबों की सेवाएं ली जा सकती हैं. मांबाप को चाहिए कि वे अपने ओवरवेट बच्चे को डाक्टर को दिखाएं. इस के अलावा डाइटिशियन से उस की खुराक निर्धारित करवाएं. बच्चों की सेहत का ध्यान रखना मांबाप का फर्ज है. दिन भर में एक बार जरूर बच्चे को अपने साथ खाना खिलाएं. खाने में साबूत अनाज, फलों, सब्जियों की मात्रा ज्यादा रखें तथा जंक और प्रोसैस्ड फूड पर लगाम लगाएं. बच्चों से अच्छी बात मनवाने के लिए जबरदस्ती न करें और न ही किसी तरह का लालच दें, बल्कि उन्हें दोस्त बन कर समझाएं ताकि वे अपनी खानपान संबंधी आदतों में सुधार करें तथा टीवी या कंप्यूटर के सामने घंटों गुजारने के बजाय उन का समय मैदान में खेलकूद में गुजरे.

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