Family Story In Hindi: सितारों से आगे- कैसे विद्या की राहों में रोड़ा बना अमित

लेखिका- डा. सरस्वती अय्यर

   

Family Story In Hindi: सितारों से आगे- भाग 1- कैसे विद्या की राहों में रोड़ा बना अमित

लेखिका- डा. सरस्वती अय्यर

दरवाजे पर तेज बजती घंटी की आवाज से विद्या की तंद्रा भंग हुई कि अरे 4 बज गए. लगता है वृंदा आ गई. विद्या जल्दी से उठ खड़ी हुई.

विद्या की शंका सही थी, दरवाजे पर वृंदा ही थी. विद्या की 17 साल की लाड़ली बेटी वृंदा. दरवाजे से अंदर आ कर अपना बैग रख कर जूते खोलते हुए वह चंचल हो गई, ‘‘अरे अम्मी आज स्टेट लैवल बैडमिंटन में मेरे सामने वाले खिलाड़ी की मैं ने ऐसी छुट्टी की न कि कुछ पूछो मत, मैं ने उसे सीधे सैट में हरा दिया. मेरी कोच बोल रही थीं कि अगर मैं ऐसे ही खेलती रहूंगी तो एक दिन नैशनल लैवल खिलाड़ी बनूंगी और वह दिन दूर नहीं जब बड़ेबड़े अखबारों में, टीवी चैनलों में मेरे फोटो आएंगे.’’

वृंदा की रनिंग कमैंट्री जारी थी. बैग को खोलते हुए उस में से बड़ी सी ट्रौफी निकाल कर वह विद्या से लिपट गई, ‘‘दिस ट्रौफी इज फौर माई डियर मौम,’’ और मौम के हाथ में ट्रौफी थमा कर बोली, ‘‘मम्मी खाना तैयार रखना बस मैं 2 मिनट में हाथमुंह धो कर कपड़े चेंज कर के आती हूं, जोर की भूख लगी है,’’ कहते हुए वह अंदर चली गई.

कार्निश पर ट्रौफी को रखते हुए विद्या की आंखें भर आईं. चुपचाप रसोई में जा कर गरम फुलके सेंक कर प्लेट में रोटीसब्जी रख कर उस ने खाना डाइनिंगटेबल पर रख दिया.

फ्रेश हो कर आई वृंदा ने 5 मिनट में खाना खा लिया और बोली, ‘‘मम्मा मैं 1-2 घंटे सो रही हूं, शाम को कैमिस्ट्री की क्लास है, मुझे जगा देना,’’ कह कर वह सोने चली गई.

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रसोई समेट कर विद्या भी वृंदा के पास लेट गई. सोती हुई मासूम वृंदा के बालों में हाथ फेरते विद्या 18 साल पहले की दुनिया में कब पहुंच गई. उसे पता ही नहीं चला…

सच ऐसी ही तो थी वह भी, इतनी ही खुशमिजाज और खूबसूरत, जिंदगी से भरपूर, होनहार लड़की. घर में वात्सल्यपूर्ण मातापिता और ढेर सारा प्यार करने वाली छोटी 2 बहनें, बाहर कालेज और बैडमिंटन कोर्ट इन सब के बीच हंसतेखेलते हुए उस की जिंदगी गुजर रही थी. इस बीच एक और बहुत अच्छी बात हुई, बैडमिंटन में ढेरों पुरस्कार बटोर चुकी विद्या को रेलवे में स्पोर्ट्स कोटा में नौकरी का औफर मिला. विद्या और उस के घर वालों की खुशी का ठिकाना न रहा. विद्या ने ग्रैजुएशन के बाद रेलवे की नौकरी जौइन कर ली.

मगर इस के बाद उस की जिंदगी इतनी जल्दी और इतनी तेजी से बदलेगी इस का तो उसे आभास भी नहीं था. रेलवे की नौकरी मिलने के कुछ समय बाद ही विद्या की चाची उस के लिए अपने इंजीनियर देवर का रिश्ता ले कर आ गईं. हालांकि शुरू में विद्या ने इतनी जल्दी विवाह करने से इनकार किया पर पिता के समझने पर कि वह लड़कियों में सब से बड़ी है, उस की शादी हो जाएगी तो फिर वे बाकी 2 लड़कियों के लिए भी लड़का देख सकेंगे और फिर लड़के वाले परिचित हैं. लड़का देखाभाला है, अच्छा खानदान है, मना करने का कोई कारण नहीं है वगैरह.

आखिरकार विद्या विवाह के लिए राजी हो गई. पर सच बात तो यह थी कि उस दिन बूआ के साथ आए उस लंबे, सांवले, सजीले नवयुवक अमित को देख कर वह मना ही नहीं कर पाई थी. खुशीखुशी विद्या की शादी संपन्न हुई और वह अपनी ससुराल आ गई.

ससुराल में शादी के बाद शुरू के 6 महीने जैसे पंख लगा कर उड़ गए. विद्या अपने सासससुर की लाड़ली बहू और ननद प्रिया की पक्की सहेली बन चुकी थी. अमित भी उस का खयाल रखता था. बस कमी कुछ थी उस के पास तो समय की. जब विद्या उस की शिकायत करती तो वह सफाई देता, ‘‘क्या करूं विद्या तुम्हें तो पता है मुंबई की लाइफ तो ऐसी ही है. सुबह 8 बजे निकलता हूं तो 10 बजे औफिस पहुंचता हूं, फिर दिनभर साइट में इंस्पैक्शन करना, शाम को मीटिंग और दूसरे प्रोजैक्ट पर डिस्कस करना. 8 बजे निकलता हूं तो घर पहुंचतेपहुंचते 10 बज ही जाते हैं. क्या करें, अब तुम ही बताओ.?’’

विद्या निराश हो जाती. कहती भी क्या? यह कहानी एक उस की ही तो नहीं है, मुंबई में करोड़ों लोगों को इसी तरह रहना पड़ता है. कभीकभी वह सोचती इस से तो किसी छोटे शहर में रहना अच्छा है, कम से कम घर और औफिस नजदीक तो होते. पर कोई बात नहीं अमित की भी तो मजबूरी है वरना कोई आदमी 10-12 घंटे रोज घर से बाहर खुशी से थोड़े ही रहेगा. सोच कर वह अपने मन को मना लेती.

सुबह उठ कर सासूमां के साथ मिल कर खाना बना कर बाकी काम खत्म कर के वह अमित के साथ ही निकलती. उस को स्टेशन में ड्रौप कर के अमित अपनी साइट पर निकल जाता और विद्या लोकल ट्रेन से औफिस आ जाती. शाम को 7 बजतेबजते वह घर पहुंच जाती. थोड़ा आराम कर के, टीवी देखते हुए रात के काम निबटाती. हर शाम को उस के मन में कई बार इच्छा होती कि अन्य लड़कियों की तरह वह भी पति के साथ मुंबई में जुहू बीच में समंदर के किनारे घूमेफिरे, पिक्चर देखे, पर ऐसा कभी नहीं हुआ. रोज अमित को आने में देर होती थी.

उस का इंतजार करते हुए वह दिनभर की भागादौड़ी और काम से थक कर सो जाती. शनिवाररविवार को भी अमित ‘साइट पर जरूरी काम है’ बोल कर निकल जाता और विद्या कभी अपने मायके चली जाती तो कभी सासूमां के साथ बाजार चली जाती. इसी प्रकार विद्या के ससुराल में कुछ और दिन निकल गए.

शादी के सिर्फ 8 महीने ही हुए थे कि अमित को एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में दुबई जाना पड़ा. विद्या भी उस के साथ जाना चाहती थी, पर अमित के साथ औफिस के 2 सहयोगी और थे इसलिए विद्या मन मसोस कर रह गई. हालांकि प्रोजैक्ट 45 दिनों का ही था, पर कुछ न कुछ कारणों से प्रोजैक्ट खत्म होने में देर हो रही थी और प्रोजैक्ट 3 महीनों तक खिंच गया. दुबई में काम करतेकरते अमित की कंपनी को ओमान में एक और प्रोजेक्ट मिला और अमित और 2 महीनों के लिए ओमान चला गया.

इधर विद्या को अमित के बिना जैसे सब कुछ सूना लग रहा था. अमित के जाने के एक ही हफ्ते में वह बीमार पड़ गई. सासूमां जबरदस्ती उसे डाक्टर के पास ले गईं और जब डाक्टर ने चैकअप के बाद बताया कि वह मां बनने वाली है, तो सासससुर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने विद्या के पिता को भी फोन पर यह शुभ सूचना दे दी, पर विद्या खुद यह बात अमित को फोन पर बताना चाहती थी.

रात को जब अमित का दुबई से फोन आया तब खुशी से छलकते हुए विद्या ने उसे बताया कि वे पिता बनने जा रहे हैं. दूसरी तरफ से अमित का झल्लाते हुए कहना कि इतनी जल्दी बच्चे की जरूरत नहीं है. हो सके तो कल जा कर अबौर्शन करा लो. सुन कर वे सकते में आ गई कि क्यों अमित? इस पर अमित ने कहा कि वह अभी बच्चे की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं और उस ने फोन रख दिया.

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रातभर विद्या सो नहीं पाई. सुबह उठ कर उस ने सासू को यह बात बताई, पर  सासूजी ने उस पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि अरे कुछ नहीं बेटा अभी तो वह विदेश में है न उस को तुम्हारी चिंता है, इसलिए ऐसा कह रहा है. एक बार यहां आ जाए तो सब ठीक हो जाएगा. तू फिक्र मत कर. हम सब हैं न तेरा खयाल रखने वाले. अबौर्शन वगैरह के बारे में सोचना भी मत और फिर प्यार से उस के बाल सहला दिए.

आखिरकार विद्या का इंजार खत्म हुआ. करीब 5 महीने बाद ओमान में अमित अपना प्रोजैक्ट खत्म कर के वापस आ रहा था. विद्या ने 2 दिन दफ्तर से छुट्टी ले ली थी. बड़े चाव से उस ने अमित के लिए पावभाजी, पूरनपोली, मसाला भात सबकुछ बनाया था. इतने दिनों बाद घर का खाना उसे खाने को मिलेगा. सोच कर विद्या मन ही मन खुश हो रही थी. बहुत दिनों बाद आज उस ने अमित की पसंद की गुलाबी साड़ी पहनी थी और गुनगुनाते हुए अमित का स्वागत करने के लिए तैयार हो रही थी कि सासूमां ने कमरे में प्रवेश किया.

विद्या के खिले हुए चेहरे को देख कर कुछ सिर झका कर उन्होंने हिचकिचाते हुए कहा, ‘‘बेटा एअरपोर्ट से अमित का फोन आया है वह सीधे औफिस जा रहा है, घर आएगा तो औफिस पहुंचने में देर हो जाएगी और आज यहां रिपोर्ट करना जरूरी है.’’

विद्या सन्न रह गई. वह आंसुओं को रोक न सकी, ‘‘क्या औफिस का काम मुझ से भी ज्यादा जरूरी है मां?’’

एक बार फिर मांजी ने ही उसे संभाला, बेटा, ऐसी हालत में रो कर अपनी तबीयत खराब मत कर, सुबह से इतना काम कर रही है, चल थोड़ा आराम कर ले.

हालांकि उस वक्त तो विद्या संभल गई पर पूरा दिन उस की सूजी आंखें और दरवाजे पर नजर किसी से छिपाए न छिपी.

रात को 11 बजे अमित घर पहुंचा. विद्या उस का इंतजार कर के निद्रा के आगोश में कब चली गई उसे पता ही नहीं चला. अमित ने सोती हुई विद्या को लापरवाही से देखा और कपड़े बदल कर सोफा पर सो गया.

आगे पढ़ें- विद्या को उस का यह व्यवहार कुछ चुभ गया..

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जब फ्लर्ट करने लगे मां का फ्रैंड  

20वर्षीय सेजल अपनी मां शेफाली के बौयफ्रैंड राजीव मलिक से बेहद परेशान है. 45 वर्षीय शेफाली 10 साल से अपने पति रवि से अलग रह रही हैं. ऐसे में पुरुषों का आनाजाना उस की जिंदगी में लगा रहता है. राजीव मलिक शेफाली के घरबाहर दोनों के काम देखता है और इस कारण राजीव का हस्तक्षेप शेफाली की जिंदगी में बढ़ने लगा था. हद तो तब हो गई जब राजीव 48 वर्ष की उम्र में भी खुलेआम सेजल से फ्लर्ट करने लगा था.

कभी पीठ पर चपत लगा देता, कभी गालों को प्यार से छूना, कभी सेजल के बौयफ्रैंड्स के बारे में तहकीकात करना इत्यादि से सेजल के साथ ये सब उस की अपनी सगी मां के सामने हो रहा था जो मूर्खों की तरह अपने बौयफ्रैंड के ऊपर आंखें मूंद कर विश्वास कर बैठी थी. सेजल एक अजीब सी कशमकश से गुजर रही है. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किस के साथ अपनी बात सा झा करे?

सेजल ने जब यह बात अपने बौयफ्रैंड संचित को बताई तो उस ने सेजल को सपोर्ट न कर के इस बात का फायदा उठाया. एक तरफ संचित तो दूसरी तरफ राजीव, सेजल का इन दोनों के बाद पुरुषों से विश्वास ही उठ गया है. काश सेजल ने बात अपनी मौसी या नानी को बताई होती.

उधर काशवी के मम्मी के दोस्त आलोक अंकल कब अंकल की परिधि से निकल कर कब उस के जीवन में आ गए खुद काशवी भी न जान पाई थी. आलोक अंकल का खुल कर पैसा खर्च करना, रातदिन उस से चैट करना सबकुछ काशवी को पसंद आता था. काशवी की मम्मी रश्मि उधर  यह सोच कर खुशी थी कि उन की बेटी को फ्रैंड फिलौसफर और गाइड मिल गया है. आलोक को और क्या चाहिए एक तरफ रश्मि की दोस्ती और दूसरी तरफ काशवी की अल्हड़ता.

काशवी के साथ छिछोरेबाजी करते हुए आलोक को यह भी याद नहीं रहता कि उस की अपनी बेटी काशवी की ही  हमउम्र है.

मगर कुछ लड़कियां सम झदार भी होती हैं. जब बिनायक ने अपनी फ्रैंड सुमेधा की बेटी पलक के साथ फ्लर्ट करने की कोशिश की तो पलक ने भी अपना काम निकाला और जैसे ही विनायक ने फ्लर्टिंग के नाम पर सीमा लांघनी चाही तो पलक ने बड़ी होशयारी से अपनी मम्मी सुमेधा को आगे कर दिया. विनायक और सुमेधा आज भी दोस्त हैं, परंतु विनायक अब भूल कर भी पलक के आसपास नहीं फटकते हैं.

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आज के आधुनिक युग की ये कुछ  अलग किस्म की समस्याएं हैं. जब महिलापुरुष एकसाथ काम करेंगे तो स्वाभाविक सी बात है  कि उन में दोस्ती भी होगी और ये पुरुष मित्र घर भी आएंगेजाएंगे.

मगर इन पुरुष मित्रों की सोच कैसी है यह आप की मम्मी या आप को भी नहीं पता होता है. इसलिए अगर आप की मम्मी का पुरुष मित्र आप से फ्लर्टिंग करने की कोशिश करे तो उसे हलके में न लें. आप आज की पढ़ीलिखी स्वतंत्र युवा हैं. हलकेफुलके मजाक और भोंडे़ मजाक में फर्क करना सीखें.

मौसी या आंटी को बनाएं राजदार

आप की मौसी या आंटी को आप से अधिक जिंदगी के अनुभव हैं. वे अपने अनुभवों के आधार पर अवश्य ही आप को सही सलाह देंगी. अपने तक ही ऐसी बात को सीमित रखें, बातचीत अवश्य करें.

फ्रैंड के बच्चों से कर लें दोस्ती

यदि मम्मी के फ्रैंड अपनी सीमा रेखा को भूलने की कोशिश करें तो उन्हें मर्यादा में रखने के लिए उन के बच्चों से दोस्ती कर लें. उन के घर जाएं, उन के परिवार को अपने घर पर बुलाएं.

अपने पापा को भी साथ ले कर जाना मत भूलें. जैसे ही परिवार की बात आती है अच्छेअच्छे सूरमाओं के पसीने छूट जाते हैं. वे भूल से भी आप को तंग नहीं करेंगे.

गलत बात का करें विरोध

बहुत बार देखने में आता है कि हम  अपने बड़ों की गलत बात को जानबू झ कर नजरअंदाज कर देते हैं. इस के पीछे बस उन की उम्र का लिहाज होता है, परंतु ये आप के मम्मी  या पापा नहीं हैं कि आप को उन का लिहाज करना पड़े. उन की गलत बात का डट कर  विरोध करें और अगर जरूरी लगे तो अपनी  मम्मी को भी उन के फ्रैंड के व्यवहार से अवगत अवश्य कराएं.

लक्ष्मण रेखा खींच कर रखें

अपनी मम्मी के फ्रैंड से बातचीत करने में कोई बुराई नहीं है, परंतु अपने व्यवहार को मर्यादित रखें. अगर आप खुद ही फौर्मल रहेंगी तो आप के अंकल भी कैजुअल नहीं हो पाएंगे. हलकाफुलका मजाक करने में बुराई नहीं है पर इन हलकेफुलके पलों में यह याद रखें कि आप की मम्मी भी शामिल हो.

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दिखाएं उम्र का आईना

यह सब से अचूक और कारगर उपाय है, जो कभी खाली नहीं जाता है. अगर मम्मी के फ्रैंड ज्यादा तफरीह करने की कोशिश करें तो उन्हें उन की उम्र का आईना दिखाने से गुरेज न करें. अपने को उम्रदराज मनाना किसी को भी पसंद नहीं है. एक बार आप अपने और उन के बीच उम्र का फासला महसूस करवाएंगी तो भूल से भी वे दोबारा आसपास नहीं फटकेंगे.

Family Story In Hindi: सितारों से आगे- भाग 2- कैसे विद्या की राहों में रोड़ा बना अमित

लेखिका- डा. सरस्वती अय्यर

 अगला दिन रविवार था. सुबह विद्या की नींद देर से खुली, घड़ी की ओर देखा, तो बड़बडाई कि अरे 9 बज गए. किसी ने मुझे उठाया तक नहीं. लगभग दौड़ते हुए कमरे से बाहर आई तो देखा बाहर गार्डन में मां, पिताजी और अमित बैठ कर गंभीरतापूर्वक किसी विषय में बातचीत कर रहे थे. ड्राइंगरूम में फोन की घंटी बज रही थी. विद्या ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अमित हैं?’’

‘‘नहीं वे बाहर गार्डन में हैं. मैं विद्या बोल रही हूं, आप कौन?’’ विद्या ने पूछा.

सवाल के जवाब में फिर सवाल पूछा गया, ‘‘आप उस की कौन हैं?’’

‘‘मैं उन की पत्नी हूं,’’ विद्या ने जवाब दिया.

यह सुनते ही फोन कट गया.

‘कौन हो सकती है और उस ने फोन क्यों काटा?’ सोचते हुए विद्या बाथरूम में चली गई. जल्दी से फ्रैश हो कर किचन में जा कर 4 कप कौफी बना कर वह गार्डन में सब के लिए कौफी ले कर आई. उसे देखते ही तीनों शांत हो गए. गुडमौर्निंग कहते हुए विद्या ने मुसकराते हुए सब को कौफी दी और बैठते हुए अमित से पूछा, ‘‘आप का प्रोजैक्ट कैसा रहा? गए थे डेढ़ माह के लिए और लगा दिए 5 महीने,’’ कहते हुए उस ने अमित को शिकायतभरी नजरों से देखा.

मगर अमित ने कोई जवाब नहीं दिया. उड़तीउड़ती नजर उस पर डालते हुए चाय की चुसकियां लेता रहा.

विद्या को उस का यह व्यवहार कुछ चुभ गया पर वह स्वयं को संभालते हुए बोली, ‘‘अरे अमितजी आप का अभी एक फोन आया था, किसी महिला का था, पर जब मैं ने अपना नाम बताया तो पता नहीं क्यों उस ने जल्दी से फोन रख दिया.’’

‘‘अरे छोड़ो यार किसी बैंक वगैरह की क्रैडिट कार्ड बेचने वाली सेल्स गर्ल होगी,’’ कह कर अमित ने बात पलट दी.

विद्या कहना चाहती थी कि फोन करने वाली महिला का अनौपचारिक ढंग किसी क्रैडिट कार्ड वाली का नहीं हो सकता है, पर सब के सामने वह यह बात कह नहीं पाई. एक शक का कीड़ा कहीं अंदर कुलबुलाया जरूर था, पर उस समय बात आईगई हो गई.

अमित विदेश से सब के लिए ढेर सारे तोहफे लाया था. सब उसी में मगन थे, प्रिया भी आई थी, भाई से मिलने. पर इन सब के बीच विद्या को कहीं न कहीं लगता रहा कि अमित उस से अकेले में मिलने और बात करने में कतरा रहा है. खैर, दोपहर में खाना खा कर और भैया के लाए तोहफे ले कर प्रिया अपने घर चली गई. मां और पिताजी भी अपने कमरे में जा कर सो गए. रसोई वगैरह समेट कर विद्या जब अपने कमरे में पहुंची तो अमित गाड़ी की चाबी हाथ में ले कर कमरे से बाहर निकल रहा था.

‘‘अरे आप कहां जा रहे हैं?’’

विद्या के पूछने पर वह बोला कि थोड़ा दोस्तों से मिल कर आता हूं और वह बाहर निकल गया.

‘‘मुझ से मिलना नहीं आप को, मुझ से कुछ बातें नहीं करना आप को.’’

मगर विद्या की बातें सुनने के लिए अमित वहां कहां था. विद्या अपने आंसुओं पर काबू न पा सकी, जा कर कमरे में लेट गई.

लगातार बजती फोन की घंटी सुन कर विद्या उठी. एक बार फिर सुबह वाली आवाज थी, ‘‘अमित हैं क्या घर पर?’’

नहीं वे बाहर गए हैं. आप कौन?’’ विद्या ने पूछा.

मगर जवाब में, ‘‘अच्छा निकल गया क्या वह? चलो ठीक है ओके,’’ कह कर फोन रख दिया गया.

विद्या का संदेह और गहरा गया. शाम को इस बारे में अमित से बात करूंगी, उस ने तय कर लिया. पर ऐसा हो न सका. रात को 12 बजे अमित घर पहुंचा, तब तक विद्या सो चुकी थी. सुबह उस को भी औफिस जाना था. अगले दिन जल्दी उठ कर घर के काम आदि से फ्री हो कर वह औफिस के लिए निकल गई.

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आज अमित को 10 बजे किसी साइट इंस्पैक्शन के लिए जाना था. इसलिए वह आराम से सो रहा था. विद्या ने उसे जगाना उचित और सासूमां से कह कर वह औटो से चली गई.

विद्या औफिस पहुंच तो गई, पर उस का काम में मन नहीं लगा. एक तो घर पर काम की थकान, ऊपर से 2 दिनों से अमित की उपेक्षा से उस को बेतरह मानसिक कष्ट पहुंचा था. दोपहर होतेहोते उस को जबरदस्त सिर में दर्द होने लगा, बेचैनी होने लगी, चक्कर जैसे आने लगे. वह तुरंत छुट्टी ले कर घर आ गई.

काश, उस दिन घर न आई होती और उस ने वह सबकुछ आंखों से न देखा होता तथा कानों ने सुना न होता, तो क्या उस की जिंदगी आज कुछ और होती? नहीं, ऐसा कभी न कभी तो होना ही था. विद्या की आंखों से न चाहते हुए भी आंसू बह निकले. वृंदा को चादर ओढ़ा कर विद्या उठ खड़ी हुई. वृंदा ने उस के आंसू देख लिए तो हजार सवाल पूंछे और उन के जवाब देना उस के लिए बहुत मुश्किल होगा. अपने कमरे में आ कर विद्या लेट गई. एक बार फिर पुरानी यादें उसे घेरने लगीं और जैसे यादों की कडि़यां एक के बाद एक जुड़ती गईं…

उस दिन दोपहर के लगभग 2 बजे थे जब विद्या घर पहुंची. यह समय सासससुर के सोने का होता था, इसलिए उस ने डुप्लिकेट चाबी से घर का दरवाजा खोला और अपने कमरे की ओर जाने लगी कि अचानक सासूजी के कमरे से आती आवाजों ने उस का ध्यान खींचा. उन में से एक तेज आवाज अमित की थी. कमरे का दरवाला खुला था, पर परदे गिरे हुए थे.

भीतर से अमित की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी. गुस्से से भरे लगभग चिल्लाते हुए अमित कह रहा था, ‘‘मां अब तुम मुझ पर जबरदस्ती नहीं कर सकतीं. मैं ने तुम से पहले ही कहा था, मैं शबनम को नहीं छोड़ सकता पर तुम नहीं मानीं यह कह कर कि इस से प्रिया की शादी पर असर पड़ेगा. जोर डाल कर तुम ने उस विद्या को मेरे पल्ले बांध दिया.

‘‘यह तो अच्छा हुआ कि दुबई प्रोजैक्ट में शबनम मेरे साथ थी वरना मैं तो पागल हो जाता. मां प्लीज अब तो प्रिया भी सैटल हो चुकी है, अब विद्या से मेरा तलाक होना जरूरी है. शबनम मुझे शादी के लिए परेशान कर रही है. मैं अब और इंतजार नहीं कर सकता. तुम जल्दी से विद्या के मांबाप से बात करो और उन से कहो कि मुझे आजाद कर दें.’’

इस के पहले विद्या कुछ संभल पाती कि उसे ससुरजी की गरजती हुई आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘मैं ने सोचा था कि शादी के बाद तुम सुधर जाओगे, मगर नहीं. तुम्हारे इश्क का भूत अभी तक नहीं उतरा. अरे अब तो तुम बाप बनने जा रहे हो, भूल जाओ पुरानी बातें.’’

विद्या को माजरा कुछ समझे कि उसे सास की मनुहार भरी आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘अरे बेटा, इतनी सुंदर, सुघड़ बहू, साथ में सरकारी नौकरी और क्या चाहिए तुझे?’’

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‘‘अरे मां नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी सुंदर बहू और उस की नौकरी. मुझे इस प्रौब्लम से जल्दी छुट्टी दिलाओ वरना मैं ने कुवैत में जौब के लिए बात की हुई है. इस बार जाऊंगा तो 15-20 साल नहीं आऊंगा, फिर रहना आराम से अपनी बहू के साथ,’’ यह अमित की विफरती हुई आवाज थी.

विद्या सकते में थी. अब सबकुछ उस के सामने स्पष्ट हो चुका था. उस की आंखों के आगे जैसे अंधेरा सा छा रहा था. उस के पैर लड़खड़ा गए, जबान सूख गई. वह दरवाजे का सहारा लेते हुए वही जमीन पर बैठ गई.

आवाज सुन कर सासूमां लगभग दौड़ती हुई बाहर आईं. विद्या की स्थिति देख कर उन को समझते देर न लगी कि वह सबकुछ सुन चुकी है. उन्होंने तुरंत उसे उठाया, भीतर ले जा कर बिस्तर पर लिटाया. जल्दी से जा कर वे उस के लिए चाय बना कर लाईं. उन्होंने रोती हुई विद्या को बैठा कर प्यार से उस का सिर सहलाया और जबरदस्ती चाय पिलाई.

ससुरजी चिंता से कमरे से अंदरबाहर हो रहे थे. अमित मौका देख कर अपनी बाइक उठा कर जा चुका था. उसे विद्या की कोई परवाह नहीं थी. सास विद्या को समझ रही थी, ‘‘रोओ नहीं बेटे अपनी तबीयत संभालो सब ठीक हो जाएगा.’’

थोड़ी देर बाद जब उन्हें लगा कि रोतेरोते विद्या सो गई है तो वे अपने कमरे में चली गईं.

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