मनोवैज्ञानिक कहते हैं किसी की खुदखुशी को इतना हाईलाइट मत कीजिए कि वह किसी और को खुदखुशी के लिए निमंत्रण बन जाए. अभी सुशांत सिंह राजपूत की सुसाइड पर सोशल मीडिया में सहानुभूतिक आंधी भी नहीं रूकी थी कि 16 साल की एक और खूबसूरत सी किशोरी, जिसे क्वीन आफ टिकटॉक कहा जा रहा था, उस सिया कक्कड़ ने आत्महत्या कर ली. जबकि बहुत कम लोगों की ऐसी किस्मत होगी, जैसी शोहरत की किस्मत लेकर सिया कक्कड़ पैदा हुई थीं. लोग कहते थे कि सिया कक्कड़ सीधे सेलिब्रिटी ही पैदा हुई है. इतनी कम उम्र में वह देश के लाखों लाख युवाओं के दिलों की धड़कन बन चुकी थीं.
सिया कक्कड़ अपने नियोजित भविष्य की तरफ कितने नियंत्रित कदमों से आगे बढ़ रही थीं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज 16 साल की उम्र में टिकटॉक के लिए वीडियो बनाने वाली इस किशोरी ने अपने लिए एक भरापूरा सपोर्ट सिस्टम बना रखा था. उनके एक मैनेजर थे (हैं) अर्जुन सरीन. उनके लिए नये से नये कपड़े सिलने वाले अपने टेलर थे और अलग अलग वीडियो के लिए अच्छे से अच्छा मेकअप करने वाले, मेकअप आर्टिस्ट. सिया कक्कड़ के टिकटॉक पर एक मिलियन से ज्यादा फालोवर्स थे और करीब एक लाख से ज्यादा उनके इंस्टाग्राम पर फैंस मौजूद थे.
जाहिर है इंस्टाग्राम और टिकटॉक से शायद इतनी कमायी नहीं होती होगी कि वे अपने तमाम खर्च निकाल सकें. इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि अच्छी खासी मजबूत होगी. फैंस का अटूट प्यार उन्हें मिल ही रहा था और लोकप्रियता हर गुजरते दिन के साथ उनकी एक बड़ी पूंजी बनती जा रही थी. सवाल है फिर ऐसा क्या दुख रहा होगा, ऐसी क्या असफलता होगी जो उन्हें अंदर ही अंदर तोड़ रही होगी, जिसे दुनिया नहीं जानती थी? निश्चित रूप से यह रातोंरात अपनी आकांक्षाओं की बुलंदी पर पहुंचने की बेचैनी होगी, हो सकता है जिसकी धीमी रफ्तार ने उन्हें हताश कर दिया हो.
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इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह किसी को नहीं पता कि सिया कक्कड़ किस वजह से परेशान थीं, जिसके चलते उन्होंने खुदखुशी जैसा आत्मघाती कदम उठाया. लेकिन जैसा कि पिछले सप्ताह ही मशहूर मनोचिकित्सक अरुणा ब्रूटा ने मुझसे बातचीत करते हुए कहा था, ‘नयी पीढ़ी भले भीड़ में रहती हो, भीड़ में दिखती हो, भीड़ उसका स्वभाव हो, लेकिन हकीकत यह है कि वह बहुत अकेली है. उसकी महत्वाकांक्षाओं ने उसे बहुत अकेला कर दिया है. उसका दिल से साथ देने वाला कोई नहीं है और अगर कोई है भी तो उस पर उसे यकीन नहीं है.’ दरअसल यह प्रवृत्ति कोई दुर्घटना नहीं है और न ही यह प्रवृत्ति पैदा होने के पीछे कोई बहुत निजी कारण हो सकते हैं.
इस बेहद तेज रफ्तार युग में अकेले हो जाने की हताशा, खुद को अकेला महसूस करने की असुरक्षा, दरअसल उस काल्पनिक असफलता की चिंता से पैदा हुई है, जिसे हमने खुद ही रचा, गढ़ा और बहुत बड़ा बनाया है. आज की तारीख में सब कुछ आप अपनी मेहनत से हासिल कर सकते हैं, लेकिन मेहनत से यह नहीं तय कर सकते कि आपकी तमाम ख्वाहिशें, आपके अनुसार ही पूरी हो जाएं. बहुत लोग हैं. हर क्षेत्र में बहुत गहरी गलाकाट प्रतिस्पर्धा है. ऐसे में जरा सी फिसलन आपको अपना खलनायक बना सकती है. सिर्फ ख्वाहिशों को लेकर ही कोई शेखचिल्ली नहीं होता, वास्तव में निराशा में लोग अपनी असफलताओं को लेकर भी शेखचिल्ली हो जाते हैं. उन्हें उम्मीदों से कम अपनी सफलताएं भी असफलताएं दिखने लगती हैं.
पता नहीं यह सही है या गलत. लेकिन सोशल मीडिया में कई लोग लिख रहे हैं कि पिछले कई महीनों से आंधी तूफान की तरह सक्रिय सिया कक्कड़ को उम्मीद थी कि वह बहुत जल्द बाॅलीवुड की सबसे ज्यादा डिमांड वाली हीरोइन बन जाएंगी. लेकिन एक तो कोरोना के कहर के चलते हुआ लाॅकडाउन ने सब कुछ उलट पलट दिया, दूसरा लाॅकडाउन खुलने के बाद यह खौफ कि आगे सब कुछ कैसा होगा. माना जाता है कि इन स्थितियों ने उन्हें जबरदस्त ढंग से हताश कर दिया, नतीजतन टिकटॉक पर अच्छीखासी सफलता हासिल करने के बाद भी सिया कक्कड़ संतुष्ट नहीं थीं. उन्हें लग रहा था कि उनकी योजना के हिसाब से वह असफल होती जा रही हैं. वह किस हद तक अपने मिशन में सक्रिय थीं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह आत्महत्या करने के कुछ घंटे पहले तक उस इंस्टाग्राम में सक्रिय थीं. वही इंस्टाग्राम जिसने उन्हें रातोंरात स्टार बनाया था.
उन्होंने 22 घंटे पहले फेमस पंजाबी रैप सिंगर बोहेमिया के गाने पर डांस किया था, उसे अपलोड किया था और उसे जबरदस्त लाइक्स भी मिल रहे थे. इसके बाद भी सिया ने ऐसा खौफनाक कदम क्यों उठाया? अगर बहुत बार हो चुकीं उन रिसर्च को देखें जो बार बार आगाह करती हैं कि किसी भी खुदखुशी का महिमामंडन मत कीजिए, वरना ये महिमामंडन और भी बहुतों को खुदखुशी के लिए मजबूर करेगा. लगता है ऐसा ही कुछ हुआ होगा. क्योंकि सुशांत राजपूत की आत्महत्या के बाद उनके प्रति सहानुभूति दर्शाने वालों की सोशल मीडिया में लाइन लग गई है. उससे वे तमाम लोग भी लगभग झकझोर देने की हद तक प्रभावित हो गये हैं, जिन्हें लगता है कि उनके साथ भी सुशांत राजपूत के जैसा ही अन्याय हो रहा है.
यह सोच सचमुच बहुत खतरनाक है; क्योंकि जैसा कि डब्ल्यूएचओ तथा खुदखुशी पर नजर रखने वाली तमाम एजेंसियां कहती हैं कि दुनिया में हर समय हजारों लोग पके आम की तरह डाल से गिर पड़ने को तैयार रहते हैं.
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जरा सा यह एहसास कि उन्हें दुनिया में कोई नहीं समझ रहा, वे एक झटके में टपक सकते हैं. क्योंकि खुदखुशी एक ऐसा संक्रामक रोग है, जिसका संक्रमण भले न दिखता हो, लेकिन नतीजा हमेशा डराता है. शायद सिया कक्कड़ भी इसी स्थिति से गुजर रही थीं. कहा जाता है कि उन्होंने अभी एक दिन पहले ही अर्जुन सरीन से जो कि उनके मैनेजर हैं, नये एलबम को लेकर डिस्कशन किया था और इस दौरान उन्होंने एक भी ऐसा संकेत नहीं दिया था कि वह परेशान हैं. इसलिए यह बहुत खतरनाक है कि हम नहीं जानते अगला कौन सा होनहार नौजवान इस अंधी राह पर चल पड़ेगा.