प्यार का दुश्मन छोटा घर

मुरादाबाद की रहने वाली छाया की शादी दिल्ली के रहने वाले राजन के साथ हुई थी. उसकी मौसी ने इस शादी में मध्यस्थ की भूमिका निभायी थी, जो दिल्ली में ही ब्याही हुुई थीं. निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की छाया मुरादाबाद से ढेर सारे सपने लेकर दिल्ली में आयी थी. दिल्ली देश की राजधानी है. दिल्ली दिलवालों की नगरी है. यहां बड़ी-बड़ी कोठियां, चमचमाती चौड़ी सड़कें, बड़े-बड़े पार्क, दर्शनीय स्थल, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट और पता नहीं किस-किस के बारे में उसने सुन रखा था. मगर ससुराल पहुंच कर छाया के सारे सपने छन्न से टूट गये. वो एक हफ्ते में ही समझ गयी कि यहां वह रह नहीं पाएगी. दरअसल दिल्ली तो बहुत बड़ी थी, मगर उसका घर बहुत छोटा था. इतना छोटा कि उसको अपने लिए एक घंटे का एकान्त भी यहां नहीं मिलता था. मुरादाबाद में छाया के पिता का पांच कमरों वाला बड़ा पुश्तैनी मकान था. घर में पांच प्राणी थे और पांच कमरे, सब खुल कर रहते थे, किसी को प्राइवेसी की दिक्कत नहीं थी. मगर यहां दो कमरों के किराये के घर में सात प्राणी रहते थे – छाया, राजन, उनके माता पिता, दादा दादी और राजन का छोटा भाई. घर में एक बाथरूम था, जिसका इस्तेमाल सभी सातों प्राणी करते थे. सुबह पहले सारे मर्द निपट लेते थे, उसके बाद औरतों की बारी आती थी.

यहां छाया और राजन को कोई प्राइवेसी उपलब्ध नहीं थी. मां, दादा-दादी तो पूरे वक्त घर में ही बने रहते थे. पिताजी भी बस सौदा-सुल्फ लेने के लिए ही बाहर जाते थे, बाकी वक्त चबूतरे पर कुर्सी डाल कर बैठे रहते थे. रात के वक्त घर की सारी औरतें एक कमरे में सोती थीं, और मर्द दूसरे कमरे में. ऐसे में छाया को पति की नजदीकियां भला कैसे मिल सकती थीं? दोनों दूर-दूर से एक दूसरे को बस निहारते रहते थे. शादी को महीना बीत रहा था, अभी तक उनके बीच शारीरिक सम्बन्ध भी नहीं बन पाया था. सुहागरात क्या होती है, छाया जान ही नहीं पायी. एक महीने में ही छाया की सारी खुशियां काफूर हो चुकी थीं, वह टूटने लगी थी, अपने घर वापस लौट जाने का ख्याल दिल में आने लगा था. आखिर ऐसी शादी का क्या मतलब था, जहां पति की नजदीकियां ही न मिल सकें?

राजन के पिता रिटायर हो चुके थे. उनकी थोड़ी सी पेंशन आती थी. राजन एक कोरियर कम्पनी में कोरियर बॉय का काम करता था. उसकी कमाई और पिता की पेंशन से सात प्राणियों का घर चलता था. राजन सुबह नौ बजे का निकला रात आठ बजे थका-हारा घर लौटता था. छाया उसके बिस्तर पर ही खाने की थाली धर जाती थी और वह खाना खाते ही सो जाता था. पत्नी से सबके सामने बातचीत भी क्या करता? उसकी कम्पनी से उसे छुट्टी भी नहीं मिलती थी कि पत्नी को लेकर कहीं घूम आये. छुट्टी लेने का मतलब उस दिन की देहाड़ी हाथ से जाना. वहीं दस लोग उसकी जगह पाने के लिए भी खड़े थे. इसलिए वह मालिक को नाराजगी का कोई मौका नहीं देना चाहता था.

यहां घर में छाया की ददिया सास ने शादी के पंद्रह दिन बाद ही पड़पोते की फरमाइश उसके आगे रख दी थी – ‘बिटिया, पड़पोते का मुंह भी देख लूं तो चैन से मर सकूंगी. भगवान जल्दी से तेरी गोद भर दे, बस…’ उनकी बातें सुन कर छाया को बड़ी खीज लगी. मन चाहा मुंह पर बोल दे कि जब पति-पत्नी को करीब आने का मौका ही नहीं दोगे तो पड़पोता क्या आसमान से टपकेगा? पति के प्रेम को छटपटाती छाया आखिरकार महीने भर बाद ही मां की बीमारी का बहाना बना कर अपने घर मुरादाबाद लौट गयी.

राजन उसको ट्रेन में बिठाने गया तो रास्ते में उसने धीरे से पूछा था, ‘क्या मां सचमुच बीमार हैं?’

छाया उससे मन की तड़प छिपा नहीं पायी, बोली, ‘नहीं, कोई बीमार नहीं है, मगर यहां रह कर अगर तुम्हारा साथ नहीं मिल सकता तो ऐसी शादी का मतलब ही क्या है? इतने छोटे घर में मेरा गुजारा नहीं हो सकता. जब अपना घर ले लेना, तब फोन कर देना, मैं लौट आऊंगी.’

राजन ने सिर झुका लिया. उसकी हालत छाया से अलग नहीं थी, मगर वह भी मजबूर था. दूसरा घर लेकर पत्नी के साथ रहने की उसकी औकात नहीं थी. आखिर घर के बाकी लोगों की जिम्मेदारी भी तो उस पर थी, मगर छाया की बात भी ठीक थी.शादी के बाद से उसकी आंखों से भी नींद लगभग गायब ही है. कई बार सोचता कि छाया को चुपचाप बुला कर छत पर ले जाये, मगर फिर यह सोच कर मन मार लेता कि छत पर ऊपर वाली मंजिल पर रहने वाले सोते हैं. कहीं किसी ने देख लिया तो? कई बार सोेचता कि पत्नी के साथ घूमने जाये, किसी सस्ते से होटल में उसके साथ एकाध दिन बिता ले, मगर उसकी जेब में इतने पैसे ही नहीं होते थे. रोज का आने-जाने का किराया काट कर महीने की पूरी तनख्वाह वह मां के हाथों में रख देता था. आखिर सात प्राणियों का पेट जो भरना था. परिवार की आमदनी का और कोई दूसरा स्रोत भी नहीं था. छाया को ट्रेन में बिठाते वक्त उसकी आंखों में आंसू थे. दिल इस आशंका से कांप रहा था कि पता नहीं अब कभी उसे देख पाएगा या नहीं. और फिर वही हुआ… हफ्ते, महीने, साल गुजर गये, न राजन के हालात सुधरे, न छाया वापस लौटी.

छोटा घर प्यार में बड़ा बाधक होता है. संयुक्त परिवार हो तो पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेमालाप या शारीरिक सम्बन्ध बनाने के मौके बहुत कम होते हैं. ऐसे में दम्पत्ति लम्बे समय तक एक दूसरे की भावनाओं, इच्छाओं और प्रेम को साझा नहीं कर पाते हैं. एक छत के नीचे रहते हुए भी वे अजनबी बने रहते हैं.

घरवालों के सामने बनना पड़ता है बेशर्म

कुछ कपल घर की इस हालत में थोड़े बेशर्म हो जाते हैं और सबके बीच ही अपनी शारीरिक जरूरतें भी किसी न किसी तरह पूरी कर लेते हैं. जैसे अमृता के बड़े भाई और भाभी. अमृता का परिवार दिल्ली के मंगोलपुरी में एक कमरे के छोटे से मकान में रहता है. अमृता, उसकी मां, उसका छोटा भाई और बड़े भाई अनिल और उनकी पत्नी रिचा रात में जमीन पर ही बिस्तर फैला कर एक साथ सोते हैं. कई बार रात में आंख खुलने पर अमृता ने भइया-भाभी को कोने में एक ही कम्बल में हिलते-डुलते देखा है. वह जानती है कि उसका छोटा भाई भी सब देखता है और कभी-कभी मां भी. मगर क्या किया जाए? मजबूरी है. उसकी भाभी रिचा भी जानती है कि कोई न कोई उन्हें देख रहा है. इसीलिए वह हर वक्त शर्मिंदगी में भी डूबी रहती है. जैसे उसने कोई चोरी की है और चोरी करते रंगे हाथों पकड़ी गयी है. वह घर में किसी से भी आंख मिला कर बात नहीं कर पाती है.

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सार्वजनिक स्थलों पर ढूंढते नजदीकियां

दिल्ली में कैलाश कौलोनी के पास बसा जमरुद्पुर एक मलिन बस्ती है. यहां गुर्जरों के कई दोमंजिला, तिमंजिला मकान हैं, जिनमें बिहार, यूपी से आये सैकड़ों परिवार किराये पर एक-एक कमरा लेकर रहते हैं. ऐसे मकानों में हर माले के कोने में एक शौचालय और एक स्नानागार होता है, जिन्हें ये सभी परिवार बारी-बारी से इस्तेमाल करते हैं. इन्हीं में एक कमरा सरिता का भी है, जिसमें वह अपनी बूढ़ी सास, पति और दो छोटे बच्चों के साथ रहती है. सरिता और उसके पति को जब सम्बन्ध बनाना होता है तो वह रात में पास के एक पार्क में चले जाते हैं, जहां एक कोने में झाड़ियों के पास अपना काम निपटाते हैं. सरिता के लिए यह डर और शर्मिंदा करने वाला वक्त होता है. कहीं से कोई आ न जाए. कहीं कोई देख न ले. कहीं रात में कुत्ते उनके पीछे न पड़ जाएं. कहीं कोई चौकीदार या पुलिसवाला उन्हें न धर ले. घर में बच्चे जाग कर कहीं उन्हें ढूंढने न लग जाएं. सास की आंख न खुल जाए. पति के सानिध्य में ऐसे तमाम ख्याल सरिता को परेशान किये रहते हैं. मगर पार्क में पति के साथ आना उसकी मजबूरी है, एक कमरा जहां सास और बच्चे सोये हुए हैं, वहां वह पति के साथ हमबिस्तर भी कैसे हो?

बहू पर बुरी निगाह 

कई बार छोटा घर बहू को शर्मिंदगी का ही नहीं, अपराध का शिकार भी बना देता है. ऐसे कई केस सामने आते हैं जब पति की अनुपस्थिति में जेठ, देवर या ससुर बहू के साथ नाजायज सम्बन्ध बनाने की कोशिश करते हैं और कई बार अपने इरादों में कामयाब भी हो जाते हैं. अक्सर बहुएं अपने साथ हुए बलात्कार पर चुप्पी साध जाती हैं या हालात से समझौता कर लेती हैं. घर में अगर बहू-बेटे का कमरा अलग हो, तो इस तरह के अपराध औरतों के साथ न घटें. बेटा-बहू लाख सोचें कि रात के अन्धेरे में चुपचाप सम्बन्ध बनाते वक्त उन्हें कोई देख नहीं रहा है, मगर ऐसा होता नहीं है. कब कौन उन्हें देख ले, कब किसके मन में कुत्सित भावनाएं जाग जाएं कहा नहीं जा सकता.

बच्चों पर बुरा असर

जब घर में एक या दो कमरे हों और घर के सभी प्राणी उन्हें शेयर करते हों तो पति-पत्नी के बीच बनने वाले शारीरिक सम्बन्ध अक्सर घर के बच्चों की नजर में आ ही जाते हैं. आप अगर यह सोचें कि बच्चा सो रहा है, या बच्चा छोटा है कुछ समझ नहीं पाएगा, तो यह आपकी गलतफहमी है. आजकल टीवी और इंटरनेट के जमाने के बच्चे सब कुछ समझते भी हैं और उन्हें दोहराने की कोशिश भी करते हैं. यह बातें बच्चों में उत्पन्न होने वाली आपराधिक प्रवृत्ति की जिम्मेदार हैं. ऐसे ही बच्चे जो बचपन में अपने माता-पिता को शारीरिक सम्बन्ध बनाते देखते हैं, वह अपने स्कूल में अन्य बच्चों के साथ गलत हरकतें करते हैं या लड़कियों को मोलेस्ट करने या उनसे बलात्कार करने की कोशिश करते हैं.

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पति-पत्नी में बढ़ती दूरी

छोटा घर और बड़ा परिवार पति-पत्नी के शारीरिक सम्बन्धों में तो बाधा है ही, यह पति-पत्नी को मानसिक और भावनात्मक रूप से भी एक-दूसरे के करीब नहीं आने देता है. छोटे घर में अन्य सदस्यों की मौजूदगी में पति-पत्नी अपनी उन फीलिंग्स को एक-दूसरे के साथ कभी शेयर ही नहीं कर पाते हैं, जो उन्हें एक-दूसरे के निकट लाती है. वे कभी एक-दूसरे की बाहों में लिपट कर नहीं बैठ सकते. प्यार के स्पर्श को महसूस नहीं कर पाते. अपने मन की बातें एक-दूसरे से नहीं कह पाते. वे बस रात होने का इंतजार करते हैं, सबके सोने का इंतजार करते हैं और सेक्स को डर और आशंकाओं के बीच किसी मशीनी क्रिया की भांति फटाफट निपटा लेते हैं. ऐसे कपल जीवन की पूर्णता के निकट भी नहीं पहुंच पाते हैं और उनके बीच सदा एक दूरी बनी रहती है. समय गुजरने के साथ ये दूरी बढ़ती जाती है और दोनों एक-दूसरे की भावनाओं और तकलीफों से भी कट जाते हैं.

छोटा घर तलाक का कारण

शुभांगी ने तो पति का छोटा घर देख कर शादी के पहले ही दिन तलाक की बात कह दी और अपने माता-पिता के साथ हैदराबाद लौट गयी. दरअसल शुभांगी दिल्ली में काम करती थी. यहां वह दो कमरे के किराये के फ्लैट में रहती थी. उसके माता-पिता हैदराबाद में थे. प्रतीक से वह एक मेट्रीमोनियल साइट पर मिली थी. प्रतीक ने उसको बताया था कि वह बेंगलुरु में एक अच्छी कम्पनी में काम करता है और शादी के बाद शुभांगी को अपने साथ बेंगलुरु ले जाएगा, जहां कम्पनी की तरफ से उसको बड़ा फ्लैट मिला हुआ है. दोनों ने अपने-अपने माता-पिता को इस रिश्ते के बारे में बताया. दोनों के माता-पिता हैदराबाद में एक पब्लिक प्लेस पर मिले और शादी की तारीख पक्की हो गयी. तय तारीख पर शुभांगी हैदराबाद पहुंची और दोनों शादी वहां एक मंदिर में हुई. शादी में दोनों के माता-पिता, प्रतीक का छोटा भाई और कुछ दोस्त मौजूद थे. शादी सम्पन्न होने पर शुभांगी अपने माता-पिता के साथ प्रतीक के हैदराबाद वाले घर में पहुंची तो वह छोटा सा दो कमरे का घर था. जहां एक कमरे में उसके माता-पिता रहते थे, और दूसरे में उसका भाई. वहां पहुंच कर प्रतीक ने शुभांगी से कहा कि उसकी नौकरी चली गयी है और वह नई कम्पनी जल्दी ही ज्वाइन करेगा. कम्पनी ने उसका फ्लैट भी खाली करवा लिया है, इसलिए वह अभी उसको अपने साथ बेंगलुरु नहीं ले जा सकता और शुभांगी को यहीं उसके छोटे भाई के साथ उसका कमरा शेयर करके रहना होगा.

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यह सुनते ही शुभांगी गुस्से से भर गयी. उसने पूछा कि यह बात उसने शादी से पहले क्यों नहीं बतायी? इस पर प्रतीक और उसके माता-पिता ने सिर झुका लिया. शुभांगी ने प्रतीक से कहा कि वह कोई पुलिस केस नहीं चाहती है, इसलिए तलाक की अर्जी कोर्ट में दाखिल करेगी और बेहतर होगा कि प्रतीक भी आपसी सहमति से तलाक के लिए राजी हो जाए, अगर वह राजी नहीं हुआ तो मजबूरन वह उन लोगों पर चार सौ बीसी का केस दायर करेगी, इसके साथ ही वह उन लोगों पर सामाजिक प्रताड़ना, मानसिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और महिलाओं को प्रोटेक्ट करने वाले तमाम मुकदमे भी दर्ज करवा देगी. उसकी धमकी सुन कर प्रतीक और उसके माता-पिता कांपने लगे और तुरंत तलाक के लिए राजी हो गये.

दरअसल शुभांगी इस बात से तो नाराज थी ही कि प्रतीक ने अपनी नौकरी जाने की बात उसे शादी से पहले नहीं बतायी, बल्कि इस बात से ज्यादा नाराज थी कि उसने यह नहीं बताया था कि नौकरी न रहने पर शुभांगी को उसके दो कमरे के छोटे से घर में उसके छोटे भाई के साथ कमरा शेयर करके रहना होगा. अगर यह घर थोड़ा बड़ा होता और शुभांगी को वहां रहने के लिए अपना कमरा मिलता तो शायद वह तलाक की बात न भी करती और प्रतीक को नई नौकरी ढूंढने का मौका देती.

क्या है उपाय

घर चाहे छोटा हो या बड़ा, मर्यादाओं का पालन होना ही चाहिए, वरना समाज और देश अमर्यादित और आपराधिक गतिविधियों में उलझ जाएगा. बच्चे का पहला शिक्षालय उसका घर ही होता है. वहां वह जो कुछ देखता, सीखता है, उसकी पुनरावृत्ति वह स्कूल, कॉलेज और उसके उपरान्त अपने जीवन में भी करता है. इसलिए कोशिश करें कि बच्चों के सामने ऐसी कोई हरकत न करें, जिसका उनके कोमल मन पर बुरा प्रभाव पड़े.

घर छोटा और परिवार बड़ा हो तो नये शादीशुदा जोड़े को एकान्त वक्त बिताने के लिए घर के अन्य सदस्यों को मौका देना चाहिए. इतवार या अन्य छुट्टी के दिन नये जोड़े को घर में छोड़ कर घर के बाकी लोग यदि पिकनिक पर या किसी रिश्तेदारी में चले जाएं तो यह वक्त नये कपल के लिए स्वर्ग से ज्यादा सुन्दर होगा.

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सास-ससुर को चाहिए कि शाम को बेटे के घर लौटने के वक्त ईवनिंग वौक पर इकट्ठे चले जाएं या बाजार-हाट कर आएं और बेटे-बहू को घर में कुछ वक्त अकेले में बिताने का मौका दें और बेटे-बहू को भी चाहिए कि वे भी माता-पिता को कुछ समय अकेले रहने का मौका दें. आखिर उनके मन में भी तो तमाम बातें होती होंगी, जो वे बेटे, बहू या अन्य बच्चों के सामने नहीं कर पाते होंगे. बेहतर तो यह होगा कि शादी के बाद नये जोड़े के लिए घर में अलग कमरे का इंतजाम हो. यदि घर बहुत छोटा है और ऐसा करना सम्भव नहीं है तो आमदनी ठीक होने पर नये जोड़े को अलग घर लेकर दे देना चाहिए. इसके लिए बहू को दोष देना ठीक नहीं कि आते ही उसने लड़के को घर से अलग कर दिया, जैसा की आमतौर पर भारतीय परिवारों में सुनायी पड़ता है. दो अनजान प्राणी एक दूसरे से तभी जुड़ पाएंगे, एक दूसरे के हमसफर सही मायनों में तभी बन पाएंगे, जब अकेले में एक दूसरे के साथ वक्त बिताएंगे. आज तलाक की बड़ी वजह यह भी है कि मां-बाप अपने शादीशुदा बेटे को उसकी पत्नी के साथ रहने का पूरा मौका नहीं देते हैं.

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