कब कोई लङकी बन जाती है बिगड़ैल, यहां जानिए

मुंबई की बीच सड़क पर एक लड़के को एक लड़की चप्पलों से पीट रही थी और कह रही थी कि तूने मुझे छुआ क्यों? तेरी इतनी हिम्मत कैसे हुई? आज मैं तुझे बताती हूं. इसे देख आसपास के लोग भी उसे पीटने लग गए। उस के नाक और मुंह से खून निकल रहा था और वह हाथ जोड़े कह रहा था कि मुझे माफ कर दो, मत मारो मैं पांव पकड़ता हूं. तुम जो कहेगी मैं करने के लिए तैयार हूं.
लेकिन लड़की मान नहीं रही थी और लगातार लातघूंसे से मारे जा रही थी। पुलिस के आने से पहले उस की पहचान का एक बुजुर्ग व्यक्ति वहां आया, बीचबचाव कर उस लड़के को उस लड़की के चंगुल से बाहर निकाला है और अस्पताल ले कर गया.
बाद में पता चलता कि वह लड़की उस लड़के को पिछले 3 साल से डेट कर रही थी। लड़के को वह बौयफ्रैंड कहती है. लड़का थोड़ा सरल स्वभाव का है. इस का फायदा उठा कर लड़की उस के साथ होटलों और रेस्तरां में हमेशा जाती थी और खुद खाना खाने के बाद अपनी मां के लिए भी खाना पैक कर ले जाती थी. इस के अलावा उसे जब भी पैसे की जरूरत होती तो उस लड़के से पैसे मांगती और वह उसे दे भी देता था.
व्यवसायी परिवार का पैसे वाला यह लड़का उस लड़की की हर चाहत को पूरा करने की जीतोड़ कोशिश करता रहा, लेकिन गलती यह हुई कि लड़के ने उस लड़की को रेस्तरां में जबरदस्ती किस कर लिया, इस से उस का गुस्सा भड़क गया और रास्ते में उस ने उस की पिटाई कर दी.
दरअसल, कुछ लड़कियां बचपन से ही बिगड़ैल स्वभाव की होती हैं. रश्मि का स्वभाव भी बिगड़ैल है, क्योंकि स्कूल के समय से वह किसी न किसी लड़के या लड़की की टिफिन खा जाती थी। पूछने पर कुछ बहाना बना कर मना कर देती थी। लेकिन एक दिन एक लड़की ने उसे किसी लड़के का टिफिन उठाते देखा और टीचर से शिकायत की। उस के पेरैंट्स को बुलाया गया, तो उस ने भोली सूरत बना कर सब के सामने कह दिया कि उसे उस के पेरैंट्स टिफिन कम मात्रा में देते हैं, जिस से उस का पेट नहीं भरता, इसलिए वह दूसरे का टिफिन चुपके से ले कर खा जाती है. पेरैंट्स और टीचर सभी एकदूसरे का मुंह ताकने लगे और रश्मि को डांट कर वहां से निकल जाने को कहा.
असल में रश्मि की झूठ बोलने की आदत बचपन से ही थी. इस के बाद बड़ी हो कर उस ने कई बौयफ्रैंड बना लिए, जिस के साथ वह मौजमस्ती करना पसंद करती थी. जब नौकरी करने लगी, तो औफिस के किसी लड़के से प्रेम कर उस ने अंत में शादी कर ली और एक बच्चे की मां बन सैटल हो गई.
रश्मि की अच्छी बात यह रही कि उसे अंत में समझ आ गया था कि उसे हर थोड़े दिनों बाद बौयफ्रैंड बदलने की आदत को सुधार लेनी चाहिए और इस के बाद उस ने खुद को संभाल लिया. मगर लड़कियां ऐसी नहीं होतीं. सुमन ने भी कई बौयफ्रैंड बनाए और सभी के साथसाथ लाइफ को ऐंजौय किया, लेकिन अंत में सभी लड़के उस की नियत समझ कर धीरेधीरे खिसक लिए और अब सुमन अकेली अपनी मां के साथ रहती है. उसे अब शादी करने की इच्छा नहीं है. वह आजाद रहना पसंद करने लगी है.
आजाद रहने की इच्छा
असल में अभी तक आप ने लड़कों के बिगड़ने की कहानी सुनी और देखी होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लड़कियां भी बिगड़ैल होती हैं और कई बार अपने पेरैंट्स और दोस्तों की नाक में दम कर देती हैं. अगर कोई उन्हें इस की वजह के बारे में जानना भी चाहते हैं, तो मुंह बना लेती हैं या फिर टका सा जवाब दे कर निकल लेती हैं.
दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में ऐसी मनमानी करने वाली लड़कियों की कमी नहीं है. ऐक्सपर्ट मानते हैं कि ऐसी लड़कियां अधिकतर परिवार की रोकटोक से परेशान हो कर आजाद खयालात अपना लेती हैं. कुछ हद तक इन्हें विद्रोही स्वभाव भी कहा जा सकता है, जबकि कुछ का स्वभाव बचपन से ही ऐसा होता है. कई बार किसी लड़के से धोखा खाने के बाद भी लड़कियां बिगड़ैल बन जाती हैं और कई लड़कों के साथ दोस्ती करतीं और अपना गुस्सा निकालती रहती हैं. इस के अलावा परिवार में कम उम्र में कुछ गलत हालात का सामना कर चुकी लड़कियां भी ऐसी हो सकती हैं.
परिवार है जिम्मेदार
मनोवैज्ञानिक राशिदा कपाड़िया कहती हैं कि ऐसी बिगड़ैल लड़कियों की संख्या आज अधिक है, क्योंकि आजकल सभी के 1 या 2 बच्चे होते हैं, ऐसे में पेरैंट्स का ध्यान उन पर बहुत अधिक होता है. उन्हें किसी भी काम को करने की आजादी नहीं मिलती. पेरैंट्स भी बहुत प्रोटैक्टिव होते हैं. वे लड़कियों को कहीं आनेजाने, मन मुताबिक ड्रैस पहनने या दोस्त बनाने आदि किसी भी बात को करने से मना करते रहते हैं. जब ये लड़कियां टीनएज में होती हैं, तो पियर प्रेशर इन पर बनता है, दोस्त उन का मजाक उड़ाते हैं. ऐसे में वे खुद को प्रूव करने के लिए कई लड़कों से प्यार का नाटक करती हैं और बिगड़ैल जानबूझ कर बनती हैं.
बिगड़ैल लड़कियां बनने के पीछे कई कारण हो सकते हैं :
● पेरैंट्स का अधिक स्ट्रिक्ट होना.
● गलत संगत में पड़ जाना.
● लड़की का खुद को इंफीरियर समझना.
● बौयफ्रैंड से धोखा मिलना आदि.
ऐसे में उन का मानसिक स्तर बिगड़ने लगता है. धोखा या खुद को इंफीरियर समझना अधिकतर लड़कियों के बिगड़ैल होने की वजह देखी जाती है. कुछ लड़कियां खुद को अधिक अट्रैक्टिव दिखाने के लिए भी बहुत सारे बौयफ्रैंड बनाती हैं, ताकि दोस्तों में उन की तारीफ हो. इसलिए जो भी लड़का उन्हें मिले, उस के साथ दोस्ती कर लेती हैं, साथ ही वे अधिक बातूनी भी होती हैं. लड़के भी इस का फायदा उठा कर दोस्ती कर लेते हैं.
राशिदा अपने अनुभव के बारे में कहती हैं कि एक सीधीसादी लड़की इसलिए बिगड़ैल बनी, क्योंकि वह बहुत अधिक सुंदर नहीं थी। उसे लगता था कि कोई लड़का उसे पसंद नहीं करेगा, इसलिए वह सभी लड़कों से बहुत बातें करती और दोस्ती करती थी. इसे देख बाकी लड़कियां उसे भलाबुरा कहने लगीं. धीरेधीरे लड़की में हीनभावना हीने लगी और उसे लगने लगा कि उस का यह व्यवहार ठीक नहीं। उस ने सब से दोस्ती तोड़ डाली और वह डिप्रैशन में चली गई.
एक दिन वह मेरे पास आई और कई सेशन के बाद उसे समझ में आया कि उसे क्या करना चाहिए और तब जा कर वह नौर्मल हुई.
सोशल मीडिया की पोपुलैरिटी
इतना ही नहीं ऐसी कई लड़कियों के रील्स भी सोशल मीडिया पर देखने को मिलते हैं, जहां वे कुछ भी उटपटांग हरकतें कर रील शेयर करती हैं और लोगों के लाइक्स उन्हें अच्छा फील कराती हैं और यह सब उन के लिए गलत नहीं होता. इसे वे ऐंजौय करती हैं.
अभिनेत्री उर्फी जावेद भी बिगड़ैल लड़की की श्रेणी में शामिल हैं, लेकिन इस का असर उन पर नहीं पड़ता. छोटे शहर में जन्मी और बड़ी हुई उर्फी परिवार की रोकटोक से तंग आ कर मुंबई भाग आई और ऐक्टिंग करने लगी. उस की अतरंगी पोशाक और रहनसहन को ले कर लोग तरहतरह की बातें करते हैं, पर इस का असर उर्फी पर कभी नहीं पड़ा. वह अपने लाइफ को ऐंजौय कर रही है. उस ने कहा भी है कि वह अटेंशन चाहती है और इसलिए इस तरह के कपड़े पहनती है. उसे पहचान और पैसा सब इस से मिल रहा है, जो टीवी से कभी नहीं मिला.
बिगड़ैल लड़की का कौंसेप्ट पसंद
बौलीवुड ऐक्ट्रैस हुमा कुरैशी ने भी एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्हें बिगड़ैल लड़कियों का कौंसेप्ट बहुत पसंद है और उन्होंने इस पर एक किताब भी लिख डाली है. वे खुद को भी एक बिगड़ैल और बदतमीज लड़की की श्रेणी में रखती हैं. वे कहती हैं कि मैं लड़कियों को इस बात के बताए जाने से थक चुकी हूं
कि लड़कियों को कैसे कपड़े पहनने चाहिए या फिर कैसे चलना चाहिए, कैसा व्यवहार करना चाहिए. बिगड़ैल लड़कियों वाला कौंसेप्ट मुझे हमेशा से पसंदीदा रहा है, क्योंकि मैं ने हमेशा अपने मन का किया है और मैं खुद एक बिगड़ैल लड़की हूं.
बिगड़ैल बन कमाया पैसा
पिछले दिनों ब्लेयर रिचर्ड्स नाम की एक विदेशी लड़की पेशेवर बिगड़ैल लड़की के रूप में वायरल हुई, क्योंकि उस ने अपनी खूबसूरती का उपयोग कर फिन सब में शामिल हुई, जिस में लोग स्वेच्छा से खुद पैसा देते हैं. उस ने लोगों को आकर्षित कर 4 सालों में लगभग ₹5 करोड़ कमाए हैं. फिन सब वह व्यक्ति होता है, जो किसी प्रभावशाली व्यक्ति को अपने खर्च पर नियंत्रण करने देना पसंद करता है. ब्लेयर का काम ऐसे अनुयायियों को आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया पेज बनाना है. हाल ही में इंस्टाग्राम वीडियो में उन्होंने स्क्रीनशौट शेयर किए, जिस में दिखाया गया कि कैसे एक व्यक्ति ने उन्हें सिर्फ 1 घंटे में सैकड़ों डौलर भेजे. उन्होंने बताया है कि वह इन लोगों से डेट या मुलाकात नहीं करती हैं. ब्लेयर ने यह भी लिखा है कि इस काम की कोई सीमा नहीं, आप वास्तव में आजीविका के लिए एक पेशेवर बिगड़ैल लड़की की तरह
काम कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले 4 सालों में मैं ने एक उपनाम के तहत सोशल
मीडिया पेजों और फैन साइट्स से लगभग ₹5 करोड़ कमाए हैं.
फिल्म इंडस्ट्री की बिगड़ैल लड़कियां
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी ऐसी बिगड़ैल लड़कियों की कमी नहीं. बहुत सारी लड़कियां अक्खड़ और बिगड़ैल स्वभाव की हैं, जिस में परिणिती चोपड़ा का नाम सब से पहले आता है. उन का व्यवहार अपने प्रसंशकों और क्रू टीम के साथ बहुत असभ्य रहता है. अभिनेत्री कंगना रनौत भी एक बिगड़ैल लड़की है.
कम उम्र में
घर से भाग कर अभिनय के क्षेत्र में आईं और अभिनय के बल पर खुद को स्टैब्लिश किया, लेकिन इस के बावजूद वे अपने बिगड़ैल स्वभाव की वजह से कई निर्माता निर्देशक की सूची से बाहर हैं.
सुंदर और आकर्षक अभिनेत्री कैटरीना कैफ को सभी जानते हैं कि अच्छी अभिनेत्री नहीं होने के बावजूद वे फिल्मों में टिकी हुई हैं क्योंकि वे दिखने में सुंदर हैं और उन के संबंध बड़े स्टार्स यानि सारे खान के साथ बहुत मधुर हैं. मगर उन पर भी अपने सहकर्मियों के साथ नखरे दिखाने के आरोप लगते रहते हैं और वे अपने प्रशंसकों और फिल्मों के कर्मचारियों के साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं करतीं.
अनुष्का शर्मा भी कम बिगड़ैल नहीं. उन को अपने प्रसंसकों और फिल्मी कर्मीदल के साथ असभ्य बरताव करते हुए कई बार कैमरे पर देखा गया है. उन को मीडिया के साथ भी अशिष्ट व्यवहार करते हुए देखा गया है. उन्होंने कुछ फैशन शो में भी बदतमीजी की है जहां पर उन का यह बरताव डिजाइनर को बहुत महंगा पड़ा.
फिल्म ‘आशिकी 2’ में सरल स्वभाव के रोल के लिए जानी जाने वाली श्रद्धा कपूर रियल लाइफ में ऐसी बिलकुल नहीं हैं. वे अपने प्रशंसकों के साथ अकसर असभ्य हो जाती हैं और उन को मीडिया और फोटोग्राफरों के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखा गया है. श्रद्धा के इस व्यवहार पर स्वयं उन के पिता शक्ति कपूर ने भी जिक्र किया है.
इस प्रकार बिगड़ैल लड़की कहलाना आज की तारीख में कोई गलत बात नहीं होती, क्योंकि हर लड़की आजादी और चर्चा में बने रहने के लिए ही ऐसा करती है और वह कामयाबी और पैसे भी कुछ हद तक इस के जरीए पा भी लेती है. लेकिन इस में हमेशा सावधानी बरतने की जरूरत लड़की को होती है, ताकि
किसी फ्रौड इंसान के पल्ले वह न पड़ जाए.

Social Issue : अमीरों की सुनो वह तुम्हारी सुनेगा

Social Issue :  देश की खस्ता हो रही इकौनौमी का एक और सुबूत है कि अब प्रीमियम प्रोडक्ट्स भी छोटे पैक्स में मिलने लगे हैं. एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) यानी ज्यादा बिकने वाली आम जरूरत की चीजों की खपत अब बढ़नी बंद हो गई है जबकि देश की जनसंख्या बढ़ रही है.

इन प्रोडक्ट्स को बनाने वालों ने पिछले 2 दशकों में प्रीमियम प्रोडक्ट्स बना कर गरीबों, अमीरों व सुपर अमीरों के बीच लाइनें लगानी शुरू की थीं और टूथपेस्ट जैसी चीज भी 300-400 रुपए की बिकने लगी थी. एअर कंडीशंड, अंगरेजी बोलने वाले स्टाफ वाले मौलों में खुले स्टोर चाहते ही यह थे कि वे महंगे प्रोडक्ट्स बेचें जिन पर उन का मार्जिन अच्छा हो जिस में से कुछ वे पौइंट्स के रूप में ग्राहकों को लौटा सकें.

बहुत अमीरों की तो संख्या में कमी नहीं हुई पर गरीबों और अमीरों के बीच की बिरादरी लड़खड़ाने लगी है. अच्छे पढ़ेलिखे, अपना लाइफ स्टाइल सुधारने के चक्कर वाले क्व20 की कौफी की जगह क्व150-300 कीकौफी पीने वाले अब पैसे की तंगी महसूस कर रहे हैं.

इन मिडल रिचों के खर्चे बढ़ गए हैं. गाड़ी मिड साइज की ही खरीदनी है, फ्लैट अच्छी सोसायटी में ही हो, सप्ताह में 4 बार खाना अच्छे रेस्तरां में ही हो, कपड़े, जूते ब्रैंडेड ही हों, बच्चों को महंगे प्राइवेट इंगलिश मीडियम स्कूल में ही भेजा जाए, फोन और लैपटौप महंगा ही हो. इन सब के पास ग्रौसरी के लिए पैसा कहां बचता है? अब प्रीमियम प्रोडक्ट्स खरीदने की आदत पड़ गई तो उन के छोटे पैक्स की मांग होने लगी है. छोटी फैमिली में बड़े पैक खत्म ही नहीं होते और बोतल का रंग फीका पड़ने लगता है.

अब सभी बड़ी कंपनियां महंगे रोजमर्रा के टूथपेस्ट, शैंपू, सोप, कंडीशनर, डिटर्जैंट, मसालों, क्रीमों, रैडीमेड फूड व छोटे पैक बनाने लगी हैं. इस से खपत बढ़ेगी, यह तो पता नहीं पर सर्कुलेशन बढ़ जाएगा, यह अंदाजा है.

असल में लोगों की जेबों में पैसा कम बच रहा है क्योंकि फालतू के खर्च ज्यादा हो रहे हैं. सब से बड़ा बेकार का खर्च डिजिटल मोड पर है. लोग बेबात में नया स्मार्ट मोबाइल, स्मार्ट वाच, लैपटौप, डेटा पैक, इयरबड खरीद रहे हैं. स्मार्ट बड़े टीवी पर महंगे ओटीटी प्लेटफौर्म सब्सक्राइव किए जा रहे हैं. बेमतलब के टूरिस्ट स्पौटों पर जाया जा रहा है.

यही नहीं, दकियानूसीपन फिर भी भरा है और इसलिए इंजीनियर, डाक्टर, एमबीए, लौयर्स बड़ा मोटा पैसा पैशनेबल धार्मिक आश्रमों पर खर्च कर रहे हैं. उन के लिए मैडिटेशन, योगा क्लासेज, हाई ऐंड टैंपल, और्गेनिक फूड, पिलग्रिम टूरिज्म जिस में एअर और हैलिकाप्टर राइड्स होते हैं, जम कर इस्तेमाल हो रहा है. जो पैसा सेहत के लिए सामान खरीदने के लिए खर्च होना चाहिए वह जिम मैंबरशिप में खर्च होता है.

धर्म के नाम पर मोटिवेशनल स्पीकर्स की बाढ़ आ गई है जो पर्सनैलिटी इंप्रूवमैंट के नाम पर भारी डोनेशन वसूल कर लेते हैं. गरीब लोग कुंभ जैसे मेलों में सस्ते टैंटों में साथसाथ बिस्तर लगा कर सोते हैं, अमीरों के लिए 5 स्टार सुविधाएं अलग टैंटों में दी जा रही हैं क्योंकि वे मोटी दक्षिणा देते हैं.

घरों में अमीरों और धर्म अमीरों ने अपने घरेलू मंदिर बना लिए हैं जहां रातदिन दीए जलते रहते हैं. ये इग्नोरैंट इररैशनल रिच यंग भी गिफ्ट में गणेश, शिव, लक्ष्मी के ऐब्स्ट्रैक्ट आर्ट वाले महंगे सिंबल बांटते फिरते हैं. पैसा तो लिमिटेड है. जरूरत पर खर्च करो या धर्म पर बरबाद करो.

धर्म पर ही नहीं, यही लोग अपने खाली समय में कुछ पढ़ने की जगह घंटों महंगी शराबों पर भी खर्च करते हैं. यह खर्च लाइफस्टाइल का हिस्सा बन गया है. रात देर तक पीते रहने वाले सुबह पूजापाठी बन जाते हैं और उस के बाद हैल्थ कौंशस हो कर ब्रैंडे़ड जूते और वाकिंग ड्रैस पहन कर निकलते हैं.

जो लोग दोगलेपन में जीते हैं उन से पैसा बचाने की उम्मीद नहीं की जा सकती. उन के क्रैडिट कार्ड हमेशा लिमिट क्रौस करते रहते हैं. पैसा हो तो घर का सामान खरीदेंगे न.

अच्छा लाइफस्टाइल जरूरी है पर कल के लिए बचाना ज्यादा जरूरी है. ये युवा रिच कल का जिम्मा तो धर्म और शेयर बाजार पर डाल देते हैं. अगर इन की गिनती फिर भी काफी दिख रही है तो इसलिए कि इस यंग रिच क्लास में काफी लोग ऐसे हैं जिन के पेरैंट्स ने कौड़ीकौड़ी जमा कर कोई मकान, जमीन खरीदी थी और अब उस का दाम बढ़ गया है. वे उसी पैसे पर फूल रहे हैं. मांबाप भी अंधविश्वासी थे पर महल्ले के मंदिर में कुछ अपने 2-4 रुपए चढ़ा कर काम निकाल लेते थे, आज के युवा स्टाइल में 20 मील दूर बने विशाल मंदिर में जाते हैं क्योंकि मांबाप की खरीदी या बनाई संपत्ति का दाम बढ़ गया है.

जो पैसे वाले दिख रहे हैं, उन में से दो-तिहाई इसी तरह के हैं. इन की हैसीयत की पोल अब खुल रही है.

सरकार की एक और भूल

इंटरनैट ट्रोलों की भगवा सेना के मालदीव बायकौट आक्रमण के बावजूद मालदीव ने भारतीय सेना को 15 मार्च तक मालदीव का अपना ठिकाना बंद करने को कह दिया है. राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने चीन में शी जिनपिंग से मुलाकात कर के लौटने के तुरंत बाद यह घोषणा ही नहीं की, यह भी कह डाला कि हम छोटे हैं तो इस का मतलब यह नहीं कि  हरकोई हमें बुली कर सकता है.

यह भारत की विदेश नीति में एक और ईंट का खिसकना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस का एहसास होने लगा था इसलिए उन्होंने विदेश मंत्रालय धीरेधीरे विदेश मंत्री जयशंकर को सौंप दिया था और खुद राममंदिर में लग गए थे. 2014 से 2019 तक जब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं, उन्हें कभी कोई पौलिसी निर्णय तक नहीं लेने दिया था पर अब सारी मुलाकातें जयशंकर ही करते हैं. प्रधानमंत्री के विदेशी दौरे भी कम हो गए हैं और बड़े देशों के नेता तभी भारत आते हैं जब कोई सामान बेचना हो.

मालदीव का रूठना वैसे सामरिक या कूटनीतिक दृष्टि से कोई ज्यादा मतलब का नहीं है. बड़े देशों के निकट के छोटे देश आमतौर पर बड़े देश से नाराज ही चलते हैं क्योंकि बड़ा देश अपनी धौंस जमाए बिना नहीं रहता. यह वैसा ही है जैसा रिहायशी कालोनियों या सोसायटियों में होता है, जहां बड़े मकान वाले दबाव डाल कर अपनी मनमानी कर डालते हैं क्योंकि जब वे अपने आलीशान मकान पर 56 तरह के खाने खिलाते हैं तो पड़ोसी सकुचा ही जाते हैं.

भारत बड़ा चाहे हो पर उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि मालदीव, श्रीलंका, बंगलादेश, भूटान प्रति व्यक्ति औसत आय में भारत से आगे हैं, पीछे नहीं. भारत भारीभरकम हिप्पो हो सकता है पर वह छोटे खरगोश की तरह चपल और फुरतीला नहीं है.

मालदीव अपनी भौगोलिक पोजीशन और अपने लोगों की अच्छी कमाई के कारण भारत से ज्यादा पर्यटकों का आकर्षण है और इसीलिए भारत के लाखों पर्यटक हर साल वहां जा कर साफ हवा और सुंदर होटलों का आनंद लेते हैं. भारत के अमीरों के लिए अब देश के पर्यटन स्थल केवल तीर्थ रह गए हैं.

भारत सरकार की तरह भारत के अमीर भी आजकल मालदीव, श्रीलंका नहीं अयोध्या जा रहे हैं ताकि उन की संपत्ति पर रामजी की कृपा बनी रहे. हमारी विदेश नीति में क्या हो रहा है यह किसी के न पल्ले पड़ता है, न कोई चिंता करता है.

Online एल्गोरिदम पर्सनल लाइफ को कर रहा हैक

यदि आप से कहें कि औनलाइन जो भी आप फीड कर रहे हैं वह आप अपनी इच्छा से कहीं अधिक एआई तकनीक के एल्गोगोरिदम मैथड से कर रहे हैं तो आप क्या हैरान होंगे? डिजिटल की पकड़ लोगों की जिंदगी में बुरी तरह पैठ जमा चुकी है, यह पर्सनल लाइफ को हैक करने जैसा है.

डिजिटल वर्ल्ड यूथ की रूटीन लाइफ का हिस्सा बन चुका है. आप सुबह सब से पहले अंधली नींद में अपना फोन चैक करते हैं. इन्फौर्मेशन के लिए न्यूजपेपर की जगह कच्ची जानकारी वाले व्हाट्सऐप देखते व फौरवर्ड करते हैं, अपने ईमेल और सोशल मीडिया फीड के माध्यम से बिना सोचेसमझे स्क्रौल करना शुरू कर देते हैं.

देखते ही देखते आप क्लिक और टैप के ऐसे भंवर में फंस जाते हैं जिस से कीमती टाइम और मैंटल एनर्जी बरबाद होने लगती है. जिन इन्फौर्मेशंस को आप पढ़ रहे होते हैं वे सही हैं या नहीं, यह जाने बगैर आप का फोन आप की उंगलियों को अपने इशारों पर नचा रहा होता है और आप ऐप और प्लेटफौर्म के ऐसे जाल में फंसते चले जाते हैं जो आप को सिर्फ एक कंज्यूमर समझता है, जिसे वह किसी भी हाल में अपना प्रोडक्ट बेचना चाहता है.

यही खासीयत है डिजिटल वर्ल्ड की कि जिन ऐप्स और प्लेटफौर्म्स का हम हर दिन उपयोग करते हैं, जितना अधिक वे हमारा ध्यान खींचते हैं, वे कंज्यूमर और प्रोडक्ट के इस खेल में उतने ही अधिक सफल होते जाते हैं. लेकिन यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि वे इसे आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के एल्गोरिदम मैथड को यूज कर के सफल होते हैं.

क्या है एल्गोरिदम मैथड

कंप्यूटर साइंस के अनुसार, एल्गोरिदम एक प्रकार का प्रोग्रामिंग प्रोसैस है, जिस की टैक्नोलौजी के आधार पर औनलाइन कंज्यूमर को एनालिसिस किया जाता है और उस की हर गतिविधि का सटीक अनुमान लगाया जाता है. यह तकनीक लगभग हर औनलाइन प्लेटफौर्म यूज करता है.

इस का इंपैक्ट समझिए कि, मानिए पटना के कचौड़ी गली के मकान नंबर 13 में बैठा अशोक जब औनलाइन शौपिंग साइट ‘अजियो’ पर अपने लिए वाइट कलर का 7 नंबर साइज वाला लेसअप स्नीकर शूज देखता है और थोड़ा भी समय बिताता है तो उस के बाद, वह चाहे दूसरे किसी भी प्लेटफौर्म या साइट पर विजिट करने लग जाए उसे उसी रंग, साइज, स्टाइल वाला स्नीकर फ्लैश होता दिखाई देगा.

यह आप ने भी देखा होगा कि यदि आप किसी प्रोडक्ट को किसी साइट पर देख रहे होते हैं तो उस प्रोडक्ट के रिकमंडेशन आप को लगातार आते दिखाई देते हैं. यह आप की स्क्रीन पर लगातार फ्लैश होता है, दरअसल, यही काम इंटरनैट एल्गोरिदम करता है.

यह एल्गोरिदम आप के द्वारा कंज्यूम किए जा रहे हर कंटैंट को (औडियो, वीडियो, आर्टिकल या कोई प्रोडक्ट आदि) जिसे सुना, देखा, पढ़ा या खोला और आप ने कोई रिऐक्शन दिया हो, के कीवर्ड्स, टैग, टौपिक को कैच करता है. उस के आधार पर आप की पर्सनल चौइस को समझ कर आप को लगातार फीड करता है.

आप फेसबुक के उदाहरण से समझिए. फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजने के लिए आप को जो सजेशंस अपने पेज पर दिखाई देते हैं उन का जुड़ाव कहीं न कहीं आप के बनाए बाकी फ्रैंड्स से डायरैक्टइनडायरैक्ट होता है. यह काम भी एल्गोरिदम करता है. वह आप के फ्रैंड सर्कल की पहचान
करता है, आप की पसंद को आंकता है. वह यह भी देखता है कि आप किस भाषा में, किस इलाके से, किस जैंडर के दोस्तों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं. यह काम इंस्टाग्राम और ट्विटर भी करते हैं.
लेकिन फेसबुक एल्गोरिदम इस से एक कदम आगे बढ़ चुका है. मानिए, मेरठ के गंगानगर इलाके में बैठा मुन्ना बजरंगी, जिस ने अपने कवर पेज पर राम की गुस्सैल तसवीर लगा रखी है और तसवीर में राम धनुष चलाने की मुद्रा में हैं व पीछे भगवा आसमान और बिजली कड़कड़ा रही है. इस के साथ ही उस ने अपने बायो में ‘हिंदू’ लिखा है और अपने फेसबुक पेज को स्क्रौल करते हुए उन पोस्टों को लाइक करता है जिन में धर्म विशेष की बातें लिखी हैं.

ऐसे में एल्गोरिदम उस के इंटरैस्ट एरिया को देखेगा. उस के कीवर्ड, कमैंट, उस की पसंद का विश्लेषण करता है और उसे उन्हीं ग्रुप्स से जुड़ने के रिकमैंड भेजेगा जिस में धर्म विशेष की बातें लिखी हों, खासकर ऐसी बातें जिन में वो इंटरैस्ट रखता है. ऐसा ही कुछ इंस्टाग्राम में होता है. इंस्टाग्राम अपने रील्स कंटैंट के लिए जाना जाता है. आप देखेंगे कि आप के सर्कल में जो भी फ्रैंड है वह एक ही थीम वाले रील्स शेयर करता है. ऐसा इसलिए कि उस ने किसी के प्रोफाइल, कंटैंट क्रिएटर या कंपनी की प्रोफाइल विजिट की और अब उसे वही दिखाई दे रहा है.

हैक होती पर्सनल लाइफ

एल्गोरिदम बहुत पावरफुल टूल है. यह टूल डिजिटल कंज्यूमर की पर्सनल लाइफ को हैक कर रहा है. उन्हें इन्फ्लुएंस कर रहा है. उन की पसंद और नापसंद को स्टिक कर रहा है. यानी एक तरह से कंज्यूमर अपनी पसंद की सामग्री नहीं देख रहा, बल्कि उसे वही सामग्री दिखाई जा रही है जो उस के इंटरैस्ट में एल्गोरिदम समझ रहा है.

एल्गोरिदम एक तरह से ऐसी इमेजिनरी दुनिया में ले कर जाता है जहां लगता है सबकुछ एक ही जैसा चल रहा है. जैसे, मानिए कोई लड़की अपने लिए शौपिंग साइट ‘मिंत्रा’ पर नए ट्रैंड की कोई कुरती ढूंढ़ रही है. इस के लिए वह ‘अमेजन’ और ‘मीशो’ की शौपिंग साइट पर भी हो आती है. उस के पास पैसे नहीं हैं तो वह इस प्लान को ड्रौप कर देती है. अब जबजब वह औनलाइन आएगी तबतब उसे उस से मिलतीजुलती कुरतियां स्क्रीन पर फ्लैश होंगी.

इस से कुरती को ले कर उस की पसंद और मजबूत होगी. उसे मजबूर होना पड़ेगा कि वह कुछ न कुछ तो ले ही, चाहे अपने फ्रैंड से उधार मांगे. दूसरा, वह एक्सप्लोर भी नहीं कर पाई, हो सकता है, जिस रेट पर वह कुरती देख रही थी उस से कहीं बढि़या और रीजनेबल रेट पर दूसरी कोई जरूरी चीज उसे दिख जाती. लेकिन एल्गोरिदम ने उस की पसंद को जकड़ लिया.

अकसर जब हम बात करते हैं डिजिटल एक्सप्लोरेशन की तो यह मान बैठते हैं कि यह व्यापक जानकारियां मुहैया करवा रहा है, एक तरह का जौइंट सोर्स औफ इन्फौर्मेशन है. लेकिन क्या यह सच में इन्फौर्मेशन दे रहा है या हमें डिसइन्फौर्म कर रहा है?

इस की पड़ताल करना मुश्किल नहीं. हम युवा इन्फौर्मेशन के लिए अब सोशल मीडिया पर निर्भर हो गए हैं. सोशल मीडिया में चाहे मीम के माध्यम से हो, न्यूज के लिंक के माध्यम से या रील्स के माध्यम से, इसे ही सौर्स औफ इन्फौर्मेशन मान बैठे हैं. समस्या यह कि यह एक लिमिटेड फील्ड प्रोवाइड कराता है. यानी सोशल मीडिया एल्गोरिदम यहां सब से बड़ी समस्या पैदा करता है कि वह एक तरह की इन्फोर्मेशन
अपने कंज्यूमर तक पहुंचाता है.

जैसे जाति या धर्म के नाम पर हो रहे किसी इलाके में भेदभाव या दंगे के बाद अगर इसी तरह के ग्रुप या पेज से जुड़ जाएं तो आने वाली सारी इन्फोर्मेशन इसी तरह की होने लगती हैं. अब इन ग्रुप्स से आने वाली इन्फौर्मेशन से ऐसे लगता है जैसे पूरे देश में इसी तरह की ऐक्टिविटीज चल रही हैं, जो पूरी तरह सही नहीं होता.

ऐसे ही, सोशल मीडिया पर फिल्म को प्रमोट किया जाता है. जैसे, ‘एनिमल’, ‘गदर’, ‘पठान’ या ‘जवान’ फिल्म जिस समय रिलीज हुईं, उन के फैन पेज बनने लग गए. इन फैन पेज के अगर किसी पोस्ट पर आप लाइक करते हैं तो यह उसी तरह के और कंटैंट भेजने लगता है, इस से दिमाग पूरी तरह एक चीज में कंसन्ट्रेटेड हो जाता है. यानी आप में जबरदस्ती इंटरैस्ट पैदा किया जाता है.

अब यह अच्छा है या बुरा, टैक्निकली, यह एक तरह से आप की रसोई में रैसिपी की किताब जैसी है. एल्गोरिदम की क्वालिटी उस की इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस मिजाज के हैं और कैसा टेस्ट पसंद करते हैं. अगर ज्यादा तलाभुना पसंद करते हैं तो वह उसी तरह के इन्ग्रीडिएंट्स आप के सामने परोस देगा. अब उस से आप क्या बनाते हैं, यह आप पर निर्भर करता है और उस के परिणाम भी आप ही
भुगतेंगे.

इसे कैसे फिक्स किया जाए

डिजिटल प्लेटफौर्म आप को कंट्रोल करे, इस से बढि़या है कि आप खुद उस के प्रभाव को कम करें. इस के तरीके भी हैं, जैसे फेसबुक टाइमलाइन से सौर्टिंग एल्गोरिदम को हटाने की परमिशन देता है.
फेसबुक पर, ‘न्यूज फीड’ के आगे 3 डौट्स पर क्लिक करें, फिर ‘रीसैंट’ पर क्लिक करें. ऐप पर, आप को ‘सैटिंग्स’ पर क्लिक करना होगा, फिर ‘शो मोर’ फिर ‘रीसेंट’ पर कर के इस के प्रभाव को कम किया जा सकता है.

ऐसे ही यूट्यूब पर भी इसे ठीक किया जा सकता है. इस में औटोप्ले को बंद कर के कम से कम आप यूट्यूब एल्गोरिदम को कुछ हद तक कंट्रोल कर सकते हैं. ऐसे ही इंस्टाग्राम ने फरवरी में कुछ अपडेट किया है.

इंस्टाग्राम आप को यह औप्शन दे रहा है कि आप अनजाने में किसे अनदेखा कर रहे हैं. यानी इस से यह थोड़ाबहुत जानने को मिल सकता है कि किस तरह के कंटैंट को आप ज्यादा देख रहे हैं. इस के लिए अपनी प्रोफाइल पर जा कर ‘फौलोइंग’ में क्लिक करेंगे.

वहीं नीचे सौर्टेड बाय का औप्शन दिया होता है. इस में ‘सब से कम इंटरैक्टेड’ और ‘फीड में सब से अधिक इंटरैक्टेड’ के औप्शन होते हैं. लेकिन ये तरीके इस बात की गारंटी नहीं कि इस के बाद एल्गोरिदम आप का पीछा छोड़ दे बल्कि एल्गोरिदम एक तरह की ऐसी तकनीक है, जो डिजाइन ही की गई है ताकि कंज्यूमर की पर्सनल डिटेल को हैक कर अपने प्रोडक्ट बेच सके. इस से आप बस, खुद को रीफ्रैश या रीशफल कर सकते हैं लेकिन एल्गोरिदम से पीछा नहीं छुड़ा सकते.

जब बिगड़ने लगे बच्चे का व्यवहार

चंडीगढ़ के एक स्कूल में नशा कर के आए छात्र को डांटने पर उस ने स्कूल टीचर को पीट-पीट कर लहूलुहान कर दिया. परीक्षा में फेल होने पर डांटने के बाद छात्र ने प्रिंसिपल पर 4 गोलियां दाग दीं.

प्ले स्कूल की प्रिंसिपल स्वाति गुप्ता का कहना है, ‘‘आजकल एकल परिवारों और महिलाओं के कामकाजी होने से स्थितियां बदल गई हैं. दो-ढाई साल के बच्चे सुबह-सुबह सजधज कर बैग और बोतल के बोझ के साथ स्कूल आ जाते हैं. कई बच्चे ट्यूशन भी पढ़ते हैं. कई बार महिलाओं को बात करते सुनती हूं कि क्या करें घर पर बहुत परेशान करता है. स्कूल भेज कर 4-5 घंटों के लिए चैन मिल जाता है.’’

गुरुग्राम के रेयान स्कूल का प्रद्युम्न हत्याकांड हो या इसी तरह की अन्य घटनाएं, जनमानस को क्षणभर के लिए आंदोलित करती हैं. लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात.

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साइकोलौजी विभाग की हैड दीपा पुनेठा का कहना है, ‘‘पेरैंट्स अपने बच्चे के भविष्य के लिए जरूरत से ज्यादा सचेत रहने लगे हैं. बच्चे के पैदा होते ही वे यह तय कर लेते हैं कि उन का बच्चा डाक्टर बनेगा या फिर इंजीनियर. वे अपने बच्चे के खिलाफ एक भी शब्द सुनना पसंद नहीं करते हैं.’’

चेन्नई में एक छात्रा ने शिक्षक की पिटाई से नाराज हो कर आत्महत्या कर ली. दिल्ली में एक शिक्षक द्वारा छात्र पर डस्टर फेंकने के कारण छात्र ने अपनी आंखें खो दीं. इस तरह की घटनाएं आएदिन अखबारों की सुर्खियां बनती रहती हैं.

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जितनी सुविधाएं उतनी फीस

आजकल शिक्षण संस्थाएं पैसा कमाने का स्रोत बन गई हैं. एक तरह से बिजनैस सैंटर हैं. जितनी ज्यादा सुविधाएं उतनी ज्यादा फीस. सभी पेरैंट्स चाहते हैं कि वे अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश दें. इस के लिए वे हर मुमकिन प्रयास भी करते हैं. फिर भी ज्यादातर पेरैंट्स न बच्चों की परफौर्मैंस से संतुष्ट होते हैं और न ही उन के बिहेवियर से. इस के लिए काफी हद तक वे स्वयं जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि वे स्वयं ही नहीं समझ पाते कि उन्हें बच्चे के साथ किस समय कैसा व्यवहार करना है.

बच्चा पढ़ने से जी चुराता है तो मां कभी थप्पड़ लगा देती है, कभी डांटती है तो कभी डरातीधमकाती है. लेकिन कभी यह पता लगाने की कोशिश नहीं करती कि बच्चा आखिर क्यों नहीं पढ़ना चाह रहा है. हो सकता है उसे टीचर पसंद नहीं आ रहा हो, उस का आई क्यू लैवल कम हो अथवा उस समय पढ़ना नहीं चाह रहा हो.

मुंबई के एक इंटरनैशनल स्कूल की अध्यापिका ने अपना दर्द साझा करते हुए बताया कि अब शिक्षिका पर मैनेजमैंट का प्रैशर, बच्चों का प्रैशर और अभिभावकों का प्रैशर बहुत ज्यादा रहता है. यदि किसी बच्चे से उस का होमवर्क पूरा न करने पर 2-3 बार कह दिया या सही ढंग से बोलने को कह दिया तो बच्चे घर पर छोटी सी बात को बढ़ा-चढ़ा कहते हैं. इसीलिए अब हम लोग ज्यादातर पढ़ा कर अपना काम पूरा करते हैं.

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पेरैंट्स का दबाव

अब स्कूल हों या पेरैंट्स सब को बच्चों की पर्सैंटेज से मतलब रह गया है. स्कूल को अपने रिजल्ट की चिंता है तो पेरैंट्स को अपने बच्चे को सब से आगे रखने की फिक्र है. बच्चों पर आवश्यकता से अधिक दबाव बनाया जा रहा है. पेरैंट्स और स्कूल दोनों ही बच्चों से उन की क्षमता से कहीं अधिक प्रदर्शन की चाह रखते हैं. बच्चों पर इतना अधिक दबाव और बोझ बढ़ जाता है कि या तो वे चुपचाप उस के नीचे दब कर सब की अपेक्षाएं पूरी करने की कोशिश करते हैं या फिर विद्रोही बन कर अपने मन की करने लगते हैं.

इलाहाबाद के एक मशहूर स्कूल की रुचि गुप्ता ने बताया कि पेरैंट्स के अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण आजकल बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल हो गया है. बच्चे पढ़ना नहीं चाहते और यदि उन पर जरा भी सख्ती करो तो बात का बतंगड़ बना देते हैं. सारा दोष टीचर पर आ जाता है. जब मैनेजमैंट नाराज हो, तो इस समय टीचर तो बलि का बकरा बन जाता है.

आजकल स्कूलों में वैल्यू एजुकेशन एक दिखावा है. सब को केवल बच्चों के नंबरों से मतलब है, क्योंकि आज का नारा है, कामयाब इंसान ही तारा है.

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पैसे का रोब

आजकल बच्चे पेरैंट्स की शह पर ही जिद्दी बन कर स्कूल में टीचर को कुछ नहीं समझते हैं. क्लास में टीचर का मजाक बनाना और ऊटपटांग प्रश्न पूछना आम बात हो गई है. आजकल पेरैंट्स बच्चों के सामने ही स्कूल और टीचर की कमियां निकालते रहते हैं. कई बार पेरैंट्स बच्चों के सामने ही कहने लगते हैं कि इस टीचर की शिकायत मैनेजमैंट से कर देंगे. तुरंत स्कूल से निकलवा देंगे. भला इन बातों को सुनने के बाद टीचर के प्रति बच्चों के मन में

आदर-सम्मान कहां से आ सकता है?

सुविधा-संपन्न परिवारों के बच्चे ज्यादातर किसी की कदर नहीं करते. न स्कूल में अपने टीचर्स की न ही घर में अपने पेरैंट्स की. वे मेहनत करने का माद्दा नहीं रखते. मां-बाप की शाहखर्ची देख कर स्कूल में भी अपने पैसे का रोब दिखाते हैं.

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टीचर का फर्ज

अभिभावक मंजू जायसवाल: अपना दर्द साझा करती हुई कहती हैं कि कोई भी टीचर अपनी गलती मानने को तैयार नहीं होती. यदि बात बढ़ कर ऊपर तक पहुंच जाती है तो बच्चे को बारबार अपमानित करती हैं, इसलिए बच्चे घर में कुछ बताना ही नहीं चाहते. इस तरह की शिकायत कई अभिभावकों ने की कि पेरैंट्स मीटिंग में टीचर केवल अपनी बात कहना चाहती हैं और वह भी बच्चों की शिकायतें.

अपनी व्यस्त जिंदगी के कारण मातापिता बच्चों को समय नहीं दे पाते. वे पैसे के बल पर नौकर या क्रेच में पलते हैं, इसलिए संस्कार की जगह आक्रोश से भरे रहते हैं.

अभिभावक यह कहने में शान समझते हैं कि उन की तो सुनता ही नहीं है. मोबाइल और टीवी में लगा रहता है जबकि वे स्कूल की टीचर से यह अपेक्षा करते हैं कि वे उन की यह आदत छुड़ा दें. जब बच्चा अधिक समय आप के पास रहता है, तो आप की जिम्मेदारी बनती है कि बच्चे को संस्कार दें, उस के साथ समय गुजारें, उस की जरूरतों को समझें.

प्राय: जो छात्र कमजोर होते हैं, उन की इस कदर उपेक्षा की जाती है कि वे कुंठित हो जाते हैं और पढ़ाई से जी चुराने लगते हैं. ऐसे में अच्छे टीचर का फर्ज है कि वह सभी बच्चों पर ध्यान दे, उन की प्रतिभा को निखारे, उन की जरूरतों को पहचान कर उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे.

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