Best Hindi Stories : आवारगी – आखिर क्यों माही को प्यार में धोखा मिला?

Best Hindi Stories : माही ने अपने दोस्त पीयूष के गले में हाथ डाल लिया था और पीयूस ने भी उस के गले में हाथ डाल लिया था. दोनों के गाल एकदूसरे के गाल से स्पर्श करने लगे थे. अब माही ने अपने मोबाइल से सैल्फी ली. दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. हलकी सी हंसी सामने बैठे माही के पति प्रशांत के चेहरे पर भी तैर गई पर उस का चेहरा ही बता रहा था कि उस की इस हंसी के पीछे एक गुस्सा भी था. वे तो आज होटल में खाना खाने आए थे. पीयूष ने ही होटल में खाना खाने के लिए आमंत्रित किया था. हालांकि उस का आमंत्रण तो केवल माही के लिए ही था. यह बात माही भी जानती थी पर वह अपने पति को छोड़ कर नहीं जा सकती थी. एक तो इसलिए कि उसे पति के लिए खाना बनाना ही पड़ेगा और दूसरे इसलिए भी कि कहीं पति नाराज न हो जाए. वैसे वह जानती थी कि पति नाराज हो भी जागा तो अपनी नाराजी व्यक्त नहीं करेगा और यह कोई पहला अवसर तो है नहीं. गाहेबगाहे माही अपने दोस्तों के साथ ऐसी पार्टियां करती रहती है.

प्रशांत कई बार नहीं भी जाता तो माही और भी स्वच्छंदता के साथ अपने दोस्तों के साथ हंसीमजाक करती. कहती, ‘‘अरे, यह मस्ती है, इस में गलत क्या है? ये मेरे दोस्त हैं तो हंसीमजाक तो चलेगा ही,’’ और उस के चेहरे पर खिलखिलाहट दौड़ पड़ती.

पीयूष अपनी पत्नी को ले कर नहीं गया था. वह जानता था कि उस की पत्नी को माही की ये हरकतें पसंद नहीं है और पत्नी को ही क्यों किसी को भी माही का यह इतना बोल्ड हो कर खुलना पसंद नहीं आ सकता. होटल में भीड़ थी. रात्रि में ज्यादातर होटलों में भीड़ होती है. माही और पीयूष की खिलखिलाहट होटल के चारों ओर गूंज रही थी. जब माही ने पीयूष के साथ सैल्फी ली तो सारे लोग उन की ओर देखने लगे. माही को इन सब की कोई चिंता नहीं थी. वह अब भी पीयूष के गले में हाथ डाले बैठी थी और दूसरे हाथ से 1-1 कौर बना कर पीयूष को खिला रही थी.

पीयूष अब सकुचा रहा था. उसे लग रहा था कि वहां बैठे सारे लोगों की नजरें उन के ऊपर ही लगी हुई हैं. उस ने हौले से माही को अपने से अलग किया. माही तो उस से अलग होना ही नहीं चाहती थी पर जब पीयूष ने जबरदस्ती उसे अपने से अलग किया तो उस ने उस के गालों पर किस कर दिया. पीयूष का चेहरा शर्म से लाल हो गया. उस ने चारों ओर नजरें घुमाईं. सभी लोग उस की ओर ही देख रहे थे. माही मुसकराती हुई टेबल के दूसरी ओर आ कर अपने पति के बाजू में बैठ गई. प्रशांत का चेहरा भी मलिन पड़ चुका था. हर बार माही ऐसी ही हरकतें किया करती थी.

प्रशांत कुछ बोलता तो माही उस पर भड़क पड़ती, ‘‘इस में गलत क्या है? वह मेरा मित्र है तो मित्रों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है. इस में गलत क्या है?’’ माही का टका सा जवाब सुन कर प्रशांत चुप हो जाता.

माही बहुत चंचल स्वभाव की लड़की थी और हमेशा आत्मविश्वास से भरी रहती थी. वह बेधड़क हो कर बात करती और अपरिचित को भी छेड़ देती. छेड़ कर वह स्वयं ही खिलखिला कर हंस पड़ती. मुसकान उस के होंठों पर होती तो कोई भी व्यक्ति उस की ओर सहज ही आकर्षित हो जाता.

माही गाना भी बहुत अच्छा गाती थी. उस की आवाज में गजब की मिठास थी. गाने का चयन उस का ऐसा होता कि गाते समय पांव थिरक ही जाते. वह अकसर कहती, ‘‘उदास गाने मु?ो पसंद नहीं हैं. जिंदगी को जिंदादिली से जीओ.’’

लोग उस के इस व्यवहार का अर्थ अपने हिसाब से लगा लेते.

प्रशांत और माही की शादी को ज्यादा वक्त नहीं हुआ था. माही की जब शादी हुई तब वह महज 20 साल की ही थी. वह तो दूसरे शहर के कालेज में डिप्लोमा कर रही थी. उसे पता ही नहीं था कि उस के पिता ने उस की शादी तय कर दी है. हालांकि उसे इस बात का अंदाजा तो था कि कुछ महीने पहले जब वह अपने घर गई थी तो कोई उसे देखने आया था और उस से उन्होंने बातें भी की थीं. उस ने अपने अल्हड़पन से ही उन बातों का उत्तर भी दिया था. उसे इस बात का एहसास तक नहीं था कि अभी ही उस की शादी तय भी हो जाएगी. वैसे भी उसे तो अभी आगे पढ़ना था. उस ने फैशन डिजाइनिंग कोर्स करने का मन बना लिया था. वह नौकरी करना चाहती थी. पर एक दिन अचानक पापा का फोन आया, ‘‘सुनो माही… मैं ने तुम्हारी शादी तय कर दी है… तुम घर आ जाओ…’’

पापा की कड़क आवाज से माही चौंक गई. वैसे तो पापा उसे बहुत प्यार करते थे पर बात जब भी करते कड़क आवाज में ही करते. वह अपने पापा से बहुत भय भी खाती थी.

‘‘पर पापा… मैं अभी शादी नहीं करना चाहती… मुझे पढ़ना है…’’

‘‘ये सब छोड़ो तुम अपना सामान समेटो और घर लौट आओ… अगले महीने तुम्हारी शादी है,’’ कह कर पापा ने उस का उत्तर सुने बगैर फोन रख दिया.

माही बहुत देर तक अपने हाथों में रिसीवर पकड़े बैठी रही. वह जानती थी कि उस के पापा का निर्णय अब नहीं बदलेगा. मम्मी से भी कुछ कहने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि मम्मी भी पापा की बात को काट नहीं सकती थीं.

माही की शादी हो ही गई. माही शादीब्याह का मतलब तो जानती थी पर वह अपनी किशोरावस्था के अल्हड़पन से दूर नहीं हो पा रही थी. वैसे तो उस के पति प्रशांत की उम्र भी ज्यादा नहीं थी. पतिपत्नी युक्त परिपक्वता दोनों में नहीं थी. ससुराल में

उसे बहू बन कर रहना कठिन समझ में आने लगा. दोनों अपने वैवाहिक जीवन को स्वतंत्रता के साथ जीना चाहते थे पर ससुराल में यह संभव नहीं था. प्रशांत की माताजी अपने पुराने विचारों को तिलांजलि दे नहीं सकती थीं और माही इस कैद में रह नहीं पा रही थी. माही को ससुराल में बहू बन कर रहना पसंद नहीं आ

रहा था. वह स्वतंत्र विचारों वाली थी और ससुराल वाले अब भी पुराने विचारों को ही अपनाए हुए थे. उस की सास उसे टोकती रहतीं, ‘‘बहू यह मायका नहीं है, ससुराल है. यहां सूट नहीं साड़ी पहनी जाती है और हां सिर पर पल्ला भी रहना चाहिए.’’

माही को इन सब की आदत नहीं थी. प्रशांत की भी नईनई नौकरी लगी थी, शादी के ख्वाब उस ने भी देखे थे. वह अपनी पत्नी के साथ अपनी जवानी का आनंद लेना चाहता था

जो उस के घर में तो संभव था ही नहीं. परिणामतया प्रशांत ने अपना ट्रांसफर करा लेना ही बेहतर समझ.

प्रशांत ने अपना ट्रासंफर अपनी ससुराल यानी माही के शहर में करा लिया. माही की सलाह पर ही उस के मातापिता के घर के ठीक सामने एक किराए का मकान ले लिया और दोनों रहने लगे. अपने मातापिता का संरक्षण को पा कर माही का अल्हड़पन सबाव पर आ गया. वह लगभग यह भूलती चली गई कि वह एक शादीशुदा स्त्री बन चुकी है.

एक पढ़ने वाले स्टूडैंट जैसा उस का स्वभाव था. वह एक बड़े शहर में रह कर पढ़ रही थी. वैसे तो वह गर्ल्स होस्टल में रहती थी इस कारण से भी आजाद खयालों को पूरा करने में कोई दिक्कत महसूस नहीं करती थी. कालेज के दोस्तों के साथ मस्ती करना उस की आदत में था. वैसे तो वह संस्कार वाली लड़की थी पर कालेज में रहते हुए उस ने अपनेआप को इतने आजाद खयाल में ढाल लिया था कि उसे लगता था कि मस्ती करना ही जीवन है. वह मस्ती करने में कोई बुराई सम?ाती भी नहीं थी. उस के लिए लड़की और लड़का एकजैसे थे. जब वह मस्ती करने पर उतर आती तो यह भूल जाती कि उसे लड़कों के साथ एक दूरी बना कर बात करना चाहिए.

प्रशांत अपने औफिस चला जाता और माही मकान बंद कर अपनी मां के यहां पहुंच जाती.  मायके में रहने के कारण उसे अपन आजाद स्वभाव को पूर्णता प्रदान करने में कोई परेशानी थी भी नहीं. वह अपने पुराने दोस्तों के साथ मस्ती करती रहती और कभीकभार कालेज के दिनों के दोस्तों से मिलने के लिए बाहर भी

चली जाती. शुरूशुरू में तो प्रशांत इस सब को अनदेखा करता रहा पर जब बात बढ़ने लगी तो उस ने माही को टोकना शुरू कर दिया. प्रशांत का यों टोकना माही को बुरा लगा. माही ने इस की शिकायत अपने पिताजी से की तो उन्होंने ने रौद्र रूप दिखा दिया. प्रशांत भय के मारे कुछ नहीं बोला.

अवकाश का दिन था. प्रशांत के औफिस की आज छुट्टी थी इसलिए वह अपने घर में ही था. माही उसे खाना खिला कर मां के घर जा चुकी थी. माही जब यकायक दोपहर को घर आ गई तो उसे प्रशांत के कमरे से जोरजोर से बातें करने की आवाज आ रही थी. माही को लगा जैसे उस के कमरे में कोई है. उस ने उत्सुकतावश कमरे का दरवाजा खोल दिया. प्रशांत फोन पर किसी से बात कर रहा था जिस से बात कर रहा था वह कोई महिला ही थी उस की बातों से तो साफ  समझ में आ रहा था. प्रशांत बातें करने में इतना मशगूल था कि उसे माही के अंदर आ जाने का पता ही नहीं चला. वह अब भी वैसे ही बातें कर रहा था, ‘‘हां तो फिर कब मिल रही हो…’’ माही को दूसरी ओर का उत्तर सुनाई नहीं दिया.

‘‘अच्छा ठीक है… मैं टाकीज पहुंच जाऊंगा… बाय…’’

प्रशांत ने फोन रखा तो उसे अपने सामने माही खड़ी दिखाई दी. माही के चेहरे पर गुस्सा था. प्रशांत सकपका गया जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. उस ने कुछ नहीं बोला. बोला तो माही ने भी कुछ नहीं केवल फड़फड़ाती हुई अपने मायके चली गई.

माही अपने मातापिता के साथ कुछ ही देर में लौट आई. अब वह तेज स्वर में प्रशांत से बातें कर रही थी. उस ने उस अनजानी महिला के साथ उस के संबंध होने का आरोप लगा दिया. इस में माही के मातापिता ने भी उस का ही साथ दिया और प्रशांत को बुराभला कहा. प्रशांत अपनी सफाई देता रहा पर उस की कोई बात किसी ने नहीं सुनी. बात निकल कर महल्लापड़ोस तक जा पहुंची. प्रशांत ने इज्जत के भय से वह मकान छोड़ दिया. वैसे भी इस घटना के बाद माही ने प्रशांत के साथ रहने से मना कर दिया.

प्रशांत अपनेआप को अकेला महसूस करने लगा था. उस ने माही की कितनी ही हरकतों को अनदेखा किया. यह ही गलती शायद उस से हुई थी यदि वह पहले ही उस को रोक देता तो बात इतनी आगे नहीं बढ़ती. वह तो अपना अच्छाभला घर छोड़ कर केवल माही के लिए ही यहां रहने आया था. वह जानता था कि माही गलत नहीं है पर इस के बाद भी उस की हरकतें उचित नहीं हैं. उस दिन वह गलत नहीं था पर माही ने जानबूझ कर उस को आरोपों के घेरे में ले लिया. तो क्या माही उस से अलग होना ही चाह रही थी? उस के दिलदिमाग में कई प्रश्न थे.

माही ने उस से किसी भी किस्म का रिश्ता रखने से मना कर दिया. उस का मन अब इस शहर में नहीं लग रहा था. उस ने ट्रांसफर के लिए आवेदन दे दिया. पर जब तक ट्रांसफर नहीं हो जाता उसे तो यहां नौकरी करते ही रहना है. दूर एक कालोनी में कमरा किराए पर ले लिया. हालांकि, वह यहां कम ही रुकता था. वह तो अपडाउन करने लगा था.

एक दिन दोपहर में वह बाजार में होटल से खाना खा कर निकल रहा था तभी उसे माही किसी के साथ बाइक पर बैठी दिखाई दी. माही अपनी आदत के अनुसार ही उस के साथ सट कर बैठी थी. उस का एक हाथ उस की पीठ पर था. बाइक चलाने वाला हैलमेट लगाए था तो वह उसे पहचान नहीं पाया. माही ने प्रशांत को नहीं देखा पर प्रशांत ने माही को देख लिया.

उस का खून खौल उठा पर वह कुछ बोल नहीं सकता था. अत: चुपचाप औफिस लौट आया. उस ने तय कर लिया कि अब वह माही से कोई रिश्ता नहीं रखेगा.

प्रशांत का ट्रांसफर एक ग्रामीण क्षेत्र में हो गया था. ग्रामीण क्षेत्र उस ने जानबूझ कर ही चुना था. उसे अब शांति चाहिए थी. वह किसी भी मोड़ पर माही के सामने नहीं पड़ना चाह रहा था. उस के दिमाग में इतनी नफरत भरा चुकी थी कि माही का स्मरण होते ही गुस्से के मारे उस के हाथपांव कांपने लगते थे. उस ने 1-2 बार माही से तलाक ले लेने तक का विचार किया पर पारिवारिक कारणों से उस ने इस विचार को त्याग दिया. इधर माही अपने मातापिता की शह पा कर स्वच्छंदतापूर्वक रह रही थी. प्रशांत से दूर होने का दर्द उसे बिलकुल नहीं था.

समय अबाध गति से आगे बढ़ रहा था. लगभग 1 साल गुजर चुका था.

इस 1 साल में न तो माही ने और न ही माही के मातापिता ने उस से कोई संपर्क किया. संपर्क तो प्रशांत ने भी नहीं किया पर उस की माता का मन नहीं मान रहा था तो गाहेबगाहे माही से बात कर लेती थीं. माही हर बार प्रशांत को ही कठघरे में खड़ा कर देती. प्रशांत की मां के दिमाग में भी यह बात जम चुकी थी कि माही तो बहुत अच्छी पर प्रशांत की हरकतों के कारण ही वह उसे छोड़ कर गई है. वे हर बार माही को फिर से प्रशांत की जिंदगी में आ जाने का न्योता देतीं और माही हर बार मना कर देती. इन सारी बातों से प्रशांत अनजान था.

प्रशांत को तो बहुत देर में पता चला कि माही का ऐक्सीडैंट हो गया है पर उस की मां तक यह खबर पहले ही पहुंच गई थी. मां न ही उसे बताया कि बहू का ऐक्सीडैंट हो गया है और वह इसी शहर के अस्पताल में भरती है. मां ने उसे सु?ाव भी दिया कि उसे माही का हालचाल लेने अस्पताल जाना चाहिए जिसे प्रशांत ने सिरे से खारिज कर दिया. पर मां नहीं मानीं. वे खुद ही प्रशांत के छोटे भाई को साथ ले कर माही को देखने अस्पताल चली गईं.

प्रशांत जब शाम को औफिस से लौटा तो मां ने उसे बताया कि माही जीवनमत्यु से संघर्ष कर रही है. ऐसे में उसे सामाजिक तौर पर ही सही अस्पताल देखने जाना चाहिए.

माही सीरियस है यह जान कर पहली बार प्रशांत को दुख महसूस हुआ. उस ने कपड़े भी नहीं बदले और सीधा अस्पताल पहुंच गया.

माही के सारे शरीर में पट्टियां बंधी थीं. वह जिस बाइक के पीछे बैठी थी उस बाइक को कार ने टक्कर मारी थी. माही को तो वह कार कुछ दूर तक घसीटते हुए ले गई थी. उस का सारा शरीर छिल गया था. सिर पर गहरी चोट थी. माही ने प्रशांत को गहरी नजरों से देखा, उस की नजरों में दर्द दिखाई दे रहा था. प्रशांत उस के बैड के पास आ कर खड़ा हो गया. उस ने अपने कांपते हाथों से उस के चेहरे को छूआ. माही की आखों से आंसू बह निकले. प्रशांत बहुत देर तक अस्पताल में रुका रहा.

अस्पताल से लौटने के बाद भी प्रशांत का मन अशांत ही रहा. दूसरे दिन वह औफिस तो गया पर उस का मन किसी काम में नहीं लगा. औफिस से लौटने के बाद वह अस्पताल चला गया और बहुत देर तक माही के पास गुमसुम सा बैठा रहा. माही की स्थिति में सुधार हो रहा था. माही की मां प्रशांत को कृतज्ञता भरी नजरों से देख रही थीं.

माही पूरी तरह स्वस्थ हो कर अपने घर जा चुकी थी. अब प्रशांत का मन माही के बगैर नहीं लग रहा था. इतने दिनों में वह रोज माही से मिलता रहा था. उस की नाराजगी भी दूर होती चली गई थी. प्रशांत को लग रहा था कि माही के बगैर उस की जिंदगी अधूरी सी है. आज वह औफिस नहीं गया सीधे माही के घर चला गया. माही जैसे उस का ही इंतजार कर रही थी.

माही के मां ने भी उस का स्वागत दामाद जैसा ही किया. वह दिनभर माही के पास ही बैठा रहा. शाम को जब वह घर लौट रहा था तो माही की आंखें भीग रही थीं.

प्रशांत और माही के बीच समझौता हो चुका था. अब दोनों फिर से साथ रहने लगे थे. प्रशांत ने अपना घर बनाने के लिए प्लाट खरीद लिया था और उस पर घर बनाने का काम भी शुरू हो गया था. माही के पिताजी ने मकान बनवाने की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली थी. कुछ ही महीनों में माही और प्रशांत अपने नए घर में रहने लगे. दोनों के बीच अब तनाव महसूस नहीं हो रहा था. प्रशांत ने माही को नई ऐक्टिवा दिला दी थी.

‘‘तुम्हारी मां का घर दूर है न तो इस से चली जाया करो वैसे भी दिनभर अकेले घर में रह कर बोर ही हो जाओगी.’’

माही ने कृतज्ञताभरी नजरों से उस की ओर देखा. माही को अब आनेजाने के लिए साधन मिल चुका था. वह दिन में अपना काम निबटा कर निकल जाती और कोशिश करती कि शाम को प्रशांत के आने के पहले घर लौट आए पर कई बार वह ऐसा कर नहीं पाती तो भी प्रशांत उस से कुछ नहीं बोलता था. सप्ताह में एकाध बार वे होटल में खाना खाने जाते. कई बार माही अपने दोस्तों के साथ भी बाहर खाना खाने चली जाती तो भी प्रशांत उसे रोकताटोकता नहीं.

माही एक बार फिर अपने पुराने रंगढंग में ढलने लगी थी. वह पहले की तरह ही अपने मित्रों के साथ मस्ती करती. उस के मित्रों के गु्रप में मस्ती भरे मैसेजों का आदानप्रदान होता. वह देर रात तक कभी फोन पर तो कभी मैसेजों में व्यस्त रहती. देर रात तक जागती तो सुबह देर से उठती. दोपहर को वह कोई न कोई बहाना निकाल कर घर से निकल जाती. कभीकभी तो वह देर रात को ही घर लौटती. प्रशांत तो समय पर घर आ जाता और लेट जाता. माही जब घर लौटती तब खाना बनाती. प्रशांत को गुस्सा तो आता पर वह सब्र किए रहता. उसे उस का अपने पुरुष मित्रों के साथ बेतकल्लुफ होना जरा भी नहीं सुहाता था.

आज प्रशांत शाम को जब घर लौटा तो उसे घर का गेट खुला मिला. अंदर से माही के खिलखिलाने की आवाजें आ रही थीं. उस के कदम ठिठक गए. पर वह

दिन भर का थकाहारा था तो उसे घर के अंदर तो जाना ही था. ड्रांइगरूम में माही किसी पुरुष की बगल में बैठ कर मोबाइल पर कुछ देख रही थी. इस व्यक्ति को प्रशांत ने पहली बार देखा. वह चौंक गया, ‘‘कौन है यह?’’

माही बेतकल्लुफ सी उस से सट कर बैठी थी. प्रशांत के आने की आहट उसे मिली तो उस ने केवल अपना चेहरा उठा कर प्रशांत की ओर देखा पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. उस व्यक्ति को जरूर कुछ संकोच हुआ तो उस ने माही से कुछ दूरी बनाने और मोबाइल को बंद करने की कोशिश की. प्रशांत अनमाने भाव से अपन बैडरूम की ओर बढ़ गया. उस के चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था.

प्रशांत हाथपैर धो कर अपने बिस्तर पर पड़ा था. बाहर से जोरजोर से हंसने की आवाजें आ रही थीं. उसे भूख लगी थी. उसे तो यह भी नहीं पता था कि माही ने खाना बनाया भी है या नहीं. वह तो अपने दोस्त में ही उलझ थी. प्रशांत के चेहरे पर गुस्सा उबाल लेता जा रहा था. गुस्से से तमतमाया प्रशांत जब बैडरूम से निकल कर ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस समय माही उस व्यक्ति की गोद में बैठ कर सैल्फी ले रही थी.

प्रशांत का गुस्सा बाहर निकलने लगा, ‘‘माही, क्या है यह? तुम्हें सम?ा में नहीं आता कि मैं दिनभर का थका घर आया हूं भूख लगी है.’’

‘‘तो ले लो अपने हाथों से खाना. किचन में रखा हुआ है.’’

माही अब भी उस दोस्त के साथ गले में बांहें डाले बैठी थी.

‘‘यह है कौन?’’

‘‘मेरा दोस्त. भोपाल से आया है. हम दोनों साथ कालेज में पढ़ते थे,’’ कहते हुए माही ने अपने दोस्त को अपनी बांहों में दबोच लिया.

प्रशांत का गुस्सा 7वें आसमान पर जा चुका था. उस ने गुस्से में माही का हाथ पकड़ कर खींच लिया, ‘‘तो ऐसे चिपक कर बैठोगी क्या?’’

माही को प्रशांत के ऐसे गुस्से की उम्मीद नहीं थी. वह खींचे जाने से लड़खड़ा कर गिर पड़ी.

माही के दोस्त ने स्थिति को बिगड़ते हुए महसूस कर लिया. सो चुपचाप वहां से निकल गया.

माही अपने दोस्त के सामने प्रशांत द्वारा की गई बेइज्जती से बौखला गई. वह बिफर पड़ी, ‘‘यह क्या हरकत है? तुम ने मेरे दोस्त के सामने मेरी बइज्जती कर दी.’’

‘‘और तुम जो उस के साथ चिपक कर बैठी थी वह हरकत ठीक थी?’’

‘‘हम तो मस्ती कर रहे थे. बहुत दिनों बाद मेरा दोस्त आया था तो इस में बुरा

क्या है?’’

‘‘एक अनजान व्यक्ति को अकेले घर में बुलाना और फिर उस के साथ…’’ प्रशांत ने जानबू?ा कर वाक्य पूरा नहीं किया. उस का गुस्सा अब भी उबल रहा था.

‘‘कौन अनजान, कहा न कि वह मेरा दोस्त है. कालेज के दिनों के समय का. फिर अनजान क्यों हुआ और हम तो कालेज के दिनों में इस से ज्यादा मस्ती करते थे. दोनों एकदूसरे के गले में बांहें डाल कर रातभर सोए भी रहते थे,’’ माही अपनी धुन में बोलती जा रही थी और गुस्से में थी तो और जोरजोर से बोल रही थी. उन की आवाजें उन के घर से निकल कर बाहर तक जाने लगी थीं.

‘‘तुम्हें शर्म भी नहीं आ रही ऐसी बातें मुझ से कहते हुए?’’

‘‘हम तो ऐसे ही हैं,’’ माही की आवाज और तेज हो चुकी थी.

महल्ले के लोग भी माही की हरकतों को स्वीकार नहीं करते थे, यह अलग बात थी कि उन्होंने कभी इस का विरोध भी नहीं किया कि अरे जब उस के पति को ही कोई ऐतराज नहीं है तो फिर हमें क्या पड़ी है. पर आज उन्होंने एक अनजान व्यक्ति को सुबह ही जब प्रशांत घर से निकला था तब ही आते देख लिया था पर उन्हें लगा कि

कोई रिश्तेदार होगा. माही के चिल्लाने की आवाज से महल्ले वालों को पता चला कि माही तो दिनभर से किसी अनजान व्यक्ति के साथ घर के अंदर है तो उन का गुस्सा भी बरसने लगा.

माही अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी या उस का स्वभाव ही ऐसा बन गया था, यह प्रशांत नहीं सम?ा पा रहा था. एक दिन कुछ ऐसा घटा जिस ने माही को सोचने पर मजबूर कर दिया. उस दिन माही को विजय बहुत दिनों बाद दिखाई दिया था, आज उस के साथ कोई लड़की थी जिसे माही पहचानती नहीं थी. माही ने उस लड़की को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और सीधे जा कर विजय के कंधे पर हाथ मार कर उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘कहां थे जनाब इतने दिनों से?’’

विजय को माही के ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी सो वह असहज हो गया.

‘‘अरे शरमा तो ऐसे रहे हो जैसे मैं ने तुम्हारी इज्जत पर हाथ डाल दिया हो,’’ इतना कह कर माही खुद ही खिलखिला कर हंस पड़ी.

विजय के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव उभर आए. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या उत्तर दे. विजय के साथ साक्षी थी. वह यह नजारा देख रही थी.

साक्षी और विजय लंबे समय से ‘कभी जुदा न होंगे हम…’ वाली पोजीशन में रह रहे थे इस बात को सभी जानते थे और दोनों इसे छिपाते भी नहीं थे. साक्षी माही की हरकतों को सहन नहीं कर पा रही थी.

‘‘आप कौन? आप को किसी से बात करने की तमीज नहीं है क्या?’’ साक्षी गुस्सा नहीं दबा पाई और चिल्ला पड़ी.

माही कुछ देर तक तो असमंजस में रही फिर अपनी झेंप मिटाते हुए बोली, ‘‘ओह, लगता है आप को मेरा विजय को छूना पसंद नहीं आया,’’ कहते हुए जानबूझ कर विजय के गले में बांहें डाल दीं.

यह देख कर साक्षी तमतमा गई. उस ने आव देखा न ताव माही के गाल पर यह कहते हुए जोर से तमाचा मार दिया, ‘‘तुम बहुत बेशर्म लड़की हो, तुम जैसी लड़कियां ही महिलाओं को बदनाम करती हैं.’’

माही सहम गई. साक्षी का गुस्सा अभी भी बना हुआ था, ‘‘बेवकूफ लड़की अपने मांबाप से संस्कार सीख लेती कुछ.’’

माही की आंखों से अब आंसू बहने लगे थे. वह तेजतेज कदमों से वहां से चली गई.

माही को जाते देख कर भी साक्षी का गुस्सा शांत नहीं हुआ, ‘‘यही आवारगी कहलाती है… अपनेआप को सुधार लो नहीं तो बदनाम हो जाओगी.’’

माही ने सुना पर अपने कदमों को रोका नहीं. उसे भी शायद एहसास हो रहा था

कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. उसे एहसास हो रहा था कि उस ने वाकई कोई तो गलती की है. हर उम्र का व्यवहार अपनी उम्र में अच्छा लगता है. वह घर आ कर सोफे पर बैठीबैठी सुबकती रही. लगभग आधी रात को मजबूत इरादों के साथ वह उस कमरे की तरफ बढ़ी जहां प्रशांत सो रहा था. वैसे तो प्रशांत को भी नींद कहां आ रही थी.

1-1 घटनाक्रम उस की आंखों के सामने चलचित्र की भांति गुजर रहा था.

‘‘आखिर यह तो होना ही था,’’ उस ने गहरी सांस ली. उसे कमरे में किसी के आने की आहट सुनाई दी. उस के पैरों के पास माही खड़ी थी. उस का चेहरा आंसुओं से भरा था.

प्रशांत ने प्रश्नवाचक नजरों से माही की ओर देखा. वह उसे ही देख रही थी.

‘‘सौरी…’’ माही की आवज धीमी थी पर आवाज में नमी थी.

प्रशांत ने कोई उत्तर नहीं दिया. उस ने करवट बदल कर अपने सिर को दूसरी ओर घुमा लिया.

अब की बार माही ने प्रशांत के पैरों को पकड़ लिया, ‘‘सौरी, अब कभी गलती नहीं होगी,’’ और वह फफकफफक कर रोने लगी. उस के आंसुओं से प्रशांत के पैर नम होते जा रहे थे.

प्रशांत कुछ देर तक यों ही मौन लेटा रहा. वह माही को रो लेने देना चाह रहा था. कुछ देर बाद प्रशांत उठा और उस ने माही को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘सौरी प्रशांत अब ऐसा कभी नहीं होगा,’’ माही अभी भी रो रही थी. उस की सिसकियां कमरे में गूंज रही थीं.

Hindi Stories Online : नई सुबह – शराबी पति को नीता ने कैसे सिखाया सबक?

Hindi Stories Online : ‘‘बदजात औरत, शर्म नहीं आती तुझे मुझे मना करते हुए… तेरी हिम्मत कैसे होती है मुझे मना करने की? हर रात यही नखरे करती है. हर रात तुझे बताना पड़ेगा कि पति परमेश्वर होता है? एक तो बेटी पैदा कर के दी उस पर छूने नहीं देगी अपने को… सतिसावित्री बनती है,’’ नशे में धुत्त पारस ऊलजलूल बकते हुए नीता को दबोचने की चेष्टा में उस पर चढ़ गया.

नीता की गरदन पर शिकंजा कसते हुए बोला, ‘‘यारदोस्तों के साथ तो खूब हीही करती है और पति के पास आते ही रोनी सूरत बना लेती है. सुन, मुझे एक बेटा चाहिए. यदि सीधे से नहीं मानी तो जान ले लूंगा.’’

नशे में चूर पारस को एहसास ही नहीं था कि उस ने नीता की गरदन को कस कर दबा रखा है. दर्द से छटपटाती नीता खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. अंतत: उस ने खुद को छुड़ाने के लिए पारस की जांघों के बीच कस कर लात मारी. दर्द से तड़पते हुए पारस एक तरफ लुढ़क गया.

मौका पाते ही नीता पलंग से उतर कर भागी और फिर जोर से चिल्लाते हुए बोली,

‘‘नहीं पैदा करनी तुम्हारे जैसे जानवर से एक और संतान. मेरे लिए मेरी बेटी ही सब कुछ है.’’

पारस जब तक अपनेआप को संभालता नीता ने कमरे से बाहर आ कर दरवाजे की कुंडी लगा दी. हर रात यही दोहराया जाता था, पर आज पहली बार नीता ने कोई प्रतिक्रिया दी. मगर अब उसे डर लग रहा था. न सिर्फ अपने लिए, बल्कि अपनी 3 साल की नन्ही बिटिया के लिए भी. फिर क्या करे क्या नहीं की मनोस्थिति से उबरते हुए उस ने तुरंत घर छोड़ने का फैसला ले लिया.

उस ने एक ऐसा फैसला लिया जिस का अंजाम वह खुद भी नहीं जानती थी, पर इतना जरूर था कि इस से बुरा तो भविष्य नहीं ही होगा.

नीता ने जल्दीजल्दी अलमारी में छिपा कर रखे रुपए निकाले और फिर नन्ही गुडि़या को शौल से ढक कर घर से बाहर निकल गई. निकलते वक्त उस की आंखों में आंसू आ गए पर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वह घर जिस में उस ने 7 साल गुजार दिए थे कभी अपना हो ही नहीं पाया.

जनवरी की कड़ाके की ठंड और सन्नाटे में डूबी सड़क ने उसे ठंड से ज्यादा डर से कंपा दिया पर अब वापस जाने का मतलब था अपनी जान गंवाना, क्योंकि आज की उस की प्रतिक्रिया ने पति के पौरुष को, उस के अहं को चोट पहुंचाई है और इस के लिए वह उसे कभी माफ नहीं करेगा.

यही सोचते हुए नीता ने कदम आगे बढ़ा दिए. पर कहां जाए, कैसे जाए सवाल निरंतर उस के मन में चल रहे थे. नन्ही सी गुडि़या उस के गले से चिपकी हुई ठंड से कांप रही थी. पासपड़ोस के किसी घर में जा कर वह तमाशा नहीं बनाना चाहती थी. औटो या किसी अन्य सवारी की तलाश में वह मुख्य सड़क तक आ चुकी थी, पर कहीं कोई नहीं था.

अचानक उसे किसी का खयाल आया कि शायद इस मुसीबत की घड़ी में वे उस की मदद करें. ‘पर क्या उन्हें उस की याद होगी? कितना समय बीत गया है. कोई संपर्क भी तो नहीं रखा उस ने. जो भी हो एक बार कोशिश कर के देखती हूं,’ उस ने मन ही मन सोचा.

आसपास कोई बूथ न देख नीता थोड़ा आगे बढ़ गई. मोड़ पर ही एक निजी अस्पताल था. शायद वहां से फोन कर सके. सामने लगे साइनबोर्ड को देख कर नीता ने आश्वस्त हो कर तेजी से अपने कदम उस ओर बढ़ा दिए.

‘पर किसी ने फोन नहीं करने दिया या मयंकजी ने फोन नहीं उठाया तो? रात भी तो कितनी हो गई है,’ ये सब सोचते हुए नीता ने अस्पताल में प्रवेश किया. स्वागत कक्ष की कुरसी पर एक नर्स बैठी ऊंघ रही थी.

‘‘माफ कीजिएगा,’’ अपने ठंड से जमे हाथ से उसे धीरे से हिलाते हुए नीता ने कहा.

‘‘कौन है?’’ चौंकते हुए नर्स ने पूछा. फिर नीता को बच्ची के साथ देख उसे लगा कि कोई मरीज है. अत: अपनी व्यावसायिक मुसकान बिखेरते हुए पूछा, ‘‘मैं आप की क्या मदद कर सकती हूं?’’

‘‘जी, मुझे एक जरूरी फोन करना है,’’ नीता ने विनती भरे स्वर में कहा.

पहले तो नर्स ने आनाकानी की पर फिर

उस का मन पसीज गया. अत: उस ने फोन आगे कर दिया.

गुडि़या को वहीं सोफे पर लिटा कर नीता ने मयंकजी का नंबर मिलाया. घंटी बजती रही पर फोन किसी ने नहीं उठाया. नीता का दिल डूबने लगा कि कहीं नंबर बदल तो नहीं गया है… अब कैसे वह बचाएगी खुद को और इस नन्ही सी जान को? उस ने एक बार फिर से नंबर मिलाया. उधर घंटी बजती रही और इधर तरहतरह के संशय नीता के मन में चलते रहे.

निराश हो कर वह रिसीवर रखने ही वाली थी कि दूसरी तरफ से वही जानीपहचानी आवाज आई, ‘‘हैलो.’’

नीता सोच में पड़ गई कि बोले या नहीं. तभी फिर हैलो की आवाज ने उस की तंद्रा तोड़ी तो उस ने धीरे से कहा, ‘‘मैं… नीता…’’

‘‘तुम ने इतनी रात गए फोन किया और वह भी अनजान नंबर से? सब ठीक तो है? तुम कैसी हो? गुडि़या कैसी है? पारसजी कहां हैं?’’ ढेरों सवाल मयंक ने एक ही सांस में पूछ डाले.

‘‘जी, मैं जीवन ज्योति अस्पताल में हूं. क्या आप अभी यहां आ सकते हैं?’’ नीता ने रुंधे गले से पूछा.

‘‘हां, मैं अभी आ रहा हूं. तुम वहीं इंतजार करो,’’ कह मयंक ने रिसीवर रख दिया.

नीता ने रिसीवर रख कर नर्स से फोन के भुगतान के लिए पूछा, तो नर्स ने मना करते हुए कहा, ‘‘मैडम, आप आराम से बैठ जाएं, लगता है आप किसी हादसे का शिकार हैं.’’

नर्स की पैनी नजरों को अपनी गरदन पर महसूस कर नीता ने गरदन को आंचल से ढक लिया. नर्स द्वारा कौफी दिए जाने पर नीता चौंक गई.

‘‘पी लीजिए मैडम. बहुत ठंड है,’’ नर्स बोली.

गरम कौफी ने नीता को थोड़ी राहत दी. फिर वह नर्स की सहृदयता पर मुसकरा दी.

इसी बीच मयंक अस्पताल पहुंच गए. आते ही उन्होंने गुडि़या के बारे में पूछा. नीता ने सो रही गुडि़या की तरफ इशारा किया तो मयंक ने लपक कर उसे गोद में उठा लिया. नर्स ने धीरे से मयंक को बताया कि संभतया किसी ने नीता के साथ दुर्व्यवहार किया है, क्योंकि इन के गले पर नीला निशान पड़ा है.

नर्स को धन्यवाद देते हुए मयंक ने गुडि़या को और कस कर चिपका लिया. बाहर निकलते ही नीता ठंड से कांप उठी. तभी मयंक ने उसे अपनी जैकेट देते हुए कहा, ‘‘पहन लो वरना ठंड लग जाएगी.’’

नीता ने चुपचाप जैकेट पहन ली और उन के पीछे चल पड़ी. कार की पिछली सीट पर गुडि़या को लिटाते हुए मयंक ने नीता को बैठने को कहा. फिर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गए. मयंक के घर पहुंचने तक दोनों खामोश रहे.

कार के रुकते ही नीता ने गुडि़या को निकालना चाहा पर मयंक ने उसे घर की चाबी देते हुए दरवाजा खोलने को कहा और फिर खुद धीरे से गुडि़या को उठा लिया. घर के अंदर आते ही उन्होंने गुडि़या को बिस्तर पर लिटा कर रजाई से ढक दिया. नीता ने कुछ कहना चाहा तो उसे चुप रहने का इशारा कर एक कंबल उठाया और बाहर सोफे पर लेट गए.

दुविधा में खड़ी नीता सोच रही थी कि इतनी ठंड में घर का मालिक बाहर सोफे पर और वह उन के बिस्तर पर… पर इतनी रात गए वह उन से कोई तर्क भी नहीं करना चाहती थी, इसलिए चुपचाप गुडि़या के पास लेट गई. लेटते ही उसे एहसास हुआ कि वह बुरी तरह थकी हुई है. आंखें बंद करते ही नींद ने दबोच लिया.

सुबह रसोई में बरतनों की आवाज से नीता की नींद खुल गई. बाहर निकल कर देखा मयंक चायनाश्ते की तैयारी कर रहे थे.

नीता शौल ओढ़ कर रसोई में आई और धीरे से बोली, ‘‘आप तैयार हो जाएं. ये सब मैं कर देती हूं.’’

‘‘मुझे आदत है. तुम थोड़ी देर और सो लो,’’ मयंक ने जवाब दिया.

नीता ने अपनी भर आई आंखों से मयंक की तरफ देखा. इन आंखों के आगे वे पहले भी हार जाते थे और आज भी हार गए. फिर चुपचाप बाहर निकल गए.

मयंक के तैयार होने तक नीता ने चायनाश्ता तैयार कर मेज पर रख दिया. नाश्ता करते हुए मयंक ने धीरे से कहा, ‘‘बरसों बाद तुम्हारे हाथ का बना नाश्ता कर रहा हूं,’’ और फिर चाय के साथ आंसू भी पी गए.

जातेजाते नीता की तरफ देख बोले, ‘‘मैं लंच औफिस में करता हूं. तुम अपना और गुडि़या का खयाल रखना और थोड़ी देर सो लेना,’’ और फिर औफिस चले गए.

दूर तक नीता की नजरें उन्हें जाते हुए देखती रहीं ठीक वैसे ही जैसे 3 साल पहले देखा करती थीं जब वे पड़ोसी थे. तब कई बार मयंक ने नीता को पारस की क्रूरता से बचाया था. इसी दौरान दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति कोमल भावनाएं पनपी थीं पर नीता को उस की मर्यादा ने और मयंक को उस के प्यार ने कभी इजहार नहीं करने दिया, क्योंकि मयंक नीता की बहुत इज्जत भी करते थे. वे नहीं चाहते थे कि उन के कारण नीता किसी मुसीबत में फंस जाए.

यही सब सोचते, आंखों में भर आए आंसुओं को पोंछ कर नीता ने दरवाजा बंद किया और फिर गुडि़या के पास आ कर लेट गई. पता नहीं कितनी देर सोती रही. गुडि़या के रोने से नींद खुली तो देखा 11 बजे रहे थे. जल्दी से उठ कर उस ने गुडि़या को गरम पानी से नहलाया और फिर दूध गरम कर के दिया. बाद में पूरे घर को व्यवस्थित कर खुद नहाने गई. पहनने को कुछ नहीं मिला तो सकुचाते हुए मयंक की अलमारी से उन का ट्रैक सूट निकाल कर पहन लिया और फिर टीवी चालू कर दिया.

मयंक औफिस तो चले आए थे पर नन्ही गुडि़या और नीता का खयाल उन्हें बारबार आ रहा था. तभी उन्हें ध्यान आया कि उन दोनों के पास तो कपड़े भी नहीं हैं… नई जगह गुडि़या भी तंग कर रही होगी. यही सब सोच कर उन्होंने आधे दिन की छुट्टी ली और फिर बाजार से दोनों के लिए गरम कपड़े, खाने का सामान ले कर वे स्टोर से बाहर निकल ही रहे थे कि एक खूबसूरत गुडि़या ने उन का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया, तो उन्होंने उसे भी पैक करवा लिया और फिर घर चल दिए.

दरवाजा खोलते ही नीता चौंक गई. मयंक ने मुसकराते हुए सारा सामान नीचे रख नन्हीं सी गुडि़या को खिलौने वाली गुडि़या दिखाई. गुडि़या खिलौना पा कर खुश हो गई और उसी में रम गई.

मयंक ने नीता को सारा सामान दिखाया. बिना उस से पूछे ट्रैक सूट पहनने के लिए नीता ने माफी मांगी तो मयंक ने हंसते हुए कहा, ‘‘एक शर्त पर, जल्दी कुछ खिलाओ. बहुत तेज भूख लगी है.’’

सिर हिलाते हुए नीता रसोई में घुस गई. जल्दी से पुलाव और रायता बनाने लग गई. जितनी देर उस ने खाना बनाया उतनी देर तक मयंक गुडि़या के साथ खेलते रहे. एक प्लेट में पुलाव और रायता ला कर उस ने मयंक को दिया.

खातेखाते मयंक ने एकाएक सवाल किया, ‘‘और कब तक इस तरह जीना चाहती हो?’’

इस सवाल से सकपकाई नीता खामोश बैठी रही. अपने हाथ से नीता के मुंह में पुलाव डालते हुए मयंक ने कहा, ‘‘तुम अकेली नहीं हो. मैं और गुडि़या तुम्हारे साथ हैं. मैं जानता हूं सभी सीमाएं टूट गई होंगी. तभी तुम इतनी रात को इस तरह निकली… पत्नी होने का अर्थ गुलाम होना नहीं है. मैं तुम्हारी स्थिति का फायदा नहीं उठाना चाहता हूं. तुम जहां जाना चाहो मैं तुम्हें वहां सुरक्षित पहुंचा दूंगा पर अब उस नर्क से निकलो.’’

मयंक जानते थे नीता का अपना कहने को कोई नहीं है इस दुनिया में वरना वह कब की इस नर्क से निकल गई होती.

नीता को मयंक की बेइंतहा चाहत का अंदाजा था और वह जानती थी कि मयंक कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करेंगे. इसीलिए तो वह इतनी रात गए उन के साथ बेझिझक आ गई थी.

‘‘पारस मुझे इतनी आसानी से नहीं छोड़ेंगे,’’ सिसकते हुए नीता ने कहा और फिर पिछली रात घटी घटना की पूरी जानकारी मयंक को दे दी.

गरदन में पड़े नीले निशान को धीरे से सहलाते हुए मयंक की आंखों में आंसू आ गए, ‘‘तुम ने इतनी हिम्मत दिखाई है नीता. तुम एक बार फैसला कर लो. मैं हूं तुम्हारे साथ. मैं सब संभाल लूंगा,’’ कहते हुए नीता को अपनी बांहों में ले कर उस नीले निशान को चूम लिया.

हां में सिर हिलाते हुए नीता ने अपनी मौन स्वीकृति दे दी और फिर मयंक के सीने पर सिर टिका दिया.

अगले ही दिन अपने वकील दोस्त की मदद से मयंक ने पारस के खिलाफ केस दायर कर दिया. सजा के डर से पारस ने चुपचाप तलाक की रजामंदी दे दी.

मयंक के सीने पर सिर रख कर रोती नीता का गोरा चेहरा सिंदूरी हो रहा था. आज ही दोनों ने अपने दोस्तों की मदद से रजिस्ट्रार के दफ्तर में शादी कर ली थी. निश्चिंत सी सोती नीता का दमकता चेहरा चूमते हुए मयंक ने धीरे से करवट ली कि नीता की नींद खुल गई. पूछा, ‘‘क्या हुआ? कुछ चाहिए क्या?’’

‘‘हां. 1 मिनट. अभी आता हूं मैं,’’ बोलते हुए मयंक बाहर निकल गए और फिर कुछ ही देर में वापस आ गए, उन की गोद में गुडि़या थी उनींदी सी. गुडि़या को दोनों के बीच सुलाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमारी बेटी हमारे पास सोएगी कहीं और नहीं.’’

मयंक की बात सुन कर नन्ही गुडि़या नींद में भी मुसकराने लग गई और मयंक के गले में हाथ डाल कर फिर सो गई. बापबेटी को ऐसे सोते देख नीता की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. मुसकराते हुए उस ने भी आंखें बंद कर लीं नई सुबह के स्वागत के लिए.

Hindi Moral Tales : गलतफहमी – शिखा ने बदला लेने के लिए आलोक को दिया धोखा

Hindi Moral Tales : औफिस का समय समाप्त होने में करीब 10 मिनट थे, जब आलोक के पास शिखा का फोन आया.

‘‘मुझे घर तक लिफ्ट दे देना, जीजू. मैं गेट के पास आप के बाहर आने का इंतजार कर रही हूं.’’

अपनी पत्नी रितु की सब से पक्की सहेली का ऐसा संदेश पा कर आलोक ने अपना काम जल्दी समेटना शुरू कर दिया.

अपनी दराज में ताला लगाने के बाद आलोक ने रितु को फोन कर के शिखा के साथ जाने की सूचना दे दी.

मोटरसाइकिल पर शिखा उस के पीछे कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठी है, इस बात का एहसास आलोक को सारे रास्ते बना रहा.

आलोक ने उसे पहुंचा कर घर जाने की बात कही, तो शिखा चाय पिलाने का आग्रह कर उसे जबरदस्ती अपने घर तक ले आई.

उसे ताला खोलते देख आलोक ने सवाल किया, ‘‘तुम्हारे भैयाभाभी और मम्मीपापा कहां गए हुए हैं ’’

‘‘भाभी रूठ कर मायके में जमी हुई हैं, इसलिए भैया उन्हें वापस लाने के लिए ससुराल गए हैं. वे कल लौटेंगे. मम्मी अपनी बीमार बड़ी बहन का हालचाल पूछने गई हैं, पापा के साथ,’’ शिखा ने मुसकराते हुए जानकारी दी.

‘‘तब तुम आराम करो. मैं रितु के साथ बाद में चाय पीने आता हूं,’’ आलोक ने फिर अंदर जाने से बचने का प्रयास किया.

‘‘मेरे साथ अकेले में कुछ समय बिताने से डर रहे हो, जीजू ’’ शिखा ने उसे शरारती अंदाज में छेड़ा.

‘‘अरे, मैं क्यों डरूं, तुम डरो. लड़की तो तुम ही हो न,’’ आलोक ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘मुझे ले कर तुम्हारी नीयत खराब है क्या ’’

‘‘न बाबा न.’’

‘‘मेरी है.’’

‘‘तुम्हारी क्या है ’’ आलोक उलझन में पड़ गया.

‘‘कुछ नहीं,’’ शिखा अचानक खिलखिला के हंस पड़ी और फिर दोस्ताना अंदाज में उस ने आलोक का हाथ पकड़ा और ड्राइंगरूम  की तरफ चल पड़ी.

‘‘चाय लोगे या कौफी ’’ अंदर आ कर भी शिखा ने आलोक का हाथ नहीं छोड़ा.

‘‘चाय चलेगी.’’

‘‘आओ, रसोई में गपशप भी करेंगे,’’ उस का हाथ पकड़ेपकड़े ही शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी.

चाय का पानी गैस पर रखते हुए अचानक शिखा का मूड बदला और वह शिकायती लहजे में बोलने लगी, ‘‘देख रहे हो जीजू, यह रसोई और सारा घर कितना गंदा और बेतरतीब हुआ पड़ा है. मेरी भाभी बहुत लापरवाह और कामचोर है.’’

‘‘अभी उस की शादी को 2 महीने ही तो हुए हैं, शिखा. धीरेधीरे सब सीख लेगी… सब करने लगेगी,’’ आलोक ने उसे सांत्वना दी.

‘‘रितु और तुम्हारी शादी को भी तो 2 महीने ही हुए हैं. तुम्हारा घर तो हर समय साफसुथरा रहता है.’’

‘‘रितु एक समझदार और सलीकेदार लड़की है.’’

‘‘और मेरी भाभी एकदम फूहड़. मेरा इस घर में रहने का बिलकुल मन नहीं करता.’’

‘‘तुम्हारा ससुराल जाने का नंबर जल्दी आ जाएगा, फिक्र न करो.’’

शिखा बोली, ‘‘भैया की शादी के बाद से इस घर में 24 घंटे क्लेश और लड़ाईझगड़ा रहता है. मुझे अपना भविष्य तो बिलकुल अनिश्चित और असुरक्षित नजर आता है. इस के लिए पता है मैं किसे जिम्मेदार मानती हूं.’’

‘‘किसे ’’

‘‘रितु को.’’

‘‘उसे क्यों ’’ आलोक ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि उसे ही इस घर में मेरी भाभी बन कर आना था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो ’’

‘‘मैं सच कह रही हूं, जीजू. मेरे भैया और मेरी सब से अच्छी सहेली आपस में प्रेम करते थे. फिर रितु ने रिश्ता तोड़ लिया, क्योंकि मेरे भाई के पास न दौलत है, न बढि़या नौकरी. उस के बदले जो लड़की मेरी भाभी बन कर आई है, वह इस घर के बिगड़ने का कारण हो गई है,’’ शिखा का स्वर बेहद कड़वा हो उठा था.

‘‘घर का माहौल खराब करने में क्या तुम्हारे भाई की शराब पीने की आदत जिम्मेदार नहीं है, शिखा ’’ आलोक ने गंभीर स्वर में सवाल किया.

‘‘अपने वैवाहिक जीवन से तंग आ कर वह ज्यादा पीने लगा है.’’

‘‘अपनी घरगृहस्थी में उसे अगर सुखशांति व खुशियां चाहिए, तो उसे शराब छोड़नी ही होगी,’’ आलोक ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘न रितु उसे धोखा देती, न इस घर पर काले बादल मंडराते,’’ शिखा का अचानक गला भर आया.

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ आलोक ने कहा.

‘‘कभीकभी मुझे बहुत डर लगता है, आलोक,’’ शिखा का स्वर अचानक कोमल और भावुक हो गया.

‘‘शादी कर लो, तो डर चला जाएगा,’’ आलोक ने मजाक कर के माहौल सामान्य करना चाहा.

‘‘मुझे तुम जैसा जीवनसाथी चाहिए.’’

‘‘तुम्हें मुझ से बेहतर जीवनसाथी मिलेगा, शिखा.’’

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगी हूं, आलोक.’’

‘‘पगली, मैं तो तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड का पति हूं. तुम मेरी अच्छी दोस्त बनी रहो और प्रेम को अपने भावी पति के लिए बचा कर रखो.’’

‘‘मेरा दिल अब मेरे बस में नहीं है,’’ शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘रितु को तुम्हारे इरादों का पता लग गया, तो हम दोनों की खैर नहीं.’’

‘‘उसे हम शक करने ही नहीं देंगे, आलोक. सब के सामने तुम मेरे जीजू ही रहोगे. मुझे और कुछ नहीं चाहिए तुम से… बस, मेरे प्रेम को स्वीकार कर लो, आलोक.’’

‘‘और अगर मुझे और कुछ चाहिए हो तो ’’ आलोक शरारती अंदाज में मुसकराया.

‘‘तुम्हें जो चाहिए, ले लो,’’ शिखा ने आंखें मूंद कर अपना सुंदर चेहरा आलोक के चेहरे के बहुत करीब कर दिया.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल, साली साहिबा,’’ आलोक ने उस के माथे को हलके से चूमा और फिर शिखा को गैस के सामने खड़ा कर के हंसता हुआ बोला, ‘‘चाय उबलउबल कर कड़वी हो जाएगी, मैडम. तुम चाय पलटो, इतने में मैं रितु को फोन कर लेता हूं.’’

‘‘उसे क्यों फोन कर रहे हो ’’ शिखा बेचैन नजर आने लगी.

‘‘आज का दिन हमेशा के लिए यादगार बन जाए, इस के लिए मैं तुम तीनों को शानदार पार्टी देने जा रहा हूं.’’

‘‘तीनों को  यह तीसरा कौन होगा ’’

‘‘तुम्हारी पक्की सहेली वंदना.’’

‘‘पार्टी के लिए मैं कभी मना नहीं करती हूं, लेकिन रितु को मेरे दिल की बात मत बताना.’’

‘‘मैं न बताऊं, पर इश्क छिपाने से छिपता नहीं है, शिखा.’’

‘‘यह बात भी ठीक है.’’

‘‘तब रितु से दोस्ती टूट जाने का तुम्हें दुख नहीं होगा ’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि मेरा इरादा तुम्हें उस से छीनने का कतई नहीं है.

2 लड़कियां क्या एक ही पुरुष से प्यार करते हुए अच्छी सहेलियां नहीं बनी रह सकती हैं ’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब रितु से पूछ कर दूंगा,’’ आलोक ने हंसते हुए जवाब दिया और फिर अपनी पत्नी को फोन करने ड्राइंगरूम की तरफ चला गया.

रितु और वंदना सिर्फ 15 मिनट में शिखा के घर पहुंच गईं. दोनों ही गंभीर नजर आ रही थीं, पर बड़े प्यार से शिखा से गले मिलीं.

‘‘किस खुशी में पार्टी दे रहे हो, जीजाजी ’’

‘‘शिखा के साथ एक नया रिश्ता कायम करने जा रहा हूं, पार्टी इसी खुशी में होगी,’’ आलोक ने शिखा का हाथ दोस्ताना अंदाज में पकड़ते हुए जवाब दिया.

शिखा ने अपना हाथ छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया. वैसे उस की आंखों में तनाव के भाव झलक उठे थे. रितु और वंदना की तरफ वह निडर व विद्रोही अंदाज में देख रही थी.

‘‘किस तरह का नया रिश्ता, जीजाजी ’’ वंदना ने उत्सुकता जताई.

‘‘कुछ देर में मालूम पड़ जाएगा, सालीजी.’’

‘‘पार्टी कितनी देर में और कहां होगी ’’

‘‘जब तुम और रितु इस घर में करीब 8 महीने पहले घटी घटना का ब्योरा सुना चुकी होगी, तब हम बढि़या सी जगह डिनर करने निकलेंगे.’’

‘‘यहां कौन सी घटना घटी थी ’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘उस का ब्योरा मैं बताना शुरू करती हूं, सहेली,’’ रितु ने पास आ कर शिखा का दूसरा हाथ थामा और उस के पास में बैठ गई, ‘‘गरमियों की उस शाम को वंदना और मैं ने तुम से तुम्हारे घर पर मिलने का कार्यक्रम बनाया था. वंदना मुझ से पहले यहां आ पहुंची थी.’’

घटना के ब्योरे को वंदना ने आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ने घंटी बजाई तो दरवाजा तुम्हारे भाई समीर ने खोला. वह घर में अकेला था. उस के साथ अंदर बैठने में मैं जरा भी नहीं हिचकिचाई क्योंकि वह तो मेरी सब से अच्छी सहेली रितु का जीवनसाथी बनने जा रहा था.’’

‘‘समीर पर विश्वास करना उस शाम वंदना को बड़ा महंगा पड़ा, शिखा,’’ रितु की आंखों में अचानक आंसू आ गए.

‘‘क्या हुआ था उस शाम ’’ शिखा ने कांपती आवाज में वंदना से पूछा.

‘‘अचानक बिजली चली गई और समीर ने मुझे रेप करने की कोशिश की. वह शराब के नशे में न होता तो शायद ऐसा न करता.

‘‘मैं ने उस का विरोध किया, तो उस ने मेरा गला दबा कर मुझे डराया… मेरा कुरता फाड़ डाला. उस का पागलपन देख कर मेरे हाथपैर और दिमाग बिलकुल सुन्न पड़ गए थे. अगर उसी समय रितु ने पहुंच कर घंटी न बजाई होती, तो बड़ी आसानी से तुम्हारा भाई अपनी हवस पूरी कर लेता, शिखा,’’ वंदना ने अपना भयानक अनुभव शिखा को बता दिया.

‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस बात पर,’’ शिखा बोली.

‘‘उस शाम वंदना को तुम्हारा नीला सूट पहन कर लौटना पड़ा था. जब उस ने वह सूट लौटाया था तो तुम ने मुझ से पूछा भी था कि वंदना सूट क्यों ले गई तुम्हारे घर से. उस सवाल का सही जवाब आज मिल रहा है तुम्हें, शिखा,’’ रितु का स्पष्टीकरण सुन शिखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम दोनों ने यह बात आज तक मुझ से छिपाई क्यों ’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘समीर की प्रार्थना पर… एक भाई को हम उस की बहन की नजरों में गिराना नहीं चाहते थे,’’ वंदना भी उठ कर शिखा के पास आ गई.

‘‘मैं समीर की जिंदगी से क्यों निकल गई, इस का सही कारण भी आज तुम्हें पता चल गया है. मैं बेवफा नहीं, बल्कि समीर कमजोर चरित्र का इंसान निकला. उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरे दिल ने साफ इनकार कर दिया था. वह आज दुखी है, इस बात का मुझे अफसोस है. पर उस की घिनौनी हरकत के बाद मैं उस से जुड़ी नहीं रह सकती थी,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तुम्हें कितना गलत समझती रही,’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

आलोक ने कहा, ‘‘मेरी सलाह पर ही आज इन दोनों ने सचाई को तुम्हारे सामने प्रकट किया है, शिखा. ऐसा करने के पीछे कारण यही था कि हम सब तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहते हैं.’’

शिखा ने अपना सिर झुका लिया और शर्मिंदगी से बोली, ‘‘मैं अपने कुसूर को समझ रही हूं. मैं तुम सब की अच्छी दोस्त कहलाने के लायक नहीं हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों की सब से अच्छी, सब से प्यारी सहेली हो, यार,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तो तुम्हारे ही हक पर डाका डाल रही थी, रितु,’’ शिखा की आवाज भर्रा उठी, ‘‘अपने भाई को धोखा देने का दोषी मैं तुम्हें मान रही थी. इस घर की खुशियां और सुखशांति नष्ट करने की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर डाल रही थी.

‘‘मेरे मन में गुस्सा था… गहरी शिकायत और कड़वाहट थी. तभी तो मैं ने आज तुम्हारे आलोक को अपने प्रेमजाल में फांसने की कोशिश की. मैं तुम्हें सजा देना चाहती थी… तुम्हें जलाना और तड़पाना चाहती थी… मुझे माफ कर दो, रितु… मेरी गिरी हुई हरकत के लिए मुझे क्षमा कर दो, प्लीज.’’

रितु ने उसे समझाया, ‘‘पगली, तुझे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि हम तुम्हें किसी भी तरह का दोषी नहीं मानते हैं.’’

‘‘रितु ठीक कह रही है, साली साहिबा,’’ आलोक ने कहा, ‘‘तुम्हारे गुस्से को हम सब समझ रहे थे. मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के तुम्हारे प्रयास हमारी नजरों से छिपे नहीं थे. इस विषय पर हम तीनों अकसर चर्चा करते थे.’’

‘‘आज मजबूरन उस पुरानी घटना की चर्चा हमें तुम्हारे सामने करनी पड़ी है. मेरी प्रार्थना है कि तुम इस बारे में कभी अपने भाई से कहासुनी मत करना. हम ने उस से वादा किया था कि सचाई तुम्हें कभी नहीं पता चलेगी,’’ वंदना ने शिखा से विनती की.

‘‘हम सब को पक्का विश्वास है कि तुम्हारा गुस्सा अब हमेशा के लिए शांत हो जाएगा और मेरे पतिदेव पर तुम अपने रंगरूप का जादू चलाना बंद कर दोगी,’’ रितु ने मजाकिया लहजे में शिखा को छेड़ा, तो  वह मुसकरा उठी.

‘‘आई एम सौरी, रितु.’’

‘‘जो अब तक नासमझी में घटा है, उस के लिए सौरी कभी मत कहना,’’ रितु ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘साली साहिबा, वैसे तो तुम्हें प्रेमिका बना कर भी मैं खुश रहता, पर…’’

‘‘शक्ल देखी है कभी शीशे में  मेरी इन सहेलियों को प्रेमिका बनाने का सपना भी देखा, तो पत्नी से ही हाथ धो बैठोगे,’’ रितु बोली.

आलोक मुसकराते हुए बोला, तो फिर दोस्ती के नाम पर देता हूं बढि़या सी पार्टी… हम चारों के बीच दोस्ती और विश्वास का रिश्ता सदा मजबूत बना रहे.

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Best Hindi Stories :  ‘टिंगटौंग’ दरवाजे की घंटी बजी. टू बीएचके फ्लैट के भूरे रंग के दरवाजे के ऊपर नाम गुदे हुए थे- डा. भाष्कर सेन, श्रीमती गार्गी सेन, आईपीएस. अधपके बालों वाली एक प्रौढ़ा ने दरवाजा खोला और मुसकराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आज बड़ी देर कर दी तुम ने. दादाबाबू तो कब के आए हुए हैं. काफी थकीथकी दिख रही हो,’’ कहतेकहते उस ने महिला के हाथों से बैग ले लिया और फिर कहा, ‘‘तुम जाओ कपड़े बदल लो, मैं खाना गरम करती हूं.’’ ये हैं श्रीमती गार्गी सेन, जौइंट कमिश्नर औफ पुलिस, (क्राइम), आईपीएस 1995 बैच और इस घर की मालकिन. गार्गी जूते उतार कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई. बैडरूम में उस के पति भाष्कर बिस्तर पर सफेद पजामा और कुरता पहने, आंखों पर चश्मा लगाए पैरासाइकोलौजी की किताब पढ़ रहा था.

गार्गी के पैरों की आहट सुनते ही उस ने आंखें किताब से ऊपर उठाईं और आंखों से चश्मा उतारा. किताब को बिस्तर के पास रखी साइड टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘आज लौटने में बहुत देर हो गई तुम्हें, उस नए मामले को ले कर उलझी हो क्या?’’ गार्गी उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही बिस्तर पर उस की बगल में जा बैठी. भाष्कर ने उस की तरफ देखा और उस के गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बहुत अपसेट लग रही हो, जाओ यूनिफौर्म बदलो, फ्रैश हो कर आओ, डिनर टेबल पर मिलते हैं.’’

गार्गी ने बिना कुछ कहे सिर हिला कर हामी भरी. बड़ी मुश्किल से रोंआसी आवाज में उस के मुंह से निकला, ‘‘हूं.’’ फिर एक लंबी सांस ले कर भाष्कर की तरफ आंखें उठाईं. उस की आंखों में आंसू लबालब भरे हुए थे, मानो अभी छलकने को तैयार हों. भाष्कर ने पहले ही उस की परेशानी भांप ली थी. उस ने गार्गी को आलिंगन किया और उसे अपने बाहुपाश में जोर से जकड़ते हुए 2-3 दफे उस की पीठ ठोकी.

गार्गी ने अपना सिर भाष्कर के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘तुम कैसे बिना कुछ कहे ही सब समझ जाते हो.’’ भाष्कर ने उस के कंधे पर फिर एक बार थपकी दी और कहा, ‘‘जाओ, हाथमुंह धो कर आओ, बहुत भूख

लगी है.’’ गार्गी ने जबरन अपने होंठों को चीर कर बनावटी मुसकराने की कोशिश की और उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ गई.

कुछ देर बाद कपड़े बदल कर जब वह डाइनिंग टेबल पर आई तो भाष्कर पहले से ही वहां मौजूद था. सामने टीवी चल रहा था. गार्गी भाष्कर की बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गई और रिमोट ले कर टीवी चैनल बदल दिया. इतने में प्रौढ़ा अंदर से आई और खाना परोसने लगी.

टीवी पर एक न्यूज चल रही थी और दिनभर की महत्त्वपूर्ण खबरों को एक ही सांस में न्यूज रीडर पढ़े जा रही थी, ‘‘चांदनी चौक कांड का आज 5वां दिन. मंत्री आशुतोष समाद्दार के भतीजे मंटू समाद्दार और उस के 3 साथियों को पुलिस हिरासत में लिया गया. डैफोडिल अस्पताल के सीएमओ डा. नीतीश शर्मा ने बताया कि नाबालिग लड़की की हालत नाजुक. शरीर पर चोटों के कई निशान पाए गए हैं. हमारे संवाददाता से बातचीत में मंत्री आशुतोष समाद्दार ने बताया, ‘मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे फंसाया जा रहा है. लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सही नहीं है. उस की मां के पेशे के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे, मैं और क्या कहूं. ऐसे में आप ऐसी लड़कियों से क्या आशा रख सकते हैं?’’ संवाददाता बोला, ‘पर ऐसा क्यों किया उस ने? व्यक्तिगत स्तर पर आप से कोई दुश्मनी है या विरोधी पार्टी का काम है, आप का क्या मानना है?’

मंत्री बोले, ‘कुछ कह नहीं सकते, विरोधी पार्टी का हाथ इस के पीछे है या नहीं, यह पता लगाना तो पुलिस का काम है. मैं बस इतना ही कहूंगा कि मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे पैसों के लिए फंसाया जा रहा है. ऐसी लड़कियों के लिए यह पैसे कमाने का एक जरिया है.’ न्यूज रीडर ने अब कहा, ‘‘आइए जानते हैं कि इस मामले में पुलिस का क्या कहना है. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन से हमारे संवाददाता ने बात की.’’ ‘मामले की छानबीन हो रही है, मैडिकल रिपोर्ट आने से पहले कुछ कहा नहीं जा सकता. हम अपनी तरफ से मामले की सचाई तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

संवाददाता ने अपना अंदेशा जाहिर किया, ‘मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके आशुतोष समाद्दार की राजनीतिक क्षेत्र में पहुंच काफी तगड़ी है. इसलिए यह आशंका जाहिर की जा रही है कि वे अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या पुलिस जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं. कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और ज्यादा परेशान दिखने लगी. भाष्कर ने परिस्थिति को भांपते हुए झट से अपने हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदल दिया. फिर धीमी आवाज में कहा, ‘‘पिछले 4-5 दिनों से यह खबर सभी अखबारों व टीवी चैनलों पर छाई हुई है. मैं रोज इस का फौलोअप देखता रहता हूं. मैं जानता हूं तुम…’’ अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि इतने में गार्गी ने थाली आगे की ओर सरकाते हुए आवाज लगाई, ‘‘बेनु पीसी, मेरी प्लेट उठा लो, खाने का मन नहीं है.’’

प्रौढ़ा रसाईघर से दौड़ती हुई आई और विनय भाव से कहने लगी, ‘‘क्या हुआ दीदीभाई, क्यों खाने का मन नहीं, खाना अच्छा नहीं बना है क्या?’’ भाष्कर ने गार्गी के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘खा लो, वरना तबीयत खराब हो जाएगी.’’ और प्रौढ़ा की ओर मुड़ कर बोले, ‘‘पीसी, जरा रसोई से गुड़ ले आओ, इस का स्वाद बदल जाएगा.’’

गार्गी रोंआसी हो गई. उस ने नजरें उठा कर भाष्कर की आंखों में देखा. उन आंखों में आश्वासन था, समर्थन था और थी एक सच्चे साथी की प्रेमभावना जिस ने हर परिस्थिति में साथ रहने का वादा किया है. उस के मुंह से बस इतना निकला, ‘‘तुम नहीं जानते, भाष्कर कितना पौलिटिकल प्रैशर है.’’ भाष्कर ने इतने में उस के मुंह में निवाला ठूंस दिया और कहा, ‘‘मैं कुछ नहीं जानता, पर मैं सबकुछ समझ सकता हूं. पहले खाना खत्म करो.’’

गार्गी ने आंखों की पलकों से अपने आंसुओं को छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं क्या करूं भाष्कर, एक तरफ मेरा कैरियर, दूसरी तरफ मेरा जमीर. अगर मैं समझौता नहीं करती हूं तो वे मेरे कैरियर को बरबाद कर देंगे. ऐसे में मुझे क्या

करना चाहिए?’’ भाष्कर ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें सालों से जानता हूं. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. चाहे कुछ भी हो जाए तुम कुछ गलत कर ही नहीं सकतीं. तुम सच्ची हो और मैं यह भी जानता हूं कि तुम सचाई के साथ ही रहोगी, और तुम्हारे साथ रहेगा हम सब का विश्वास, मेरे व तुम्हारे शुभचिंतकों का प्रेम और सहयोग. मैं जानता हूं इन सब के साथ तुम जरूर अपनी लड़ाई में विजयी होगी, चाहे विपक्ष कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो. और देखो, बातोंबातों में कैसे खाना भी खत्म हो गया.’’

गार्गी ने देखा, सामने प्लेट खाली थी. उस ने कहा, ‘‘सच, तुम कब मेरे मुंह में निवाला भरते रहे, मुझे पता ही नहीं चला. तुम सचमुच मेरी बच्चों की तरह केयर करते हो. मैं तुम जैसा पति पा कर बहुत खुश हूं. पापा के बाद, बस, तुम ही तो हो जिसे हर मुसीबत में मेरा मार्गदर्शन करते हुए पाती हूं. थैंक्यू.

‘‘आज बहुत दिनों बाद पापा बारबार याद आ रहे हैं. मैं जब छोटी थी वे अकसर कहा करते थे, ‘बेटा, जब भी जीवन में किसी मोड़ पर कोई दुविधा हो तो अपने जमीर की सुनना. ऐसे मोड़ पर तुम्हें 2 रास्ते मिलेंगे. बेईमानी का रास्ता आसान होगा पर अगर तुम लंबी दौड़ में विजयी होना चाहती हो और अपने जीवन में सुखचैन चाहती हो तो कभी भी उस रास्ते को मत अपनाना वरना अपनी ही नजरों में सदा के लिए छोटी हो जाओगी.’’’ बात खत्म होते ही भाष्कर ने कहा, ‘‘चलो, अब बहुत रात हो गई है,

हमें सो जाना चाहिए. कल फिर तुम्हें सुबह उठना भी तो है. ड्यूटी पर जाना है न.’’

गार्गी ने हामी भरते हुए सिर हिलाया. उस के होंठों पर मंद मुसकराहट थी और चेहरे पर बेफिक्री का भाव. अगले दिन शाम को 6 बजे दरवाजे की घंटी बजी. अंदर से बेनु पीसी आई और दरवाजा खोला. गार्गी के चेहरे पर सुकून और अजीब सी खुशी झलक रही थी. अंदर घुस कर जूते उतारते हुए उस ने कहा, ‘‘बेनु पीसी, अलमारी के ऊपर से मेरा सूटकेस उतार कर रखना. ट्रैवल बैग स्टोर में रखा हुआ है, उस में मेरी रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और कुछ ड्राईफ्रूट्स डाल देना.’’

प्रौढ़ा ने पूछा, ‘‘क्यों, कहीं जा रही हो क्या?’’ गार्गी बाथरूम की ओर बढ़ती हुई बोली, ‘‘हूं, पहाड़ी इलाका है. परसों निकलूंगी. समझबूझ कर सारा सामान रख देना.’’

प्रौढ़ा प्रश्नों की बौछार करने ही वाली थी, मसलन, ‘कितने दिनों के लिए जाओगी, कब तक लौटोगी, दादाबाबू भी साथ जाएंगे या नहीं…’ पर इतने में गार्गी वहां से बैडरूम की तरफ जा चुकी थी. बैडरूम में पहुंच कर गार्गी ने भाष्कर को फोन किया और कहा, ‘‘जल्दी घर आओ, तुम से कुछ कहना है. नहीं, कुछ नहीं हुआ…न, कुछ नहीं चाहिए. बस, तुम आ जाओ.’’ घंटाभर बाद भाष्कर घर लौटने के बाद कपड़े बदल कर टीवी के सामने बैठ गए. गार्गी उन के पास वाली कुरसी पर जा बैठी. टीवी पर न्यूज चल रही थी, ‘‘ब्रेकिंग न्यूज, चांदनी चौक कांड ने लिया नया मोड़. मामले की देखरेख कर रहे आला पुलिस अधिकारी का मानना है कि मंटू समाद्दार और उस के साथी हैं दोषी. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन ने प्रैस को दिया बयान, ‘मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार दुराचार किया गया है. हम ने नाबालिग लड़की का बयान लिया है. आरोपियों की पहचान हो गई है. कानून अपना काम करेगा. दोषी कोई भी हों, उन के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत कार्यवाही की जाएगी. पीडि़ता को इंसाफ जरूर मिलेगा. मैं ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है और चार्जशीट भी कोर्ट में पेश किए जाने के लिए तैयार है.’ ’’

न्यूज रीडर ने आगे खबर पढ़ी, ‘‘जौइंट सीपी साहिबा के इस बयान के कुछ ही घंटों में उत्तरी बंगाल के किसी दूरस्थ पहाड़ी इलाके में उन के तबादले की घोषणा हुई. इस संबंध में तरहतरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. यह तबादला क्या उन की सच्ची बयानबाजी की सजा है? क्या राजनीतिक दिग्गजों की स्वार्थसिद्धि न होने के परिणामस्वरूप प्रभाव का इस्तेमाल कर के यह तबादला करवाया गया. अब चलते हैं मौके पर मौजूद संवाददाता के पास. हां, मौमिता, इस मामले में पुलिस का क्या कहना है?’’ संवाददाता मौमिता बताती है, ‘पुलिस का तो यह कहना है कि यह रूटीन तबादला था. इस फैसले पर गार्गी सेन की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.

‘अब सवाल यह उठता है कि क्या इस से पुलिस की छानबीन पर कोई प्रभाव पड़ेगा, क्या राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा सकती है? ऐसी परिस्थिति में क्या पीडि़ता को इंसाफ मिल जाएगा? कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और भाष्कर दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. गार्गी ने भाष्कर से पूछा, मैं ने सही किया न?’’

भाष्कर ने उस का हाथ अपने हाथों में लिया और अपनी उंगलियां उस की उंगलियों में फंसा कर मुसकराते हुए हामी भर कर सिर हिला दिया. गार्गी ने अपने सिर का बोझ उस के कंधे पर रख कर आंखें बंद कर लीं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी.

भाष्कर ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘यह क्या, तुम रो रही हो? आज तो विजय दिवस है, झूठ पर सच की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय. आज से तुम आजाद हो, तुम्हें और ग्लानि का बोझ वहन नहीं करना पड़ेगा.’’ गार्गी ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, ये तो कई दिनों से अंदर जमा थे, आज बाहर आए हैं. कोई और अफसोस नहीं, बस, तुम से दूर…’’ भाष्कर ने बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘अब तो हम और ज्यादा करीब हो गए. साथ रहने का अर्थ क्या हमेशा पास रहना है? अगर मेरी गार्गी बदल जाती तो शायद मैं उसे पहले जैसा प्यार न दे पाता और पास रहने के बावजूद उस से काफी दूर हो जाता. तुम सचाई के साथ हो और सदा रहना, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

इतने में बेनु पीसी ने आ कर टीवी का चैनल बदल दिया था. टीवी पर संगीत बज रहा था, ‘‘इंसाफ की डगर पे…अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय. देखो, कदम तुम्हारा, हरगिज न डगमगाए, रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभलसंभल के…इंसाफ की डगर पे…’’

Hindi Kahaniyan : चलो जीया जाए

Hindi Kahaniyan : एक तरफ लैपटौप पर किसी प्राइवेट कंपनी की वैब साइट खुली थी तो दूसरी ओर शाहाना अपने फोन पर शुभम से चैटिंग में व्यस्त थी.

अचानक मां के पैरों की आहट सुनाई दी तो. उस ने फोन पलट कर रख दिया और लैपटौप पर माउस चलाने लगी. दोपहर के 2 बज रहे थे. इस समय कंपनी के काम से उसे ब्रेक मिलता था. मां ने खाने के लिए बुलाया शाहाना को.

शाहाना ने मां को कमरे में खाना देने को कहा. कहा कि ब्रेक नहीं मिला है आज.

46 साल की निशा यानी शाहाना की मां उस की पसंद का खाना उस के पास रख गई. हिदायत दी कि याद से खा ले.

21 वर्ष की शाहाना अभी 6 महीने पहले भुवनेश्वर से होटल मैनेजमैंट में ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी कर के लौटी है. उसे अपने रिजल्ट के आने का इंतजार है और तब तक उस ने खुद की कोशिश से एक प्राइवेट कंपनी में वर्क फ्रौम होम वाली जौब ढूंढ़ ली है. लेकिन बात यह है कि जैसे ही सालभर होने को होगा उसे इस कंपनी के मेन औफिस दिल्ली जा कर जौब करनी होगी. यह कितनी खुशी की बात है, शाहाना ही जानती है. लेकिन सामने इस से भी बड़ी चिंता की दीवार खड़ी है उस के, जिस का उसे समाधान ढूंढे़ नहीं मिल रहा. रोज वह औफिस जाती है, उसे शाबाशी मिलती है और खुश होने के बजाय वह और ज्यादा चिंतित हो जाती है.

शाहाना सुदेश की बेटी है. 50 साल का सुदेश रेलवे में नौकरी करता है और अकसर उस की नाइट शिफ्ट रहती है. सुदेश की पत्नी यानी निशा की मां अपने 70 और 78 साल के क्रमश: अपने सास और ससुर की सेवा में लगी रहती है क्योंकि वे कुछ ज्यादा ही लाचार हैं.

दरअसल, किसी भी घर में वहां का माहौल बच्चों को बनाता है. आज जो शाहाना इतनी आजाद खयाल और खुद की आर्थिक आजादी के लिए दीवानी है उस के पीछे भी उस का घर और घर के लोग हैं. निस्संदेह. मगर कुछ अलग तरह से.

बूढ़े मातापिता सुदेश की जिम्मेदारी है लेकिन पैसे के इंतजाम के सिवा कभीकभार मातापिता को डाक्टर को दिखाने के सिवा सारी देखभाल शाहाना की मां निशा के जिम्मे थी और इस में निशा का पत्नी भाव कम नौकरानी का भाव ज्यादा था. अलिखित जैसी संधि थी कि यहां रहोगी तो वह सबकुछ करना होगा जो कमाने वाला पुरुष चाहता है. बचपन से ही शाहाना ने देखा है कि मां के दांपत्य भाव को कभी भाव ही नहीं दिया गया. उसे क्यों और किस तरह इस परिवार से कभी लगाव महसूस होता जहां परिवार की जड़ें ही एकदूसरे से न जुड़ी हों. दादादादी भी सिर्फ अपना काम करवाने और बाकी समय बहू की निंदा करने में व्यतीत करते. यहां सिर्फ व्यापार भर का जीवन था. लेकिन  शाहाना इस घर में  सिर्फ इसलिए ही घुटन महसूस करती हो, यह बात नहीं थी. कारण इस से भी बड़ा था.

पिता के लिए शाहाना बेटी के रूप में एक स्त्री थी और यह तब से था जब शाहाना खुद भी खुद के लड़की होने की बात को समझ भी नहीं पाई थी. यानी उस के बचपन से ही उस के पिता उसे बेटी कम, एक औरत जात ज्यादा समझते.

इधर शाहाना की मां निशा को बातबात पर उस के पिता न कमाने की उलाहने देते लेकिन लड़कियों की आर्थिक आजादी पर उन का रंग बदल जाता.

घोर परंपरावादी पिता की छत्रछाया में शाहाना पलते हुए बस एक ही बात सोचती, एक ही ध्यान करती कि कब वह इस घर से दूर कहीं, बहुत दूर चली जाएगी.

मुश्किलें थीं, उस की मां भी बड़ी लाचार थी. पढ़ीलिखी होने के बावजूद मां में अपने लिए आवाज उठाने की हिम्मत नहीं थी.

निशा अपने मातापिता की इकलौती संतान थी सो कभी अपने मातापिता, कभी सासससुर इन्हीं में उलझ कर रह गई थीं उन की जिंदगी.

मजबूर निशा शाहाना को समझती, ‘‘किसी तरह तू अपने पैरों पर खड़ी हो जा, फिर तेरा दुख दूर हो जाएगा.’’

होटल मैनेजमैंट की पढ़ाई के दौरान शाहाना को शुभम मिल गया. 2 साल सीनियर शुभम पहलवान सा दिखता था आकर्षक था. उस की हाइट शाहाना से बस 2 इंच ज्यादा यानी 5 फुट 7 इंच थी.

रोमांटिक चेहरे की स्वामिनी और खूबसूरत दुबलीपतली, सुघड़ बदन की मलिका शाहाना को एक सुंदर साथी की तलाश थी जो उसे समझे, सराहे और उस की आजादी को महत्त्व दे. इसलिए शुभम के सौंदर्य को कभी उस ने खुद से नापा ही नहीं.

होस्टल की एक सीनियर लड़की आभा जो शुभम की दोस्त थी, के संरक्षण में शुभम से शाहाना की दोस्ती दिनबदिन गहरी होती गई.

शाहाना को उस के पापा फोन पर चाहे हर बार रुपए भेजते समय उसे फटकार लगाए या नीचा दिखाए, शाहाना बीमार पड़े या उसे कहीं दूर किसी अच्छे स्पौट घूमने जाना हो, शुभम उस का संरक्षक, गाइड और प्यार बन चुका था.

ऐसा था कि शुभम अपने कालेज के लड़कों के बीच अपने अडि़यल स्वभाव और बात को खींच कर किसी भी तरह खुद को सही साबित करने वालों में जाना जाता था. लेकिन शुभम जैसा एक मजबूत सहारा शाहाना के लिए इतना कीमती था कि शाहाना को दोस्तों की सम?ाइश में जलन की बू आती. उस ने शुभम को जाननेसम?ाने के लिए किसी भी बाहरी सूचना को स्वीकार ही नहीं किया.

शुभम जब अपना कोर्स खत्म कर के अपने घर पुणे चला गया और वहां उस ने एमबीए जौइन कर लिया, तब शाहाना भुवनेश्वर में ही अपनी ग्रैजुएशन का दूसरा साल पूरा करती रही. जब तक शाहाना अपना कोर्स खत्म कर घर आई, शुभम को जयपुर में एक ट्रैवल कंपनी में मैनेजर पद की नौकरी मिल चुकी थी. कंपनी छोटी और नई थी, शुभम की सरकारी कालेज से एमबीए की डिगरी ने उसे 35 हजार की नौकरी दिला दी.

शाहाना घर तो आ गई थी लेकिन फिर से उस के पिता सुदेश की हुकुमदारी शुरू हो गई थी. 21 साल की आजाद खयाल और बहुत सैंसिटिव लड़की को नफरत भरी दकियानूसी सहन नहीं हो रही थी. वह यहां से बस कोई नौकरी पा कर निकल भागना चाहती थी. मगर नौकरी तो कोई खुद के बगीचे का आम नहीं था कि जब मन चाहा तोड़ लिया.

किसी भी प्राइवेट कंपनी में जौब पाने के लिए एक फ्रैशर्स को कम से कम 6 महीने तो इंटर्नशिप ट्रेनिंग की जरूरत होती है और उस के बाद नौकरी मिलेगी या नहीं कोई गारंटी नहीं.

होटल मैनेजमैंट कर के अगर कोई सीधे होटल की जौब में न जाना चाहे तो उसे इस तरह ही नौकरी ढूंढनी पड़ती है.

दरअसल, होटल की जौब में जबकि शाहाना ने सेफ की पढ़ाई नहीं की थी, हाउस कीपिंग में उस के चेहरेमोहरे और फिगर को प्रायौरिटी देते हुए उसे रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिली भी थी, लेकिन पढ़ाई के दौरान इंटर्नशिप में वह 17 घंटे खड़े हो कर काम करने का अनुभव ले चुकी थी और उस के पैर तब सूज जाते थे.

शुभम के सु?ाव से उस ने वर्क फ्रौम होम की एक प्राइवेट नौकरी की ट्रेनिंग ढूंढ़ी. तब से लगातार शुभम और उस के काम के बीच दोनों की चैटिंग चलती रहती. इतनी बात तो ठीक थी. लेकिन आगे की जिंदगी तक जाने वाली सड़क के बीच एक दीवार आ गई थी. यह वह दीवार थी जिस से हर बार उड़ने से पहले शाहाना के पंखों को टकरा कर घायल होना पड़ता.

बचपन से शाहाना पिता के मनुवादी संदेश सुनसुन कर थक चुकी थी कि बेटी पहले पिता के हाथ की फिर पति के हाथ की और अंत में बेटे की हाथ की यानी कुल मिला कर पुरुषों के हाथ की कठपुतली है.

उस की मां को कंट्रोल में रखते हुए भी सुदेश लगातार उलाहने देता रहता, कभी संतुष्ट नहीं होता क्योंकि वह मानता है कि अगर उस ने पत्नी के प्रति प्रेम दिखाया तो वह कुछ न कुछ मांग कर देगी और उसे पूरा करने का मतलब ही है कि स्त्री को भाव देना. इस से स्त्रियां कंट्रोल से निकल जाती हैं. ऐसे में बेटी इस पिता से जयपुर, दिल्ली या आगरा अपनी नौकरी के लिए कैसे कहे? कैसे इस मजबूत दीवार से टकराए?

इधर शाहाना जहां अभी ट्रेनिंग कर रही है उस के 6 महीने पूरे होने को आए थे और वे अपनी दिल्ली के औफिस में उसे नौकरी औफर कर रहे थे. इन हैंड 22 हजार का औफर था. अभी शाहाना की यह पहली नौकरी थी, फिर उसे घर से निकलना था, पिता जो पालक नहीं मालिक के दया के चंगुल से बाहर आना था, इस हाल में यह रकम उस के लिए बेहतर विकल्प थी.

शाहाना की कोफ्त बढ़ती जा रही थी क्योंकि वह कोई शब्द और वाक्य ऐसा नहीं पा रही थी जिस से इस रूखे और स्वार्थी व्यक्ति को राजी किया जा सके. दरअसल, अभी उस के पास बाहर जाने और रहने को शैल्टर के लिए पैसे नहीं थे, सुदेश को कहे बिना निकले कैसे.

खैर, शाहाना को इन्हीं परिस्थितियों ने बहुत मजबूत बनाया था और आगे की विपत्तियों ने उसे लौह शक्ति में कैसे बदल डाला यह जानना भी दिलचस्प होगा.

खाने की मेज पर अब आमनेसामने सुदेश और शाहाना. 1 घंटे में उस के तर्क को उस के पिता ने जितनी ही बार काटा, उसे लताड़ा, नीचा दिखाया, शाहाना ने अपनी आंखों में आंसुओं की बाढ़ एक तरफ रोक, लगातार पिता का प्रतिरोध सह कर खुद पर विश्वास के साथ पिता के प्रत्येक परंपरावादी बात को तर्क सहित काट डाला.

आखिर तय यह हुआ कि दिल्ली न जा कर वह कोई और शहर ढूंढे़ जो अपेक्षाकृत लड़कियों के लिए थोड़ा सुरक्षित हो. दिल्ली जा कर शाहाना बिगड़ सकती है. अत: शाहाना को दिल्ली वाली नौकरी ठुकरा कर दूसरी नौकरी की तलाश शुरू करनी पड़ी.

अंतत: शुभम ने उसे जयपुर बुलाया जिस कंपनी में वह खुद मैनेजर था. बिना मेघ के बारिश मिल गई उसे. शाहाना ने अब तक आसपास की हवाओं को भी पता लगने नहीं दिया था कि शुभम नाम का कोई शख्स उस की जिंदगी में है. काफी मशक्कत के बाद शाहाना को बाहर जाने की इजाजत मिली. पिता साथ गए और एक कालेज जाने वाली लड़कियों के पीजी में शाहाना को रखवा दिया, जिस में शाहाना का कमरा चौथी मंजिल पर था. पहली मंजिल पर खाने का इंतजाम था.

शाहाना के कमरे में 2 और कालेजगोइंग लड़कियां थीं जिन के साथ शाहाना एडजस्ट नहीं हो पा रही थी. यहां और भी कई सारी दिक्कतें थीं, साथ ही महीने के 5 हजार लग रहे थे जो नई नौकरी में उस के लिए भारी मुश्किल थे.

इस बीच शुभम ने कहा था कि औफिस के पास ही वह जिस फ्लैट की तीसरी मंजिल में रहता है, वहां लिफ्ट के साथ रहने के लिए सारी सुविधाएं हैं और एक कमरे का 5 हजार है. इस फ्लैट में 3 कमरे हैं. दोनों में 1-1 लड़की हैं जो शुभम के ही औफिस में सीनियर हं. उन में से एक शायद एक महीने में किसी और शहर में नौकरी लेकर शिफ्ट होने वाली है. फिलहाल वह राजी है कमरा शेयर करने में, एक गद्दा खरीद कर शाहाना उस लड़की के कमरे में आ सकती है, बाद में वह कमरा शाहाना का हो जाएगा, कम से कम यहां अपनी आजादी से रह सकेगी.

यह फ्लैट अच्छे बड़े एरिया में था. तीसरी मंजिल के इस फ्लैट में 3 कमरे, कौमन डाइनिंग और किचन थी. मकानमालिक को भी पैसे के सिवा और किसी चीज से कोई मतलब नहीं था. यहां कंपनी में काम करने वाले लड़केलड़कियां पैसे की कमी के चलते इस तरह रहते थे.

अचानक शाहाना खुश हो उठी कि अब पापा सुदेश से महीने के अंत में पैसों के लिए हजार झिड़कियां नहीं खानी पड़ेंगी. उसे अब कभी घर जाने की मजबूरी नहीं होगी. मां का उसे अफसोस होता कि इतनी पढ़ीलिखी और कई कलाओं में पारंगत होने के बावजूद सिर्फ 2 मुट्ठी अन्न तक ही जिंदगी सिमटा ली. खैर, अब वह शुभम के साथ अपने सपनों का संसार सजाएगी.

जिस दिलोजान से शुभम को शाहाना ने चाह लिया था, जो उस की जिंदगी में एक पिता के खाली स्थान को अपने प्यार और विश्वास, स्नेह और देखभाल के जरीए भरने आया था, शाहाना उस के लिए क्या कुछ कर सकती है, यह उस का मन ही जानता था.

शुभम के प्रति शहाना कृतज्ञता से दबी जाती थी, जब घर में हमेशा उसे सहारा और प्रेम देने के बदले पिता से उलाहने और बेसहारा छोड़ दिए जाने का एहसास मिला हो, ऐसे में शुभम की छोटी से छोटी बात भी उस के लिए बेहद अहम थी और ऐसा लगता था शाहाना खुद को शुभम पर लुटा देने का संकल्प कर चुकी है.

मगर एक बड़ी मनोवैज्ञानिक गहरी बात है. जब जिंदगी की सचाई बन कर वह बात सामने आती है जिस से इंसान सब से ज्यादा डरता है तो इंसान उसे अपने साथ हुआ देख भी मान नहीं पाता. दूसरी बात यह थी कि इतनी खूबसूरत, मौडर्न, स्टाइलिश, इंटैलीजैंट लड़की खुद शुभम पर दीवानी हुई तो शुभम को अपना ग्रेड अचानक बहुत ऊंचा महसूस होने लगा. उसे अब महसूस होता कि वह बहुत कम में संतुष्ट हो रहा है. उसे तो बहुत कुछ मिल सकता है क्योंकि वह बहुत खास है.

इधर शाहाना ने शुभम के आसपास अपने प्रेम का मजबूत घेरा बना कर खुद ही उस में प्रवेश कर गई थी.

शाहाना की नौकरी औरों की तरह अच्छी चल रही थी. महीना खत्म होते ही पैसे आ रहे थे. वह दिल खोल कर शुभम के लिए खर्च करती. उस ने समझ लिया था शुभम है तो अब उस की जिंदगी बेफिक्र है. शुभम ने भी उसे कह रखा था जल्द ही वह अपने घर वालों से मिला देगा. 2 बार वीडियो कौल में वह शाहाना से घर वालों को मिलवा चुका था और शाहाना फूली नहीं समा रही थी कि ऐसा ही कोई परिवार उसे चाहिए था जो उसे भरपूर तवज्जो दे.

जयपुर में शाहाना रहने को तो शुभम के साथ रहती थी, लेकिन उस ने हमेशा अपने दायरे निश्चित कर रखे थे. वह आजाद खयाल थी, अपने हिसाब से जीना चाहती थी लेकिन उसे बखूबी अपनी मर्यादा मालूम थी. जब शुभम के घर वालों ने भी इस बात पर कोई सवाल नहीं उठाया कि एक ही फ्लैट में दोनों रहते हैं तो वह शुभम के घर वालों की उदारता देख काफी प्रसन्न हुई. वह इस बात को ले कर खुश थी कि सभी पैसे बचाने की जरूरत को समझ रहे थे. अभी शाहाना के पिता होते तो उफ. तोहमतों की बाढ़ आ जाती.

सबकुछ सही चल रहा था और शुभम की बात पर उस के घर वाले शाहाना को देख कर  चांदी की पायलें और मोती के कान के टौप्स दे कर गए थे. शाहाना के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

शुभम के लिए वह बिछबिछ जाती और उस के किसी भी बुरे लगने वाले व्यवहार को आंख मूंद कर इगनोर करती. एक दिन औफिस में किसी लड़की को शुभम पीठ पर लाद कर हंसीमजाक करते सीढि़यों को अपनी से नीचे उतारता, शाहाना ने देखा, मगर उस पर उसे खुद से ज्यादा विश्वास था.

कई बार ऐसा होता कि शाहाना को घर भेज कर रात के 1 बजे तक पूल पार्टी में लड़कियों के साथ जलकेली कर के वापस आता. शाहाना उस के लिए इंतजार करती, खाना सर्व करती और कुछ पूछने की हिम्मत भी नहीं करती कि कहीं रूठ गया तो?

अब शुभम भी शाहाना को अपना अधिकार और अपनी संपत्ति सम?ाने लगा था. यह वह लड़की थी जो शुभम के अलावा किसी भी लड़के से कोई मतलब नहीं रखती थी. खुद को शुभम के आगे तुच्छ सम?ाती, उसके प्यार के बदले अपना प्यार उसे बहुत कम लगता. इस कृतज्ञता ने शाहाना को शुभम के आगे दिनोंदिन कमजोर कर दिया. अकसर शुभम औफिस के बाद देर से आता, शाहाना का बनाया डिनर करता, मीनमेख निकालता और सो जाता. शाहाना यह सोचती शुभम उसे अपना मानता है तभी इतना अधिकार जताता है.

इसी दौरान बरसात का मौसम आ गया यानी टूर ऐंड ट्रैवल कंपनी की मंदी का वक्त. इस मौसम में इन के औफिस में कुछ नए ट्रेनी कर्मचारियों की छंटनी कर दी जाती और सितंबर महीने से फिर नए ट्रेनी की खोज शुरू होती, जो कम से कम तनख्वाह में काम करें. इस तरह कमर्चारियों के भत्ते और तनख्वाह बढ़ाने से पहले ही कुछ कर्मचारियों की छंटनी कर कंपनी की बचत कराई जाती.

शुभम सीनियर था, उसे पता लग गया था कि छंटनी में 5 कर्मचारियों में एक शाहाना भी है. शुभम के लिए भी यह दिक्कत वाली बात थी, घर वाले नौकरी वाली लड़की चाहते थे, जिस से शुभम के पैसे उस की मां अनुपमा ले सके जैसे वह हमेशा लेती ही आई है.

शाहाना को बात पता लगी और उस ने यह नौकरी छोड़ एक नामी कंपनी में नौकरी कर ली जिस में काल सैंटर के वर्क फ्रौम होम की नाइट शिफ्ट थी.

महीनेभर में ही शाहाना को महसूस हुआ कि वह बस इतना ही नहीं चाहती है. आज के बाद जब वह शुभम के साथ पुणे जाएगी तो उसकी नौकरी फिर छूटेगी, उसे फिर से नौकरी के लिए हाथपांव मारने होंगे क्योंकि वह महज घरेलू बीवी बन कर जी नहीं पाएगी.

इधर शुभम का भी दिल बेजार, बेस्वाद हो गया. शाहाना कमाऊ बीवी के रूप में ही उसे स्वीकार है, लेकिन ऐसी नाइट शिफ्ट कर के कब तक काम चलेगा.

शाहाना ने बहुत सोचा और तय किया कि उसे इस नौकरी के साथ अलग कुछ करना होगा. अब तक शाहाना को उस का कमरा पूरी तरह मिल चुका था. उस ने एक नया आइडिया शुभम को बताया और इस से बढि़या क्या हो सकता था.

शाहाना अभी जहां नई जौब पर लगी है वह कंपनी काम करने का सारा सैटअप शाहाना के कमरे में इंस्टौल कर के गई थी, जहां से वह वर्क फ्रौम होम करती थी.

शाहाना रात 11 बजे से सुबह 8 बजे तक ड्यूटी करती थी. फिर फ्रैश हो कर नाश्ता बनाती शुभम और खुद के लिए. उस के बाद दोपहर 1 बजे तक सोकर उठ जाती और नहाधो कर लैपटौप खोल काम पर बैठ जाती. दोपहर 3 बजे तक कभी ओट्स उपमा या खिचड़ी या दालचावल बना कर खाती. जरूरत हुई तो बाजार जाती और शैड्यूल से फिर अपने लैपटौप ले कर काम पर बैठ जाती. शाम को उठ कर अपने कमरे की या कपड़ों की साफसफाई कर लेती, कुछ बिस्कुट वगैरह ले कर फिर काम. वैसे तो शाम 6 बजे शुभम के औफिस की छुट्टी हो जाती थी लेकिन अब जब शाहाना शुभम वाले औफिस नहीं जाती, शुभम के वापस आने का वक्त लगातार आगे बढ़ रहा था. आजकल वह 9-10 बजे आता और शाहाना को डिनर बनाते देख कर पैर फैला कर सो जाता. कभी मुंह भी फुलाता कि अभी तक डिनर रैडी कर लेना चाहिए था क्योंकि वह औफिस से आया है और उसे तुरंत खाना चाहिए.

शाहाना चुप रह कर काम करने वाली लड़कियों में से थी. वह और जल्दी हाथ चलाती. जब शुभम सो जाता वह फिर से नाइट ड्यूटी पर बैठ जाती.

कुल मिला कर एक अच्छा जीवन पाने और खास शुभम के साथ एक आजाद जिंदगी जीने के लिए उस ने एक ऐसा नया काम शुरू किया था, जिस से शाहाना की तो क्या शुभम और उस के पूरे खानदान की जिंदगी बदलने वाली थी.

आखिर शाहाना की दिनरात की मेहनत रंग लाई. उस का टूर ऐंड ट्रैवल का बिजनैस ‘लैट्स लिव’ यानी ‘चलो जीया जाए’ नाम की कंपनी की वैबसाइट शाहाना ने बना कर तैयार कर ली. इस बिजनैस में तकनीक और ताकत के साथसाथ ताउम्र शुभम के साथ चलने जैसा वादा और सपना था. अब बारी थी, इसे सरकारी मुहर लगा कर रजिस्टर्ड करवाने की.  कंपनी तैयार हो जाने के बाद शाहाना शुभम से बहुत प्यार और केयर की उम्मीद कर रही थी क्योंकि यह एक बहुत बड़ा काम उस ने अकेले कर दिखाया था.

शुभम इस बारे में बाहर जा कर अपने पिता से बात कर के आ गया और तय हुआ कि पिता ही कंपनी रजिस्टर्ड कराने का बीड़ा उठाएंगे, पैसे भरेंगे, कंपनी उन के पुणे के घर के पते से शुरू होगी.

शुभम अपने पैर में फ्रैक्चर होने का बहाना कर 8 महीने की छुट्टी ले कर अपने घर पुणे चला गया ताकि कंपनी रजिस्टर्ड करवा कर कंपनी का काम शुरू कर सके.

शाहाना तो जैसे धीरेधीरे अपनी जिंदगी का बटन शुभम को ट्रांसफर करती जा रही थी. वह उस के कहने पर जयपुर से ही बिजनैस का काम देखती और रात को नाइट ड्यूटी करती.

2 महीने बाद जब शाहाना की बनाई हुई कंपनी ‘लैट्स लिव’ रजिस्टर्ड हो कर वास्तव में शुरू हो गई तो शाहाना को पुणे बुला लिया गया और शाहाना घर पर बिना कुछ बताए सीधे अपना सामान ले कर और नौकरी से इस्तीफा दे कर पुणे आ गई. साथ में सपने और उम्मीदों की गठरी थी बहुत बड़ी.

पुणे आ कर शहाना ने मां को खबर दी कि उस की सहेली मेघना के घर रुकी है और वहीं से उस ने अपना बिजनैस शुरू किया है. लड़के का नाम सुनते ही पिता कहीं उस का सारा काम न बंद करवा दे इस का उसे डर था.

पिता का दिमाग गरम हो गया. लेकिन फिर सोचा छोड़ो, पैसे बच रहे हैं, जो करे सो करे.

इधर बिजनैस के लिए जितने घंटे शाहाना लैपटौप पर बैठे उतने ही कम होते. सारा टैक्निकल काम शाहाना को ही करना था क्योंकि बिजनैस उसी ने शुरू किया था. उसे ही सब पता था. शुभम सिर्फ लोगों से कौंटैक्ट करता था. लेकिन इधर बिजनैस के लाखों रुपए भी शुभम की मां को चाहिए, उधर शाहाना को बैठे काम करते देख भी उसे कोफ्त हो जाती. बेटे को भड़काती. औरत कहीं लैपटौप पर काम करे और मर्द को जो बोले सो करे. तू उस की बात क्यों मानता है? तू क्यों नहीं काम करता? उसे बरतन मांजने भेज, ढेर बरतन पड़े, हैं, पोंछा नहीं लगा अभी तक.’’

शाहाना के यहां आते ही कामवाली को हटा दिया गया था. अपने घर में रहने दे रहे हैं तो हिसाब इधर से बराबर करना था. शाहाना को यह सम?ा नहीं आया था.

दरअसल, शुभम की मां अनुपमा ऊपर से मीठी और अंदर से तेजाब थी. एक तरह से कहा जाए तो पिचर प्लांट. बेटा हो या पति हलका सा उस ने मुंह खोला और सारे हो गए उस के अंदर. समर्पित और आज्ञाकारी.

अपने रूपयौवन में सोलह कलाओं में पारंगत. ये उत्तर प्रदेश के कट्टर ब्राह्मण थे. शुभम के पिता बैंक कर्मचारी थे, और बाल विवाह किया था.

नतीजा अभी उन की 46 की उम्र और पत्नी की 40 की उम्र में अब उन के बेटे की उम्र 25 और बेटी 22 की. ऐसे में घमंड से भरी थी अनुपमा कि जिस उम्र में उस की उम्र की औरतें 8 या 10 साल के बच्चों को ले कर पस्त दिखाई देती हैं, वह हर जगह अपने बेटे या बेटी की दीदी सी लगती है. शाहाना को तब हैरान हुई जब अनुपमा ने यह कह डाला कि मैं तो इतनी जबान दिखती हूं कि बेटे को लोग मेरा पति सम?ा लेते हैं और बेटी को इस के पापा की पत्नी.’’

शाहाना को एहसास होने लगा कि वह गलत जगह आ गई है. फिर भी शाहाना ने जिंदगी को खुशी से जीने के लिए कई बड़े कदम उठा लिए. अब वापस आने का रास्ता उसे नहीं दिखता, दूसरे, सोचती शुभम के लिए यहां आई है, शुभम की मां के लिए चली जाए यह तो ठीक नहीं.

यह बिसनैस शहाना को बहुत कुछ दे रहा था. लोगों में उस के नाम से पहचान बन रही थी, कौंटैक्ट बढ़े थे उस के. काफी टूर भी हुआ था. 6-7 महीनों में शुभम और शाहाना क्लाइंट ले कर सिक्किम, लद्दाख, केदारनाथ आदि घूम आए थे. शाहाना को इस की बेहद खुशी थी. सोचती जिसे पिता ने हमेशा नाकारा, भोंदू, चरित्रहीन कह कर तब ताने मारे जब वह बहुत छोटी और मासूम थी. जब उस के पंख उगे ही नहीं थे, तभी से पिता ने कह दिया था यह लड़की कुछ नहीं कर सकेगी, इस से कुछ होगा ही नहीं.

भोली सी शाहाना पर कितना बुरा असर पड़ा था, खूंख्वार पिता को पता ही नहीं चला और अब तो एक परिवार की जिंदगी हिज बदल दी थी उस ने.

शाहाना के अंदर खुद को ले कर जो आत्मविश्वास की कमी थी, वह अब दूर हो गई थी, उस के अंदर अब एक शक्तिशाली और जिद्दी लड़की की पैदाइश हो गई थी. अब उस ने धीरेधीरे हर एक इंसान को अच्छी तरह पढ़ना भी शुरू कर दिया था. बिजनैस बढ़ाने की ताकीद भी यही थी कि लोगों को पहचाना जाए, उनके अंदर की बात को उन के न चाहते हुए भी समझ लिया जाए.

अनुपमा और संतोष ट्रांसफर की वजह से मुंबई चले जाने वाले थे. अब 2 कर्मचारी भी रखे गए थे, वे दूर शहर से आए थे, इसलिए इन के भी रहने का इंतजाम इसी मकान में किया जाने वाला था ताकि पैसे की बचत हो जाए सब की.

अब विदेश जाने की आइटनरी भी बनने लगी थी, किसकिस जगह के टूर पैकेज बन सकते हैं सब फाइनल करने के बाद शाहाना ने इस कंपनी को अब प्राइवेट लिमिटेड बनाने के प्रोसैस के लिए शुभम पर जोर डालना शुरू किया.

विदेशी टूर से ही वास्तव में अच्छा रोजगार हो सकता था लेकिन इस के लिए कंपनी का प्राइवेट लिमिटेड होना और पार्टनरशिप डील स्पष्ट होनी जरूरी थी.

खाता खुला और शाहाना के पैरों तले की जमीन टूट धंस गई. इसी वजह से शुभम ज्यादा कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था और जैसेतैसे शाहाना को काम में व्यस्त किए रहता.

शाहाना का माथा गरम हुआ और पहली बार वह चीख पड़ी. इस समय पूरे परिवार के लोग शुभम के मामा के घर गए थे क्योंकि अगले हफ्ते वे लोग मुंबई शिफ्ट हो रहे थे.

पूरी ‘लैट्स लिव’ कंपनी शुभम के नाम पर रजिस्टर थी. शाहाना का कहीं नामोनिशान नहीं था. बात खुली तो शाहाना को पता चला कि शुभम के पिता ने जब रजिस्ट्री के पैसे दिए तो जिस शाहाना ने पूरी कंपनी का आइडिया दिया और खुद इतनी मेहनत से अकेले एक कंपनी को खड़ा किया उस का ही पूरा अस्तित्व मिटा डाला. पूरी कंपनी सिर्फ शुभम के नाम से रजिस्टर कराने का आइडिया शुभम के पिता का ही था.

शाहाना ने शुभम को पूछा, ‘‘ऐसा नहीं था क्या कि हम दोनों मिल कर 15 हजार में कंपनी रजिस्टर करवा लेते? फिर पुणे में तुम्हारे घर का ही पता क्यों दिया गया और कंपनी सिर्फ तुम्हारे नाम से? क्यों मैं कहां गई? क्या तुम्हारे पिता ने इस कंपनी को ?ाटक लेने के लिए यहां मु?ो नहीं बुलवाया? तुम्हें भी ये सब आसान लगा?’’

‘‘तो तु?ो इतना लालच भी क्यों है. शादी के बाद कौन सा तू बिजनैस करेगी? बच्चे पैदा करेगी, उन्हें संभालेगी, मां के साथ रहेगी, उन की सेवा करेगी. तुझे नाम की क्या जरूरत? पैसे चाहिए तो मुझ से मांगेगी.’’

शाहाना को लगा रेत पर उकेरे उस के सारे सपनों पर किसी ने अपने जूते घिस दिए हैं. थोड़ी देर आश्चर्य से शुभम को देखती रही. फिर दर्द से पिघली और जकड़ी हुई आवाज में पूछा, ‘‘यानी जिस पिता की स्वार्थी सोच से भागने के लिए मैं ने इतने दर्द और अपमान सहे, आज मेहनत और बुद्धि से इतनी बड़ी कंपनी खड़ी कर देने के बाद और तुम्हें ये पैसे वाला कैरियर बना देने के बाद तुम्हें अपनी कमाई के जमाए पैसे से 2 लाख की बाइक खरीद देने के बाद, तुम्हें कई महंगे गिफ्ट देने के बाद, तुम्हारे मांबाप का घर भरने के बाद, तुम यह कहोगे कि मैं इस कंपनी की सीईओ नहीं,  तुम्हारी मां की कामवाली हूं.’’

शुभम ने अपने नए 2 कर्मचारियों के सामने शाहाना को कस कर तमाचा जड़ दिया, ‘‘तू ने मेरे मांबाप को कुछ कहा तो तुझे अभी घर से बाहर निकाल दूंगा. चल जा अपने कमरे में, बड़ी आई कंपनी की सीईओ. ऐसा हुआ तो शादी नहीं करूंगा तुझ से.’’

शाहाना को इस व्यवहार का जितना दुख था उस से कहीं ज्यादा उसे शुभम का भरोसा और विश्वास टूट जाने का आश्चर्य था. उसे कभी ऐसा नहीं लगा था कि शुभम दकियानूसी है या उस के सम्मान का खयाल नहीं रखेगा. उस ने तो सोचा था शादी के बाद भी शुभम और शाहाना मिल कर कंपनी चलाएंगे, बाहर कस्टमर ले कर भी साथ जाएंगे और चूंकि इस के मातापिता की उम्र अभी कम है, जिम्मेदारी उतनी नहीं रहेगी, इसलिए उन के पास आनाजाना बनाए रखते हुए भी कुछ साल आसानी से बिजनैस को बढ़ाने में जुटे रह सकेंगे.

शाहाना ने यहां आने के बाद बड़ी खुशी से घर का काम निबटाया, साथ खाना भी बनाया और बिजनैस भी पूरी शिद्दत से संभाला लेकिन बिजनैस में बैठते ही शुभम की मां का ताना और उसी सांचे में ढल कर शुभम का रिएक्शन, शुभम के पिता का हमेशा शाहाना को सीख दे कर कंट्रोल में रखने की कोशिश, यहां तक कि घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी क्योंकि बाहर के लोग अगर देखेंगे और कहीं शादी नहीं हुई तो शुभम को फिर मोटे दहेज के साथ दुलहन मिलना मुश्किल होगा, शाहाना के दिलोदिमाग पर एक बड़ा प्रश्न चिह्न बना रहा था.

बात दोनों के बीच भले ही बंद थी लेकिन मसला इस कंपनी का था. शाहाना ने इस कंपनी में अपना खून डाला था, इतनी जल्दी निकल नहीं सकती थी. शुभम को भी विदेश के टूर से ढेरों पैसे कमाने थे. शाहाना की जिद पर राजी हो कर उस ने खुद और शाहाना के नाम आधेआधे की पार्टनरशिप की नई कंपनी फिर से खोली. इस बार शाहाना ने फिर से मेहनत की और नई कंपनी सामने आई ‘लिवाना’ नाम से. ‘लिवाना प्राइवेट लिमिटेड’ की रजिस्ट्री भी अब शाहाना ने कंपनी के पैसे से दोनों के नाम करवा. अब ‘लिवाना’ की रजिस्टर्ड सीईओ शाहाना थी.

अनुपमा और संतोष मुंबई से अकसर आते रहते और उस वक्त शाहाना पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता. मानसिक, शारीरिक तकलीफों से जुझते हुए भी उसे सारे काम करने पड़ते.

मगर जिंदगी ने सचाई की उंगली जो शाहाना की आंखों में घुसा दी थी, इस से उस का वजूद अब बहुत अलग सा हो गया था. उस में गजब की मल्टी टास्किंग कैपैसिटी बढ़ गई थी. अपने लिए उस ने स्कूटी खरीदी थी और किन्हीं भी अत्याचार के दिनों में वह स्कूटी ले कर निकल पड़ती और सड़क पर घूमती, लेकिन उन के तानों को बैठे नहीं सुनती. बिजनैस का नुकसान होता. शुभम मां को चुप कराता. एक तरह से वे लोग बिजनैस के लिए शाहाना पर निर्भर थे क्योंकि शुभम को टैक्निकल काम नहीं आते थे.

शाहाना ने बाहर से मां को एक रात फोन किया और सारी बातें बताईं. निशा बिलकुल आश्चर्यचकित नहीं हुई. किशोर बच्ची को पिता के रूप में जब एक पुरुष का नेह और केयर मिलती है तब उस के दरदर भटकने की संभावना नहीं रहती. जिस का पिता ही बेटी के अस्तित्व को रौंद रहा हो तो स्वाभाविक था जहां से उसे सहारा मिलने का भाव मिला होगा टूटी, भीगी चिडि़या उस पेड़ के आश्रय में तो जाएगी ही न. अब उस चिडि़या को क्या मालूम कि यह पेड़ भी खून चूसने वाला होगा.

मां ने कहा, ‘‘तू एक मासूम और पवित्र लड़की है, तू दिल सख्त कर के उस नर्क से निकल आ.’’

‘‘ये लोग आने नहीं देंगे इन का बिजनैस अभी पूरी तरह बना नहीं है, इसे बनाने और संभालने का काम मैं ही कर रही हूं.’’

‘‘तू अपनी लाइफ को बचा, बिजनैस फिर बना लेना. अपने बाजुओं के दम पर भरोसा रख. पापा से कहो अपने बिजनैस की बात, लालची हैं तेरे पापा, वे खुद तुम्हें वहां से निकाल लाएंगे. बाद में फिर और बुद्धि निकाली जाएगी.’’

उस दिन शाहाना को पहली बार लगा कि उस की मां कितनी सम?ादार और बड़े दिल की है. मां से लंबी बातचीत के बाद शाहाना ने खुद को तैयार कर लिया कि किश्ती बदली जाए.

वह बिजनैस पर काम कर रही थी. वह लोगों के दुर्व्यवहार और उपेक्षा की शिकार थी, वह घर का सारा काम निबटाती, वह रात तक जग कर क्लाइंट के साथ कंपनी के डिस्प्यूट सुल?ाती, शुभम के साथ कस्टमर के झगड़े के समाधान देती, नए लड़कों और लड़कियों को काम सिखाती, कंपनी के लिए ट्रेनी हायर करती और उन्हें टास्क देती और उस के बाद अपने लिए रास्ता तलाशती कि कैसे इस घर से निकले और जब सोने जाती तब सीने में शुभम से बिछड़ने का दर्द महसूस करते हुए थक कर सो जाती.

काम तो फैल रहा था और कस्टमर ले कर वे उन की कंपनी के जरीए जापान, थाईलैंड, मलयेशिया, बाली, वियतनाम घूमने जा रहे थे. शाहाना अपनी तरफ से शुभम को पाने के लिए कभीकभी दिलोजान से कोशिश भी करती लेकिन शुभम अब लगातार अपनी मां के कौंटैक्ट में रहता, हर पल उस की मां की इंस्ट्रक्शन चलती और शुभम का उसी तरह व्यवहार दिखता.

विदेशी भूमि पर भी शुभम ने शाहाना से अपनापन नहीं दिखाया, अकेले कई बार मुसीबत में छोड़ा और शाहाना ने शुभम को समझने की कोशिश की तो थप्पड़ भी जड़ा.

इधर शुभम की मां ने अब शाहाना को यह कहना शुरू कर दिया था, ‘‘बेटे की शादी हम तुम्हारे पिता के बिना नहीं करेंगे. हमारे में दमदार दहेज के बिना शादी नहीं होती. समाज में इज्जत के लिए हम उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को दहेज लेना ही पड़ता है.’’

उन्हें दहेज में कम से कम बीस लाख की गाड़ी और डैस्टिनेशन वैडिंग के साथसाथ घर भर की सामान, नए खरीदे फ्लैट का इंटीरियर, सोने के गहने, चांदी के बरतन, घर वालों को महंगे गिफ्ट और कैश इतना देना होगा जिस से वे अपनी बेटी की शादी भी निबटा लें.

शाहाना के पिता की आर्थिक स्थिति भी सामान्य थी और वह पिता जो बेटी पर एक दूध के पैसे के भी सौ हिसाब मांगता था, वह बेटी के लिए क्या खड़ा होता. आपसी समझ वाली बात ही नहीं थी यहां.

और शुभम चुप था, ‘‘मां के आगे मैं कुछ नहीं कहूंगा. मै एक आज्ञाकारी पुत्र हूं.’’

शाहाना शुभम को जितना पहचान रही थी वह खुद की पसंद पर नफरत करने लगी थी. शुभम के पास रीढ़ की हड्डी ही नहीं थी. एक तो दहेज और वो भी प्रेम में. रुपयों के लालच में वह मां के अन्याय को आज्ञा कह कर हाथ ?ाड़ रहा था.

शाहाना हार गई थी अपने प्रेम में. उस ने अचानक ठान लिया कि यह रिश्ता अकेले के वश की बात नहीं है. शादी के बाद इस से भी बुरा होगा. इस से अच्छा वह निकल ही आए इस रिश्ते से, भले ही अंदर घाव कितना भी गहरा हो जाए. उस ने इंडिया वापस आने के बाद अपने पापा को फोन किया और मां के कहेअनुसार बात की.

पापा सुदेश को जब मालूम हुआ कि बेटी किसी बड़ी टूर ट्रैवल कंपनी की सीईओ है और अगर कंपनी किसी तरह वह यहां शिफ्ट कर लेती है तो शुभम को हटा कर वह खुद कंपनी की आधी पार्टनरशिप रख लेगा. इस से एक तो वह नौकरी छोड़ देगा और ढेरों पैसे बेटी के मेहनत पर ही पा जाएगा, दूसरे बेटी घर पर रहेगी तो पूरी तरह उस के कब्जे में. कई लोगों में दूसरों को कंट्रोल में रखने का एक जनून होता है, हो सकता है यह एक मानसिक बीमारी हो.

शाहाना ने अभी पापा से कुछ और नहीं कहा सिवा इस के कि बिजनैस कर के पैसा कमाने के लिए वह इन लोगों के पास आई थी लेकिन ये लोग सारे पैसे लूट लेना चाहते हैं और अब वह अपने पिता के पास आना चाहती है.

सुदेश को लगा बेटी और उस के बिजनैस को हाथ करना आसान होगा, क्योंकि वह बहुत सीधी है. अत: वह पुणे आया और काफी बहसबाजी के बाद सुदेश के साथ शाहाना अपने घर की ओर रवाना हुई पर रवाना हुई दिल पर बहुत सारे चुभे हुए कांटे ले कर. दर्द की इंतहा थी. कालेज के दिनों का शुभम बुरी तरह याद आ रहा था.

आज शुभम की वजह से ही शुभम को खो दिया उस ने और इस नासूर से रिसते खून के दर्द को शुभम देख ही नहीं पाया. वह उस के लिए बस पैसे बनाने और घर के काम करने की एक मशीन हो कर रह गई थी. जहां प्यार और सम्मान न हो, कितना ही दुख क्यों न हो, उस रिश्ते से निकल आना ही बेहतर है.

घर आ कर शाहाना को इतने बड़े झटके से उबरने का मौका ही नहीं दिया गया. उस के शोक उस के दिल में लगातार घाव कुरेद रहे थे और वह पिता को अलग झेल रही थी. ‘लिवाना’ का काम उसे करना पड़ रहा था क्योंकि क्लाइंट आ रहे थे, उन्हें फेंका नहीं जा सकता था. उन के सामने शाहाना की साख की भी बात थी. मगर वह धीरेधीरे सब सोच भी रही थी कि इस कंपनी से कैसे निकले या अपने लिए कोई नई कंपनी खोले लेकिन इस के पिता उसे दिन रात इस कंपनी में पार्टनरशिप देने या जल्दी नई कंपनी खोलने के लिए इतना ज्यादा विवश करने लगे कि वह फिर से खुद को सिलबट्टे में पिसा हुआ महसूस करने लगी.

शाहाना की दिक्कतों को समझे बिना सुदेश अपने लिए पीछे ही पड़ गया. शाहाना की रात की नींद उड़ गई. शुभम भी फोन कर के परेशान करने लगा. सिर्फ पैसे और पैसे, पिता हो या प्यार सभी दमड़ी के लिए मक्खी की तरह उस की चमड़ी खींचते चले जा रहे थे. पिता दिनरात उसे धमकाता, शुभम दिनरात पैसे मांगता क्योंकि कंपनी के अकाउंट का होल्ड शाहाना के पास था और शुभम और उस के मां बाप कंपनी खाली करने में लगे थे.

शाहाना ने तय किया, ‘‘बस अब और नहीं. निकाल फेंकना है जिंदगी से इन स्वार्थी कीड़ों को. उस ने मां से अपनी मंशा बताई और मां ने उसे गले लगा कर आशीष दिया.

शाहाना अब एक बड़े शहर में आ गई है. किराए पर अपना फ्लैट लिया है, खुद की मेहनत और तपस्या के फल ‘लिवाना’ कंपनी से खुद को अलग कर लिया है, साथ ही दिल लोहे का कर लिया है.

एक नई कंपनी के साथ फिर से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की है शाहाना ने. भले ही उस ने दर्द देने वाले बहुत सारे रिश्तों को खो दिया है लेकिन बदले में खुद को पाया है. इस बार खुद के प्यार में है वह. खुद से कहते हुए कि चलो जिया जाए.

Hindi Fiction Stories : बनते बिगड़ते रिश्ते – क्या हुआ था रमेश के साथ

Hindi Fiction Stories : उन दिनों रमेश बहुत ज्यादा माली तंगी से गुजर रहा था. उसे कारोबार में बहुत ज्यादा घाटा हुआ था. मकान, दुकान, गाड़ी, पत्नी के गहने सब बिकने के बाद भी बाजार की लाखों रुपए की देनदारियां थीं. आएदिन लेनदार घर आ कर बेइज्जत करते, धमकियां देते और घर का जो भी सामान हाथ लगता, उठा कर ले जाते.

रमेश ने भी अनेक लोगों को उधार सामान दिया था और बदले में उन्होंने जो चैक दिए, वे बाउंस हो गए. वह उन के यहां चक्कर लगातेलगाते थक गया, मगर किसी ने भी न तो सामान लौटाया और न ही पैसे दिए.

थकहार कर रमेश ने उन लोगों पर केस कर दिए, मगर केस कछुए की चाल से चलते रहे और उस की हालत बद से बदतर होती चली गई.

जब दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया, तो रमेश को अपने पुराने दोस्तों की याद आई. बच्चों की गुल्लक तोड़ कर किराए का इंतजाम किया. कुछ पैसे पत्नी कहीं से ले आई और वह अपने शहर की ओर चल दिया.

पृथ्वी रमेश का सब से अच्छा दोस्त था. रमेश को पूरी उम्मीद थी कि वह उस की मदद जरूर करेगा.

अपने शहर बीकानेर आ कर रमेश सीधा अपनी मौसी के घर चला गया. वहां से नहाधो कर व खाना खा कर वह पृथ्वी के घर की ओर चल दिया.

शनिवार का दिन था. रमेश को पृथ्वी के घर पर मिलने की पूरी उम्मीद थी. वह मिला भी और इतना खुश हुआ, जैसे न जाने कितने सालों बाद मिले हों. इस के बाद वे पूरे दिन साथ रहे. रमेश पृथ्वी से पैसे के बारे में बात करना चाहता था, मगर झिझक की वजह से कह नहीं पा रहा था.

वे एक रैस्टोरैंट में बैठ गए. रमेश ने हिम्मत जुटाई और बोला, ‘‘यार पृथ्वी, एक बात कहनी थी.’’

‘‘हांहां, बोल न,’’ पृथ्वी ने कहा.

इस के बाद रमेश ने उसे अपनी सारी कहानी सुनाई. पृथ्वी गंभीर हो गया और बोला, ‘‘तेरी हालत तो खराब ही है. तू बता, मुझ से क्या चाहता है?’’

‘‘यार, वैसे तो मुझे लाखों रुपए की जरूरत है, मगर तू भी सरकारी नौकरी करता है, इसलिए फिलहाल अगर तू मुझे 3 हजार रुपए भी उधार दे देगा, तो मैं घर में राशन डलवा लूंगा.’’

‘‘कोई बात नहीं. सुबह ले लेना.’’

‘‘तो फिर मैं कितने बजे फोन करूं?’’

‘‘तू मत करना, मैं खुद ही कर लूंगा.’’

रमेश के सिर से एक बड़ा बोझ सा उतर गया था. उस ने चैन की सांस ली. इस के बाद उन्होंने काफी देर तक बातचीत की और बाद में वह रमेश को उस की मौसी के घर तक अपनी मोटरसाइकिल पर छोड़ गया.

रमेश ने पृथ्वी को बताया कि उस की ट्रेन दोपहर 2 बजे जाएगी. उस ने रमेश को भरोसा दिलाया कि वह सुबह ही 3 हजार रुपए पहुंचा देगा.

रमेश ऐसी गहरी नींद सोया कि आंखें 9 बजे ही खुलीं. नहाधो कर तैयार होने तक साढ़े 10 बज गए. पृथ्वी का फोन अभी तक नहीं आया था.

रमेश ने फोन किया, तो पृथ्वी का मोबाइल स्विच औफ ही मिला.

रमेश की ट्रेन आई और उस की आंखों के सामने से चली भी गई. उस का मन बुझ सा गया था. उस ने कोशिश करना छोड़ दिया. उस की सूरत ऐसी लग रही थी, जैसे किसी ने गालों पर खूब चांटे मारे हों. उस की आंखों में आंसू तो नहीं थे, मगर एक सूनापन उन में आ कर जम सा गया था. वह काफी देर तक प्लेटफार्म के एक बैंच पर बैठा रहा.

‘‘अरे, रमेश? तू रमेश ही है न?’’

रमेश ने आंखें उठा कर देखा. वह सत्यनारायण था. उस का एक पुराना दोस्त. वह एक गरीब घर से था और रमेश ने कभी भी उसे अहमियत नहीं दी थी.

‘‘हां भाई, मैं रमेश ही हूं,’’ उस ने बेमन से कहा.

‘‘रमेश, मुझे पहचाना तू ने? मैं सत्यनारायण. तुम्हारा दोस्त सत्तू…’’

‘‘क्या हालचाल है सत्तू?’’ रमेश थकीथकी सी आवाज में बोला.

‘‘मैं तो ठीक हूं, मगर तू ने यह क्या हाल बना रखा है? दाढ़ी बढ़ी हुई है और कितना दुबला हो गया है. चल, बाहर चल कर चाय पीते हैं.’’

रमेश की इच्छा तो नहीं थी, मगर सत्यनारायण का जोश देख कर वह उस के साथ हो लिया. वे एक रैस्टोरैंट में आ बैठे और चाय पीने लगे.

‘‘और सुना रमेश, कैसे हालचाल हैं?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

‘‘हालचाल क्या होंगे? जिंदा बैठा हूं न तेरे सामने,’’ रमेश ने बेरुखी से कहा.

यह सुन कर सत्यनारायण गंभीर हो गया, ‘‘बात क्या है रमेश? मुझे बताएगा?’’

‘‘क्या बताऊं? यह बताऊं कि वहां मेरे बच्चे भूखे बैठे हैं और सोच रहे हैं कि पापा आएंगे, तो घर में राशन आएगा. पापा आएंगे, तो वे फिर से स्कूल जाएंगे. पापा आएंगे, तो नए कपड़े सिला देंगे. क्या बताऊं तुझे?’’

सत्यनारायण हक्काबक्का सा रमेश का चेहरा देख रहा था.

‘‘मैं तुझ से कुछ नहीं पूछूंगा रमेश. कितने पैसों की जरूरत है तुझे?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

रमेश ने सत्यनारायण को ऊपर से नीचे तक देखा. साधारण से कपड़े, साधारण सी चप्पलें, यह उस की क्या मदद करेगा?

‘‘2 लाख रुपए चाहिए, क्या तू देगा मुझे?’’ रमेश ने कहा.

‘‘रमेश, मैं ने अपना सारा पैसा कारोबार में लगा रखा है. अगर तू मुझे कुछ दिन पहले कहता, तो मैं तुझे 2 लाख रुपए भी दे देता. यह बता कि फिलहाल तेरा कितने पैसों में काम चल जाएगा?’’ सत्यनारायण ने पूछा.

‘‘3 हजार रुपए में.’’

‘‘तू 10 मिनट यहां बैठ. मैं अभी आया,’’ कह कर सत्यनारायण वहां से चला गया.

रमेश को यकीन नहीं था कि सत्यनारायण लौट कर आएगा. अब तो लगता है कि चाय के पैसे भी मुझे ही देने पड़ेंगे.

इसी उधेड़बुन में 10 मिनट निकल गए. रमेश उठ ही रहा था कि उस ने सत्यनारायण को आते देखा.

सत्यनारायण की सांसें तेज चल रही थीं. बैठते ही उस ने जेब में हाथ डाला और 50 के नोटों की एक गड्डी रमेश के सामने रख दी.

‘‘यह ले पैसे…’’

रमेश को यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘मगर, मुझे तो सिर्फ 3 हजार…’’ रमेश मुश्किल से बोला.

‘‘रख ले, तेरे काम आएंगे.’’

‘‘सत्तू, मैं तेरा एहसान कभी नहीं भूलूंगा.’’

‘‘क्या बकवास कर रहा है? दोस्ती में कोई एहसान नहीं होता है.’’

‘‘लेकिन, मैं ये पैसे तुझे 3-4 महीने से पहले नहीं लौटा पाऊंगा.’’

‘‘जब तेरे पास हों, तब लौटा देना. मैं कभी मांगूंगा भी नहीं. तुझ पर मुझे पूरा भरोसा है,’’ सत्यनारायण ने कहा, तो रमेश कुछ बोल नहीं पाया.

‘‘अब मैं निकलता हूं. चाय के पैसे दे कर जा रहा हूं. तुझे 5 बजे वाली ट्रेन मिल जाएगी, तू भी निकल. बच्चे तेरा इंतजार कर रहे होंगे.’’

सत्यनारायण चला गया. रमेश उसे दूर तक जाते देखता रहा. इस वक्त ये 5 हजार रुपए उस के लिए लाखों रुपए के बराबर थे. वह जिस इनसान को हमेशा छोटा समझता रहा, आज वही उस के काम आया.

रमेश वापस अपने घर लौट गया.

2-3 महीने का तो इंतजाम हो गया था. इस के बाद उस ने फिर से काम की तलाश शुरू कर दी.

एक दिन रमेश को कपड़े की दुकान पर सेल्समैन का काम मिल गया. तनख्वाह कम थी, मगर जीने के लिए काफी थी.

इस के बाद समय अचानक बदला. 3 मुकदमों का फैसला रमेश के हक में गया. जेल जाने से बचने के लिए लोगों ने उस की रकम वापस कर दी. कुछ दूसरे लोग डर की वजह से फैसला होने से पहले ही पैसे दे गए. 6 महीने में ही पहले जैसे अच्छे दिन आ गए.

रमेश ने फिर से कारोबार शुरू कर दिया. इस वादे के साथ कि पहले जैसी गलतियां नहीं दोहराएगा. रमेश ने सत्यनारायण के पैसे भी लौटा दिए. उस ने ब्याज देना चाहा, तो सत्यनारायण ने साफ मना कर दिया.

इन सब बातों को आज 10 साल से भी ज्यादा हो गए हैं. रमेश कारोबार के सिलसिले में अपने शहर जाता रहता है. किसी शादी या पार्टी में पृथ्वी से भी मुलाकात हो ही जाती है. पूरे समय वह अपने नए मकान या नई गाड़ी के बारे में ही बताता रहता है और रमेश सिर्फ मुसकराता रहता है.

रमेश का पूरा समय तो अब सिर्फ सत्यनारायण के साथ ही गुजरता है. वह जितने दिन वहां रहता है, उसी के घर में ही रहता है.

रमेश ने बहुत बुरा वक्त गुजारा. ये बुरे दिन हमें बहुतकुछ सिखा भी जाते हैं. हमारी आंखों पर जमी भरम की धुंध मिट जाती है और हम सबकुछ साफसाफ देखने लगते हैं.

लेखक- महेंद्र तिवारी

Hindi Kahaniyan : मैं झूठ नहीं बोलती – कितनी सही थी मां की सीख

Hindi Kahaniyan : जब से होश संभाला, यही शिक्षा मिली कि सदैव सच बोलो. हमारी बुद्धि में यह बात स्थायी रूप से बैठ जाए इसलिए मास्टरजी अकसर ही  उस बालक की कहानी सुनाते, जो हर रोज झूठमूठ का भेडि़या आया भेडि़या आया चिल्ला कर मजमा लगा लेता और एक दिन जब सचमुच भेडि़या आ गया तो अकेला खड़ा रह गया.

मां डराने के लिए ‘झूठ बोले कौआ काटे’ की लोकोक्ति का सहारा लेतीं और उपदेशक लोग हर उपदेश के अंत में नारा लगवाते ‘सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुंह काला.’ भेडि़ये से तो खैर मुझे भी बहुत डर लगता है बाकी दोनों स्थितियां भी अप्रिय और भयावह थीं. विकल्प एक ही बचा था कि झूठ बोला ही न जाए.

बचपन बीता. थोड़ी व्यावहारिकता आने लगी तो मां और मास्टरजी की नसीहतें धुंधलाने लगीं. दुनिया जहान का सामना करना पड़ा तो महसूस हुआ कि आज के युग में सत्य बोलना कितना कठिन काम है और समझदार बनने लगे हम. आप ही बताओ मेरी कोई सहकर्मी एकदम आधुनिक डे्रस पहन कर आफिस आ गई है, जो न तो उस के डीलडौल के अनुरूप है न ही व्यक्तित्व के. मन तो मेरा जोर मार रहा है यह कहने को कि ‘कितनी फूहड़ लग रही हो तुम.’ चुप भी नहीं रह सकती क्योंकि सामने खड़ी वह मुसकरा कर पूछे जा रही है, ‘‘कैसी लग रही हूं मैं?’’

‘अब कहो, सच बोल दूं क्या?’

विडंबना ही तो है कि सभ्यता के साथसाथ झूठ बोलने की जरूरत बढ़ती ही गई है. जब हम शिष्टाचार की बात करते हैं तो अनेक बार आवश्यक हो जाता है कि मन की बात छिपाई जाए. आप चाह कर भी सत्य नहीं बोलते. बोल ही नहीं पाते यही शिष्टता का तकाजा है.

आप किसी के घर आमंत्रित हैं. गृहिणी ने प्रेम से आप के लिए पकवान बनाए हैं. केक खा कर आप ने सोचा शायद मीठी रोटी बनाई है. बस, शेप फर्क कर दी है और लड्डू ऐसे कि हथौड़े की जरूरत. खाना मुश्किल लग रहा है पर आप खा रहे हैं और खाते हुए मुसकरा भी रहे हैं. जब गृहिणी मनुहार से दोबारा परोसना चाहती है तो आप सीधे ही झूठ पर उतर आते हैं.

‘‘बहुत स्वादिष्ठ बना है सबकुछ, पर पेट खराब होने के कारण अधिक नहीं खा पा रहे हैं.’’

मतलब यह कि वह झूठ भी सच मान लिया जाए, जो किसी का दिल तोड़ने से बचा ले.

‘शारीरिक भाषा झूठ नहीं बोलती,’ ऐसा हमारे मनोवैज्ञानिक कहते हैं. मुख से चाहे आप झूठ बोल भी रहे हों आप की आवाज, हावभाव सत्य उजागर कर ही देते हैं. समझाने के लिए वह यों उदाहरण देते हैं, ‘बच्चे जब झूठ बोलते हैं तो अपना एक हाथ मुख पर धर लेते हैं. बड़े होने पर पूरा हाथ नहीं तो एक उंगली मुख या नाक पर रखने लगते हैं अथवा अपना हाथ एक बार मुंह पर फिरा अवश्य लेते हैं,’ ऐसा सोचते हैं ये मनोवैज्ञानिक लोग. पर आखिर अभिनय भी तो कोई चीज है और हमारे फिल्मी कलाकार इसी अभिनय के बल पर न सिर्फ चिकनीचुपड़ी खाते हैं हजारों दिलों पर राज भी करते हैं.

वैसे एक अंदर की बात बताऊं तो यह बात भी झूठ ही है, क्योंकि अपनी जीरो फिगर बनाए रखने के चक्कर में प्राय: ही तो भूखे पेट रहते हैं बेचारे. बड़ा सत्य तो यह है कि सभ्य होने के साथसाथ हम सब थोड़ाबहुत अभिनय सीख ही गए हैं. कुछ लोग तो इस कला में माहिर होते हैं, वे इतनी कुशलता से झूठ बोल जाते हैं कि बड़ेबड़े धोखा खा जाएं. मतलब यह कि आप जितने कुशल अभिनेता होंगे, आप का झूठ चलने की उतनी अच्छी संभावना है और यदि आप को अभिनय करना नहीं आता तो एक सरल उपाय है. अगली बार जब झूठ बोलने की जरूरत पड़े तो अपने एक हाथ को गोदी में रख दूसरे हाथ से कस कर पकड़े रखिए आप का झूठ चल जाएगा.

हमारे राजनेता तो अभिनेताओं से भी अधिक पारंगत हैं झूठ बोलने का अभिनय करने में. जब वह किसी विपदाग्रस्त की हमदर्दी में घडि़याली आंसू बहा रहे होते हैं, सहायता का वचन दे रहे होते हैं तो दरअसल, वह मन ही मन यह हिसाब लगा रहे होते हैं कि इस में मेरा कितना मुनाफा होगा. वोटों की गिनती में और सहायता कोश में से भी. इन नेताओं से हम अदना जन तो क्या अपने को अभिनय सम्राट मानने वाले फिल्मी कलाकार भी बहुत कुछ सीख सकते हैं.

विशेषज्ञों ने एक राज की बात और भी बताई है. वह कहते हैं कि सौंदर्य आकर्षित तो करता ही है, सुंदर लोगों का झूठ भी आसानी से चल जाता है. अर्थात सुंदर होने का यह अतिरिक्त लाभ है. मतलब यह भी हुआ कि यदि आप सुंदर हैं, अभिनय कुशल हैं तो धड़ल्ले से झूठ बोलते रहिए कोई नहीं पकड़ पाएगा. अफसोस सुंदर होना न होना अपने वश की बात नहीं.

गांधीजी के 3 बंदर याद हैं. गलत बोलना, सुनना और देखना नहीं है. अत: अपने हाथों से आंख, कान और मुंह ढके रहते थे पर समय के साथ इन के अर्थ बदल गए हैं. आज का दर्शन यह कहता है कि आप के आसपास कितना जुल्म होता रहे, बलात्कार हो रहा हो अथवा चोट खाया कोई मरने की अवस्था में सड़क पर पड़ा हो, आप अपने आंख, कान बंद रख मस्त रहिए और अपनी राह चलिए. किसी असहाय पर होते अत्याचार को देख आप को अपना मुंह खोलने की जरूरत नहीं.

ऐसा भी नहीं है कि झूठ बोलने की अनिवार्यता सिर्फ हमें ही पड़ती हो. अमेरिका जैसे सुखीसंपन्न देश के लोगों को भी जीने के लिए कम झूठ नहीं बोलना पड़ता. रोजमर्रा की परेशानियों से बचे होने के कारण उन के पास हर फालतू विषय पर रिसर्च करने का समय और साधन हैं. जेम्स पैटरसन ने 2 हजार अमेरिकियों का सर्वे किया तो 91 प्रतिशत लोगों ने झूठ बोलना स्वीकार किया.

फील्डमैन की रिसर्च बताती है कि 62 प्रतिशत व्यक्ति 10 मिनट के भीतर 2 या 3 बार झूठ बोल जाते हैं. उन की खोज यह भी बताती है कि पुरुषों के बजाय स्त्रियां झूठ बोलने में अधिक माहिर होती हैं जबकि पुरुषों का छोटा सा झूठ भी जल्दी पकड़ा जाता है. स्त्रियां लंबाचौड़ा झूठ बहुत सफलता से बोल जाती हैं. हमारे नेता लोग गौर करें और अधिक से अधिक स्त्रियों को अपनी पार्टी में शामिल करें. इस में उन्हीं का लाभ है.

बिना किसी रिसर्च एवं सर्वे के हम जानते हैं कि झूठ 3 तरह का होता है. पहला झूठ वह जो किसी मजबूरीवश बोला जाए. आप की भतीजी का विवाह है और भाई बीमार रहते हैं. अत: सारा बंदोबस्त आप को ही करना है. आप को 15 दिन की छुट्टी तो चाहिए ही. पर जानते हैं कि आप का तंगदिल बौस हर्गिज इतनी छुट्टी नहीं देगा. चाह कर भी आप उसे सत्य नहीं बताते और कोई व्यथाकथा सुना कर छुट्टी मंजूर करवाते हैं.

दूसरा झूठ वह होता है, जो किसी लाभवश बोला जाए. बीच सड़क पर कोई आप को अपने बच्चे के बीमार होने और दवा के भी पैसे न होने की दर्दभरी पर एकदम झूठी दास्तान सुना कर पैसे ऐंठ ले जाता है. साधारण भिखारी को आप रुपयाअठन्नी दे कर चलता करते हैं पर ऐसे भिखारी को आप 100-100 के बड़े नोट पकड़ा देते हैं. यह और बात है कि आप के आगे बढ़ते ही वह दूसरे व्यक्ति को वही दास्तान सुनाने लगता है और शाम तक यों वह छोटामोटा खजाना जमा कर लेता है.

कुछ लोग आदतन भी झूठ बोलते हैं और यही होते हैं झूठ बोलने में माहिर तीसरे किस्म के लोग. इस में न कोई उन की मजबूरी होती है न लाभ. एक हमारी आंटी हैं, उन की बातों का हर वाक्य ‘रब झूठ न बुलवाए’ से शुरू होता है पर पिछले 40 साल में मैं ने तो उन्हें कभी सच बोलते नहीं सुना. सामान्य बच्चों को जैसे शिक्षा दी जाती है कि झूठ बोलना पाप है शायद उन्हें घुट्टी में यही पिलाया गया था कि ‘बच्चे सच कभी मत बोलना.’  बाल सफेद होने को आए वह अभी तक अपने उसी उसूल पर टिकी हुई हैं. रब झूठ न बुलवाए, इस में उन की न तो कोई मजबूरी होती है न ही लाभ.

सदैव सत्य ही बोलूंगा जैसा प्रण ले कर धर्मसंकट में भी पड़ा जा सकता है. एक बार हुआ यों कि एक मशहूर अपराधी की मौत हो गई और परंपरा है कि मृतक की तारीफ में दो शब्द बोले जाएं. यह तो कह नहीं सकते कि चलो, अच्छा हुआ जान छूटी. यहां समस्या और भी घनी थी. उस गांव का ऐसा नियम था कि बिना यह परंपरा निभाए दाह संस्कार नहीं हो सकता. पर कोई आगे बढ़ कर मृतक की तारीफ में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं. अंत में एक वृद्ध सज्जन ने स्थिति संभाली.

‘‘अपने भाई की तुलना में यह व्यक्ति देवता था,’’ उस ने कहा, ‘‘सच भी था. भाई के नाम तो कत्ल और बलात्कार के कई मुकदमे दर्ज थे. अपने भाई से कई गुना बढ़ कर. अब उस की मृत्यु पर क्या कहेंगे यह वृद्ध सज्जन. यह उन की समस्या है पर कभीकभी झूठ को सच की तरह पेश करने के लिए उसे कई घुमावदार गलियों से ले जाना पड़ता है यह हम ने उन से सीखा.

मुश्किल यह है कि हम ने अपने बच्चों को नैतिक पाठ तो पढ़ा दिए पर वैसा माहौल नहीं दे पाए. आज के घोर अनैतिक युग में यदि वे सत्य वचन की ही ठान लेंगे तो जीवन भर संघर्ष ही करते रह जाएंगे. फिल्म ‘सत्यकाम’ देखी थी आप ने? वह भी अब बीते कल की बात लगती है. हमारे नैतिक मूल्य तब से घटे ही हैं सुधरे नहीं. आज के झूठ और भ्रष्टाचार के युग में नैतिक उपदेशों की कितनी प्रासंगिकता है ऐसे में क्या हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना छोड़ दें. संस्कार सब दफन कर डालें? प्रश्न कड़वा जरूर है पर पूछना आवश्यक. बच्चों को वह शिक्षा दें, जो व्यावहारिक हो जिस का निर्वाह किया जा सके. उस से बड़ी शर्त यह कि जिस का हम स्वयं पालन करते हों.

सब से बड़ा झूठ तो यही कहना, सोचना है कि हम झूठ बोलते नहीं. कभी हम शिष्टाचारवश झूठ बोलते हैं तो कभी समाज में बने रहने के लिए. कभी मातहत से काम करवाने के लिए झूठ बोलते हैं तो कभी बौस से छुट्टी मांगने के लिए. सामने वाले का दिल न दुखे इस कारण झूठ का सहारा लेना पड़ता है तो कभी सजा अथवा शर्मिंदगी से बचने के लिए. कभी टैक्स बचाने के लिए, कभी किरायाभाड़ा कम करने के लिए. चमचागीरी तो पूरी ही झूठ पर टिकी है. मतलब कभी हित साधन और कभी मजबूरी से. तो फिर हम सत्य कब बोलते हैं?

शीर्षक तो मैं ने रखा था कि ‘मैं झूठ नहीं बोलती’ पर लगता है गलत हो गया. इस लेख का शीर्षक तो होना चाहिए था,  ‘मैं कभी सत्य नहीं बोलती.’

क्या कहते हैं आप?

Top Hindi Kahaniyan : टौप 10 हिंदी कहानियां

Top  Hindi Kahaniyan : समाज से जुड़ी कुछ नीतियां और कुरीतियां सभी को माननी पड़ती हैं. लेकिन कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो इन नियमों को मानने की बजाय अपना रास्ता खुद बनाने का प्रयास करते हैं. हालांकि इस रास्ते पर उनकी जिंदगी में कई मुश्किलें आती है. लेकिन वह बिना हार माने अपनी जीत हासिल करते हैं. तो इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की Top 10 Story in Hindi. समाज का एक पहलू दिखाती ये कहानियां आपकी लाइफ में गहरी छाप छोड़ेंगी. तो पढ़िए गृहशोभा की Top 10 Story in Hindi.

1. पीला गुलाब: क्यों कांपने लगे उसके हाथ

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एक महीना पहले ही हमारी शादी हुई थी, लेकिन लड़कियों के मामले में इन की ऐसी बातें मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थीं. पर ये थे कि ऐसी बातों से बाज ही नहीं आते.

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2. सीलन-उमा बचपन की सहेली से क्यों अलग हो गई?

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उस ने मेरी ओर देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘जब तक जवान थी, यहां भीड़ हुआ करती थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी.

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3. उस रात का सच : क्या थी असलियत

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महेंद्र को यकीन था कि हरिद्वार थाने में वह ज्यादा दिनों तक थानेदार के पद पर नहीं रहेगा, इसीलिए नोएडा के थाने में तबादला होते ही उस ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन चला आया.

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4. मजा या सजा : कैसे बदल गया बालकिशन

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वह उस रेल से पहली बार बिहार आ रहा था. इंदौर से पटना की यह रेल लाइन बिहार और मध्य प्रदेश को जोड़ती थी. वह मस्ती में दोपहर के 2 बजे चढ़ा. लेकिन 13-14 घंटे के सफर के बाद वह एक हादसे का शिकार हो गया. पूरी रेल को नुकसान पहुंचा था.

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5. जीने की इच्छा : कैसे अरुण ने दिखाया बड़प्पन

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अरुण के पिता किसी प्राइवेट कंपनी में चपरासी थे. अभी कुछ महीने पहले ही वे रिटायर हुए थे. वे कुछ दिनों से बीमार थे. वे किसी तरह 2 बेटियों की शादी कर चुके थे.

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6. चाल : फहीम ने सिखाया हैदर को सबक

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फहीम अपने होंठ काटने लगा. उसे मालूम था कि हैदर की इस धमकी का क्या मतलब है. फहीम हैदर को देख कर ही समझ गया था कि अब यह गड़े मुर्दे उखाड़ने बैठ जाएगा.

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7. नपुंसक : नौकरानी के जाल में कैसे फंस गए रंजीत

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बड़े बिजनैसमैन रंजीत मल्होत्रा सभ्य शरीफ और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, लेकिन उन की नौकरानी ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि वह बुरी तरह फंस गए. उस जाल में वह कैसे फंसे और कैसे निकले

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8. झूठ से सुकून: शशिकांतजी ने कौनसा झूठ बोला था

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वैलफेयर सोसायटी के आदर्श नागरिक बनने के चक्कर में शशिकांतजी की जो किरकिरी हुई वह तो उन का ही दिल जानता था और इसी कारण उन्होंने जिंदगी का पहला झूठ बोला था.

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9. बदबू : कमली की अनोखी कहानी

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कमली अधनींदी सी लेटी हुई थी. आहट सुन कर वह उठ बैठी. देखा कि किसना ने कुछ नोट निकाले और उन्हें अलमारी में रखने लगा. कमली की आंखें खुशी से चमक उठीं.

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10. और सीता जीत गई

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वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.

Interesting Hindi Stories : पुष्पा – कहां चली गई थी वह

Interesting Hindi Stories : उस बड़ी सी कालोनी के 10 घरों में पार्टटाइम काम कर रही थी. कब से, यह बात कम ही लोग जानते थे. कितने ही घरों में नए मालिक आ चुके थे, पर हर नए मालिक ने पुष्पा को अपना लिया था. 240 सी वाली यादव मेम साहब ने नई बहू को बताया था, ‘‘जब मैं ने अपनी ससुराल में पहला कदम रखा था, तब पुष्पा ने ही सब से पहले मेरे लंबे घूंघट में अपना मुंह घुसा कर मेरी सास को कहा था, ‘अरे अम्मां, तुम बहू लाई हो या चांद का टुकड़ा… मैं वारी जाऊं, हाथ लगाते ही मैली हो जाएगी.’ 240 सी वाली मेम साहब एक बडे़ दफ्तर में काम करती थीं और उसी दिन से पुष्पा की चहेती बन गई थीं. पुष्पा यादव मेम साहब की सास को ‘अम्मां’ कह कर ही बुलाती थी. अम्मां ने उसे मां की तरह ही पाला था और उसे अपने बच्चों सा ही प्यार दिया था. किसी भी नए घर में रखने से पहले पूरी जानकारी अम्मां लेती थीं और फिर यह काम 240 सी वाली यादव मेम साहब ने करना शुरू कर दिया था. 20 सालों में पुष्पा 19 साल से 39 की हो गई,

पर अभी भी उस में फुरती भरी थी. पुष्पा का बाप अम्मां के ही गांव का चौकीदार था. पुष्पा के जन्म के फौरन बाद उस की मां चल बसी थी. लेकिन बाद में बाप ने कभी उसे मां की कमी महसूस नहीं होने दी थी. दिन बीतते देर नहीं लगती. एक के बाद एक 14 साल पार कर के बरसाती नदी सी अल्हड़ पुष्पा बचपन को पीछे छोड़ जवानी की चौखट पर आ पहुंची थी. उन्हीं दिनों बाप ने पढ़ाई छुड़वा कर 17 साल की उम्र में ब्याह करा दिया, लेकिन जिस शान से वह ससुराल पहुंची, उसी शान से 10 दिन में वापस भी आ गई. पति ने एक सौत जो बिठा रखी थी पड़ोस में. बाप के पास रह कर मजूरी करना पुष्पा को मंजूर था, लेकिन सौत की चाकरी करना उस के स्वभाव में नहीं था. उस घर में दूसरे दर्जे की पत्नी बन कर रहना उसे कतई पसंद न आया. चौकीदार बाप ने उसे इस कालोनी में नौकरी दिला दी थी.

पुष्पा ने भी खुशीखुशी सारे घरों को संभाल लिया था. सर्वैंट क्वार्टर में उस का पक्का ठिकाना हो गया था. दुख की हलकी सी छाया भी उस के चेहरे पर दिखाई न दी थी. 2 साल बाद पुष्पा का बाप भी चल बसा. फिर धीरेधीरे वह इस कालोनी के लोगों में ही शामिल होती चली गई. किसी ने भी उसे कभी कुछ कहा हो, याद नहीं. पुष्पा ने हर घर का काम मुस्तैदी से किया और शिकायत का सवाल ही नहीं था. 5-6 घरों की चाबियां उसी के पास रहती थीं. बच्चे कब स्कूल से आएंगे, कौन सी बस से आएंगे, खाने में क्या खाएंगे, उसे मालूम था. ऐसा लगता था कि वह कालोनी की कामकाजी औरतों की जान है. घर के भंडारे से ले कर बाहर तक के सारे कामकाज का जिम्मा पुष्पा के ही सिर पर था. शादीब्याह के मौकों पर रिश्ते की औरतें आतीं और कमरों का एकएक कोना थाम कर अपनाअपना सामान सजा कर बैठ जातीं. लेकिन सब को समय पर चाय मिलती और समय पर खाना. ऐसे में पुष्पा को जरा भी फुरसत नहीं मिलती थी.

हर मेमसाहब और मेहमानों के काम में हाथ बंटाती वह चकरघिन्नी की तरह घूमती हुई सारा घर संभालती थी. पुष्पा को इस कालोनी से न जाने कैसा मोह सा हो गया था कि वह कहीं और जाने को तैयार न होती. सब बच्चे उसी की गोद में पले थे. अकसर सभी की छोटीमोटी जरूरतें पुष्पा ही पूरी करती थी. न जाने कितनी बार उस ने बच्चों को अपनीअपनी मांओं से पिटने से भी बचाया था. यादव मेम साहब अकसर कहतीं, ‘‘तुम इन सब को सिर पर चढ़ा कर बिगाड़ ही दोगी पुष्पा.’’ ‘‘अरे नहीं मेम साहब, मैं क्या इन का भलाबुरा नहीं समझती,’’ कहते हुए वह बच्चों को अपनी बांहों में समेट लेती.

धीरेधीरे बच्चों के ब्याह होने लगे. घरों में नए लोग आने लगे. ऐसे में एक दिन 242 सी वाली मेम साहब ने पूछ ही लिया, ‘‘अरे पुष्पा, सब का ब्याह हुआ जा रहा है, तू कब ब्याह करेगी?’’ ‘‘मैं तो ब्याही हूं मेम साहब,’’ वह लजा गई. ‘‘अरे, वह भी कोई ब्याह था तेरा, न जाते देर, न आते देर. अब तक तो तुझे दूसरा ब्याह कर लेना चाहिए था,’’ 250 सी वाली ने भी उसे समझाते हुए कहा ही था कि पुष्पा अपने कान पकड़ते हुए बोली, ‘‘यह क्या कहती हो मेम साहब, एक मरद के रहते दूसरा कैसे कर लूं? अरे, उस ने तो मुझे भगाया नहीं, मैं खुद ही चली आई थी.’’ लेकिन एक दिन न जाने कहां से पता पूछतेपूछते पुष्पा का मर्द आ ही टपका. पुष्पा सोसाइटी की सीढि़यां धो रही थी. दरवाजा खुलने के साथ ही उस ने घूम कर देखा. दूसरे ही पल साफ पहचान गई अपने मर्द को. इतने सालों बाद भी उस में ज्यादा फर्क नहीं आया था. बालों में हलकी सफेदी जरूर आ गई थी, पर शरीर वैसा ही दुबलापतला था.

लेकिन वह पुष्पा को नहीं पहचान पाया. उस को एकटक अपनी ओर देखता पा कर उस ने थोड़ी हिम्मत से कहा, ‘‘मैं… दिनेश हूं. पुष्पा क्या यहीं…?’’ लेकिन दूसरे ही पल उसे लगा कि शायद यही तो पुष्पा है, ‘‘कहीं तुम ही तो…?’’ पुष्पा ने धीरे से सिर झुका लिया. उस की चुप्पी से उस का साहस बढ़ा, ‘‘मैं तुम्हें लेने आया हूं पुष्पा.’’ पुष्पा सिर झुकाए चुपचाप खड़ी रही. ‘‘मैं बिलकुल अकेला रह गया हूं. तुम्हारी बहुत याद आती?है. देखो, इनकार मत करना.’’ पुष्पा हैरानी से अपने मर्द को देखती रह गई. इतने सालों बाद आज किस हक से वह उसे लेने आया है. पुष्पा के चेहरे पर कई रंग आए और गए. उस ने कुछ सख्त लहजे में कहा, ‘‘क्यों…? तुम्हारी ‘वह’ कहां गई?’’ ‘‘कौन… लक्ष्मी…? वह तो बहुत समय पहले ही मुझे छोड़ कर चली गई थी. लालची थी न…

जब तक मेरे पास पैसे रहे, वह भी रही. पैसे खत्म हो गए, तो वह भी चली गई.’’ कुछ ठहर कर दिनेश ने फिर गिड़गिड़ा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. जो चाहे सजा दे लो, लेकिन तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा. देखो, इनकार मत करना,’’ उस की आंखों से आंसू बह चले थे. पुष्पा का दिल भर आया. औरत का दिल जो ठहरा. जरा सा किसी के आंसू देखे, झट पिघल गया. उस ने गौर से उसे देखा, ‘कैसा तो हो आया है इस का चेहरा. ब्याह के समय कैसी मजबूत और सुंदर देह थी इस की. बहुत कमजोर भी लग रहा है,’ आंसुओं को आंचल के कोर से पोंछ कर उस ने अपने पति दिनेश को बरामदे में रखे स्टूल पर बैठाया और खुद एक फ्लैट में चली गई. मेम साहब के पास जा कर वह धीरे से बोली, ‘‘मेम साहब, मेरा मर्द आया है.’’ ‘‘क्या…?’’ सुन कर वे चौंक गईं. पुष्पा पागल तो नहीं हो गई.

उन्होंने एक बार फिर पूछा, ‘‘कौन आया है?’’ ‘‘वह बाहर बैठा है. कह रहा है, मुझे लेने आया है,’’ पुष्पा धीरे से बाहर की ओर मुड़ गई. अब तो आगेआगे पुष्पा और पीछे से एकएक कर के सब फ्लैटों की मेम साहबें अपने सब काम छोड़ कर एक लाइन से बरामदे में आ कर खड़ी हो गईं. सब को देखते ही वह घबरा कर खड़ा हो गया. सब की घूरती निगाहों का सामना करने की हिम्मत शायद उस में नहीं थी. सिर झुका कर वह धीरे से बोला, ‘‘मैं दिनेश हूं. पुष्पा को लेने आया हूं.’’ ‘‘क्यों…?’’ अपने गुस्से को दबाते हुए एक मेम साहब बोलीं, ‘‘इतने बरस कहां था, जब पुष्पा…’’ तब तक पुष्पा ने आगे आ कर भरे गले से उन्हें वहीं रोक दिया, ‘‘कुछ न कहो मेम साहब इसे. यह अकेला है. इसे मेरी जरूरत है. देर से ही सही, मेरी सुध तो आई इसे.’’ अब इस के आगे कोई क्या बोलता. पुष्पा अंदर जा कर अपना सामान समेटने लगी. अचानक उस के हाथ रुक गए. इस कालोनी को छोड़ते हुए उसे जाने कैसा लग रहा था.

वह सोचने लगी, ‘कितनी मतलबी हूं मैं. अपने सुख के लिए आज इन लोगों का सारा स्नेह, सारा प्रेम मैं कैसे भूल गई. कितनी आसानी से मैं इन लोगों को छोड़ कर जाने को तैयार हो रही हूं,’ उस की आंखों से टपटप गिरते आंसू उस का आंचल भिगोने लगे. अभी वह कुछ सोच ही रही थी कि कई मालकिनें एकसाथ उस के कमरे में जा पहुंचीं. पुष्पा एक मेम साहब के गले लग कर जोर से रो पड़ी, ‘‘मुझे माफ करना, आज मैं सबकुछ भूल गई.’’ ‘‘नहीं पुष्पा, तुम ने उस के साथ जाने का इरादा कर के बहुत अच्छा किया है. अपना मर्द अपना ही होता है. चाहे कितना भी वह भटकता रहे, एक दिन उसे वापस लौटना ही होता?है. जब जागो तभी सवेरा समझो,’’ यादव मेम साहब ने पुष्पा की पीठ थपथपाते हुए कहा.

उस का सामान बाहर पहुंचा दिया गया था. आगे बढ़ कर उस कालोनी के सब लोगों को एकएक कर के नमस्ते करते हुए पुष्पा बोली, ‘‘आप सब खुश रहो.’’ अब तक 240 सी वाली अम्मां भी बाहर आ गई थीं, जो सब से ज्यादा बुजुर्ग थीं. पुष्पा ने सिर झुकाए आंसू भरी आंखों से उन्हें देखा, ‘‘अम्मां,’’ भरे गले से आगे कुछ न बोल सकी. उन्होंने उसे समझाया, ‘‘इतना दुखी क्यों हो रही हो पुष्पा…? तुम खुशीखुशी उस के साथ घर बसाओ, यही हम सब चाहते हैं. अरे, औरत का जीवन ही यही है. औरत मर्द के बिना और मर्द औरत के बिना अधूरा होता है. ‘‘तुम्हारे जाने का दुख हम सब को है, किंतु तुम्हारे इस फैसले से हमें बहुत खुशी हो रही है. हंसतीखेलती जाओ, मगर हमें भूल मत जाना.’’

इतने में सब ने उन दोनों को रुकने के लिए कहा. 15 मिनट में सारी मालकिनें अपनेअपने हाथों में थैले पकड़े आ गईं. हर कोई बढ़चढ़ कर पुष्पा के लिए अच्छी से अच्छी चीज लाया था. 240 सी वाली यादव मेम साहब ने अपने ड्राइवर को कहा, ‘‘गाड़ी की डिग्गी खोलो और सब सामान रखो. यह इन के साथ जाएगा.’’ 242 सी वाली मेम साहब ने 10,000 रुपए पकड़ाए और कहा, ‘‘मेरा नौकर तुम दोनों को ट्रेन में भी बैठा आएगा.’’ दिनेश ने आगे बढ़ कर पुष्पा का हाथ पकड़ा. धीरेधीरे वे दोनों सब की नजरों से दूर होते चले गए. पुष्पा का कमरा आज भी उस कालोनी में खाली है. सब ने वादा लिया?है बच्चों से कि पुष्पा कभी भी आए, कैसी भी हो, उसे कोई रहने से नहीं रोकेगा.

Latest Hindi Stories : सासुजी हों तो हमारी जैसी

Latest Hindi Stories :  पत्नीजी का खुश होना तो लाजिमी था, क्योंकि उन की मम्मीजी का फोन आया था कि वे आ रही हैं. मेरे दुख का कारण यह नहीं था कि मेरी सासुजी आ रही हैं, बल्कि दुख का कारण था कि वे अपनी सोरायसिस बीमारी के इलाज के लिए यहां आ रही हैं. यह चर्मरोग उन की हथेली में पिछले 3 वर्षों से है, जो ढेर सारे इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो पाया.

अचानक किसी सिरफिरे ने हमारी पत्नी को बताया कि पहाड़ी क्षेत्र में एक व्यक्ति देशी दवाइयां देता है, जिस से बरसों पुराने रोग ठीक हो जाते हैं.

परिणामस्वरूप बिना हमारी जानकारी के पत्नीजी ने मम्मीजी को बुलवा लिया था. यदि किसी दवाई से फायदा नहीं होता तो भी घूमनाफिरना तो हो ही जाता. वह  तो जब उन के आने की पक्की सूचना आई तब मालूम हुआ कि वे क्यों आ रही हैं?

यही हमारे दुख का कारण था कि उन्हें ले कर हमें पहाड़ों में उस देशी दवाई वाले को खोजने के लिए जाना होगा, पहाड़ों पर भटकना होगा, जहां हम कभी गए नहीं, वहां जाना होगा. हम औफिस का काम करेंगे या उस नालायक पहाड़ी वैद्य को खोजेंगे. उन के आने की अब पक्की सूचना फैल चुकी थी, इसलिए मैं बहुत परेशान था. लेकिन पत्नी से अपनी क्या व्यथा कहता?

निश्चित दिन पत्नीजी ने बताया कि सुबह मम्मीजी आ रही हैं, जिस के चलते मुझे जल्दी उठना पड़ा और उन्हें लेने स्टेशन जाना पड़ा. कड़कती सर्दी में बाइक चलाते हुए मैं वहां पहुंचा. सासुजी से मिला, उन्होंने बत्तीसी दिखाते हुए मुझे आशीर्वाद दिया.

हम ने उन से बाइक पर बैठने को कहा तो उन्होंने कड़कती सर्दी में बैठने से मना कर दिया. वे टैक्सी से आईं और पूरे 450 रुपए का भुगतान हम ने किया. हम मन ही मन सोच रहे थे कि न जाने कब जाएंगी?

घर पहुंचे तो गरमागरम नाश्ता तैयार था. वैसे सर्दी में हम ही नाश्ता तैयार करते थे. पत्नी को ठंड से एलर्जी थी, लेकिन आज एलर्जी न जाने कहां जा चुकी थी. थोड़ी देर इधरउधर की बातें करने के बाद उन्होंने अपने चर्म रोग को मेरे सामने रखते हुए हथेलियों को आगे बढ़ाया. हाथों में से मवाद निकल रहा था, हथेलियां कटीफटी थीं.

‘‘बहुत तकलीफ है, जैसे ही इस ने बताया मैं तुरंत आ गई.’’

‘‘सच में, मम्मी 100 प्रतिशत आराम मिल जाएगा,’’ बड़े उत्साह से पत्नीजी ने कहा.

दोपहर में हमें एक परचे पर एक पहाड़ी वैद्य झुमरूलाल का पता उन्होंने दिया. मैं ने उस नामपते की खोज की. मालूम हुआ कि एक पहाड़ी गांव है, जहां पैदल यात्रा कर के पहुंचना होगा, क्योंकि सड़क न होने के कारण वहां कोई भी वाहन नहीं जाता. औफिस में औडिट चल रहा था. मैं अपनी व्यथा क्या कहता. मैं ने पत्नी से कहा, ‘‘आज तो रैस्ट कर लो, कल देखते हैं क्या कर सकते हैं.’’

वह और सासुजी आराम करने कमरे में चली गईं. थोड़ी ही देर में अचानक जोर से कुछ टूटने की आवाज आइ. हम तो घबरा गए. देखा तो एक गेंद हमारी खिड़की तोड़ कर टीवी के पास गोलगोल चक्कर लगा रही थी. घर की घंटी बजी, महल्ले के 2-3 बच्चे आ गए. ‘‘अंकलजी, गेंद दे दीजिए.’’

अब उन पर क्या गुस्सा करते. गेंद तो दे दी, लेकिन परदे के पीछे से आग्नेय नेत्रों से सासुजी को देख कर हम समझ गए थे कि वे बहुत नाराज हो गईर् हैं. खैर, पानी में रह कर मगर से क्या बैर करते.

अगले दिन हम ने पत्नीजी को चपरासी के साथ सासुजी को ले कर पहाड़ी वैद्य झुमरूलाल के पास भेज दिया. देररात वे थकी हुई लौटीं, लेकिन खुश थीं कि आखिर वह वैद्य मिल गया था. ढेर सारी जड़ीबूटी, छाल से लदी हुई वे लौटी थीं. इतनी थकी हुई थीं कि कोई भी यात्रा वृत्तांत उन्होंने मुझे नहीं बताया और गहरी नींद में सो गईं. सुबह मेरी नींद खुली तो अजीब सी बदबू घर में आ रही थी.

उठ कर देखने गया तो देखा, मांबेटी दोनों गैस पर एक पतीले में कुछ उबाल रही थीं. उसी की यह बदबू चारों ओर फैल रही थी. मैं ने नाक पर रूमाल रखा, निकल कर जा ही रहा था कि पत्नी ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप आ गए.’’

‘‘क्यों, क्या बात है?’’

‘‘कुछ सूखी लकडि़यां, एक छोटी मटकी और ईंटे ले कर आ जाना.’’

‘‘क्यों?’’ मेरा दिल जोरों से धड़क उठा. ये सब सामान तो आखिरी समय मंगाया जाता है?

पत्नी ने कहा, ‘‘कुछ जड़ों का भस्म तैयार करना है.’’

औफिस जाते समय ये सब फालतू सामान खोजने में एक घंटे का समय लग गया था. अगले दिन रविवार था. हम थोड़ी देर बाद उठे. बिस्तर से उठ कर बाहर जाएं या नहीं, सोच रहे थे कि महल्ले के बच्चों की आवाज कानों में पड़ी, ‘‘भूत, भूत…’’

हम ने सुना तो हम भी घबरा गए. जहां से आवाज आ रही थी, उस दिशा में भागे तो देखा आंगन में काले रंग का भूत खड़ा था? हम ने भी डर कर भूतभूत कहा. तब अचानक उस भूतनी ने कहा, ‘‘दामादजी, ये तो मैं हूं.’’

‘‘वो…वो…भूत…’’

‘‘अरे, बच्चों की गेंद अंदर आ गईर् थी, मैं सोच रही थी क्या करूं? तभी उन्होंने दीवार पर चढ़ कर देखा, मैं भस्म लगा कर धूप ले रही थी. वे भूतभूत चिल्ला उठे, गेंद वह देखो पड़ी है.’’ हम ने गेंद देखी. हम ने गेंद ली और देने को बाहर निकले तो बच्चे दूर खड़े डरेसहमे हुए थे. उन्होंने वहीं से कान पकड़ कर कहा, ‘‘अंकलजी, आज के बाद कभी आप के घर के पास नहीं खेलेंगे,’’ वे सब काफी डरे हुए थे.

हम ने गेंद उन्हें दे दी, वे चले गए. लेकिन बच्चों ने फिर हमारे घर के पास दोबारा खेलने की हिम्मत नहीं दिखाई.

महल्ले में चोरी की वारदातें भी बढ़ गई थीं. पहाड़ी वैद्य ने हाथों पर यानी हथेलियों पर कोई लेप रात को लगाने को दिया था, जो बहुत चिकना, गोंद से भी ज्यादा चिपकने वाला था. वह सुबह गाय के दूध से धोने के बाद ही छूटता था. उस लेप को हथेलियों से निकालने के लिए मजबूरी में गाय के दूध को प्रतिदिन मुझे लेने जाना होता था.

न जाने वे कब जाएंगी? मैं यह मुंह पर तो कह नहीं सकता था, क्यों किसी तरह का विवाद खड़ा करूं?

रात में मैं सो रहा था कि अचानक पड़ोस से शोर आया, ‘चोरचोर,’ हम घबरा कर उठ बैठे. हमें लगा कि बालकनी में कोई जोर से कूदा. हम ने भी घबरा कर चोरचोर चीखना शुरू कर दिया. हमारी आवाज सासुजी के कानों में पहुंची होगी, वे भी जोरों से पत्नी के साथ समवेत स्वर में चीखने लगीं, ‘‘दामादजी, चोर…’’

महल्ले के लोग, जो चोर को पकड़ने के लिए पड़ोसी के घर में इकट्ठा हुए थे, हमारे घर की ओर आ गए, जहां सासुजी चीख रही थीं, ‘‘दामादजी, चोर…’’ हम ने दरवाजा खोला, पूरे महल्ले वालों ने घर को घेर लिया था.

हम ने उन्हें बताया, ‘‘हम जो चीखे थे उस के चलते सासुजी भी चीखचीख कर, ‘दामादजी, चोर’ का शोर बुलंद कर रही हैं.’’

हम अभी समझा ही रहे थे कि पत्नीजी दौड़ती, गिरतीपड़ती आ गईं. हमें देख कर उठीं, ‘‘चोर…चोर…’’

‘‘कहां का चोर?’’ मैं ने उसे सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘कमरे में चोर है?’’

‘‘क्या बात कर रही हो?’’

‘‘हां, सच कह रही हूं?’’

‘‘अंदर क्या कर रहा है?’’

‘‘मम्मी ने पकड़ रखा है,’’ उस ने डरतेसहमते कहा.

हम 2-3 महल्ले वालों के साथ कमरे में दाखिल हुए. वहां का जो नजारा देखा तो हम भौचक्के रह गए. सासुजी के हाथों में चोर था, उस चोर को उस का साथी सासुजी से छुड़वा रहा था. सासुजी उसे छोड़ नहीं रही थीं और बेहोश हो गई थीं. हमें आया देख चोर को छुड़वाने की कोशिश कर रहे चोर के साथी ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर सरैंडर कर दिया. वह जोरों से रोने लगा और कहने लगा, ‘‘सरजी, मेरे साथी को अम्माजी के पंजों से बचा लें.’’

हम ने ध्यान से देखा, सासुजी के दोनों हाथ चोर की छाती से चिपके हुए थे. पहाड़ी वैद्य की दवाई हथेलियों में लगी थी, वे शायद चोर को धक्का मार रही थीं कि दोनों हथेलियां चोर की छाती से चिपक गई थीं. हथेलियां ऐसी चिपकीं कि चोर क्या, चोर के बाप से भी वे नहीं छूट रही थीं. सासुजी थक कर, डर कर बेहोश हो गई थीं. वे अनारकली की तरह फिल्म ‘मुगलेआजम’ के सलीम के गले में लटकी हुई सी लग रही थीं. वह बेचारा बेबस हो कर जोरजोर से रो रहा था.

अगले दिन अखबारों में उन के करिश्मे का वर्णन फोटो सहित आया, देख कर हम धन्य हो गए. आश्चर्य तो हमें तब हुआ जब पता चला कि हमारी सासुजी की वह लाइलाज बीमारी भी ठीक हो गई थी. पहाड़ी वैद्य झुमरूलालजी के अनुसार, हाथों के पूरे बैक्टीरिया चोर की छाती में जा पहुंचे थे.

यदि शहर में आप को कोई छाती पर खुजलाता, परेशान व्यक्ति दिखाई दे तो तुरंत समझ लीजिए कि वह हमारी सासुजी द्वारा दी गई बीमारी का मरीज है. हां, चोर गिरोह के पकड़े जाने से हमारी सासुजी के साथ हमारी साख भी पूरे शहर में बन गई थी. ऐसी सासुजी पा कर हम धन्य हो गए थे.

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