Latest Hindi Stories : सासुजी हों तो हमारी जैसी

Latest Hindi Stories :  पत्नीजी का खुश होना तो लाजिमी था, क्योंकि उन की मम्मीजी का फोन आया था कि वे आ रही हैं. मेरे दुख का कारण यह नहीं था कि मेरी सासुजी आ रही हैं, बल्कि दुख का कारण था कि वे अपनी सोरायसिस बीमारी के इलाज के लिए यहां आ रही हैं. यह चर्मरोग उन की हथेली में पिछले 3 वर्षों से है, जो ढेर सारे इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो पाया.

अचानक किसी सिरफिरे ने हमारी पत्नी को बताया कि पहाड़ी क्षेत्र में एक व्यक्ति देशी दवाइयां देता है, जिस से बरसों पुराने रोग ठीक हो जाते हैं.

परिणामस्वरूप बिना हमारी जानकारी के पत्नीजी ने मम्मीजी को बुलवा लिया था. यदि किसी दवाई से फायदा नहीं होता तो भी घूमनाफिरना तो हो ही जाता. वह  तो जब उन के आने की पक्की सूचना आई तब मालूम हुआ कि वे क्यों आ रही हैं?

यही हमारे दुख का कारण था कि उन्हें ले कर हमें पहाड़ों में उस देशी दवाई वाले को खोजने के लिए जाना होगा, पहाड़ों पर भटकना होगा, जहां हम कभी गए नहीं, वहां जाना होगा. हम औफिस का काम करेंगे या उस नालायक पहाड़ी वैद्य को खोजेंगे. उन के आने की अब पक्की सूचना फैल चुकी थी, इसलिए मैं बहुत परेशान था. लेकिन पत्नी से अपनी क्या व्यथा कहता?

निश्चित दिन पत्नीजी ने बताया कि सुबह मम्मीजी आ रही हैं, जिस के चलते मुझे जल्दी उठना पड़ा और उन्हें लेने स्टेशन जाना पड़ा. कड़कती सर्दी में बाइक चलाते हुए मैं वहां पहुंचा. सासुजी से मिला, उन्होंने बत्तीसी दिखाते हुए मुझे आशीर्वाद दिया.

हम ने उन से बाइक पर बैठने को कहा तो उन्होंने कड़कती सर्दी में बैठने से मना कर दिया. वे टैक्सी से आईं और पूरे 450 रुपए का भुगतान हम ने किया. हम मन ही मन सोच रहे थे कि न जाने कब जाएंगी?

घर पहुंचे तो गरमागरम नाश्ता तैयार था. वैसे सर्दी में हम ही नाश्ता तैयार करते थे. पत्नी को ठंड से एलर्जी थी, लेकिन आज एलर्जी न जाने कहां जा चुकी थी. थोड़ी देर इधरउधर की बातें करने के बाद उन्होंने अपने चर्म रोग को मेरे सामने रखते हुए हथेलियों को आगे बढ़ाया. हाथों में से मवाद निकल रहा था, हथेलियां कटीफटी थीं.

‘‘बहुत तकलीफ है, जैसे ही इस ने बताया मैं तुरंत आ गई.’’

‘‘सच में, मम्मी 100 प्रतिशत आराम मिल जाएगा,’’ बड़े उत्साह से पत्नीजी ने कहा.

दोपहर में हमें एक परचे पर एक पहाड़ी वैद्य झुमरूलाल का पता उन्होंने दिया. मैं ने उस नामपते की खोज की. मालूम हुआ कि एक पहाड़ी गांव है, जहां पैदल यात्रा कर के पहुंचना होगा, क्योंकि सड़क न होने के कारण वहां कोई भी वाहन नहीं जाता. औफिस में औडिट चल रहा था. मैं अपनी व्यथा क्या कहता. मैं ने पत्नी से कहा, ‘‘आज तो रैस्ट कर लो, कल देखते हैं क्या कर सकते हैं.’’

वह और सासुजी आराम करने कमरे में चली गईं. थोड़ी ही देर में अचानक जोर से कुछ टूटने की आवाज आइ. हम तो घबरा गए. देखा तो एक गेंद हमारी खिड़की तोड़ कर टीवी के पास गोलगोल चक्कर लगा रही थी. घर की घंटी बजी, महल्ले के 2-3 बच्चे आ गए. ‘‘अंकलजी, गेंद दे दीजिए.’’

अब उन पर क्या गुस्सा करते. गेंद तो दे दी, लेकिन परदे के पीछे से आग्नेय नेत्रों से सासुजी को देख कर हम समझ गए थे कि वे बहुत नाराज हो गईर् हैं. खैर, पानी में रह कर मगर से क्या बैर करते.

अगले दिन हम ने पत्नीजी को चपरासी के साथ सासुजी को ले कर पहाड़ी वैद्य झुमरूलाल के पास भेज दिया. देररात वे थकी हुई लौटीं, लेकिन खुश थीं कि आखिर वह वैद्य मिल गया था. ढेर सारी जड़ीबूटी, छाल से लदी हुई वे लौटी थीं. इतनी थकी हुई थीं कि कोई भी यात्रा वृत्तांत उन्होंने मुझे नहीं बताया और गहरी नींद में सो गईं. सुबह मेरी नींद खुली तो अजीब सी बदबू घर में आ रही थी.

उठ कर देखने गया तो देखा, मांबेटी दोनों गैस पर एक पतीले में कुछ उबाल रही थीं. उसी की यह बदबू चारों ओर फैल रही थी. मैं ने नाक पर रूमाल रखा, निकल कर जा ही रहा था कि पत्नी ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप आ गए.’’

‘‘क्यों, क्या बात है?’’

‘‘कुछ सूखी लकडि़यां, एक छोटी मटकी और ईंटे ले कर आ जाना.’’

‘‘क्यों?’’ मेरा दिल जोरों से धड़क उठा. ये सब सामान तो आखिरी समय मंगाया जाता है?

पत्नी ने कहा, ‘‘कुछ जड़ों का भस्म तैयार करना है.’’

औफिस जाते समय ये सब फालतू सामान खोजने में एक घंटे का समय लग गया था. अगले दिन रविवार था. हम थोड़ी देर बाद उठे. बिस्तर से उठ कर बाहर जाएं या नहीं, सोच रहे थे कि महल्ले के बच्चों की आवाज कानों में पड़ी, ‘‘भूत, भूत…’’

हम ने सुना तो हम भी घबरा गए. जहां से आवाज आ रही थी, उस दिशा में भागे तो देखा आंगन में काले रंग का भूत खड़ा था? हम ने भी डर कर भूतभूत कहा. तब अचानक उस भूतनी ने कहा, ‘‘दामादजी, ये तो मैं हूं.’’

‘‘वो…वो…भूत…’’

‘‘अरे, बच्चों की गेंद अंदर आ गईर् थी, मैं सोच रही थी क्या करूं? तभी उन्होंने दीवार पर चढ़ कर देखा, मैं भस्म लगा कर धूप ले रही थी. वे भूतभूत चिल्ला उठे, गेंद वह देखो पड़ी है.’’ हम ने गेंद देखी. हम ने गेंद ली और देने को बाहर निकले तो बच्चे दूर खड़े डरेसहमे हुए थे. उन्होंने वहीं से कान पकड़ कर कहा, ‘‘अंकलजी, आज के बाद कभी आप के घर के पास नहीं खेलेंगे,’’ वे सब काफी डरे हुए थे.

हम ने गेंद उन्हें दे दी, वे चले गए. लेकिन बच्चों ने फिर हमारे घर के पास दोबारा खेलने की हिम्मत नहीं दिखाई.

महल्ले में चोरी की वारदातें भी बढ़ गई थीं. पहाड़ी वैद्य ने हाथों पर यानी हथेलियों पर कोई लेप रात को लगाने को दिया था, जो बहुत चिकना, गोंद से भी ज्यादा चिपकने वाला था. वह सुबह गाय के दूध से धोने के बाद ही छूटता था. उस लेप को हथेलियों से निकालने के लिए मजबूरी में गाय के दूध को प्रतिदिन मुझे लेने जाना होता था.

न जाने वे कब जाएंगी? मैं यह मुंह पर तो कह नहीं सकता था, क्यों किसी तरह का विवाद खड़ा करूं?

रात में मैं सो रहा था कि अचानक पड़ोस से शोर आया, ‘चोरचोर,’ हम घबरा कर उठ बैठे. हमें लगा कि बालकनी में कोई जोर से कूदा. हम ने भी घबरा कर चोरचोर चीखना शुरू कर दिया. हमारी आवाज सासुजी के कानों में पहुंची होगी, वे भी जोरों से पत्नी के साथ समवेत स्वर में चीखने लगीं, ‘‘दामादजी, चोर…’’

महल्ले के लोग, जो चोर को पकड़ने के लिए पड़ोसी के घर में इकट्ठा हुए थे, हमारे घर की ओर आ गए, जहां सासुजी चीख रही थीं, ‘‘दामादजी, चोर…’’ हम ने दरवाजा खोला, पूरे महल्ले वालों ने घर को घेर लिया था.

हम ने उन्हें बताया, ‘‘हम जो चीखे थे उस के चलते सासुजी भी चीखचीख कर, ‘दामादजी, चोर’ का शोर बुलंद कर रही हैं.’’

हम अभी समझा ही रहे थे कि पत्नीजी दौड़ती, गिरतीपड़ती आ गईं. हमें देख कर उठीं, ‘‘चोर…चोर…’’

‘‘कहां का चोर?’’ मैं ने उसे सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘कमरे में चोर है?’’

‘‘क्या बात कर रही हो?’’

‘‘हां, सच कह रही हूं?’’

‘‘अंदर क्या कर रहा है?’’

‘‘मम्मी ने पकड़ रखा है,’’ उस ने डरतेसहमते कहा.

हम 2-3 महल्ले वालों के साथ कमरे में दाखिल हुए. वहां का जो नजारा देखा तो हम भौचक्के रह गए. सासुजी के हाथों में चोर था, उस चोर को उस का साथी सासुजी से छुड़वा रहा था. सासुजी उसे छोड़ नहीं रही थीं और बेहोश हो गई थीं. हमें आया देख चोर को छुड़वाने की कोशिश कर रहे चोर के साथी ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर सरैंडर कर दिया. वह जोरों से रोने लगा और कहने लगा, ‘‘सरजी, मेरे साथी को अम्माजी के पंजों से बचा लें.’’

हम ने ध्यान से देखा, सासुजी के दोनों हाथ चोर की छाती से चिपके हुए थे. पहाड़ी वैद्य की दवाई हथेलियों में लगी थी, वे शायद चोर को धक्का मार रही थीं कि दोनों हथेलियां चोर की छाती से चिपक गई थीं. हथेलियां ऐसी चिपकीं कि चोर क्या, चोर के बाप से भी वे नहीं छूट रही थीं. सासुजी थक कर, डर कर बेहोश हो गई थीं. वे अनारकली की तरह फिल्म ‘मुगलेआजम’ के सलीम के गले में लटकी हुई सी लग रही थीं. वह बेचारा बेबस हो कर जोरजोर से रो रहा था.

अगले दिन अखबारों में उन के करिश्मे का वर्णन फोटो सहित आया, देख कर हम धन्य हो गए. आश्चर्य तो हमें तब हुआ जब पता चला कि हमारी सासुजी की वह लाइलाज बीमारी भी ठीक हो गई थी. पहाड़ी वैद्य झुमरूलालजी के अनुसार, हाथों के पूरे बैक्टीरिया चोर की छाती में जा पहुंचे थे.

यदि शहर में आप को कोई छाती पर खुजलाता, परेशान व्यक्ति दिखाई दे तो तुरंत समझ लीजिए कि वह हमारी सासुजी द्वारा दी गई बीमारी का मरीज है. हां, चोर गिरोह के पकड़े जाने से हमारी सासुजी के साथ हमारी साख भी पूरे शहर में बन गई थी. ऐसी सासुजी पा कर हम धन्य हो गए थे.

Famous Hindi Stories : भंवरजाल – जब भाई बहन ने लांघी रिश्तों की मर्यादा

 Famous Hindi Stories : ‘‘कैसे भागभाग कर काम कर रहा है रिंटू.’’ ‘‘हां, तो क्यों नहीं करेगा, आखिर उस की बहन सोना की सगाई जो है,’’ दूसरे शहर से आए रिश्तेदार आपस में बतिया रहे थे और घर वाले काम निबटाने में व्यस्त थे. लेकिन क्यों बारबार भाई है, बहन है कह कर जताया जा रहा था? थे तो रिंटू ओर सोनालिका बुआममेरे भाईबहन, किंतु क्या कारण था कि रिश्तेदार उन के रिश्ते को यों रेखांकित कर रहे थे?

‘‘पता नहीं मामीजी को क्या हो गया है, अंधी हो गईं हैं बेटे के मोह में. और, क्या बूआजी भी नहीं देख पा रहीं कि सोना क्या गुल खिलाती फिर रही है?’’ बड़ी भाभी सुबह नाश्ता बनाते समय रसोई में बुदबुदा रही थीं. रसोई में काम के साथ चुगलियों का छौंक काम की सारी थकान मिटा देती है. साथ में सब्जी काटती छोटी मामी भी बोलीं ‘‘हां, कल रात देखा मैं ने, कैसे एक ही रजाई में रिंटू और सोना…सब के सामने. कोई उन्हें टोकता क्यों नहीं?’’

‘‘अरे मामी, जब उन दोनों को कोई आपत्ति नहीं, उन की माताओं को कुछ दिखता नहीं तो कौन अपना सिर ओखली में दे कर मूसली से कुटवाएगा?’’ बड़ी भाभी की बात में दम था. रिश्तेदार पीठ पीछे बात करते नहीं थकते परंतु सामने बोल कर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? जो हो रहा है, होने दो. मजा लो, बातें बनाओ और तमाशा देखो. जब से सोनालिका किशोरावस्था की पगडंडी पर उतरी, तभी से उस के ममेरे भाई उस से 12 वर्ष बड़े रिंटू ने उस का हाथ थाम लिया. हर पारिवारिक समारोह में उसे अपने साथ लिए फिरता. अपनी गर्लफ्रैंड्स की रोचक कहानियां सुना उसे गुदगुदाता. सोनालिका भी रिंटू भैया के आते ही और किसी की ओर नहीं देखती. उसे तो बस रिंटू भैया की रसीली बातें भातीं. बातें करते हुए रिंटू कभी सोनालिका का हाथ पकड़े रहता, कभी कमर में बांह डाल देता तो कभी उस की नर्म बांहें सहलाता, देखते ही देखते, 1-2 सालों में रिंटू और सोनालिका एकदूसरे से बहुत हिलमिल गए. सोनालिका उसे अलगअलग लड़कियों के नाम ले छेड़ती तो रिंटू उस के पीछे भागता, और इसी पकड़मपकड़ाई में रिंटू उस के बदन के भिन्न हिस्सों को अपनी बाहों में भींच लेता. कच्ची उम्र का तकाजा कहें या भावनाओं का ज्वार, रिंटू की उपस्थिति सोनालिका के कपोल लाल कर देती, उस के नयन कभी शरारत में डूबे रिंटू के साथ अठखेलियां करते तो कभी मारे हया के जमीन में गड़ जाते. हर समारोह में रिंटू उसे ले एक ही रजाई में घुस जाता. ऊपर से तो कुछ ज्यादा दिखाई नहीं देता किंतु सभी अनुभव करते कि रिंटू और सोनालिका के हाथ आपस में उलझे रहते, रजाई के नीचे कुछ शारीरिक छेड़खानी भी चलती रहती.

उस रात रिंटू अपनी नवीनतम गर्लफ्रैंड का किस्सा सुना रहा था और सोनालिका पूरे चाव से रस ले रही थी, ‘रिंटू भैया, आप ने उस का हाथ पकड़ा तो उस ने मना नहीं किया?’

‘अरे, सिर्फ हाथ नहीं पकड़ा, और भी कुछ किया…’ रिंटू ने कुछ इस तरह आंख मटकाई कि उस का किस्सा सुनने हेतु सोनालिका उस के और करीब सरक आई. ‘मैं ने उस का चेहरा अपने हाथों में यों लिया और…’ कहते हुए रिंटू ने सोनालिका का मुख अपने हाथों में ले लिया और फिर डैमो सा देते हुए अपनी जबान से झट उस के होंठ चूम लिए. अकस्मात हुई इस घटना से सोनालिका अचंभित तो हुई किंतु उस के अंदर की षोडशी ने नेत्र मूंद कर उस क्षण का आनंद कुछ इस तरह लिया कि रिंटू की हिम्मत चौगुनी हो गई. उस ने उसी पल एक चुंबन अंकित कर दिया सोनालिका के अधरों पर. उस रात जब अंताक्षरी का खेल खेला गया तो सारे रिश्तेदारों के जमावड़े के बीच सोनालिका ने गाया, ‘शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा, अब हमें आप के कदमों ही में रहना होगा…’ उस की आंखें उस के अधरों के साथ कुछ ऐसी सांठगांठ कर बैठीं कि रिंटू की तरफ उठती उस की नजर देख सभी को शक हो गया. जो लज्जा उस का मुख ढक रही थी, उसी ने सारी पोलपट्टी खोल दी.

‘अरे सोना, यह 1968 की फिल्म ‘पड़ोसन’ का गाना तुझे कैसे याद आ गया? आजकल के बच्चे तो नएनए गाने गाते हैं,’ ताईजी ने तो कह भी दिया. जब रिंटू और सोनालिका की माताएं गपशप में व्यस्त हो जातीं, अन्य औरतें उन दोनों की रंगरेलियां देख चटकारे लेतीं. रिंटू की उम्र सोनालिका से काफी अधिक थी. सो, उस की शादी पहले हुई. रिंटू की शादी में सोनालिका ने खूब धूम मचाए रखी. किंतु जहां अन्य सभी भाईबहन ‘भाभीभाभी’ कह नईनवेली दुलहन रत्ना को घेरे रहते, वहीं सोनालिका केवल रिंटू के आसपास नजर आती. सब रिश्तेदार भी हैरान थे कि यह कैसा रिश्ता था दोनों के समक्ष – क्या अपनी शारीरिक इच्छा व इश्कबाज स्वभाव के चलते दोनों अपना रिश्ता भी भुला बैठे थे? सामाजिक मर्यादा को ताक पर रख, दोनों बिना किसी झिझक वो करते जो चाहते, वहां करते, जहां चाहते. उन्हें किसी की दृष्टि नहीं चुभती थी, उन्हें किसी का भय नहीं था.

रिंटू की शादी के बाद भी हर पारिवारिक गोष्ठी में सोनालिका ही उस के निकट बनी रहती. एक बार रिंटू की पत्नी, रत्ना ने सोनालिका और रिंटू को हाथों में हाथ लिए बैठे देखा. उसे शंका इस कारण हुई कि उसे कक्ष में प्रवेश करते देख रिंटू ने अपना हाथ वापस खींच लिया. बाद में पूछने पर रिंटू ने जोर दे कर उत्तर दिया, ‘कम औन यार, मेरी बहन है यह.’ उस बात को करीब 4 वर्ष के अंतराल के बाद आज रत्ना लगभग भुला चुकी थी. अगले दिन सोनालिका की सगाई थी. लड़का मातापिता ने ढूंढ़ा था. शादी से जुड़े उस के सुनहरे स्वप्न सिर्फ प्यारमुहब्बत तक सिमटे थे. इस का अधिकतम श्रेय रिंटू को जाता था. सालों से सोनालिका को एक प्रेमावेशपूर्ण छवि दिखा, प्रेमालाप के किस्से सुना कर उस ने सोना के मानसपटल पर बेहद रूमानी कल्पनाओं के जो चित्र उकेरे थे, उन के परे देखना उस के लिए काफी कठिन था. सगाई हुई, और शादी भी हो गई. मगर अपने ससुराल पहुंच कर सोनालिका ने अपने पति का स्वभाव काफी शुष्क पाया. ऐसा नहीं कि उस ने अपने पति के साथ समायोजन की चेष्टा नहीं की. सालभर में बिटिया भी गोद में आ गई किंतु उन के रूखे व्यवहार के आगे सोनालिका भी मुरझाने लगी. डेढ़ साल बाद जब छोटी बहन की शादी में वो मायके आई तो रिंटू से मिल कर एक बार फिर खिल उठी थी. शादी में आई सारी औरतें सोनालिका और रिंटू को एक बार फिर समीप देख अचंभित थीं.

‘‘अब तो शादी भी हो गई, बच्ची भी हो गई, तब भी? हद है भाई सोना की,’’ बड़ी भाभी बुदबुदा रही थीं कि रत्ना रसोई में आ गई.

‘‘क्या हुआ भाभी?’’ रत्ना के पूछने पर बड़ी भाभी ने मौके का फायदा उठा सरलता और बेबाकी से कह डाला, ‘‘कहना तो काफी दिनों से चाहती थी, रत्ना, पर आज बात उठी है तो बताए देती हूं – जरा ध्यान रखना रिंटू का. यह सोना है न, शुरू से ही रिंटू के पीछे लगी रहती है. अब कहने को तो भाईबहन हैं पर क्या चलता है दोनों के बीच, यह किसी से छिपा नहीं है. तुम रिंटू की पत्नी हो, इसलिए तुम्हारा कर्तव्य है अपनी गृहस्थी की रक्षा करना, सो बता रही हूं.’’ बड़ी भाभी की बात सुन रत्ना का चिंतित होना स्वाभाविक था. माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोंछती वह बाहर आई तो सोनालिका और रिंटू के स्वर सुन वो किवाड़ की ओट में हो ली.

‘‘कैसी चुप सी हो गई है सोना. क्या बात है? मेरी सोना तो हमेशा हंसतीखेलती रहती थी,’’ रिंटू कह रहा था और साथ ही सोनालिका के केशों में अपनी उंगलियां फिराता जा रहा था.

‘‘रिंटू, आप जैसा कोई मिल जाता तो बात ही क्या थी. क्या यार, हम भाईबहन क्यों हैं? क्या कुछ भी नहीं हो सकता?’’ कहते हुए सोनालिका रिंटू की छाती से लगी खड़ी थी कि रत्ना कमरे में प्रविष्ट हो गई. दोनों हतप्रभ हो गए और जल्दी स्वयं को व्यवस्थित करने लगे.

‘‘भाभी, आओ न. मैं रिंटू भैया से कह रही थी कि इतना सुहावना मौसम हो रहा है और ये हैं कि कमरे में घुसे हुए हैं. चलो न छत पर चल कर कुछ अच्छी सैल्फी लेते हैं,’’ कहते हुए सोनालिका, रिंटू का हाथ पकड़ खींचने लगी.

‘‘नहीं, अभी नहीं, मुझे कुछ काम है इन से,’’ रत्ना के रुखाई से बोलने के साथ ही बाहर से बूआजी का स्वर सुनाई पड़ा. ‘‘सोना, जल्दी आ, देख जमाई राजा आए हैं.’’ सोनालिका चुपचाप बाहर चली गई. उस शाम रत्ना और रिंटू का बहुत झगड़ा हुआ. बड़ी भाभी ने भले ही सारा ठीकरा सोनालिका के सिर फोड़ा था पर रत्ना की दृष्टि में उस का अपना पति भी उतना ही जिम्मेदार था. शायद कुछ अधिक क्योंकि वह सोनालिका से कई वर्ष बड़ा था. आज रिंटू का कोई भी बहाना रत्ना के गले नहीं उतर रहा था. पर अगली दोपहर फिर रत्ना ने पाया कि सोनालिका सैल्फी ले रही थी और इसी बहाने उस का व रिंटू का चेहरा एकदम चिपका हुआ था. ये कार्यकलाप भी सभी के बीच हो रहा था. सभी की आंखों में एक मखौल था लेकिन होंठों पर चुप्पी. रत्ना के अंदर कुछ चटक गया. रिंटू की ओर उस की वेदनाभरी दृष्टि भी जब बेकार हो गई तब वह अपने कमरे में आ कर निढाल हो बिस्तर पर लेट गई. पसीने से उस का पूरा बदन भीग चुका था. आंख मूंद कर कुछ क्षण यों ही पड़ी रही.

फिर अचानक ही उठ कर रिंटू की अलमारी में कुछ टटोलने लगी. और ऐसे अचानक ही उस के हाथ एक गुलाबी लिफाफा लग गया. जैसे इसे ही ढूंढ़ रही थी वह – फौरन खोल कर पढ़ने लगी : ‘रिंटू जी, (कम से कम यहां तो आप को ‘भैया’ कहने से मुक्ति मिली.)

‘मैं कैसे समझाऊं अपने मन को? यह है कि बारबार आप की ओर लपकता है. क्या करूं, भावनाएं हैं कि मेरी सुनती नहीं, और रिश्ता ऐसा है कि इन भावनाओं को अनैतिकता की श्रेणी में रख दिया है. यह कहां फंस गई मैं? जब से आप से लौ लगी है, अन्य कहीं रोशनी दिखती ही नहीं. आप ने तो पहले ही शादी कर ली, और अब मेरी होने जा रही है. कैसे स्वीकार पाऊंगी मैं किसी और को? कहीं अंतरंग पलों में आप का नाम मुख से निकल गया तो? सोच कर ही कांप उठती हूं. कुछ तो उपाय करो.

‘हर पल आप के प्रेम में सराबोर.

‘बस आप की, सोना.’

रत्ना के हाथ कांप गए, प्रेमपत्र हाथों से छूट गया. उस का सिर घूमने लगा – भाईबहन में ऐसा रिश्ता? सोचसोच कर रत्ना थक चुकी थी. लग रहा था उस का दिमाग फट जाएगा. हालांकि कमरे में सन्नाटा बिखरा था पर रत्ना के भीतर आंसुओं ने शोर मचाया हुआ था. इस मनमस्तिष्क की ऊहापोह में उस ने एक निर्णय ले लिया. वह उसी समय अपना सामान बांध मायके लौट गई. सारे घर में हलचल मच गई. सभी रिश्तेदार गुपचुप सोनालिका को इस का दोषी ठहरा रहे थे. लेकिन सोनालिका प्रसन्न थी. उस की राह का एक रोड़ा स्वयं ही हट गया था. इसी बीच शादी में शामिल होने पहुंचे सोनालिका के पति के कानों में भी सारी बातें पड़ गईं. ऐसी बातें कहां छिपती हैं भला? जब उन्होंने अपनी पत्नी सोनालिका से बात साफ करनी चाही तो उस ने उलटा उन्हें ही चार बातें सुना दीं, ‘‘आप की मुझे कुछ भी बोलने की हैसियत नहीं है. पहले रिंटू भैया जैसा बन कर दिखाइए, फिर उन पर उंगली उठाइएगा.’’ भन्नाती हुई सोनालिका कमरे से बाहर निकल गई. हैरानपरेशान से उस के पति भी बरामदे में जा रहे थे कि रत्ना के हाथों से उड़ा सोनालिका रिंटू का प्रेमपत्र उन के कदमों में आ गया. मानो सोनालिका की सारी परतें उन के समक्ष खुल कर रह गईं. उन्हें गहरी ठेस लगी. गृहस्थी की वह गाड़ी  आगे कैसे चले, जिस में पहले से ही पंचर हो. दिल कसमसा उठा, मन उचाट हो गया. किसी को पता भी नहीं चला कि वे कब घर छोड़ कर लौट चुके थे.

एक अवैध रिश्ते के कारण आज 2 घर उजड़ चुके थे. रिश्तेदारों द्वारा बात उठाने पर रिंटू ऐसी किसी भी बात से साफ मुकर गया, ‘‘कैसी बात कर रहे हैं आप लोग? शर्म नहीं आती, सोना मेरी बहन है. लेकिन प्रेमपत्र हाथ लगने से सारी रिश्तेदारी में सोनालिका का नाम बदनाम हो चुका था. इस का भी उत्तर था रिंटू के पास, ‘‘सोना छोटी थी, उस का मन बहक गया होगा. उसे समझाइए. अब वह एक बच्ची की मां है, यह सब उसे शोभा नहीं देता.’’ पुरुषप्रधान समाज में एक आदमी ने जो कह दिया, रिश्तेनातेदार उसी को मान लेते हैं. गलती केवल औरत की निकाली जाती है. प्यार किया तो क्यों किया? उस की हिम्मत कैसे हुई कोई कदम उठाने की? और फिर यहां तो रिश्ता भी ऐसा है कि हर तरफ थूथू होने लगी.

सोनालिका एक कमरे में बंद, अपना चेहरा हाथों से ढांपे, सिर घुटनों में टिकाए जाने कब तक बैठी रही. रात कैसे बीती, पता नहीं. सुबह जब महरी साफसफाई करने गई तो देखा सोनालिका का कोई सामान घर में नहीं था. वह रात को 2 अटैचियों में सारा सामान, जेवर, पैसे ले कर चली गई थी, महीनों तक पता नहीं चला कि रिंटू और सोनालिका कहां हैं. दोनों घरों ने कोई पुलिस रिपोर्ट नहीं कराई क्योंकि दोनों घर जानते थे कि सचाई क्या है. फिर उड़तीउड़ती खबर आई कि मनाली के रिजौर्ट में दोनों ने नौकरी कर ली है और साथसाथ रह रहे हैं, पतिपत्नी की तरह या वैसे ही, कौन जानता है.

Sad Story : दर्द की सिलवटें

Sad Story : अवंतिका औफिस में बैठी कुछ फाइलों के बीच अपनी आंखें जमाए हुए थी. बौस का आदेश था कि इन फाइलों का निबटारा जल्द से जल्द कर दिया जाए वरना उस की सैलरी यों ही अटकी रहेगी.

‘‘क्या हुआ अवंतिका? मुंह बना कर फाइलों को क्यों निहार रही हो?’’ अवंतिका के पास कुरसी खींच कर बैठते हुए यामिनी बोली. यामिनी उसी औफिस में काम करती थी.

‘‘क्या बोलूं?’’ अवंतिका ने गहरी सांस खींची, ‘‘इन फाइलों का निबटारा तो मैं कर ही नहीं पाई. पता नहीं कैसे दिमाग से उतर गया. बहुत जरूरी हैं. यदि 2 दिन के अंदर इन्हें सही नहीं किया तो बौस का लौस होगा तो होगा, साथ में मु?ो भी पता नहीं कब सैलरी मिले.

‘‘तुम कितनी तेजी से काम का निबटाती हो न. तुम्हारी मेहनत और काबिलीयत को देख कर ही तो बौस ने तुम्हें यह सब दिया था. अब क्या हुआ. सबकुछ ठीक तो है न.’’

‘‘अरे बाबा, सब ठीक है. वह घर में भी तो काम देखना पड़ता है न. दीप की 10वीं कक्षा की परीक्षा चल रही थी. उसी पर ध्यान देने में व्यस्त रही, इसलिए…’’

‘‘अच्छा चलो, जल्दी से अपना काम

निबटा लो,’’ यामिनी वहां से अपने कैबिन की तरफ चल दी.

शाम के समय औफिस से लौटते हुए अवंतिका सब्जियां आदि खरीदते हुए घर पहुंची. निखिल औफिस से आ चुका था. अवंतिका को देखते ही बोला, ‘‘बहुत सही समय पर आई हो. चलो, जल्दी से चाय पिला दो.’’

‘‘निखिल मैं बहुत थकी हुई हूं. बदन में भी खिंचाव महसूस हो रहा है. दीप को कहती हूं चाय बना कर ले आएगा.’’

‘‘अरे नहीं उसे चाय बनानी नहीं आती. कभी चायपत्ती अधिक डाल देता है तो कभी चीनी. चाय पीने का मजा किरकिरा कर देता है,’’  निखिल बोला.

‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है. अब उसे मात्रा आदि समझा दी है. अच्छी चाय बना लेगा,’’ कह कर अवंतिका ने अपने बेटे दीप को चाय बनाने के लिए कहा.

अवंतिका मेहनती और टेलैंटेड महिला थी. उसे कुछ वर्ष ही हुए थे एक मल्टी नैशनल कंपनी में नौकरी करते. निखिल बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत था. अवंतिका के 2 बच्चे थे श्रुति और दीप. श्रुति 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी और दीप 10वीं बोर्ड की परीक्षा दे दी थी. शुरुआती दिनों में सिंगल फैमिली होने के कारण अवंतिका ने एक गृहिणी बने रहना मंजूर किया था. लेकिन बच्चे जब बड़े होने लगे और अपनी पढ़ाई और दोस्तों में उन की व्यस्तता बढ़ने लगी तो अवंतिका को घरगृहस्थी के कामों के बाद खाली समय में अकेलापन महसूस होने लगा. निखिल भी अपने बैंक से लौटने के बाद शाम का समय दोस्तों के बीच ठहाके लगाने में बिताता. बैंक से आने के बाद शाम की चाय पी कर निखिल अपनी मित्र मंडली में जा बैठता. फिर तो उन के ठहाके और मनोरंजन का दौर थमता ही नहीं था. रात के 8-9 के पहले वह घर नहीं आता.

ऐसे में अवंतिका ने एक मल्टी नैशनल कंपनी जौइन कर ली. व्यस्त दिनचर्या के साथ हाथ में सैलरी मिलने से उसे सुखद अनुभूति होने लगी. अब उसे छोटीमोटी जरूरत के लिए भी निखिल पर आश्रित नहीं रहना पड़ता. अपनी मेहनत और कार्यकौशल से उस ने औफिस में खास पहचान बना ली थी. लेकिन इधर कुछ समय से वह अपने कार्य को ले कर पहले जैसी तत्परता और सक्रियता नहीं दिखा पा रही थी. घर की जिम्मेदारी पहले की ही तरह निभा रही थी, उस पर औफिस का काम.

रात का खाना बनाने के बाद अवंतिका टेबल पर खाना लगा रही थी, ‘‘श्रुति, जरा खाना सर्व करो और दीप तुम पीने के लिए पानी ले आओ. आज मैं बहुत थकी हुई महसूस कर रही हूं. ज्यादा देर नहीं बैठ पाऊंगी. जल्दी से खा कर सोने जा रही हूं. तुम लोग खाना खा कर जूठे बरतन सिंक में डाल देना.’’

अगली सुबह फिर से पूरा परिवार अपनेअपने काम में व्यस्त हो गया. श्रुति और दीप अपनी पढ़ाई और दोस्तों के बीच तो निखिल भी दिन में ड्यूटी और शाम में दोस्तों के साथ मस्ती में व्यस्त रहते. अवंतिका समय पर औफिस पहुंच चुकी थी. उसे अभी भी 2 फाइलों के काम निबटाने थे और कल तक बौस की टेबल पर देनी थीं.

‘‘गुड मौर्निंग अवंतिका. और कहो, तुम्हारा पैंडिंग वर्क पूरा हो गया?’’ यामिनी ने पूछा.

‘‘नहीं यार, अभी तो 2 फाइलें बाकी हैं और कल सुबह तक बौस को टेबल पर चाहिए. प्लीज, जरा मेरी हैल्प कर दो न.’’

‘‘यह भारीभरकम उलझी फाइलों में सिर खपाना मेरे वश की बात नहीं, वह भी प्रैशर में. तुम्हें ध्यान नहीं शायद लेकिन यह सब तुम्हारी प्रतिभा के कारण मिला है. और दिखाओ बौस को अपनी प्रतिभा और काबिलीयत,’’ यामिनी टोंट करते हुए हंस दी.

‘‘देखो मजाक का वक्त नहीं है. तुम्हें पता है न बौस ने मु?ो इस महीने की सैलरी नहीं दी है?  वे भी मेरी लापरवाही से नाराज हैं. यदि औफिस का नुकसान हुआ तो पूरी सैलरी खतरे में पड़ जाएगी. अब गंभीर बनो और कुछ रास्ता सुझाओ.’’

‘‘ओके, तुम अतुल की मदद ले लो.’’

‘‘कौन. वह लड़का जिस ने अभी कुछ महीने पहले ही कंपनी जौइन की है? उस नौसिखिए से क्या मदद लूं?’’

‘‘शायद तुम उसे ठीक से जानती नहीं हो. वह भी दिमाग का तेज है और युवा है तो काम के लिए उत्साह भी खूब भरा रहता है. पता है, पिछले महीने उस ने अमन की मदद की थी.’’

यह सुन अवंतिका अतुल से मदद लेने को तैयार हो गई. शाम होने लगी थी. अवंतिका ने अतुल को दोनों फाइलें दे कर काम समझा दिया और अगले दिन ले कर आने को कहा.

घर पहुंचने के बाद अवंतिका अपनी गृहस्थी वाले रूटीन वर्क  में लग गई तभी…

‘‘ऊफ… फिर से पीरियड भी न…’’

पिछले कुछ महीनों से अवंतिका के पीरियड्स थोड़ा असामान्य हो गए थे. इस दौरान वह शारीरिक कष्ट को भी ?ोलने लगी थी. उस ने सोचा कि वर्क लोड और अनियमित खानपान के कारण यह सब हो रहा होगा. वह अपने पीरियड्स को ले कर कुछ विशेष चिंता नहीं करती. वैसे भी लोग कहते हैं कि 40+ की महिलाओं में माहवारी को ले कर कुछनकुछ समस्या रहती ही है.

औफिस का काम तो निबट गया. उसे राहत मिली. लेकिन पीरियड्स के दौरान होने वाले शारीरिक कष्ट शुरू हो गए. इसलिए अवंतिका खाना खा कर जल्दी से बैड पर आराम करने चली गई. हौट फ्लैश और पेड़ू कमर के दर्द से परेशान अवंतिका बिस्तर पर आते ही निढाल हो गई. निखिल भी कुछ देर के बाद बैडरूम में आ चुका था. वह रात की बेला में रूमानियत महसूस कर रहा था. बिस्तर पर लेटी अवंतिका किसी हुस्न परी का एहसास करा रही थी. निखिल अवंतिका के समीप आया है और उसे स्पर्श करते हुए अपने पास खींचने की कोशिश करने लगा.

‘‘नहीं निखिल, तबीयत बिलकुल ठीक नहीं है. हौट फ्लैश से परेशान हूं. मुझे आराम करने दो.’’

‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें? जब देखो तब तबीयत खराब या थकान का बहाना करती रहती हो. औफिस जाने के लिए तुम तो एकदम तंदुरुस्त हो जाती हो. है न?’’

‘‘तुम कैसी बातें कर रहे हो. मेरी थकान, मेरी खराब तबीयत तुम्हें नाटक लगता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या. मैं देख रहा हूं कि कुछ महीनों से तुम घरपरिवार पर पहले की तरह ध्यान नहीं दे रही हो और मुझ पर तो बिलकुल भी नहीं. कभी तबीयत खराब, कभी थकान, कभी पीरियड्स… तुम मुझ से दूर होती जा रही हो.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो निखिल? मैं दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हूं. घरपरिवार देखते हुए जौब भी कर रही हूं.’’

‘‘जिम्मेदारी? हुंह,’’ कह निखिल बिस्तर पर एक तरफ मुंह घुमा कर सो गया.

मगर अवंतिका की आंखों में नींद गायब हो गई. उसे निखिल की बातें चुभ गईं. वह जौब करने के लिए तब घर से बाहर निकली जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए थे. निखिल भी तो अपनी दुनिया में व्यस्त रहता है. दोस्तों के साथ मस्ती भरे पल बिताता है.

‘‘क्या मेरी जरूरत सिर्फ घर के काम और बिस्तर तक ही सीमित है?’’ अचानक अवंतिका के मन में यह विचार कौंध गया और उस की आंखें डबडबा गईं.

अवंतिका थोड़ी चिड़चिड़ी होने लगी थी. निखिल को अवंतिका से शिकायत रहती. वहीं अवंतिका को निखिल से सम?ादारी की उम्मीद. उस की जिंदगी इसी तरह गुजरते जा रही थी. उस के मातापिता कुछ वर्ष पहले गुजर गए थे. एक भाई था तो वह भी विदेश में सैटल हो चुका था जो उस की कोई खोजखबर नहीं लेता. ससुराल में सासससुर भी नहीं थे. लेकिन ससुराल के नातेरिश्तेदार यदाकदा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते, वह भी निखिल के लिए. अवंतिका को ससुराल पक्ष के रिश्तेदार हेय दृष्टि से देखते.

वे कहते, ‘‘इस का तो न मायका है न भाई पूछने वाला. हम न पूछें तो इसे कोई न पूछे. मरने पर कोई कफन देने वाला भी न मिले.’’

अवंतिका सब की बातों को सुनती और खून का घूंट पी कर रह जाती. मन में सोचती कि सही वक्त पर इस का जवाब देना उचित होगा. यही कारण था कि बच्चों के साथ वह अपने काम के प्रति भी पजैसिव हो गई थी. हालांकि उसे न तो प्रोत्साहन मिलता और न ही सपोर्ट. लेकिन वह खुद को काम में व्यस्त रखती.

औफिस में अवंतिका को यामिनी के रूप में एक अच्छी साथी तो मिली ही. लेकिन अब अतुल के रूप में भी उसे एक समझदार दोस्त मिल गया था. उम्र में वह अवंतिका से छोटा जरूर था मगर था बहुत समझदार और सहयोगी व्यवहार वाला. तभी तो उस ने अवंतिका के बिखरे काम को समेटने में मदद की. अवंतिका ने पैंडिंग फाइलें समय पर पूरी कर बौस को दे दीं.

काम को सही तरीके से करने के लिए बौस ने अवंतिका की तारीफ की, ‘‘वैरी गुड. रियली दैट्स नाइस. मुझे मालूम था कि तुम इसे पूरा कर लोगी. मैं तुम्हारी काबिलीयत को जानता हूं. लेकिन पता नहीं क्यों तुम इधर काम के प्रति थोड़ी लापरवाह होने लगी थी.’’

‘‘थैंक यू सर. दरअसल बेटे का 10वीं कक्षा का ऐग्जाम था तो उस पर ध्यान देने के चक्कर में यह काम दिमाग से उतर गया था. मेरी कोशिश रहेगी कि आइंदा ऐसा न हो.’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं. मैं ने तुम्हारी सैलरी पास कर दी है और साथ में कुछ बोनस भी. अब एक बात ध्यान से सुनो, एक बड़े प्रोजैक्ट पर काम होने वाला है. उस में तुम मेरे साथ रहोगी. यदि तुम ने अपनी मेहनत से अच्छा कर दिखाया तो तुम्हारी प्रमोशन पक्की. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी.’’

‘‘थैंक यू वैरी मच सर. मैं हार्ड वर्क से पीछे नहीं हटने वाली. मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं आप की उम्मीदों पर खड़ी उतरूं.’’

अवंतिका नए काम को पा कर बहुत खुश थी. उसे अब पूरी तरह से अपने नए प्रोजैक्ट पर फोकस करना था. उसे अपनी प्रमोशन के सपने खुली आंखों से दिखने लगे थे. लेकिन उस के इस उत्साह में निखिल का साथ बिलकुल नहीं मिल पा रहा था. अवंतिका निखिल से यह उम्मीद करने लगी थी कि घर की जिम्मेदारियों में निखिल थोड़ा सहयोग करे जिस से उसे अपना काम करने में सहूलियत हो. लेकिन निखिल का रवैया पहले जैसा ही था.

उस के रिश्तेदार भी निखिल से कहते, ‘‘देखा, सासससुर के न रहने पर कैसे अपने पंखों को फैला रही है. अब घरपरिवार उसे कहां से रास आएगा. मातापिता के रहते तुम से किसी ने घर में कोई काम करवाया? लेकिन देखो, अब महारानी तुम्हें गृहस्थी के कामों में उलझना चाहती है. सावधान रहना, तुम भी तो नौकरी करते हो.’’

निखिल शुरू से अवंतिका को कम और रिश्तेदारों को अधिक महत्त्व देता रहा. लेकिन अवंतिका सामंजस्य स्थापित कर के रिश्ते को निभाने की कोशिश करती रहती. अभी वह चाहती थी कि निखिल शाम के वक्त घर पर बच्चों को समय दे या सब्जी आदि खरीद कर ले आए.  लेकिन वह अपने दोस्तों के बीच रहना अधिक जरूरी समझौता. कहता, ‘‘मेरी भी तो अपनी लाइफ है. ड्यूटी से आ कर दोस्तों के साथ मन बहलाना भी जरूरी है नहीं तो सारा समय कामकाम और बस काम.’’

‘‘लेकिन निखिल, मेरी स्थिति भी समझ. एक अच्छा अवसर हाथ में आने वाला है. मैं इस गोल्डन मौके को गंवाना नहीं चाहती. मुझे घर के कामों में थोड़ा सहयोग कर दो ताकि इस प्रोजैक्ट को बेहतर मन से कर पाऊं.’’

‘‘तुम ने यह सब क्यों चुना? घरपरिवार ज्यादा जरूरी है. तुम्हें तो पता है, शुरू से मैं स्वच्छंद रहा हूं. मांबाबूजी ने बड़े प्यार से पाला है. ऊपर से किसी भी रिश्तेदार के घर जाता हूं तो बैठेबैठे आवभगत होती है. ऐसे में मुझे घर में कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी. यदि तुम से नहीं हो पा रहा तो प्रोजैक्ट छोड़ दो.’’

‘‘छोड़ दो,’’ अवंतिका को निखिल की बात बुरी लगी. वह मन ही मन सोचने लगी कि क्यों हर बार हर चीज स्त्री को ही छोड़नी पड़ती है ताकि गृहस्थी सुचारु रूप से चल सके. लड़की मायके और वहां से जुड़ी हर बात छोड़ कर आती है ससुराल में. एक नए रूप और अस्तित्व के साथ ससुराल में रहती है. सभी के साथ सामंजस्य स्थापित करने में न जाने कितना कुछ छोड़ती चली जाती है. इस सब के बावजूद क्या वह एक अपनी खुशी या सपने को ले कर आगे नहीं बढ़ सकती? आज जिस काम से उसे खुशी मिल रही है, उस का वजूद निखर रहा है, उसे भी वह छोड़ दे ताकि पारिवारिक जिम्मेदारियां सही से निभा पाए? माना कि निखिल प्यार में पला, कभी कोई जवाबदेही नहीं उठाई. मगर अभिभावक और घर का मुखिया बनने के बाद भी उस में जिम्मेदारी का भाव नहीं आना चाहिए? एक पति और हमसफर के तौर पर क्या उसे अपनी पत्नी का सहयोग नहीं करना चाहिए? आखिर मैं भी तो बचपन से ही जिम्मेदारियां उठाने की आदी नहीं?

तरहतरह की बातें मन में सोचते हुए अवंतिका खुद से ही जाने कितने सवाल पूछ बैठी. फिर भी, मन ही मन सोचा है कि यह मौका हाथ से नहीं जाने दूंगी. जिस को जैसे चलना है चले. मैं भी अपनी मेहनत बढ़ा दूंगी. एक बार प्रमोशन हो जाए बस.’’

अवंतिका निखिल के व्यवहार और दूसरों की सोच को दरकिनार करते हुए अपने काम में लगी रहती. बच्चों से भी कुछ काम में हाथ बंटाने का आग्रह करती ताकि उसे थोड़ा सी सपोर्ट मिल जाए. उस ने अपनी मेहनत बढ़ा दी लेकिन जल्दीजल्दी होने वाले पीरियड्स के कारण परेशान भी होने लगी थी. महीने में एक बार होने वाला कभीकभी 2 बार भी होने लगा. इस दौरान वह शारीरिक, मानसिक कष्ट महसूस करती. उसे बातबात पर गुस्सा भी आने लगा था. लेकिन निखिल उस की परेशानी समझाने के बजाय उस पर बरस पड़ता. इन सब की वजह से अवंतिका का कार्य भी प्रभावित होने लगा.

यामिनी ने अवंतिका की परेशानी को देख कर उसे डाक्टर से मिलने की सलाह दी. डाक्टर ने अवंतिका को बताया कि वह मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. कभीकभी किसी को समय से पहले भी मेनोपौज हो जाता है. ऐसे में चिड़चिड़ापन, नकारात्मक सोच, थकान, कमजोरी आदि शारीरिकमानसिक दिक्कतें होनी सामान्य बात है. उसे अभी अपने सही खानपान के साथ सकारात्मक खुशहाल माहौल बनाए रखना भी जरूरी है. आवश्यक दिशानिर्देश और दवाइयां देने के साथ डाक्टर ने अवंतिका को मेनोपौज के संबंध में विस्तार से समझाया.

अवंतिका ने अपनी परेशानी निखिल से साझा की है. उसे उम्मीद थी कि यह सब जान कर निखिल को अब कोई शिकायत नहीं होगी बल्कि वह अपनी पत्नी की परेशानियों को समझाते हुए उस को मानसिक मजबूती प्रदान करेगा. लेकिन अवंतिका की सोच यहां उलटी पड़ गई. निखिल ने अवंतिका और डाक्टर की बातों को अधिक महत्त्व नहीं दिया.

‘‘यह सब क्या नई बातें ले कर बैठ गई? मासिकचक्र कोई नई बात है क्या? महिलाओं के लिए तो यह आम बात है. अब जा कर तुम्हें मनोवैज्ञानिक पहलू समझ में आने लगा? यह सब ज्यादा पढ़लिख जाने के कारण है. नौटंकी तो ऐसे कर रही हो जैसे कोई बहुत बड़ी बीमारी हो गई है. हुंह.’’

निखिल की बात से अवंतिका एक बार फिर खीझ गई. वह मन ही मन सोचने लगी कि चाहे जो हो मुझे हिम्मत से काम लेना होगा. भावनात्मक सहारा मिले न मिले लेकिन अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा को जरूर भरना होगा. समय के ऊबड़खाबड़ रास्ते पर अवंतिका के जीवन की गाड़ी यों ही बढ़ते जा रही थी. इधर औफिस के साथ घर की जिम्मेदारियां पूरा करते हुए अवंतिका मेनोपौज के दौर से भी गुजर रही थी. निखिल का रूखा व्यवहार पतिपत्नी के रिश्ते में खटास भरने का काम करने लगा था. अवंतिका को ऐसे में अपने मातापिता की बहुत याद आती कि काश वे होते तो उन से कुछ अपना दुख बांट लेती.

यामिनी ने अवंतिका की परेशानियों को समझाते हुए उसे पुन: सलाह दी कि प्रोजैक्ट में अतुल को शामिल कर के उस की मदद ले ले. कुछ तो राहत मिलेगी और यह बात उन तीनों तक ही रहेगी, बौस को जानकारी नहीं होने देंगे.

अवंतिका को यामिनी की बात जंच गई. उस ने इस नए प्रोजैक्ट में अतुल को अपने साथ मिला लिया. अतुल अवंतिका की बड़ी इज्जत करता था. सहयोगी व्यवहार के कारण वह एक बार फिर अवंतिका के काम में सहयोग करने के लिए तैयार हो गया.

अब अवंतिका ने थोड़ी राहत की सांस ली. काम को ले कर अतुल और अवंतिका की बातचीत औफिस के बाद घर पर भी फोन से होने लगी. निखिल को यह बात भी खटकने लगी. अवंतिका निखिल की इस मानसिक सोच से अनभिज्ञ अपनी दिनचर्या में मसरूफ थी. घर आने के बाद भी अतुल का काम के सिलसिले में कभी कौल तो कभी मैसेज आ जाता. इस बार का प्रोजैक्ट बड़ा महत्त्वपूर्ण था और अवंतिका कोई गलती नहीं करना चाहती थी. इसलिए 1-1 बारीकी पर वह अतुल से बात करती.

अतुल के सहयोग से अवंतिका का काम आसान तो हो गया मगर निखिल के साथ रिश्ते कठिन होने लगे.

एक शाम अवंतिका रसोई में खाना बना रही थी कि तभी अतुल का फोन आया. प्रोजैक्ट फाइल में कहीं कुछ मिसिंग था. उस को ले कर वह अवंतिका से कुछ जरूरी चीज पूछने लगा. उस में से मैटर बताने के लिए अवंतिका हौल की तरफ बढ़ गई और वहीं बैठे निखिल को गैस पर चढ़ी सब्जी देखने को बोल दिया.

इधर अवंतिका फाइल समेट कर वापस रसोई में आई तो सब्जी जल चुकी थी. वह निखिल से अपनी बात बोली तो उस ने न सुनने की बात कह कर पल्ला झाड़ लिया. ऊपर से अवंतिका पर ही बरसने लगा, ‘‘मैं देख रहा हूं कि तुम्हें अब कोई और भाने लगा है. घर की जिम्मेदारी तो छोड़ो अब खाना बनाने में भी मन नहीं लग रहा है. सीधेसीधे बोल दो कि तुम स्वतंत्र होना चाहती हो.’’

‘‘निखिल, तुम यह क्या बोल रहे हो? बच्चे क्या कहेंगे यह सब सुन कर? मैं तुम्हें सब्जी देखने के लिए बोल कर फाइल देखने चली गई थी.’’

‘‘अच्छा, तुम्हें नहीं दिखा कि मैं क्रिकेट मैच देख रहा हूं?’’

‘‘यदि तुम्हें नहीं देखना था तो बोल देते, मैं बच्चों को बोल देती. खैर, बात खत्म करो. आइंदा मैं बच्चों से ही बोल कर कुछ सहयोग ले लिया करूंगी.’’

‘‘हांहां, ले लो बच्चों का सहयोग. तुम नौकरी करो और बच्चों की पढ़ाई छुड़वा कर उन से घर के काम करवाओ.’’

‘‘अब इस में पढ़ाई छुड़वाने की बात कहां से आ गई? घर में छोटेमोटे कुछ काम देख लेने से उन की पढ़ाई छूट जाएगी? कितने बच्चे शहरों में अकेले रह कर पढ़ाई करते हैं. वे अपना काम खुद करते हैं.’’

अवंतिका समझ कर बात खत्म करना चाहती थी. लेकिन निखिल का गुस्सा 7वें आसमान पर था. उस दिन की तकरार से अवंतिका का मन टूट गया. उस ने एक पल को औफिस छोड़ने का मन बना लिया. अगले दिन औफिस में अवंतिका ने अतुल से प्रोजैक्ट पर काम करना बंद करने के लिए कहा. यह सुन कर अतुल चौंक गया. तब अवंतिका ने उसे अपनी पारिवारिक समस्याएं बताईं.

अतुल ने समझाया, ‘‘अवंतिकाजी, बड़ी सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ संघर्ष भी करना पड़ता है. आप संघर्ष करते हुए सफलता के करीब आने वाली हैं. ऐसे में जौब छोड़ने का फैसला गलत होगा.’’

अब तक यामिनी भी अवंतिका के पास आ चुकी थी और सारी बातें जानने के बाद उस ने भी अवंतिका को जौब न छोड़ने की सलाह दी.

एक तो अवंतिका मेनोपौज के दौर से गुजर रही थी उस पर निखिल का व्यवहार. औफिस में महत्त्वपूर्ण प्रोजैक्ट उस के कैरियर को एक टर्निंग पौइंट देने वाला बन चुका था इसलिए अतुल और यामिनी की बात मान कर अवंतिका अपने काम और पारिवारिक परिस्थितियों में सामंजस्य रखने की सोची. यामिनी और अतुल यह सुन कर मुसकरा दिए.

‘‘दैट्स लाइक ए गुड गर्ल. देखो अवंतिका, मेनोपौज के दौर से गुजर रही महिलाओं की मानसिकशारीरिक स्थिति कुछ अलग होती है, लेकिन बेहतर खानपान और योग के द्वारा इन स्थितियों से निबटा जा सकता है. तुम वादा करो, किसी भी सिचुएशन में खुद को कूल रखोगी.’’

यामिनी की बात सुन कर अवंतिका ने स्वयं को कूल रखने का वादा किया. प्रोजैक्ट को 3-4 दिन में पूरा कर लेना था. निखिल के व्यवहार को देखते हुए अवंतिका ने तय किया कि वह औफिस से 1 घंटा लेट निकलेगी. यहीं अतुल के साथ बैठ कर काम का निबटारा कर लेगी ताकि घर जा कर प्रोजैक्ट वर्क पर बात करने की जरूरत न पड़े. अतुल भी इस बात को सही माना.

2-3 दिन अवंतिका औफिस से घर लेट पहुंची तो निखिल अवंतिका पर शक करने लगा. उस ने औफिस से जानकारी ली तो अतुल और अवंतिका के लेट तक रुकने का पता चला. निखिल का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया लेकिन अपने क्रोध को छिपाते हुए उस ने एक शाम अतुल को बहुत जरूरी काम बोल कर बहाने से घर बुलाया.

‘‘अतुल इस आमंत्रण को सम?ा न सका. लेकिन उस ने निखिल के घर जाने का निर्णय लिया. अतुल को घर बुलाने के बाद निखिल ने उस को खूब फटकार लगाई और अवंतिका से दूर रहने की चेतावनी दी.

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? हमारे लिए आप के मन में क्या चल रहा है?’’ अतुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मेरे मन में नहीं तुम्हारे मन में चल रहा है और वह भी अवंतिका के लिए. तुम्हें शर्म नहीं आती किसी की गृहस्थी को बरबाद करते?’’ निखिल गुस्से में बोला.

‘‘निखिलजी आप बहुत गलत सोच रहे हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं अवंतिकाजी की बहुत इज्जत करता हूं,’’ अतुल ने सम?ाने का प्रयास किया.

अवंतिका निखिल के इस रवैए से बहुत गुस्सा हुई. अतुल के सामने ही अवंतिका और निखिल में अच्छीखासी बहस हो गई.

गुस्से में निखिल ने अवंतिका से कहा,  ‘‘ठीक है, तुम दोनों के बीच यदि कुछ भी गलत नहीं है तो अभी मेरे सामने तुम अतुल को राखी बांधो और इसे अपना भाई बना कर दिखाओ.’’

‘‘निखिल तुम इतनी गिरी हुई सोच के हो जाओगे यह मैं ने कभी नहीं सोचा था. मुझे तुम से नफरत हो गई है. क्या एक स्त्री और पुरुष मित्रवत व्यवहार के साथ नहीं रह सकते?’’

‘‘तुम बात घुमाने की कोशिश मत करो. अभी इसे राखी बांध कर इसे अपना भाई मानो.’’

अतुल भी निखिल के व्यवहार से क्रुद्ध हो गया है. लेकिन खुद को सामान्य बनाते हुए बोला, ‘‘अवंतिकाजी, आप इन की बात मान लीजिए. आप मेरी कलाई पर धागा बांध कर मुझे भाई के रूप में स्वीकार कीजिए.’’

अवंतिका अतुल की बात सुन कर कुछ बोलती उस से पहले ही अतुल ने फिर से अपनी बात दोहराई. अवंतिका को माहौल शांत करने का यही एकमात्र रास्ता नजर आया. वह मौली उठा कर ले आई और उसे अतुल की दाहिनी कलाई पर राखी के रूप में बांध दिया.

कलाई पर मौली बंधवाने के बाद अतुल अपने क्रोधावेग को बढ़ाते हुए बोला, ‘‘सुनो निखिल, मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं कि इसी पल से तुम अवंतिका के साथ न तो बुरा बरताव करोगे और न ही उसे किसी प्रकार का मानसिक कष्ट देने की कोशिश करोगे. अभी से यह मेरी बड़ी बहन है और यदि उस की आंखों में तुम्हारी वजह से आंसू आए तो मु?ा से बुरा कोई न होगा. याद रखना यह अवंतिका के भाई की चेतावनी है.’’

निखिल अतुल का यह रूप देख कर अवाक रह गया. वे इस प्रकार के जवाब की बिलकुल उम्मीद नहीं की थी. आगे वह किस बात पर बहस करे?

उस को चुप देख कर अतुल बोला, ‘‘मैं अवंतिकाजी को बड़ी बहन के रूप में ही इज्जत करता था लेकिन आज तुम ने हमारे रिश्ते को इस धागे से मजबूत बना दिया है. अब यह मत सम?ाना कि अवंतिका अकेली है. मैं इस का भाई सदैव इस के लिए खड़ा रहूंगा. चलता हूं अवंतिकाजी अपना खयाल रखिएगा और हां, आप को अपने काम पर पूरा फोकस करना है. यह प्रमोशन का अवसर आप के हाथ से जाने न पाए. अब मैं चलता हूं.’’

अतुल वहां से जा चुका था मगर निखिल के पैर अब भी जस के तस ठिठके थे.

‘‘आज तुम ने विश्वास की आखिरी डोर को भी तोड़ दिया. तुम ने मुझे जो दर्द की सिलवटें दी हैं वे हृदय में जीवनभर चुभती रहेंगी. निखिल, भले ही मैं यहां इस घर में रहूंगी वह भी अपने बच्चों की खातिर मगर मेरे मन में तुम्हारे लिए

न तो पहले जैसी भावना रहेगी और न इज्जत. अपनी गंदी सोच से गृहस्थीरूपी

प्रेमालय को तुम ने मैला कर दिया है. तुम न तो अपनी जिम्मेदारियां समझ सके और न ही अपनी पत्नी को,’’ कह कर अवंतिका गुस्से से कमरे में चली गई और निखिल वहीं खड़ा अपनी सोच पर पछतावा करता रहा.

Stories : शिकारी बना उपहास का शिकार

Stories : नीलू थक कर अभीअभी वापस आई थी. वह एक वित्तीय कंपनी में ट्रेनर का काम करती थी और आज एक सरकारी विभाग ने उसे डिजिटल फ्रौड के ऊपर सैशन लेने के लिए बुलाया था. उस की कंपनी में वैसे तो कई ट्रेनर थे पर डिजिटल फ्रौड के लिए उसे सब से अच्छा ट्रेनर माना जाता था. वैसे वह इस प्रकार के सैशन अपनी कंपनी में लेती रहती थी परंतु बात दूसरे विभाग की थी और वह भी सरकारी विभाग की. अत: जोरदार तरीके से तैयारी की थी. पावरपौइंट प्रेजैंटेशन भी बहुत ही शानदार बनाया था. उस की मेहनत रंग लाई. सभी मंत्रमुग्ध हो कर उस की बातों को सुन रहे थे. उस ने एकतरफा लैक्चर देने के स्थान पर सैशन को सहभागी बनाया था. वह प्रतिभागियों से प्रश्न पूछती थी और उन्हें प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करती थी. कई रोचक किस्से उस ने प्रतिभागियों से साझा किए और प्रतिभागियों को भी अपने अनुभव साझ करने के लिए प्रोत्साहित किया.

ऐसा लग रहा था कि नीलू प्रतिभागियों से चिरपरिचित है. परिणाम यह हुआ कि उस के सैशन को बहुत सराहना मिली और विभाग प्रमुख ने उसे हर महीने इस प्रकार का सैशन लेने के लिए आमंत्रित किया. निश्चित रूप से वह बहुत खुश थी सभी की इतनी सकारात्मक प्रतिक्रिया पा कर, पर उस स्थान की दूरी काफी थी और ट्रैफिक के कारण वह थकीथकी महसूस कर रही थी.

शाम के 5 बज गए थे. नीलू ने चाय बना कर पी और आंखें बंद कर आराम करने लगी. पास में ही उस का प्यारा टौमी भी बैठा हुआ था. वह उस की पीठ पर हाथ फेर रही थी. टौमी अपनी पूंछ हिला कर उस के स्पर्श पर प्रतिक्रिया कर रहा था.

तभी नीलू का मोबाइल बज उठा. उस ने देखा वीडियोकौल आ रही है. नंबर अनजान था. वह जानती थी कि आजकल वीडियोकौल कर कई तरह से लोगों को फंसाया जाता है. सैक्सटोर्शन और अन्य प्रकार का भयादोहन आम हो गया है आजकल और कोई वक्त होता तो शायद वह इस कौल को नहीं उठाती पर अभी उसे मनोरंजन की आवश्यकता थी. ‘चलो, मन कुछ फ्रैश कर लिया जाए,’ यह सोच कर उस ने कौल उठा ली.

उधर से कोई पुलिसवरदी में था. नीलू अभीअभी जिस विषय पर सैशन ले कर आई थी वह विषय प्रत्यक्ष सामने था. अगले सैशन में इस घटना को भी साझ करूंगी यह सोच कर उस ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘मैं एनआईए से एसीपी सतीश बोल रहा हूं. आप मिसेज नीलू बोल रही हैं?’’ उधर से वरदीधारी ने कहा.

‘‘जी सर, मैं नीलू ही बोल रही हूं पर मैं मिसेज नहीं मिस हूं. मेरी शादी नहीं हुई है और किसी हैंडसम पुलिस वाले से शादी करने का इरादा रखती हूं,’’ नीलू ने कहा.

‘‘देखिए मजाक मत कीजिए और मैं जो कह रहा हूं उसे ध्यान से सुनिए.

आप के आधार नंबर का प्रयोग कर के एक कनैक्शन लिया गया है और उस से आतंकवादी समूह से बात की गई है. मैं जानता हूं कि आप निर्दोष हैं परंतु यह मामला आतंकवाद से संबंधित है और इस के लिए आप को जेल हो सकती है,’’ एसीपी सतीश ने कहा.

‘‘सब से पहले मुझे निर्दोष मानने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद एसीपी साहब. जेल तो ठीक है पर मैं कैसी लग रही हूं यह तो बताइए?’’ कह कर नीलू ने टौमी की ओर कैमरा घुमा दिया.

‘‘शायद आप का दिमाग ठिकाने नहीं है. मैं यह सोच कर आप को फोन कर रहा था कि आप की सहायता करूं पर आप लगता है जेल जाने के लिए बेताब हैं,’’ एसीपी क्रोधित हो गया.

इस बीच नीलू वाशरूम मोबाइल लिए हुए अपने हाथ धोने चली गई थी. उस ने कहा, ‘‘ऐसा मत कहिए एसीपी साहब. जो झूठ बोलता है उस का वाशरूम गंदा रहता है. देखिए मेरा वाशरूम कितना साफ है,’’ कह नीलू ने मोबाइल के कैमरे को कोमोड की ओर कर दिया.

अब एसीपी गुस्से से लाल हो गया. बोला, ‘‘बकवास बंद करो, यदि तुम खुद को बचाना चाहती हो तो एक खाता नंबर दे रहा हूं उस में 3 लाख रुपए भेज दो वरना 1 घंटे के अंदर सरकारी मेहमान बन जाओगी और यहां कोमोड इतना साफ नहीं मिलेगा.’’

‘‘सर आप तो नाराज हो गए, खाता नंबर बताइए,’’ नीलू ने कहा. एसीपी ने खाते का पूरा विवरण दे दिया.

इस बीच नीलू ने व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के अपनी सहेली नेहा को भी बुला लिया. नेहा आई तो उसे इशारे में समझाया कि कुछ मजेदार चल रहा है. पहले तो नेहा स्क्रीन पर वरदीधारी को देख कर घबराई पर जब नीलू की उस से बातें सुनीं तो समझ गई कि मामला क्या है.

कुछ देर नीलू यों ही इधरउधर कुछ करती रहा. फिर बोली, ‘‘एसीपी साहब मैं ने तो 3 लाख की जगह 4 लाख रुपए भेजने की कोशिश की पर आप का खाता बड़ा ही ऐट्टीट्यूड वाला है पैसे ले ही नहीं रहा है. क्या मैं 5 लाख रुपए भेजने की कोशिश करूं?’’

‘‘मतलब साफ है तुम जेल की हवा खाना ही पसंद कर रही हो. चलो ठीक है, तुम्हारे घर पुलिस आती ही होगी. पर फोन को डिसकनैक्ट मत करना क्योंकि तुम डिजिटल अरैस्ट में हो,’’ एसीपी ने कहा.

‘‘एसीपी सर, क्या मैं अपनी सहेली को भी जेल साथ ला सकती हूं उस का नाम नेहा है. बड़ी ही सैक्सी है. देखोगे तो मस्त हो जाओगे. मना मत करना प्लीज. लो इस से भी बात कर लो,’’ कहते हुए नीलू ने नेहा को फोन दे दिया.

नेहा को नीलू की बात सुन कर हंसी आ गई, ‘‘हाय हैंडसम, कैसे हो? क्या मैं नीलू से कम खूबसूरत हूं कि तुम ने मुझे कौल नहीं की?’’ नेहा ने इतनी सैक्सी अदा से कहा कि नीलू की हंसी छूट गई.

दोनों की खिलखिलाहट की आवाज सुन कर अब एसीपी समझ चुका था कि वह गलत लोगों से उलझ गया है. उस ने कौल को डिसकनैक्ट कर दिया. हंसतेहंसते नीलू और नेहा दोनों का दम फूल रहा था. जब दोनों सामान्य हुईं तो फिर उस नंबर पर कौल बैक की. वह नंबर व्यस्त आ रहा था.

‘‘लगता है किसी और को फंसाने की कोशिश कर रहा है एसीपी सतीश. 1930 पर इस नंबर की जानकारी दें पहले, फिर बातें करते हैं,’’ नीलू ने कहा और 1930 नंबर डायल करने लगी.

Social Story : धंधा अपना अपना

Social Story : ‘‘भक्तजनो,यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन तुम इन बेड़ियों को तोड़ दोगे उस दिन तुम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाओगे,’’ स्वामी दिव्यानंद की ओजस्वी वाणी गूंज रही थी.

महानगर के सब से वातानुकूलित हाल में एक ऊंचे मंच पर स्वामीजी विराजमान थे. गेरुए रंग के रेशमी वस्त्र, गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर चंदन का तिलक और उंगलियों में जगमगा रही पुखराज की अंगूठियां उन के व्यक्तित्व को अनोखी गरिमा प्रदान कर रही थीं.

प्रचार करा गया था कि स्वामीजी को सिद्धि  प्राप्त है. जिस पर उन की कृपादृष्टि हो जाए उस के कष्ट दूर होते देर नहीं लगती. पूरे शहर में स्वामीजी के बड़ेबड़े पोस्टर लगे थे. दूरदूर के इलाकों से आए भक्तजन स्वामीजी की महिमा का बखान करते रहते. जन सैलाब उन के दर्शन करने के लिए उमड़ा पड़ा था.

सुबह, दोपहर, शाम स्वामीजी दिन में 3 बार भक्तों को दर्शन और प्रवचन देते थे. इस समय उन का अंतिम व्याख्यान चल रहा था. पूरा हाल रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी से जगमगा रहा था. मंच की सज्जा गुलाब के ताजे फूलों से की गई थी, जिन की खुशबू पूरे हाल में बिखरी थी.

स्वामीजी के चरणों में शीश झुका कर आशीर्वाद लेने वालों का तांता लगा था. आश्रम के स्वयंसेवक भी श्रद्धालुओं को अधिकाधिक चढ़ावा चढ़ा कर आशीर्वाद लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे.

रात 9 बजे स्वामीजी का प्रवचन समाप्त हुआ. उन्होंने हाथ उठा कर भक्तों को आशीर्वाद दिया तो उन के जयघोष से पूरा हाल गुंजायमान हो उठा. मंदमंद मुसकराते हुए स्वामीजी उठे और आशीर्वाद की वर्षा करते हुए मंच के पीछे चले गए. उन के जाने के बाद धीरेधीरे हाल खाली हो गया. स्वामीजी के विश्वासपात्र शिष्यों श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंदजी महाराज ने स्वयंसेवकों को भी बाहर निकालने के बाद हाल का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

‘‘चलो भाई, आज की मजदूरी बटोरी जाए’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने अपने गेरुए कुरते की बांहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘दिन भर इन बेवकूफों का स्वागतसत्कार करतेकरते यह नश्वर शरीर थक कर चूरचूर हो गया है. अब इसे तत्काल उत्तम किस्म के विश्राम की आवश्यकता है. इसलिए सारी गिनती शीघ्र पूरी कर ली जाए,’’ सत्यानंदजी महाराज ने अंगड़ाई लेते हुए सहमति जताई.

‘‘जो आज्ञा महाराज, श्रद्धानंदजी महाराज ने मुसकराते हुए मंच के सामने लगे फूलों के ढेर को फर्श पर बिखरा दिया. फूलों के साथ भक्तजनों ने दिल खोल कर दक्षिणा भी अर्पित की थी. दोनों तेजी से उसे बटोरने लगे, किंतु उन की आंखों से लग रहा था कि उन्हें किसी और चीज की तलाश है.

श्रद्धानंदजी महाराज ने फूलों के ढेर को एक बार फिर उलटापुलटा तो उन की आंखें चमक उठीं. वे खुशी से चिल्लाए, ‘‘वह देखो मिल गया.’’

सामने लाल रंग के रेशमी कपड़े में लिपटी कोई वस्तु पड़ी थी. सत्यानंदजी महाराज ने लपक कर उसे उठा लिया. शीघ्रता से उन्होंने उस वस्त्र को खोला तो उस के भीतर 1 लाख रुपए की नई गड्डी चमक रही थी.

‘‘महाराज, आज फिर वह 1 लाख की गड्डी चढ़ा गया है,’’ सत्यानंदजी गड्डी ले कर दिव्यानंदजी के कक्ष की ओर लपके. श्रद्धानंदजी महाराज भी उन के पीछेपीछे दौड़े.

स्वामी दिव्यानंद शानदार महाराजा बैड पर लेटे हुए थे. आवाज सुनते ही वे उठ बैठे. उन्होंने एक लाख की गड्डी को ले कर उलटपुलट कर देखा. उस के असली होने का विश्वास होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘कुछ पता चला कौन था वह?’’

‘‘स्वामीजी, हम ने बहुत कोशिश की, लेकिन पता ही नहीं चल पाया कि वह गड्डी कब और कौन चढ़ा गया,’’ सत्यानंद महाराज ने कहा.

‘‘तुम दोनों माल खाखा कर मुटा गए हो. एक आदमी 5 दिनों से रोज 1 लाख की गड्डी चढ़ा जाता है और तुम दोनों उस का पता नहीं लगा पा रहे हो,’’ स्वामीजी की आंखें लाल हो उठीं.

‘‘क्षमा करें महाराज, हम ने पूरी कोशिश की…’’

‘‘क्या खाक कोशिश की,’’ स्वामीजी उस की बात काटते हुए गरजे, ‘‘तुम दोनों से कुछ नहीं होगा. अब हमें ही कुछ करना होगा,’’ इतना कह कर उन्होंने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर मिलाते हुए बोले, ‘‘हैलो निर्मलजी, मैं जिस मंच पर बैठता हूं उस के ऊपर आज रात में ही सीसी टीवी कैमरा लग जाना चाहिए.’’

‘‘लेकिन स्वामीजी, आप ही ने तो वहां कैमरा लगाने से मना किया था. बाकी सभी जगहों पर कैमरे लगे हुए हैं और उन की चकाचक रिकौर्डिंग हो रही है,’’ निर्मलजी की आवाज आई.

‘‘वत्स, यह सृष्टि परिवर्तनशील है. यहां कुछ भी स्थाई नहीं होता है,’’ स्वामीजी हलका सा हंसे फिर बोले, ‘‘तुम तो जानते हो कि मेरे निर्णय समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं. इसी कारण सफलता सदैव मेरे कदम चूमती है. तुम तो बस इतना बतलाओ कि यह काम कितनी देर में पूरा हो जाएगा. काम तुम्हारा और पैसा हमारा.’’

‘‘सूर्योदय से पहले आप की आज्ञा का पालन हो जाएगा,’’ निर्मलजी ने आश्वासन दिया. फिर झिझकते हुए बोले, ‘‘स्वामीजी कुछ जरूरी काम आ पड़ा है. अगर कुछ पैसे मिल जाते तो कृपा होती.’’

‘‘1 पैसे का भी भरोसा नहीं करते हो मुझ पर,’’ स्वामीजी ने कहा और फिर श्रद्धानंद की ओर मुड़ते हुए बोले, ‘‘निर्मलजी को अभी पैसे पहुंचा दो वरना उन्हें कोई दूसरा जरूरी काम याद आ जाएगा.’’

‘‘जो आज्ञा महाराज,’’ कह श्रद्धानंदजी महाराज सिर नवा कर चले गए.

निर्मलजी ने वादा निभाया. सूर्योदय से पहले स्वामीजी के मंच के ऊपर सीसी टीवी कैमरा लग गया. उधर उस भक्त ने भी अपनी रीति निभाई. आज फिर वह लाल वस्त्र में लिपटी 1 लाख की गड्डी स्वामीजी के चरणों में अर्पित कर गया था. श्रद्धानंद और दिव्यानंद आज भी उस भक्त का पता नहीं लगा पाए.

रात के 11 बजे स्वामीजी बड़ी तल्लीनता के साथ सीसी टीवी की रिकौर्डिंग देख रहे थे. अचानक एक दृश्य को देखते ही वे बोले, ‘‘इसे रिवाइंड करो.’’

श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग को रिवाइंड कर के चला दिया. स्वामीजी ने 2 बार और रिवाइंड करवाया. श्रद्धानंद को उस में कोई खास बात नजर नहीं आ रही थी, लेकिन स्वामीजी की आज्ञा का पालन जरूरी था.

‘‘रोकोरोको, यहीं पर रोको,’’ अचानक स्वामीजी चीखे, श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग तुरंत रोक दी.

‘‘जूम करो इसे,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी तो श्रद्धानंद ने जूम कर दिया.

‘‘यह रहा मेरा शिकार,’’ स्वामीजी ने सोफे से उठ कर स्क्रीन पर एक जगह उंगली रख दी. फिर बोले, ‘‘हलका सा रिवाइंड कर स्लो मोशन में चलाओ इसे.’’

श्रद्धानंद ने स्लो मोशन में रिकार्डिंग चला दी. रिकौर्डिंग में करीब 45 साल का एक व्यक्ति हाथों में फूलों का दोना लिए स्वामीजी के करीब आता दिखाई पड़ा. करीब आ कर उस ने फूलों को स्वामीजी के चरणों में अर्पित करने के बाद अपना शीश भी उन के चरणों में रख दिया. इसी के साथ उस ने अत्यंत शीघ्रता के साथ अपनी जेब से लाल रंग के वस्त्र में लिपटी गड्डी निकाली और फूलों के नीचे सरका दी. एक बार फिर शीश नवाने के बाद वह उठ कर तेजी से बाहर चला गया.

‘‘यह कोई तगड़ा आसामी मालूम पड़ता है. इस का चेहरा तुम दोनों ध्यान से देख लो. मुझे यह आदमी चाहिए… हर हालत में चाहिए,’’ स्वामीजी की आंखों में अनोखी चमक उभर आई.

‘‘आप चिंता मत करिए. कल हम लोग इसे हर हालत में पकड़ लाएंगे,’’ सत्यानंद ने आश्वस्त किया.

‘‘नहीं वत्स,’’ स्वामीजी अपना दायां हाथ उठा कर शांत स्वर में बोले, ‘‘वह मेरा अनन्य भक्त है. उसे पकड़ कर नहीं, बल्कि पूर्ण सम्मान के साथ लाना. स्मरण रहे कि उसे कोई कष्ट न होने पाए.’’

‘‘जो आज्ञा,’’ श्रद्धानंद और सत्यानंद ने शीश नवाया और कक्ष से बाहर चले गए.

अगले दिन उन दोनों की दृष्टि हर आनेजाने वाले भक्त के चेहरे पर टिकी थी. रात के करीब 8 बजे जब शरीर थक कर चूर होने लगा तब वह व्यक्ति आता दिखाई पड़ा.

‘‘देखो वह आ गया,’’ श्रद्धानंद ने सत्यानंद को कुहनी मारी.

‘‘लग तो यही रहा है. चलो उसे उधर ले कर चलते हैं,’’ सत्यानंद ने कहा.

‘‘अभी नहीं. पहले उसे गड्डी चढ़ा लेने दो ताकि सुनिश्चित हो जाए कि यह वही है जिस की हमें तलाश है,’’ श्रद्धानंद फुसफुसाए.

पिछले कल की तरह वह व्यक्ति आज भी मंच के करीब आया. फूल अर्पित करने के बाद उस ने स्वामीजी के चरणों में शीश नवाया, लाल रंग में लिपटी नोटों की गड्डी को चढ़ाने के बाद वह तेजी से उठ कर बाहर चल दिया.

‘‘मान्यवर, कृपया इधर आइए,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने उस के करीब आ कर सम्मानित स्वर में कहा.

‘‘क्यों?’’

‘‘स्वामीजी आप से भेंट करना चाहते हैं,’’ सत्यानंदजी महाराज ने बताया.

‘‘मुझ से? किसलिए?’’ वह व्यक्ति घबरा उठा.

‘‘वे आप की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हैं. इसलिए आप को साक्षात दर्शन दे कर आशीर्वाद देना चाहते हैं,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने बताया, ‘‘बड़ेबड़े मंत्री और अफसर स्वामीजी के दर्शनों के लिए लाइन लगा कर खड़े होते हैं. आप अत्यंत सौभाग्यशाली हैं, जो स्वामीजी ने आप को स्वयं मिलने के लिए बुलाया है. अब आप का भाग्योदय निश्चित है.’’

यह सुन उस व्यक्ति के चेहरे पर राहत के चिह्न उभर आए. श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंद महाराज ने उसे एक खूबसूरत कक्ष में बैठा दिया.

करीब आधा घंटे बाद स्वामीजी उस कक्ष में आए और अत्यंत शांत स्वर में बोले, ‘‘वत्स, तुम्हारे ललाट की रेखाएं बता रही हैं कि तुम्हें जीवन में बहुत बड़ी सफलता मिलने वाली है.’’

स्वामीजी की वाणी सुन वह व्यक्ति उन के चरणों में लेट गया. उस की आंखों से श्रद्धा सुमन बह निकले. स्वामीजी ने उसे अपने हाथों से पकड़ कर उठाया और फिर स्नेह भरे स्वर में बोले, ‘‘उठो वत्स, अश्रु बहाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि एक नया सवेरा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है.’’

‘‘स्वामीजी, आप के दर्शन पा कर मेरा जीवन धन्य हो गया,’’ वह व्यक्ति हाथ जोड़ कर बोला. भावातिरेक में उस की वाणी अवरुद्ध हो रही थी.

स्वामीजी ने उसे अपने साथ सोफे पर बैठाया और फिर बोले, ‘‘वत्स, एक प्रश्न पूछूं तो क्या उस का उत्तर सचसच दोगे?’’

‘‘आप आज्ञा करें तो उत्तर तो क्या आप के लिए प्राण भी देने के लिए तैयार हूं,’’ उस व्यक्ति ने कहा.

स्वामीजी ने अपनी दिव्यदृष्टि उस के चेहरे पर टिका दी फिर सीधे उस की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘तुम प्रतिदिन 1 लाख रुपयों की गड्डी मेरे चरणों में क्यों चढ़ा रहे हो?’’

यह सुन उस व्यक्ति ने अपनी आंखें बंद कर लीं. उस के चेहरे पर छाए भावों को देख कर लग रहा था कि उस के भीतर भारी संघर्ष चल रहा है. चंद पलों बाद उस ने अपनी आंखें खोलीं और बोला, ‘‘स्वामीजी, मैं एक अरबपति आदमी था, लेकिन व्यापार में घाटा हो जाने के कारण मैं पूरी तरह बरबाद हो गया. सभी रिश्तेदारों और परिचितों ने मुझ से मुंह मोड़ लिया था. एक दिन मुझे पता चला कि यूरोप में एक बंद फैक्टरी कौड़ियों के भाव बिक रही है. मेरी पत्नी आप की अनन्य भक्त है. उस की सलाह पर मैं ने अपना मकान और पत्नी के गहने बेच कर वह फैक्टरी खरीद ली. आप को उस फैक्टरी में 20% का साझेदार बना कर मैं ने उस फैक्टरी को दोबारा चलाना शुरू कर दिया. शुरुआती दिनों में काफी परेशानियां हुईं लेकिन आप के आशीर्वाद से पिछले सप्ताह से वह फैक्टरी फायदे में आ गई. इस समय उस से 5 लाख रुपये रोज का फायदा हो रहा है. इसलिए 20% के हिसाब से मैं रोज 1 लाख रुपए आप के चरणों में अर्पित कर देता हूं.’’

‘‘लेकिन तुम ने यह बात गुप्त क्यों रखी?’’ मुझे बता भी तो सकते थे? स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मैं ने सुना है कि आप मोहमाया और लोभ से काफी ऊपर हैं. इसलिए आप को बता कर आप की साधना में विध्न डालने का साहस मैं नहीं कर सका.’’

‘‘वत्स, धन्य हो तुम. तुम जैसे ईमानदार व्यक्तियों के बल पर ही यह दुनिया चल रही है वरना अब तक अपने पाप के बोझ से यह रसातल में समा चुकी होती,’’ स्वामीजी ने गंभीर स्वर में सांस भरी फिर आशीर्वाद की मुद्रा में आते हुए बोले, ‘‘ईश्वर की कृपा दृष्टि तुम पर पड़ चुकी है. जल्द ही तुम्हें 5 लाख रुपए नहीं, बल्कि 5 करोड़ रोज का मुनाफा होने वाला है.’’

‘‘सत्य वचन महाराज,’’ उस व्यक्ति ने श्रद्धा से शीश झुकाया फिर बोला, ‘‘यूरोप में ही एक और बंद पड़ी खान का पता लगा है, मैं ने हिसाब लगाया है कि अगर उसे ठीक से चलाया जाए तो 5 करोड़ रुपए रोज तो नहीं लेकिन 5 करोड़ रुपए महीने का फायदा जरूर हो सकता है.’’

‘‘तो उस फैक्टरी को खरीद क्यों नहीं लेते?’’

‘‘खरीद तो लेता, लेकिन उस के लिए करीब 20 करोड़ रुपए चाहिए. मैं ने काफी भागदौड़ की, लेकिन फंड का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. एक बार मुझे व्यापार में घाटा हो चुका है, इसलिए फाइनैंसर मुझ पर दांव लगाने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं,’’ उस व्यक्ति के स्वर में निराशा झलक उठी.

‘‘वत्स, फंड की चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हें मेरी शरण में भेज दिया है, इसलिए अब सारी व्यवस्थाएं हो जाएंगी,’’ स्वामीजी मुसकराए.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम जैसे व्यक्तियों का दिया मेरे पास बहुत कुछ है. वह मेरे किसी काम का नहीं है. तुम उसे ले जाओ और फैक्टरी खरीद लो,’’ स्वामीजी ने कहा.

‘‘आप मुझे इतना रुपया दे देंगे?’’ उस व्यक्ति की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘अकारण नहीं दूंगा,’’ स्वामीजी मुसकराए, ‘‘मुझे अपने भक्तों के कल्याण के लिए बहुत सारे कार्य करने हैं. इस सब के लिए बहुत पैसा चाहिए. इसलिए इस पैसे से तुम फैक्टरी खरीद लो, लेकिन उस में 51 प्रतिशत शेयर मेरे होंगे.’’

‘‘आप धन्य हैं महाराज,’’ वह व्यक्ति एक बार फिर स्वामीजी के चरणों में लोट गया.

‘‘श्रद्धा और सत्या, तुम दोनों अभी इन के साथ इन के निवास पर जाओ.

साझेदारी के कागजात तुरंत बना लो ताकि फैक्टरी को जल्द से जल्दी खरीद लिया जाए,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी.

अगले ही दिन साझेदारी के कागजात तैयार हो गए. स्वामीजी ने हजारों भक्तों की चढ़ाई की कमाई अपने अनन्य भक्त को सौंप दी. वह भक्त फैक्टरी खरीदने यूरोप चला गया.

स्वामीजी की आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने जगमगा रहे थे. किंतु जब 1 महीने तक उस भक्त का कोई संदेश नहीं आया तो उन्होंने श्रद्धानंद और सत्यानंद को उस के निवास पर भेजा. वहां उपस्थिति गार्ड ने उन दोनों को देखते ही बताया, ‘‘उन साहब ने तो 2 महीने के लिए यह कोठी किराए पर ली थी, किंतु आप लोगों के आने के 2 दिनों बाद वे अचानक ही इसे खाली कर के चले गए थे. किंतु जाने से पहले वे आप लोगों के लिए एक लिफाफा दे गए थे. कह रहे थे कि आप लोग एक न एक दिन उन से मिलने यहां जरूर आएंगे.’’

इतना कह कर गार्ड अपनी कोठरी के भीतर से एक लिफाफा ले आया. डगमगाते कदमों से वे दोनों स्वामी दिव्यानंद के पास लौट आए और लिफाफा उन्हें पकड़ा दिया.

स्वामीजी ने लिफाफा फाड़ा तो उस के भीतर से एक पत्र निकला, जिस में लिखा था:

‘‘आदरणीय स्वामी जी,

सादर चरण स्पर्श. अब तो आप को विश्वास हो गया होगा कि यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन कोई व्यक्ति इन बेड़ियों को तोड़ देगा उस दिन वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाएगा. आप ने अपने भक्तों की बेड़ियां तोड़ने का कार्य किया है और मैं ने आप की इन बेड़ियों को तोड़ने की छोटी सी चेष्टा की है. आप इसे ‘धंधा अपना अपना’ भी कह सकते हैं.

आप का एक सेवक.

स्वामीजी उस पत्र को अपलक निहारे जा रहे थे और श्रद्धा और सत्या उन के चेहरे को.

Best Online Story : लमहों को आजाद रहने दो

Best Online Story :  भूमिका आज बेहद खुश नजर आ रही थी. अभीअभी तो उस ने फेसबुक पर अपनी डीपी अपलोड करी थी और 1 घंटे में ही सौ लाइक आ गए थे. गुनगुनाते हुए खुद को आईने के सामने निहारते हुए भूमिका मन ही मन सोच रही थी. पहले मैं कितनी गंवार लगती थी. न कोई फैशन सैंस थी और ना ही मेकअप की तमीज और अब देखो 50 वर्ष की उम्र में भी कितने पुरुष और लड़के उस के ऊपर मोहित हो रहे हैं. काश, कुछ वर्ष पहले यह सोशल मीडिया आ जाता तो उस की जिंदगी कुछ और ही होती.

तभी रोहित डकार मारता हुआ भूमिका के सामने आ गया. भूमिका बेजारी से रोहित को देखने लगी कि क्या रोहित ही मिला था उस के मातापिता को इस दुनिया में उस के लिए… रोहित का बढ़ता वजन, झड़ते बाल, बेतरतीबी से पहने कपड़े, जोरजोर से डकार लेना सभी कुछ तो उसे रोहित से और दूर कर देता था.

रोहित भूमिका को देखते हुए बोला, ‘‘आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’

भूमिका फेसबुक पर नजर गड़ाते हुए बोली, ‘‘अभी बनाती हूं.’’

खाना बनातेबनाते भूमिका बारबार आज शाम के फंक्शन में कैसे रील बनाएगी सोच रही थी. बालों को खुला छोड़े या कोई हेयर स्टाइल बनाए.

ये सब सोचतेसोचते उस की तंद्रा तब टूटी जब कुकर से जलने की महक आने लगी. जल्दीजल्दी कुकर की सीटी निकाली और जल्दी खाना खा कर पार्लर की भाग गई.

जब मेकअप खत्म हुआ तो भूमिका ने एक नजर आईने पर डाली और मन ही मन इतराते हुए सोचने लगी कि आज तो मेरे फौलोअर्स की खैर नहीं. शाम के फंक्शन में भूमिका ने जम कर रील बनाई. भूमिका के भाईभाभी, रोहित और उस की बेटी आर्या सभी भूमिका के इस व्यवहार से आहत थे.

आज भूमिका के भाई के बेटे का जन्मदिन था. भूमिका की भाभी को लगा कि भूमिका के आने से उस की कुछ मदद हो जाएगी मगर भूमिका तो अपने में ही व्यस्त थी. बारबार रील बनाते हुए टेक और रीटेक करते हुए भूमिका ने अपना सारा समय बिता दिया. जन्मदिन में कौनकौन मेहमान आए, कब केक कटा उसे कुछ भी नहीं पता. वह तो बस अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी. घर पहुंच कर भी भूमिका अपनी रील की एडिटिंग में ही व्यस्त रही. आर्या ने ही उलटासीधा खाना बना लिया था. आर्या को किचन में काम करता देख कर रोहित को गुस्सा आ गया. भूमिका के हाथ से मोबाइल छीनते हुए रोहित बोला, ‘‘आर्या को इस साल 12वीं कक्षा के ऐग्जाम के साथसाथ ऐंट्रैंस ऐग्जाम भी देने हैं और वह तुम्हारे हिस्से का काम कर रही है.

भूमिका तुनकते हुए बोली, ‘‘मैं रातदिन किचन में लगी रहती हूं तो कभी दर्द नहीं हुआ. आज बेटी ने एक टाइम का खाना क्या बना लिया कि पूरा घर सिर पर उठा दिया.’’

रोहित के हाथ से अपना मोबाइल छीनते हुए भूमिका ने अपनेआप कमरे में बंद कर लिया. भूमिका अपनी रील के व्यूज को देखने में व्यस्त थी. बस 250 व्यूज ही आए थे. मन ही मन मनन कर रही थी कि क्या करे कि व्यूज बढ़ जाएं.

तभी भूमिका ने सोचा क्यों न डांस करते हुए अपनी एक रील बनाए. सोशल मीडिया पर वैलिडेशन की भूमिका का सिर पर इतना भूत सवार था कि उस ने बिना कुछ सोचेसमझे एक रील बना ली और फेसबूक पर अपलोड कर दी. भूमिका उस रील में बेहद भद्दी लग रही थी. साफ नजर आ रहा था कि उस ने किसी और के शौर्ट्स और टीशर्ट पहन रखे थे. खटाखट लाइक्स आ रहे थे और साथ ही साथ भूमिका की खुशी भी बढ़ती जा रही थी.

कितने सारे पुरुषों के मैसेंजर पर मैसेज आए हुए थे. हरकोई उस से दोस्ती करने को आतुर था. और तो और कुछ लड़के तो भूमिका से 10 से 15 साल छोटे थे मगर सब को वो हौट लग रही थी. तभी भूमिका के घर से उस की मम्मी का फोन आया, ‘‘लाली यह क्या कर रही है तू सारे लोग महल्ले में तेरा मजाक उड़ा रहे हैं.’’

‘‘ऐसे कैसा वीडियो बन कर तूने डाल दिया है. कम से कम देख तो लेती कि तू उस में कैसी लग रही है.’’

भूमिका ने कहा, ‘‘लगता है भैयाभाभी ने तुम्हारे कान भरे हैं. मम्मी मैं कभी भी तुम्हारी फैवरिट नहीं थी. तुम्हें तो हमेशा दीदी और भाभी की सुंदरता के आगे मैं फीकी ही लगी. इतनी फीकी कि तुम ने रोहित जैसे नीरस आदमी के साथ मुझे बांध दिया.

‘‘आज अगर लोग मुझे पहचान रहे हैं, मेरे काम की तारीफ कर रहे हैं तो तुम्हारी बहू को आग लग गई क्योंकि वह अपने बढ़ते वजन के कारण ये सब नहीं कर सकती है जो मैं अब कर पा रही हूं.’’

भूमिका की मम्मी ने फोन रखने से पहले बस यह कहा, ‘‘लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए क्याक्या करेगी तू,’’ और खटाक से फोन रख दिया.

घर के काम निबटाने के बाद भूमिका अपनी रील पर आए कमैंट्स को पढ़ने लगी कमैंट्स पढ़ कर उस का मन करा कि वह जल्द ही एक और डांस करते हुए रील बना ले. अगले दिन सब के जाते ही भूमिका ने फिर से डांस करते हुए रील बनाने की तैयारी करीए. मगर हर बार उसे संतुष्टि नहीं मिल रही थी. जब तीसरी बार भूमिका घूमघूम कर नाचने लगी उस का पैर फिसल गया और उस का सिर पास ही रखी शीशे की मेज से टकरा गया. शुक्र था कि सिर बच गया मगर पैर में मोच आ गई. किसी तरह गिरतेपड़ते डाक्टर के पास पहुंची और तमाम प्रोसीजर्स के बाद जब बाहर निकली तो 5 हजार की चपत लग चुकी थी.

जब तक भूमिका का पैर पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ उस ने बैठेबैठे ही कुछ रील बनाईं और अपलोड कर दी थीं. हर रील पर भूमिका को कुछ न कुछ कमैंट्स आते ही थे और धीरेधीरे ऐसा होने लगा कि भूमिका अपनी वर्चुअल दुनिया से इतनी जुड़ गई कि वह अपनी असल दुनिया से डिस्कनैक्ट हो गई.

भूमिका को यह लगने लगा था कि स्क्रीन के उस पार के लोग ही हैं जो उस के अपने हैं, जो उस की कद्र करते हैं. हर रील के साथ यह पागलपन बढ़ता ही जा रहा था.

अब तो यह हाल हो गया था कि मार्केट जाते हुए, चाट खाते हुए हर समय भूमिका रील बनाती रहती. हद तो तब हो गई जब भूमिका की हास्यास्पद रीलों के कारण आर्य अपने दोस्तों के बीच मजाक बन कर रह गई.

सीधेसीधे नहीं मगर इशारों से सभी लड़के आर्या के आते ही हौट आंटी, मस्त आंटी कह कर के कटाक्ष करने लगते थे. आर्या को सब समझ में आ रहा था मगर वह कैसे अपनी मम्मी को सम?ाए. इन्हीं सब कारणों से आर्या और भूमिका में दूरी बढ़ती जा रही थी. मगर भूमिका इन सब बातों से बेखबर अपनी ही दुनिया में मस्त थी. उधर रोहित भूमिका का घर के प्रति लापरवाह रवैया देख कर मन ही मन कुढ़ता रहता था.

भूमिका का यह सोशल मीडिया का बुखार बढ़ता ही जा रहा था. वह अपने जीवन के हर लमहे को कैद कर के अपलोड कर देती थी. भूमिका को जीने से अधिक अपलोडिंग में मजा आता था. उस का पहनना, खानापीना सबकुछ सोशल मीडिया तय करता था. क्या ट्रैडिंग कर रहा है क्या नहीं इस बात पर भूमिका की जिंदगी निर्भर हो गई थी.

आर्या के ऐग्जाम के बाद पूरा परिवार जब घूमने गया तो हर 1 घंटे में एक नई रील बनाने के कारण भूमिका साथ होकर भी साथ नहीं थी. उस का सारा ध्यान उस रमणीय स्थल को देखने में नहीं वहां पर फोटो खिंचवाने और रील बनाने में था. भूमिका हर हाल में अपने सब्स्क्राइबर बढ़ाना चाहती थी.

रोहित ने एक दिन गुस्से में कह भी दिया, ‘‘भूमिका, तुम हमारे साथ आई ही क्यों हो. लगता ही नहीं तुम हमारे साथ आई हो.’’

मगर भूमिका सारी बातें अनसुनी कर देती थी. 12वीं कक्षा के रिजल्ट के बाद आर्या पढ़ने के लिए बाहर चली गई. उस की एडमिशन से ले कर प्रवेश परीक्षा तक सब चीजों में उस के पापा रोहित का ही योगदान था. भूमिका का योगदान बस अपनी बेटी के प्रति बस उस की तसवीरों और हैशटैग को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने में ही सिमट गया था.

आर्या के कुछ बोलने से पहले ही भूमिका कहती, ‘‘तुम्हें सबकुछ वर्षों बाद भी याद रहेगा इसलिए मैं ये सब कर रही हूं.’’

आर्या व्यंग्य करते हुए बोली, ‘‘हां, महसूस तो कुछ हुआ ही नहीं है बस तसवीरों में ही याद रहेगा.’’

भूमिका इतनी अधिक इस नशे की शिकार हो गई थी कि उसे भनक भी नहीं लगी कि कब और कैसे रोहित अपनी खुशी अपनी एक तलाकशुदा सहकर्मी में ढूंढ़ने लगा था. उस महिला का नाम भावना था. रोहित अकसर दफ्तर के बाद भावना के घर ही चला जाता था. वैसे भी उसे अपना घर, घर कम स्टूडियो ज्यादा लगता था. कहीं रिंग लाइट, कहीं मेकअप का बिखरा समान… हर जगह बस दिखावा था. भावनाएं कहीं नहीं थीं.

जब से आर्या होस्टल चली गई थी तब से अधिकतर खाना या तो बाहर से आता या फिर रोहित बनाता था. भूमिका ने यह भी ध्यान नहीं दिया कि कब और कैसे रोहित रात के 9 बजे दफ्तर से घर आने लगा है.

रोहित को अब भूमिका से कोई फर्क नहीं पड़ता था. भूमिका रील बनाने में व्यस्त रहती और रोहित भावना के साथ चैटिंग करने में. जब आर्या छुट्टियों में घर आई तब भी भूमिका अपने सोशल मीडिया पर ही व्यस्त रही. रोहित आर्या को भावना के घर ले कर गया और भावना ने आर्या के साथ खूब सारी बातें और शौपिंग करी. दोनों बापबेटी को भावना में अपना नया घर मिल गया था.

भूमिका को तब होश आया जब रोहित रात को भी घर से गायब रहने लगा. आखिर एक दिन भूमिका ने रोहित को रंगे हाथ पकड़ लिया. जब भूमिका रोहित को लानतसलामत भेज रही थी तब रोहित बोला, ‘‘तुम इस बात पर रील बना कर अपने व्यूज बढ़ाओ. तुम्हारे सब्स्क्राइबर्स बढ़ाने का यह सुनहरा मौका है. तुम्हारा पति हूं कुछ तो ऐसा करूंगा जिस से मेरी पत्नी को फायदा हो,’’ यह बोल कर रोहित तीर की तरह घर से बाहर निकल गया.

भूमिका को समझ नहीं आ रहा था कि रोहित क्या सच में ऐसा उस के व्यूज बढ़ाने के लिए कर रहा है या वाकई में उस का अफेयर चल रहा है.

भूमिका इस मायावी दुनिया के सफर में इतना आगे बढ़ गई थी कि उसे वास्तविकता और वर्चुअल दुनिया में कोई फर्क ही नजर नहीं आता था. बरसों से भूमिका अपने किसी भी दोस्त से नहीं मिली थी. औनलाइन दोस्त ही उस की दुनिया बन कर रह गए थे.

भूमिका अपनी इस समस्या के लिए नए हैशटैग और अपनी एक दुखी तसवीर को क्लिक करने में व्यस्त हो गई थी. शायद जिंदगी के हर लमहे को कैद करतेकरते भूमिका कब और कैसे इस मायावी दुनिया में कैद हो गई थी उसे पता नहीं था.

IVF Child : अंश हमारा है

IVF Child : विपिन और सीमा बेसब्री से घर में आने वाले नए मेहमान के स्वागत की तैयारी में व्यस्त थे. शादी के 7 साल बाद भी जब उन के आंगन में बच्चे की किलकारियां नहीं सुनाई दीं तो उन्होंने आईवीएफ का सहारा लिया. स्पर्म और एग दे कर लैब में फर्टिलाइजेशन करवा लिया.

दोनों के परिवार वाले काफी संकीर्ण विचारों के थे. आईवीएफ का आइडिया किसी को भी बताया ही नहीं गया था पर विपिन और सीमा ने जब एक बार फैसला ले लिया तो फिर किसी की चिंता नहीं की. सीमा की मां निर्मला बच्चे के घर आने के हिसाब से उन के पास मुंबई आ गई थीं.

विपिन और सीमा को डाक्टर कीर्ति मेनन ने एक प्यारा सा बच्चा उन की गोद में दिया तो दोनों भावुक हो गए, सीमा ने खुशी से रोते हुए बच्चे को चूमचूम कर जैसे वहां उपस्थित सभी लोगों को भावुक कर दिया. निर्मला देवी ने बच्चे को अपनी बांहों में लेते हुए सब को थैंक यू कहा. साथ लाई मिठाई डाक्टर और स्टाफ को देने का इशारा करती नजरों से सीमा से कहा, ‘‘पहले सब का अपने हाथों से मुंह मीठा कराओ.’’

‘‘घर वापसी में विपिन के बराबर में बैठी सीमा बच्चे को ही निहारती रही. विपिन कार चलाते हुए बोला, ‘‘सीमा, हम ने सोचा था बेटा होगा तो नाम अंश रखेंगे, ठीक है न नाम मां?’’

‘‘पंडितजी से निकलवाएंगे, जैसा वे कहें,’’ जवाब सीमा ने दिया, ‘‘मां नहीं, हम खुद रखेंगे बच्चे का नाम, आप के पंडितजी ने कभी यह बताया था कि मैं मां कब बन पाऊंगी?’’

निर्मला चुप हो गईं. बोलीं, ‘‘खुशी का समय है, गुस्सा मत हो जैसा तुम्हें ठीक लगे, वैसा कर लो बेटा.’’

घर तक सिर्फ अंश की ही बातें होती रहीं. विपिन और सीमा का फ्लैट मीरा रोड पर था. घर में काम करने वाली मेड अंजू को अब पूरे दिन के लिए रख लिया गया था. अंश के साथ जैसे सब का जीवन पूरी तरह बदल गया. सब की बातों का केंद्र वही रहता.

सीमा विपिन से हंस कर कहने लगी, ‘‘विपिन, तुम ने देखा हम तो जैसे हर बात भूल गए अपनी, बस ये ही अब लाइमलाइट ले लेता है.’’

विपिन हंसा, ‘‘हां, बहुत दिन तुम्हारे आगेपीछे घूम लिया, अब अंश का नंबर है.’’

सीमा ने छेड़ा, ‘‘मतलब तुम्हें किसी न किसी के आगेपीछे घूमना ही है.’’

‘‘हां यार बड़ी मुश्किल से लाइफ में यह दिन आया है कि तुम्हारे सिवा भी किसी और के आगेपीछे घूमने का मन करता है.’’

यों ही हंसीखुशी 1 महीना बीत गया. प्रोग्राम बना कि अब दोस्तों को, परिवार वालों को बुला कर एक पार्टी भी दे ही दी जाए. विपिन ने अपने मातापिता सीता और गौतम और सीमा के पिता महेश को भी अंश को देखने आने के लिए कहा. तय हुआ कि अगले महीने एक छोटी सी पार्टी कर ली जाएगी. विपिन और सीमा अपनेअपने पेरैंट्स की एकमात्र संतान थे, भाईबहन कोई था नहीं. अंश रातभर रोता, दिनभर सोता.

कुछ दिनों बाद विपिन औफिस जाने लगा. अब तक उस ने अंश के साथ रहने के लिए छुट्टियां ली हुई थीं. सीमा अंश की देखरेख में मगन रहती.

एक दिन निर्मला अंश को ध्यान से देखते हुए कहने लगीं, ‘‘सीमा, इस की शकल तुम लोगों से मिलनी चाहिए न?’’

‘‘हां. पर क्या हुआ अचानक?’’

‘‘यह तुम लोगों से क्यों नहीं मिलता जबकि इस में तुम लोगों की झलक तो दिखनी चाहिए?’’

सीमा को मां का यह कहना अच्छा नहीं लगा. वह चुप रही तो निर्मला को अंदाजा हुआ शायद उन की बात बेटी को बुरी लग गई है. वे फिर टौपिक चेंज कर के कुछ और बातें करने लगीं. पर सीमा को मन में कुछ अटक गया था. वह पूरा दिन बेचैन सी रही.

रात को जब विपिन आया तो सीमा का चेहरा कुछ उतरा सा था. उस ने निर्मला से पूछा तो उन्होंने, ‘पता नहीं’ में सर हिला कर इशारा कर दिया जबकि वे यह जान रही थीं कि सुबह उन की बात के बाद से उन की बेटी उखड़ीउखड़ी सी है.

विपिन फ्रैश हो कर अंश को गोद में उठा कर उस के साथ खेलता रहा. सोते हुए उस ने पूछा, ‘‘सीमा क्या अंश ने आज ज्यादा परेशान किया?’’

सीमा उस के पूछते ही रुंधे गले से बोली, ‘‘विपिन, क्या अंश की शकल हम दोनों से नहीं मिलती?’’

‘‘मिले या न मिले, क्या करना है, यह हमारा बेटा है, बस, बात खत्म,’’ कह कर उस ने सीमा के गले में बांहें डाल उसे बहला दिया पर सीमा का मूड फिर भी ठीक नहीं हुआ. वह बहुत देर तक अंश की शक्ल देखती रही. हां, शायद इस की शक्ल हम लोगों से नहीं मिलती, इस के बाल कितने घुंघराले हैं, हमारे जैसे तो नहीं हैं. अंश के रोने पर उस की तंद्रा भंग हुई. वह उस का नैपी बदलने लगी. विपिन सो चुका था.

अगले दिन से सीमा अंश के लिए होने वाली पार्टी की तैयारियों में व्यस्त हो गई तो यह बात उस के दिमाग से निकल गई. वह फिर से उल्लास से भरी दिखी तो निर्मला को कुछ चैन आया, नहीं तो वे एक अपराधबोध से भर उठी थीं कि इतने दिनों बाद बेटी अंश के साथ खुश थी तो उन्होंने यह बात कर दी. अब उन्हें अच्छा लगा. महेश, सीता और गौतम साथसाथ ही मुंबई पहुंचे. घर में जैसे एक उत्सव का माहौल था. अंश सब के हाथ में जैसे एक खिलौने की तरह घूमता रहा. तीनों उस के लिए बहुत कुछ लाए थे. सीता अंश को ध्यान से देख रही थीं तो विपिन ने पूछ लिया, ‘‘क्या देख रही हो मां?’’

सीता ने कहा, ‘‘यह तुम दोनों का ही बच्चा है न?’’

‘‘क्यों मां?’’

‘‘घर में तो इस की शकल किसी से नहीं मिल रही है? हौस्पिटल में कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई न?’’

‘‘मां, अभी यह कितना छोटा है, अभी कैसे इस की शकल समझ आ सकती है? आप ही तो कहती थीं कि बच्चा पता नहीं कितनी शक्लें बदलता है. क्या बेकार के शक वाली बातें हैं ये.’’

सीमा ने यह वार्त्तालाप सुना तो उस का दिल बैठ गया. कहीं हौस्पिटल में तो कुछ गलती नहीं हो गई. खैर, वह फिर इस विषय पर चुप ही रही. उस की नजरें अपनी मां से मिलीं तो जैसे उन्होंने भी यही कहा कि देखो, मैं ने सच ही कहा था न.

सोसाइटी के क्लब हाउस में ही अंश की पार्टी थी. दोनों के करीब सौ परिचित आए थे. पार्टी सब ने बहुत ऐंजौय की. गोलमटोल अंश सब की नजरों का केंद्र बना रहा. अच्छे खुशनुमा माहौल में सब खातेपीते रहे.

सीमा की बैस्ट फ्रैंड आरती ने उसे एक किनारे ले जा कर पूछा, ‘‘सीमा, तू बीचबीच में इतनी चुप सी क्यों दिख रही है मुझे कुछ उलझ सी है?’’

सीमा और आरती पुरानी सहेलियां थीं. सीमा दिल का शक उस से बांटने लगी, ‘‘यार,सब कह रहे है कि हौस्पिटल में कहीं गड़बड़ तो नहीं हुई. अंश हमारी तरह बिलकुल नहीं दिखता, क्या करूं, मन में शक सा बैठ गया है. चल, कल जा कर डाक्टर कीर्ति से बात करती हैं? चलेगी? किसी को बिना बताए चलते हैं कल.’’

‘‘ठीक है, फोन करना आ जाऊंगी.’’

सब से घर का कुछ सामान लेने जाने का बहाना कर आरती के साथ सीमा डाक्टर कीर्ति से मिलने गई. उन्होंने सारी बात सुन कर सीमा को बहुत समझाया कि हमारे यहां कोई गड़बड़ नहीं हुई. ऐसा अकसर हो जाता है. अभी तो अंश बहुत छोटा है. अभी से यह शक नहीं करना चाहिए कि अंश उन का बेटा नहीं.’’

डाक्टर जितनी अच्छी तरह समझ सकती थी, उन्होंने समझाया पर सीमा को तसल्ली नहीं हुई तो आरती ने कहा, ‘‘कुछ दिन और सोच ले परेशान मत हो.’’

कुछ दिन और बीते दोनों के पेरैंट्स कुछ दिन रह कर चले गए पर उन के मन में शक का एक बीज डाल ही गए थे. अंश को आईवीएफ से प्राप्त किया था. अंश सालभर का हो गया. वह बहुत सुंदर, बहुत गोरे रंग का स्वस्थ बच्चा था जबकि विपिन और सीमा उतने गोरे नहीं थे.

आसपास के लोग कभीकभी कह उठते, ‘‘अरे, यह किस पर है? ’’

और दोनों इस बात को दिल से लगा लेते. एक दिन आरती ने कहा, ‘‘मेरी भाभी एक बाबा को बहुत मानती हैं, तू चाहे तो उन से मिल ले. वे सब की शंकाओं का समाधान करते हैं. वाशी में उन का एक बड़ा आश्रम है और बहुत बड़ेबड़े लोग उन के यहां आते हैं.’’

सीमा ने विपिन से इस बारे में कोई बात नहीं की. वह अंश को ले कर इतनी उलझन और शक में थी कि कभी किसी बाबा के चक्कर में न पड़ने वाली सीमा एक दिन अंश को ले कर टैक्सी से वाशी जा पहुंची. बाबा ओंकार नाथ भक्तों से घिरे बैठे थे. वह एक कोने में जा कर खड़ी हो गई. एक युवा, सुंदर लड़की उस के पास आ कर बोली, ‘‘कहिए, क्या काम है?’’

‘‘बाबा से मिलना है.’’

‘‘पहली बार आई हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या परेशानी है?’’

‘‘उन्हें ही बताऊंगी.’’

‘‘एक फौर्म भर दो.’’

सीमा हैरान तो हुई पर फौर्म भर दिया, नाम, फोन नंबर ही लिखना था.

उस लड़की ने जा कर बाबा के कान में कुछ कहा और बाकी भीड़ को हटाया तो सीमा ने बाबा को ध्यान से देखा, याद आया उन के प्रवचन के पोस्टर उस ने कई जगह देखे हुए थे. न्यूज पेपर में भी उन के साथ किसी न किसी नेता का फोटो दिखाई दे जाता था, करीब 50-55 साल के ओंकार नाथ ने उस लड़की से कुछ कहा और फिर वे एक रूम में चले गए. लड़की उसे उस रूम में ले जाते हुए कहने लगी कि लग रहा है तुम किसी परेशानी में हो, बाबा आराम से तुम से बात करना चाहते हैं.’’

भव्य, सारी सुविधाओं से संपन्न कमरे में बाबा एक इजी चेयर पर बैठे हुए थे. लड़की ने सीमा को पास रखी चेयर पर बैठने का इशारा किया और रूम से चली गई. एक बार तो सीमा मन ही मन डर गई, यह क्या किया उस ने, किसी को बिना बताए यहां आ गई, कैसी बेवकूफी कर दी. अंश उस की गोद में गहरी नींद सोया था.

बाबा ने अपनी गहरी सी आवाज में कहा, ‘‘कहो, क्या परेशानी है?’’

बाबा की आवाज में कुछ सम्मोहन सा था. सीमा कुछ सहज हो गई. उस ने अपने मन की बात बता कर कहा, ‘‘बस मुझे ऐसे ही चैन नहीं आ रहा है. यही सोचती रहती हूं कि सचमुच कहीं अंश हमारा बेटा न हो, कैसे मेरे दिल को चैन आए कि यह हमारा ही बेटा है.’’

ओंकार नाथ कुछ देर सोचते रहे, फिर ध्यान से अंश को देखते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं, फिर थोड़ी देर बाद कहा, ‘‘तुम 2 दिन बाद फिर आओ, तुम्हारी शंका का समाधान हो जाएगा.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘बाहर वही लड़की खड़ी है जो तुम्हें आगे का काम समझा देगी.’’

सीमा अनमनी सी उस रूम से बाहर निकल आई. वह लड़की उसे एक कोने में रखी चेयर के पास ले गई. बोली, ‘‘आराम से बैठो. सुनो, आज की फीस 2 हजार है, पहले वह जमा करवा दो.’’

सीमा हैरान हुई, ‘‘फीस कैसी?’’

‘‘बाबाजी ने अपना टाइम नहीं दिया? तुम से बात नहीं की?’’

‘‘मैं नहीं दूंगी, अभी मेरे पास हैं भी नहीं.’’

‘‘शायद तुम बाबाजी को अच्छी तरह जानती नहीं.’’

‘‘मैं फिर आऊंगी तो ले आऊंगी,’’ सीमा ने इतना कहा ही था कि अंश उठ गया और उस की गोद से छूटने के लिए हाथपैर मारने लगा.

सीमा ने कहा, ‘‘अभी मुझे घर जाना है, फिर आऊंगी तो पैसे ले आऊंगी.’’

सीमा अंश को ले कर वहां से निकल आई. उस की जान में जान आई. उस ने सोचा नहीं वह यहां नहीं आएगी. घर आ कर भी सीमा ने विपिन से कुछ नहीं बताया, 2 दिन बीते कि सीमा के फोन पर किसी ने फोन किया. एक लड़की की आवाज थी, ‘‘आप बाबाजी से मिलने नहीं आईं?’’

सीमा को झटका सा लगा, उस ने रूखे स्वर में कहा, ‘‘हां, टाइम नहीं मिला.’’

फिर फोन किसी पुरुष ने ले लिया, कहा, ‘‘बाबाजी तुम से मिलना चाहते हैं.’’

‘‘मैं फिलहाल नहीं आ रही हूं.’’

‘‘ठीक है, अगले हफ्ते आ जाना,’’ कह कर फोन रख दिया गया तो सीमा हैरान सी बैठी रही कि यह क्या जबरदस्ती है.

10 दिन और बीते तो सीमा ने सोचा कि अब बाबा का किस्सा खतम हुआ पर ऐसा नहीं था. फोन आ गया.

इस बार किसी पुरुष ने कहा, ‘‘आप उस दिन बाबाजी से पूछ रही थीं कि आपका बेटा आप का ही है या नहीं, जानने के लिए आओगी नहीं?’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जानना है.’’

‘‘फिर सारी दुनिया क्या जान जाएगी, पता है?’’ कह कर वह पुरुष बड़ी बेशर्मी से हंसा, फिर बोला, ‘‘बाबाजी के कमरे में क्या करने गई थी?’’

सीमा को गुस्सा आ गया. डपटते हुए कहा, ‘‘क्या बकवास है?’’

‘‘सब तक यह खबर पहुंच जाएगी कि वह बच्चा तुम्हारा नहीं है, देख लेना और अगर चाहती हो कि अब यह बात न खुले तो 25 हजार ले कर चुपचाप आश्रम आओ नहीं तो तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि क्याक्या होगा. तुम्हें पता भी है कि तुम्हारे कितने पड़ोसी और रिश्तेदार स्वामीजी के भक्त हैं. उन सब तक यह बात पहुंचाना हमारे लिए कोई मुश्किल बात नहीं है. देखना कैसीकैसी बातें होगीं फिर. तब समझ आएगा कि हमारे कहे अनुसार न चल कर कितनी गलती की तुम ने समझा?’’

सीमा का दिमाग भन्ना गया, यह कहां फंस गई वह. बाबा है या कोई चोर, सिरदर्द से फटने लगा.

विपिन आया तो उस की शकल देख कर हैरान हो गया, उड़ी सी, डरी हुई. सीमा उसे देखते ही उस से लिपट कर रोने लगी, ‘‘मुझ से बड़ी गलती हो गई विपिन, सौरी.’’

वह रोई तो अंश भी उसे देख कर घबरा कर रोने लगा, विपिन ने एक हाथ से अंश को गोद में लिया, दूसरे हाथ से सीमा का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाया, ‘‘क्या हुआ सीमा इतनी परेशान क्यों हो?’’

रोते हुए सीमा ने विपिन को पूरी बात बता दी. विपिन ने अपना सिर पकड़ लिया, ‘‘यह क्या किया, सीमा, तुम ऐसी कब से हो गई? क्यों बेकार के शक में पड़ी हो. यह देखो, तुम्हें रोते देख अंश भी रोने लगा, आज से ही बेकार के शक हम दोनों ही अपने दिमाग से निकाल देगें, डाक्टर ने कहा था न कि ऐसी कोई गलती नहीं हुई है, कितने ही बच्चे परिवार में बिलकुल अलग दिखते हैं, हम पढ़ेलिखे लोग भी बाबाओं के चक्कर में पड़ ही जाते हैं.

‘‘खैर अब छोड़ो, चिंता मत करो, यह बेकार का शक है, बस, अंश हमारा ही बेटा है, यह मेरा दिल कहता है, तुम तो इस की मां हो, तुम क्यों भटक रही हो? सोचो, अंश को वे लोग कोई नुकसान पहुंचा देते तो?’’

विपिन की बातों से सीमा के दिल को कुछ तसल्ली हुई. उस ने कहा, ‘‘ठीक कहते हो, मैं ही बेवकूफी कर आई. पता नहीं क्यों लोगों की इस बात पर इतना ध्यान दे दिया. पर अब किसी का फिर फोन आ गया तो?’’

‘‘थोड़े दिन लैंड लाइन से काम चलाओ, फोन औफ रखना, जरूरी काम हो तभी औन करना.’’

सीमा थोड़े तैश से बोली, ‘‘इन लोगों की पुलिस कंप्लेंट नहीं करनी चाहिए? परदाफाश नहीं होना चाहिए ऐसे बाबाओं का? एक बार क्या चली गई परेशान कर दिया.’’

‘‘नहीं, बाबाओं के हाथ बहुत लंबे होते हैं, उन से बच निकलना ही काफी है, ये लोग अपने विरोधियों को मरवा तक देते हैं. अभी हम इन चक्करों में नहीं पड़ सकते, हमें अंश को बड़ा करना है,’’ विपिन ने बहुत शांत स्वर में सीमा को समझाया.

‘‘ठीक कहते हो, ऐसा लग रहा है बालबाल बचे. 1-2 बार और चली जाती तो बहुत बुरी फंसती.’’

‘‘चलो, अब चिंता छोड़ो, अंश हमारा अंश है, बस,’’ कहतेकहते विपिन ने अंश के गाल चूम लिए, अंश उस से लिपट गया. सीमा ने प्यार से दोनों के गले में बांहें डाल दीं.

जोर का झटका: जब मजे के लिए अस्पताल पहुंचे वामनमूर्ति

भारत अस्पताल के पार्किंग एरिया में अपनी कार रोक कर वामनमूर्ति नीचे उतरे. ब्रीफकेस खोल कर नैशनल इंश्योरैंस द्वारा दी गई हैल्थ पौलिसी के कार्ड को अपनी जेब में रखा और शान से अस्पताल में प्रवेश किया.

भारत अस्पताल का शहर में कौरपोरेट अस्पताल के रूप में अच्छा नाम है. 20 एकड़ क्षेत्र में ऊंचे पहाड़ों पर फूलों के बगीचे के बीच बना भारत अस्पताल आधुनिकता दर्शाता एक फाइव स्टार होटल सा दिखाई पड़ता है.

वामनमूर्ति अस्पताल में प्रवेश करते ही कुछ देर तो आश्चर्यचकित हो कर अस्पताल को देखते रह गए. फिर अपने इंश्योरैंस कार्ड को देखते हुए, खुशी से रिसैप्शन रूम में दाखिल हुए और दीवार पर टंगे बोर्ड पर स्पैशलिस्ट डाक्टरों के नाम और उन की शैक्षणिक योग्यताओं को देख कर खुशी से झमते हुए वे मन ही मन बुदबुदाए, ‘वाऊ, क्या अस्पताल है.’

रिसैप्शन पर एक खूबसूरत युवती कंप्यूटर पर काम कर रही थी. उन्हें देख कर वह बोली, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘वामनमूर्ति,’’ हौले से मुसकराते हुए उन्होंने कहा.

‘‘अच्छा नाम है.’’

‘क्या है इस में अच्छा होने के लिए,’ वे मन ही मन बुदबुदाए.

युवती बोली, ‘‘उम्र?’’

वामनमूर्ति बोले, ‘‘45 वर्ष.’’

‘‘प्रोफैशन.’’

‘‘कालेज लैक्चरर.’’

‘‘इंश्योरैंस है क्या?’’

‘‘हांहां है,’’ वामनमूर्ति खुशी से बोले.

‘‘क्या हैल्थ प्रौब्लम है?’’

‘‘हां सिर चकरा रहा है.’’

‘सिर चकराने से ही यहां आते हैं?’ वे फिर से बुदबुदाते हुए मन ही मन गुस्सा जाहिर करने लगे.

युवती बोली, ‘‘आप जनरल फिजीशियन, डायबिटीज स्पैशलिस्ट, हृदय रोग विशेषज्ञ किस से मिलेंगे?’’

‘‘जनरल फिजीशियन से,’’ वामनमूर्ति बोले.

‘‘ठीक है.’’

‘‘दाहिनी तरफ के कौरिडोर में दूसरा कमरा है डाक्टर नित्यानंद का, आप वहां जाइए.’’

वामनमूर्ति 500 रुपए फाइल के दे कर डाक्टर नित्यानंद से मिलने पहुंचे. वहां आधा घंटा इंतजार करने के बाद उन की डाक्टर नित्यानंद से मुलाकात हुई. डा. नित्यानंद की उम्र लगभग 50 वर्ष थी और सिर गंजा था. उन के पास स्पैशलाइजेशन की 4-5 मैडिकल डिग्रियां भी थीं.

डाक्टर नित्यानंद ने वामनमूर्ति को देखते हुए पूछा, ‘‘प्रौब्लम क्या है?’’

वामनमूर्ति बोले, ‘‘डाक्टर, 2-3 बार सिर चकराया है. ब्लडप्रैशर की समस्या भी है. इस के साथसाथ जनरल चैकअप भी करवाना चाहता हूं. यह देखिए, इंश्योरैंस कार्ड भी है.’’

‘‘इस के लिए आप को ऐडमिट होना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है, मैं ऐडमिट हो जाऊंगा. मैं ने 2 दिन की छुट्टी ले ली है. आप टैस्ट लिखें,’’ वामनमूर्ति बोले.

फिर कुछ सोचते हुए डाक्टर ने कहा, ‘‘अस्पताल में रहने के लिए सीरियस प्रौब्लम बतानी पड़ती है. आप कितनी बार टौयलेट जाते हैं?’’

‘‘हर रोज 2-3 बार.’’

‘‘ठीक है, मैं ‘क्रौनिक लूज बोल सिंड्रोम’ लिखूंगा. आप के बाकी टैस्ट गैस्ट्रोलौजिस्ट और हृदय रोग विशेषज्ञ करेंगे. सभी टैस्ट को पूरा करने के लिए और औब्जर्वेशन में रखने के लिए कितने दिन ऐडमिट रहने के लिए लिखूं, 2 या 3 दिन अस्पताल में रहोगे?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘2 दिन रुक सकता हूं, उस से ज्यादा छुट्टी नहीं है.’’

‘‘ठीक है. आप ऐडमिट हो जाइए.’’

एडमिशन काउंटर पर अपना इंश्योरैंस कार्ड दे कर वामनमूर्ति फाइव स्टार होटल जैसे अस्पताल के कमरे में पेशैंट के रूप में भरती हुए. नर्स के बाहर जाते ही वामनमूर्ति ने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए मन ही मन कहा, कितना अच्छा कमरा है. गैस्ट बैड, सीलिंग लाइट्स, टौयलेट आदि. कुछ सोचते हुए वह बुदबुदाए, कौन्फ्रैंस के समय में मैं शेयरिंग बेसिस पर ऐसे ही कमरे में रहता हूं. इंश्योरैंस करवाना कितना अच्छा साबित हुआ.

फिर उन्होंने पत्नी को फोन किया ओर कहा, ‘‘मैं अस्पताल में भरती हो गया हूं, तुम बच्ची को ले कर अस्पताल आ जाओ. हम 2 दिन यहां रुकेंगे.’’

इतने में चैकअप करने के लिए गैस्ट्रोलौजिस्ट आए और केस शीट देखते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘आज कितनी बार टौयलेट हो कर आए हो?’’

‘‘2 बार,’’ वामनमूर्ति झूठ का सहारा लेते हुए बोले, जबकि उस दिन वे टौयलेट गए ही नहीं थे.

‘‘ऐसा कब से हो रहा है?’’

‘‘6 महीने से. मुझे एक परेशानी और है डाक्टर, मेरा सिर चकराता है.’’

‘‘कब? शौच जाने की इच्छा होने पर या उस के बाद में?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘शौच के आरंभ से ले कर बाद में भी. काम करते हुए भी सिर चकराता है.’’

‘‘मुझे ऐसा लगता है आप को कोई न्यूरोलौजिकल समस्या है. मैं आप को न्यूरोलौजिस्ट के पास रेफर करता हूं.’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘ठीक है डाक्टर, लेकिन कल शाम तक पूरी चिकित्सा हो जानी चाहिए, क्योंकि मेरे पास और छुट्टी नहीं है.’’

‘‘ठीक है, आप के रैक्टम में गांठ हो सकती है, इस के लिए टैस्ट लिखता हूं. 1-2 घंटे कुछ मत खाइएगा. 4 घंटे बाद यह

टैस्ट होगा,’’ यह कहते हुए डाक्टर चले गए.

तभी एक नर्स ने अंदर आ कर वामनमूर्ति से कहा, ‘‘रक्त चाहिए, 6 घंटे में एक बार टैस्ट करना होगा.’’

‘‘अरे बाप रे, यह कौन सा टैस्ट है?’’ वामनमूर्ति ने सहमते हुए पूछा.

नर्स बोली, ‘‘यह टैस्ट आप के रक्त में बेसिक साल्ट की बदलती स्थिति को देखने के लिए है. इस से यह पता चलेगा कि लूजमोशन हो रहा है या नहीं. हमें इसे 24 घंटे तक देखना है.’’

नर्स ने बाहर जाते हुए वामनमूर्ति से कहा, ‘‘रात को

8 बजे ही भोजन करें, कल सुबह फास्टिंग, ब्लड सैंपल लेना है.

12 घंटे पहले कुछ भी नहीं खाना.’’

वामनमूर्ति बोले, ‘‘मुझे ऐसिडिटी है. रात के 3 बजे ही जाग जाता हूं. 2 बिस्कुट खा कर 1 कप दूध पीने पर भी नींद नहीं आती.’’

‘‘ऐसा होने पर कुछ भी नहीं खाना चाहिए,’’ नर्स ने कहा.

तभी हृदय रोग विशेषज्ञ आ गए. उन्होंने वामनमूर्ति का टैस्ट कर के कहा, ‘‘आप का बीपी व पल्स रेट नौर्मल ही है. आप का सिर चकराना बीपी के कारण से नहीं, फिर भी ईसीजी, इको टैस्ट करने के लिए लिख रह हूं. चैकअप करने से लाभ ही होगा.’’

‘‘हां ठीक है, मुझे वही चाहिए,’’ वामनमूर्ति बोले.

‘‘कल सुबह सभी टैस्ट करने होंगे, आप तैयार रहें.’’ यह कहते हुए डाक्टर चले गए.

डाक्टर के जाते ही वामनमूर्ति टीवी औन कर के पैर हिलाते हुए टीवी देखने लगे. ब्लड निकलने के कारण उन के बाएं हाथ में दर्द हो रहा था. हर आधे घंटे में एक बार हंस की चाल चलती हुई युवतियां कौफी, टी, टिफिन सभी पेशैंट को दे रही थीं.

तभी सिल्क साड़ी पहने एक सुंदर युवती ने वामनमूर्ति से पूछा, ‘‘आप की देखभाल ठीक से हो रही है या नहीं?’’

वामनमूर्ति ने ‘हां’ में जवाब दिया.

तभी न्यूरोलौजिस्ट ने कहा, ‘‘आप को न्यूरोलौजिकल डिसऔर्डर है या नहीं, यह जानने के लिए न्यूरोग्राफ निकालना पड़ेगा. ओ.के.?’’

‘‘उस टैस्ट में दर्द होता है क्या?’’ वामनमूर्ति डरते हुए बोले.

‘‘नोनो, एकदम नहीं,’’ न्यूरोलौजिस्ट बोला.

‘‘अगर दर्द नहीं होता तो ठीक है,’’ वामनमूर्ति ने राहत की सांस ली.

शाम के समय वामनमूर्ति की पत्नी बेटी के साथ अस्पताल पहुंची. अस्पताल आने से पहले पड़ोस में रहने वाली मीनाक्षी ने उन से पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘मेरे पति भारत अस्पताल में भरती हैं. उन्हीं के पास जा रही हूं. पता नहीं किस हाल में होंगे बेचारे.’’

पत्नी के अस्पताल पहुंचते ही वामनमूर्ति अपना बड़प्पन जाहिर करते हुए बोले, ‘‘देखा, हम कितने बड़े अस्पताल में मुफ्त में रह रहे हैं.’’ उस दिन सभी टैस्ट पूरे हुए. वामनमूर्ति ने अपना समय टीवी देखते हुए, कुछ खाते हुए और बातें करते हुए गुजारा. दूसरे दिन सुबह सभी टैस्ट होने के बाद दोपहर तक रिपोर्ट आ गई.

पूरी रिपोर्ट सही थी. डाक्टर नित्यानंद ने आ कर डिस्चार्ज शीट लिखी.

उन्होंने वामनमूर्ति से कहा, ‘‘आप को कोई भी डिसऔर्डर नहीं है. जब कभी आप मानसिक रूप से अपसेट होते हैं, तभी लूजमोशंस और सिर चकराने की समस्या होती है.’’

‘‘इस के लिए मैं क्या करूं?’’ वामनमूर्ति ने पूछा.

‘‘आप काम में तल्लीन हो जाइए. ऐसा करने से सभी उतारचढ़ाव अपनेआप कम हो जाएंगे,’’ डाक्टर ने कहा.

फिर डाक्टर वामनमूर्ति की पत्नी से बोले, ‘‘आप बिल सैक्शन में जा कर रसीद ले लीजिए.’’

कुछ देर बाद वामनमूर्ति की पत्नी बिलिंग सैक्शन से वापस आईं. अस्पताल वालों ने इंश्योरैंस वालों से बात की तो उन्होंने कहा कि पहले पेशैंट बिल भर दे, हम बाद में चैक भेजेंगे. आप चाहें तो इस फोन नंबर पर बात कर सकते हैं.

वामनमूर्ति ने बिल देखा… 50 हजार रुपए. ‘‘इतना ज्यादा बिल,’’ कहते हुए वामनमूर्ति ने फिर से बिल को देखा. स्पैशलिस्ट डाक्टर्स ने 5-5 हजार रुपए लिए, स्पैशल रूम व भोजन का खर्च 20 हजार रुपए. टैस्ट के लिए खर्च का विवरण भी उस में है. अब पैसों का भुगतान कैसे करें, कल तक यहीं ठहर कर पत्नी को बैंक भेजना सही नहीं होगा.

हड़बड़ाते हुए वामनमूर्ति ने ब्रीफकेस से एटीएम कार्ड निकाले और पत्नी से कुल 60 हजार रुपए एटीएम से लाने के लिए कहा.

‘‘हमें पैसे अदा करने की क्या जरूरत है, इंश्योरैंस है न?’’ फिर भी पति की जल्दबाजी को देख कर वे 1 घंटे में 60 हजार रुपए ले कर आ गईं. तब तक वामनमूर्ति पसीने से तरबतर हो रहे थे.

काउंटर पर बिल अदा कर के ‘जान है तो जहान है’ कहते हुए वह पत्नी के साथ अस्पताल से बाहर आए और कार में बैठते हुए अस्पताल की ओर देखा. भारत अस्पताल बोर्ड के नीचे यह वाक्य लिखा हुआ था- मानव सेवा ही हमारा कर्तव्य है.

दूसरे दिन वामनमूर्ति ने अस्पताल का बिल इंश्योरैंस कंपनी को भेजा. एक हफ्ते बाद इंश्योरैंस कंपनी द्वारा एक लिफाफा प्राप्त हुआ. लिफाफा खोलते समय वामनमूर्ति की खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन यह क्या, लिफाफे में चैक न हो कर एक जवाबी चिट्ठी थी. उस में लिखा था, ‘आप को टैस्ट के लिए हो या चिकित्सा के लिए अस्पताल में कम से कम 3 दिन रहना चाहिए था, लेकिन आप अस्पताल में सिर्फ 2 दिन ही रहे. इसलिए हम आप के क्लेम को वापस भेज रहे थे.’

वामनमूर्ति ने हड़बड़ाते हुए इंश्योरैंस डाक्यूमैंट देखा. उस के अंत में एक जगह छोटे अक्षरों में लिखा था- ‘अस्पताल में कम से कम 3 दिन रहना जरूरी है.’ यह पढ़ते ही उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. उनका सिर अब सही में चक्कर खाने लगा.

‘टैस्ट, चिकित्सा के नाम पर उन के 50 हजार रुपए व्यर्थ चले गए.’ वे हताश हो कर बैठ गए. भविष्य में अस्पताल में मौज मनाने के नाम से वामन मूर्ति ने तोबा कर ली.

श्रीमतीजी: राशिफल की भविष्यवाणियां

हम अखबार में सब से पहले राशिफल पढ़ते हैं, फिर मौसम का हाल देखते हैं. उस के बाद ही घर से निकलते हैं.

उस दिन राशिफल में लिखा था, ‘दिन खराब गुजरेगा, बच कर रहें. और मौसम के बारे में बताया गया था कि आज गरजचमक के साथ बौछारें पड़ेंगी.’

मगर सुबह से शाम हो गई, लेकिन गरजचमक के साथ बौछारों का कोई अतापता न था. लेकिन शाम को घर में कदम रखते ही श्रीमतीजी गरजचमक के साथ जरूर बरसीं, ‘‘तुम्हें तो कौड़ी भर भी अक्ल नहीं है. तुम से ज्यादा अक्लमंद तो रमाबाई है.’’

रमाबाई मेमसाहब के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर खुशी से फूल कर कुप्पा हो रही थी और हमें शरारत भरी निगाहों से देख रही थी. हम कुछ सम  झ पाते उस से पहले ही रमाबाई ने इठलाते हुए कहा, ‘‘साहब, कल जो साड़ी आप लाए थे आज मेमसाहब उसे पहन कर अपनी सहेलियों से मिलने गई थीं. मेमसाहब ने जब उन्हें बताया कि यह क्व2,500 की है तो मिसेज शर्मा तुरंत बोलीं यह तो सड़कछाप सेल में क्व350 में मिल रही थी. फिर मिसेज शर्मा ने आप को खरीदते भी देखा था. अब मेमसाहब की तो फजीहत हो गई…’’

हम सोच रहे थे कि इतने बड़ेबड़े घोटाले हो रहे हैं, जनता चिल्ला रही है, लेकिन घोटालेबाजों की श्रीमतियां हमेशा कहती हैं कि उन के पति निर्दोष हैं, लेकिन हमारी श्रीमती तो …बाप रे बाप, पूरी छिलवा हैं, छिलवा. 1-1 कर जब तक सभी परतें नहीं निकाल लें, तब तक उन्हें चैन ही नहीं मिलता है.

अगले दिन के अखबार में मौसम के बारे में लिखा था कि आसमान साफ रहेगा और राशिफल में भविष्यवाणी थी कि जेब हलकी रहेगी. हम सोच रहे थे कि चलो आज का दिन अच्छा बीतेगा, सब कुछ साफ और हलका रहेगा. लेकिन औफिस जाते समय पैंट की जेबें टटोलीं तो मालूम हुआ कि वे तो पहले से ही हलकी कर दी गई हैं.

हम ने जब यह बात श्रीमतीजी को बताई तो वे बोलीं, ‘‘अरे, जेबें ही तो हलकी हुई हैं, गला तो सलामत है न? आजकल कब क्या साफ हो जाए, क्या हलका हो जाए, कुछ नहीं कह सकते. गले से चेन साफ हो जाती है, औफिसों से फाइलें हलकी हो जाती हैं. चलो, कोई बात नहीं, अब तुम औफिस में चाय मत पीना और औफिस पैदल जाना, सब ठीक हो जाएगा.’’

हम ने अपनी परेशानी कम करने के लिए एक दिन टीवी चै?नल पर बाबाजी को फोन लगाया और कहा, ‘‘बाबाजी, हर भविष्यवाणी हमारे खिलाफ रहती है मगर श्रीमतीजी के पक्ष में… हम तो हर बात पर चोट खाखा कर परेशान हो गए. कोई उपाय बताएं.’’

बाबाजी ने फौरन अपना कंप्यूटर खोला, हमारा नाम, जन्मतिथि पूछी और फिर पिटारा खोलते हुए कहा, ‘‘आप की शादी के लिए जब लड़की तलाशी जा रही थी उस समय राहु की सीधी दृष्टि आप के ऊपर थी. जब शादी की रस्में चल रही थीं, उस समय केतु की दृष्टि और शादी के बाद से शनि की दशा चल रही है. इसलिए आप की श्रीमतीजी उच्च स्थान पर हैं और आप निम्न स्थान पर. खैर, आप परेशान न होइए. बस थोड़े से उपाय करने होंगे. सुबहसुबह अपने हाथ से 4 रोटियां बना कर काली गाय को खिलाएं. इस के अलावा आप को ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ पहनना होगा और उसे खरीदने के लिए नीचे दिए नंबर पर काल करें. इस की कीमत है क्व5,000, लेकिन यदि आप अभी काल करेंगे तो आप को यह सिर्फ क्व4,500 में मिल जाएगा टिंग टांग…’’

हम ने सोचा कि जिंदगी सलामत रहे तो बहुत कमा लेंगे और बाबाजी ने हमें इतना डरा दिया था कि अब हमें हमेशा सुंदर, सुमुखी लगने वाली श्रीमतीजी से डर लगने लगा था. इसलिए ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ का तुरंत और्डर दे दिया. अब बात रही रोटियां बना कर काली गाय को खिलाने की, तो हम ने जिंदगी में अभी तक कभी रोटियां नहीं बनाई थीं. श्रीमतीजी की जलीकटी रोटियां और बातें खा कर जिंदगी काट रहे थे.

अगली सुबह हम जल्दी उठे. नहा कर किचन में जा कर रोटियां बनाने के लिए आटा गूंधने लगे. जब आटे में पानी मिलाया तो वह ज्यादा गीला हो गया. फिर जब हम ने उस में फिर से आटा मिलाया तो वह कड़ा हो गया. इसी चक्कर में थाली आटे से भर गई.

इसी बीच श्रीमतीजी जाग गईं और बोलीं, ‘‘मैं इतने दिनों से कह रही थी कि जरा घर के काम सीख लो तो मु  झ से मना करते रहे और मेरे से छिपा कर अपने हाथों से रोटियां बना कर औफिस ले जाते हो… कौन है वह सौतन?’’

हम ने कहा कि भागवान ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन वे कहां मानने वाली थीं. वे तो कोप भवन में पहुंच चुकी थीं और हम से संभाले नहीं संभल रही थीं.

खैर, काली गाय को रोटियां तो खिलानी ही थीं, इसलिए औफिस जाते समय रखी गई रोटियों में से 1 रोटी हम ने निकाल ली और रास्ते में काली गाय को तलाशने के चक्कर में एक गड्ढे में पैर पड़ने से उस में मोच आ गई.

शाम को हम लंगड़ाते हुए घर पहुंचे तब श्रीमतीजी ने फिर चुटकी ली, ‘‘तो उस नाशपीटी ने सींग मार ही दिए…’’

हम फिर परेशान हो गए. अगले दिन फिर बाबाजी को फोन लगाया और उन्हें अपनी दास्तां सुनाई.

बाबाजी ने कहा, ‘‘बेटा, मंगल पर शनि की दृष्टि पड़ने से ‘पत्नी प्रलय योग’ शुरू हो गया है, इसलिए रक्षा लौकेट के साथसाथ ‘श्रीमतीजी प्रलय नाशक लौकेट’ भी पहनना जरूरी है. इस के क्व10 हजार और भेज दो.’’

रमाबाई छिपछिप कर हमारी और बाबाजी की बातें सुन रही थी. उस ने श्रीमतीजी को सब बता दिया.

एक दिन हम ने बाबाजी को बताया, ‘‘हम जैसेजैसे इलाज कर रहे हैं, वैसेवैसे बीमारी और बढ़ती जा रही है.’’

इस बार हम ने महसूस किया कि बाबाजी भी कुछ परेशान लग रहे हैं. वे बोले, ‘‘बेटा, तुम तो श्रीमतीजी के योग से परेशान हो, परंतु हमारे पीछे श्रीमतीजी महायोग लग गया है.’’

हम ने कहा, ‘‘बाबाजी, मैं कुछ सम  झा नहीं?’’

तभी हमारी श्रीमतीजी आ गईं और बोलीं, ‘‘बाबा तुम हमारे सीधेसाधे पति को भड़का रहे हो. कहने को तो महिलाएं अंधविश्वासी होती हैं, परंतु ऐसा लग रहा है कि पुरुष हम से ज्यादा अंधविश्वासी हैं…’’ ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ की हमारे पति को नहीं तुम्हें ज्यादा जरूरत है, जरा पीछे मुड़ कर तो देखो.’’

बाबाजी ने पीछे मुड़ कर देखा, तो स्टूडियो में बाबाजी के पीछे उन की श्रीमतीजी बेलन लिए खड़ी थीं. अब तो बाबाजी का चेहरा देखते ही बनता था.

डर: क्या हुआ था निशा के साथ

निशा की नीद ,आधी रात को अचानक खुल गयी. सीने में भारीपन महसूस हो रहा था .दोपहर को अख़बार में पढ़ी खबर ,फिर से दिमाग में कौंध उठी .’अस्पताल ने  महिला को मृत घोषित किया , घर पहुंचकर जिन्दा हो गयी, दुबारा एम्बुलेंस बुलाने में हुई देरी ,फिर मृत ‘ .

कही कुछ दिन पूर्व ही उसकी ,  मृत घोषित हुई माँ, जीवित तो नहीं थी ,क्या उसे भी किसी दूसरे अस्पताल से जांच करवा लेनी थी ?कही  माँ कोमा में तो नहीं चली गयी थी और हम लोगो ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया हो ? वो बैचेनी से , कमरे के चक्कर काटने लगी .

कुछ दिन पूर्व ही निशा और उसका पति सर्दी जुखाम बुखार से पीड़ित हो गये थे उसी दौरान , आधे किलोमीटर की दूरी पर, रहने वाली उसकी माँ , मिलने आई थी .उस समय तक वे दोनों वायरल फीवर ही समझ रहे थे, कोरोना  रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही वे, खोल में सिमट गए . वे दोनों तो ठीक हो गए मगर माँ अनंत यात्रा को चली गयी .निशा अपने को दोषी मान, सदमे से उबर नहीं पायी हैं.दिनभर तो बैचेन रहती हैं, रात को भी कई बार नीद टूट जाती हैं .

तभी उसके पति संकल्प की, नीद टूट गयी  .वो निशा को यूँ चहलकदमी करते देख बौखला गया .

“साला दिन भर काम करो ,मगर फिर भी रात को दो घड़ी चैन की नीद नहीं ले सकता ” गुस्से से अपनी तकिया उठाकर, ड्राइंग रूम में सोने चला गया .

निशा  फफक कर रो पड़ी . निशा के आँसू लगातार, उसके गालों को झुलसाते हुए बहे जा रहे हैं .उसके दिमाग में उथल पुथल मच उठी .संकल्प , कंधे में हाथ रख कर, सहानुभूति के दो शब्द कहने की जगह , उल्टा और भी ज्यादा चीख पुकार मचाने लगा  हैं . उसे अपने सास ,ससुर के अंतिम संस्कार के दिन याद आने लगे . पूरे बारह दिनों तक, एक समय का भोजन बनाना,खाना  और जमीन में सोना .तेरहवी के दिन ,सुबह नौ बजे तक ,पूरी सब्जी से लेकर मीठे तक सभी व्यंजन बनाकर ,पंडित को जिमाना .मित्रों ,सम्बन्धियों ,पड़ोसियों के लिए  तो हलवाई गा था ,मगर फिर  भी ,दिन भर कभी कोई बर्तन, तो कभी अनाज ,सब्जी की उपलब्धता बनाये रखना, उसी के जिम्मे था ,साथ ही  आने जाने वाले रिश्तेदारों, की विदाई भी देखनी थी . साल भर लहसुन, प्याज का परहेज भी  किया गया  .

ये सारे कर्तव्य निभाकर उसे क्या मिला ? इस कोरोना काल में ,जब भोज और भीड़ दोनों ही नहीं हैं. सब ऑनलाइन कार्यकम किये जा रहे हैं .क्या उसका हक नहीं बनता हैं कि वो अपने मायके में बैठकर, दो आँसू बहा सके . मगर नहीं संकल्प ने फरमान सुना दिया जब ऑनलाइन तेरहवी हैं तो तुम भी, घर से जुड़ जाओं, वहां जाकर क्या करोगी ?  .क्या करूंगी ? क्या करूंगी ? अरे भाई बहन, एक दूसरे के कंधे में सिर रख कर, रो लेंगे ,एक दूसरे की पीठ सहला कर, सांत्वना दे देंगे और क्या करूंगी ? जाने वाला तो चला गया मगर उसकी औलादों को आपस में, मिलकर रोने का ,हक भी नहीं हैं. जो दूर हैं, वे नहीं आ सकते मगर वो तो इतनी पास में है ,फिर भी नहीं जा सकती ?

उसे आज भी याद हैं ,जब बाईस घंटे की रोड यात्रा कर,भूखी प्यासी वो, अपनी सास के अंतिम संस्कार में ससुराल पहुँची थी तो  कार से उतरते ही लगा था कि चक्कर खा  कर गिर जायेगी .मगर फिर भी ,अपने को , सम्भाल कर जुट गई थी सारे रस्मों रिवाज को निभाने के लिए .

संकल्प तो दमाद हैं ,उसके हिस्से कोई कारज नहीं हैं ,न ही एक समय खाने की, बाध्यता हैं ,फिर भी वो इतना क्यों चिल्लाता हैं ? निशा समझ नहीं पाती .उसे सूजी हुई आँखों से खाना बनाते देखकर,  भी नाराज हो उठता हैं .

“ खाना बनाने का मन न हो तो रहने दो . एहसान करने कि जरूरत नहीं ,मैं खुद बना लूँगा ”

निशा सोचती रह जाती कि संकल्प के  माता ,पिता के अंतिम संस्कार के नाम पे, वो  बारह दिनों तक, एक समय का सादा भोजन  बनाती,खाती  रही और उसकी माँ के अंतिम संस्कार के समय , संकल्प को ,तीनों समय भोजन ही नहीं बल्कि सुस्वादु भोजन चाहिए . उसका मन उचाट हो उठा .

तेरहवी के दिन भाई का फोन आया “ क्या तुम आज आओगी ?या आज भी अपने घर से,ऑनलाइन  शामिल होगी ?”

“पूछ कर बताती हूँ ” निशा ने फोन काट दिया .उसका दिल भर आया खुद को जेल में बंद कैदी से भी, बद्तर महसूस होने लगा .कैदी  को भी अंतिम संस्कार में शामिल,होने  को ,पैरोल पे छूट दी जाती  हैं .

तभी उसका फोन बज उठा .कनाडा  में बसे,मनोचिकित्सक  बेटे मिहिर  का विडिओ कॉल  था .

“ माँ प्रणाम ,आज जब मामा के घर जाओगी तो डबल मास्क लगा लेना .एक जोड़ी कपड़े ले जाना .वहां पहुँच कर स्नान कर  लेना .वापस लौट कर घर आओ तो फिर से स्नान कर लेना ”

“ पता नहीं ,नहीं  जाऊँगी शायद  ” उसकी आँखे भर आई .

“ क्यों ? लोग ऑफिस तो जा रहे हैं न ? फेस शील्ड भी लगा लेना ”

“ नहीं जाऊँगी ,कभी नहीं  जाऊँगी ,जब माँ ही नहीं रही तो कैसा मायका ,मायका भी खत्म ” वो फफक पड़ी .

“ क्या हुआ माँ ? नहीं जाओगी तो आपके मन का बोझ बना रहेगा .जाओं मिल आओ .मामा मामी से मिलकर ,आमने सामने बैठकर, अपने बचपन के किस्से ताज़ा करों.तभी आपका मन हल्का होगा  ”

“ नहीं मैं ,अब कभी नहीं जाऊँगी ” निशा अपने को काबू न कर सकी, फोन एक तरफ रखकर, जोर जोर से रोने लगी .

“ माँ प्लीज सुनो, फोन मत काटना, प्लीज सुनो न माँ sss ” उसकी आवाज लगातार ,कमरे में गूंजती रही .

निशा ने ,अपने आँसू पोछकर,  फोन उठा लिया .

“ पापा कहाँ हैं ?फोन नहीं उठा रहे हैं ?” उसने पूछा .

“ बाथरूम में हैं. फोन चार्ज हो रहा हैं ”

“ पापा ऑफिस जा रहे हैं ?”

“हाँ ”

“ आपने खाना बना लिया ? पापा ने आज छुट्टी नहीं ली ”

“  हाँ बना दिया ,दोपहर का टिफ़िन भी बना दिया हैं. कोई छुट्टी नहीं ली ,तेरे पापा ने  ” वो आक्रोशित हो उठी .

“ पापा ने कुछ कहा हैं क्या आपसे ?”

“हाँ बहुत कुछ कहा हैं .क्या बताऊँ और क्या न बताऊँ ” उसके आँसू बह चले .

“ क्या कहा ? मुझे सब बताओं ” मिहिर साधिकार बोला .

“ अपनी मम्मी  की बीमारी का, सुनकर जब मैं वहां गयी तो मुझे, मम्मी  ने अपने पास रोक लिया था, फिर दो दिन बाद वो चल बसी .उसके बाद दो चार दिन तो मुझे होश ही नहीं था .एक हफ्ते बाद जब घर लौटी तो तेरे पापा बहुत चिल्लाये. कहने लगे जब इतने दिन वहां रुकी हो तो वही  जाकर रहो, अब साल भर शोक मनाकर, बरसी कर के ही आना ” निशा अपना चेहरा ढाप के रोने लगी.

“अच्छा और क्या कह रहे थे ?”

“ मेरे घर से जाओं ,मुझे अकेला रहने दो ,मुझे तुम्हारा चेहरा नहीं देखना  .सुबह शाम लड़ने का ,बहाना ढूंढते रहते हैं ”

“ ऐसा कब से कर रहे हैं? आपने पहले क्यों नहीं बताया ?”

“लगभग दो महिने से ,मैने सोचा ऑफिस का स्ट्रेस हैं, मगर अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा हैं .मेरे रोने से भी इनको आफत होने लगी हैं .क्या मै अपनी माँ की मौत पर, रोने का हक भी नहीं रखती ? क्या मैं रोबोट हूँ ?जो इनके मनोरंजन के हिसाब से चलूँगी ” निशा गुस्से से तमतमा उठी.

“ मम्मी, पापा को ऑफिस जाने दो फिर आप मामा के पास चली जाना और पापा के ऑफिस से आने से पहले लौट आना .पापा को अकेला मत छोड़ना ,मुझे लगता हैं पापा को कोरोना संक्रमण के बाद  आईसीयू साइकोसिस या डेलिरियम ने अपनी चपेट में ले लिया हैं ”मिहिर गंभीरता से बोला .

“ ये क्या होता हैं ? ” निशा हैरानी से बोली .

“ जब किसी बीमारी के होने पर, जान जाने का जोखिम दिखाई दे तो दिमाग बेहोशी की हालत में चला जाता हैं .ऐसे मनोरोगी अटपटे जवाब ,खाना या दवा के नाम पर झगड़ा करते हैं अक्सर अपना नाम ,स्वजन के नाम तक भी भूल जाते हैं .पापा के ऑफिस के कई सदस्य , उनके बचपन के  मित्र व् रिश्तेदारों में , अभी साल भर में कई मौते हुई हैं और अब नानी भी .अपने माता पिता के बाद ,वे नानी को बहुत मानते थे .ऐसे में , अचानक नानी के भी चले जाने से, उन्हें भी सदमा लगा हैं मगर वे अपने को एक्स्प्रेस नहीं कर पा रहे हैं .वे मनोरोग का शिकार बन रहे हैं ”.

“ क्या करूं ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा ” निशा अपना सर पकड़ कर बैठ गई .

“ आप शांत रहें ,उन्हें हल्ला करने दे .अब से रोज ,मैं उनकी काउंसिलिंग करूँगा  पता लगाता हूँ कि वे अवसाद या एंग्जायटी के शिकार तो नहीं बन गये .यदि फायदा न दिखा  तो आपको दवा बता दूँगा . वैसे मुझे लगता हैं, दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी और अगर देनी पड़ी तो भी , आप घबराइयेगा नहीं .एक दो महीने में पापा  ,अपने पुराने मूड में लौट आयेगें ”.

“तेरी बातें मुझे समझ नहीं आ रही ,मगर मैं अब इन्हें और इनके व्यंग बाणों को और बर्दास्त नहीं कर सकती” निशा दुखी होकर बोली .

“आपको पता हैं पोस्ट कोविड  पेशेंट की, रिसर्च में ये देखने में आया हैं कि कई देशों में ,डाइवोर्स रेट बढ़ गया हैं   ” अभी मिहिर की  बात, पूरी भी नहीं हुई थी कि संकल्प बाथरूम से बाहर आ गया और निशा को फोन करते हुए देख भड़क उठा .

“ अभी तक अपने भाई से ,फोन पर बात कर रही हो ? जब मैं बाथरूम गया था तब उसका फोन आया था . अभी तक तुम्हारी पंचायत खत्म नहीं हुई .आज मुझे खाना मिलेगा या मैं खुद बनाऊं ?”

“लो मिहिर का फ़ोन हैं ,आप को पूछ रहा हैं .मैं किचिन सम्भालती हूँ “

“और सुनाओं कनाडा के क्या हाल हैं ”

“ पहले ही मनोरोगी कम नहीं थे, अब तो इनकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही हैं

“अरे अपने प्रोफेशन की , बातें छोड़ ,कोई लड़की पसंद की  हो ,तो वो बता ”

“ पापा पहले महामारी से तो बचे, फिर धूमधाम से इंडिया आकर शादी करूँगा .अरे हाँ ,आज आप मम्मी को ऑफिस जाते समय ,नानी के घर छोड़ देना .लॉक डाउन हैं उन्हें कोई सवारी भी न मिलेगी ”

“ मेरी चुगली कर रही होगी कि मैं मायके जाने नहीं देता ,हैं न  ” संकल्प का  चेहरा तनाव से तन गया .

“ ऐसा कुछ नहीं है .मैंने ही जाने को बोला हैं .उन्हें आप छोड़ आना, ऑफिस से आते समय ले आना .उनका दिल बहल जाएगा ”

“ पर वहां तो सब ऑनलाइन रिश्तेदार जुड़ रहे  है.  हमने कितनी धूमधाम से तेरे दादा दादी की , तेरहवी की थी .मैंने कहा  कि चाहे एक पंडित ही घर बुला कर कार्यकम सम्पन्न कर लो मगर नहीं .मेरी कौन सुनता हैं ?”

“ आप को क्या करना पापा ?वैसे भी अभी भीड़ करने की जरूरत नहीं हैं.रिश्तेदार भी सब समझते हैं .मम्मी ही पास में हैं उन्हें आप पहुंचा देना .ठीक हैं पापा मैं अब सोऊंगा ,कल सुबह फिर  बात करेंगे.प्रणाम पापा ”

रसोई में भोजन परोसती निशा के दिमाग में, पिछले दो महीनों की ढेर सारी झड़पे कौंध गयी .अब उसे याद आया कि ये सब झड़पे कोरोना पॉजिटिव होने के बाद से शुरू हुई थी .जो धीरे धीरे बढकर विकराल रूप में सामने आ चुकी हैं .अब वो क्या करे? क्या संकल्प मनोरोगी बनता जा रहा हैं और  वो भी अवसाद का शिकार बनती जा रही हैं ? उसकी आँखे बहने को बेताब होने लगी .

नहीं वो कमजोर नहीं पड़ेगी.इस महामारी के खौफ़  से उसे बाहर निकलना ही होगा .अपने डर को काबू  में ,करना ही होगा   .उसने अपने आँसूं पोछे और उसके हाथ तेजी से सलाद काटने लगे .

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