Social Story : ‘‘पा पा, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती,’’ मेरा मन तिक्त था.
‘‘हर काम की उम्र होती है. समय से शादी कर लेना ही बेहतर होता है,’’ पापा ने सम?ाया.
‘जब से होश संभाला आप लोगों ने हमेशा समय की दुहाई दी. समय से यह करो समय से वह करो पर क्या वैसा हुआ जैसा आप लोगों ने चाहा?’’
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‘‘प्रयास तो करता ही है आदमी.’’
‘‘मान लिया जाए कि मैं ने शादी कर ली. फिर क्या होगा?’’ मैं ने सवाल किया.
‘‘समय से बच्चे होंगे. उन्हें ढंग से पालपोष सकोगी,’’ मम्मी बोलीं.
‘‘नहीं हुए तब?’’
‘‘तुम बहुत कुतर्क करने लगी हो,’’ मम्मी नाराज हो गईं.
‘‘2 साल ही तो हुए हैं नौकरी करते हुए. अभी उम्र ही क्या है मेरी यही कोई 25 साल. कुछ साल और रुक जाने में हरज ही क्या है?’’
‘‘हरज है. हम अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहते हैं,’’ मम्मी ने कहा.
‘‘आप की जिम्मेदारी के लिए मैं अपने कैरियर का गला घोट दूं?’’ मेरा स्वर तलख था.
‘‘कैरियर तो शादी के बाद भी चलता रहेगा,’’ पापा बोले.
‘‘तब सबकुछ इतना आसान नहीं होगा. मुझे पति, सासससुर की बंदिशों का सामना करते हुए काम करने जाना होगा. फिर क्या पता नौकरी को लेकर उन का कैसा रवैया हो?’’
‘‘छोड़ देना नौकरी. घरपरिवार संभालना,’’ मम्मी बोलीं.
‘‘मम्मी, आप अच्छी तरह जानती हैं कि मैं अपनी जिंदगी किचन में नहीं खपाना चाहती. मेरा मन खाना पकाने में बिलकुल नहीं लगता,’’ मेरा मुंह बन गया.
‘‘लड़की हो खाना तो बनाना ही होगा,’’ मम्मी ने खाना पर जोर दिया.
औफिस का समय हो रहा था. मैं अब और बहस में नहीं पड़ना चाहती थी. सो औफिस के लिए निकल पड़ी. औफिस में मेरा मन बेचैन रहा. मम्मीपापा की शादी की जिद ने मेरी सारी खुशियां छीन ली थीं. जब से होश संभाला पढ़ती ही रही. अब जब नौकरी कर के आर्थिक आजादी पाई तो मम्मीपापा ने शादी के बंधन में बांधने का मन बना लिया यानी एक स्त्री कभी आजाद नहीं रह सकती. उसे किसी न किसी पुरुष के बंधन में रहना ही होगा. जबकि मैं उस बंधन को तोड़ना चाहती थी. पुरुष का साथ चाहिए मगर बंध कर नहीं. फिलहाल अभी कुछ साल तो बिलकुल नहीं. बाद में मन का मिला तो शादी कर लूंगी.
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