लेखक- सुनील कुमार
अंबाला रेलवे जंक्शन पर देर रात की ट्रेन लेट हो कर रात को और ज्यादा लंबी कर रही थी. तेजा को स्टेशन की भीड़ कभी पसंद नहीं रही, इसलिए उस ने पुल से चलते हुए आखिरी प्लेटफार्म की तरफ कदम बढ़ाए. सीढि़यों से उतर कर आखिरी प्लेटफार्म की भी वह बैंच पकड़ी, जिस के बाद नशेडि़यों, चोरउच्चकों का इलाका शुरू हो रहा था. थोड़ाबहुत जोखिम लेना तेजा के लिए आम बात थी.
कुछ दूरी पर ही मैलीकुचैली चादरों में भिखारी सो रहे थे. चाय की दुकान पर एकाध खरीदार पहुंच रहे थे. रेलवे जंक्शन के कोने में मौजूद दुकान पर चाय खरीद रहे लोगों की हालत भी टी स्टौल की तरह उजड़ी हुई थी.
तेजा जिस मंजिल के लिए निकला था, उसे पाना नामुमकिन था, लेकिन सपनों का पीछा करना उस की लत बन चुकी थी. इस वजह से दिमाग में कभी चैन नहीं रहा था.
अचानक ही पीछे से आई हलकी आवाज ने तेजा को चौंका दिया, ‘‘भैयाजी, 2 दिन से कुछ खाया नहीं है.’’
कहने को तो तेजा तेज आवाज से भी डरने वालों में से नहीं था, लेकिन इतनी रात में आखिरी प्लेटफार्म का कोना पकड़ते वक्त उसे नशेडि़यों की नौटंकी का अंदाजा था. सो, अचानक पीछे से आ कर बैंच पर बैठ जाने वाली 30-35 साल की एक औरत की धीमी आवाज ने भी उसे सकते में डाल दिया था.
पहनी हुई साड़ी और शक्लसूरत से वह औरत कहीं से भी रईस नहीं लग रही थी, लेकिन भिखारी भी दिखाई नहीं देती थी. हालांकि यह जरूर लगता था कि वह घर से निकल कर सीधी यहां नहीं आई है. उस का कई दिन भटकने जैसा हुलिया बना हुआ था.
हालात भांप कर तेजा ने चौकस आवाज में कहा कि वह पैसे नहीं देगा. हां, अपने पैसे से दुकान वाले को बोल कर चायबिसकुट जरूर दिला सकता है. लेकिन औरत का अंदाज चायबिसकुट पाने तक सिमट जाने वाला नहीं था.
औरत ने दुखियारी बन कर कहा, ‘‘मैं बहुत ही मुश्किल में हूं, कुछ पैसे
दे दो.’’
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तेजा का दिमाग चकरा गया, क्योंकि यह औरत उस टाइप की भी नहीं लग रही थी, जो अंधेरी रातों में नौजवानों को इशारे कर बुलाती हैं. न ही कपड़े और सूरत उस के भिखारी होने पर मोहर लगा रहे थे.
तेजा ने चेहरा थोड़ा नरम करने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘‘यहां स्टेशन के अंधेरे कोने में क्या कर रही हो?’’
उस औरत ने धीमी आवाज में और दर्द लाते हुए कहा, ‘‘बस, थोड़े पैसे दे दीजिए.’’
तेजा ने नजरें घुमा कर चारों तरफ देखा. उस की नजरें यह तसल्ली कर लेना चाहती थीं कि कम रोशनी वाले स्टेशन के कोने में एक औरत के साथ बैठने पर दूसरों की नजरें उसे किसी अलग नजरिए से तो नहीं देख रही हैं? लेकिन तेजा को यह जान कर तसल्ली हुई कि स्टेशन जैसे कुछ देर पहले था, ठीक अब भी वैसा ही है.
नए हालात देख कर कालेज के फाइनल ईयर का स्टूडैंट तेजा रोमांच से भर उठा. यह रोमांच इस उम्र के लड़कों में खास हालात बनने पर खुद ही पैदा हो जाता है. तेजा भी दूसरे ग्रह का प्राणी नहीं था. सो, उसे भी यह एहसास हुआ.
अब जब आसपास के हालात बैंच के माहौल में खलल डालने वाले नहीं थे, तो तेजा का खोजी दिमाग सवाल उछालने लगा. उस ने कहा, ‘‘मैं पैसे तो दे दूंगा, लेकिन पहले यह बताओ कि तुम इस हालत में यहां क्या कर रही हो?’’
पैसे मिलने की बात सुन कर उस औरत ने बताया कि वह बिहार के पटना की रहने वाली है. मेरा मर्द बहुत बुरा आदमी था. घर खर्च के लिए वह पैसे नहीं देता था. वह दारू पीता था. बच्चे खानेखिलौनों के लिए हमेशा मां को ही कहते थे, लेकिन पति के गलत बरताव और नशेड़ी होने की वजह से वह घुट रही थी. एक दिन जेठानी से उस का झगड़ा हो गया. जब पति घर आया तो उस ने बाल धोने के लिए शैंपू खरीदने के पैसे मांग लिए. पहले से ही जेठानी के सिखाए नशेड़ी पति ने उस की बेरहमी से पिटाई कर दी.
यह पिटाई नई नहीं थी, लेकिन लंबे अरसे से उस के मन में जो बगावती ज्वालामुखी दबा बैठा था, उस रात फट पड़ा. पति को जवाब देना तो उस के बूते से बाहर था, लेकिन घर में सबकुछ छोड़ फिल्मी हीरोइन की तरह सीधे स्टेशन पहुंच गई. आंसू पोंछने का दौर चलने के बाद दिल को पत्थर बना लिया और आखिर में अनजान ट्रेन में कदम रख ही दिया और आज यहां है.
मच्छरों का काटना, मुसाफिरों की शक्की नजर का डर, सबकुछ तेजा के दिमाग से भाग चुका था और उस औरत की बातें सुन कर उस का घनचक्कर दिमाग और ज्यादा घूम गया.
तेजा ने पूछा, ‘‘शैंपू की खातिर पति ने पीट क्या दिया, तुम अपने छोटेछोटे बच्चोें को छोड़ कर घर से भाग आई? कितने दिन पहले घर छोड़ा था? क्या तुम ट्रेन से सीधे अंबाला स्टेशन पर उतरी हो? तुम्हारा नाम क्या है?’’
तेजा के 4 सवालों की बौछार का सामना करने के बाद अपने लंबे बालों को हलके से खुजलाते हुए उस औरत ने खुद का नाम रश्मि बता कर कहा, ‘‘सही से याद नहीं. शायद 12-15 दिन हो गए हैं. पहली ट्रेन छोड़ने के बाद मैं भटकती रही और फिर देर शाम सड़क से गुजरते ट्रक वालों ने मुझे आगे छोड़ने की पेशकश की.
‘‘कोई रास्ता न देख वह ट्रक में चढ़ गई. फिर चलते ट्रक में मेरे साथ वह सब हुआ, बारबार हुआ, जिस का टीवी न्यूज वाले ढिंढोरा पीटते रहते हैं. जब एक बार ट्रक वालों का मन भर जाता तो मुझे सड़क किनारे फेंक देते. कुछ देर बाद दूसरे उठा लेते.
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‘‘मुझे खुद भी याद नहीं कि अब तक कितनों ने मेरे साथ हैवानियत की है. अब मुझे सड़क से डर लगता है. रेलवे स्टेशन पर भीड़ रहती है, कोई मुझे उठा कर नहीं ले जा सकता है, इसलिए अब मैं स्टेशन पर हूं.
‘‘रास्ते में किसी औरत ने बताया था कि मैं कुरुक्षेत्र जाऊं, वहां धार्मिक मेले में बड़े दानी लोग आए हुए हैं. मेरा भला होगा. किसी से पूछ कर बिना टिकट मैं कुरुक्षेत्र से गुजरने वाली ट्रेन में चढ़ गई, स्टेशन चूक गया सो कुरुक्षेत्र के बजाय अंबाला पहुंच गई. हालत खराब होने की वजह से तब से मैं इसी बड़े स्टेशन पर पड़ी हूं.’’
रश्मि के चुप होने पर हैरानी से सबकुछ सुन रहे तेजा ने दिमाग को झकझोरा. सख्त दिखने वाले तेजा ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें पटना जाने वाली ट्रेन का टिकट खरीद कर दूंगा, साथ में खाना खाने लायक पैसे भी दूंगा. तुम अपने घर लौट जाओ.’’
लेकिन रश्मि तैयार नहीं हुई. उस ने कहा, ‘‘अब घर और समाज में कोई मुझे नहीं अपनाएगा.’’
तेजा अब रश्मि पर हक से बोलने लगा, ‘‘बेशक, लोग तुम पर ताने मारें, पर तुम अपने बच्चों के लिए घर लौट जाओ. उन मासूमों का इस दुनिया में कोई पराया ध्यान नहीं रखेगा और तुम्हारा पति तो पहले ही नशेड़ी है.’’
रश्मि ने कहा, ‘‘मैं ऐसी गलती कर चुकी हूं, जहां से कभी वापसी नहीं हो सकती है.’’
तेजा ने रश्मि से कहा, ‘‘तुम पहले कुछ खा लो, फिर डाक्टर से दवा ले लो, ताकि तुम्हारे शरीर में कुछ जान आ सके.’’
तेजा की बात सुन कर अब तक मन की बात बताने वाली रश्मि का चेहरा और अंदाज बदल गया. उस ने धीमी आवाज में अपना फैसला साफ कर देने वाली बात कही, ‘‘मैं रेलवे स्टेशन के बाहर नहीं जाऊंगी, चाहे तुम पैसे दो या मत दो.’’
यह बात कहने का अंदाज देख कर तेजा समझ गया कि इस औरत का भरोसा सब से उठ चुका है, जो दरिंदगी इस के साथ की गई है, उस ने दिल में डर बैठा दिया है, इसलिए वह अब उस पर भी भरोसा नहीं करेगी.
तेजा ने कहा, ‘‘अगर तुम कुछ दिन और स्टेशन पर पड़ी रही तो शायद मर जाओगी.’’
लेकिन रश्मि पर इस का भी खास असर नहीं हुआ. उस ने मुरदा से हो चुके चेहरे को और ढीला छोड़ते हुए कहा, ‘‘मैं बेशक मर जाऊं, लेकिन स्टेशन से बाहर नहीं जाऊंगी. न ही वापस अपने घर जाऊंगी.’’
तेजा ने मन में सोचा कि वह बुरी तरह फंस गया है, इस हालत में इसे छोड़ कर गया तो यह फिर गलत लोगों के हाथ पड़ जाएगी या फिर कुछ दिनों बाद मरने की हालत में पहुंच जाएगी. लेकिन साथ ही उसे यह एहसास भी हुआ कि वह खुद कौन सा चीफ मिनिस्टर है, जो अचानक से इस औरत की जिंदगी को वाकई जिंदा कर देगा? अंदर एक कोने में यह डर भी था कि कहीं उसे आधी रात को बेवकूफ तो नहीं बनाया जा रहा है?
बैठेबैठे एक दौर बीत चुका था. तेजा की ट्रेन का वक्त नजदीक आ रहा था. खड़ूस तेजा का दिमाग कन्फ्यूज हो कर तेजी से घूम रहा था. मन में यह भी आ रहा था कि अगर औरत सच बोल रही है तो बरबादी की जिम्मेदार वह खुद ही है. इस तरह घर छोड़ कर भागेगी तो ऐसा ही अंजाम होगा. लेकिन उसे वह वक्त भी याद आया जब झगड़ कर तेजा खुद घर छोड़ कर दिल्ली के एक आश्रम में चला गया था. घर से संन्यासी बनने की ठान कर निकला था, लेकिन 4-5 दिन बाद सुबह 3 बजे चुपचाप आश्रम छोड़ कर वापस घर का रास्ता पकड़ लिया.
घर लौटने पर मातापिता और पड़ोसियों ने उस की गरदन नहीं पकड़ी, बल्कि राहत की सांस ली थी.
तेजा के मन में आया कि क्या दुनिया है कि घर से भागा एक लड़का वापस आ जाए तो सब को चैन, लेकिन एक औरत के लिए वही सब करना पाप…
तेजा की नजर बारबार घड़ी पर जा रही थी. लग रहा था, वक्त ने रफ्तार बढ़ा ली है. उस की टे्रन के आने की घोषणा हो चुकी थी. लेकिन रश्मि का सच और उस की जिद जान कर तेजा उस के लिए कुछ भी कर पाने की हालत में नहीं था.
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बिना सोचे तेजा के मुंह से अचानक शब्द निकले, ‘‘मुझे अब जाना होगा रश्मि. ट्रेन आ रही है.’’
तेजा ने जेब से पर्स निकाला. उसे ध्यान नहीं कितने नोट निकले, लेकिन रश्मि को थमा दिए और बैंच से खड़ा
हो गया.
‘‘अपना ध्यान रखना,’’ बोल कर तेजा आगे बढ़ने लगा.
तेजा को जाते देख रश्मि के चेहरे पर फिर से कुछ बड़ा खो देने के भाव थे. कई दिन से पत्थर बनी उस की आंखें नम हो गईं.
पुल पर पलट कर तेजा ने अंधेरे कोने में नजरें दौड़ाईं. ऐसा लग रहा था मानो बैंच के साथ रश्मि की मूर्ति हमेशा से वहीं चिपकी हुई है.
तेजा के पैर आगे बढ़ते जा रहे थे. रेलवे स्टेशन की तमाम चिल्लपौं से दूर उस का दिमाग खोया हुआ था, उसे भी नहीं मालूम कहां. एक सन्नाटा पसरा हुआ था.
पीछे से धक्का मारते हुए एक आदमी ने कहा, ‘‘नहीं चढ़ना है तो रास्ते से हट जाओ.’’
तेजा जागा और देखा कि उस की ट्रेन सामने है, वह अनजाने में चलते हुए ठीक अपनी बोगी के सामने पहुंच गया है, लेकिन ऊपर चढ़ने के बजाय गेट के बाहर पैर जम गए हैं, इसलिए पीछे से बाकी मुसाफिर उस पर गुस्से में चिल्ला रहे हैं.
तेजा हड़बड़ाहट में तेजी से अंदर चढ़ गया. चंद पलों में सीटी बजी और बिजली से चलने वाली ट्रेन के पहियों ने फर्राटा भर दिया.
इस से पहले कि ट्रेन पूरी रफ्तार पकड़ पाती, तेजा ने बैग के साथ गेट से छलांग लगा दी. कालेज जाते वक्त रोजाना सरकारी बस के सफर का तजरबा था, इसलिए इंजन की दिशा में दौड़ता रहा वरना स्टेशन पर खड़े लोग तेजा के गिरने के डर में आंखें तकरीबन बंद कर चुके थे.
कम से कम 30-40 मीटर दौड़ते रहने पर तेजा के लड़खड़ाते पैर संतुलन में आ पाए. तेज सांसें छोड़ता हुआ तेजा रुका और चमकती आंखों के साथ वापस मुड़ा.
तेजा को अंदाजा था कि पठानकोट में जाट रैजीमैंट के कैंप पहुंच कर मामा से मदद मिलने की गुंजाइश कम है. मामी और उन के घर वालों का असर फौजी मामा को लाचार बना चुका था, इसलिए वहां जाने में वक्त बरबाद कर नाउम्मीद होने से बेहतर है कि रश्मि और उस के बच्चों को मिलाया जाए. मांबच्चों का मिलन हो जाएगा तो बाकी सब भाड़ में जाएं.
तेजा ने फोन निकाल कर दिल्ली के न्यूज चैनल में काम करने वाले दोस्त गौरव को मिला दिया. मालूम था, रात के 2 बजे हैं, गौरव के फोन रिसीव करने के चांस कम हैं, लेकिन फोन
को स्पीकर पर लगा कर वह टिकट काउंटर की तरफ बढ़ चला.
कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन तेजा को कोई परवाह नहीं. रीडायल बटन दबा दिया. घंटी बज रही थी. देर रात होने की वजह से काउंटर खाली था. अंदर टिकट बाबू और एक मैडमजी बातों में मस्त थे.
तेजा ने कहा, ‘‘पटना के लिए टे्रन कब मिलेगी?’’
बातचीत के मधुर सफर में खोए टिकट बाबू को यह सवाल घोर बेइज्जती लगा. पहले नजरों से नफरत के बाण चलाए, फिर जबान खोली, ‘‘एक घंटे बाद सुपरफास्ट ट्रेन है. जम्मू से आ रही है, सीधी हावड़ा जाएगी. बीच में दिल्लीपटना जैसे बड़े स्टेशनों पर रुकती है. सीट भी दिलवा दूंगा. अंदर मस्तमस्त बिस्तर मिलेगा, साथ में गरमागरम खाना. लेकिन टिकट खरीदने के लिए औकात चाहिए, अब बोल खरीदेगा टिकट?
‘‘वैसे, सुबह 8 बजे दिल्ली तक पैसेंजर ट्रेन है. वहां से पटना के लिए मिल जाएगी, चल भाग अभी. ये बिहार वाले शांति से चार बात भी नहीं करने देते हैं. हां, तो सपना… मैं क्या कह रहा था?’’
‘अरे भैया, रात को 2 बजे भी सोने नहीं देते हो, 5-7 दिन की छुट्टी मिलती हैं. समझा करो यार,’ नींद में ऊंघ रहे गौरव ने फोन पर जवाब दिया.
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‘‘गौरव, तुम फोन पर बने रहो,’’ तेजा ने स्पीकर बंद कर मुसकराते हुए टिकट बाबू से कहा, ‘‘2 टिकट दे दीजिए,’’ और उस ने डैबिट कार्ड आगे बढ़ा दिया.
टिकट बाबू ने तेजा की सूरत को घूरते हुए कार्ड ले लिया. बुनियादी जानकारी पूछी और बटन दबा दिया.
2 टिकट निकाल कर तेजा को थमा दी. टिकट और डैबिट कार्ड ले कर तेजा तेज कदमों से रश्मि की तरफ चल पड़ा.
तेजा ने चलते हुए एक सांस में
रश्मि की पूरी कहानी फोन पर गौरव को बता दी.
गौरव पटना का ही रहने वाला था. दोनों जोधपुर के मिलिटरी स्कूल में एकसाथ पढ़ते थे, क्योंकि दोनों के पिता फौज में वहीं तैनात थे.
हालांकि गौरव तेजा से कई क्लास सीनियर था, लेकिन दोनों की खूब जमती थी. फोन पर गौरव ने कहा, ‘तेजा इतने दिनों बाद फोन किया वह भी रात के 2 बजे. और यह किस के लिए पागल हुआ जा रहा है. अरे भाई, ऐसे कितने ही लोग रोज बरबाद होते हैं. कितनों को घर पहुंचाएगा तू.’
तेजा ने मजबूत आवाज में कहा, ‘‘गौरव भाई, मैं उसे ले कर पटना आ रहा हूं. समझो, अब मसला पर्सनल है. कुछ देर में तुम्हें उस के घर का अतापता सब मैसेज कर रहा हूं. मुझे इस औरत को उस के बच्चों से मिलाना है. इतना ही नहीं, उस का घर भी बसना चाहिए. तुम अपने विधायक भाई को बोलो या थानेदार को. बस, यह होना चाहिए.’’
गौरव समझ गया कि तेजा के दिमाग में धुन चढ़ गई है. अब यह कुछ नहीं मानेगा या समझेगा. उस ने तेजा को कहा, ‘मैं कल ही दिल्ली से छुट्टी ले कर पटना आया था. तू मुझे उस औरत की जानकारी मैसेज कर. मैं लल्लन भैया से बात करता हूं. अब तू ने कहा है तो निबटाते हैं मसला यार.’
लल्लन भैया 2 दफा विधायक रह चुके थे. गौरव उन की रिश्तेदारी में था.
रश्मि अंधेरे की तरफ मुंह किए उसी बैंच पर पत्थर बनी बैठी थी.
तेजा ने पहुंच कर कहा, ‘‘तुम्हें स्टेशन से बाहर नहीं जाना है. ट्रेन में मेरे साथ सफर करना है. मैं तुम्हें ले कर पटना जाऊंगा. अगर तुम्हारे बच्चों से मिला कर तुम्हारा संसार नहीं बसा सका, तो जो तुम्हें करना है उस के बाद भी
कर सकती हो. चलो उठो, प्लेटफार्म बदलना है.’’
तेजा की इस अंदाज में वापसी देख कर रश्मि सकपका गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है.
तेजा की बातें सुन कर वह कल्पना करने की कोशिश कर रही थी कि क्या उस की जिंदगी फिर से खिल सकती है?
‘‘मेरा पति और लोग मुझे जीने नहीं देंगे बाबू,’’ रश्मि ने तेजा से कहा.
‘‘वह सब मुझ पर छोड़ दो,’’ तेजा ने जवाब दिया.
जब ट्रेन आई और दोनों उस में चढ़े तो अजीब नजारा था. अंदर के मुसाफिर रश्मि को घूर कर देख रहे थे और रश्मि आलीशान ट्रेन के अंदर हर चीज को घूर रही थी.
तेजा उस का हाथ पकड़ कर सीट तक ले गया. प्लेटफार्म पर खरीदा गया खानेपीने का सामान उसे थमा दिया और कहा, ‘‘अब कुछ खा लो.’’
थोड़ी देर में ट्रेन ने सीटी बजा दी और दौड़ चली.
पूरे सफर में तेजा और गौरव की फोन पर बातचीत चलती रही. रश्मि इस दौरान लेटेलेटे कभी अचेत सी हो कर सो जाती, तो कभी शीशे की खिड़की के पार नजरें गड़ाए देखती रहती.
पटना स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो रश्मि का भाई, मां उस के 2 छोटेछोटे बच्चों के साथ खड़े थे. उन के साथ गौरव और लल्लन भैया के 2 आदमी
भी थे.
ट्रेन से उतर कर रश्मि को समझ नहीं आ रहा था, वह बच्ची बन कर अपनी मां से लिपट कर रोए या रोते हुए ‘मम्मीमम्मी’ बोल कर उस की तरफ आ रहे बच्चों को छाती से चिपका ले.
तेजा के सामने वक्त ठहर गया था. उस के मन में सुकून और प्यार की बयार बह रही थी. गौरव तेजा को देखे जा रहा था. लल्लन भैया के दोनों लोग पूरे नजारे पर नजरें गड़ाए हुए थे.
बूढ़ी मां, रश्मि, दोनों बच्चे एकदूसरे में खो गए. दूर देहात से आए रश्मि के बड़े भाई को भी खुद पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. जब रश्मि ने पति के बरताव और घर के हालात के बारे में भाई को बताया था तब उस ने जरूरी कदम नहीं उठाया. उसी का नतीजा छोटी बहन और 2 छोटेछोटे मासूम बच्चों को भुगतना पड़ा. लेकिन अब बड़े भाई ने
मन मजबूत कर लिया था.
गौरव ने तेजा को बताया कि लल्लन भैया ने रश्मि के आदमी को उठवा लिया है. अब वह नशा मुक्ति केंद्र में बंद है. नशे की हालत में उस का बरताव देख लल्लन भैया भी गरम हो गए थे.
2 थप्पड़ जड़ दिए उसे और बोले
कि ऐसे आदमी के पास कोई कैसे रह सकता है?
लल्लन भैया ने अपने चमचों से कह दिया था कि रश्मि के ससुराल और मायके वालों से पूरा सच पता करें. सच यही निकला कि रश्मि गलत औरत नहीं थी, लेकिन पति बिगड़ैल निकला. कामचोर, नशेड़ी और दूसरों की सीख मानने वाला. उस हालत में रश्मि को
2 ही रास्ते सूझे, एक तो गले में फंदा लगा ले या फिर घर से भाग जाए. लेकिन अब बच्चों के चेहरे देख कर उस के अंदर की ताकत जाग गई थी. उस ने मन ही मन फैसला किया, अब बच्चों के लिए जिएगी. आदमी सही रास्ते पर आया तो ठीक है, वरना बच्चों को खुद पालेगी.
बड़े भैया ने बीच में आ कर रश्मि से कहा कि फिलहाल वह मायके में चले. वह और मां उन का ध्यान रखेंगे.
गौरव ने कहा, ‘‘रश्मि की सेहत ठीक होने पर उसे लल्लन भैया के दोस्त के स्कूल में नौकरी लगवा देंगे. वह वहां अपने बच्चों को भी पढ़ा सकती है. उस के बिगड़ैल पति को सुधारने की जिम्मेदारी अब लल्लन भैया ने ले ली है. जब वह इनसान बन जाएगा, तब उसे सब बता दिया जाएगा.’’
स्टेशन के बाहर रश्मि का सामान एक जीप में लदा था. यह जीप लल्लन भैया की थी. रश्मि के भाई ने हाथ जोड़ कर तेजा को शुक्रिया कहा. बच्चों के साथ रश्मि और उस के भाई और मां जीप में बैठ गए. दोनों लोग भी गाड़ी में लद लिए. चमचों को और्डर था कि रश्मि को उस के गांव तक सहीसलामत छोड़ कर आएं.
जीप तेज धुआं छोड़ते हुए आगे बढ़ चली. गौरव ने तेजा को झकझोरते हुए कहा, ‘‘चलो भैया, अब तो हम मिल कर पटना दर्शन करते हैं.’’