family story in hindi
family story in hindi
एक गुटखा थूकने के तुरंत बाद फिर गुटखा खाने की तलब लगती थी. यही गुटखे की खासीयत है.
मुसीबत की शुरुआत मसूढ़ों के दर्द से हुई. पहले हलकाहलका दर्द था. खाना खाते समय मुंह चलाते समय दर्द बढ़ जाता था. फिर ब्रश करते समय मुंह खोलने में दर्द होने लगा.
शरद ने कुनकुने पानी में नमक डाल कर खूब कुल्ले किए, पर कोई आराम न हुआ. धीरेधीरे औफिस के लोगों को पता चला. उन्होंने उसे डाक्टर को दिखाने को कहा. पर उसे लगा शायद यह दांतों का साधारण दर्द है, ठीक हो जाएगा. यह गुटखे के चलते है, यह मानने को उस का मन तैयार नहीं हुआ. कितने लोग तो खाते हैं, किसी को कुछ नहीं होता. उस के महकमे के इंजीनियर साहब महेशजी तो गुटखे की पूरी लड़ी ले कर आते थे. उन का मुंह तो कभी खाली नहीं रहता था. उन की तो उम्र भी 50 के पार है. जब उन्हें कुछ नहीं हुआ, तो उसे क्या होगा. वह खाता रहा.
फिर शरद के मुंह में दाहिनी तरफ गाल में मसूढ़े के बगल में एक छाला हुआ. छाले में दर्द बिलकुल नहीं था, पर खाने में नमकमिर्च का तीखापन बहुत लगता था. छाला बड़ा हो गया. बारबार उस पर जबान जाती थी. फिर छाला फूट गया. अब तो उसे खानेपीने में और भी परेशानी होने लगी.
वह महल्ले के होमियोपैथिक डाक्टर से दवा ले आया. वे पढ़ेलिखे डाक्टर नहीं थे. रिटायरमैंट के बाद वे दवा देते थे. उन्होंने दवा दे दी, पर आराम नहीं हुआ. आखिरकार रजनी के जोर देने, पर वह डाक्टर को दिखाने के लिए राजी हुआ.
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‘क्या मु झे सच में कैंसर हो गया है,’ शरद ने स्कूटर में किक लगाते हुए सोचा, ‘अब क्या होगा?’
शरद ने तय किया कि अभी वह रजनी को कुछ नहीं बताएगा. डाक्टर ने भी 5 दिन की दवा तो दी ही है. वह 5-6 दिनों की छुट्टी लेगा. रजनी से कह देगा कि डाक्टर ने आराम करने को कहा है. अभी से उसे बेकार ही परेशान करने से क्या फायदा. यही ठीक रहेगा.
घर पहुंच कर उस ने स्कूटर खड़ा किया और घंटी बजाई. दरवाजा रजनी ने ही खोला. रजनी को देखते ही वह अपने को रोक न सका और फफक कर रो पड़ा.
रजनी एकदम से घबरा गई और शरद को पकड़ने की कोशिश करने लगी.
‘‘क्या हुआ…? क्या हो गया? सब ठीक तो है?’’
‘‘मु झे कैंसर हो गया है…’’ कह कर शरद जोर से रजनी से लिपट गया, ‘‘यह क्या हो गया रजनी. अब क्या होगा?’’
‘‘क्या… कैंसर… यह आप क्या कह रहे हैं. किस ने कहा?’’
‘‘डाक्टर ने कहा है,’’ शरद से बोलते नहीं बन रहा था.
रजनी एकदम घबरा गई, ‘‘आप जरा यहां बैठिए.’’
उस ने शरद को जबरदस्ती सोफे पर बिठा दिया, ‘‘और अब मु झे ठीक से बताइए कि डाक्टर ने क्या कहा है.’’
‘‘वही,’’ अब शरद फिर रो पड़ा, ‘‘मुंह में इंफैक्शन हो चुका है. 5 दिन के लिए दवा दी है. कहा है, अगर आराम नहीं हुआ तो 5 दिन बाद टैस्ट करना पड़ेगा.’’
‘‘क्या डाक्टर ने कहा है कि आप को कैंसर है? साफसाफ बताइए.’’
‘‘अभी नहीं कहा है. टैस्ट वगैरह हो जाने के बाद कहेगा. तब तो आपरेशन भी होगा.’’
‘‘जबरदस्ती. आप जबरदस्ती सोचे जा रहे हैं. हो सकता है कि 5 दिन में आराम हो जाए और टैस्ट भी न कराना पड़े.’’
‘‘नहीं, मैं जानता हूं. यह गुटखा के चलते है. कैंसर ही होता है.’’
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‘‘गुटखा तो आप छोड़ेंगे नहीं,’’ रजनी ने दुख से कहा.
‘‘छोड़ूंगा. छोड़ दिया है. पान भी नहीं खाऊंगा. लोग कहते हैं कि यह आदत एकदम छोड़ने से ही छूटती है.’’
‘‘खाइए मेरी कसम.’’
‘‘तुम्हारी और सोनू की कसम तो मैं पहले ही कई बार खा चुका हूं, पर फिर खाता हूं कि नहीं खाऊंगा. पर अब क्या हो सकता है. नुकसान तो हो ही गया है रजनी. अब तुम्हारा क्या होगा? सोनू का क्या होगा?’’ शरद फिर मुंह छिपा कर रो पड़ा.
‘‘रोइए नहीं और घबराइए भी नहीं. हम लड़ेंगे. अभी तो आप को कन्फर्म भी नहीं है. कानपुर वाले चाचाजी का तो गाल और गले का आपरेशन भी हुआ था. देखिए, वे ठीकठाक हैं. आप को कुछ नहीं होगा. हम लड़ेंगे और जीतेंगे. आप को कुछ नहीं होगा,’’ रजनी की आवाज दृढ़ थी.
रजनी शरद को पकड़ कर बैडरूम में लाई. वह दिनभर घर में पड़ा रहा. नींद तो नहीं आई, पर टैलीविजन देखता रहा और सोचता रहा. कहते हैं, कैंसर का पता चलने के बाद आदमी ज्यादा से ज्यादा 6 महीने तक जिंदा रह सकता है. उस की सर्विस अभी 10 साल की हुई है. पीएफ में कोई ज्यादा पैसा जमा नहीं होगा. ग्रैच्यूटी तो खैर मिल ही जाएगी. आवास विकास का मकान कैंसिल कराना पड़ेगा. रजनी किस्त कहां से भर पाएगी. अरे, उस का एक बीमा भी तो है. एक लाख रुपए का बीमा था. किस्त सालाना थी.
तभी शरद को याद आया, इस साल तो उस ने किस्त जमा ही नहीं की थी. यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई. वह लपक कर उठ कर गया व अलमारी से फाइल निकाल लाया. बीमा की पौलिसी और रसीदें मिल गईं. सही में 2 किस्तें बकाया थीं. वह चिंतित हो गया. कल ही जा कर वह किस्तों का पैसा जमा कर देगा. उस ने बैग से चैकबुक निकाल कर चैक
भी बना डाला. फिर उस ने चैकबुक रख दी और तकिए पर सिर रख कर बीमा पौलिसी के नियम पढ़ने लगा.
‘‘मैं खाना लगाने जा रही हूं…’’ रजनी ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘यह आप क्या फैलाए बैठे हैं?’’
‘‘जरा बीमा पौलिसी देख रहा था.2 किस्तें बकाया हो गई हैं. कल ही किस्तें जमा कर दूंगा.’’
‘‘अरे, तो तुम वही सब सोच रहे हो. अच्छा चलो, पहले खाना खा लो.’’
रजनी ने बैड के पास ही स्टूल रख कर उस पर खाने की थाली रख दी. शरद खाना खाने लगा. तकलीफ तो हो रही थी, पर वह खाता रहा.
‘‘रजनी, एक बात बताओ?’’ शरद ने खाना खाते हुए पूछा.
‘‘क्या है…’’ रजनी ने पानी का गिलास रखते हुए कहा.
‘‘यह सुसाइड क्या होता है?’’
‘‘मतलब…?’’
‘‘मतलब यह कि गुटखा खाना सुसाइड में आता है या नहीं?’’
‘‘अब मु झ से बेकार की बातें मत करो. मैं वैसे ही परेशान हूं.’’
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‘‘नहीं, असल में पौलिसी में एक क्लौज है कि अगर कोई आदमी जानबू झ कर अपनी जान लेता है तो वह क्लेम के योग्य नहीं माना जाएगा. गुटखा खाने से कैंसर होता है सभी जानते हैं और फिर भी खाते हैं. तो यह जानबू झ कर अपनी जान लेने की श्रेणी में आएगा कि नहीं?’’
अब रजनी अपने को रोक न सकी. उस ने मुंह घुमा कर अपना आंचल मुंह में ले लिया और एक सिसकी ली.
दूसरे दिन शरद तैयार हो कर औफिस गया. वह सीधे महेंद्रजी के पास गया. उस का बीमा उन्होंने ही किया था. उस ने उन्हें अपनी किस्त का चैक दिया.
‘‘अरे महेंद्रजी, आप ने तो याद भी नहीं दिलाया. 2 किस्तें पैंडिंग हैं.’’
‘‘बताया तो था,’’ महेंद्रजी ने चैक लेते हुए कहा, ‘‘आप ही ने ध्यान नहीं दिया. थोड़ा ब्याज भी लगेगा. चाहिए तो मैं कैश जमा कर दूंगा. आप बाद में दे दीजिएगा.’’
‘‘महेंद्रजी एक बात पूछनी थी आप से?’’ शरद ने धीरे से कहा.
‘‘कहिए न.’’
‘‘वह क्या है कि… मतलब… गुटखा खाने वाले का क्लेम मिलता है न कि नहीं मिलता?’’
‘‘क्या…?’’ महेंद्रजी सम झ नहीं पाए.
‘‘नहीं. मतलब, जो लोग गुटखा वगैरह खाते हैं और उन को कैंसर हो जाता है, तो उन को क्लेम मिलता है कि नहीं?’’
‘‘आप को हुआ है क्या?’’
‘‘अरे नहीं… मु झे क्यों… मतलब, ऐसे ही पूछा.’’
‘‘अच्छा, अब मैं सम झा. आप तो जबरदस्त गुटखा खाते हैं, तभी तो पूछ रहे हैं. ऐसा कुछ नहीं है. दुनिया पानगुटखा खाती है. ऐसा होता तो बीमा बंद हो जाता.’’
‘‘पर… उस में एक क्लौज है न.’’
‘‘कौन सा?’’
‘‘वही सुसाइड वाला. बीमित इनसान का जानबू झ कर अपनी जान देना.’’
महेंद्रजी कई पलों तक उसे हैरानी से घूरते रहे, फिर ठठा कर हंस पड़े, ‘‘बात तो बड़े काम की आई है आप के दिमाग में. सही में गुटखा खाने वाला अच्छी तरह से जानता है कि उसे कैंसर हो सकता है और वह मर सकता है. एक तरह से तो यह सुसाइड ही है. पर अभी तक कंपनी का दिमाग यहां तक नहीं पहुंचा है. बस, आप किसी को बताइएगा नहीं.’’
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‘‘जी…?’’ रजनी ने हैरानी से कहा. वह कुछ समझ न पाई.
‘‘शरद की हालत इतनी खराब नहीं है. उन की हालत ठीक भी नहीं है. समझ लीजिए कि कैंसर ने अभी दस्तक दी है. अंदर नहीं आया है.’’
‘‘यानी, उन्हें कैंसर नहीं है?’’
‘‘कहना मुश्किल है, पर दवाओं ने असर किया है. मानिए, 5 फीसदी सुधार हुआ है.’’
‘‘तो अभी इन का टैस्ट नहीं होना है?’’
‘‘टैस्टवैस्ट नहीं करना है. वह मैं ने इन्हें डराने के लिए कहा था. ये डर भी गए हैं, अच्छा हुआ. इन्हें पान मसाला या गुटखा खाने से डर लगने लगा है. इस डर ने ही इन्हें गुटखे से 5 दिन दूर रखा है. अब मैं ने इन्हें 5 दिन की दवा और दी है. अगर ये 10 दिन तक गुटखे से दूर रहे, तो गुटखा इन से छूट सकता है.
‘‘यह स्टडी है कि टोबैको ऐडिक्ट अगर 10 दिन तक टोबैको से दूर रहे, और उस की विल पावर स्ट्रौंग हो तो टोबैको की आदत छूट सकती है.’’
‘‘पर, इन का मुंह तो पूरा नहीं खुल पा रहा है.’’
‘‘देखिए मिसेज शरद, हर गंभीर बीमारी अपने आने का संकेत देती है और संभलने का मौका भी देती है. माउथ कैंसर का भी यही हाल है. पहली दस्तक मुंह का न खुलना या कम खुलना है. उन की यह हालत 2-3 महीने से होगी. यह फर्स्ट स्टेज है.
‘‘फिर आता है, मुंह का छाला. एक या 2 छाले. ये छाले होने के 5 या 6 दिनों में अपनेआप ठीक हो जाते हैं. इन में कोई दर्द वगैरह भी नहीं होता. 10-15 दिनों के बाद एकाध छाला और होता है और ठीक हो जाता है. इसे आप सैकंड स्टेज समझिए. यहां तक लोग इस की सीरियसनैस नहीं समझते.
फिर आती है, थर्ड स्टेज. एकसाथ कई छाले होते हैं. ये सूखते नहीं हैं. इन में घाव हो जाते हैं और अंदर ही इन में पस पड़ जाती है.
‘‘इस के बाद आती है, लास्ट स्टेज. जब छाले का घाव गाल के दूसरी तरफ यानी बाहरी तरफ आ आता है. यह स्टेज बहुत तेजी से आती है और घाव व कैंसर सेल की ग्रोथ गाल से गले तक हो जाती है. यह लाइलाज है.’’
‘‘यानी, ये सैकंड स्टेज पर पहुंच गए थे.’’
‘‘कह सकते हैं. सैकंड स्टेज की प्राइमरी स्टेज पर.’’
‘‘इस का इलाज क्या है?’’
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‘‘सैकंड स्टेज तक ही इलाज किया जाता है. थर्ड स्टेज आने पर आपरेशन कभीकभी कामयाब होता है. फोर्थ स्टेज लाइलाज है. इस का एक ही इलाज है. पहली स्टेज होते ही तंबाकू से परहेज, खासकर पान मसाला या गुटखा से. 1, 2 या 5 रुपए के गुटखे में क्वालिटी की उम्मीद आप कैसे कर सकते हैं. यह सामान्य सी बात लोग क्यों नहीं समझते. फिर इस के बनाने वाले इसी 1-2 रुपए से करोड़पति हो जाते हैं और सरकारें हजारों करोड़ टैक्स से भी कमा लेती हैं. 2 रुपए के पाउच की क्वालिटी शायद 20 पैसे की भी नहीं होती.’’
‘‘जब ऐसा है, तो सरकार इसे रोक क्यों नहीं देती?’’
‘‘छोडि़ए. यह बड़ी बहस की बात है.’’
‘‘तो ये बच सकते हैं?’’
‘‘शरद बाबू बच जाएंगे, बशर्ते ये तंबाकू से दूर रहें.
रजनी से रहा न गया. उस ने सिर पर आंचल रख लिया और उठ कर डाक्टर साहब के पैर छू लिए.
‘‘अरे… यह आप क्या कर रही हैं. उठिए.’’
‘‘आप… आप डाक्टर नहीं हैं…’’ रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे.
‘‘बड़ी हत्यारी चीज है यह गुटखा मिसेज शरद…’’ डाक्टर साहब गमगीन हो गए. ‘‘मैं ने अपना बेटा खोया है. मैं… मैं उसे बचा नहीं पाया. उस का चेहरा देखने लायक नहीं रहा था.
‘‘हां बेटी, मेरा बेटा भी पान मसाला खाता था. एक दिन एकएक डब्बा खा जाता था. यह चीज ही ऐसी है, जो गरीबअमीर, ऊंचानीचा कुछ नहीं देखती है. बस इसलिए मैं अपने को रोक नहीं पाता हूं. आउट औफ द वे जा कर भी कोशिश करता हूं कि इस से किसी को बचा सकूं.’’
रजनी कुछ कह न सकी. बस एकटक डाक्टर को देखती रही, जो अब एक गमगीन पिता लग रहे थे.
‘‘अब तुम जाओ और वैसा ही करो, जैसा मैं ने कहा है. याद रखना, शरदजी को ठीक करने में जितनी मेरी कोशिश है, उतनी ही जिम्मेदारी तुम्हारी भी है. जाओ और अपनी गृहस्थी, अपने परिवार को बचाओ.’’
रजनी बाहर आ गई. शरद बेचैन हो रहा था.
‘‘क्या कह रहे थे डाक्टर साहब?’’ बाहर आते ही उस ने पूछा.
‘‘चलो, घर चल कर बात करते हैं,’’ रजनी ने गमगीन लहजे में कहा. वे रिकशा से ही आए थे, रिकशा से ही वापसी हुई.
‘‘अब तो बताओ. क्या डाक्टर साहब ने बता दिया है कि मेरे पास कितने दिन बचे हैं?’’
‘‘तुम कैंसर की सैकंड स्टेज पर पहुंच गए हो…’’ रजनी ने साफसाफ कह दिया, ‘‘अब अगर तुम गुटखा खाओगे, तो लास्ट स्टेज पर पहुंचोगे. फिर कोई इलाज नहीं होगा.’’
‘‘अरे, गुटखे का तो अब नाम न लो. अब तो मैं गुटखे की तरफ देखूंगा भी नहीं. अभी कोई इलाज है क्या?’’
‘‘अभी डाक्टर साहब ने साफसाफ नहीं बताया है. 10 दिन बाद बताएंगे. तुम्हें पूरा आराम करना होगा. तुम्हें छुट्टी बढ़ानी होगी.’’
‘‘मैं कल ही एक महीने की छुट्टी बढ़ा दूंगा.’’
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शरद ने एक महीने की छुट्टी बढ़ा दी, पर उसे 2 महीने लग गए.
शरद के औफिस जौइन करने से 2 दिन पहले औफिस के सभी कुलीग उस से मिलने घर आए. सभी खुश थे. तभी रजनी ने प्रस्ताव रखा कि शरद के ठीक होने की खुशी में कल यानी रविवार को सभी सपरिवार रात के खाने पर उन के यहां आएं. सभी ने तालियां बजा कर सहमति दी.
‘‘पर, भाभीजी हमारी एक शर्त है,’’ नीरज ने कहा.
‘‘बताइए नीरजजी?’’ रजनी ने मुसकरा कर कहा.
‘‘हमारी भी एक शर्त है…’’ नीरज ने नाटकीयता से कहा, ‘‘कि सभी अतिथितियों का स्वागत पान मसाले से किया जाए.’’
यह सुन कर वहां सन्नाटा पसर गया.
‘‘भाड़ में जाओ…’’ तभी शरद ने मुंह बना कर कहा, ‘‘मेरे सामने कोई पान मसाले से स्वागत तो क्या कोई पान मसाले का नाम भी न ले. पार्टीवार्टी भी जाए भाड़ में.’’
‘‘अरे… अरे… गलती हो गई भाभीजी. पान मसाले से नहीं, बल्कि हमारी शर्त है कि अतिथियों का स्वागत शरबत के गिलासों से किया जाए.’’
‘‘मंजूर है,’’ रजनी ने कहा तो सभी की हंसी गूंज उठी. शरद की भी, क्योंकि अब उस का मुंह पूरा खुल रहा था.
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लेखक- सुकेश कुमार श्रीवास्तव
पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : शरद के एक दूर के साले ने उसे पान खाने का चसका लगा दिया. पहले मीठा, फिर तंबाकू वाला. धीरेधीरे शरद गुटखा खाने लगा. एक दिन मुंह में छाला हुआ तो डाक्टर ने उसे चेतावनी देते हुए दवा लिख दी. शरद को लगा कि उसे कैंसर हो गया है. इस से उस की हालत पतली हो गई..
अब पढ़िए आगे…
‘‘पर, यह छिपेगा कैसे महेंद्रजी? आपरेशन होगा. आपरेशन और दवा के खर्चों का बिल औफिस से पास होगा. पता तो चल ही जाएगा न.’’
‘‘अरे, कंपनी को कैसे पता चलेगा?’’
‘‘वह डैथ सर्टिफिकेट होता है न. कंपनी डैथ सर्टिफिकेट तो मांगेगी न?’’
‘‘तो…?’’
‘‘उस में तो मौत की वजह लिखी होती है न. उस में अगर कैंसर लिखा होगा तो समस्या हो सकती है न.’’
‘‘अरे, आप इतनी फिक्र मत कीजिए भाई. आप के डैथ सर्टिफिकेट में हम लोग कुछ और लिखा देंगे. इतना तो हम लोग कर ही लेते हैं. अब जाइए, मैं कुछ काम कर लूं.’’
शरद चिंतित सा उठ गया. पीछे से महेंद्रजी ने आवाज दी, ‘‘शरद बाबू, एक बात सुनिए.’’
शरद पलट गया, ‘‘जी…’’
‘‘आप पान-गुटखा खाना छोड़ दीजिए. अगर कौज औफ डैथ में कोई और वजह लिखी होगी तो क्लेम में कोई परेशानी नहीं आएगी. समझ गए न…’’
‘‘जी, समझ गया. छोड़ दिया है.’’
आधे घंटे के अंदर पूरे औफिस में खबर फैल गई कि शरद को कैंसर हो गया है.
चपरासी ने आ कर शरद को बताया कि इंजीनियर साहब उसे बुला रहे हैं.
शरद उन के केबिन में गया. उन्होंने इशारे से बैठने को कहा.
‘‘कौन सी स्टेज है?’’ उन्होंने गुटखा थूक कर कहा.
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‘‘जी, अभी तो कंफर्म ही नहीं है. टैस्ट होना है.’’
‘‘इस का पता ही लास्ट स्टेज पर चलता है. आप लोग बड़ी गलती करते हैं. निगल जाते हैं. अब मुझे देखिए. जब से पान मसाला चला है, खा रहा हूं, पर मजाल है कि कभी निगला हो.
‘‘कभीकभी हो जाता है.’’
‘‘तभी तो यह परेशानी होती है. मैं आप की फाइल देख रहा था. आप की पत्नी का नाम रजनी है न?’’
‘‘जी, हां.’’
‘‘वह ग्रेजुएट है न?’’
‘‘जी. साइंस में ग्रेजुएट है.’’
‘‘बहुत बढि़या. कंप्यूटर का कोई कोर्स किया है क्या?’’
‘‘नहीं साहब. वह तो उस ने नहीं किया है.’’
‘‘करा दीजिए. 3 महीने का कोर्स करा दीजिए. आप तो जानते ही हैं कि आजकल कंप्यूटर के बिना काम नहीं चलता.’’
‘‘जी, मैं जल्दी ही करा दूंगा.’’
‘‘उसे आप की जगह नौकरी मिल जाएगी. आप के पीएफ में कुछ प्रौब्लम है, पर मैं उसे देख लूंगा.’’
‘‘पर, अभी कंफर्म नहीं हुआ है. टैस्ट होने हैं.’’
‘‘कंफर्म ही समझिए और क्या आप लेंगे?’’ उन्होंने नया पाउच तोड़ते हुए पूछा.
‘‘नहीं साहब, मैं ने खाना छोड़ दिया है.’’
‘‘अरे, आराम से खाइए…’’ उन्होंने पाउच सीधे मुंह में डालते हुए कहा, ‘‘जितना समय बचा है, जो मन हो खाइए. जितना नुकसान होना था हो चुका है. अब कोई फर्क नहीं पड़ना है, खाइए या छोडि़ए. खुश रहिए और मस्त रहिए.
‘‘शरद बाबू, दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी. बीवी को जौब मिल जाएगी और बच्चा पल जाएगा. कुछ समय बाद किसी को आप की याद भी नहीं आएगी. पर उस ने कंप्यूटर कोर्स किया होता तो अच्छा था. उस की अंगरेजी कैसी है?’’
‘‘ठीक ही है.’’
‘‘आप की अंगरेजी कमजोर थी. आप की ड्राफ्टिंग भी कमजोर थी. हम तो यही चाहते हैं कि औफिस को काम का स्टाफ मिले.’’
‘‘मैं करा दूंगा सर. मैं उसे कंप्यूटर कोर्स करा दूंगा. 3 महीने वाला नहीं, 6 महीने वाला करा दूंगा.’’
‘‘नहीं. 3 महीने वाला ही ठीक है. बीच में छोड़ना न पड़े.’’
‘‘ठीक है सर.’’
‘‘आल माई बैस्ट विशेज.’’
‘‘थैंक्यू सर,’’ कह कर शरद बाहर आ कर अपनी सीट पर पहुंचा.
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इंजीनियर की बात सुन कर शरद का मन घबराने लगा. उस ने एक हफ्ते की मैडिकल लीव की एप्लीकेशन लिखी व सीधे इंजीनियर साहब के कमरे में आ गया. वे खाना खा कर नया पाउच तोड़ रहे थे.
‘‘सर, मैं घर जा रहा हूं एक हफ्ते की मैडिकल लीव पर,’’ शरद ने अपना निवेदन उन की सीट पर रखा.
‘‘मैं तो पहले ही कह रहा था. जाइए और भी छुट्टी बढ़ानी हो तो बढ़ा दीजिएगा. एप्लीकेशन देने की भी जरूरत नहीं है. फोन कर दीजिएगा. मैं संभाल लूंगा.’’
शरद घर आ गया. वह बहुत निराश था. पर इंजीनियर साहब की एक बात से उसे तसल्ली मिली. रजनी को नौकरी मिल जाएगी और वह बेसहारा नहीं रहेगी.
5वें दिन शाम को शरद डाक्टर के यहां पहुंचा. रजनी भी जिद कर के साथ गई थी. उन की बारी आई तो वे डाक्टर के चैंबर में गए.
‘‘आइए, कैसे हैं आप?’’ डाक्टर साहब ने उन्हें पहचान लिया.
‘‘क्या हाल बताएं डाक्टर साहब,’’ शरद ने कहा, ‘‘अब आप ही देखिए और बताइए.’’
‘‘आप के छाले का क्या हाल है?’’
‘‘दर्द तो कम है, लेकिन खाना खाने में तकलीफ होती है.’’
‘‘अच्छा, मुंह खोलिए.’’
शरद ने मुंह खोला. उसे लगा कि मुंह पहले से कुछ ज्यादा खुल रहा है.
‘‘यह देखिए…’’ डाक्टर ने एक शीशा लगे यंत्र को मुंह में डाल कर दिखाया, ‘‘यह गाल देखिए. दूसरी तरफ भी यह देखिए. पूरा चितकबरा हो गया है. इस में जलन या दर्द है क्या?’’
‘‘नहीं डाक्टर साहब. जलन या दर्द तो पहले भी नहीं था, पर जबान से छूने पर पता नहीं चलता है.’’
‘‘सैंसिविटी खत्म हो गई है. आजकल पान मसाला के पाउच का क्या स्कोर है?’’
‘‘छोड़ दिया है डाक्टर साहब…’’ अब रजनी बोली, ‘‘जिस दिन से आप के पास से गए हैं, उस दिन के बाद से नहीं खाया है.’’
‘‘आप को क्या मालूम? आप जरा चुप रहिए. आप से बाद में बात करता हूं. ये बाहर जा कर खा आते होंगे, तो आप को क्या पता चलेगा’’
‘‘नहीं डाक्टर साहब, मैं ने उस दिन से पान मसाला का एक दाना भी नहीं खाया है,’’ शरद की आवाज भर्रा गई.
‘‘क्यों नहीं खाया है? आप तो दिनभर में 20 पाउच खा जाते थे.’’
‘‘डर लगता है साहब.’’
‘‘वैरी गुड. तभी आराम दिख रहा है. मैं 5 दिन की दवा और दे रहा हूं. उस के बाद दिखाइएगा.’’
‘‘डाक्टर साहब, वह कैंसर वाला टैस्ट…’’ शरद ने कहना चाहा.
‘‘5 दिन बाद. जरा और प्रोग्रैस देख लें, उस के बाद. और आप अब जरा बाहर बैठिए. मुझे आप की पत्नी से कुछ बात करनी है.’’
शरद उठ कर धीरेधीरे बाहर आ गया व दरवाजा बंद कर दिया. रजनी हैरान सी बैठी रही.
‘‘पिछले 5 दिन आप लोगों के कैसे बीते?’’ डाक्टर साहब ने रजनी से पूछा.
रजनी जवाब न दे पाई. उस की आंखें भर आई व गला रुंध गया. उस ने आंचल मुंह पर लगा लिया.
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आगे पढ़ें- रजनी बाहर आ गई. शरद बेचैन हो रहा था….
बड़ी जिम्मेदारियां थीं शरद के ऊपर. अभी उस की उम्र ही क्या थी. महज 35 साल. रजनी सिर्फ 31 साल की थी और सोनू तो अभी 3 साल का ही था. उस ने जेब में हाथ डाल कर गुटखे के दोनों पाउच को सामने ही रखे बड़े से डस्टबिन में फेंक दिया.
‘देखिए, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता…’ शरद को लगा, जैसे डाक्टर का कहा उस के जेहन में गूंज रहा हो, ‘अगर दवाओं से आराम हो गया तो ठीक है, नहीं तो कुछ कहा नहीं जा सकता. मुंह पूरा नहीं खुल पा रहा है. अगर आराम नहीं हुआ तो कुछ टैस्ट कराने पड़ेंगे. 5 दिन की दवा दे रहा हूं, उस के बाद दिखाइएगा.’
तब सोनू पैदा नहीं हुआ था. रजनी के मामा के लड़के की शादी थी. शरद की खुद की शादी को अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था. शादी के बाद ससुराल में पहली शादी थी. उन्हें बड़े मन से बुलाया गया था.
रजनी के मामाजी का घर बिहार के एक कसबेनुमा शहर में था. रजनी के पिताजी, मां, भाई व बहन भी आ ही रहे थे. दफ्तर में छुट्टी की कोई समस्या नहीं थी, इसलिए शरद ने भी जाना तय कर लिया था. ट्रेन सीधे उस शहर को जाती थी. रात में चल कर सुबहसुबह वहां पहुंच जाती थी, पर ट्रेन लेट हो कर 10 बजे पहुंची.
स्टेशन से ही आवभगत शुरू हो गई. उन्हें 4 लोग लेने आए थे. उन्हीं में थे विनय भैया. थे तो वे शरद के साले, पर उम्र थी उन की 42 साल. खुद ही बताया था उन्होंने. वे रजनी के मामाजी के दूर के रिश्ते के भाई के लड़के थे.
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वे खुलते गेहुंए रंग के जरा नाटे, पर मजबूत बदन के थे. सिर के बाल घने व एकदम काले थे. उन की आंखें बड़ीबड़ी व गोल थीं. वे बड़े हंसमुख थे और मामाजी के करीबी थे.
‘आइए… आइए बाबू…’ उन्होंने शरद को अपनी कौली में भर लिया, ‘पहली बार आप हमारे यहां आ रहे हैं. स्वागत है. आप बिहार पहली बार आ रहे हैं या पहले भी आ चुके हैं?’
‘जी, मैं तो पहली बार ही आया हूं साहब,’ शरद ने भी गर्मजोशी से गले मिलते हुए अपना हाथ छुड़ाया.
‘अरे, हम साहब नहीं हैं जमाई बाबू…’ उन के मुंह में पान भरा था, ‘हम आप के साले हैं. नातेरिश्तेदारी में सब से बड़े साले. नाम है हमारा विनय बाबू. उमर है 42 साल. सहरसा में अध्यापक हैं, पर रहते यहीं हैं. कभीकभार वहां जाते हैं.’
‘आप अध्यापक हैं और स्कूल नहीं जाते?’ शरद ने हैरानी से कहा.
‘अरे, स्कूल नहीं कालेज जमाई बाबू…’ उन्होंने जोर से पान की पीक थूकी, ‘हां, नहीं जाते. ससुरे वेतन ही नहीं देते. चलिए, अब तो आप से खूब बातें होंगी. आइए, अब चलें.’
तब तक साथ आए लोगों ने प्रणाम कर शरद का सामान उठा लिया था. वे स्टेशन से बाहर की ओर चले.
‘आप किस विषय के अध्यापक हैं?’ शरद ने चलतेचलते पूछा.
‘हम अंगरेजी के अध्यापक हैं…’ उन्होंने गर्व से बताया, ‘हाईस्कूल की कक्षाएं लेता हूं जमाई बाबू.’
स्टेशन के बाहर आ कर सभी तांगे से घर पहुंचे. शरद का सभी रिश्तेदारों से परिचय हुआ.
तब शरद को पता चला कि विनय भैया नातेरिश्ते में होने वाले शादीब्याह के अभिन्न अंग हैं. वे हलवाई के पास बैठते थे. विनय भैया सुबह से शाम तक हलवाइयों के साथ लगे रहते थे.
दूसरे दिन विनय भैया आए.
‘आइए जमाई बाबू…’ विनय भैया बोले, ‘आप बोर हो गए होंगे. आइए, जरा आप को बाहर की हवा खिलाएं.’
सुबह का नाश्ता हो चुका था. शरद अपने कमरे में अकेला बैठा था. वह तुरंत उठ खड़ा हुआ. घर से बाहर निकलते ही विनय भैया ने नाली में पान थूका.
‘आप पान बहुत खाते हैं विनय भैया,’ शरद से रहा नहीं गया.
‘बस यही पान का तो सहारा है…’ उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘खाना चाहे एक बखत न मिले, पर पान जरूर मिलना चाहिए. आइए, पान खाते हैं.’
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वे उसे आगे मोड़ पर बनी पान की दुकान की ओर ले चले.
‘मगही पान लगाओ. चूना कम, भीगी सुपारी, इलायची और सादा पत्ती. ऊपर से तंबाकू,’ उन्होंने पान वाले से कहा.
‘आप कैसा पान खाएंगे जमाई बाबू?’ उन्होंने उस से पूछा.
‘मैं पान नहीं खाता,’ शरद बोला.
‘अरे, ऐसा कहीं होता है. पान खाने वाली चीज है, न खाने वाली नहीं जमाई बाबू.’
‘सच में मैं पान नहीं खाता, पर चलिए, मैं मीठा पान खा लूंगा.’
‘मीठा पान तो औरतें खाती हैं, बल्कि वे भी जर्दा ले लेती हैं.’
‘नहीं, मैं जर्दातंबाकू बिलकुल नहीं खाता.’
‘अच्छा भाई, जमाई बाबू के लिए जनाना पान लगाओ.’
पान वाले ने पान में मीठा डाल कर दिया.
वे वापस आ कर हलवाई के पास पड़ी कुरसियों पर बैठ गए और हलवाई से बातें करने लगे. आधा घंटा बीत गया.
तभी विनय भैया ने एक लड़के से कहा, ‘अबे चिथरू, जा के 2 बीड़ा पान लगवा लाओ. बोलना विनय बाबू मंगवाए हैं.’
वह लड़का दौड़ कर गया और पान लगवा लाया.
‘लीजिए जमाई बाबू, पान खाइए. अबे, जमाई बाबू वाला पान कौन सा है?’
‘आप पान खाइए…’ शरद ने कहा, ‘मेरी आदत नहीं है.’
‘चलो तंबाकू अलग से दिए हैं…’ विनय बाबू ने पान चैक किए, ‘लीजिए. यह तो सादा चूनाकत्था है. जरा सी सादा पत्ती डाल देते हैं.’
‘नहीं विनय भैया, मु झे बरदाश्त नहीं होगी.’
‘अरे, क्या कहते हैं जमाई बाबू? सादा पत्ती भी कोई तंबाकू होती है क्या. वैसे जर्दातंबाकू खाना तो मर्दानगी की निशानी है. सिगरेट आप पीते नहीं, दारू वगैरह को तो सुना है, आप हाथ भी नहीं लगाते. जर्दातंबाकू की मर्दानगी तो यहां बच्चों में भी होती है.’
तब तक विनय बाबू पान में एक चुटकी सादा पत्ती वाला तंबाकू डाल कर उस की तरफ बढ़ा चुके थे. शरद ने उन से पान ले कर मुंह में रख लिया. कुछ नहीं हुआ. मर्दानगी के पैमाने को उस ने पार कर लिया था.
शादी से लौट कर शरद ने पान खाना शुरू कर दिया. बहुत संभाल कर बहुत थोड़ी सी सादा पत्ती व तंबाकू लेने लगा. फिर तो वह कायदे से पान खाने लगा. कुछ नहीं हुआ. बस यह हुआ कि उस के खूबसूरत दांत बदसूरत हो गए.
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एक बार शरद को दफ्तर के काम से एक छोटी सी तहसील में जाना पड़ा. गाड़ी से उतर कर उस ने एक दुकान से पान खाया. पान एकदम रद्दी था. कत्था तो एकदम ही बेकार था. तुरंत मुंह कट गया.
‘बड़ा रद्दी पान लगाया है,’ शरद ने पान वाले से कहा.
‘यहां तो यही मिलता है बाबूजी.’
‘पूरा मुंह खराब कर दिया यार.’
‘यह लो बाबूजी, इस को दबा लो,’ उस ने एक पाउच बढ़ाया.
‘यह क्या है?’
‘यह गुटखा है. नया चला है. इस से मुंह कभी नहीं कटेगा. इस में सुपारी, कत्था, चूना, इलायची सब मिला है. पान से ज्यादा किक देता है बाबूजी.’
शरद ने गुटखे का पाउच फाड़ कर मुंह में डाल लिया.
अपने शहर में आ कर अपनी दुकान से शरद ने पान खाया. आज मजा नहीं आया. उस ने 4 गुटखे ले कर जेब में डाल लिए.
सोतेसोते तक में शरद चारों गुटखे खा गया. सुबह उठते ही ब्रश करते ही गुटखा ले आया. धीरेधीरे उस की पान खाने की आदत छूट गई. खड़े हो कर पान लगवाने की जगह गुटखा तुरंत मिल जाता था. रखने में भी आसानी थी. खाने में भी आसानी थी. परेशानी थोड़ी ही थी. मुंह का स्वाद खत्म हो गया. खाने में टेस्ट कम आता था.
रजनी परेशान हो गई. शरद की सारी कमीजों पर दाग पड़ गए, जो छूटते ही नहीं थे. सारी पैंटों की जेबों में भी दाग थे. उसे कब्ज रहने लगी. पहले उठते ही प्रैशर रहता था, जाना पड़ता था. अब उठ कर ब्रश कर के, चाय पी कर व फिर जब तक एक गुटखा न दबा ले, हाजत नहीं होती थी.
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