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एक गुटखा थूकने के तुरंत बाद फिर गुटखा खाने की तलब लगती थी. यही गुटखे की खासीयत है.

मुसीबत की शुरुआत मसूढ़ों के दर्द से हुई. पहले हलकाहलका दर्द था. खाना खाते समय मुंह चलाते समय दर्द बढ़ जाता था. फिर ब्रश करते समय मुंह खोलने में दर्द होने लगा.

शरद ने कुनकुने पानी में नमक डाल कर खूब कुल्ले किए, पर कोई आराम न हुआ. धीरेधीरे औफिस के लोगों को पता चला. उन्होंने उसे डाक्टर को दिखाने को कहा. पर उसे लगा शायद यह दांतों का साधारण दर्द है, ठीक हो जाएगा. यह गुटखे के चलते है, यह मानने को उस का मन तैयार नहीं हुआ. कितने लोग तो खाते हैं, किसी को कुछ नहीं होता. उस के महकमे के इंजीनियर साहब महेशजी तो गुटखे की पूरी लड़ी ले कर आते थे. उन का मुंह तो कभी खाली नहीं रहता था. उन की तो उम्र भी 50 के पार है. जब उन्हें कुछ नहीं हुआ, तो उसे क्या होगा. वह खाता रहा.

फिर शरद के मुंह में दाहिनी तरफ गाल में मसूढ़े के बगल में एक छाला हुआ. छाले में दर्द बिलकुल नहीं था, पर खाने में नमकमिर्च का तीखापन बहुत लगता था. छाला बड़ा हो गया. बारबार उस पर जबान जाती थी. फिर छाला फूट गया. अब तो उसे खानेपीने में और भी परेशानी होने लगी.

वह महल्ले के होमियोपैथिक डाक्टर से दवा ले आया. वे पढ़ेलिखे डाक्टर नहीं थे. रिटायरमैंट के बाद वे दवा देते थे. उन्होंने दवा दे दी, पर आराम नहीं हुआ. आखिरकार रजनी के जोर देने, पर वह डाक्टर को दिखाने के लिए राजी हुआ.

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