romantic story in hindi

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बहुत देर से ताप्ती मिहिम के लाए प्रस्ताव पर विचार कर रही थी. रविवार की शाम उसे अपने अकेलेपन के बावजूद बहुत प्रिय लगती थी. आज भी ऐसी ही रविवार की एक निर्जन शाम थी. अपने एकांतप्रिय व्यक्तित्व की तरह ही उस ने नोएडा ऐक्सटैंशन की एक एकांत सोसाइटी में यह फ्लैट खरीद लिया था. वह एक प्राइवेट बैंक में अकाउंटैंट थी, इसलिए लोन के लिए उसे अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी थी. कुछ धनराशि मां ने अपने जीवनकाल में उस के नाम से जमा कर दी थी और कुछ उस ने लोन ले कर यह फ्लैट खरीद लिया था.
मिहिम जो उस के बचपन का सहपाठी और जीवन का एकमात्र आत्मीय था उस के इस फैसले से खुश नहीं हुआ था. ‘‘ताप्ती तुम पागल हो जो इतनी दूर फ्लैट खरीद लिया? एक बार बोला तो होता यार… मैं तुम्हें इस से कम कीमत में घनी आबादी में फ्लैट दिलवा देता,’’ मिहिम ने कुछ नाराजगी के साथ कहा. ‘‘मिहिम मैं ने अपने एकांतवास की कीमत चुकाई है,’’ ताप्ती कुछ सोचते हुए बोली.
मिहिम ने आगे कुछ नहीं कहा. वह अपनी मित्र को बचपन से जानता था. ताप्ती गेहुएं रंग की 27 वर्षीय युवती, एकदम सधी हुई देह, जिसे पाने के लिए युवतियां रातदिन जिम में पसीना बहाती हैं, उस ने वह अपने जीवन की अनोखी परिस्थितियों से लड़तेलड़ते पा ली थी. शाम को मिहिम और ताप्ती बालकनी में बैठे थे. अचानक मिहिम बोला, ‘‘अंकल का कोई फोन आया?’’ ताप्ती बोली, ‘‘नहीं, उन क ा फोन पिछले 4 माह से स्विच्ड औफ है.’’ मिहिम फिर बोला, ‘‘देखो तुम मेरी ट्यूशन वाली बात पर विचार कर लेना. हमारे खास पारिवारिक मित्र हैं आलोक.
उन की बेटी को ही ट्यूशन पढ़ानी है. हफ्ते में बस 3 दिन. क्व15 हजार तक दे देंगे. तुम्हें इस ट्यूशन से फायदा ही होगा, सोच लेना,’’ यह कह कर जाने लगा तो ताप्ती बोली, ‘‘मिहिम, खाना खा कर जाना. तुम चले गए तो मैं अकेले ऐसे ही भूखी पड़ी रहूंगी.’’ फिर ताप्ती ने फटाफट बिरयानी और सलाद बनाया. मिहिम भी बाजार से ब्रीजर, मसाला पापड़ और रायता ले आया. मिहिम फिर रात की कौफी पी कर ही गया. मिहिम को ताप्ती से दिल से स्नेह था.
प्यार जैसा कुछ था या नहीं पता नहीं पर एक अगाध विश्वास था दोनों के बीच. उन की दोस्ती पुरुष और महिला के दायरे में नहीं आती थी. मिहिम नि:स्संकोच ताप्ती को किसी भी नई लड़की के प्रति अपने आकर्षण की बात चटकारे ले कर सुनाता तो ताप्ती भी अपनी अंदरूनी भावनाओं को मिहिम के समक्ष कहने में नहीं हिचकती थी.
जब ताप्ती की मां जिंदा थीं तो एक दिन उन्होंने ताप्ती से कहा भी था कि मिहिम और तुझे एकसाथ देख कर मेरी आंखें ठंडी हो जाती हैं. तू कहे तो मैं मिहिम से पूछ कर उस घर वालों से बात करूं?’’ ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मी, आप क्या बोल रही हैं? मिहिम बस मेरा दोस्त है… मेरे मन में उस के लिए कोई आकर्षण नहीं है.’’ मम्मी डूबते स्वर में बोलीं, ‘‘यह आकर्षण ही तो हर रिश्ते का सर्वनाश करता है.’’
ताप्ती अच्छी तरह जानती थी कि मम्मी का इशारा किस ओर है. पर वह क्या करे. मिहिम को वह बचपन से अपना मित्र मानती आई है और उसे खुद भी आश्चर्य होता है कि आज तक उसे किसी भी लड़के के प्रति कोई आकर्षण नहीं हुआ… शायद उस का बिखरा परिवार, उस के पापा का उलझा हुआ व्यक्तित्व और उस की मां की हिमशिला सी सहनशीलता उसे सदा के लिए पुरुषों के प्रति ठंडा कर गई थी.
ताप्ती जब भी अपने बचपन को याद करती तो बस यही पाती, कुछ इंद्रधनुषी रंग भरे हुए दिन और फिर रेत जैसी ठंडी रातें, जो ताप्ती और उस की मां की साझा थीं. ताप्ती के पापा का नाम था सत्य पर अपने नाम के विपरीत उन्होंने कभी सत्य का साथ नहीं दिया. वे एक नौकरी पकड़ते और छोड़ते गृहस्थी का सारा बोझ एक तरह से ताप्ती की मां ही उठा रही थीं, फिर भी परिस्थितियों के विपरीत वे हमेशा हंसतीमुसकराती रहती थीं.
अपने नाम के अनुरूप ताप्ती की मां स्वभाव से आनंदी थीं, जीवन से भरपूर, दोनों जब साथसाथ चलतीं तो मांबेटी कम सखियां अधिक लगती थीं. ताप्ती ने अपनी मां को कभी किसी से शिकायत करते हुए नहीं देखा था. वे एक बीमा कंपनी में कार्यरत थीं. ताप्ती ने अपनी मां को हमेशा चवन्नी छाप बिंदी, गहरा काजल और गहरे रंग की लिपस्टिक में हंसते हुए ही देखा था.
उन के जीवन की दर्द की छाप कहीं भी उन के चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी. ताप्ती के विपरीत आनंदी को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. अपने आखिरी समय तक वे सजीसंवरी रहती थीं. मगर आज ताप्ती सोच रही है कि काश आनंदी अपनी हंसी के नीचे अपने दर्द को न छिपातीं तो शायद उन्हें ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारी न होती. पापा से ताप्ती को कोई खास लगाव नहीं था.
पापा से ज्यादा तो वह मिहिम के पापा सुरेश अंकल के करीब थी. जहां अपने पापा के साथ उसे हमेशा असुरक्षा की भावना महसूस होती थी, वहीं सुरेश अंकल का उस पर अगाध स्नेह था. वे उसे दिल से अपनी बेटी मानते थे पर मिहिम की मां को यह अहंकारी लड़की बिलकुल पसंद नहीं थी.
बापबेटे का उस लड़की पर यह प्यार देख कर वे मन ही मन कुढ़ती रहती थीं. अंदर ही अंदर उन्हें यह भय भी था कि अगर मिहिम ने ताप्ती को अपना जीवनसाथी बनाने की जिद की तो वे कुछ भी नहीं कह पाएंगी. मिहिम गौर वर्ण, गहरी काली आंखें, तीखी नाक… जब से होश संभाला था कितनी युवतियां उस की जिंदगी में आईं और गईं पर ताप्ती की जगह कभी कोई नहीं ले पाई और युवतियों के लिए वह मिहिम था पर ताप्ती के लिए वह एक खुली किताब था, जिस से उस ने कभी कुछ नहीं छिपाया था.
मां को गए 2 महीने हो गए थे. अब पूरा खर्च उसे अकेले ही चलाना था. मिहिम अच्छी तरह से जानता था कि यह स्वाभिमानी लड़की उस से कोई मदद नहीं लेगी, इसलिए वह अतिरिक्त आय के लिए कोई न कोई प्रस्ताव ले कर आ जाता था. यह ट्यूशन का प्रस्ताव भी वह इसीलिए लाया था.
आज बैंक की ड्यूटी के बाद बिना कुछ सोचे ताप्ती ने अपनी स्कूटी मिहिम के दिए हुए पते की ओर मोड़ दी. जैसे सरकारी आवास होते हैं, वैसे ही था खुला हुआ, हवादार और एक अकड़ के साथ शहर के बीचोंबीच स्थित था. आलोक पुलिस महकमे में ऊंचे पद पर हैं. और अफसरों की पत्नियों की तरह उन की पत्नी भी 3-4 समाजसेवी संस्थाओं की प्रमुख सदस्या थीं और साथ ही एक प्राइवेट कालेज में लैक्चरर की पोस्ट पर भी नियुक्त थीं.
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ताप्ती ने जैसे ही सरकारी कोठी में प्रवेश किया, अर्दली दौड़ कर आया. उस का नामपता पूछ कर अंदर फोन घुमाया और फिर उसे अंदर भेज दिया. ड्राइंगरूम को देख कर ताप्ती सोच रही थी, मेरे पूरे फ्लैट का एरिया ही इस कमरे के बराबर है.
तभी कुछ सरसराहट हुई और एक लंबी कदकाठी के सांवले युवक ने अंदर प्रवेश किया, ‘‘नमस्कार मैं आलोक हूं, आप ताप्ती हैं?’’
ताप्ती एकदम से सकपका गई, ‘‘जी हां, बच्चा किधर है?’’
‘‘गोलू अभी सो रही है. दरअसल, अभी कुछ देर पहले ही स्विमिंग क्लास से आई है.’’
ताप्ती को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह युवक पुलिस महकमे में इतने ऊंचे पद पर आसीन होगा और इस की 9 वर्षीय बेटी भी है.
आलोक बहुत ही धीमे और मीठे स्वर में वार्त्तालाप कर रहे थे. न जाने क्यों ताप्ती बारबार उन की तरफ एकटक देख रही थी. सांवला रंग, चौड़ा सीना, उठनेबैठने में एकदम अफसरी ठसका, घने घुंघराले बाल जो थोड़ेथोड़े कानों के पास सफेद हो गए थे, उन्हें छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया गया था और हंसी जिस में जरा भी बनावट नहीं थी, दिल के आरपार हो जाती थी. बच्चों जैसी हंसी. पता नहीं क्यों बारबार ताप्ती को लग रहा था यह बंदा एकदम खरा सोना है.
चाय आ गई थी. ताप्ती उठना ही चाह रही थी कि आलोक बोला, ‘‘ताप्तीजी, आप आई हैं तो एक बार गोलू की मम्मी से भी मिल लें… अनीता अभी रास्ते में ही हैं… बस 5 मिनट और.’’
ताप्ती को वहां बैठना मुश्किल लग रहा था पर क्या करती… चाय के दौरान बातोंबातों में पता चला कि ताप्ती और आलोक एक ही कालेज में पढ़े हुए हैं, फिर तो कब 1 घंटा बीत गया पता ही नहीं चला.
ताप्ती बोल रही थी, ‘‘आलोक सर आप के तो बहुत प्रशंसक होंगे कालेज में?’’
आलोक मंदमंद मुसकरा कर कुछ कहने ही वाले थे तभी अनीता ने प्रवेश किया.
अपने पति को किसी अजनबी खूबसूरत लड़की से बात करते देख वे प्रसन्न नहीं हुईं. रूखी सी आवाज में बोलीं, ‘‘आप हैं गोलू की ट्यूटर. देखो वह इंटरनैशनल बोर्ड में पढ़ती है… करा पाओगी तुम उस का होमवर्क? हम इसीलिए इतनी ज्यादा फीस दे रहे हैं ताकि उस के प्रोजैक्ट्स और असाइनमैंट में आप उस की मदद कर सको… मुझे और उस के पापा को तो दम मारने की भी फुरसत नहीं है.’’
ताप्ती विनम्रतापूर्वक बोली, ‘‘इसीलिए मैं आज बच्ची से मिलना चाहती थी.’’
तभी परदे में सरसराहट हुई और एक बहुत ही प्यारी बच्ची ने प्रवेश किया. उसे देखते ही अनीता के चेहरे पर कोमलता आ गई, परंतु वह दौड़ कर अपने पापा आलोक के गले में झूल गई. लड़की का नाम आरवी था. पापा के चेहरे की भव्य गढ़न और मां का रंग उस ने विरासत में पाया था, एकदम ऐसा चेहरा जो हर किसी को प्यार करने के लिए मजबूर कर दे.
अनीता अहंकारी स्वर में बोलीं, ‘‘गोलू तुम्हारी ट्यूटर आई हैं. कल से तुम्हें पढ़ाने आएंगी.’’
बच्ची मुंह फुला कर बोली, ‘‘मम्मी आई एम आरवी, राइजिंग सन.’’
ताप्ती मुसकराते हुए बोली, ‘‘हैलो आरवी, कल से मैं आप की आप के प्रोजैक्ट्स में मदद करने आया करूंगी.’’
आरवी ने मुस्करा कर हामी भर दी.
ताप्ती ने कुछ ही देर में महसूस कर लिया था जो आलोक अनीता के आने से पहले इतने सहज थे वे अभी बहुत ही बंधेबंधे से महसूस कर रहे हैं. दोनों पतिपत्नी में कोई साम्य नहीं लग रहा था.
अब ताप्ती की शाम और देर से होती थी, क्योंकि हफ्ते में 3 शामें उस की आरवी की ट्यूशन क्लास में जाती थीं. पहले 2-3 दिनों तक तो आरवी ने उसे ज्यादा भाव नहीं दिया पर फिर धीरेधीरे ताप्ती से खुल गई. लड़की का दिमाग बहुत तेज था. उसे बस थोड़ी गाइडैंस और प्यार की जरूरत थी.
ऐसे ही एक शाम को जब ताप्ती आरवी को पढ़ाने पहुंची तो एकदम आंधीतूफान के साथ बारिश आ गई. जब 2 घंटे तक बारिश नहीं रुकी तो आलोक ने ही ताप्ती से कहा कि वे आज अपने सरकारी वाहन से उसे छोड़ देंगे.
रास्ते में वे ताप्ती से बोले, ‘‘तुम क्यों रोज इतनी परेशान होती हो… आरवी खुद तुम्हारे घर आ जाया करेगी.’’
ताप्ती बिना झिझक के बोली, ‘‘सर, अनीताजी ने मेरी ट्यूशन फीस इसीलिए क्व15 हजार तय की है, क्योंकि वे होम ट्यूटर चाहती थीं. मैं अपना काम पूरी ईमानदारी से करती हूं. मुझे कोई परेशानी नहीं होती है आनेजाने में.’’
फिर जब कार एक निर्जन सी सोसाइटी के आगे रुकी तो फिर आलोक चिंतित स्वर में बोले, ‘‘तुम्हें यहां डर नहीं लगता?’’
ताप्ती मुसकराते हुए बोली, ‘‘सर, मुझे इंसानों से डर लगता है, इसलिए यहां रहती हूं.’’
आलोक के लिए ताप्ती एक पहेली सी थी और फिर मिहिम के पिता से उन्होंने ताप्ती का सारा इतिहास पता कर लिया कि कैसे वह लड़की अकेले ही आत्मस्वाभिमान के साथ अपनी जिंदगी जी रही है. फिर भी उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है. इस के विपरीत उन की पत्नी अनीता रातदिन छोटीछोटी बातों के लिए झिकझिक करती रहती हैं. नौकर के छुट्टी करने या आरवी की आया न आने पर कैसे रणचंडी बन कर सब की क्लास लेती हैं, इस से वे भलीभांति परिचित थे.
अनीता का सौंदर्य एक कठोर पत्थर की तरह था. उन्होंने आलोक के जीवन को सख्त नियमों और कायदों में बांधा हुआ था, जिस कारण उन का फक्कड़ व्यक्तित्व भी कभीकभी विद्रोह कर उठता था.
आज भी जैसे ही ताप्ती की स्कूटी की आवाज सुनाई दी, आरवी ने शोर मचाना शुरू कर दिया, ‘‘चंचल, ताप्ती मैडम आ गई हैं. जल्दी से चायनाश्ता लगाओ.’’
कभी कभी तो आरवी को ताप्ती अपनी मां ही लगती थी. आज ताप्ती ने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, जिस पर पीला बौर्डर था. उसी से मेल खाते उस ने पीले रंग के झुमके पहने हुए थे और आरवी ने जिद कर के उस के बालों में पीला फूल भी खोंस दिया, जो उस के बालों और चेहरे की खूबसूरती को दोगुना कर रहा था.
आरवी कह रही थी, ‘‘ताप्ती मैडम, पता है आप की शक्ल एक मौडल जैसी लगती है… मुझे उस का नाम याद नहीं आ रहा है.’’
ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘आरवी तुम पागल हो और तुम्हारे कुछ भी कहने से मैं आज की क्लास कैंसिल नहीं करूंगी.’’
‘‘गलत क्या कह रही हैं आरू, आप एकदम सुष्मिता सेन का प्रतिरूप लगती हैं. आप को जब पहली बार देखा था तो मैं तो थोड़ी देर दुविधा में ही रहा था कि यह विश्व सुंदरी हमारे घर कैसे आ गई,’’ आलोक बोले.
लौटते हुए मिहिम बोला, ‘‘काफी रात हो गई है आलोक भैया. मैं ताप्ती को छोड़ दूंगा… आप को भी देर हो रही होगी.’’
आलोक का मन था वे फिर से ताप्ती के घर जाएं पर प्रत्यक्ष में कुछ न बोल सके.
रास्ते में मिहिम ताप्ती से बोला, ‘‘ताप्ती, अपनी मम्मी की गलती मत दोहराओ. यह तुम्हारा रास्ता नहीं है. गलत आदमी से प्यार करने का नतीजा आंटी के साथसाथ तुम ने भी भोगा है.’’
ताप्ती बोली, ‘‘तुम क्या कह रहे हो, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’
मिहिम समझाते हुए बोला, ‘‘तुम्हें तुम से ज्यादा जानता हूं और दिल के हाथों मजबूर होना मुझ से अधिक कौन जानेगा.’’
‘‘आलोक भैया एक बेहद सुलझे हुए इंसान हैं पर अपने ससुर के बहुत एहसान हैं उन पर या यों कहूं उन का यह मुकाम उन के ससुर की वजह से है तो गलत न होगा. अपनी उलझनों को मत बढ़ाओ, लौट आओ.’’
ताप्ती के दिल का चोर जानता था यह सच है. वह न जाने क्यों आलोक की तरफ झुकी जा रही है. उन का रुतबा या उन का व्यक्तित्व क्या उसे खींच रहा है, उसे नहीं मालूम. पर गुस्से में उस ने मिहिम को अंदर भी नहीं बुलाया और धड़ाक से कार का दरवाजा बंद कर के चली गई.
रातभर वह मिहिम की बात पर विचार करती रही और फिर निर्णय ले लिया कि वह कोई भी बहाना बना कर ट्यूशन से मना कर देगी.
जब वह सोमवार को ट्यूशन लेने पहुंची तो देखा अनीताजी भी वहीं हैं. उसे देख कर मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘ताप्ती, तुम ने आरवी की शौपिंग में मदद करी, थैंकयू सो मच.’’
‘‘आज उस की क्लास नहीं होगी, आज हम मांबेटी और कुछ सामान लेने जा रही हैं पर कल तुम जरूर आना. अपनी बर्थडे पार्टी में तुम्हारे बिना यह केक भी नहीं काटेगी.’’
घर पहुंची ही थी कि कूरियर आया था. पैकेट खोल कर देखा तो वही शिफौन की साड़ी थी और साथ एक नोट भी था, जिस पर लिखा था कि कल की पार्टी में यही पहनना, मुझे बहुत खुशी होगी.
ताप्ती पैकेट हाथ में लिए बैठी रही. न जाने क्यों उसे गुस्से के बजाय असीम आनंद आ रहा था.
अगले दिन बैंक से आने के बाद वह पार्टी के लिए तैयार हो रही थी कि तभी दरवाजे की बैल बजी. देखा मिहिम खड़ा था.
मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैडम, अभी भी नाराज हो क्या? मुझे पता था कि तुम आरवी के जन्मदिन की पार्टी के लिए तैयार हो रही होगी, इसलिए सोचा तुम्हें लेता चलूं.’’
पता नहीं क्यों मिहिम के सामने उस की हिम्मत नहीं पड़ी वह साड़ी पहनने की. मन मार कर उस ने अपनी मां की आसमानी मुक्कैश जड़ी साड़ी पहनी और साथ में गोल्डन झुमके पहन लिए, जो उस के चेहरे पर खूब खिल रहे थे.
मिहिम उसे देख कर बोला, ‘‘वाह, एकदम फुलझड़ी लग रही हो, पर मैडम अभी दीवाली 2 माह दूर है.’’
जब वे पार्टी में पहुंचे तो आलोक ने दूर से ही देख लिया कि ताप्ती ने उन की साड़ी
नहीं पहनी है और ऊपर से उसे मिहिम के साथ देख कर उन का मूड और उखड़ गया. आरवी ताप्ती का हाथ पकड़ कर उसे केक की टेबल के पास ले आई. ताप्ती ने आलोक और अनीता दोनों का अभिवादन किया.
केक काटने के बाद ताप्ती जब वाशरूम की तरफ जा रही थी तो आलोक रास्ते में मिल गए. इधरउधर देख कर बोले, ‘‘मेरा उपहार पसंद नहीं आया क्या? मेरा कितना मन था तुम्हें उस साड़ी में देखने का.’’
तभी न जाने कहां से अनीता आ गईं और पति को देख कर बोलीं, ‘‘तुम यहां खड़े हो, वहां सारे मेहमान तुम्हारी राह देख रहे हैं.’’
अनीता को न जाने क्यों यह आभास हो गया था कि उन के पति का इस लड़की से कोई संबंध है. मन ही मन उन्हें अपने गोरे रंग और खूबसूरती पर बहुत अहंकार था पर इस लड़की के सामने न जाने क्यों वे हीनभावना से ग्रस्त हो जाती थीं.
लौटते समय ताप्ती और मिहिम अनीताजी से विदा लेने आए तो ताप्ती ने सही मौका देख कर कहा, ‘‘मैम, मैं अब यह ट्यूशन नहीं पढ़ा पाऊंगी, मुझे एक परीक्षा की तैयारी करनी है… मेरी मां की इच्छा थी कि मैं राज्य प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में बैठूं.’’
अनीता के दिल पर से जैसे बहुत बड़ा बोझ हट गया हो. अत: मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘अवश्य तुम कर लोगी… मेरे लायक कोई काम हो तो जरूर बताना.’’
रास्ते में मिहिम बोला, ‘‘सही निर्णय सही समय पर, प्राउड औफ यू.’’
न जाने क्यों रोज ताप्ती आरवी की प्रतीक्षा करती. उसे लगता कि वह जरूर आएगी और उस पर गुस्सा करेगी या यों कहें वह आलोक का इंतजार कर रही थी.
1 हफ्ता बीत गया और ताप्ती ने अपने मन को मजबूत कर लिया था. वह खुश भी थी कि वह बाहर निकल आई और फिर से उस ने अपने एकांतवास से दोस्ती कर ली.
उस दिन शनिवार की शाम थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. ताप्ती ने सोचा मिहिम होगा पर देखा, आलोक खड़े थे. बिना कुछ बोले उन्होंने ताप्ती को एक फूल की तरह अपनी गोद में उठा लिया और फिर उसे सोफे पर बैठा कर बोले, ‘‘मेरा क्या कुसूर है… तुम ने मुझे क्यों अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया? पता है आरवी का बुरा हाल है… वह किसी भी ट्यूटर से पढ़ने को तैयार नहीं है.’’
ताप्ती चुप रही.
आलोक आगे बोले, ‘‘ताप्ती, मैं क्या करूं. अगर मेरा मन तुम्हारी तरफ झुका जा रहा है… झूठ नहीं बोलूंगा तुम मेरी जिंदगी की पहली औरत हो, जिस ने मेरे दिल के तार छुए हैं… अनीता मेरी पत्नी हैं पर पत्नी से ज्यादा वे मुझे एक सख्त मिजाज प्रिंसिपल लगती हैं. हमारे विवाह की नींव ही एहसान और नियमकायदों पर टिकी हुई है. उस में कहीं भी रोमांचित करने वाले पल नहीं हैं.
‘‘अगर कोशिश भी करूं तो मेरी पत्नी मेरे गंवारपन का उपहास उड़ाती है, उस ने आलोक से नहीं, एक पुलिस अधिकारी से शादी करी है.’’
उस रात आलोक ने अपने जीवन की पूरी कहानी सुनाई. वे एक गरीब परिवार से थे. जब वे दिल्ली आए थे, तब उन की मुलाकात अनीता से हुई. अनीता उन की वाक्पटुता की कायल थीं. आलोक एक बहुत अच्छे डिबेटर थे और उन की इसी बात पर अनीता फिदा हो गई थीं.
वे आलोक के जीवन की पहली महिला थीं. अनीता का हाथ पकड़ कर उन्होंने सभ्य और उच्चवर्गीय समाज में उठनेबैठने के सलीकों को सीखा था. अनीता के पिता ने देखते ही इस हीरे को पहचान लिया था. उन्हें अपनी राजकुमारी के बारे में अच्छी तरह से पता था कि उसे आलोक जैसा ही कोई शांत और प्रखर बुद्धि का जीवनसाथी चाहिए. ऊपर से आलोक का भव्य व्यक्तित्व सोने में सुहागा था. अनीता के पिता में आलोक को अपने ही पिता की भूलीबिसरी छवि याद आती थी, इसलिए वे उन की कोई भी बात कभी नहीं टालते थे.
वे कब पीछे से आ कर चुपके से सब देख रहे थे, यह गुरुशिष्या की जोड़ी को पता ही नहीं चल पाया.
ताप्ती का चेहरा लाल हो गया. आरवी चिल्ला कर बोली, ‘‘पापा, आप कब आए?’’
पता नहीं कैसा खिंचाव था दोनों के बीच… जहां ताप्ती की उदासीनता आलोक को न जाने क्यों आकर्षित करती थी, वहीं आलोक का चुंबकीय आकर्षण भी रहरह कर ताप्ती को अपनी ओर खींचता था.
ताप्ती ने बचपन में भी कभी अपने पिता की सुरक्षा महसूस नहीं करी थी. उस ने हमेशा अपने पापा को एक हारे हुए इंसान के रूप में देखा था. जब मरजी आती वे घर आते और जब मन नहीं करता महीनोंमहीनों अपनी महिला और पुरुष मित्रों के पास पड़े रहते. ताप्ती से उन्हें कोई लगाव है या नहीं, उसे आज तक पता नहीं चल पाया.
जब उस की मम्मी को कैंसर डायग्नोज हुआ था, वे फिर उन की जिंदगी से गायब हो गए. जब भी कोई जिम्मेदारी आती तो वे ऐसे ही महीनों गायब हो जाते थे. ताप्ती कभीकभी सोचती कि मम्मी ने इस आदमी से प्यार करने की बहुत भारी कीमत चुकाई है.
आनंदी ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सत्य से कोर्ट में विवाह किया था. एक प्रेमी के रूप में वे जितने अच्छे थे, पति बनते ही गृहस्थी की जिम्मेदारियों से वे भागने लगे. दरअसल, शादी के बाद ही आनंदी को एहसास हो गया कि वे शादी के लिए बने ही नहीं हैं. आनंदी मन ही मन अपने गलत लिए गए फैसले पर घुलती रही और तभी असमय कैंसररूपी दीमक उन्हें चाट गई.
सत्य एक पिता और पति के रूप में न कभी उन की जिंदगी से पूरी तरह निकले न ही पूरी तरह उन की जिंदगी का हिस्सा बन पाए. एक लुकाछिपी का खेल चलता रहा. मम्मी के परिवार ने उन्हें बहुत पहले अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया था, शायद उन के विवाह के बाद से और सत्य के घर वाले उन के गैरजिम्मेदार रवैए के कारण उन से छुटकारा चाहते थे और इस विवाह ने उन्हें सुनहरा मौका दे दिया, इसलिए उन्होंने पहले ही दिन से दूरी बना कर रखी.
शायद आलोक का अपनी बेटी आरवी के लिए अथाह प्यार ही ताप्ती को खींचता था. वह आलोक में अपने उस पिता को ढूंढ़ती थी जो हमेशा मुसीबत आने पर उन मांबेटी को छोड़ कर चला जाता था.
एक बार ताप्ती ने अपनी मां से झुंझला कर कहा भी था, ‘‘मम्मी, क्यों इन्हें ढो रही हो, तलाक क्यों नहीं ले लेतीं?’’
तब आनंदी ने कड़वाहट से कहा था, ‘‘कोई तो है अपना कहने के लिए और पगली मैं तो तलाक ले भी लूंगी, तू बेटी तो सत्य की ही कहलाएगी… यह आदमी किस नीचता तक उतर सकता है, तुझे मालूम नहीं. जो है जैसा है रहने दे, कभीकभी ही सही कम से कम उसे पिता का फर्ज तो याद रहता है.’’
उस दिन रविवार था. ताप्ती काम खत्म कर लाल स्कर्ट और पीली कुरती में अलसा रही थी तभी बैल बजी. आरवी कार से उतरी और दौड़ती हुई ताप्ती के गले से झूल गई, ‘‘ताप्ती मैम मम्मी टूर पर गई हैं… और मेरा बिलकुल मन नहीं लग रहा था, इसलिए मैं यहां आ गई हूं. शाम को हम लोग शौपिंग पर चलेंगे.’’
ताप्ती बोली, ‘‘ठीक है बाबा, कुछ खाया या नहीं?’’
ताप्ती को कुछ ही दिनों में अपनी इस छात्रा से एक अनोखा लगाव हो गया. पता नहीं क्यों वह आरवी के साथ अपना बचपना जीती थी. वह बचपन जिसे वह कभी नहीं जी पाई, जो हमेशा एक असुरक्षा के साए में ही रहा. ताप्ती ने बहुत प्यार से आरवी के लिए पिज्जा बनाया और फिर दोपहर के खाने की तैयारी करने लगी. अभी वह खाने की मेज पर खाना लगा ही रही थी कि घर की बैल बजी.
आरवी पूछ रही थी, ‘‘पापा, आप बड़ी जल्दी आ गए?’’
‘‘मैम, तैयार हो जाओ, शौपिंग पर चलेंगे.’’
‘‘पापा, मैम ने बहुत अच्छा पिज्जा बनाया था. चलो खाना खाते हैं… शी इज एन ऐक्सीलैंट कुक.’’
आलोक हंसते हुए डाइनिंगटेबल पर बैठ गए. पता नहीं ताप्ती क्यों इतना पसीनापसीना हो रही थी.
आलोक ताप्ती से बोले, ‘‘सौरी, मुझे बहुत भूख लग रही है. तुम से पूछे बिना ही खाने पर बैठ गया हूं.’’
ताप्ती के बनाए खाने में सच में बहुत स्वाद था. अरहर की दाल, भरवां करेले, चावल और रोटी. ऐसा लगा आलोक को जैसे वे बरसों से भूखे हों. खाना खातेखाते अचानक आलोक के मुंह से निकल गया, ‘‘तुम जितना अच्छा खाना बनाती हो, उतनी ही सुंदर भी हो.’’
ताप्ती एकदम से लाल हो गई.
आलोक को जब समझ आया तो थोड़े से झेंप कर बोले, ‘‘आज आप स्कर्ट में एकदम स्कूली बच्ची लग रही हो.’’
ताप्ती आलोक के साथ नहीं जाना चाहती थी, इसलिए आरवी से बोली, ‘‘आरवी, तुम पापा के साथ जाओ, मुझे किसी जरूरी काम से जाना है.’’
आरवी रोंआसी सी बोली, ‘‘चलो न मैम नहीं तो मैं भी नहीं जाऊंगी. मुझे अपने जन्मदिन की शौपिंग करनी है… मम्मी जन्मदिन से 1 दिन पहले लौटेंगी.’’
आलोक बोले, ‘‘चलो न ताप्ती.’’
पता नहीं ताप्ती आलोक के आगे क्यों कमजोर पड़ जाती थी. जब वह फीरोजी जयपुरी बंदेज के सलवारकुरते में तैयार हो कर निकली तो आलोक फिर से खुद को काबू न कर पाए और धीरे से बोल उठे, ‘‘आज तो हम एक परिवार की तरह लग रहे हैं.’’
ताप्ती कट कर रह गई पर कुछ बोल न पाई. मन ही मन कुढ़ भी रही थी कि क्या जरूरत थी तैयार होने की. स्कर्ट भी तो ठीक ही थी.
आलोक आज खुद ही कार ड्राइव कर रहे थे. वे लगातार बोल रहे थे और माहौल को हलका करने की कोशिश कर रहे थे. वे किसी भी कीमत पर अपनी बेटी की खूबसूरत ट्यूटर को नाराज नहीं करना चाहते थे.
शौपिंग मौल में पहुंच कर ताप्ती आरवी के कपड़े दिलवाने में बिजी हो गई. वहीं घूमतेघूमते 2 घंटे बीत गए. तभी ताप्ती की नजर एक शिफौन की रानी रंग की साड़ी पर पड़ी, जिस में गोटा पट्टी लगी थी.
आरवी बोली, ‘‘पापा, ताप्ती मैम को यह साड़ी बहुत पसंद आ रही है.’’
इस से पहले कि ताप्ती कुछ बोलती, आलोक ने वह साड़ी पैक करवा दी. दुकान से बाहर आ ही रहे थे कि मिहिम से टकरा गए. अपने किसी काम से आया हुआ था. ताप्ती को आलोक और आरवी के साथ देख कर बोला, ‘‘शुक्र है तुम घर से बाहर तो निकलीं वरना मेरे लिए तो हमेशा मैडम को बहाना तैयार रहता है.’’
आलोक ने हंसते हुए कहा, ‘‘चलो मिहिम तुम भी हमारे साथ डिनर करो.’’
डिनर करते हुए मिहिम और आलोक अपनी बातों में ही व्यस्त रहे… ताप्ती का मन न जाने क्यों एक सपने के पीछे भटकता रहा. सपना उस के अपने परिवार का.
फिर अनीता के पिता ने ही पहल कर के उन्हें दिल्ली के नामी कोचिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला दिला दिया और आलोक ने भी उन को गलत साबित नहीं किया. पहली बार में ही उन का चयन हो गया. अनीता के पिता का जो सपना उन के बेटा या बेटी पूरा नहीं कर पाए वह उन के भावी दामाद ने पूरा कर दिया.
आलोक को यह रिश्ता मंजूर है या नहीं किसी ने उन से नहीं पूछा. अनीता के लिए आलोक एक जीवनसाथी नहीं, बल्कि एक ट्रौफी हसबैंड थे.
जब रात के 9 बज गए तो ताप्ती ने कहा, ‘‘आरवी आप का इंतजार कर रही होगी.’’
आलोक बोले, ‘‘दोनों मांबेटी नाना के घर गई हैं, परसों आएंगी. आज की रात में यहीं रुक जाऊं क्या?’’
ताप्ती की भी यही इच्छा थी, पर उसे डर भी लग रहा था.
आलोक शायद उस के चेहरे के भाव से समझ गए, इसलिए बोले, ‘‘फिक्र मत करो, मैं अपने सरकारी वाहन में नहीं आया हूं… सुबह ही निकल जाऊंगा.’’
उस रात पहली बार ताप्ती को पुरुष स्पर्श का एहसास हुआ जो नारी के सौंदर्य को दोगुना कर देता है.
सुबह जब उस ने आलोक को कौफी पकड़ाई तो आलोक बोले, ‘‘ताप्ती, अगले शनिवार भी आ सकता हूं क्या? और प्लीज वही साड़ी पहन कर रखना जो मैं ने तुम्हें भेजी थी.’’
वह 1 हफ्ता एक दिन की तरह बीत गया और फिर से शनिवार की शाम आ गई. ताप्ती ने आलोक के कहे अनुसार उन की ही साड़ी पहनी और आज उस ने गजब का शृंगार भी किया था. दरवाजे की घंटी बजते ही जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने अनीताजी को देख कर सकपका गई, साथ में आरवी भी थी.
ताप्ती को देखते ही आरवी बालसुलभता से बोली, ‘‘मैम, यह तो वही साड़ी है, जिसे उस दिन आप मौल में देख रही थीं. आज आप एकदम दुलहन जैसी लग रही हैं.’’
अनीताजी की आंखों से नफरत की चिनगारी निकल रही थी. उन्हें पता था कि इतनी महंगी साड़ी यह दो टके की लड़की नहीं खरीद सकती है. उन का शक अब यकीन में बदल गया था.
आरवी सब चीजों से अनजान अपनी मम्मी से बोल रही थी, ‘‘मम्मी, बात करो न मैम से कि वे मेरी हफ्ते में 1 दिन आ कर ही मदद कर दें.’’
अनीताजी कुछ न बोल आरवी का हाथ पकड़ कर तीर की तरह निकल गईं.
ताप्ती ऐसे ही बैठी रही. तभी आलोक आ गए, ताप्ती ने उन्हें पूरी बात बता दी. आलोक किसी और मूड से आए थे. वे ताप्ती के बालों से खेलने लगे, उन की उंगलियां उस के होंठों को छू रही थीं.
ताप्ती ने उन्हें धक्का दे कर कहा, ‘‘मैं क्या हूं… एक मिस्ट्रैस या मन बहलाने का साधन… आप क्या हर हफ्ते ऐसे ही झूठ बोल कर रात के अंधेरे में आएंगे?’’
आलोक शरारत से बोले, ‘‘सब रुतबे वाले आदमियों की मिस्ट्रैस होती हैं और पुलिस महकमा तो वैसे भी इन सब बातों के लिए बदनाम है.’’
ताप्ती इस से पहले और कुछ बोलती, आलोक ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. रातभर दोनों प्रेम के संगीत में डूबे रहे.
सुबह जाते हुए आलोक बोले, ‘‘चिंता मत करो ताप्ती, जल्द ही मैं सामने के
दरवाजे से आऊंगा, तुम मेरे लिए भोग की वस्तु नहीं हो, तुम मेरे मन के सुकून के लिए जरूरी हो.
‘‘बस थोड़ा सा और ताप्ती फिर तुम और मैं एकसाथ रहेंगे, दिन के उजाले में भी.’’
ताप्ती अपने बैंक पहुंची ही थी कि उसे चपरासी बुलाने आया कि मैनेजर साहब ने उसे अपने कैबिन में बुलाया है. अंदर जा कर देखा मैनेजर के साथ एक अधेड़ उम्र के पुरुष बैठे थे. एकदम अनीता का ही नक्शा था.
ताप्ती को देखते ही गुस्से में बोले, ‘‘तो तुम हो ताप्ती… शर्म नहीं आती मेरी बहन के परिवार में आग लगाते हुए? नौकरी करती, खूबसूरत हो, यहांवहां मुंह मारने से अच्छा है तुम किसी ढंग के लड़के से शादी कर लो,’’ फिर व्यंग्य करते हुए बोले, ‘‘जानता हूं तुम्हारे आगेपीछे कोई नहीं है, कहीं की भी झूठी पत्तलें चाटो पर आलोक को बख्श दो,’’ जातेजाते वह शख्स नीचता पर उतर आया और ताप्ती को घूरते हुए बोला, ‘‘वैसे आलोक की जगह तुम मुझे भी दे सकती हो.’’
ताप्ती शर्म के कारण सिर नहीं उठा पा रही थी. पता नहीं मैनेजर क्या सोच रहे होंगे.
अनीता के भाई के जाने के बाद मैनेजर बोले, ‘‘ताप्ती आई कैन अंडरस्टैंड, पर तुम चिंता मत करो, हो जाता है कभीकभी, मुझे तुम्हारी समझदारी पर पूरा भरोसा है.’’
फिर से शनिवार की शाम आ गई थी. ताप्ती और आलोक किसी भी सोशल नैटवर्किंग साइट पर टच में नहीं थे, न ही वे कभी एकदूसरे के साथ फोन पर बात करते थे. बस शनिवार की शाम का यह अनुबंध था.’’
ताप्ती को विश्वास था अब आलोक कभी नहीं आएंगे, इसलिए वह एक पुराने से फ्रौक में बैठी थी.
घंटी बजी और आलोक आ गए. ताप्ती को बांहों में भरते हुए बोले, ‘‘एकदम बार्बी डौल लग रही हो… जल्द ही आगे के दरवाजे से आऊंगा… मैं ने अनीता से बात कर ली है.’’
ताप्ती बोली, ‘‘आरवी का क्या होगा?’’ और फिर ताप्ती ने उस दिन की घटना भी विस्तार से बता दी. दरअसल, अब वह आलोक के साथसाथ अपनी सुरक्षा के लिए भी चिंतित थी.
पूरी घटना सुन कर आलोक बोले, ‘‘चिंता न करो, मैं ने अनीता के परिवार से भी बात कर ली है. तुम्हें अब कोई परेशान नहीं करेगा. तुम बस अपना मन बना लो… थोड़ा सा होहल्ला होगा पर फिर सब भूल जाएंगे, तुम मजबूत रहना.’’
रविवार की शाम मिहिम का फोन आया. उस ने ताप्ती से कहा, ‘‘तैयार रहना, आज डिनर पर चलेंगे.’’
ताप्ती ने वही स्कर्ट और कुरती पहनी जिन्हें आलोक उस के लिए दीवाली पर पहनने के लिए जयपुर से लाए थे.
वहां पहुंच कर देखा तो अनीताजी भी बैठी थीं. उस ने मिहिम को शिकायतभरी नजरों से देखा. बोलीं, ‘‘ताप्ती, मैं तुम पर कोई दोषारोपण करने नहीं आई हूं. अकेली तुम्हारी ही गलती नहीं है, पर कोई भी फैसला लेने से पहले एक बार आरवी के बारे में जरूर सोचना.’’
‘‘मुझे मालूम है तुम एक दर्दनाक बचपन से गुजरी हो. क्या तुम आरवी के लिए भी ऐसा ही चाहोगी?
‘‘एक बच्चे को मां और पिता दोनों की आवश्यकता होती है और यह तुम से बेहतर कौन जान सकता है. प्लीज, उस की जिंदगी से चली जाओ. आलोक के सिर पर इश्क का जनून सवार है पर आलोक आरवी के बिना नहीं रह पाएगा. हां, मैं उसे हिटलर जैसी लगती हूं पर किस के फायदे के लिए, कभी समझ नहीं पाएगा. तुम ही कदम पीछे हटा लो ताप्ती, प्रेमी और पति में बहुत फर्क होता है.’’
अचानक ताप्ती को महसूस हुआ जैसे अनीता नहीं, उन के मुंह से उस की मां बोल रही हैं. मेज पर सजा खाना ताप्ती को जहर लग रहा था.
रास्तेभर मिहिम और ताप्ती चुप बैठे रहे. मिहिम ताप्ती के साथ अंदर आया और बोला, ‘‘ताप्ती, क्यों आग से खेल रही हो? तुम एक बार हां तो कहो, मैं तुम्हारे लिए लड़कों की लाइन लगा दूंगा.’’
ताप्ती डूबते स्वर में बोली, ‘‘मेरे साथ कौन शादी करेगा मिहिम?’’
मिहिम प्यार से उस के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोला, ‘‘ताप्ती मैं भी तैयार हूं, तुम हां तो करो.’’
ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘मिहिम, प्लीज मैं और तुम कभी नहीं.’’
मिहिम को पता था, ताप्ती उसे बस अच्छा मित्र ही मानती है. न जाने क्यों
उसे आलोक से ईर्ष्या हो रही थी. उस मंगलवार की शाम ताप्ती अभी औफिस से आ कर बैठी ही थी कि आरवी अपनी आया के साथ आ गई. ताप्ती के गले लग कर सुबकते हुए बोली, ‘‘मैम, मैं और मम्मी अब नानाजी के घर रहेंगे… पापा दूसरी शादी कर रहे हैं… मैं मम्मी को अकेले नहीं छोड़ सकती, इसलिए उन के साथ जा रही हूं.’’
ताप्ती ने देखा लड़की बिलकुल मुरझा गई है… उसे लगा आरवी नहीं जैसे यह ताप्ती बोल रही हो. उस ने मन ही मन अनीता को धन्यवाद भी दिया कि उस ने आरवी को उस दूसरी औरत का नाम नहीं बताया अन्यथा आरवी कभी भी उसे माफ न कर पाती.
मगर जब आरवी वापस जा रही थी तो ताप्ती ने निर्णय ले लिया कि वह अपने प्यार का ताजमहल आरवी के बचपन पर कभी खड़ा नहीं करेगी. ताप्ती सोच रही थी कि इस शनिवार की रात वह आलोक को अपना निर्णय सुना देगी.
तभी फोन की घंटी बजी. मिहिम का फोन था. वह बता रहा था कि आलोक भैया का ट्रांसफर असम हो गया है. ताप्ती जानती थी कि किस कारण से आलोक ने अपना ट्रांसफर इतनी दूर करवाया है पर अब आरवी और अनीता ही आलोक के साथ जाएंगी.
तभी दरवाजे की घंटी बजी. ताप्ती ने सोचा शायद आलोक होंगे. वह मन ही मन अपनी लाइंस को दोहरा रही थी पर दरवाजे के बाहर तो हारे हुए जुआरी की तरह एक अधेड़ उम्र का पुरुष खड़ा था. ताप्ती ने देखा और एकदम से पीछे हट गई. फिर से ताप्ती के जीवन में पिता का आगमन हो गया था.
अचानक ताप्ती को मिहिम का वह छंद याद आ गया, जिसे वह हमेशा उसे परेशान करने के लिए गाता था-
‘‘ताप्ती क्यों तेरा यह रूपरंग कलकल बहता जाए,क्यों कोई पुरुष इस में सुकून की छांव न पाए,
निर्जन ही रहेगी मिहिम बिना तेरी जीवनधारा, हां तो कर दे मृगनयनी कब से खड़ा हूं यों हारा.’’