टीनऐजर्स और पैरेंट्स के बीच होने लगे कम्यूनिकेशन गैप, तो बड़े काम के साबित होंगे ये टिप्स

मुझे याद है जब मैं करीब 15 साल की थी. 10वीं क्लास की पढ़ाई का प्रैशर और अपनी मनमानी न कर पाने का गुस्सा अलग ही अनुभवों की लिस्ट सी बनाता चला गया और युवा होतेहोते इस का अंदाजा भी नहीं लगा.

उन में से एक था बातबात पर गुस्सा हो कर मम्मीपापा से बात करना छोड़ देना. मम्मी कहीं जाने से मना कर देतीं तो कभी पापा अपनी पसंदीदा ड्रैस के लिए पैसे देने से मना कर देते. रोती और गुस्सा होती और कईकई दिन तक मम्मीपापा से बात नहीं करती.

Teenagers sitting together

अन्य टीनऐजर्स बच्चों की तरह मैं भी अपने पेरैंट्स से दिनभर की बातें करती थी जैसे दिनभर की थकान, स्कूल में मैडम की डांट तो क्लासमेट से हुई नोंकझोंक सबकुछ बताती थी, फिर धीरेधीरे सब छूटने लगा.

गुस्सा करना और बात न करना एक आदत सी बनता चला गया. शुरूशुरू में मम्मीपापा भी हंस कर टाल देते थे. मनाने की कोशिश करते, हंसाने की कोशिश भी करते. लेकिन मैं अपनी जिद्द पर अड़ी रहती, न बात करती और न ही उन की बातों का जवाब देती. फिर धीरेधीरे वह भी बंद हो गया. कम्यूनिकेशन गैप बढ़ता चला गया. आखिर वह भी कितना अपनेआप को एक ही चीज के लिए फोर्स करते.

खेलते हुए हम लोग गंभीर से हो गए, युवा होने तक ऐसा ही रहा और आज भी है. पेरैंट्स और टीनऐजर्स के बीच कम्यूनिकेशन गैप का बढ़ जाना ठीक नहीं है. बाद में यह आप को अलगथलग कर देता है. इसलिए पेरैंट्स के साथ अपना कम्यूनिकेशन बनाए रखना बेहद जरूरी हो जाता है.

आइए, जाने अपने और अपने पेरैंट्स के बीच कम्यूनिकेशन को कैसे ठीक रखा जा सकता है:

बातचीत के लिए रहें हमेशा औपन

टीनऐजर्स और पेरैंट्स दोनों ही के लिए यह जरूरी हो जाता है कि आप बातचीत के लिए हमेशा औपन रहें. एक बच्चे के तौर पर अपने मातापिता से बातचीत करते रहे. उन से उन के स्कूली जीवन, अनुभवों और शौक के बारे में पूछें और उन्हें अपने शौक भी बताएं. अगर नाराज हैं फिर भी पेरैंट्स की तरफ से की गई बातचीत की छोटी सी कोशिश को भी नजरअंदाज न करें. अपनी नाराजगी दिखाएं जरूर लेकिन उस पर अडे़ न रहें. परिस्थिति चाहे जैसी भी हो कोशिश यह होनी चाहिए कि किसी भी रिश्ते में बातचीत का सिलसिला टूटने न पाए. बातचीत का कम होना एक अनहैल्दी रिश्ते की निशानी है, चाहे वह कोई भी रिश्ता हो.

गलत शब्दों के चयन से बचें

अकसर टीनऐजर्स बडे इमैच्योर तरीके से गुस्से ही गुस्से में ऐसी कई बातें बोल देते हैं, जिन से पेरैंट्स को काफी ठेस लगती है. हो सकता है उन का गुस्सा भी बढ़ जाए और आप का भी फिर बात और बिगड़ जाए. ऐसे में टीनऐजर्स के लिए बेहतर होता है अपनी बात को सामने रखें और सही शब्दों के साथ उन्हें बताने की कोशिश करें. ध्यान रहे एक टीनऐजर के और एक संतान के तौर पर आप अपनी लिमिट क्रौस न करें जो बाद में जा कर कम्यूनिकेशन को बढ़ा दे. मम्मीपापा से बात करते समय शब्दों के चयन का खास ध्यान रखें.

परिस्थितियां समझने की कोशिश करें

कभी भी पेरैंट्स के साथ जल्दबीजी से काम न लें, पेशंस रखें क्योंकि पेरैंट्स और आप टीनऐजर्स के बीच एक बड़ा ऐज गैप होता है, जिस से पेरैंट्स को आप की जरूरतों और पसंद को समझने में वक्त लगता है. ऐसे में पेरैंट्स के साथ जल्दबाजी या जिद न करें. ऐसा करने से पेरैंट्स आप की बातों को गैरजरूरी समझ कर नजरअंदाज कर सकते हैं. पेरैंट्स के साथ पेशंस रखें. उन्हें अपनी जरूरों और पसंद के बारे में डीटेल में बताएं ताकि वे उन्हें अच्छे से समझ सकें.

बहस करने से बचें

अकसर बच्चे अपने मम्मीपापा की बातों से भड़क जाते हैं और बहस करने लगते हैं. वह बहस फिर जल्दी ही झगड़े में बदल जाती है. टीनऐजर्स को चाहिए कि वे ऐसा न करें बल्कि यदि आप के मम्मीपापा आप को किसी बात पर सलाह देते हैं या बातोंबातों में कुछ ऐसा बोल देते हैं जो आप को दिल पर लग जाता है तो उसे कहने का सही तरीका और समय ढूंढ़े. कई बार ऐसा करने से पहले ही आप के मम्मीपापा को अपनी गलती का एहसास हो जाता है. तो हमेशा बहस करने के बजाय शांति से उस पर बात करने की कोशिश करें. जरूरी नहीं हर बार आप सही हों और वे गलत या फिर आप गलत हों और वे सही.

उन के अनुभव के बारे में पूछें

अगर आप किसी परेशानी में फंस गए हैं या आप के जीवन में किसी तरह की उलझन है चीजों को ले कर, रिश्तों को ले कर तो बेहतर होगा कि आप अपने मातापिता से पूछें. वे हमेशा आप को कोई न कोई समाधान तो दे ही देंगे. उन का अनुभव आप को अपने जीवन को बेहतर करने में मदद करेगा और इस तरह आप के बीच में पनप रहे कम्यूनिकेशन गैप को कम करने में मदद मिलेगी. इस से एक खास बात यह रहेगी कि आप को जानने का मौका मिलेगा कि आप के पेरैंट्स ने आप तक पहुंचने में कितनी परेशानियों का समना किया हो. वैसे हर केस में ऐसा होना जरूरी नहीं पर अनुभव बांटना एक अच्छा ऐक्सपीरियंस है.

खुद को पेरैंट्स की जगह पर रखें

जब भी एक टीनऐजर्स के तौर पर आप को लग रहा है आप के मम्मीपापा आप के साथ कुछ गलत कर रहे हैं तो एक बार अपनेआप को उन की जगह पर रखने की कोशिश करें. अगर आप एक टीनऐजर्स के तौर पर अपने लिए बहस कर सकते हैं तो उन्हें समझने की कोशिश भी कर सकते हैं. कई बार मम्मीपापा अपनी परिस्थितियों के अनुसार ही आप की बातों का नजरअंदाज या फिर मना करते हैं. ये परिस्थितियां कई तरह की हो सकती हैं जैसे आर्थिक यानी पैसों की कमी, सामाजिक यानी आप की सुरक्षा और भविष्य से जुड़ी बातें. ऐसी कई बातें उन्हें आप की हर बात न मानने के लिए मजबूर करती हैं.

इन बातों का ध्यान रखें और कोशिश करें कि आप और आप के पेरैंट्स के बीच कम्यूनिकेशन गैप न पनपने पाए. हर मांबाप अपने बच्चों के लिए अपने से बेहतर भविष्य और वर्तमान की कामना ही नहीं करते बल्कि इन की कोशिशों में लगातार लगे रहते हैं. आप ने कई बार देखा होगा अपनी मम्मी को अपने लिए साड़ी नहीं आप के लिए ड्रैस लेते हुए अपने पापा को सेम जूतों में सालभर औफिस जाते हुए पर आप को आप की पसंद के जूते दिलवाते हुए. ऐसे में उन के साथ बातचीत बंद कर देना एक अविकसित दिमाग की निशानी से ज्यादा कुछ नहीं है. एक टीनऐजर्स और युवा के तौर पर ऐसा न होने दें और हमेशा बातचीत का सिलसिला जारी रखें भले नाराजगी लंबे समय तक चलती रहे.

टीनएजर्स को गलत तरीके से टच करे सगा अंकल

कई बार काम या किसी मजबूरी की वजह से पेरेंट्स टीनएजर गर्ल्स को घरवालों के भरोसे छोड़कर बाहर जाते हैं. हालांकि गर्ल्स के मामले में कहा जाता है कि जब तक वे इंडिपेंडेंट न हो जाए, तो उन्हें अपने साथ ही रखना चाहिए, लेकिन आजकल हसबैंडवाइफ दोनों वर्किंग होते हैं, तो हर टाइम टीनएजर्स के साथ रहना मुश्किल होता है.

एक बार मम्मी ने मुझे अंकल के भरोसे घर पर छोड़कर चली गई, अंकल ने मुझे कुछ सामान देने के बहाने अपने पास बुलाया, लेकिन गलत तरीके से मुझे टच किया. मैं एकदम सन्न रह गई. मैं समझ नहीं पा रही थी कि मेरे साथ क्या हुआ, किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था.

हालांकि जब मम्मी घर आईं, तो उन्होंने इसका कारण भी पूछा. मैंने डरकर अपनी मम्मी को नहीं बताया, कहीं वह उल्टा में मुझे ही डांटने लगेगी.

कई बार टीनएजर्स फैमिली सेक्सुअल एब्यूज का शिकार होती हैं और वो अपनी पेरेंट्स कह भी नहीं पाती हैं. जो मामा या चाचा पेरेंट्स के सामने लड़कियों को गुड़ियागुड़िया कह कर अपने पास बुलाते हैं, उन्हें चौकलेट्स या कोई गिफ्ट देतें हैं, फिर प्यार करने का दिखावा करते हैं. वहीं मामाचाचा पेरेंट्स के पीठ पीछे टीनएजर्स के साथ जो हैवानियत करते हैं, वो दबा दिया जाता है.

क्या है फैमिली सेक्सुअल एब्यूज

फैमिली सेक्सुअल एब्यूज में परिवार के सदस्य किसी बच्चे या एडल्ट मेंबर के साथ आपत्तिजनक हरकत करते हैं. यह जरूरी नहीं है कि ‘परिवार का सदस्य’ सगा ही हो, वह परिवार से किसी भी तरह से जुड़ा हो सकता है या कोई बहुत करीबी दोस्त भी हो सकता है.

टीनएजर्स भी डर से अपने पेरेंट्स से नहीं कह पाती हैं कि उन्हीं के रिश्तेदार ने यौन शोषण किया है. कई बार तो पेरेंट्स के सामने मामा या चाचा की पोलपट्टी भी खुल जाती है, लेकिन इसके बावजूद भी यह बात दबा दी जाती है कि घर की बात घर में ही रहे. मातापिता सोचते हैं कि बेटी मोलस्टेशन का शिकार तो हुई, लेकिन इसके बारे में लोगों को पता चलेगा, तो हमारी इज्जत जाएगी और रिश्तेदारों को बुरा कहेंगे. यही सोच इस हैवानियत को बढ़ावा देती है.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 15 मिनट में एक बच्चे का यौन शोषण होता है. ऐसे अपराधों को रोकने का एकमात्र तरीका है, बच्चे खुद को प्रोटेक्ट करना सिखें, लेकिन पेरेंट्स अक्सर अपने बच्चों के सामने ‘सेक्सुअल एब्यूज’ कहने से कतराते हैं, इस पर चर्चा करना तो दूर की बात है.

पेरेंट्स को लगता है कि टीनएजर्स से कहना आसान है कि भूल जाए, लेकिन कोई भी लड़की यह नहीं भूल सकती कि उसके साथ कैसे अपने ही मामाचाचा ने जबरदस्ती की. इन्हीं हरकतों के कारण लड़कियां अकेले रहने या घर से बाहर जाने से कतराती हैं. कोई एक घटना इतना असर कर जाती है कि उस हादसे की याद जिंदगीभर रहती है और खुद की लाइफ बोझिल लगने लगती है.

अगर फैमिली के किसी मेंबर ने टीनएजर्स के साथ यौन शोषण किया है, तो ऐसे डील करें-

  • अगर आप टीनएज की हैं, तो झूठबोल कर भी अपने हक के लिए लड़ें.
  • आपको अपने अंकल का टच अच्छा नहीं लगता है, तो उन्हें बेझिझक मना करें.
  •  बैड टच के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगाी, तो इससे आपकी स्टडी पर असर पड़ेगा.
  • शोषण करने वालों के खिलाफ चाहें वो आपके घर का ही सद्स्य क्यों न हो, उसे सजा दिलाने के लिए कानून की मदद लें.
  • टीनएजर्स को दोष देना और अपमानित करना बंद करें.
  • दुर्व्यवहार के कारण लड़की की आजादी पर रोक न लगाएं.
  • अगर आपकी बच्ची छोटी है, तो उसे गुड और बैड टच दोनों के बारे में बताएं.

ऐसे बनाएं टीनएजर्स को जिम्मेदार

इकलौती संतान 13 वर्षीय नीलिमा जिस भी चीज की मांग करती वह मातापिता को देनी पड़ती थी वरना नीलिमा पहले तो आसपास की चीजों को पटकने लगती थी और फिर बेहोश होने लगती. परेशान हो कर मातापिता उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर को पता नहीं चल पा रहा था कि वह बेहोश क्यों होती है, क्योंकि सारी जांचें करने पर भी कुछ नहीं निकला. फिर कुछ लोगों की सलाह पर मातापिता नीलिमा को मुंबई के 7 हिल्स हौस्पिटल के मनोरोग चिकित्सक डा. श्याम मिथिया के पास ले गए. पहले दिन तो उन्हें भी नीलिमा के बेहोश होने का कारण पता नहीं चल पाया, पर 1-2 दिन बाद पता चला कि उसे अगर किसी चीज के लिए मना करो तो वह बेहोश हो जाती है. लेकिन वह वास्तव में बेहोश नहीं होती, बल्कि घर वालों को डराने के लिए बेहोश होने का ड्रामा करती है ताकि उसे अपनी मनचाही चीज मिल जाए.

तब डाक्टर ने नीलिमा को बिहैवियर थेरैपी से 2 महीनों में ठीक किया. फिर मातापिता को सख्त हिदायत दी कि आइंदा यह बेहोश होने लगे तो कतई परवाह न करना. तब जा कर उस की यह आदत छूटी. 14 साल के उमेश को अगर कुछ करने को कहा जाता मसलन बिजली का बिल जमा करने, बाजार से कुछ लाने को तो वह कोई न कोई बहना बना देता. ऐसी समस्या करीबकरीब हर घर में देखने को मिल जाएगी. दरअसल, आज के युवा कोई जिम्मेदारी ही नहीं लेना चाहते. ऐसे ही युवा आगे चल कर हर तरह की जिम्मेदारी से भागते हैं. धीरेधीरे यह उन की आदत बन जाती है. फिर वे अपने मातापिता की, औफिस की, समाज की जिम्मेदारियों आदि से खुद को दूर कर लेते हैं. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि बचपन से ही उन में जिम्मेदारियां उठाने की आदत डाली जाए. डा. श्याम कहते हैं कि बच्चे को थोड़ा बड़े होते ही जिम्मेदारियां सौंपनी शुरू कर देनी चाहिए. आजकल एकल परिवार और कम बच्चे होने की वजह से मातापिता अपने बच्चों को जरूरत से अधिक पैंपर करते हैं. जैसेकि अगर बच्चा कुछ मांगे, रोए तो मातापिता दुखी हो कर भी उस चीज को ला देते हैं.

4-5 साल की उम्र स बच्चा अपने आसपास की चीजों को औब्जर्व करना शुरू कर देता है. जैसे कि मातापिता के बात करने के तरीके को, उन के हावभाव आदि को. इसलिए बच्चे के इस उम्र में आने से पहले मातापिता अपनी आदतें सुधारें ताकि बच्चे पर उन का गलत असर न पड़े. जरूरत से अधिक प्यार और दुलार भी बच्चे को बिगाड़ता है.

पेश हैं, इस संबंध में कुछ टिप्स:

बच्चा जब स्कूल जाने लगता है, तो उसे जिम्मेदारियों का एहसास वहीं से करवाएं. जैसे अपनी कौपीकिताबों को ठीक से रखना, उन्हें गंदा न करना, क्लास में पढ़ाई गई चीजों को ठीक से नोट करना आदि. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसे अपने पास बैठा कर समझाएं.

जब बच्चा टीनएज में आता है तो उस में शारीरिक बदलाव के साथसाथ मानसिक बदलाव भी शुरू हो जाते हैं. उस के मन में कई जिज्ञासाएं भी उत्पन्न होती हैं. उस समय मातापिता को उस के साथ बैठ कर उस के प्रश्नों के तार्किक रूप से उत्तर देने चाहिए. ध्यान रहे कि उस के किसी भी प्रश्न का उत्तर समझदारी से दें, हवा में न उड़ा दें, हंसे नहीं, मजाक न बनाएं, क्योंकि इस उम्र में बच्चे में ईगो आना शुरू हो जाता है. अगर आप ने उस के ईगो को हर्ट किया तो वह अपनी बात आप से शेयर करना पसंद नहीं करेगा. दोस्ती के साथ उसे उस की सीमाएं भी बताते जाएं. इस उम्र में बच्चे को अपनी यूनिफौर्म, शूज, किताबें आदि संभालने की जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए.

डा. श्याम कहते हैं कि बच्चों को जिम्मेदार बनाने के लिए मातापिता को भी जिम्मेदार होना पड़ता है. कुछ टीनएज बच्चे कई बार बुरी संगत में पड़ कर नशा करने लगते हैं. अत: मातापिता को हमेशा बच्चे के हावभाव नोट करते रहना चाहिए ताकि कुछ गलत होने पर समय रहते उसे सुधारा जा सके. यह सही है कि आज के टीनएजर्स का जिम्मेदारी से परिचय कराना आसान नहीं होता. हर बात के पीछे उन के तर्क हाजिर होते हैं, लेकिन आप का प्रयास ही उन्हें बेहतर नागरिक बनने में मदद करता है. इस की शुरुआत मातापिता को बच्चे के बचपन से ही कर देनी चाहिए, ताकि जिम्मेदारियां उठाना उन की आदत बन जाए. जरूरत पड़े तो इमोशन का भी सहारा लें. अगर फिर भी आप सफल नहीं हो पाते हैं, तो ऐक्सपर्ट की राय लें.

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किशोर होते बच्चों के साथ ऐसे बिठाएं बेहतर तालमेल

किशोरावस्था के दौरान बच्चे और मातापिता के बीच का रिश्ता बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रहा होता है. इस समय जहां बच्चे का साक्षात्कार नए अनुभवों से हो रहा होता है वहीं भावनात्मक उथलपुथल भी हावी रहती है. बच्चे इस उम्र में खुद को साबित करने और अपना व्यक्तित्व निखारने की जद्दोजहद में लगे होते है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी बढ़ रहा होता है. अगर आप जान लें कि आप के बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है तो इस स्थिति से निपटना शायद आप के लिए आसान हो जाएगा .किशोरावस्था की शुरूआत अपने साथ बहुत से शारीरिक बदलावों के साथसाथ हार्मोनल बदलाव भी लाती है जो मिजाज में उतारचढ़ाव और बिल्कुल अनचाहे बर्ताव के रूप में सामने आता है. ऐसे में बच्चे के साथ बेहतर तालमेल बैठाने के लिए पेरेंट्स को कुछ बातों का ख़याल जरूर रखना चाहिए.

1. दें अच्छे संस्कार

घर में एकदूसरे के साथ कैसे पेश आना है, जिंदगी में किन आदर्शों को अहमियत देनी है, अच्छाई से जुड़ कर कैसे रहना है और बुराई से कैसे दूरी बढ़ानी है जैसी बातों का ज्ञान ही संस्कार हैं. इस की बुनियाद एक परिवार ही रखता है. पेरेंट्स ही बच्चों में इस के बीज डालते हैं. ये कुछ भी हो सकते हैं जैसे ईमानदारी, बड़ों का आदर करना, जिम्मेदार बनना, नशे से दूर रहना ,हमेशा सच बोलना, घर में दूसरों से कैसे पेश आना है आदि , इन सभी बातों को लिख कर अपने बच्चे के कमरे में चिपका दें ताकि ये बातें बारबार उस के दिमाग में चलती रहे और वह इन बातों को जल्दी याद कर पाये.

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2. थोड़ी आजादी भी दें

घर में आजादी का माहौल पैदा करें. बच्चे को जबरदस्ती किसी बात के लिए नहीं मनाया जा सकता. मगर जब आप सही गलत का भेद समझा कर फैसला उस पर छोड़ देंगे तो वह सही रास्ता ही चुनेगा. उस पर किसी तरह का दवाब डालने से बचिए. बच्चा जितना ज्यादा अपनेआप को दबाकुचला महसूस करेगा उस का बर्ताव उतना ही उग्र होगा.

अपने किशोर/युवा बच्चों को अपने सपनों को पूरा करने के लिये जरूरी छूट दें. याद रखें कि आप का बच्चा बड़ा हो रहा है. उसे अपने जज़्बात जाहिर करने दें पर उसे यह अहसास भी करायें कि वह मर्यादा की हदें न लांघे.

3. मातापिता के रूप में खुद मिसाल बनें

बच्चे के लिए खुद मिसाल बनें. बच्चे से आप जो भी कुछ सीखने या न सीखने की उम्मीद करते हैं पहले उसे खुद अपनाएं. ध्यान रखें बच्चे हमारे नक्शेकदम पर चलते हैं. आप उन्हें सफलता के लिए मेहनत करते देखना चाहते हैं तो पहले खुद अपने काम के प्रति समर्पित रहे .बच्चों से सच्चाई की चाह रखते हैं तो कभी खुद झूठ न बोले.

4. सज़ा भी दें और ईनाम भी

बच्चों को बुरे कामों के लिए डांटना जरुरी है तो वहीँ वे कुछ अच्छा करते हैं तो उन की तारीफ़ करना भी न भूलें. आप उन्हें सजा भी दें और ईनाम भी. अगर आप ऐसा करेंगे तो बच्चे को निष्चित ही इस का फायदा मिलेगा. वे बुरा करने से घबराएंगे जब कि अच्छा कर के ईनाम पाने को ले कर उत्साहित रहेंगे. यहाँ सजा देने का मतलब शारीरिक तकलीफ देना नहीं है बल्कि यह उन को मिलने वाली छूट में कटौती कर के भी दी जा सकती है, जैसे टीवी देखने के समय को घटा कर या उन्हें घर के कामों में लगा कर.

5. अनुशासन को ले कर संतुलित नज़रिया

जब आप अनुशासन को ले कर एक संतुलित नज़रिया कायम कर लेते हैं तो आप के बच्चे को पता चल जाता है कि कुछ नियम हैं जिन का उसे पालन करना है पर जरूरत पड़ने पर कभीकभी इन्हे थोड़ा बहुत बदला भी जा सकता है. इस के विपरीत यदि आप हिटलर की तरह हर परिस्थिति में उस के ऊपर कठोर अनुशाशन की तलवार लटकाये रहेंगे तो संभव है कि उस के अंदर विद्रोह की भावना जल उठे .

6. घरेलू कामकाज को जरूरी बनाना

बच्चे को शुरू से ही अपने काम खुद करने की आदत लगवाएं. मसलन अपना कमरा, कबर्ड ,बिस्तर, कपड़े आदि सही करने से ले कर दूसरी छोटीमोटी जिम्मेदारियों का भार उन पर डालें. हो सकता है कि इस की शुरूआत करने में मुश्किल हो मगर समय के साथ आप राहत महसूस करेंगे और बाद में उन्हे जीवन में अव्यवस्थित देख के गुस्सा करने की संभावना ख़त्म हो जायेगी.

7. अच्छी संगत

शुरू से ध्यान रखें और प्रयास करें कि आप के बच्चे की संगत अच्छी हो. अगर आप का बच्चा किसी खास दोस्त के साथ बंद कमरे में घण्टो का समय गुज़ारता है तो समझ जाइये कि यह ख़तरे की घण्टी है. इस की अनदेखी न करें. इस बंद दरवाजे के खेल को तुरंत रोकें. इस से पहले कि बच्चा गलत रास्ते पर चल निकले और आप हाथ मलते रह जाएँ थोड़ी सख्ती और दृढ़ता से काम लें. बच्चे को समझाएं.और सुधार के लिए जरुरी कदम उठाएं. इसी तरह दिनरात वह मोबाइल से चिपका रहे या किसी से चैटिंग में लगा रहे तो भी आप को सावधान हो जाना चाहिए.

8. सब के सामने बच्चे को कभी भी न डांटे

दूसरों के आगे बच्चे को डांटना उचित नहीं. याद रखें जब आप अकेले में समझाते हुए , वजह बताते हुए बच्चे को कोई काम से रोकेंगे तो इस का असर पॉजिटिव होगा. इस के विपरीत सब के सामने बच्चों के साथ डांटफटकार करने से बच्चा जिद्दी और विद्रोही बनने लगता है . किसी भी समस्या से निपटने की सही जगह है आप का घर. इस के लिए आप को सब्र से काम लेना होगा. दूसरों के सामने खास कर उस के दोस्तों के सामने हर बात में गल्तियां न निकालें और न ही उसे बेइज्ज़त करें.क्यों कि ऐसी बातें वह कभी भूल नहीं पायेगा और आप को अपना दुश्मन समझने लगेगा.

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9. उस की पसंद को भी मान दें

आप का बच्चा जवान हो रहा है और चीजों को पसंद और नापसंद करने का उस का अपना नज़रिया है इस सच्चाई को समझने का प्रयास करें. अपनी इच्छाओं और पसंद को उस पर थोपने की कोशिश न करें. किसी बात को ले कर बच्चे पर दवाब न डालें जब तक आप के पास इस के लिये कोई वाज़िब वजह न हो.

10. क्वालिटी टाइम बिताएं

यह सच है कि किशोर/युवा हो रहे बच्चे माता-पिता को अपनी जिंदगी से जुड़ी हर बात साझा करने से बचते हैं . पर इस का मतलब यह नहीं कि आप प्रयास ही न करें. प्रयास करने का मतलब यह नहीं कि आप जबरदस्ती करें और उन से हर समय पूछताछ करते रहे. इस के विपरीत जरुरत है बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और उन से दोस्ताना रिश्ता बनाने की.उन के साथ फिल्म देखना, बाहर खाने के लिए जाना और खुले में उन के साथ कोई मजेदार खेल खेलना वगैरह. इस से बच्चा खुद को आप से कनेक्टेड महसूस करेगा और खुद ही आप से अपनी हर बात शेयर करने लगेगा.

Edited by Rosy

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