मॉल से लेकर होटल-रेस्तरां खुले, लेकिन जारी है कुछ गाइडलाइन

8 जून से होटल, रेस्टरोरेंट और धार्मिक स्थल आम लोगों के लिए खुल गएं हैं, लेकिन आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा. इसके लिए केंद्र सरकार ने गाइडलाइन जारी कर दी है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने कन्टेनमेंट जोन से बाहर के धर्मस्थलों, शॉपिंग मॉल, होटल व रेस्तरां को कुछ गाइडलाइन के तहत खोलने की अनुमति भले ही दी है लेकिन सभी ओनर नाखुश हैं क्योंकि उनका कहना है कि समय सीमा दोपहर 12 से शाम 7 बजे तक दी गई है और इस समय तो कोई भी नहीं निकलता है घर से.और शायद खुल भी जाए हमारे यहां दिनभर में मात्र 3-4 कस्टमर ही आते हैं. हालांकि अब धीरे-धीरे सबकुछ शुरु तो करना ही है इसलिए कुछ सावधानियां हैं जो बरतनी जरूरी हैं.65 साल से ज्यादा और 10 साल से कम उम्र के लोगों के लिए इन जगहों पर जाने पर मनाही है.

मंदिरों के लिए जारी गाइडलाइन

मंदिरों के गेट पर सैनेटाइजर और थर्मल स्क्रीनिंग जरूरी होगा.

इन जगहों पर कम से कम 6 फीट की लोगों को दूरी रखनी पड़ेगी.

साबुन से या सैनेटाइजर्स से हांथ साफ करना है.

कहीं पर भी थूकने पर पूरी तरह प्रतिबंध है.

खांसते या छींकते समय मुंह पर कपड़ा रखना जरूरी है.

एस्केलेटर पर एक स्टेप छोड़कर ही एक आदमी खड़ा हो सकता है.

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धार्मिक स्थलों में जाने वालों को फोन में आरोग्य सेतु ऐप रखना होगा

लोग कहां- कहां खड़े होंगे उसके लिए भी चिह्न बनाएं जाएंगे.धर्मस्थलों में एक बार में पांच लोगों को ही जाने की परमिशन होगा और लाइन में दूर दूर रहना होगा.मंदिरों में मूर्तियों व पवित्र ग्रंथों आदि को छूने की परमिशन नहीं होगी, किसी प्रकार के प्रसाद वितरण और पवित्र जल के छिड़काव की परमिशन भी नहीं है.

यदि आप होटल में खा रहे हैं तो हांथों को अच्छी तरह से धो लें पहले और कोशिश करें कैश दें. शॉपिंग माल, होटल व रेस्तरां में भी जांच के बाद ही जाने को मिलेगा और जगहों पर भी ऑनलाइन ही पैसे देने होंगे ना कि कैश हर जगह फोन पे या गुगल पे या पेटीएम का इस्तेमाल करें.जिन व्यक्तियों में कोई लक्षण न दिखाई दे, केवल उन्हें ही रेस्तरां में जाने की परमिशन है. बाहर पार्किंग वाली जगहों पर भीड़ नहीं लगाना है, सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन करना होगा. आप रेस्तरां में हों या मॉल में हों कहीं पर भी सोशल डिस्टेंसिंग बेहद जरूरी है.

एसी से 70 फ़ीसदी ताजा हवा आनी चाहिए. मॉल में गेमिंग ज़ोन भी बंद रहेंगे,होटल और रेस्तरां में साफ़-सफ़ाई को लेकर सतर्क रहना होगा,रिसेप्शन पर हैंड सेनेटाइजर रखना अनिवार्य है.

डिज़िटल पेमेंट को बढ़ावा देना होगा,खाने के लिए रूम सर्विस को प्राथमिकता देनी होगी.रेस्तरां में थर्मल स्क्रीनिंग यानी तापमान मापना अनिवार्य है.स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से होटल के लिए जारी की गई गाइडलाइंस के मुताबिक,रेस्टोरेंट में लोगों के बैठने की ऐसे व्यवस्था होनी चाहिए जिससे कि सोशल डिस्टेनसिंग का पालन हो सके.क्लॉथ नैपकिन के बजाय अच्छी गुणवत्ता वाले डिस्पोजेबल पेपर नैपकिन के उपयोग के लिए बोला गया है.रोस्टरेंट में बैठकर खाने के बजाय टेकअवे पर जोर देना है.डिस्पोजेबल मेनू का उपयोग करने की सलाह दी जाती है.

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होम डिलिवरी से पहले होटल अधिकारियों द्वारा कर्मचारी की थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी. किचन में स्टाफ को सोशल डिस्टेनसिंग का पालन करना होगा और समय -समय पर किचन को सैनिटाइज करना होगा.

सरकार मंदिरों के चढ़ावे का भी ले हिसाब

जगन्नाथपुरी, तिरुपति बालाजी, पद्मनाभस्वामी जैसे मंदिरों की संपत्ति कितनी है, इस के बारे में केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. किसी को अनुमति ही नहीं है कि उसे आंकने की कोशिश करे. वैसे भी गिनती कर के करना क्या है, क्योंकि यह सारी संपत्ति चंद पुजारियों की है जो खुद नहीं जानते कि वे इस बिना कमाई के पैसे का क्या कर सकते हैं.

मंदिरों को आज से नहीं हजारों सालों से भरपूर चंदा मिलता रहा है. धर्म की सफलता ही इस बात में रही है कि इस ने घरों से, औरतोंबच्चों के मुंह से निवाला छीनने में कसर नहीं छोड़ी. मिस्र के विशाल मंदिर और पिरामिड इस बात के सुबूत हैं कि घरों की मेहनत को निठल्ले पुजारियों के कहने पर राजाओं ने निरर्थक चीजों पर बरबाद कर दिया.

आज हम इन मंदिरों को देख कर आश्चर्य प्रकट कर लें पर सवाल उठता है कि इतनी मेहनत कराई क्यों गई थी? इस से जनता को क्या मिला?

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जैसे तब के मंदिरों को जम कर लूटा गया और हर राजा विशाल और विशाल मंदिर बनाता रहा कि उस में चोरी न हो पाए ऐसे ही आज के मंदिरों में चोरियों का डर लगा रहता है. किसी भी मंदिर में चले जाएं, वहां बढि़या से बढि़या तिजोरी मिलेगी जिस पर 8-8, 10-10 ताले लगे होंगे. मोटी स्टील की बनी इन हुंडियों में डाले पैसे पर न तो चोरों से भरोसा है न पुजारियों से. आज भी हर मंदिर चढ़ावे का हिसाब देने से कतराता है.

जगन्नाथपुरी मंदिर के रत्न भंडार की चाबियां सालभर से गायब हैं और उच्च न्यायालय व सरकार दोनों माथापच्ची कर रहे हैं कि चाबियां कौन ले गया, क्यों ले गया और कैसे डुप्लिकेट चाबियों से काम चलाया जा रहा है जबकि डुप्लिकेट चाबियां होनी ही नहीं चाहिए.

होना तो यह चाहिए कि मंदिर अगर सचमुच में किसी भगवान का केंद्र है तो वहां न संपत्ति होनी चाहिए और न ही कोई निर्माण. अगर प्रकृति का निर्माता हजारोंलाखों दूसरी चीजें बना सकता है तो अपने बनाए इंसान से अपनी पूजा करवाने के लिए मंदिर क्यों बनवाता है? मंदिर तो सदियों से चली आ रही धार्मिक चाल का परिणाम हैं जहां लोगों को इकट्ठा कर के खुशीखुशी लूटा जाता है. लोगों को कच्चे घरों में भूखा रख कर पक्के मंदिरों में भरपूर खाने के साथ ला कर सिद्ध किया जाता है कि देखो, मंदिर कितना शक्तिशाली है.

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औरतों को इसीलिए धर्म का अंधा बनाया जाता है ताकि वे अपना और बच्चों का पेट काट कर मंदिर में तनमन और धन तीनों दें. इस का हिसाब कोर्ट न ले.

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