इन 6 टिप्स से रखें बच्चों को टेंशन फ्री

हमारे पड़ोस में रहने वाली 8 वर्षीया अविका कुछ दिनों से बहुत परेशान सी लग रही थी. कल जब मैं उसके घर गयी तो उसकी मम्मी कहने लगीं,”आजकल पूरे समय एक ही बात कहती रहती है मुझे मिस वर्ल्ड बनना है जिसके लिए सुंदर होना होता है मम्मा मुझे बहुत सुंदर बनना है..आप मुझे गोरा करने के लिए ये वाली क्रीम लगा दो, वो वाला फेसपैक लगा दो.”

क्रिकेट का शौकीन 10 साल का सार्थक जब तब नाराज होकर घर से बाहर चला जाता है, अपनी बड़ी बहनों को मारने पीटने लगता है, मन का न होने पर जोरजोर से रोना प्रारम्भ कर देता है, उसे सचिन तेंदुलकर बनना है और वह बस क्रिकेट ही खेलना चाहता है.

कुछ समय पूर्व तक तनाव सिर्फ बड़ों को ही होता है ऐसा माना जाता है परन्तु आजकल बड़ों की अपेक्षा बच्चे बहुत अधिक तनाव में जीवन जी रहे हैं और उनके जीवन में समाया यह तनाव उनके स्वास्थ्य और पढ़ाई को भी प्रभावित कर रहा है. बच्चों में पनप रहे इस तनाव पर प्रकाश डालते हुए समाज कल्याण विभाग उज्जैन की वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक श्रीमती निधि तिवारी कहतीं हैं,”जिस उम्र में उन्हें मस्ती करते हुए जिंदगी का आनंद उठाना चाहिए उस उम्र में बच्चे तनाव झेल रहे हैं, बोर हो रहे हैं. बच्चों का इस तरह का व्यवहार बहुत चिंतनीय है.” उनके अनुसार बच्चों के इस प्रकार के व्यवहार के लिए काफी हद तक अभिभावक ही जिम्मेदार हैं. यहां पर प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स जिन पर ध्यान देकर आप अपने बच्चों को इस तनाव से बचा सकते हैं-

-भरपूर समय दें

बच्चे चूंकि कच्ची मिट्टी के समान होते हैं, बाल्यावस्था से उन्हें जिस प्रकार के सांचे में ढाल दिया जाए वे स्वतः ढल जाते हैं परन्तु वर्तमान समय में जहां परिवार में माता पिता दोनों ही कामकाजी हैं, बच्चे के पास माता पिता के समय को छोड़कर सब कुछ है. उनके मन में पनप रही किसी भी प्रकार की भावना को आप केवल तभी समझ सकते हैं जब आप उन्हें अपना भरपूर समय दें. आज के वातावरण में उन्हें क्वालिटी नहीं क्वांटिटी टाइम की आवश्यकता है ताकि बच्चे को हरदम आपके साथ होने का अहसास हो सके.

-उन्हें सुनें

बच्चों के मन में हर पल कोई न कोई जिज्ञासा जन्म लेती है, अथवा वे हरदम अपने मन की बात शेयर करना चाहते हैं अक्सर देखा जाता है कि बच्चे जब भी अपने मन की बात पेरेंट्स को बताना चाहते हैं तो अभिभावक उन्हें”अरे बाद में बताना, या तुम क्या हरदम कुछ न कुछ बकबक करते रहते हो” जैसी बातें बोलकर उन्हें चुप करा देते हैं इससे बच्चा उस समय शांत तो हो जाता है परन्तु उसके मन की बात मन में ही रह जाती है जिससे अक्सर वे सही गलत में फर्क करना ही नहीं समझ पाते.

-तुलना न करें

सदैव ध्यान रखिये हर बच्चा खास होता है, उसकी अपनी विशेषताएं होतीं हैं, और प्रत्येक बच्चे में अलग तरह की प्रतिभा होती है इसलिए एक बच्चे की कभी भी किसी दूसरे बच्चे से तुलना नहीं की जा सकती. अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चों की दूसरे बच्चों से तुलना करने लगते हैं  जिससे बच्चे का कोमल मन आहत होता है और वे मन ही मन घुटना प्रारम्भ कर देते हैं.

-प्रकृति से परिचित कराएं

बच्चों पर हर समय पढ़ाई करने का दबाब बनाने के स्थान पर उन्हें बाग बगीचा, फूल पौधे और आसपास की प्रकृति से परिचित कराएं ताकि पढ़ाई से इतर भी उनके  व्यक्तित्व का विकास हो सके.

-उनकी क्षमताओं को पहचानें

अक्सर माता पिता अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चे पर थोपकर उसे अपने अनुसार चलाने का प्रयास करते हैं इसकी अपेक्षा अपने बच्चे की क्षमताओं को पहचानकर उस क्षेत्र में उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करें. आजकल कॅरियर की अनेकों ऑप्शन मौजूद हैं इसलिए बच्चे पर अनावश्यक रूप से पढ़ाई का दबाब बनाने के स्थान पर उसे समझने का प्रयास करना बेहद जरूरी है.

-बच्चे के दोस्त बनें

छोटी छोटी बातों पर बच्चे को हर समय टोकते रहने के स्थान पर बच्चे के दोस्त बनने का प्रयास करें ताकि बच्चा अपने मन की हर दुविधा या समस्या का आपके सामने जिक्र कर सके. इंडोर गेम्स में उसके साथी बनें, घर के छोटे मोटे कार्यों में उसे अपना साझीदार बनाएं, साथ ही प्रतिदिन उसे घर से बाहर अपने दोस्तों के साथ कम से कम 1 घन्टा खेलने अवश्य भेजें.

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