तेरे जाने के बाद: क्या माया की आंखों से उठा प्यार का परदा

तेरे जाने के बाद- भाग 1 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का परदा

मैं अकेली हूं पर मोहित की यादें अकसर ही मुझ से बातें करने आ जाया करती हैं. लगता जैसे मोहित आते ही मुझे चिढ़ाने लगते हैं. वास्तव में तुम्हारी हिम्मत न होती थी हकीकत की जमीन पर मुझे चिढ़ाने की, लेकिन खयालों में तुम कोई मौका न छोड़ते. मैं खयालों में ही रह जाती हूं, जवाब नहीं दे पाती तुम्हें. पता नहीं पिछले कुछ दिनों से जाने क्यों मुझे रहरह कर कमल की भी याद आ रही है. मै जानती हूं वह कभी नहीं आएगा. अगर आया तो भी उस के लिए मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है. आखिर मैं ने ही तो छोड़ा था उसे, फिर क्यों याद कर रही हूं मैं उस को. मैं खुश हूं अपनी जिंदगी में. क्या फर्क पड़ता है किसी के जाने से? कौन सी मैं ने मोहब्बत ही की थी उस से.

छल… हां, छल ही तो किया था उस ने मुझ से और खुद से. फिर क्यों याद बन कर सता रहा है मुझे. शायद असीम और अभिलाषा के एकदूसरे के प्रति लगन के कारण कमल का स्मरण हो आया है. मुझे अच्छी तरह से याद है. मैं ही उस के प्रति आकर्षित हुई थी पहले. कमल गोरा, लंबा आकर्षक पुरुष था. वह शादीशुदा नहीं था. मेरे पति मोहित पहले दिन ही कमल से मिलवाते हुए बता चुके थे. मुझे काफी दिलकश इंसान लगा था. खूबी होगी कुछ उस में. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं खोलने चली गई.

सामने असीम खड़ा था. ‘‘अरे असीम, आ जाओ. तुम्हें ही याद कर रही थी.’’ ‘‘मुझे, पर क्यों भाभी?’’ असीम भाभी ही कहता हैं मुझे. वैसे तो हम रिश्तेदार बनने वाले हैं. उस की शादी मेरी छोटी बहन अभिलाषा से होने वाली है. लेकिन देवरभाभी का रिश्ता कमल का दिया हुआ था. असीम कमल को बड़ा भाई मानता था. ‘‘जस्ट जोकिंग डियर. अच्छा, तैयारी कैसी चल रही है शादी की?’’ ‘‘हा हा हा, तैयारी करने के लिए जब आपलोग हैं ही, फिर मुझे क्या चिंता?’’ ‘‘हींहींहीं मत कर. घोड़ी चढ़ कर भी क्या हम लोग ही आ जाएंगे.’’ ‘‘हा हा हा, लड़की आप की है, फिर आप घोड़ी चढ़ें या गदही चढ़ें, मेरी तरफ से सब मुबारका.’’

‘‘मस्ती सूझ रही दूल्हे मियां को.’’ ‘‘सोचता हूं कि कर ही लूं, फिर मौका मिले या न मिले’’, दांत निपोरते हुए असीम फिर बोला, ‘‘क्या बात है भाभी, मैं तब से आप को हंसाने की कोशिश कर रहा हूं पर आप का ध्यान कहीं और ही है?’’ ‘‘नहींनहीं, कुछ खास नही. बस, आज तुम्हारे मित्र कमल का ध्यान हो आया.’’ थोड़ी देर रुक कर मैं फिर बोली, ‘‘तुम्हारी तो बातचीत होती होगी. कहां है आजकल? क्या कर रहा है?’’ गंभीर भाव मुख पर लाते हुए असीम बोला, ‘‘जी, कभीकभी बातचीत पहले हो जाया करती थी. इधर काफी दिनों से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है. लेकिन आज अचानक कमल क्यों?’’ अचानक असीम के सवाल से मैं सहम सी गई.

‘‘क्योंक्या?’’ मैं झेंपते हुए बोली, बस, यों ही’’. असीम का मोबाइल बजने लगा और वह बीच में ही ‘अच्छा भाभी, मैं चलता हूं’, कहते हुए बाहर चला गया. मैं फिर से यादों से बातें करने लगी. मेरे जीवन में कमल और मोहित की यादें ही तो रह गई है सिर्फ, अन्यथा बचा ही क्या है. मैं मोहित का फोटो ले कर बैठ जाती हूं. मेरे जीवन के 2 पलड़े हैं और दोनों ही मुझ से टूट कर अलग हो गए. रह गई मेरे हाथों में केवल डंडी. आज मैं मोहित से बातें करना चाहती हूं. वे बातें जो उस के साथ रहते हुए भी कभी नहीं कर पाई थी. आज करूंगी वे बातें, वे सभी बातें तो कभी भी मैं मोहित को बताना नहीं चाहती थी. वे बातें जो मैं ने पूरी दुनिया से छिपा रखी हैं. वे बातें जो मैं ने खुद से भी छिपा रखी हैं. पता नहीं मैं किस दुनिया में पहुंच रही हूं. मैं फोटो से बात कर रही हूं या खुद से, समझ नहीं पा रही.

‘मोहित, तुम्हें क्या लगा कि मैं गलत थी. अरे एक बार पूछ कर तो देख लेते. पर तुम पूछते कैसे? मर्द जो ठहरे तुम. मैं नहीं जानती तुम ने ऐसा क्यों किया पर मैं अब समझ सकती हूं कि तुम्हें कैसा लगता होगा जब मैं कमल से हंसहंस कर बातें करती थी. मुझे परवा न थी दुनिया की. मैं तो सिर्फ अपनेआप में मस्त रहती थी. कभी तुम्हारे बारे में सोचा ही नहीं मैं ने. तुम मेरे पति थे और आज भी हो, लेकिन हम साथसाथ नहीं हैं. हम दोनों एकदूसरे के लिए परित्यक्त हैं. तलाकशुदा नहीं हैं हम. तुम चाहो तो मैं तुम्हारे पास वापस आने को तैयार हूं. पर तुम ऐसा क्यों चाहोगे? मैं ने कौन से पत्नीधर्म निभाए हैं.’ फिर से खयालों में खोती चली जाती हूं. ‘मैं भूल गई थी कि तुम मेरे पति हो. पर तुम कभी नहीं भूले. मोहित, तुम ने हमेशा मेरा साथ निभाया. खुदगर्जी मेरी ही थी. मैं जान ही नहीं पाईर् थी तुम्हारे समर्पण को. मेरे लिए तुम सिर्फ और सिर्फ मेरे पति थे. पर तुम्हारे लिए मैं जिम्मेदार थी. मेरी जिंदगी में भले ही तुम्हारे लिए जगह न थी लेकिन तुम्हारे लिए मैं हमेशा ही तुम्हारे सपनों की रानी रही.’

‘मैं जब अकेले में खुद से बातें करते हुए थकने लगती हूं तब तुम आ जाते हो मेरे खयालों में, बातें करने मुझ से. मुझे अच्छा लगने लगता है. मैं तुम से बातें करने लगती हूं. तुम कहने लगते हो, ‘जब तुम मुझ से खुश न थी तो फिर संग क्यों थीं? तुम्हें चले जाना चाहिए था कमल के साथ. मैं कभी नहीं रोकता तुम्हें.’ तुम मेरे अंदर से बोल पड़ते हो. ‘मैं तुम्हें जवाब देने लगती हूं.’ ‘तुम्हारे साथ मैं केवल तुम्हारे पैसों के लिए थी. अन्यथा तुम तो मुझे कभी पसंद ही नहीं थे. तुम्हारा काला रंग, निकली हुई तोंद, भारीभरकम देह, मुझ से न झेला जाता था. मैं कमल के साथ जाना चाहती थी मगर उस की लापरवाही मुझे खलती थी. कमल खुद में स्थिर नहीं था. अन्य औरतों की भांति मैं भी एक औरत के रूप मेें ठहरावपूर्ण जिंदगी चाहती थी जो कि तुम्हारे पास थी.’

‘तो फिर कमल ही क्यों? किसी अन्य पुरुष को भी तुम अपना सकती थी,’ मेरे मन का मोहित बोला. ‘हां, अपना सकती थी. लेकिन कमल सब से सुरक्षित औप्शन था. किसी को शक नहीं होता उस पर. और फिर संपर्क में भी तो कमल के अलावा मेरे पास अन्य पुरुष का विकल्प न था. और जो 2 पुरुष तुम्हारे अलावा मेरे संपर्क में थे उन में कमल मुझे कहीं अधिक आकर्षित करता था.’ ‘और असीम?’

‘असीम के प्रति मेरे मन में कभी वह भाव नहीं आया. कभी आया भी होगा तो मैं यह सोच कर रुक जाती कि वह मेरी छोटी बहन का आशिक है और उम्र में भी तो बहुत छोटा था. 10 साल, हां, 10 साल छोटा है असीम.’ ‘मेरी एक चिंता दूर करोगी क्या?’ ‘हां, बोलो, कोशिश करूंगी.’ ‘कमल मेें ऐसा क्या था जो मुझ में नहीं था?’ ‘यह तुम्हारा प्रश्न ही गलत है.’ ‘क्या मतलब?’ ‘तुम में वह सबकुछ था जो कमल में भी नहीं था. कमी तो मुझ में थी. मैं ही खयालों की दुनिया से बाहर नहीं आना चाहती थी. मुझे वाहवाही की लत जो लगी हुईर् थी. तुम कूल डूड थे और कमल एकदम हौट. तुम्हें मर्यादा में रहना पसंद था और मुझे बंधनमुक्त जीना पसंद था. तुम्हें समाज के साथ चलना पसंद था और मुझे पूरी दुनिया को अपने ठुमकों पर नचाना था.’

‘तुम एक बार बोल कर तो देखतीं. मैं तुम्हारी कला के बीच कभी नहीं आता.’ ‘आज जानती हूं तुम कभी न आते. लेकिन उस समय कहां समझ पाई थी मैं. समझ गई होती तो आज मैं…’ ‘मैं क्या?’ ‘तुम नहीं समझोगे.’ ‘मैं तब भी नहीं समझ सकता था और आज भी नहीं समझ सकता तुम्हारी नजरों को. समझदारी जो न मिली विरासत में.’ ‘तुम गलत व्यू में ले रहे हो.’ ‘तो सही तुम्हीं बात देतीं.’ मेरी तंद्रा फिर से टूट गई जब अभिलाषा आ कर मेरे गले से लिपट गई. मैं ने अभिलाषा को भले जन्म न दिया हो लेकिन वह मेरी बेटी से बढ़ कर है. मेरी सहेली, मेरी हमराज. कुछ भी तो नहीं छिपा है अभिलाषा से. मेरी और मोहित की शादी के समय अभिलाषा 6 साल की थी. दहेज में साथ ले कर मोहित के घर आ गई थी मैं. अब मेरी दुनिया अभिलाषा ही है.

 

 

तेरे जाने के बाद- भाग 2 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का परदा

‘‘ओहो…, कहां खोई हैं मेरी दीदी?’’ ‘‘ना रे, सोच रही थी तेरी शादी में किस को बुलाऊं, किस को नहीं? तू ही बता किसेकिसे बुलाना चाहेगी? मैं तो समझ नहीं पा रही किसे बुलाना है, किसे नहीं?’’ ‘‘दीदी, मैं समझ रही हूं आप की समस्या. आप विश्वास रखो आप जिसे भी बुलाएंगी वे हमारे शुभचिंतक ही होंगे, न कि हम पर ताने कसने वाले. चाहे वे हमारे पापा ही क्यों न हों. यदि उन्हें हमारी खुशी से खुशी नहीं तो मत ही बुलाइएगा. पर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप कुछ और ही सोच रही हैं.’’ ‘‘अरे नहीं, कोई बात नहीं है. तू एंजौय कर अपनी शादी. तेरी खुशी से बढ़ कर मेरे लिए कोई चिंताफिक्र नहीं.’’

‘‘कुछ तो छिपा रही हो दीदी, क्या अपनी बहन को भी नहीं बताओगी?’’ ‘‘मैं ने कहा न, कोई बात नहीं. क्या मुझे थोड़ी देर आराम करने देगी?’’ मैं झुंझला कर बोली. मैं पहली बार अभिलाषा पर झुंझलाई थी. वह भी असहज हो कर चली गई. मैं कैसे बताती मुझे क्या चिंता खाए जा रही थी? अतीत के पन्ने को फिर से उधेड़ने की हिम्मत अब रही नहीं और उस में उलझ कर निकलने की काबिलीयत भी अब पस्त हो चुकी है. जो मोहित के रहते कभी नमकतेल का भाव न जान सकी थी वह आज आशियाना सजाना चाहती है.

जुगनू की रोशनी जैसा कमल के इश्क को तवज्जुह देती रह गई पूरी जिंदगी. कभी समझ ही नहीं पाई मोहित की खामोशी को. भरसक उस ने मुझे अपने पावर का इस्तेमाल कर के अपनाया था. लेकिन वह पावर भी तो उस का प्यार ही था. कहां मैं एक औरकेस्ट्रा में नाचने वाली खूबसूरत मगर मगरूर लड़की और कहां मोहित ग्वालियर के राजमहल के केयरटेकर का बेटा. काले रंग का गोलमटोल ठिगना जवान. मुझे शुरू से ही पसंद नहीं था. लेकिन उसे पता नहीं किस शो में मैं दिख गई थी और वह मुझ पर फिदा हो गया था. मैं मोहित को कभी प्यार करने की सोच भी नहीं सकती थी. भले ही वह और उस के दोस्तों ने मेरे पिता को लालच की कड़ाही में छौंक दिया हो लेकिन मुझे इंप्रैस न कर सका. मैं तो शादी जैसे लफड़े में पड़ना ही नहीं चाहती थी. लेकिन पापा ने मोहित के साथ शादी के बंधन में बांध दिया. मुझे उन्मुक्त हो कर नाचना था. अपनी मरजी के लड़के से प्यार और फिर शादी करना चाहती थी.

पर इस जबरन में पापा की भी कोई गलती नहीं थी. मेरे आशिकों की बढ़ती तादाद और मिलने वाली प्रशंसा व रुपयों से मेरा ही दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ बैठा था. मैं कला को भूल चुकी थी. मेरे लिए नाचना केवल व्यापार बन कर रह गया था. और व्यापार में सबकुछ जायज होता है. बस, यही मैं समझती थी. और समझतेसमझते इतना गिर गई कि गिरती ही चली गई. कौमार्य कब भंग कर आई, पता ही नहीं चला. पापा की चिंता और फैसला दोनों ही अपनी जगह जायज थे परिस्थिति के अनुसार. और शादी कर मैं ग्वालियर से गुड़गांव डीएलएफ आ गई.

गुड़गांव में ही तो कमल से मिली थी. वह हरियाणवीं लोकसभा के स्टेज प्रोग्राम में अनाउंसर का काम करता था. जब भी आता था तो रंगीनियां साथ ले कर ही आता था. उस के छींटेदार चुटकुले, हरियाणवी लोकगीतों के झड़ते बोल, रोमांटिक शेरोशायरी में बात करने का अंदाज मुझे आकर्षित करने लगा. मैं कमल में अपने टूटे सपनों को ढूंढ़ती रहती. देखते ही देखते कमल, मोहित से ज्यादा मेरा दोस्त बन गया. हम दोनों एकदूसरे के समक्ष खुलने लगे. उस की रोजरोज के स्टेज प्रोग्राम पर की जाने वाली चर्चाएं, खट्टीमीठी नोंकझोक वाली बातें, उस के हंसनेबोलने का स्टाइल सब मुझे भाने लगा.

सबकुछ तो उस में कमाल ही था. गेहुआं रंग पर मद्धिममद्धिम मोहक मुसकान. किसी भी महिला को कैसे अपनी ओर आकर्षित किया जाता है, यह कोई कमल से सीखे. मैं कमल के रंग में रंगने लग गई थी. मुझे उस से प्यार होने लगा. मैं कमल के प्रति समर्पित होने लगी. लेकिन मुझे कमल की आर्थिक स्थिति हमेशा से खलती रही पर उसे कोईर् परवा नहीं थी. वह असीम पर निर्भर रहता. उसी दौरान असीम से भी मिलवाया था मुझे और मोहित को, कुछ ही समय में असीम हमारे परिवार में घुलमिल गया. उन दिनों असीम की उम्र 23-24 के लगभग होगी. इधर अभिलाषा की भी उम्र 14-15 की होने जा रही थी. एक तरफ नईनई जवानी, दूसरी तरफ गांवदेहात से आया आशिक. उस पर से मेरे घर का माहौल, जहां मैं खुद इश्क के जाल में फंसी थी वहां अपनी बहन को कैसे रोक पाती.

कमल असीम को प्यार और शादी के सपने दिखाता रहा और रुपए ऐंठता रहा. पर सच तो यह है कि मैं प्यार में थी ही नहीं, बल्कि वासनाग्रस्त थी. जब खुद की ही आंखों पर हवस की पट्टी चढ़ी हो तो बहन को किस संस्कार का वास्ता देती. मोहित के औफिशियल टूर पर जाते ही मैं खुद को कमल के हवाले सौंप दिया करती. मैं पूरी तरह ब्लैंक पेपर की तरह कमल के सामने पन्नादरपन्ना खुलती जाती और कमल उस पर अपने इश्क के रंग से रंगबिरंगी तस्वीरें बनाता रहता. उस की आगोश में मैं खुद को भूल जाती थी.

वह मेरे मखमली बदन को चूमचूम कर कविताएं लिखता. सांस में सांसों को उबाल कर जब इश्क की चाशनी पकती, मैं पिघल जाया करती. मुझे एक अजीब सी ताकत अपनी ओर खींचने लगती. मैं कमल के गरम बदन को अपने बदन में महसूस करने लगती. उस के बदन के घर्षण को पा कर मैं मदहोश हो जाती. वह मेरे दिलोदिमाग पर बादल की तरह उमड़ताघुमड़ता और मेरे शरीर में बारिश की तरह झमाझम बूंदों की बौछारें करने लगता. मैं पागलों की तरह प्यार करने लगती कमल से. मुझे उस के साथ संतुष्टि मिलती थी. मैं इतनी पागल हो चुकी थी कि भूल गई थी कि मैं प्रैग्नैंट भी हूं. मोहित के बच्चे की मां बनने वाली हूं. मुझे सिर्फ और सिर्फ अपनी खुशी, अपनी दैहिक संतुष्टि चाहिए थी. मैं ने सैक्स और प्यार में से केवल और केवल सैक्स चुना. मुझे तनिक भी परवा न रही अपने ममत्व की.

मेरी ममता तनिक भी नहीं सकपकाई मोहित के बच्चे को गिराते हुए. जब मेरे गुप्तांगों में सूजन आ जाया करती या मेरे रक्तस्राव न रुकते तब असीम दवाईयां ला कर देता मुझे. उस ने भी कई बार समझाने की कोशिश की, ये सब गलत है भाभी. पर मेरी ही आंखों पर हवस की, ग्लैमर की पट्टी बंधी थी. मैं कुछ सोचनेसमझने के पक्ष में ही नहीं थी. मैं खुद को मौडर्न समझती रही. और फिर से मैं जब दोबारा प्रैग्नैट हुई वह बच्चा तुम्हारा नहीं था, वह कमल का बच्चा था. मैं कमल के बच्चे की मां बनने वाली थी. मेरी जिंदगी पर से तुम्हारा वजूद खत्म होने को था. मैं पूरी तरह से कमल से प्यार की गहराई में थी. मुझ पर मेरा खुद का जोर नहीं था. कमल पिता बनने की खुशी में एक पल भी मुझे अकेला न छोड़ता.

सुबह औफिस निकलते ही कमल आ जाया करता. शाम तक मेरे साथ रहता और फिर तुम्हारे आने के समय एकआध घंटे के लिए मार्केट में निकल जाता, अपने और तुम्हारे लिए कुछ खानेपीने का सामान लेने. और तुम्हारे आने के एकआध घंटे बाद फिर वापस आ जाता. कमल तुम्हारे सामने मुझे माया कह कर भी संबोधित नहीं करता था. तुम्हें तो शायद पता भी नहीं कि वह अकसर तुम्हारे लिए कौकटेल ड्रिंक ही बनाया करता था ताकि तुम्हें होश ही न रहे और हम अपनी मनमानी करते रहें. मैं कमल की हरकतों पर खुश हो जाया करती थी. उस के माइंड की तारीफ करते न थकती.

 

तेरे जाने के बाद- भाग 3 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का पर्दा

हमें तुम सिर्फ और सिर्फ बेवकूफ नजर आते थे. पूरे 9 महीने हां, पूरे 9 महीने तक कमल का बच्चा मेरे पेट में रहा. 9 महीने बाद हम एक बेटे के मांबाप बन गए. तुम मुझ से प्रैग्नैंसी के दौरान दूर रहे लेकिन कमल उस पीरियड में भी डाक्टरी सुझाव से संबंध बनाता रहा. तुम पिता बन कर बहुत खुश हुए थे और हम अपने प्यार को मंजिल पर पहुंचा कर खुश थे. तुम न्यू बौर्न बेबी का नाम एम अल्फाबेट से रखना चाहते थे लेकिन कमल का मन था प्रेम नाम रखने का. मैं ने भी कमल की हां में हां मिलाते हुए प्रेम नाम पर मुहर लगा दी. तुम प्रेम से बेपनाह प्रेम करने लगे.

तुम्हारे लिए प्रेम ही सबकुछ हो गया था. प्रेम के नाम से जागना, प्रेम के नाम से सोना. सबकुछ प्रेम पर ही अटक गया था तुम्हारा. और मैं लापरवाहों की तरह बस कमल और कमल करती रहती. पर मामला वहीं रुक जाता तो अच्छा होता शायद. अब कमल का हक मुझ पर बढ़ने लगा था. मैं पूरी तरह से कमल की हो गई थी. प्रेम के भविष्य को ले कर मैं तुम से कभी कोईर् चर्चा करना पसंद नहीं करती. कमल जो कहता वही मुझे सही लगता. रात में हम साथसाथ जरूर सोते पर मैं तुम्हें छूने तक न देना चाहती थी. मुझे घृणा होती थी तुम से. मेरी शारीरिक जरूरतें कमल दिन में पूरा कर दिया करता था. तुम्हारी जरूरत महज रुपएपैसों को ले कर रह गई थी.

मेरा बस चलता तो मैं तुम्हें अपने साथ भी न रखती, लेकिन कमल हर बार मुझे मना लेता था. उस की नजर में तुम्हारे जैसा बेवकूफ शायद कोई नहीं था. हम तुम्हारा शोषण करते रहे और तुम शोषित होते रहे. लेकिन अब केवल तुम्हारे शोषित होने या मेरे त्रियाचरित्र का खेल खेलने तक बात न रह गईर् थी. कमल की इच्छाएं बढ़ने लगी थीं. वह अपनी म्यूजिक कंपनी लौंच करना चाहता था. जिस में मुझे वह डांसर लौंच करता, म्यूजिक वीडियों में. मैं पूरी तरह से उस के समर्थन में खड़ी थी. मुझे अपने अधूरे सपने सच होने की संभावनाएं पूरी होती लगीं. मैं जागते हुए सपने देखने लगी. पर एक सचाई यह भी थी कि कमल को इस सपने को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी रकम की आवश्यकता थी जिस का जुगाड़ कमल चाह कर भी करने में असमर्थ था.

मार्केट में उस की छवि ऐसी थी कि कोई 2 रुपए तक उधार न दे. हमारा सपना पूरा करने का एक मात्र रास्ता घर को बेच कर रुपए जुटाने पर आ अटका. कमल मेरा माइंड पूरी तरह वाश कर चुका था. चूंकि फ्लैट मेरे नाम से तुम ने लिया था, इसलिए कानूनी तौर पर तुम्हारा कोई इंटरफेयर वैलिड नहीं था. तुम ने बहुत ही मेहनत से फ्लैट लिया था. मेरी मनमानी पर पहली बार तुम ने आपत्ति की थी. तुम्हें मंजूर न था फ्लैट का बिकना. पर मैं ने तुम्हारी एक न चलने दी. मुझे तुम्हें तुम्हारी औकात दिखाने में भी वक्त न लगा. आवेश में मैं तुम्हें नामर्द तक कह गई थी. और प्रेम के जन्म की भी सारी सचाई खोल कर रख दी थी. तुम ठगे से सुनते रह गए थे.

मैं बोलती जा रही थी और तुम भावविहीन, विस्मित हो चुपचाप घर से निकल गए थे जो आज तक लौट कर नहीं आए. तुम्हारे जाते ही मैं ने फ्लैट बेच दिया. हम अब पूरी तरह से स्वतंत्र थे. हमारे सपने सच होने वाले हैं, मैं तो बस यही सोचती रह गई और कमल धीरेधीरे मुझ से पैसे लेता चला गया. कभी किसी स्टार सिंगर के संग मीटिंग के नाम पर तो कभी औफिस सैटलमैंट के नाम पर.

कभी म्यूजिक डायरैक्टर के हाफ पेमैंट का बहाना बनाता तो कभी वीडियो डायरैक्टर, कैमरामैन, स्पौट बौय को देने के नाम पर. वह पैसे मांगता रहा और मैं पैसे देती रही. दिल्ली के कई शूटिंग स्पौट पर भी ले कर जाता था. मैं तो मुग्ध हो जाया करती थी. कैमरे की फ्लैश लाइट में खो जाया करती थी मैं. सीन, लाइट, कैमरा सुनते ही मेरे अंदर झुरझुरी सी होने लगती. कमल के झूठे लाइवशो का सिलसिला अधिक दिन न चल सका. मेरे पैसे खत्म होने लग गए. कमल की मांगें बढ़ती ही गईं.

फ्लैट बिक चुका था. अकाउंट खाली हो चुका था. अब उस की नजर मेरे गहनों पर थी. लगभग गहने भी उस ने बिकवा दिए. मैं रुपएरुपए को तरसने लग गई. मेरी जरूरतें मुंह खोले मुझे चिढ़ाने लगीं. मैं बरबाद हो चुकी थी. कमल मुझ से दूर होने लगा था. मैं गृहस्थी चलाने में भी असमर्थ हो गई थी. कमल को अब मेरा फोन भी वाहियात लगने लगा था. मेरा रूप ढलने लगा था. मेरा शृंगार अपनी रंगत खो चुका था. जिस के गले में मैं ने ही बूंदबूंद कर के जहर डाला था, एक दिन तो दम तोड़ना ही था. आखिर मैं गलत ही तो कर रही थी. और गलत कामों का नतीजा तो मुझे भुगतना ही था.

मैं अब कमल से आरपार का फैसला कर लेना चाहती थी. अंतिम बार जब मैं उस से मिली तो उस ने साफसाफ शब्दों में कह दिया, ‘तुझ जैसी बाजारू औरत के लिए अपना समय बरबाद नहीं करता कमल. तुम से बढि़या तो वेश्याएं होती हैं, जो पैसों के लिए गैर मर्दों के संग सोया करती हैं. कम से कम किसी को धोखा तो नहीं देतीं. तू जब अपने बाप की, अपने पति की नहीं हुई तो मेरी कैसे हो सकती है?’

मैं अपने प्यार की दुहाई देती रही पर कमल पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने आगे स्पष्ट किया, ‘तू न तो मेरी जिंदगी की पहली औरत है और न ही आखिरी.’ मैं फिर भी गिड़गिड़ाती रही पर उस पर कोई असर नहीं हुआ. मैं रूप, जवानी, धनदौलत सब लुटा चुकी थी. कमल अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए मुझे मां तक बना चुका था. उस के जीवन में कोई और आ चुकी थी. नई चिडि़या को फांसने के लिए पुरानी का घरौंदा उजाड़ चुका था.

कमल की हकीकत मेरे सामने थी. मैं चुप नहीं रह सकती थी. मैं होश खो रही थी. मेरी आंखों में गुस्सा उबल रहा था. मैं उस का मर्डर कर देना चाहती थी. मैं आवेश में आ कर कमल पर चाकू फेंक मारने लगी. वह बच निकला. मुझे गालियां देते वहां से भागते हुए चला गया. उस के हाथ पर चाकू के निशान पड़ गए थे. उस ने हाफमर्डर का केस दर्ज कर दिया. असीम ने मुझे सचेत करते हुए पुलिस के आने से पहले गुड़गांव छोड़ भाग जाने की सलाह दी. असीम ने ही आगरा में मेरे और अभिलाषा के रहने का प्रबंध कर दिया. लेकिन साथ ही असीम मोहित के परिवार को भी इस घटना की सूचना दे चुका था.

तुम्हारी मां और बहन हमारे भागने से पहले ही आ कर मेरे हाथों से प्रेम को छीन कर ले गईं. मैं आगरा चली आई. कुछ दिनों बाद असीम ने आगरा आ कर अपने पैसों से मेरे लिए एक ब्यूटीपार्लर खुलवा दिया. तब से आज तक मैं आगरा की ही हो कर रह गई. रातभर मेरे दिलोदिमाग में मेरी पूरी जिंदगी नाचती रही. मैं पछतावे की अग्नि में जले जा रही हूं. मुझे ग्लानि हो रही है खुद पर. सुबह उठते ही सब से पहले शादी का पहला कार्ड मैं तुम्हारे परिवार को बाईपोस्ट भेजने कूरियर औफिस के लिए चल दी. शायद एक बार अपने बेटे को देखने की लालसा जाग्रत हो उठी थी.

कूरियर करवा कर मैं वापस घर आ कर तुम्हारी और प्रेम की फोटो को ले कर बैठ गई. मेरी आंखों से आंसू अपनेआप बहने लगे. मैं तुम्हारे फोटो पर गिरे अपने आंसू की बूंदों को अपने आंचल से पोंछने लगी. पता ही नहीं चला कब कमबख्त आंसू आंखों से ढुलक कर तुम्हारे फोटो पर आ गिरा था. मैं तुम्हारे फोटो से कहने लगी, ‘पहले मैं रोती थी तो तुम या कभी कमल अपना कंधा दे कर चुप करवा दिया करते थे. लेकिन अब मैं नहीं रोती. रोने का दिल भी होता तो भी मैं नहीं रोती. कोई सांत्वना के 2 शब्द बोल कर चुप करवाने वाला जो नहीं है. अब अगर रोती हूं तो उपहास का पात्र बन जाती हूं.’ तुम फिर से जवाब तलब करने आ जाते हो,

‘तुम कमल को अपना लो. अब तो मैं भी नहीं हूं तुम्हारे जीवन में. तुम्हें कमल को अपनाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.’ ‘दिक्कत तो कुछ नहीं है लेकिन तुम भूल रहे हो शायद कि मैं आज भी तुम्हारी पत्नी हूं. एक परित्यक्ता ही सही पर तलाकशुदा नहीं हूं. और फिर मैं वही गलती दोबारा कैसे दोहरा सकती हूं.’ ‘क्या तुम भी गलती कर सकती हो?’ ‘तुम्हारे वाक्य में कटाक्ष है. लेकिन फिर भी मैं प्रतिउत्तर दूंगी… हां, मैं गलती कैसे कर सकती हूं.

आज से 10 साल पूर्व वाली माया होती तो शायद यही उत्तर देती. लेकिन आज वाली माया जान चुकी है खुद को. खुद के परिवेश को, इस समाज को, सामाजिक आहर्ता को. वक्त सबकुछ सिखा देता है. मैं भी सीख चुकी हूं.’ ‘काश कि तुम पहले समझ जाती.’ ‘काश…’ ‘तुम में दिक्कत क्या है, तुम जानती हो? तुम किसी को अपने आगे कुछ समझती ही नहीं. तुम्हें तुम्हारी दुनिया सब से ज्यादा प्यारी लगती. तुम इस दुनिया को भी अपने अनुसार चलाना चाहती हो, लेकिन ऐसा नहीं होता. वास्तविकता का धरातल कुछ और ही है, जिसे तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की.’ ‘तभी तो आज भुगत रही हूं.’

 

तेरे जाने के बाद- भाग 4 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का पर्दा

‘भुगत तो मैं भी रहा हूं. जुदाई का गम. कम से कम तुम्हारे पास तुम्हारा परिवार, हमारा बेटा तो है. मेरे पास कौन है?’ ‘हमारा बेटा. शायद तुम भूल रहे हो कि हमारा नहीं, सिर्फ और सिर्फ मेरा बेटा था. मेरे और कमल का बेटा.’ ‘मैं जानता हूं. लेकिन शायद तुम भूल रही हो कि दुनिया की नजर में आज भी प्रेम हमारा ही बेटा है. कमल का नहीं. भले उस के शरीर में मेरे खून का कतरा नहीं है लेकिन मेरे प्यार के रंग को कोई कैसे उतार सकता है. नंदजी कान्हा के पिता भले नहीं थे किंतु वासुदेव से पहले नंद का नाम ही लिया जाता है. यह उन का पुत्रप्रेम व समर्पण था. जिसे दुनिया सदैव से ही नमन करती आई है और करती रहेगी.’

‘तुम नंद नहीं हो, पर मुझे देवकी जरूर बना दिया. क्यों?’ ‘देवकी, मैं ने कैसे बनाया?’ ‘तुम्हारे घर वाले मेरे बच्चे को मुझ से छीन कर ले जा चुके हैं. मैं नहीं जानती किस अधिकार से ले गए.’ ‘मेरे घर वाले…मैं आश्चर्यचकित हूं. जिन्हें तुम से कभी विशेष मतलब न रहा, वो तुम्हारे बच्चे को क्यों ले कर जाएंगे.’ ‘यही बात तो मुझे समझ नहीं आई आज तक. लेकिन मैं तुम्हारे घर वालों के जुल्म के आगे झुक गई थी या शायद यहां भी मेरी ही गलती थी. मैं अपनी फिगर खोना नहीं चाहती थी. मैं ब्रैस्ट फीडिंग करवा कर अपने वक्ष को खराब नहीं करना चाहती थी. जो समय मुझे उस अबोध बालक को देना चाहिए था वह समय मैं कमल को दे दिया करती थी. जिस का लाभ तुम्हें मिलता रहा. मैं अपने ही बच्चे से दूर होती रही और तुम करीब आते चले गए. तुम्हारे करीब, तुम्हारे रिश्तेदारों के करीब, और एक दिन वही बच्चा मुझे छोड़ उन के साथ चला गया. यहां मैं मां भी नहीं बन सकी.’

मैं विचारों की उधेड़बुन में उलझी रही. वैमनस्य मन में विवाह की तैयारी करती रही. मैं तुम्हें बारबार भुलाने की कोशिश में लगी रही और तुम बारबार मेरे जेहन में आते रहे. मैं खुद को कामों में उलझाने की कोशिश में लगी रहती हूं ताकि तुम्हारी यादों से नजात पा सकूं पर फिर भी तुम याद आते रहते हो. मैं टैंट वाला, हलवाई के हिसाबकिताब करती रही और तुम अपनी कमी महसूस करवाते रहे. तुम होते तो ऐसा होता, तुम होते तो वैसा होता. तुम्हें इस तरह के कामों में आनंद जो मिलता था. शादीविवाह हो या कोई सामाजिक काम, तुम सब में बढ़चढ़ कर भाग लेते थे. वह तुम्हारी कोमल हृदय की भावनाएं होती जिसे मैं कभी नहीं समझ पाई थी. एक बात जानते हो, मैं ने मी टू कैंपेन जौइन कर ली है.

मैं अब कमल के मामले को पूरी दुनिया को दिखाऊंगी. उस की करतूतों का परदाफाश कर के रहूंगी ताकि कोई और मेरी जैसी औरत उस के चुंगल में न फंसे. बहुत सताया है मुझे और जाने ही कितनों को. पर अब और नहीं. शादी की तैयारी करने में वक्त गुजरते देर न लगी और वह समय भी आ गया जब अभिलाषा को विदा कर के लेने दूलहेमियां असीम बरात ले कर आ गये और अब वह हमेशा के लिए अभिलाषा को मुझ से दूर ले कर चला जाएगा. मेरे अंदर भी बेचैनी होने लगी. क्या मैं अब अकेली रह जाऊंगी? क्या इस दुनिया में मेरे पास रहने वाला अपना कोई नहीं होगा? पर यह तो मेरे कर्मों का ही नतीजा है, फिर क्यों मुझे घबराहट हो रही है?

हां, मुझे पश्चात्ताप हो रहा है. शायद हां, मुझे पश्चात्ताप ही हो रहा है. मैं पश्चात्ताप की ही अग्नि में जल रही हूं. मेरा अहंकार जल रहा है. मेरा अस्तित्व जल रहा है. मैं एक कुंठित व महत्त्वाकांक्षी औरत हूं जिस के लिए शायद अब तक सजा मुकर्रर नहीं हुई है. पर यह तय है कि इस की सजा मुझे मिलेगी जरूर. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने दरवाजा खोला. मैं विस्मित देखती रह गई. मेरे सामने मोहित खड़ा था. मुझे खुद की ही आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. मुझे लगता, शायद मैं इतनों दिनों से मोहित के खयालों में डूबी हूं, उसी का असर है.

मोहित जब बोला, ‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ मेरी तंद्रा टूटी. वास्तव में मोहित ही है मेरा खयाल नहीं. मैं हड़बड़ाने लगी हूं, मेरी आंखों के कोर में न जाने कहां से आंसू के बादल छाने लगे. मैं रोकना चाहती थी उन आंसुओं की बूंदों को ढुलकने से, पर रोक नहीं पाई. वे लुढ़क कर मेरी नाक तक आ गए है. भर्राए हुए गले से मैं सिर्फ प्रेम बोल पाई हूं. मोहित ने कुछ जवाब नहीं दिया. वे मेरे संगसंग अंदर आ गए. मुझ से नजर मिलाए बिना ही मोहित बैठ गए. मैं पानी लेने चली गई. मैं अपने हाथों में पानी का गिलास लिए खड़ी थी. मोहित ने पानी का गिलास लेते हुए पूछा, ‘‘प्रेम कहां है माया?’’

मैं अपनी रुंधे हुई भर्राए गले से अटकअटक गई, ‘‘वो…वो प्रेम को तो…प्रेम को तो आप की मांबहन ले गईं थी.’’ मैं पहली बार मोहित को आप कह संबोधित कर रही थी. मुझे नहीं मालूम ऐसा क्यों? ‘‘मां ले गईं प्रेम को, पर क्यों?’’ ‘‘क्योंकि मेरी ममता मरणासन्न अवस्था में पहुंच गई थी, मैं वासना के रसातल में विक्षिप्त प्राणी की तरह विलीन हो गई थी. सिर्फ और सिर्फ मेरा तन जाग्रत था, हृदय तो कब का मृत हो चुका था,’’ मैं फफकफफक कर रोते हुए बोली. ‘‘क्या इस का तुम्हें एहसास है?’’

‘‘एहसास, शायद छोटा सा अल्फाज है मुझ जैसी कलुषित औरत के लिए. मुझ जैसी औरतों को तो जितनी सजा दी जाए वह कम ही होगी.’’ ‘‘तुम्हें पश्चात्ताप हुआ, यह बहुत बड़ी बात है. लेकिन तुम फिर से यह कौन सी गलती दोहराने जा रही हो?’’ ‘‘गलती, क्या मतलब?’’ ‘‘तुम इतनी भोली भी नहीं हो कि मतलब बताना पड़े. फिर भी बता देता हूं… यह तुम्हारा मी टू कैंपेन क्या है? क्यों तुम किसी की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगाने पर तुली हो?’’ ‘‘पर उस ने जो किया, क्या वह सही था?’’ ‘‘उस ने जो किया वह गलत जरूर था. लेकिन वह अकेला गलत तो नहीं था, तुम भी तो बराबर की भागीदार रही. तुम्हारी भी उतनी ही हिस्सेदारी रही जितना कमल की. फिर अकेले कमल पर दोषारोपण क्यों?’’

‘‘तो क्या तुम्हारी नजर में कमल सही है और मैं ही पूरी जिम्मेदार थी?’’ ‘‘हां, कहीं न कहीं तुम ज्यादा जिम्मेदार थी. यदि तुम खुद को संयमित रखती तो दुनिया के किसी भी पुरुष के बाजू में इतनी ताकत नहीं कि तुम्हारे सतीत्व को छीन ले. तुम्हारा पति तो तुम्हारे संग ही था, फिर तुम कैसे मर्यादा भूल गईं. तुम्हें मेरी परवा भले न हो, अपनी परवा कभी तुम ने की नहीं, कम से कम प्रेम के बारे में तो एक बार सोच लेतीं. बड़ा होगा तो वैसे ही तुम्हारी करतूतों का पता चल जाएगा. लेकिन बारबार एक ही गलती दोहरा कर क्यों उसे जलालतभरी जिंदगी में झोंकने की तैयारी कर रही हो?

‘‘माना भारतीय कानून ने पराए मर्दों के संग सोने वाले रिश्तों में पति का दखल बंद करा दिया है लेकिन सभ्यता व संस्कार अभी भी इस प्रकार के औरत या मर्द को चरित्रहीन की ही श्रेणी में रखती हैं, और फिर प्रेम तो तुम्हारा ही बेटा है न, बड़े दंभ से कहती थीं, फिर क्यों उस के भविष्य को खराब करना चाहती हो? भूल जाओ माया पुरानी बातों को. जिंदगी को नए सिरे से शुरू करो. किसी के बसेबसाए घर को उजाड़ना भी ठीक नहीं है माया. बाकी तुम्हारी मरजी. तुम अधिक समझदार हो मुझ से.’’

मैं कुछ भी सोचनेसमझने की अवस्था में नहीं रह गईर् थी, मोहित के तर्क के सामने. उन की बातें भी तो सही थीं. मुझे प्रेम के बारे में तो सोचना चाहिए था. पर प्रेम के बारे में मैं क्यों नहीं सोच पाई? प्रेम कैसा होगा? मेरा बच्चा कहां होगा? और फिर मोहित को कैसे पता मेरे बारे में. शायद सोशल मीडिया से पता चला होगा. मैं कुछ बोलना चाहती थी पर बोल नहीं पाई. बस, प्रेमप्रेमप्रेम करती रह गई. ‘‘प्रेम मेरे पास है.’’ ‘‘आप के पास?’’ ‘‘तो लेते क्यों नहीं आए? एक बार नजर भर देख लेती,’’ बाकी शब्द मुंह में ही अटक गए. पहली बार महसूस हुआ कि मेरी ममता जागृत हो रही है.

‘‘मां’’, पैर छूते हुए एक 10 वर्षीय बच्चा मुझ से लिपट कर फिर बोला, ‘‘पापा, मौसी की शादी के बाद हम मां को अपने साथ ले जाएंगे.’’ प्रेम अपनी दादीदादा के साथ अभिलाषा के लिए गहनेकपड़े खरीदने बाजार चला गया था. सब लोग साथ ही आए थे. लेकिन मोहित मेरे पास पहले आ गए, बाकी लोग बाजार चले गए थे. मोहित की मां के जब मैं पैर छूने लगी तो वे उठ कर बोलीं, ‘‘बेटा, एक पत्नी गलत हो सकती है, हार भी सकती है दुनिया से, लेकिन एक मां न तो कभी हारती है और न ही गलत होती है.

प्रेम तुम्हारा बेटा था, है और रहेगा. बस, उस में अच्छे संस्कार के खादपानी की जरूरत है. अब हम भी बूढ़े हो गए हैं. तुम अभिलाषा की विदाई के साथ ही हमारे साथ आ कर अपना संसार संभालो, तेरे जाने के बाद तेरा घर बिखर गया है, आ कर समेट ले बेटा.’’ मैं कुछ बोल नहीं पाई, बस सहमति में सिर हिलाती रह गई.

 

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