The Kerala Story Film Review: जानें कैसी है विवादों में घिरी फिल्म द केरला स्टोरी

  • रेटिंगः एक स्टार
  • निर्माता व रचनात्मक निर्देशक: विपुल अमृतलाल शाह
  • लेखकः सूर्यपाल सिंह,  सुदीप्तो सेन, विपुल अमृतलाल शाह
  • निर्देशकः सुदीप्तो सेन
  • कलाकारः अदा शर्मा, योगिता बिहानी,  सोनिया बलानी, सिद्धि इदनानी, विजय कृष्णा, प्रणय पचोरी, प्रणव मिश्रा
  • अवधिः दो घंटा 18 मिनट

यूं तो देश की सरकारें बदलने के साथ ही देश का सिनेमा सदैव बदलता रहा है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हर फिल्मकार किसी न किसी खास ‘अजेंडा’ के तहत फिल्में बना रहा है. ऐसा करते समय वह तथ्यों को भी अपने अजेंडा के अनुसार तोड़ मरोड़कर पेश करने में हिचकिचाता नहीं है. इसी संदर्भ के तहत आज हम फिल्मकार सुदीप्तो सेन की फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ की समीक्षा करने जा रहे हैं.  फिल्म देखते हुए अहसास होता है कि फिल्मकार कहीं न कहीं भ्रमित है.

फिल्म का प्रचार करते हुए कहा गया कि केरला राज्य से 32000 लड़कियां गायब है. मगर फिल्म में एक संवाद है जहां फिल्म की एक नायिका पुलिस स्टेशन में एफआईआर लिखाने गयी है. उस वक्त वह कहती है कि, ‘‘ हमारे राज्य की 32 हजार लड़कियां गायब है. अब तक 761 एफआईआर ही लिखी गयी हैं. और इनमें से 261 लड़कियां को उनके माता पिता तक पहुॅचाया गया है. ’’अब सवाल है कि यह 32 हजार का आंकड़ा कहां से आया? यदि यह आंकड़े सोशल मीडिया व इंटरनेट की देन है, तो ‘द केरला स्टोरी’ के साथ ही फिल्मकार सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘‘अफवाह’’ भी प्रदर्षित हुई है, जिसका संदेश यही है कि सोशल मीडिया व इंटरनेट पर जो भी वीडियो या बातें आती हैं, उन्हे सच नहीं मानना चाहिए. ऐसे मंे दर्षक किस फिल्मकार की किस बात को कितना सही या गलत माने?

दूसरी बात फिल्म में संवाद है कि एक मुख्यमंत्री ने कहा था कि यदि इसी तरह से राज्य में धर्मांतरण होता रहा, तो एक दिन केरला राज्य इस्लामिक राज्य बन जाएगा. यहां पर फिल्मकार को उस मुख्यमंत्री का नाम उजागर करने से परहेज नहीं करना चाहिए था.  बहरहाल,  फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ के निर्देशक सुदीप्तो सेन का दावा है कि 2016 और 2018 के बीच केरल में 32, 000 महिलाएं आईएसआईएस में शामिल हुई थीं.


इतना ही नहीं फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन और रचनात्मक निर्माता विपुल अमृतलाल शाह जोर देकर कहते हैं कि उनकी फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ केरल की ‘32, 000 युवा लड़कियों की सच्ची कहानी‘ पर आधारित है,  जिन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करवाने के बाद अफगानिस्तान -तुर्की-सीरिया की सीमा पर आईएसआईएस शिविरों में बंदी बना कर रखा गया था. जिनका काम इस्लाम के जेहादियों की सेक्स भूख को षांत करना था. इन शिविरों में हर लड़की के साथ हर दिन कई बार बलात्कार किया जाता था. यदि यह सच है, तो केरला सरकार ही नहीं केंद्र सरकार की भी इस मसले पर चुप्पी समझ से परे है.

वैसे 2021 में ‘द हिंदू’ अखबार में अफगानिस्तान की जेल मे चार लड़कियोें की कहानी बतायी गयी थी.  फिल्मकार का काम होता है कि वह अपनी फिल्म में हर मुद्दे के विभिन्न पहलुओं को चित्रित कर उस मुद्दे पर समाज व देश में बहस का माहौल बनाए. मगर ‘द केरला स्टोरी’ ऐसा कुछ नहीं करती. फिल्म के कुछ दृष्य तो फिल्मकार की भावनाओं, संवेदनाओं के साथ संजीदगी पर भी सवाल उठाते हैं?

फिल्म ‘‘द केरला स्टोरी’’ देखकर यह बात साफ नजर आती है कि फिल्मकार का एक मात्र मकसद हर दर्षक का ‘ब्रेनवाश’ करना मात्र है. फिल्म कहती है कि कोई भी मुसलमान अच्छा नहीं होता. नास्तिकता व साम्यवाद में अंतर नहीं है.  फिल्म इस बात को भी रेखंाकित करती है कि कोई जान-बूझकर धर्मांतरण नहीं है,  गुप्त उद्देश्यों के बिना आपसी प्रेम नहीं है. . . वाह क्या बात है? पर यह समझ से परे है कि जब नर्स बनने की पढ़ाई कर रही शालिनी का मुस्लिम प्रेमी रमीज उसे धोखा दे देता है, तब वह एक बार अपने माता पिता से मिलने की बजाय मौलवी की बातों मे आकर इस्लाम धर्म कबूल कर एक अनजान मुस्लिम युवक इशाक संग शादी कैसे कर लेती है?

यहां तो प्रेम यानी कि ‘लव जिहाद’ भी नहीं है.  उत्तेजना से भरी फिल्म की पटकथा उन ‘तथ्यों और आंकड़ों‘ को प्रस्तुत करती है, जो व्यापक रूप से विवादित रहे हैं. अथवा व्हाट्सअप युनिवर्सिटी, सोशल मीडिया व इंटरनेट की देन है.  वैसे फिल्मकार सुदीप्तो सेन का यह पहला प्रयास नहीं है. वह इससे पहले 2022 में इसी पर ‘‘इन द नेम आफ लव’’ नामक डाक्यूमेंट्ी भी बना चुके हैं. इस डाक्यूमेंट्ी में सुदीप्तो सेन ने कहा है कि केरला राज्य से 17 हजार और मंगलोर से 15 हजार हिंदू व क्रिष्चियन लड़कियों का धर्म बदलवाकर उन्हे मुस्लिम बनाया गया. यह ‘लव जेहाद’ का परिणाम है.

 

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में कासरगोड के एक नर्सिंग कॉलेज के होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही शालिनी उन्नीकृष्णन (अदा शर्मा) और उसकी तीन रूममेट्स,  एक हिंदू लड़की गीतांजली (सिद्धि इदनानी),  दूसरी ईसाई लड़की निमाह (योगिता बिहानी) और तीसरी मुस्लिम लड़की आसिफा (सोनिया बलानी) है.  फिल्म शुरू होती है आसिफा (सोनिया बलानी) द्वारा अन्य तीन का ब्रेन-वॉश करने के मिशन से. वह इन तीनों को समझाती है कि जो लड़कियां हिजाब पहनती हैं, वह पुरुषों की बुरी नजरों से सुरक्षित रहती हैं. आसिफा बार बार इन्हे बाती है कि अगर ईसा मसीह को सूली पर चढ़ने से बचाने उनके ईष्वर क्यो नहीं आए? इसी तरह वह बताती है कि भगवान शिव को भी अपनी पत्नी के मृत शरीर को लेकर डर डर क्यों भटकना पड़ा? भगवान राम को अपनी पत्नी सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए वानर सेना की मदद लेनी पड़ी. क्योकि ‘अल्लाह’ के अलावा किसी ईष्वर या भगवान में कोई ताकत नहीं है. यह सभी कमजोर हैं. आसिफा इन तीनों को समझाती है कि केवल अल्लाह ही ‘काफिरों‘ को बचा सकता है,  जिन्हें (दोजख) नरक की आग और लानत का सामना करना पड़ेगा. आसिफा तीनों लड़कियों को समझाती है कि अल्लाह ही एकमात्र सच्चा भगवान है और इस्लाम ही एकमात्र धर्म है, जो अस्तित्व में रहने का हकदार है.

आसिफा के साथ ही शालीनष्युवक रमीज (प्रणय पचोरी) , अब्दुल (प्रणव मिश्रा) व इशाक (विजय कृष्णन ) मिले हुए हैं. इनका काम अनजान युवतियों को अपने प्रेम जाल में फंसाना और इस्लाम धर्म से संस्कारित करना है. इस काम में चालाक मौलवी भी अपनी भूमिका अदा करते हैं. कुछ ही समय में,  शालिनी,  निमाह (योगिता बिहानी) और गीतांजलि (सिद्धि इदनानी) आसिफा के जादू के दायरे में आ जाती हैं.

अधीर मौलवी अपने अनुयायियों को सलाह देता है कि ‘‘उन्हें करीब लाओ,  उन्हें दवा खिलाओ,  उनके साथ यौन संबंध बनाओ,  और यदि संभव हो तो उन्हें गर्भवती करो. ‘‘उनकी सलाह का पूरी तरह से पालन किया जाता है शालिनी शादी से पहले ही रमीज के बच्चे की मां बनने वाली होती है. रमीज उससे इस शर्त पर शादी करने को तैयार होता है कि शालिनी, इस्लाम धर्म स्वीकार ले. जब वह ऐसा करने को तैयार हो जाती है, तो मौलवी बताते है कि रमीज तो केरला के बाहर चला गया. अब उसे इशाक से शादी कर सीरिया जाकर अल्लाह की सेवा कर अपने सारे गुनाहों से मुक्त होना चाहिए.

शामिली, फातिमा बनकर इशाक से शादी कर कोलंबो होते हुए अफगानिस्तान तुर्की व सीरिया की सीमा पर सुनसान क्षेत्र में बने आई एसआईएस के शिविर में पहुंच जाती है. जहां उसकी समझ में आता है कि उसकी हैसियत महज सेक्स स्लेब या आतमघाती हमलावर के अलावा कुछ नहीं है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार के दावे हैं कि उन्होंने फिल्म में सच को पेश किया है. पर फिल्म देखकर ऐसा नहीं लगता. फिल्म की पटकथा पूरी तरह से दर्षक के अंदर उत्तेजना पैदा करती है. जबकि फिल्म का काम होता है कि दर्षक को सच व गलत के बारे में सोचने पर मजबूर करे? इस पर यह फिल्म खरी नहीं उतरती. दूसरी बात ‘धर्म परिवर्तन’ के सच से इंकार नहीं किया जा सकता.

हमारे देश में इसाई मशीनरी से लेकर हर धर्म से जुड़े लोग दूसरे धर्मावलंबियो का ब्रेन वाश कर उन्हें अपने धर्म के साथ जोड़ते हैं, इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता. पर हम देखते आए हैं कि किसी न किसी रूप में कमजोर लोग ही धर्मांतरण के लिए आसानी से तैयार होते हैं. पर इस फिल्म को देखते हुए हम इस बात को नजरंदाज नहीं कर सकते कि केरला देश का सबसे अधिक शिक्षित राज्य है.

क्या शिक्षित लड़की जन्म से सिखायी गयी विचार धारा को त्याग कर इस्लाम स्वीकार करने के साथ ही अपने हृदयाघात के कारण अस्पताल में बेहोश पड़े पिता के चेहरे पर थूंकेगी? क्या भारतीय सभ्यता व कोई भी धर्म यही सिखाता है? इस दृष्य से ही इस बात का अहसास होता है कि निर्देशक सुदीप्तो सेन कितने असंवेदनशील,  असंजीदा और भावनाओं से परे इंसान हैं.  पूरी फिल्म सिर्फ आग लगाने व वैमनस्यता पैदा करने का ही काम करती है.

हम यह नहीं कहते कि केरल की कुछ लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हुआ होगा? हम जानते है कि क्रूर तालिबान ने दुनिया के कई हिस्सों की महिलाओं के साथ बहुत कुछ भयानक किया है.  मगर यह दावा करना कि यह निश्चित रूप से भारत के राज्य ‘केरल 32000 लड़कियों की कहानी‘ है, साफ तौर पर सही नहीं लगता. इसके अलावा हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जहां हिंसा सर्वोपरी हो, वह अच्छी विचारधारा हो ही नहीं सकती.

अफसोस फिल्मकार की लेखकीय व निर्देशकीय कमजोरी के चलते उनके एक खास धर्म के प्रति ध्रुवीकरण का प्रयास पूरी तरह से विफल हो गया है. फिल्म की कहानी के अनुसार हिंदू लड़की शालिनी का विष्वास डगमगाता है, पर कट्टर कैथोलिक मिमाह अपने विश्वास में डगमगाती नहीं है. तो वहीं कम्यूनिस्ट नेता की बेटी गीतांजली अपना कौमार्य खोने के बाद संभलकर शैतानों की पोल खोलने लगती है. अब इसे क्या कहा जाए. जब शालिनी को पता चलता है कि वह बिन ब्याही मां बनने वाली है, तो ऐसा व्यवहार करती है, जैसे कि यह दुनिया का अंत है. जबकि वह नर्स बनने की पढ़ाई करने के साथ ही अत्याधुनिक परिवार की सदस्य है. यह निर्देशकीय कमजोरी के साथ ही कमजोर पटकथा का परिचायक है.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पूरे देश की ही तरह केरल राज्य में धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है,  जिसका विरोध किया जाना चाहिए. किसी भी धर्म की धार्मिक कट्टरता हर समाज व देश के लिए नुकसान दायक ही होती है. दूसरी बात आतंकवाद के प्रति उदारता भी सही नहीं है. अफसोस हमारे देश में असहिष्णुता का रोना रोने वाले आश्चर्यजनक रूप से आतंकवाद पर चुप्पी साधे रहते हैं. यह चुनिंदा सक्रियता है, जो एक राष्ट्र के लिए अधिक खतरनाक है.

इसी परिदृष्य में हमें इस तथ्य पर भी गौर करना चाहिए कि केरला राज्य में 1911 से 1941 तक ईसाई आबादी में लगातार वृद्धि हुई थी. लेकिन 1981 के बाद से यह वृद्धि कम हुई है. 1981 में केरला में 58. 2 प्रतिशत हिंदू, 21. 3 प्रतिशत मुस्लिम, 20. 6 प्रतिशत इसाई थे.  जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार 54. 9 प्रतिशत हिंदू, 26. 6 प्रतिशत मुस्लिम और 18. 4 प्रतिशत इसाई थे. यानी कि केरला में मुस्लिम आबादी में लगातार इजाफा होता जा रहा है. क्या यह आंकड़े अपने आप में कोई सवाल नहीं उठाते. मगर इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘द केरला स्टोरी’ बहुत ही खराब फिल्म है.

क्योंकि निर्देशक सुदीप्तो सेन में विवादास्पद सामाजिक मुद्दों को सेल्युलाइड पर लाने के लिए आवष्यक परिपक्वता व संवेदनशीलता की कमी है. हालांकि कठोर अल्पसंख्यक भले ही खुश न हों,  लेकिन द केरला स्टोरी हिंदुत्व के कट्टर विश्वासियों को भी परेशान कर सकती है. धर्म की आड़ में हिंसा को जायज ठहराना, माता पिता का अपमान करवाना, बर्बरता सही नहीं है. फिल्म का कंट्टर धर्मावलंबियों पर सवाल उठाना जायज है.

हर धर्म में अच्छाई व बुराई है.  इसकी मूल वजह यह है कि हम लोग उसके अंदर निहित व्यापक सच को समझ नहीं पाते. शालिनी के प्रेमी रमीज के घर लगे पोस्टर पर लिखा है,  ‘राष्ट्रवाद हराम है. मुसलमान आपकी पहचान है. ’’ तो वहीं एक संवाद है-‘‘हमें औरंगजेब के अधूरे काम को पूरा करना है. ’फिल्मकार ने हर भारतीय मुस्लिम चरित्र को कट्टर बनाकर इस्लामोफोबिया के आरोपों से खुद को बचाने की कोशिश करते हैं. जबकि पूरी फिल्म ‘इस्लाम’ को सर्वश्रेष्ठ बताती है.

मगर आईएसआईएस ‘अल्लाह हो अकबर’ के नारों के साथ दुनिया भर की औरतों को ‘सेक्स स्लेब’ मानकर औरतों व युवा लड़कियों के साथ जिस तरह की क्रूरता के साथ पेश आता है, वह क्या है? इसे किसी भी सभ्य समाज में या किसी भी धर्म में जगह नहीं दी जा सकती. ऐसे आतंकवाद के खिलाफ तो हर किसी को धर्म व राजनीतिक विचारारा के परे जाकर एक साथ आना होगा. अफसोस फिल्मकार इस संदेश को दर्षक तक सही ढंग से नहीं पहुॅचा सके. काश, फिल्मकार ने केरला राज्य की सामाजिक समस्याओं को भी अपनी फिल्म का हिस्सा बनाया होता.

अभिनयः

शालिनी उर्फ फातिमा बा के किरदार में अदा शर्मा का अभिनय अजीबोगरीब है.  वह सिर्फ हंसने व रोने के अलावा कुछ नहीं जानती. लेकिन इंटरवल के बाद के दृष्यों में अदा शर्मा का अभिनय निखर कर आता है.

योगिता बिहानी सम्मानजनक प्रदर्शन किया है. एक कम्युनिस्ट नेता की बेटी गीतांजली के किरदार में सिद्धि इदनानी अपने अभिनय से लोगों के दिलो में जगह बना लेती हैं.

प्रेम में डूबी लड़की से लेकर अपनी अस्मिता गंवाकर होश में आई लड़की की घुटने न टेकने वाले एलान तक के दृष्यों में उनका अभिनय शानदार है. लेकिन विजय कृष्ण, प्रणव मिश्रा व प्रणय पचोरी निराश करते हैं.

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