महिलाओं में थायराइड, इलाज है न

कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो महिलाओं पर अधिक हावी होती हैं. ‘हाइपरथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म’ थायराइड से जुड़ी 2 बीमारियां हैं.

महिलाओं के जीवन में उन का सामना कई मानसिक, शारीरिक और हारमोनल बदलावों से होता है. हालांकि महिला जीवन के विभिन्न चरणों में हारमोनल बदलाव होना लाजिम है. लेकिन यदि ये बदलाव असामान्य हैं तो कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. यही कारण है कि महिलाएं थायराइड रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं.

प्रिस्टीन केयर की डाक्टर शालू वर्मा ने महिलाओं में बढ़ती थायराइड की समस्याएं और उन से बचाव के तरीकों के बारे में जानकारी दी है-

थायराइड क्या है

थायराइड गरदन के निचले हिस्से में पाई जाने वाली एक तितलीनुमा ग्रंथि है. यह ग्रंथि ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी3) और थायरोक्सिन (टी4) नामक 2 मुख्य हारमोन का स्राव करती है. दोनों ही हार्मोन शरीर की कई गतिविधियों को नियंत्रित करने में अपना विशेष योगदान निभाते हैं.

परंतु जब दो में से किसी भी हार्मोन के उत्पादन की मात्रा में कोई बदलाव आता है तो इस से शरीर में विभिन्न समस्याओं की शुरुआत होती है. हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म में अंतर जब थायराइड हार्मोन का उत्पादन जरूरत से अधिक होता है तो उस स्थिति को हाइपरथायरायडिज्म कहते हैं, जबकि थायराइड हार्मोन के कम उत्पादन की स्थिति को हाइपोथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है. दोनों ही परिस्थितियां असामान्य हैं और रोगी को उपचार की आवश्यकता होती है.

पुरुषों की तुलना में महिलाएं प्रभावित

पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हाइपरथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म की परिस्थिति 10 गुना अधिक आम है. आकड़ों के अनुसार लगभग हर 8 महिलाओं में से 1 महिला थायराइड से परेशान होती है.

इस का एक कारण यह है कि थायराइड विकार अकसर औटोइम्यून प्रतिक्रियाओं से शुरू होता है. यह तब होता है जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपनी ही कोशिकाओं पर हमला करना शुरू कर देती है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आटोइम्यून की स्थिति अधिक आम है.

मासिकधर्म चक्र के दौरान हारमोन में होने वाले उतारचढ़ाव और थायराइड हारमोन के बीच परस्पर क्रिया होने के कारण भी महिलाओं में थायराइड विकारों को देखा जा सकता है. थायराइड की समस्या किसी भी समय हो सकती है, लेकिन मेनोपौज के बाद हारमोन के स्तर में एकाएक बदलाव के कारण थायराइड डिसऔर्डर होना बहुत आम है.

इस के अतिरिक्त थायराइडाइटिस (थायराइड ग्रंथि का सूज जाना), आयोडीन की कमी और अधिकता भी हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म होने का कारण बन सकती है.

ऐसे प्रभावित करते हैं थायराइड विकार

महिला के प्रजनन तंत्र और थायराइड ग्लैंड के कार्य के बीच अच्छा तालमेल होना बहुत जरूरी है. यदि थायराइड कम या अधिक सक्रिय है तो इस से कई तरह के हारमोनल विकार होंगे और इस का असर महिला के प्रजनन स्वास्थ्य पर नकारात्मक रूप से होगा.

मासिकधर्म

थायराइड विकारों के कारण मासिकधर्म असामान्य रूप से जल्दी या देरी से हो सकता है. इस के अलावा थायराइड हारमोन का कम या अधिक उत्पादन मासिकधर्म से जुड़ी कई समस्याओं जैसे अनियमित मासिकधर्म, मासिकधर्म का न होना और बहुत भारी मात्रा में रक्तस्राव होना आदि का कारण बन सकता है.

प्रजनन

हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म ओव्यूलेशन को भी प्रभावित कर सकता है. ओव्यूलेशन में महिला के अंडाशय से एक अंडा रिलीज होता है जो पुरुष के स्पर्म के साथ मिल कर भ्रूण निर्माण करता है. थायराइड विकार ओव्यूलेशन को रोक सकता है. वहीं यदि महिला को हाइपोथायरायडिज्म है तो ओवेरियन सिस्ट के विकार का खतरा बढ़ जाता है.

गर्भावस्था में

यदि महिला गर्भवती है और उसे थायराइड विकार है तो इस से कई जटिल परिस्थितियां जन्म ले सकती हैं. हाइपरथायरायडिज्म मौर्निंग सिकनैस होने की संभावना को बढ़ा सकता है, जबकि हाइपोथायरायडिज्म के कारण समय से पहले लेबर डिलिवरी, गर्भपात और अन्य गंभीर जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है.

मेनोपौज

थायराइड विकारों के कारण मेनोपौज समय से पहले हो सकता है. हालांकि सही समय पर उपचार की मदद से प्रीमेनोपौज को रोका जा सकता है.

ऐसे करें बचाव

थायराइड विकार से ग्रस्त होने के बाद उसे रोक पाना मुश्किल है. अत: महिला को लक्षण नजर आने पर तुरंत डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

एक स्वस्थ महिला इस बीमारी से बचाव करने के लिए निम्नलिखित उपायों को आजमा सकती है:

प्रोसैस्ड फूड से बचें:

प्रोसैस्ड फूड में बहुत से कैमिकल होते हैं जो थायराइड हारमोन के उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए थायराइड विकार से बचाव के लिए महिला को प्रोसैस्ड फूड का कम से कम सेवन करना चाहिए. यदि महिला थायराइड विकार से पीडि़त है तब तो उसे इस फूड का कतई सेवन नहीं करना चाहिए.

सोया से बचें:

हालांकि यह एक बहुत ही हैल्दी खा-पदार्थ है लेकिन थायराइड के संबंध में नहीं. सोया का जरूरत से अधिक सेवन करना थायराइड हारमोन के उत्पादन को प्रभावित कर सकता है.

धूम्रपान बंद करें:

धूम्रपान के दौरान निकलने वाले विषाक्त पदार्थ थायराइड ग्रंथि को अधिक संवेदनशील बना सकते हैं, जिस से थायराइड विकार हो सकते हैं. स्मोकिंग न केवल थायराइड ग्रंथि के लिए बल्कि अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं की जड़ भी बन सकता है.

तनाव को कम करें

थायराइड रोग सहित कई अन्य स्वास्थ्य विकारों में तनाव का बहुत बड़ा रोल होता है. तनाव को कम करने के लिए महिला मैडिटेशन, म्यूजिक आदि का सहारा ले सकती है.

नियमित रूप से डाक्टर से मिलें

अपने डाक्टर के पास नियमित रूप से जाएं. नियमित जांच न केवल आप के संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए बल्कि आप के थायराइड स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी होती है. यदि थायराइड के प्रारंभिक लक्षण नजर आते हैं तो डाक्टर बीमारी को कुछ दवाइयों की मदद से काबू में कर सकते हैं.

थायराइड ग्रंथि से स्रावित होने वाले हारमोन शरीर की बहुत सी क्रियाओं जैसे कैलोरी की खपत दर को नियंत्रित करना, हृदय गति को नियंत्रित करना आदि में मददगार होते हैं. लेकिन यदि इन के स्राव की मात्रा जरूरत से अधिक अथवा कम हो जाती है तो इस से शरीर को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. यह महिला के प्रजनन स्वास्थ्य को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है.

इस के लक्षण नजर आने पर एक महिला को देरी न करते हुए तुरंत ऐंडोक्राइनोलौजिस्ट के पास निदान के लिए जाना चाहिए. सही समय पर इलाज से इसे कुछ दवाइयों या थेरैपी की मदद से कंट्रोल कर सकते हैं. कुछ गंभीर मामलों में थायराइडेक्टामी की भी जरूरत पड़ सकती है. यह एक प्रकार की सर्जरी है. हालांकि इस की जरूरत तब पड़ती है जब थायराइड डिसऔर्डर को दवाइयों से ठीक न किया जा सके.

बेहतर है आप संतुलित आहार लें और कम से कम रोज आधा घंटा व्यायाम अवश्य करें. इस से न केवल थायराइड रोग बल्कि आप के सामान्य जीवन में भी सुधार होगा.                       –

थायराइड विकारों के लक्षण

महिलाओं में थायराइड विकारों के लक्षणों को इस तरह जान सकते हैं:

– टीएसएच का लैवल बढ़ना और टी4 का घटना.

– चेहरे में सूजन आना.

– स्किन टाइट होना.

– थकावट महसूस करना.

– नब्ज का धीमा होना.

– खाना समय पर हजम नहीं होना.

– गैस और कब्ज की समस्या होना.

– पेट खराब होना.

– ठंड लगना.

– अचानक मोटापा आ जाना.

– शरीर में खिंचाव और ऐंठन महसूस करना.

– मन विचलित होना.

 

पसीने और वजन कम आने से परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 34 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मु झे पिछले कई महीनों से पसीना बहुत आ रहा है. बाल भी लगातार  झड़ रहे हैं और वजन भी 9-10 किलोग्राम कम हो गया है. मु झे सम झ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

जवाब-

आप की समस्या को देख कर लग रहा है कि आप को थायराइड से संबंधित समस्या है. थायराइड एक तितली के आकार की छोटी सी ग्लैंड (ग्रंथि) है जो गरदन के निचले हिस्से में होती है. इस से निकलने वाले हारमोन शरीर की मैटाबौलिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं. बाल  झड़ना, बिना प्रयास के वजन कम होना, पसीना ज्यादा आना हाइपोथायरोडिज्म के प्रमुख लक्षण हैं. हाइपोथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि जितना शरीर की सामान्य गतिविधियों के लिए हारमोनों का स्राव जरूरी है उस से अधिक मात्रा में स्राव करती है. इसीलिए ये लक्षण दिखाई देते हैं. आप थायराइड फंक्शनिंग टैस्ट कराएं.

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कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो महिलाओं पर अधिक हावी होती हैं. ‘हाइपरथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म’ थायराइड से जुड़ी 2 बीमारियां हैं.

महिलाओं के जीवन में उन का सामना कई मानसिक, शारीरिक और हारमोनल बदलावों से होता है. हालांकि महिला जीवन के विभिन्न चरणों में हारमोनल बदलाव होना लाजिम है. लेकिन यदि ये बदलाव असामान्य हैं तो कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. यही कारण है कि महिलाएं थायराइड रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं.

प्रिस्टीन केयर की डाक्टर शालू वर्मा ने महिलाओं में बढ़ती थायराइड की समस्याएं और उन से बचाव के तरीकों के बारे में जानकारी दी है-

थायराइड क्या है

थायराइड गरदन के निचले हिस्से में पाई जाने वाली एक तितलीनुमा ग्रंथि है. यह ग्रंथि ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी3) और थायरोक्सिन (टी4) नामक 2 मुख्य हारमोन का स्राव करती है. दोनों ही हार्मोन शरीर की कई गतिविधियों को नियंत्रित करने में अपना विशेष योगदान निभाते हैं.

परंतु जब दो में से किसी भी हार्मोन के उत्पादन की मात्रा में कोई बदलाव आता है तो इस से शरीर में विभिन्न समस्याओं की शुरुआत होती है. हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म में अंतर जब थायराइड हार्मोन का उत्पादन जरूरत से अधिक होता है तो उस स्थिति को हाइपरथायरायडिज्म कहते हैं, जबकि थायराइड हार्मोन के कम उत्पादन की स्थिति को हाइपोथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है. दोनों ही परिस्थितियां असामान्य हैं और रोगी को उपचार की आवश्यकता होती है.

महिलाओं में थायराइड, इलाज है न

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

4 Tips: सही खानपान से कंट्रोल करें Thyroid

मोटापे के कई कारण हो सकते हैं. खानपान की आदतें, जीवनशैली, देर रात तक जागना और कई बार अनुवांशि‍क कारणों के चलते मोटापे की शि‍कायत हो जाती है. लेकिन कुछ ऐसे कारण भी होते हैं जिन पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता और ये समस्या भयानक रूप ले लेती है.

थायरॉइड एक ऐसी ही बीमारी है जिसमें वजन तेजी से बढ़ने लगता है और अगर समय रहते इसे कंट्रोल न किया जाए तो यह शुगर जैसी कई बीमारियों की वजह भी बन सकता है. इस बीमारी को थोड़ी सी सजगता और खानपान की सही आदतों को अपनाकर ठीक किया जा सकता है.

1. आयोडीन युक्त भोजन

रोगी को उन पदार्थों का सेवन करना चाहिए जिसमें आयोडीन की भरपूर मात्रा हो क्‍योंकि इसकी मात्रा थायरॉइड फंक्शन को प्रभावित करती है. सी फूड खासकर मछलियों में आयोडीन की मात्रा भरपूर होती है इसलिए इन्हें डाइट में शामिल करना न भूलें.

2. कॉपर और आयरन युक्त भोजन

कॉपर और आयरन युक्‍त आहार लें क्योंकि यह भी थायरॉइड फंक्‍शन को प्रभावित करते हैं. कॉपर की सबसे ज्‍यादा मात्रा काजू, बादाम और सूरजमुखी के बीज में होती है और हरे पत्‍तेदार सब्जियों में आयरन भरपूर मात्रा में होता है.

3. विटामिन और मिनरल्स

विटामिन और मिनरल्‍स युक्‍त चीजों को डाइट का हिस्सा बनाएं. यह थायरॉइड की अनियमितता में फायदेमंद होता है. पनीर, हरी मिर्च, टमाटर, प्‍याज, लहसुन, मशरूम में पर्याप्त मात्रा में विटामिन और लवण पाए जाते हैं.

4. कम वसा युक्त भोजन

कम वसा युक्‍त आहार का सेवन करें. इसके साथ ही गाय का दूध भी थायरॉइड के रोगी के लिए फायदेमंद होता है. खाना बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना भी फायदेमंद रहेगा.

थायरॉइड के रोगी क्या न खाएं?

1. सोया और उससे बनीं चीजों के सेवन से बचें.

2. जंक और फास्ट फूड का सेवन कम से कम करें.

3. ब्रोकली, गोभी जैसे सब्जियों के सेवन से बचें.

थायरॉइड के मरीजों को उचित आहार के साथ ही नियमित रूप से योग और व्यायाम भी करना चाहिए. थायरॉइड की समस्‍या होने पर रोगी को चिकित्‍सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए और उसी के अनुसार जीवशैली अपनानी चाहिए.

समझें थायराइड के संकेत

था यराइड ग्रंथि शरीर की एक छोटी सी, लेकिन महत्त्वपूर्ण ग्रंथि है. इस के द्वारा स्रावित हारमोन शरीर की कई प्रमुख गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब इस ग्रंथि द्वारा स्रावित हारमोन असंतुलित हो जाते हैं तो उस का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है. जब ऐसा होता है तो शरीर कुछ संकेत देता है, लेकिन अकसर लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं क्योंकि इस तरह के संकेत कई और स्वास्थ्य समस्याओं में भी दिखाई देते हैं.

खानपान की गलत आदतों और खराब जीवनशैली के कारण युवा महिलाएं भी बड़ी तेजी से थायराइड से संबंधित गड़बडि़यों की शिकार हो रही हैं. थायराइड ग्रंथि से संबंधित समस्याएं महिलाओं और पुरुषों दोनों को हो सकती हैं. लेकिन इस के 60-70% मामले महिलाओं में ही सामने आते हैं. मीनोपौज की स्थिति में पहुंची महिलाओं में थायराइड की गड़बड़ी से ग्रस्त होने का खतरा युवा महिलाओं की तुलना में दोगुना हो जाता है.

थायराइड ग्रंथि

थायराइड एक तितली के आकार की छोटी सी ग्लैंड है जो गरदन के निचले हिस्से में पाई जाती है. इस का वजन तो औसतन 30 ग्राम होता है, लेकिन इस के कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. थायराइड ग्रंथि को मस्तिष्क में स्थित पिट्युटरी ग्रंथि नियंत्रित करती है. यह थौरौक्सिन (टी3), ट्राईडोथौयरोनिन (टी4) और टीएसएच हारमोंस का स्राव करती है.

ये हारमोन शरीर की मैटाबोलिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं. इसलिए इसे ‘मैटाबौलिज्म मैनेजर’ की संज्ञा दी जाती है. मैटाबौलिज्म की दर को स्थिर बनाए रखने के लिए इन हारमोंस का उचित मात्रा में स्रावित होना आवश्यक है. शरीर में इन हारमोंस के स्तर के कारण मैटाबौलिज्म की ‘दर तेज’ या ‘धीमी’ हो सकती है.

थायराइड ग्रंथि से संबंधित समस्याएं

थायराइड ग्रंथि से स्रावित हारमोंस में असंतुलन आने पर 2 तरह की समस्याएं हो जाती हैं:

हाइपरथायरोइडिज्म

हाइपरथायरोइडिज्म यानी थायराइड ग्रंथि की कार्यप्रणाली कम हो जाना. इस में थायराइड ग्रंथि इतनी सक्रिय नहीं रहती कि वह शरीर की आवश्यकता जितने हारमोंस स्रावित कर पाए. इन हारमोंस के कम स्राव से शरीर की मैटाबौलिक क्रियाएं धीमी पड़ जाती हैं.

लक्षण

– वजन बढ़ना.

– बाल झड़ना.

– नींद ज्यादा, दिनभर सुस्ती महसूस करना.

– ठंड ज्यादा लगना.

– शरीर फूल जाना.

– त्वचा रूखी हो जाना.

– पैरों में सूजन आना.

– मासिकधर्म के दौरान हैवी ब्लीडिंग होना

– कब्ज होना.

आप में ये सब लक्षण दिखें जरूरी नहीं है. इन में से 2-3 या फिर सभी लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं.

उपचार

हाइपरथायरोइडिज्म का उपचार केवल दवाइयों से ही संभव है. इस के लिए रोज कृत्रिम थायराइड हारमोन लेना होता है. मुंह से ली जाने वाली यह दवा शरीर में हारमोंस के स्तर को पर्याप्त बनाए रखती है और लक्षणों में भी सुधार आने लगता है.

उपचार न कराने से होने वाली जटिलताएं

अगर हाइपरथायरोइडिज्म का उपचार न कराया जाए तो कोलैस्ट्रौल का स्तर और रक्तदाब बढ़ जाता है, जिस से कार्डियोवैस्क्युलर डिज होने का खतरा बढ़ जाता है. गर्भधारण करने में परेशानी आती है. मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है और अवसाद की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है.

हाइपरथायरोइडिज्म

हाइपर थायराइडिज्म में थायराइड ग्रंथि बहुत सक्रिय हो जाती है जिस से हारमोंस का स्राव सामान्य से अधिक मात्रा में होने लगता है. ये हारमोंस रक्त में घुल जाते हैं और कोशिकाओं के मैटाबौलिज्म को स्टिम्युलेट करते हैं.

लक्षण

– भूख अधिक लगने के बावजूद वजन कम होना.

– गरमी अधिक लगना और पसीना आना.

– दिल की धड़कनें तेज हो जाना.

– घबराहट होना.

– नींद आने में परेशानी होना.

– लूज मोशन होना.

– गर्भधारण करने में परेशानी होना.

– अगर गर्भधारण कर लिया है तो गर्भपात का खतरा होना.

– आंखों का उभर आना.

उपचार

उपचार इस पर निर्भर करता है कि समस्या कितनी गंभीर है, मरीज का स्वास्थ्य कैसा है और उसे कोई दूसरी बीमारी तो नहीं है. हाइपरथायरोइडिज्म केलिए 3 तरह के उपचार उपलब्ध हैं. रेडियोएक्टिव आयोडीन थेरैपी, ऐंटीथायराइड मैडिकेशंस और सर्जरी.

रेडियोऐक्टिव आयोडीन थेरैपी

रेडियोऐक्टिव आयोडीन थेरैपी में ओवरऐक्टिव थायराइड की कार्यप्रणाली को धीमा करने के लिए रेडियोऐक्टिव आयोडीन दी जाती है. रेडियोऐक्टिव आयोडीन थायराइड ग्रंथि द्वारा अवशोषित हो जाती है, जिस से थायराइड ग्रंथि थोड़ी सिकुड़ जाती है और हारमोंस का स्राव कम मात्रा में करने लगती है.

ऐंटीथायराइड मैडिकेशंस

ये दवाइयां थायराइड ग्रंथि को अधिक मात्रा में हारमोंस के स्राव से रोकती हैं. इस से धीरेधीरे लक्षणों में सुधार आने लगता है.

सर्जरी

सर्जरी के द्वारा थायराइड ग्रंथि को

निकाल दिया जाता है. आमतौर पर हाइपरथायरोइडिज्म के उपचार के लिए डाक्टर सर्जरी नहीं करते हैं. सर्जरी तभी की जाती है जब महिला गर्भवती हो और ऐंटीथायराइड मैडिसिन नहीं ले सकती है या मरीज को कैंसरयुक्त नोड्यूल है.

थायराइड टैस्ट

थायराइड फंक्शनिंग टैस्ट एक ब्लड टैस्ट है. इस के द्वारा यह पता लगाया जाता है कि आप की थायराइड ग्रंथि कितने बेहतर तरीके से काम कर रही है. इस में टी3, टी3आरयू, टी4 और टीएसएच टैस्ट शामिल हैं.

कब शुरू करें: 35 वर्ष के बाद

कितने अंतराल के बाद: साल में 1 बार, मगर कई डाक्टरों के अनुसार प्रतिवर्ष थायराइड की जांच कराना जरूरी नहीं है जब तक कि थायराइड से जुड़े कुछ सामान्य लक्षण दिखाई न दें.

-डा. सुंदरी श्रीकांत

निदेशक, इंटरनल मैडिसिन, क्यूआरजी सुपर

स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, फरीदाबाद –

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लाइलाज नहीं थाइराइड की बीमारी

40 साल की सुधा का वजन अचानक बढ़ने लगा, किसी काम में उसका मन नहीं लगता था रह-रहकर उसे घबराहट होती थी, उसने डाइट शुरू कर दिया, लेकिन उसका वजन कम नहीं हो रहा था. परेशान होकर उसने अपनी जांच करवाई और पता चला कि उसे थाइराइड है. दवाई लेने के बाद वजन और घबराहट दोनों कम हुआ. असल में थाइराइड की बीमारी महिलाओं में अधिक होती है. 10 में 8 महिलाओं को ये बीमारी होती है, लेकिन महिलाओं में इसे लेकर जागरूकता कम है. इसलिए इसे पकड़ पाने में मुश्किलें आती है और रोगी को सही इलाज समय पर नहीं मिल पाता.

इस बारें में थाइराइड एक्सपर्ट डा शशांक जोशी कहते है कि यहाँ हम हाइपोथायराइडिज्म के बारें में बात कर रहे है,क्योंकि इसमें ग्लैंड काम करना बंद कर देती है.जिसका सीधा सम्बन्ध स्ट्रेस से होता है. इतना ही नहीं इस बीमारी का सम्बन्ध हमारे औटो इम्युनिटी अर्थात सेल्फ डिस्ट्रक्सन औफ थाइराइड ग्लैंड से जुड़ा हुआ होता है, जो तनाव की वजह से बढती है. आज की महिला अधिकतर स्ट्रेस से गुजरती है, क्योंकि उन्हें घर के अलावा वर्कप्लेस के साथ भी सामंजस्य बैठाना पड़ता है जो उनके लिए आसान नहीं होता. ये सभी तनाव थाइराइड को बढ़ाने का काम करती है, क्योंकि इसके बढ़ने से एंटी बौडी तैयार होना बंद हो जाती है. इसके लक्षण कई बार पता करने मुश्किल होते है, लेकिन कुछ लक्षण निम्न है जिससे थाइराइड का पता लगाया जा सकता है,

  • मोटापे का बढ़ना,
  • थकान महसूस करना,
  • काम में मन न लगना,
  • केशों का झरना,
  • त्वचा का सूखना,
  • मूड स्विंग होना,
  • किसी बात पर चिड़चिड़ा हो जाना,
  • अधिक मासिक धर्म का होना,
  • किसी बात को भूल जाना आदि सभी इसके लक्षण है.

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ऐसा देखा गया है कि सर्दियों में थाइराइड अधिक बढ़ जाता है, इसलिए इस मौसम में रोगी को जांच के बाद नियमित दवा लेनी चाहिए. थाइराइड हार्मोन हमारे शरीर की मेटाबोलिज्म प्रक्रिया और एनर्जी को चार्ज करती रहती है, इसलिए अगर शरीर कोशिकाए सही तरह से चार्ज नहीं होगी, तो व्यक्ति सुस्त और हमेशा सोने की कोशिश करता है और ये समस्या अधिकतर ‘एक्सट्रीम क्लाइमेट’ वाले जगहों में होता है. ये बीमारी होने के बाद आयोडीन युक्त नमक लेना सबसे जरुरी होता है.

अधिकतर लोगों को जिन्हें हाइपोथायराइडिज्म की शिकायत है उनका ग्लैंड काम करना बंद कर देती है और उनकी समस्या धीरे-धीरे बढती जाती है, लेकिन दवा के नियमित सेवन से इस बीमारी से बचा जा सकता है.

थाइराइड हर उम्र के व्यक्ति को हो सकती है. जन्म से लेकर किसी भी उम्र में ये बीमारी हो सकती है. इसके होने से महिला इनफर्टिलिटी की भी शिकार हो सकती है. मोटापे के अलावा महिला ह्रदय रोग की भी शिकार हो सकती है.

कोई भी एन्द्रोक्रोनोलोजिस्ट डा.इस बीमारी का इलाज कर सकता है. इसमें मुख्यतः खून की जांच करनी पड़ती है. जिसमें टी3 टी4 और टीएसएच होता है. एक बार इसका पता लगने पर साल में दो बार खून की जांच करवाएं ताकि दवा का असर पता चलता रहे.

हाइपोथायराइडिज्म के तीन प्रकार होते हैं

-प्राइमरी, जिसमें जहाँ थाइराइड ग्लैंड में बीमारी है,

-सेकेंडरी में पिट्युटरी ग्लैंड में टीएस एच रस बनता है वहां कई बार ट्यूमर आ जाता है, जो एक बिलियन में  केवल एक व्यक्ति को ही होता है,

–  पिट्युटरी ग्लैंड,हाइपोथेलेमस के द्वारा कंट्रोल किया जाता है,जो टी आर एच बनाती है. उसे टरशियरी कहते है.

केवल टी एस एच की जांच से ही थाइराइड का पता लगाया जा सकता है. 8 से लेकर 10 तक की मात्रा होने पर डाक्टर की सलाह लेकर दवा शुरू करना जरुरी होता है. इसके साथ ही अगर कोलेस्ट्राल की मात्रा है, तो दवा शुरू कर लेनी चाहिए. इसके रिस्क फैक्टर निम्न है-

-अगर घर में किसी को थाइराइड की बीमारी हो खासकर मां, बहन या नानी तो भी अगली पीढ़ी को ये बीमारी 80 प्रतिशत होने के चांसेस होते है.

-ये वंशानुक्रम में चलती है.

-80 प्रतिशत ये महिलाओं को और 20 प्रतिशत पुरुषों को होती है.

-पुरुषों में जो अधिकतर धूम्रपान करते है, उन्हें थाइराइड हो सकता है, क्योंकि ये थाइराइड को ट्रिगर करता है.

डा. जोशी आगे कहते हैं कि लाइफस्टाइल को बदलने से थाइराइड की वजह से होने वाले मोटापे को कुछ हद तक काबू में किया जा सकता है,लेकिन थाइराइड की दवा लेना हमेशा जरुरी होता है. ये मिथ है कि मेनोपोज के बाद थाइराइड होता है. दरअसल तब ये पता चलता है कि महिला में थाइराइड है.

डाईबेटोलोजिस्ट डा.प्रदीप घाटगे कहते है कि थाइराइड के मरीज पिछले 10 सालों में दुगुनी हो चुकी है. इसमें कोई खास परिवर्तन शरीर में नहीं आने की वजह से आसानी से इसे समझना मुश्किल होता है. अगर समय पर जांच न हो पाय, तो रोगी एक्सट्रीम कोमा में चला जाता है. ये अधिकतर हाइपोथायराइडिज्म में होता है. इस लिए जब भी इसके लक्षण दिखे, तुरंत जांच करवा लेनी चाहिए.

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जिसमें रोगी का वजन कम होता जाता है, उसे हाइपरथायराइडिज्म कहते है. ये बीमारी अधिक खतरनाक होती है,क्योंकि इसमें रोगी के हार्ट पर उसका असर होता है.

थाइराइड होने पर निम्न चीजों को खाने से परहेज करें,

– पत्ता गोभी, फूल गोभी, ब्रोकोली, सोयाबीन और स्ट्राबेरी और नान वेज में क्रेबस, शेलफिश न खाएं,

– समय से खाएं, नियम से खाए.

जानें क्यों बढ़ रही महिलाओं में थायराइड की प्रौब्लम

थायराइड की परेशानी दुनियाभर में बहुत आम है. पूरी दुनिया में करीब 200 मिलियन लोग इस से प्रभावित हैं. नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इन्फौर्मेशन के अनुसार भारत में करीब 42 मिलियन लोग थायराइड के शिकार हैं. इन में 60% महिलाएं हैं. भारत में प्रत्येक 8 युवा महिलाओं में 1 थायराइड से ग्रस्त है. पुरुषों के मुकाबले महिलाएं थायराइड की ज्यादा शिकार होती हैं.

क्या है थायराइड गड़बड़ी

थायराइड ग्लैंड गरदन पर सामने तितली के आकार की ग्रंथि है जो हारमोन बनाती है और ये हारमोन शरीर के भिन्न अंगों के सही काम करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं. ये शरीर के मैटाबोलिक रेट के साथसाथ कार्डिएक और पाचन संबंधी काम को सुचारु रखते हैं. मस्तिष्क का विकास, मांसपेशियों पर नियंत्रण और हड्डियों का रखरखाव भी इन्हीं से संभव होता है. थायराइड की गड़बड़ी थायराइड ग्लैंड के काम को प्रभावित करती है. इस से मैटाबोलिज्म के लिए आवश्यक हारमोन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है.

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महिलाएं ज्यादा प्रभावित क्यों

थायराइड की ज्यादातर गड़बड़ी अपनेआप बेहतर हो जाने वाली प्रक्रिया है यानी एक अच्छी स्थिति है, जिस में मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली हमला करती है और थायराइड ग्रंथि को नष्ट कर देती है. विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक औटो इम्यून डिजीज जैसे सीलिएक डिजीज, डायबिटीज मैलिटस टाइप, इनफ्लैमेटरी बोवेल डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस महिलाओं में आम हैं.

थायराइड की गड़बड़ी की किस्में

हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म, थाइरोइडिटिस, थायराइड कैंसर जैसी आम गड़बडि़यां हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करती हैं. इन में से हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होती हैं.

हाइपोथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता कम होती है और सामान्य के मुकाबले कम हारमोन बनते हैं. इस से शरीर में हारमोन और मैटाबोलिज्म का संतुलन गड़बड़ा जाता है. महिलाओं में हाइपोथायरोडिज्म के सब से आम कारणों में एक है औटोइम्यून डिजीज जिसे हैशिमोटोज डिजीज कहा जाता है. इस में ऐंटीबौडीज धीरेधीरे थायराइड को लक्ष्य करते हैं और थायराइड हारमोन बनाने की इस की क्षमता को नष्ट कर देते हैं. अनुमान है कि 11 महिलाओं में से 1 अपने जीवन में हाइपोथायराइड से ग्रस्त होती है.

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हाइपरथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है और सामान्य के मुकाबले ज्यादा हारमोन बनते हैं. ये हारमोन शरीर के मैटाबोलिज्म को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाइपरथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि बड़ी हो जाती है. इस से शरीर का मैटाबोलिज्म बढ़ जाता है और अचानक वजन कम हो जाता है, हृदय की धड़कनें तेज या अनियमित हो जाती हैं और चिंता होती है.

शुरुआती लक्षण

थायराइड की गड़बड़ी अकसर शुरू में नहीं पकड़ी जाती है, क्योंकि इस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं. इसे बांझपन, लिपिड डिसऔर्डर, ऐनीमिया या डिप्रैशन समझ कर भ्रमित होने की आशंका रहती है. लक्षण देर से सामने आते हैं. तब तक हुए नुकसान की भरपाई न हो पाने की स्थिति बन जाती है.

हाइपोथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: थकान, शुष्क त्वचा, मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज, ठंड बरदाश्त न कर पाना, सूजी हुई पलकें, वजन अत्यधिक बढ़ना, मासिक अनियमित होना.

हाइपरथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: घबराहट, सोने में परेशानी, वजन कम होना, हथेलियों का गीला रहना, तेज और अनियमित हृदय की धड़कन, भारी आंखें, पलकें झपके बगैर घूरना, नजर में बदलाव, अत्यधिक भूख, पेट की गड़बड़ी, गरमी नहीं झेल पाना.

थायराइड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार घटक

थायराइड की बीमारी का पारिवारिक इतिहास, औटोइम्यून स्थिति का साथसाथ मौजूद रहना, गरदन में रैडिएशन का इतिहास, थायराइड की सर्जरी, थायराइड बढ़ जाना.

रोकथाम

थायराइड की गड़बड़ी लाइफस्टाइल से जुड़ी गड़बड़ी नहीं है और पर्याप्त मात्रा में आयोडीन लेने के अलावा किसी और प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है. थायराइड की गड़बड़ी का समय पर पता चल जाए और सही उपचार किया जाए तो इसे  बढ़ने से रोका जा सकता है. महिलाओं को साल में 1 बार थायराइड ग्रंथि की जांच जरूर करानी चाहिए ताकि बीमारी का जल्दी पता लग सके और समय से इलाज हो सके.

डा. सुनील कुमार मिश्रा

मेदांता हौस्पिटल     

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थायराइड के कारण मुझे अकसर कब्ज रहता है?

सवाल-

मैं 42 वर्षीय थायराइड का रोगी हूं. मुझे अकसर कब्ज रहता है. इस समस्या से कैसे छुटकारा पाऊं?

जवाब-

जिन लोगों में थायराइड हारमोनों का स्तर कम होता है अर्थात जिन्हें हाइपोथायराइडिज्म होता है उन में अकसर कब्ज की समसया देखी जाती है. हाइपोथायराइडिज्म में बड़ी आंत की कार्यप्रणाली धीमी पड़ जाती है, जिस से उस का संकुचन प्रभावित होता है और भोजन से अधिक मात्रा में जल का अवशोषण होने लगता है, जो बड़ी आंत में पचे हुए भोजन की धीमी गति का कारण बन जाता है. जब भोजन बड़ी आंत में सामान्य गति से आगे नहीं बढ़ता है तो मल त्यागने की आदत में बदलाव आ जाता है.

हाइपोथायराइडिज्म से ग्रस्त लोग शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. अपने भोजन में सब्जियां, फ लों, साबूत अनाज और दही जरूर शामिल करें. थायराइड हारमोनों के स्तर को नियंत्रित रखने के लिए अपनी दवा सही समय पर लें. तनाव न पालें, क्योंकि यह भी कब्ज का एक प्रमुख कारण है.

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आजकल के समय में कब्ज की शिकायत होना कोई असमान्य बात नहीं है. हर 10 में से 5वे व्यक्ति को आज के समय में कब्ज की शिकायत होती है. कब्ज जिसे लोग आमतौर पर कॉन्स्टिपेशन के नाम से जानते हैं, इसका मुख्य कारण आपका स्ट्रेस लेना, लो फाइबर डायट का होना, रोजाना ठीक से फीजिकल एक्सरसाइज ना करना और लिक्विड चीजों का कम सेवन करना, जैसे ज्यादा पानी ना पीना हो सकता है.

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महिलाएं बन रहीं थायराइड का शिकार

अचानक वजन का बढ़ जाना, बालों का जरूरत से ज्यादा झड़ना इत्यादि लक्षण बतातें हैं कि थायराइड की समस्या बढ़ रही है. वैसे तो बदलती जीवनशैली के चलते दुनिया में लाखों लोग इस समस्या से ग्रसित हैं, मगर यंग लड़कियों से ले कर महिलाएं तक इस का तेजी से शिकार हो रही हैं. एक शोध के अनुसार हर 8 में से 1 महिला इस समस्या से ग्रसित है.

थायराइड ग्लैंड गरदन पर सामने तितली के आकार की ग्रंथि है जो हारमोन बनाती है और ये हारमोन शरीर के भिन्न अंगों के सही काम करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं. ये शरीर के मैटाबोलिक रेट के साथसाथ कार्डिएक और पाचन संबंधी काम को सुचारु रखते हैं. मस्तिष्क का विकास, मांसपेशियों पर नियंत्रण और हड्डियों का रखरखाव भी इन्हीं से संभव होता है. थायराइड की गड़बड़ी थायराइड ग्लैंड के काम को प्रभावित करती है. इस से मैटाबोलिज्म के लिए आवश्यक हारमोन बनाने की क्षमता प्रभावित होती है.

महिलाएं ज्यादा प्रभावित क्यों

थायराइड की ज्यादातर गड़बड़ी अपनेआप बेहतर हो जाने वाली प्रक्रिया है यानी एक अच्छी स्थिति है, जिस में मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली हमला करती है और थायराइड ग्रंथि को नष्ट कर देती है. विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक औटो इम्यून डिजीज जैसे सीलिएक डिजीज, डायबिटीज मैलिटस टाइप, इनफ्लैमेटरी बोवेल डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस महिलाओं में आम हैं.

इन बीमारियों का पता लगाने और इलाज में इसलिए देरी होती है, क्योंकि विभिन्न लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है. औटोइम्यून बीमारियां आयोडीन की कमी से हो सकती हैं. गर्भावस्था में आयोडीन की कमी ज्यादा होती है. इस की कमी से थायराइड हारमोन के स्तर में कमी हो जाती है, जिस से कई परेशानियां हो जाती हैं.

थायराइड की गड़बड़ी की किस्में

हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म, थाइरोइडिटिस, थायराइड कैंसर जैसी आम गड़बडि़यां हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करती हैं. इन में से हाइपोथायरोडिज्म, हाइपरथायरोडिज्म महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा होती हैं.

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हाइपोथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता कम होती है और सामान्य के मुकाबले कम हारमोन बनते हैं. इस से शरीर में हारमोन और मैटाबोलिज्म का संतुलन गड़बड़ा जाता है. महिलाओं में हाइपोथायरोडिज्म के सब से आम कारणों में एक है औटोइम्यून डिजीज जिसे हैशिमोटोज डिजीज कहा जाता है. इस में ऐंटीबौडीज धीरेधीरे थायराइड को लक्ष्य करते हैं और थायराइड हारमोन बनाने की इस की क्षमता को नष्ट कर देते हैं. अनुमान है कि 11 महिलाओं में से 1 अपने जीवन में हाइपोथायराइड से ग्रस्त होती है.

हाइपरथायरोडिज्म एक तरह की थायराइड गड़बड़ी है जो तब होती है जब थायराइड ग्रंथि की सक्रियता बढ़ जाती है और सामान्य के मुकाबले ज्यादा हारमोन बनते हैं. ये हारमोन शरीर के मैटाबोलिज्म को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाइपरथायरोडिज्म में थायराइड ग्रंथि बड़ी हो जाती है. इस से शरीर का मैटाबोलिज्म बढ़ जाता है और अचानक वजन कम हो जाता है, हृदय की धड़कनें तेज या अनियमित हो जाती हैं और चिंता होती है.

शुरुआती लक्षण

थायराइड की गड़बड़ी अकसर शुरू में नहीं पकड़ी जाती है, क्योंकि इस के लक्षण अस्पष्ट होते हैं. इसे बांझपन, लिपिड डिसऔर्डर, ऐनीमिया या डिप्रैशन समझ कर भ्रमित होने की आशंका रहती है. लक्षण देर से सामने आते हैं. तब तक हुए नुकसान की भरपाई न हो पाने की स्थिति बन जाती है.

हाइपोथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: थकान, शुष्क त्वचा, मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज, ठंड बरदाश्त न कर पाना, सूजी हुई पलकें, वजन अत्यधिक बढ़ना, मासिक अनियमित होना.

हाइपरथायरोडिज्म के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: घबराहट, सोने में परेशानी, वजन कम होना, हथेलियों का गीला रहना, तेज और अनियमित हृदय की धड़कन, भारी आंखें, पलकें झपके बगैर घूरना, नजर में बदलाव, अत्यधिक भूख, पेट की गड़बड़ी, गरमी नहीं झेल पाना.

थायराइड की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार घटक: थायराइड की बीमारी का पारिवारिक इतिहास, औटोइम्यून स्थिति का साथसाथ मौजूद रहना, गरदन में रैडिएशन का इतिहास, थायराइड की सर्जरी, थायराइड बढ़ जाना.

रोकथाम

थायराइड की गड़बड़ी लाइफस्टाइल से जुड़ी गड़बड़ी नहीं है और पर्याप्त मात्रा में आयोडीन लेने के अलावा किसी और प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है. भारत सरकार द्वारा यूनिवर्सल साल्ट आयोडिनेशन को अपनाए जाने से अब आयोडाइज्ड नमक में पर्याप्त आयोडीन उपलब्ध है.

थायराइड की गड़बड़ी का समय पर पता चल जाए और सही उपचार किया जाए तो इस स्थिति की गंभीरता को बढ़ने से रोका जा सकता है. महिलाओं को साल में 1 बार थायराइड ग्रंथि की जांच जरूर करानी चाहिए ताकि बीमारी का जल्दी पता लग सके और समय से इलाज हो सके.

कैसा हो खानपान

थायराइड की समस्या का पता चल जाने पर अपनी डाइट में ये बदलाव जरूर करें:

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जब कम हो थायराइड: कम थायराइड वालों को अपने डाक्टर की सलाह से कम कैलोरी वाला आहार लेना चाहिए. दिन में 3 बार खाती हैं तो अपने खाने को 5-6 मील में बांट दें. खाना स्किप करने की आदत तो बिलकुल छोड़ दें. खाने में साबूत अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, दलिया, ओट्स, ब्राउन राइस इत्यादि शामिल करें.

प्रोटीन के लिए दालें, दही, बींस, अंडा इत्यादि खाएं. अलगअलग रंगों के फलों और सब्जियों को प्राथमिकता दें और फलों के जूस का सेवन कम करें. ड्राईफू्रट्स का शौक है तो अखरोट आप के लिए अच्छा रहेगा. इस में ओमेगा 3 ऐसिड पाया जाता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. ऐसी चीजों से दूरी बनाएं जिन में फैट ज्यादा होता है जैसे केक, पेस्ट्री, बटर, मेयोनीज, ब्रैड और पास्ता, प्रौसैस्ड फूड भी फैट बढ़ाता है.

जब थायराइड बढ़ा हो: इस स्थिति में शरीर की ऐनर्जी जल्दी खत्म हो जाती है, इसलिए ऐसी चीजों का सेवन करें जिन से ऐनर्जी भी बनी रहे और वजन भी नियंत्रण में रहे. इस के लिए कौर्न सलाद, लो फैट टोफू या पनीर, सागूदाना, आम, लीची और केला इत्यादि अपनी डाइट में शामिल करें. अंडे के सफेद भाग का भी सेवन कर सकती हैं. मांसाहारी हैं तो फिश खाना सही रहेगा. जंक फूड और आयोडिन रिच फूड से दूरी बनाएं. सी फिश इत्यादि न खाएं.

प्रेग्नेंसी में थायराइड की स्क्रीनिंग है जरुरी

निशा का गर्भ धारण हुए 3 महीने बीत चुके थे, लेकिन उसे हमेशा कमजोरी महसूस होती थी. जब वह डॉक्टर के पास आई, तो डौक्टर ने उसे थायराइड की जांच करने की सलाह दी. इससे पता चला कि उसका टीएसएच का स्तर बहुत बढ़ चुका है, जिससे बच्चे के दिमाग का विकास सही तरह से हुआ है या नहीं समझना मुश्किल था, ऐसे में उसे जन्म दिया जाय या टर्मिनेट किया जाय. इसे लेकर समस्या थी. निशा खुद भी ये समझ नहीं पा रही थी कि वह करें तो क्या करें. असल में हाइपोथायरोडिज्म अधिकतर महिलाओं को होता है, जिसमें थायराइड ग्लैंड उचित मात्रा में हर्मोन नहीं बना पाता. ये एक आम बीमारी है और आजकल भारत में 10 में से 1 के लिए ये रिस्क बना हुआ है. जिसमें प्रेग्नेंट महिला 13 प्रतिशत से 44 प्रतिशत प्रभावित है. थायराइड में डिसऔर्डर माँ और बच्चा दोनों के लिए घातक होती है. समय पर एक साधारण स्क्रीनिंग टेस्ट से इसका इलाज संभव है.

इस क्षेत्र में अधिक जागरूकता को बढ़ाने के लिए इंडियन थायराइड सोसाइटी, एबोट के साथ मिलकर मेक इंडिया थायराइड अवेयर (MITA) कैम्पेन शुरू किया. इस अवसर पर इंडियन थायराइड सोसाइटी के सेक्रेटरी शशांक जोशी का कहना है कि अधिकतर महिलाओं की हाइपोथायराडिज्म होता है,जिसमें थायराड ग्लैंड उचित मात्रा में हर्मोन नहीं बनाता, ऐसे में सही समय में इसका इलाज करना जरुरी है ,क्योंकि इसका सौ प्रतिशत इलाज संभव है. इससे पीड़ित महिलाओं में अनियमित माहवारी और गर्भधारण करने में मुश्किल महसूस होती है. इसलिए गर्भधारण के तुरंत बाद टीएसएच की जांच करवा लेनी चाहिए,क्योंकि इसका प्रारंभिक लक्षण बहुत अधिक दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए महिलाएं इसे नजरअंदाज करती है,पर कुछ लक्षण निम्न है,

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  • चेहरे पर सूजन,
  • त्वचा में सिकुडन,
  • ठंड सहन न कर पाना,
  • अचानक तेजी से वजन का बढ़ना,
  • कब्ज की परेशानी,
  • मांस पेशियों में ऐठन आदि है. ऐसा महसूस होते ही तुरंत डॉक्टर से मिलकर थायराइड स्क्रीनिंग अवश्य करवाएं.

थायराइड के सही इलाज न होने से बच्चे में निम्न समस्या दिखाई पड़ सकती है,

  • बच्चे की मस्तिष्क का सही तरह से विकसित न होना,
  • प्रीमेच्योर डिलीवरी होना,
  • मृत शिशु का जन्म होना,
  • बच्चे का वजन कम होना,
  • दिल की धड़कन का तेज होना,
  • उसका आई क्यू लेवल कम होना आदि है. जिसे बाद में ठीक कर पाना आसान नहीं होता.

इस बारें में स्त्री रोग विशेषज्ञ डौ. नंदिता पाल्शेतकर कहती है कि 3 में से एक महिला को ये पता नहीं होता है कि उसे थायराइड है. इसलिए देर से पता चलने के बाद इसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है. थायराइड से पीड़ित महिला को केवल पहले ही नहीं डिलीवरी के बाद भी उनमें इसकी समस्या बनी रहती है, जो निम्न है,

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना,
  • चिडचिडापन का होना,
  • वजन का अधिक बढ़ जाना,
  • अधिक थकान अनुभव करना,
  • केशों का अधिक झड़ना आदि होता है. इसलिए जब भी ऐसी शिकायत हो डौक्टर की तुरंत सलाह लेने की जरुरत होती है.

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इसके आगे एबोट इंडिया की डॉ. श्रीरूपा दास कहती है कि मेक इंडिया थायराइड अवेयर का मिशन अधिक से अधिक डॉक्टर्स को इसकी जानकारी और प्रशिक्षण दिया जाना है. इसमें 8,500 डॉक्टर्स ने अपनी सहमति दी है. इसके लिए मोबाइल वैन और डिजिटल कैम्पेन शुरू किया गया है जो देश के हर बड़े और छोटे शहरों  तक पहुंचकर 10 मिलियन थायराइड के मरीज की पहचान कर उचित इलाज समय रहते करेगी. ये स्क्रीनिंग अधिकतर 25 से 45 साल की महिलाओं के लिए की जायेगी, क्योंकि इस उम्र में महिलाओं को बच्चे का जन्म और उसका पालन-पोषण करना होता है. इसके अलावा यह कैम्पेन एनजीओ के साथ मिलकर गरीब महिलाओं को मुफ्त में थायराइड स्क्रीनिंग की भी सुविधा देंगी.

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