कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो महिलाओं पर अधिक हावी होती हैं. ‘हाइपरथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म’ थायराइड से जुड़ी 2 बीमारियां हैं.

महिलाओं के जीवन में उन का सामना कई मानसिक, शारीरिक और हारमोनल बदलावों से होता है. हालांकि महिला जीवन के विभिन्न चरणों में हारमोनल बदलाव होना लाजिम है. लेकिन यदि ये बदलाव असामान्य हैं तो कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं. यही कारण है कि महिलाएं थायराइड रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं.

प्रिस्टीन केयर की डाक्टर शालू वर्मा ने महिलाओं में बढ़ती थायराइड की समस्याएं और उन से बचाव के तरीकों के बारे में जानकारी दी है-

थायराइड क्या है

थायराइड गरदन के निचले हिस्से में पाई जाने वाली एक तितलीनुमा ग्रंथि है. यह ग्रंथि ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी3) और थायरोक्सिन (टी4) नामक 2 मुख्य हारमोन का स्राव करती है. दोनों ही हार्मोन शरीर की कई गतिविधियों को नियंत्रित करने में अपना विशेष योगदान निभाते हैं.

परंतु जब दो में से किसी भी हार्मोन के उत्पादन की मात्रा में कोई बदलाव आता है तो इस से शरीर में विभिन्न समस्याओं की शुरुआत होती है. हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म में अंतर जब थायराइड हार्मोन का उत्पादन जरूरत से अधिक होता है तो उस स्थिति को हाइपरथायरायडिज्म कहते हैं, जबकि थायराइड हार्मोन के कम उत्पादन की स्थिति को हाइपोथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है. दोनों ही परिस्थितियां असामान्य हैं और रोगी को उपचार की आवश्यकता होती है.

पुरुषों की तुलना में महिलाएं प्रभावित

पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हाइपरथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म की परिस्थिति 10 गुना अधिक आम है. आकड़ों के अनुसार लगभग हर 8 महिलाओं में से 1 महिला थायराइड से परेशान होती है.

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