Adolescence में बदलते रहते हैं मूड

रमा कालेज में पढ़ती है और अपनी पढ़ाई व कैरियर के प्रति जितनी सजग है, उतनी ही अपने दायित्वों के प्रति गंभीर भी है. इसीलिए उस के पेरैंट्स को उसे न तो कभी किसी बात के लिए टोकना पड़ा, न ही उन्हें उस के व्यवहार से कोई शिकायत है, लेकिन फिर भी अचानक उसे कभीकभी न जाने क्या हो जाता है. वह पढ़ाई करतेकरते बीच में ही उठ जाती है, उस का खाना खाने का मन नहीं करता. बस, वह एकांत चाहती है और बिना किसी कारण के उस का रोने का मन करता है.

वह सुबह जब भी उठती है तो उस का मूड बहुत अच्छा रहता है, वह सारा दिन खिलखिलाती रहती है पर शाम को उसे लगता है कि कुछ भी ठीक नहीं हुआ. अब छोटीछोटी बातों को ले कर उसे गुस्सा आने लगता है. किसी ने कुछ पूछा नहीं कि वह झुंझला पड़ती है, मानो सब उसे तंग करना चाहते हैं. उसे लगता है कि कोई उसे समझना ही नहीं चाहता.

बदलाव की उम्र

ऐसा केवल रमा के साथ ही नहीं, हर टीनएजर के साथ होता है. किशोरावस्था उम्र ही ऐसी है इस दौरान शरीर और मन दोनों में इतने बदलाव आते हैं कि मूड बदलना यानी मूड स्विंग होना नैचुरल है. अपनी आइडैंटिटी को ले कर चिंता, कालेज का उन्मुक्त वातावरण, अचानक ढेर सारी आजादी मिलने से सारी सोच में बदलाव आना, अपनी फिटनैस और ब्यूटी को ले कर सजगता आना और फ्रैंडशिप को अलग ढंग से जीना कुछ ऐसी बातें हैं जो उस समय किशोरों पर हावी हो जाती हैं. उन के साथ हारमोंस में होने वाले परिवर्तन की वजह से भी उन के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है. कभी वे खूब प्रफुल्लित दिखते हैं तो कभी अकारण उदास.

किशोरावस्था जिंदगी का सब से उथलपुथल मचाने वाला समय होता है. जब सारे शारीरिक हारमोनल और इमोशनल बदलाव होते हैं और अगर इस समय उन पर उचित ध्यान न दिया जाए या उन के मूड को समझते हुए उन से व्यवहार न किया जाए तो इमोशनल इंबैलेंस हो जाता है.

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काउंसलर हरमन सैनी का मानना है कि किशोरावस्था एक बहुत ही खतरनाक उम्र है क्योंकि इस समय बच्चे न तो बच्चे रह जाते हैं न ही वयस्क हुए होते हैं. अपने शरीर में आने वाले शारीरिक, हारमोनल और इमोशनल परिवर्तनों को वे न तो समझ पाते हैं न ही पहचान पाते हैं और इसी वजह से मूड स्विंग होते हैं, जो एक तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस उम्र में उन के व्यवहार में भी अजीब सा बदलाव आ जाता है. कभी वे निर्णय नहीं ले पाते तो कभी अत्यधिक अधीर हो जाते हैं. आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है और दूसरों की कोईर् भी बात सुनना उन्हें अच्छा नहीं लगता.

अधिकांश अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि बायोलौजिकल व इमोशनल परिवर्तन किशोरों के बदलते स्वभाव के कारण होते हैं. अगर आप के किशोर बेटेबेटी के अंदर कुछ अंतर आ रहा है और वह घर देर से आने लगा है या उस के स्वभाव का कोईर् पता नहीं होता कि कब क्या हो जाए तो संभवत: यह भी हो सकता है कि उसे किसी से प्यार हो गया है. साइकियाट्रिक यूनिवर्सिटी क्लीनिक के स्विट्जरलैंड के अनुसंधानकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि जो किशोर रोमांटिक किस्म के होते हैं, उन में मूड स्विंग की समस्या ज्यादा रहती है,

उन्हें नींद भी कम आती है और एकाग्रता बनाए रखना भी मुश्किल होता है. उन्होंने यह भी पाया कि इस दौरान किशोरों के अंदर जो मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आते हैं, उन से उन की हथेलियों पर पसीना आता है, दिल की धड़कनें बेकाबू रहती हैं और जब वे उस के साथ होते हैं, जिसे वे प्यार करते हैं, तो उन का एनर्जी लैवल घटताबढ़ता रहता है. इमोशनल लैवल पर उन में पजैसिवनैस, उस की हर बात जानने की इच्छा व उस के बारे में ही हर वक्त सोचते रहना अच्छा लगने लगता है. यहां तक कि वे उस पर भावनात्मक रूप से अत्यधिक निर्भर भी हो जाते हैं.

अलग पहचान बनाने की चाह

बच्चों और बड़ों में तनाव को कम करने वाले जिस हारमोन को शरीर पैदा करता है, वह एक नैचुरल नींद की दवा की तरह काम करता है, इस का किशोरों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इस वजह से वे बहुत मूडी हो जाते हैं. यही नहीं इस दौरान जब शरीर सैक्स हारमोंस बनाता है तो शारीरिक बदलावों के कारण भी किशोर परेशान रहने लगते हैं. वे एक तरह की दुविधा में रहते हैं जो उन के अंदर सुरक्षा की भावना भर देती है, जिस से वे एक ओर तो अपनेआप से लड़ते हैं और दूसरी ओर वयस्कों के जवाबों से परेशान रहते हैं इसीलिए उन की मन:स्थिति पलपल बदलती रहती है.

किशोरावस्था वह अवस्था है जब वे वयस्कों की दुनिया से हट कर अपनी एक पहचान बनाने की चाह रखने लगते हैं, यह वजह भी उन के भीतर पैदा होने वाली दुविधा का एक कारण है. उन के आसपास की दुनिया लगातार बदलती रहती है और उस प्रैशर का सामना करना कठिन लगने लगता है तो परेशान रहने लगते हैं. मूड के बदलते रहने से उन्हें लगता है कि कुछ भी चीज उन के नियंत्रण में नहीं है जो किसी के लिए भी एक असहज स्थिति हो सकती है.

काउंसलर पल्लवी गिलानी का कहना है, ’’वयस्कों को किशोरों के सामने आदर्श व उदाहरण बनाना होगा. उन के साथ जैसे को तैसा वाली नीति वाला व्यवहार करना ठीक नहीं होगा. पानी की बनिस्बत उन के साथ बहें. उन्हें उचित व्यवहार करना सिखाएं और उन के अनुचित व्यवहार पर कोईर् गलत टिप्पणी न करें. टीनएजर जानते हैं कि क्या गलत है और क्या सही. केवल उन्हें ऐक्सपैरिमैंट करना पसंद होता है. इसलिए उन्हें ऐसा आजादी वाला माहौल दें कि वे अपने ऐक्सपैरिमैंट्स को आप के साथ बांटें. याद रखें कि यह एक अस्थायी दौर है और जल्द ही बीत जाएगा.’’

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पेरैंट्स के लिए यह समझना आवश्यक है कि किशोरावस्था में मूड स्विंग होना एक नैचुरल प्रक्रिया है. उन के लिए इस समय धैर्य रखना और समस्या की तह तक जाना आवश्यक है. उन्हें इस समय अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए, हालांकि इस समय किशोर अकेला रहना या अपने मित्रों के साथ रहना ज्यादा पसंद करते हैं पेरैंट्स का उन से कुछ भी पूछना उन्हें किसी हस्तक्षेप से कम नहीं लगता. उन के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें और बिना किसी विवाद में पड़े खुले मन से उन की बातों व विचारों को सुनें. इस समय उन के मन में क्या चल रहा है, यह जानना जरूरी है, तभी आप उन का विश्वास जीत कर उन से हर बात शेयर करने को कह सकते हैं.

चेज़ योर ड्रीम्स

अभी हाल ही में मिसेज शाह से मिलना हुआ तो कहने लगी “क्या करें बेटी को समय ही नहीं मिलता”.

कहाँ व्यस्त रहती है इतना वह ? मैं ने पूछा.

क्या बताऊँ आजकल ऑनलाइन पर्सनैलिटी डवलपमेंट और सेल्फ ग्रूमिंग कोर्स जॉइन किया हुआ है. उसके अलावा एक घंटा एरोबिक्स एवं योगा. इतने समय से जिम बंद थे अब वे भी खुल गए सो एक घंटा सुबह जिम जाती है. इसके अलावा पढाई तो है ही सही.

इतना कुछ आखिर क्यूँ ?

अब ज़िंदगी में कुछ करना है तो मेहनत तो अभी से ही करनी होगी न.

मिसेज शाह का जवाब सुन मैं चुप रह गयी किन्तु मन  ही मन सोचने लगी “ऐसा भी क्या करना है इन्हें मेरी बेटी भी तो उसी के साथ पढ़ती है, उसे तो बहुत समय मिलता है”

बहुत कुछ इन्फार्मेटिव है इंटरनेट पर

घर आ कर मैं और मेरी बेटी जब रसोई में एक साथ काम कर रहे थे तो बातों ही बातों में मैं ने कहा “आज मिसेज शाह मिली थीं बता रही थीं कि उनकी बिटिया मायरा पूरा दिन कुछ न कुछ सीखती ही रहती है, बहुत व्यस्त रहती है और तुम हो कि इन्स्टा, यूं ट्यूब में समय गँवा रही हो”

ऐसा क्यूँ सोचती हैं आप मॉम ? मैं क्या सारा समय इन्स्टा और यू ट्यूब पर फ़ालतू समय बिताती हूँ ?

इंटरनेट पर भी बहुत सारे इन्फार्मेटिव वीडियों आते हैं वो देखती हूँ. इन्स्टा पर अपने पहचान के लोगों से मिलती हूँ आखिर मुझे भी तो अपनी ज़िंदगी जीनी है या टाइम मशीन बन कर रह जाऊं ?

तुलना करना उचित नहीं

उफ़ ! मॉम आप कम्पेयर क्यूँ कर रही हैं ? यह कोई नई बात नहीं कि मायरा हर समय व्यस्त रहती है हम सभी जानते हैं यह तो पहले से ही, पर उसकी ज़िंदगी कोई ज़िन्दगी है ?

क्या मतलब ? मैं ने पूछा.

मतलब यह कि मॉम न तो वह किसी से मिलती है और न ही किसी से कभी बात करने को फुर्सत है उसके पास ? और सबसे जरूरी बात यह कि क्या वह स्वयं खुश है ऐसी ज़िंदगी से.

“क्यूँ खुश होगी तभी तो इतना कुछ कर लेती है वह”

चक्की के दो पाटों में पिसती ज़िंदगी

नहीं मॉम  आपको कुछ भी नहीं पता वह तो चक्की के दो पाटों में पिस रही है.

कैसे ?

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कैसे क्या उसके डैड तो उसे सी.ऐ., एम्, बी. ऐ. करवा कर अफसर बनाना चाहते हैं और उसकी मॉम उसे मॉडलिंग करने को फ़ोर्स करती हैं. वो बेचारी अपने दिन का सारा समय सिर्फ उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने में बिताती है. जैसे उसकी तो कोई लाइफ ही नहीं.

पैरेंट्स बंदिश देते हैं

पर उसके पैरेंट्स भी तो उसी के भले के लिए सोचते हैं.

ह्म्म्म सोचते होंगे, पर पहले वे दोनों तो आपस में मिल-बैठ कर बातचीत कर तय कर लें कि उन्हें अपनी बेटी को क्या बनाना है. बेचारी दो नावों की कश्ती में सवार न तो हंस-बोल पाती है और न ही कुछ तय कर पाती है कि आखिर उसे अपनी ज़िंदगी में क्या करना है.

ज़रा वज़न बढे तो उसकी मॉम उसका घी-पनीर बंद कर देती हैं. दो नंबर भी कट जाएँ किसी विषय में तो डैड ट्यूशन टीचर के पीछे पड़ जाते हैं. उसकी एक्स्ट्रा वीकेंड क्लासेज़ शुरू करवा देते हैं और हरेक क्लास की फीस बताऊँ ?

“हाँ-हाँ बताओ तो” मैं ने कहा.

मॉम साढे बारह सौ रुपये प्रति घंटा. सोचो हर महीने उस की ट्यूशन पर कितना खर्च करते होंगे. उसके अलावा योगा, एरोबिक्स एवं अन्य कोर्सेज़ का खर्चा सो अलग.

तुम्हें किस ने बताया कि इतनी फीस  देते हैं वे.

उसी ने स्वयं ने बताया और यह भी बताया कि उसे ये सारे दिन के कोर्सेज़ और पढाई अच्छी भी नहीं लगती है, बोर हो जाती है वह ये सब करके.

पर उसके नंबर तो अच्छे ही आते हैं हमेशा और कितनी सुन्दर लगती है बिलकुल फिट एंड ग्लोइंग .

तो वो तो लगेगी ही न मॉम सारा ध्यान इन्हीं चीज़ों पर रखो हर वक़्त सोचो क्या खाऊँ क्या नहीं, चेहरे पर क्या लगाऊँ कि स्किन ग्लो करे . ननिहाल से पसंद की मिठाई आये पर उसे फ्रूट्स जूस पीने पड़ें. हम सभी पिज्जा खाएं पर उसे ग्रीन सैलेड खाना पड़े तो भूख तो खुद ही मर जायेगी न. कैसे बढेगा उसका वज़न ? फिट ही रहेगी न.

लेकिन ये सब सेहत के लिए फायदेमंद भी तो है अभी से ख्याल रखेगी तो चुस्त-तंदरुस्त रहेगी.

तन के साथ मन का स्वास्थ्य है जरूरी

वो ठीक है माँ पर सिर्फ तन ही तो सब कुछ नहीं होता मन की खुशी भी तो कोई चीज़ होती है न. आखिर कब तक वह अपने माता-पिता के अरमानों के बोझ तले दब कर ऐसी ज़िन्दगी जी सकेगी ?  जब कि वह स्वयं तो वाइल्ड लाइफ सफारी गाइड बनना चाहती है.

उसने स्वयं बताया तुम्हें कि वह गाइड बनना चाहती है ?

हाँ मॉम, कभी-कभी जब लेक्चर ख़त्म होने के बाद दूसरे लेक्चर के बीच गैप होता है तब वह हमसे बात करती है और अपने मन की बताती है.

ह्म्म्म , पर बेटी आज जो सैक्रिफाइस वह कर रही है इसका उसे भविष्य में फ़ायदा होगा.

मन मारकर कोई कैसे जिए

पर मॉम किसे पता वह जितनी मेहनत कर रही है इसका उसे फायदा ही न हो क्यूंकि उसका मन तो कुछ और करने का है, वह सिर्फ अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन कर रही है.  आखिर कब तक अपना मन मारकर यह सब सीखती रहेगी ? अभी तो समय कम पड़ रहा है वर्ना उसकी मॉम उसे कत्थक डांस क्लास और जॉइन करवाएंगी.

वो क्यूँ ?

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अरे ! मॉम माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय की छवि देखती हैं उसकी मॉम उसमें.

विद्रोह करना चाहिए

तो तुम्हारे हिसाब से उसे यह सब नहीं करना चाहिए ? अपने माता-पिता के सामने विद्रोह करना चहिये ?

हाँ बिलकुल करना चाहिए . माना कि उसके माता-पिता पढ़े-लिखे हैं, अच्छा कमाते हैं दोनों वर्किंग हैं, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं लेकिन वे अपने सपनों का बोझ अपनी बेटी पर नहीं लाद सकते.

मैं ये कहूंगी कि वे पढ़े लिखे हैं, लेकिन समझदार नहीं.

ये क्या कह रही हो तुम ? मैं ने कहा.

छुप-छुप कर शौक पूरे करते हैं

मॉम यदि वे समझदार होते तो अपनी बेटीकी खूबियों को पहचानते. मालूम है वह फ्री पीरियड में लायब्रेरी जाती है और वहां अफ्रीका के जंगलों और जानवरों के बारे में पढ़ती है, हम लोगों से फोन लेकर इंटरनेट पर वाइल्ड लाइफ सर्फ़ करती है. वह सब करते समय उसके चेहरे पर अलग ही मुस्कराहट होती है. हम सभी सहेलियां उसकी इस मामले में बहुत मदद करती हैं. हम अपने फोन उसे दिया करते हैं ताकि वह इंटरनेट का इस्तेमाल कर सके. उसके पैरंट्स ने उसके फोन पर तो ट्रैकर लगा रखा है कहीं वह उनकी मर्जी के खिलाफ कुछ देख-पढ़ न ले.

ओह ! यह तो बहुत गलत है, आखिर वह भी तो फ्री पीरियड में अपनी मर्जी का कुछ तो करना  चाहती होगी.

वही तो मैं कह रही हूँ, मॉम आप कहती है कि वह सुन्दर है फिट है मैं कहती हूँ वह ताश के पत्तों में जो गुलाम का पत्ता है वह है. क्या आप उसके चेहरे की उदासी नहीं पढ़ पातीं ?

तो तुम क्या कहती हो उसे अपने माता-पिता से झगड़ा करना चाहिए ?

मेरी ज़िंदगी मेरी मर्जी

नहीं मॉम, उसे झगड़ा नहीं करना चहिये लेकिन उनके सपनों के बोझ तले अपने जीवन को नष्ट भी नहीं करना चाहिए.बल्कि अपने  पसंद के फील्ड की पूरी जानकारी लेकर अपने माता-पिता से बातचीत करनी चाहिए. वह जंगल और जानवरों से प्रेम करती है, माना कि यह फील्ड नया है जिसकी जानकारी उसके माता-पिता को नहीं. शायद हम जैसे लोग आमतौर पर इस फील्ड में नहीं जाते. पर वे स्वयं ही तो उसे खास बनाना चाहते हैं.

हर फील्ड में है स्कोप

नया है शायद इसलिए वे डरते हों कि भविष्य में वह क्या करेगी ? लेकिन हर फील्ड में कुछ न कुछ स्कोप तो होता ही है. फिर आजकल तो टूरिज्म इंडस्ट्री खूब फल-फूल रही है. नैशनल जियोग्राफिक चैनल, डिस्कवरी चैनल पर यह सब कितना आता है. वह किसी ख़ास विषय या जानवर पर रिसर्च भी कर सकती है. किन्तु आप लोगों को यह सब बताना फ़िज़ूल है. आप लोग तो  लकीर के फ़कीर बने रहना चाहते हैं. जैसे जो सब आपने किया या सोचा उसके अलावा दुनिया में कुछ और अच्छा है ही नहीं.

अच्छी लडकी की परिभाषा 

मुझे तो डर है कि मायरा कभी स्ट्रेस और फ्रस्टेशन में पढ़ना-लिखना ही न छोड़ दे.

नहीं वह अच्छी लडकी है वह ऐसा नहीं करेगी कभी.

“अच्छी लडकी माय फुट” मॉम बस पैरेंट्स कहें वो ही करो तब ही अच्छी लड़की होती है ? मैं क्या बुरी लडकी हूँ. लेकिन मेरी अपनी ओपिनियन होती है, मैं रेस्पेक्ट करती हूँ अपनी ओपिनियन और अपनी चॉइस को. मैं अपने सपनों को साकार करने के लिए जब आँखें मूंदती हूँ मन ही मन कहती हूँ “यस आय विल डू इट” और उसके लिए निरंतर प्रयासरत हूँ. लेकिन आप लोगों ने अपने सपने मुझ पर लादे नहीं. मैं जो पढना चाहती हूँ उसकी छूट दी, हकीकत तो यह है कि सबकुछ मैं ने ही तय किया. जो मुझे कॉलेज में पढ़ाया जाता है मैं उसे एक दिन पहले ही घर में पढ़ लेती हूँ क्यूंकि मुझे वह सब अच्छा लगता है. क्यूंकि मुझे अपने विषय को जानने के लिए क्युसिओसिटी भी है. मुझे अपने विषय में ज्यादा सर नहीं खपाना पड़ता. इसीलिए आपको मेरी मेहनत नज़र भी नहीं आती और मैं समय निकाल कर मौज-मस्ती भी कर लेती हूँ.

समझना होगा माता-पिता को

हम्म बात तो तुम्हारी सही है, तुम अपनी सहेली को क्यूँ नहीं  समझाती कि वह अपने माता-पिता से बात करे और उन्हें बताये कि वह अपने पसंद का करियर चुनना चाहती है.

उन्हें समझा कर कोई फ़ायदा नहीं मॉम क्यूंकि उसके माता और पिता दोनों आपस में ही नहीं समझा पाए एक दूसरे को. बस दोनों अपनी जिद पर अड़े हैं कि एक के अनुसार बेटी मॉडलिंग करे और दूसरे के अनुसार हर वक़्त किताबों में सर घुसाए रखे. पहले उन्हें आपस में समझना जरूरी है और यह जानना जरूरी है कि उनकी बेटी क्या करना चाहती है पर वे दोनों इतने नासमझ हैं कि इस विषय पर बेटी से बातचीत ही नहीं करते, बस उसके लिए एक पगडंडी बना दी है और जैसे घोड़े की आँखों पर कुछ बाँध दिया जाता है कि वह साइड में न देखे बस आगे देखे वैसे ही उसे अपने माता-पिता की ऑंखें लेकर उस पगडंडी पर चलना है.

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“ह्म्म्म बात तो तुम सही कहती हो” मैं ने कहा.

तुम्हें लगता है कि मैं सही कहती हूँ तो तुम ही समझाओ उसकी मॉम व डैड को वर्ना किसी दिन वह कुछ गलत न कर बैठे और यदि विद्रोह कर दिया तो फिर वह उन दोनों से बहुत दूर न चली जाये. हो सकता है वह मॉडल या अफसर बन जाए किन्तु उसके माता-पिता की आँखें कब तक उसे राह दिखाएंगी. वह तो छुप-छुप कर वाइल्ड लाइफ सफारी को सर्च करती है और सोचती है एक बार माँ-बाप का सपना पूरा कर दे फिर अपना सपना पूरा करेगी. एक बार मॉडलिंग में चली भी जायेगी तो छोड़ देगी. या फिर किसी बड़ी कंपनी में अफसर बन गयी तो नौकरी छोड़ देगी. और यदि ये भी न हुआ तो पूरी ज़िंदगी कसमसाती रहेगी अपने अधूरे ख़्वाबों के साथ.

अपने सपनों को जिओ

मैं तो कहूंगी आखिर ज़िंदगी उस की है और उसे ही जीनी है उसे अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रयास करना चाहिए न कि अपने माता-पिता के अरमानों को जीना चाहिए.

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