Women’s Day 2023: नारी- हर दोष की मारी

आज भी स्त्रियों के लिए सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताएं जैसे उन्हें निगलने के लिए मुंह बाए खड़ी हैं. कई योजनाएं बनती हैं, लेख लिखे जाते हैं, कहानियां गढ़ी जाती हैं, प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं और सब से खास प्रतिवर्ष महिला दिवस भी मनाया जाता है. किंतु हकीकत यह है कि घर की चारदीवारी में महिलाएं बचपन से ले कर बुढ़ापे तक समाज एवं धर्म की मान्यताओं में बंधी कसमसा कर रह जाती हैं.

कुंआरी लड़की एवं विधवा दोष

कुछ महीने पहले की ही बात है  झुन झुनवाला की 25 वर्षीय बिटिया के विवाह की बात चल रही थी, लड़कालड़की दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था. लेकिन फिर बात आगे न बढ़ सकी, जब  झुन झुनवाला से पूछा गया कि मिठाई कब खिला रही हैं तो कहने लगीं, ‘‘क्या करें हम तो तैयार बैठे हैं मिठाई खिलाने के लिए पर बिटिया की कुंडली में ही दोष है, कोई रिश्ता बैठता ही नहीं.’’

कैसे दोष? पूछने पर कहने लगीं कि लड़के वालों ने पंडितजी को दिखाई थी बिटिया की कुंडली, कहने लगे कुंडली में ग्रहों की स्थिति बताती है कि बिटिया का विधवा योग है. विवाह के कुछ बरसों पश्चात ही वह विधवा हो जाएगी. तो भला कौन अपने लड़के को हमारी बिटिया से ब्याहेगा? उन के माथे पर चिंता की लकीरें गहरा गई थी.

अनब्याही में मांगलिक दोष

पुणे में रहने वाली स्मिता कहती हैं कि उन का विवाह बड़ी उम्र में हुआ, क्योंकि कुंडली में मांगलिक दोष था. कहा जाता है कि मांगलिक दोष वाली युवती के ग्रह मांगलिक दोष वाले पुरुष से मिलने चाहिए तभी विवाह का सफल होना संभव है अन्यथा या तो दोनों में से एक की मृत्यु हो जाती है या फिर तलाक. कुल मिला कर किसी भी कारण से विवाह असफल ही रहता है. ऐसे में अकसर मांगलिक युवतियां बड़ी उम्र तक कुंआरी रह जाती हैं या फिर इस मंगल दोष को हटाने के लिए पूजा एवं समाधान बताए जाते हैं, उन कार्यों को संपन्न करने पर ही ऐसी युवतियों का विवाह होता है. बढ़ती उम्र तक यदि विवाह न हो तो समाज ताने देने से नहीं चूकता.

तलाकशुदा स्त्री

हैदराबाद में रहने वाली संजना का अपने पति से विवाह के करीब 5 वर्ष बाद 30 की उम्र में ही तलाक हो गया था. उस  समय उन का बेटा था जिसे संजना ने अपने पास ही रखा. तलाक के कुछ वर्षों बाद उन के पति ने तो पुनर्विवाह कर लिया, किंतु संजना अब 50 वर्ष की हैं और एकाकी जीवन जी रही हैं. वैसे तो वे स्वयं आईटी इंडस्ट्री में कार्यरत हैं सो आर्थिक स्थिति अच्छी ही है फिर भी जब उन से पुनर्विवाह के बारे में पूछा गया तो कहने लगीं, ‘‘अब इस उम्र में कौन करेगा मु झ से विवाह और जब जवान थी तब एक बच्चे की मां से कौन करता विवाह? कोई दूसरे के बच्चे की जिम्मेदारी लेता है भला?’’

इस तरह के न जाने कितने मामले देखने को मिल जाएंगे जिन में लड़की में दोष बता कर उसे एकाकी, पाश्चिक या निम्न स्तर की जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया जाता है.

विधवा स्त्री

इसी तरह एक मामला देखने को मिला जिस में एक पढ़ीलिखी, सुंदर, स्मार्ट महिला के पति की कम उम्र में मृत्यु हो गई. क्योंकि पति सरकारी नौकरी में थे, महिला को उन की मृत्यु के पश्चात अच्छी रकम मिली. महिला का एक नवजात बेटा भी था.

किसी कारणवश महिला को ससुराल वालों का सपोर्ट नहीं मिली तो वह मायके में रहने लगी. मायके में भाईभाभी की नजर में वह खटकती. यह देख कर उस के मातापिता ने पढ़ालिखा अच्छा कमाने वाला तलाकशुदा पुरुष देख कर उस का पुनर्विवाह कर दिया. कुछ समय तो ठीकठाक चला, किंतु फिर अकसर महिला के बच्चे को ले कर पतिपत्नी में अनबन रहने लगी. सास की नजर महिला के पहले पति की मृत्यु उपरांत प्राप्त धनराशि पर रहती. अब जब घर में कुछ  झगड़ा होता, बारबार महिला को ताना दिया जाता कि एक तो विधवा वह भी एक बच्चे की मां से विवाह किया. रोजरोज के  झगड़ों एवं तानों से परेशान हो इस महिला ने स्वयं ही अपने दूसरे पति से तलाक ले लिया.

अब यहां सोचने वाली बात यह है कि वह विधवा हुई उस में उस का क्या दोष? बच्चा भी नाजायज नहीं? उस के पति से संबंध के फलस्वरूप हुआ जबकि दूसरा पति तो तलाकशुदा था, हो सकता है उसी का या उस के परिवार का व्यवहार बुरा रहा हो जिस के चलते उस की पहली पत्नी से उस का तलाक हुआ हो. लेकिन बारबार महिला को विधवा होने का दोष देना कहां तक उचित है?

इस मामले में तो पढ़ीलिखी स्मार्ट महिला थी सो पुनर्विवाह हुआ और न जमने पर उस ने तलाक ले लिया. यदि यहां गांव की, मजबूर, कम पढ़ीलिखी, आर्थिक रूप से कमजोर स्त्री होती तो उस की दुर्दशा होनी तय थी.

सशक्त वीरांगना

इसी तरह का एक और महिला का उदाहरण है जिस में महिला का पति फौज में था और शहीद हो गया. नवविवाहित महिला पढ़ीलिखी है, उस का एक बच्चा भी है. उसे अपने पति के बदले में नौकरी मिल गई सो वह आर्थिक रूप से सशक्त रही. एक बच्चा था जिसे उस ने बड़ी ही लगन और मेहनत से पालपोस कर बड़ा किया.

किंतु समस्या तब आती जब सबकुछ होते हुए भी वह एकाकी जीवन जीती. मन कहीं रमणीय स्थल पर घूमने जाना चाहता है, क्योंकि कम उम्र में पति शहीद हुए, सुखद वैवाहिक जीवन के सपने तो उस ने भी देखे थे, वह भी अच्छे वस्त्र पहन कर अपने पति की बांहों में बांहें डाले किसी फिल्मी अभिनेत्री की तरह घूमनाफिरना चाहती थी, तसवीरें खिंचवाना चाहती थी.

सोशल मीडिया का जमाना है. अपनी तसवीरें वह भी दूसरों के साथ शेयर करना चाहती थी. किंतु पति के न रहने पर वह किस के साथ घूमेफिरे? कैसे खुशियां बटोरे? यदि उम्र ज्यादा होती तो शायद वह इस जीवन को जी चुकी होती, उस के शौक पूरे हुए होते, किंतु बच्चा छोटा होने से वह अकेली तो पड़ ही गई. सो मन मान कर जीने पर मजबूर हो गई. क्योंकि ऐसे में न तो कोई रिश्तेदार और न ही कोई मित्र अपने परिवार में किसी अन्य का दखल पसंद करता है और न ही कोई उस की जिम्मेदारी लेना चाहता है.

परित्यक्त स्त्री

ऐसा ही एक उदाहरण है परित्यक्त स्त्री का जिसे उस के पति ने  झगड़ा कर घर से निकाल दिया. उस की 5 वर्षीय बेटी भी मजबूरन उस के साथ अपने ननिहाल में आ गई. वह महिला अपने मायके में आ कर नौकरी करने लगी. मातापिता ने सोचा आखिर कब तक वह उसे सहारा देंगे? उन की भी तो उम्र बढ़ती जा रही है. सो उन्होंने उस की बेटी को ददिहाल भेज दिया, सोचा कि बेटी के लिए मां की आवश्यकता पड़ेगी तो ससुराल वाले उसे बुला लेंगे. किंतु ऐसा नहीं हुआ, बल्कि उस महिला के मातापिता ने उस का तलाक करवाया और एक ऐसे पुरुष से विवाह कर दिया जिस की पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे व मरणासन्न बूढ़ी मां थी.

यह विवाह तो हो गया, किंतु क्या वह महिला इस विवाह में अपनी बेटी को अपने साथ नहीं रख सकती? जब वह अपने दूसरे पति के बच्चे पालती होगी तो क्या उसे अपनी बेटी याद नहीं आती होगी? क्या उस 5 वर्षीय बच्ची के साथ अन्याय नहीं हुआ?

जबकि महिला के दोनों पति तो अपनी जिंदगी आराम से जीते रहे. इस केस में मु झे महसूस होता है दूसरे विवाह के समय उस महिला को पत्नी का नहीं अपितु परिचारिका का दर्जा दिया गया था वरना उस की बेटी को भी सहर्ष स्वीकार करना चाहिए था. इस से मांबेटी बिछड़ती नहीं.

कुंडली में दोष एवं उपाय

कई बार तो ऐसा भी देखने को मिलता है कि लड़की की कुंडली में दोष बताया जाता है फिर किसी न किसी पूजा, यज्ञ, हवन के माध्यम से उसे दोषमुक्त किया जाता है. तब कहीं जा कर उस के विवाह की बात आगे बढ़ती है.

इसी तरह विधवा महिलाओं के लिए कई मान्यताएं एवं धारणाएं तय कर दी गई हैं जो उन के जीवन को अति निम्न स्तर का, नारकीय एवं पाश्चिक बना देती हैं. किसी भी स्त्री का विधवा होना किसी अभिशाप से कम नहीं है.

वैदिक ज्योतिष कुंडली के अनुसार विवाह, वैवाहिक जीवन एवं विवाह की स्थिति के लिए सप्तम भाव का अध्ययन किया जाता है. इस के अनुसार किसी स्त्रीपुरुष के विवाह के बाद वैवाहिक जीवन में आने वाली स्थितियों का अध्ययन किया जा सकता है. इन भावों के स्वामियों से संबंध बनाना वैवाहिक जीवन के सुखों में कमी करता है.

सप्तम भाव के अध्ययन के अनुसार इस भाव में मंगल एवं पाप ग्रहों की स्थिति कन्या की कुंडली में होने पर विधवा योग बनते हैं.

विभिन्न भावों, कुंडली में चंद्रमा के स्थान व राहू की दशा के अनुसार कन्या का निश्चित रूप से विधवा होना तय है.

कुछ कुंडली दोष कहते हैं कि स्त्री विवाह के उपरांत 7-8 वर्ष के अंदर विधवा हो जाती है. लग्न एवं सप्तम दोनों में पाप ग्रह हो तो स्त्री के विवाह के 7वें वर्ष में पति का देहांत हो जाता है.

इस तरह के अनेक योग व दशा ज्योतिषियों द्वारा समयसमय पर लिखी व कही गई हैं और अब तो यह जानकारी इंटरनैट पर भी उपलब्ध है.

सिर्फ इतना ही नहीं इस तरह की जानकारी के साथ विभिन्न शहरों में रहने वाली महिलाओं के नाम के साथ उन के कुंडली दोष व विधवा होने की स्थिति का जिक्र भी किया गया है ताकि लोग उसे सत्य मान कर स्वीकार करें और कुंडली में भरोसा करें.

इन सब के अलावा इंटरनैट पर मेनका गांधी एवं सोनिया गांधी की कुंडली का जिक्र किया गया है और यह भी बताया गया है कि उन की कुंडलियों के अध्ययन से पता चलता है कि कितनी कम उम्र में उन्हें वैधव्य प्राप्त होगा और वह हुआ भी. साथ ही यह भी लिखा गया है कि यदि शनिमंगल का उपाय कर लिया जाए तो वैधव्य योग टल सकता है.

विधवा स्त्री के लिए विधवा व्रत

शास्त्रों में जिस तरह स्त्री के लिए पविव्रत धर्म है उसी प्रकार विधवा स्त्री के लिए विधवा व्रत का विधान है जिस में विधवा को किस

तरह का जीवन जीना चाहिए इस के लिए मानक तय हैं:

– विधवा स्त्री को पुरुषों के साथ अथवा अपने मायके में ही रहना चाहिए.

– विधवा स्त्री को शृंगार, अलंकरण यहां तक कि सिर धोना भी छोड़ देना चाहिए.

– विधवा स्त्री को सिर्फ एक ही समय भोजन करना चाहिए और एकादशी के दिन अन्न का पूर्ण त्याग करना चाहिए.

– विधवा स्त्री को खट्टामीठा नहीं खाना चाहिए, सिर्फ साधारण खाना खाना चाहिए.

– सार्वजनिक कार्यों, शुभकार्यों, विवाह, गृहप्रवेश आदि में नहीं जाना चाहिए.

– विधवा स्त्री को भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए और अपनी संतानकी देखरेख करनी चाहिए और उस के लिए व्रत करने चाहिए.

– विधवा से विवाह करने वाला नर्क में जाता है.

– इस के अलावा यदि कोई स्त्री विधवा नहीं है, किंतु उस का पति परदेस में रहता है तो उसे भी विधवा व्रत का विधान मानना चाहिए.

वीडियो भी उपलब्ध

कुंडली, ज्योतिष, विधवा व्रत आदि पर न सिर्फ लेख उपलब्ध हैं, अपितु ऐसे वीडियो भी मिल जाएंगे जिन में बताया गया है कि विधवा स्त्री को पुनर्विवाह करना चाहिए या नहीं?

विधवा स्त्री के हाथ से कोई शुभ कार्य नहीं करवाया जाता? विधवा स्त्री को सफेद साड़ी क्यों पहनाई जाती है? घर के दोष से भी औरत हो सकती है विधवा.

स्त्री को आशीर्वाद दिया जाता है ‘अखंड सौभाग्यवती भव’’ यानी जब तक वह जीवित रहे उस का सुहाग अखंड रहे. सोचने की बात यह है कि यह आशीर्वाद पुरुष को नहीं दिया जाता, क्योंकि पुरुष तो स्त्री के न रहने पर पुनर्विवाह का हकदार है. यदि उस के 2-3 बच्चे भी हों तो भी कोई न कोई स्त्री उस से विवाह कर ही लेगी. किंतु यदि कोई स्त्री विधवा हो गई तो हमारे समाज और धर्म की मान्यताएं तो जैसे उस के मनुष्य जीवन पर ऐसा कुठाराघात करेंगी कि उस का जीना जैसे नर्क हो.

सोचने की बात यह है कि यदि पुरुष की मृत्यु हो तो उस का दोष स्त्री की कुंडली को. पति की मृत्यु की सजा उस की पत्नी को. क्या यह हमारे समाज के नियमों का दोष नहीं? क्या इस दोष का कोई उपाय नहीं होना चाहिए?

आज जहां हम एक तरफ विज्ञान में नई खोज, आविष्कार, तरक्की की बात करते हैं वहीं दूसरी ओर विधवा, परित्यक्त, अविवाहित स्त्री के जीवन में सुधार की बातें क्यों दबी रह जाती हैं? क्यों ऐसी स्त्रियां घुटनभरा जीवन जीने पर मजबूर होती हैं? सिर्फ मंचों पर कार्यक्रम से कुछ नहीं होने वाला है. आवश्यकता है खुले मन से उन्हें स्वीकारने की. वे जैसी भी हैं, जिस स्थिति में हैं, इंसान वे भी हैं.

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