वध फिल्म रिव्यू: संजय मिश्रा व नीना गुप्ता का शानदार अभिनय

 रेटिंग: साढ़े तीन स्टार

निर्माताः लव रंजन, अंकुर गर्ग,जतिन चैधरी,मयंक जोहरी,नीरज रुहिल

लेखक व निर्देशकः जसपाल सिंह संधू व राजीव बरनवाल

कलाकारः संजय मिश्रा, नीना गुप्ता, मानव विज,सौरभ सचदेव, दिवाकर कुमार, तान्या लाल, उमेश कौशिक, अभितोश सिंह राजपूत, प्रांजल पटेरिया व अन्य.

अवधिः दो घंटे

बौलीवुड ही क्या पूरे संसार में अब तक कोई ऐसी फिल्म नही बनी है, जिसमें एक मशहूर मासिक पत्रिका भी एक अहम किरदार के रूप में नजर आया हो. मगर कई पंजाबी फिल्मों के निर्माता जसपाल सिंह संधू ने पहली बार राजीव बरनवाल संग निर्देशक बनकर रोमांचक फिल्म ‘‘वध’’ की कहानी लिखते समय ही ‘दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन’ की मशहूर पत्रिका ‘मनोहर कहानियां’ को भी एक किरदार के रूप में पेश किया है.

फिल्म की कहानी का सार संजय मिश्रा के एक संवाद- ‘‘हमने हत्या नहीं, वध किया है.’ में ही निहित है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sanjay Mishra (@imsanjaimishra)

कहानीः

फिल्म की कहानी ग्वालियर में रह रहे अवकाश प्राप्त शिक्षक शंभूनाथ मिश्रा (संजय मिश्रा) और उनकी पत्नी मंजू मिश्रा (नीना गुप्ता) के इर्द गिर्द घूमती है. शंभूनाथ मिश्रा मध्यम वर्गीय दुबले पतले,बेबस,गरीबी और अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्ग व्यक्ति हैं. जिनके घर में चूहे को मारा नहीं जाता, बल्कि पकड़ के कहीं छोड़ दिया जाता है, कि उनके हाथों कहीं हत्या न हो जाए. पर उन्हे ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका पढ़ने का शौक है.

शंभूनाथ मिश्रा ने अपने बेटे दिवाकर मिश्रा (दिवाकर कुमार) को पढ़ाकर इंजीनियर बनाया. फिर पुत्र मोह में बेटे दिवाकर की जिद के चलते प्रजापति पांडे (सौरभ सचदेवा) से ब्याज पर पच्चीस लाख रूपए उधार लेकर बेटे को अमरीका भेजा, इस उम्मीद में कि बेटा वहां कमाकर कर्जा उतार देगा. मगर छह वर्ष से दिवाकर आया ही नहीं. बल्कि उसने वहां शादी कर ली. मकान भी खरीद लिया.

यहां शंभूनाथ को बार बार प्रजापति पांडे अपमानित करता हरता है. पर पेसा भेजना तो दूर दिवाकर के पास अपने माता पिता से बात करने का भी वक्त नहीं है. प्रजापति पांडे शराबी व अय्याश युवक इंसान है, जिसकी एक सुंदर पत्नी व छोटी बेटी भी है. पर प्रजापति आए दिन इन बुजुर्ग दम्पति को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ता. कभी उनके घर पर शराब, मटन व लड़की लेकर पहुंच जाता है ओर मिश्रा जी के घर में लड़की के साथ कुकर्म करता है. कभी उन्हें सरेआम पीटता है. मजबूरन शंभूनाथ व उनकी पत्नी मंजू, प्रजापति के हाथों प्रताड़ित होते रहते हैं.

मगर एक दिन रात में जब मंजू मंदिर की आरती में सम्मिलित होने गयी होती हैं, तब प्रजापति पांडे, शंभूनाथ पांडे के घर पहुंचकर एक ऐसा काम करने के लिए कहता है कि मिश्रा जी के सब्र का बांध टूट जाता है और वह किचन से स्क्रू ड्रायवर लाकर प्रजापति के गले में ठूंसकर उसकी हत्या कर देते हें, पर वह इसे हत्या नहीं वध की संज्ञा देते हैं.

अब पुलिस अफसर शक्ति सिंह (मानव विज) और इलाके का विधायक (जसपाल सिंह संधू) भी अपनी पोल खुल जाने के डर से पांडे की मौत का सुराग लगाने लगते हैं. शंभूनाथ साफ कह देते हैं कि उन्हे प्रजापति के बारे में कोई जानकारी नहीं है. सब इंस्पेक्टर, शंभूनाथ मिश्रा के घर से ‘मनोहर कहानियां’ पत्रिका पढ़ने के लिए ले जाता है.

अचानक शंभूनाथ का जमीर जागता है और दो दिन बाद वह पुलिस स्टेशन अपना जुर्म कबूल करने पहुंच जाता है. वहां सब इंस्पेक्टर उनकी बात पर यकीन करने की बजाय कहता है कि आप यह कहानी वही सुना रहे हैं,जो कि ‘मनोहर कहानियां’ के जुलाई अंक में पेज नंबर 23 पर छपी है. पर मामला ठंडा नही होता.

पुलिस की जांच पड़ताल में तेजी आ जाती है. क्या पुलिस हत्यारे को पकड़ पाती है? इसके लिए फिल्म देखना ही ठीक रहेगा. जीत और निराशा की परस्पर विरोधी भावनाओं के साथ फिल्म समाप्त होती है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sanjay Mishra (@imsanjaimishra)

लेखन व निर्देशन:

लेखक व निर्देशक जसपाल सिंह संधू और राजीव बरनवाल ने फिल्म को यथार्थ लुक देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कहानी ग्वालियर की है, तो ग्वालियर में ही शूटिंग कर शहर के रहन सहन सहन के साथ ही झलक भी उकेरा है. शुरू से अंत तक रोमांच बना रहता है. मगर इंटरवल से पहले फिल्म सुस्त गति से आगे बढ़ती है. शंभूनाथ व मंजू की बेबसी देखकर दर्शक को उनके साथ हमदर्दी भी होती है और दर्शक यही सोचता रहता है कि शंभूनाथ को सजा न हो.

ऐसा उत्कृष्ट पटकथा लेखन व निर्देषन के चलते ही संभव हो पाया है. फिल्म देखकर अहसास ही नही होता कि दोनो ने पहली बार निर्देशन में कदम रखा है. यदि इस कहानी में रहस्य का पुट भी रहता, तो फिल्म और बेहतर हो सकती थी.

लेखक व निर्देशक ने जिस तरह से फिल्म में मनेाहर कहानियां पत्रिका को एक किरदार के तौर पर उपयोग किया है, वह भी कमाल की बात है. लेखक व निर्दशक ने फिल्म का जिस मोड़ पर अंत किया है, वह हृदयस्पर्शी है. इस तरह के अंत की कल्पना लोग कर भी नहीं सकते.

यह फिल्म महज अपराध की रोमांचक कहानी नहीं है, बल्कि यह फिल्म इस बात को भी रेखांकित करती है कि हर माता पिता को अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, मगर यह प्रयास पुत्र मोह में अंधे हो कर न करें.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sanjay Mishra (@imsanjaimishra)

अभिनयः

कर्ज तले दबे हताश पिता व बुजुर्ग शंभूनाथ के किरदार में संजय मिश्रा का अभिनय शानदार है. कई दृष्यों में वह अपने भाव शून्य अभिनय से दर्शकों को अंदर तक दहला देते हैं. परेशान होते हुए भी पत्नी के सामने मजबूत बने रहना संजय मिश्रा जैसे कलाकार के वश की ही बात है.

संजय मिश्रा की पहचान हास्य कलाकार के रूप में रही है. लेकिन फिल्म ‘आंखों देखी’ से उनके अभिनय का एक नया आयाम लोगों के सामने आया. उसके बाद ‘कांचली’,‘होली काउ’ जैसी कई फिल्मों में उनके अभिनय को काफी सराहा गया. इसी क्रम में फिल्म ‘वध’ में वह अपने अभिनय को एक नया आयाम, नई उंचाईयां प्रदान करते हैं.

मंजू मिश्रा के किरदार में नीना गुप्ता के हिस्से कम संवाद आए हैं, मगर उनका अभिनय कमाल का है. संजय मिश्रा व नीना गुप्ता के बीच की केमिस्ट्री हर किसी को याद रह जाती है. आम जिंदगी की परेशानियां और उनकी आपस की नोंकझोक दर्शक को अपने घर की याद दिलाती है.

नीना गुप्ता और संजय मिश्रा दोनों ही राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित कलाकार हैं. नीना गुप्ता बीच में अभिनय से दूर हो गयी थीं. लेकिन फिल्म ‘बधाई हो’ से उन्होंने ऐसी धमाकेदार वापसी की, कि लोग फिल्म दर फिल्म उनके अभिनय को देखकर चकित हो रहे हैं.

प्रजापति पांडे के किरदार में सौरभ सचदेवा को देखकर लोग उससे नफरत जरुर करेंगें. भ्रष्ट पुलिस अफसर शक्ति सिंह के किरदार में मानव विज अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें