Film Review: फुकरे 3- पंकज त्रिपाठी, रिचा चड्ढा, वरूण शर्मा व पुलकित सम्राट की शानदार अदाकारी

रेटिंग: पांच में से साढ़े तीन स्टार

निर्माताः फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी

लेखकः विपुल विग

निर्देशकः मृगदीप सिंह लांबा

कलाकारःरिचा चड्ढा,पंकज त्रिपाठी,वरूण शर्मा,पुलकित सम्राट,मनजोत सिंह, मनु रिषि, अली फजल,

अवधिः दो घंटे तीस मिनट

जल संकट से पूरा विश्व जूझ रहा है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जल संकट के मामले में पूरे विश्व में भारत तेरहवें स्थान में है. इस जल संकट की मूल वजह में विकास के नाम पर खड़ी हो रही सीमेंट की उंची उंची इमारते भी हैं. इन इमारतों के निवासियो को जल पूर्ति नही हो पा रही है.पानी का स्तर जमीन में काफी नीचे जा रहा है तो दूसरी तरफ ‘टैंकर पानी’ की लाबी भी हावी है. इस जल संकट की समस्या को हास्य के माध्यम से फिल्मकार मृगदीप सिहं लांबा अपनी फिल्म ‘‘फुकरे 3’’ में बेहतरीन तरीके से उकेरा है.

फिल्मकार ने हास्य के माध्यम से जल संकट के लिए ‘राजनीति’ और ‘पानी टैंकर’ की लॉबी की मिली भगत की ओर भी इशारा किया है. ‘फुकरे 3’, सफल फ्रेंचाइजी ‘फुकरे’ का ही तीसरा हिस्सा है. ‘फुकरे’ का निर्देशन मृगदीप सिंह लांबा ने ही किया था. इस हास्य फिल्म को देखकर मनोरंजन पा सकते हैं. लेकिन ‘फुकरे 3’ उन्हे पसंद नही आएगी, जो कि अपने दिमाग का उपयोग करते हुए दृष्यों को तर्क की कसौटी पर कसने बैठेंगे.

कहानीः

फिल्म ‘फुकरे 3‘ की कहानी वहीं से शुरू होती है जहां पर ‘फुकरे रिटर्न्स‘  की कहानी खत्म हुई थी. कहानी शुरू होने से पहले ‘फुकरे’ और ‘फकरे रिटर्नस’ की कहानी का सार बताया जाता है. खैर,दिल्ली के  मुख्यमंत्री ने फुकरे की टीम को ‘जनता डिपार्टमेंटल स्टोर’ खुलवा दिया था,लेकिन वह स्टोर ठीक से नहीं चलता है.लेकिन इस फिल्म में इस स्टोर से डिपार्ट और मेंटल अलग हो चुके है. फुकरे फिर से फुकरागीरी कर रहे हैं.

वहीं भोली पंजाबन अब राजनीति में आकर अपने साम्राज्य को अलग ही अंदाज में बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है. चूचा (वरूण शर्मा ) के देजाचू का जादू अब भी चल रहा है. भोली पंजाबन(  रिचा चड्ढा) गैंगस्टर से राजनेता बन चुनाव लड़ रही है. उसका वादा है कि ‘जल संसाधन मंत्री’ बनते ही वह ‘पानी टैंकर’ लौबी को खत्म कर हर इंसान को पानी मुहैयया करवाएंगी. जैसा कि अक्सर देखा गया है कि हर राजनेता के चुनाव लड़ने का खर्च कोई दूसरा इंसान ही उठाता है. तो उसी तरह से इस फिल्म में भोली पंजाबन के चुनाव का वित्तीय प्रबंधन एक माफिया करने को राजी होता है. यह माफिया चुनाव में अपने इस इनवेस्टमेंट पर मोटा रिटर्न पाने का सपना देख रहा है.

भोली पंजाबन को पंडित जी से उम्मीद है कि वह अपनी फुकरे टीम के साथ उनके चुनाव प्रचार को गति देंगें. मगर चुचा की हरकतों के चलते आम जनता के बीच चूचा लोकप्रिय हो जाता है. जिसके चलते अब हनी(पुलकित सम्राट ) के दिमाग में आता है कि भोली पंजाबन को हराने के लिए चूचा को चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया जाए.

हनी के साथ ही पंडित जी(पंकज त्रिपाठी) और लाली(मनजोत सिंह ) को लगता है कि अगर भोली पंजाबन चुनाव जीत गयी तो वह  अपनी ताकत व सत्ता का दुरुपयोग ही करेगी. लेकिन राजनीति बहुत कुत्ती चीज है. भोली पंजाबन को राजनीति के गुर पता है. वह चूचा से ही सच कबूल करवाकर  एक ऐसा जाल फेंकती है जिसमें पंडितजी, चूचा,हनी व लाली फंसकर दक्षिण अफ्रीका पहुंच जाते हैं. जहां एक दक्षिण अफीकी लड़की मुम्बासा के चूचा से प्यार करने लगती है. और चूचा के हाथ एक हीरा लग जाता है,जिसे वह मुंह में डालकर डकार जाता है.

इसी के साथ इन्हे अहसास हो जाता है कि भोली पंजाबन ने चुनाव के मैदान से उन्हे बाहर का रास्ता दिखाने के लिए उन्हे इस जाल में फंसाया है.

अफ्रीका में कहानी में कई मोड़ आते हैं और एक मोड़ पर इन फुकरों को पता चलता है कि अब चूचा के पास नई ताकत आ गयी है,जिसके चलते चूचा के पेषाब व पानी के मिश्रण से पेट्रोल जैसा ज्वलनशील पदार्थ बनता है.इस वजह से भी कहानी में नया मोड़ आता है.पर भेली पंजाबन की चाल का अहसास होते ही फुकरे टीम वापस दिल्ली पहुॅचती हैं.उसके बाद कहानी कई मोड़ांे से होकर गुजरती है.एक तरफ पानी टैंकर लॉबी का मुखिया अपने तरीके से भोली पंजाबन पर दबाव बनाए हुए हैं.तो वही मुख्यमंत्री,भोली पंजाबन के साथ होने का ढोंग रच रहे हैं.जबकि भोली पंजाबन को चूचा से निपटना है.

लेखन व निर्देशन

‘फकरे रिर्टनस’ में से बेहतर है ‘फकरे 3’.लेखक विपुल विग ने बेहतरीन पटकथा व हास्य का पुट पैदा करने वालेे संवादों के माध्यम से  लोगों को हंसाने में कामयाब रहे हैं. तो वहीं वह जल संकट के साथ ही ‘पानी टैंकर’ लौबी और राजनीतिक गंठजोड़ पर का कटाक्ष करने से नही चूके हैं. बेहतरीन पटकथा को कलाकारों की मदद से परदे पर अच्छे ढंग से उकेरने में निर्देषक मृगदीप सिंह लांबा सफल रहे हैं.

लेखक व निर्देषक दोनों को पता है कि हास्य के पंच का उपयोग किस तरह करके हास्य को पैदा किया जाए. लेकिन लेखक भोली पंजाबन के चरित्र को ठीक से नही लिख पाए. इतना ही नही ‘फुकरे’ की पिछली दो फिल्मों में फुकरे टीम में डर व  घबराहट नजर आती थी,जो कि फिल्म को ज्यादा रोचक बनाती थी,वह इस बार गायब है.इसके अलावा क्लायमेक्स भी गड़बड़ा गया है.

फिर भी हवाई जहाज के दृष्यों के साथ ही  भोली पंजाबन व चूचा की षादी वाले दृष्य काफी अच्छे बन पड़े हैं.दक्षिण अफीकी लड़की मुम्बासा के चूचा से प्यार करने के दृष्य जबरन ठॅूंसे हुए लगते हैं. वास्तव में लेखक विपुल विग प्रेम कहानी को सही अंदाज में लिख नहीं पाए. इंटरवल से पहले फिल्म ज्यादा हंसाती है,इंटरवल के बाद सामाजिक संदेष पिरोने के चक्कर में लेखक व निर्देशक थोड़ा मार खा गए हैं.

इस फिल्म की कमजोर कड़ी इसके एडीटर व संगीतकार हैं. फिल्म का संगीत प्रभावित नहीं करता. एडीटर मनन अष्विन मेहता ने थोड़ी सी सूझबूझ दिखायी होती,तो फिल्म में चार चांद लग जाते.अफ्रीका का हिस्सा कुछ ज्यादा ही खींचा हुआ है. कैमरामैन अमलेंदु चौधरी बधाई के पात्र हैं.

अभिनयः

भोली पंजाबन कके किरदार में एक बार फिर रिचा चड्ढा अपना प्रभाव छोड़ जाती है.जबकि इस बार उन्हे पटकथा व संवादों का सही सहयोग नही मिल पाया.उनके किरदार को ठीक से लिखा नही गया. इसमें वह खूबसूरत भी लगी हैं. पंडित की भूमिका में पंकज त्रिपाठी ने अपने सहज अभिनय से जान डाल दी है. वह अंग्रेजी की पंच लाइन इतनी सहजता से बोलते हैं कि सुनकर हंसी आ ही जाती है. चूचा की भूमिका मे वरुण शर्मा ने भी शानदार प्रदर्षन किया है. पर कई दृष्यों में वह ओवर एक्टिंग करते हुए नजर आते हैं.हनी के किरदार में पुलकित सम्राट ने हास्य में बेहतरीन वापसी की है.लाली की भूमिका में मनजोत सिंह का काम सराहनीय हैं.

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