विधवा विदुर: किस कशमकश में थी दीप्ति

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विधवा विदुर- भाग 1: किस कशमकश में थी दीप्ति

लखनऊ विश्वविद्यालय का सभागार आज खचाखच भरा हुआ था. सभी छात्र समय से पहले ही पहुंच गए थे. नगर के सम्मानित व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया गया था. यह मौका था वादविवाद प्रतियोगिता के फाइनल का.

विश्वविद्यालय में एमएससी कर रहे एक छात्र रजनीश और शोध कार्य कर रही छात्रा देविका फाइनल में पहुचे थे और बहस का विषय था ‘तकनीक के समय में पुस्तकों की उपयोगिता.’

रजनीश ने तकनीक का पक्ष लिया और बोलना शुरू किया, उस ने तकनीक की महत्त्वता बताई और अनेक तर्क दिए जैसे रजनीश ने बताया कि आज जब हमारे पास कंप्यूटर है, लैपटौप है और  तीव्र गति से  हर परिणाम दिखाने वाला इंटरनैट है तो भला हम किताबों के भरोसे क्यों रहें.

आज इंटरनैट पर सिर्फं एक बटन दबाते ही दुनिया भर की जानकारी उपलब्ध हो सकती है तो  हम किताबें ढोने में समय क्यों गंवाएं, पुरातनपंथी क्यों बनें और क्यों न तकनीक को अपनाएं.

इस के बाद भी रजनीश ने तकनीक की बढ़ाई करते हुए बहुत सारे तर्क दिए जो लगभग अकाट्य थे. लोगों ने खूब तालियां बजा कर रजनीश का उत्साहवर्धन किया.

बारी देविका की आई तो वह बोली, ‘‘मेरे दोस्त ने काफी कुछ कह दिया है पर फिर भी मैं इतना कहूंगी कि तकनीक जरूरी है पर इस का मतलब यह नहीं कि हम पुस्तकों के महत्त्व को नकार ही दें. आखिरकार हमारे ज्ञान का स्रोत तो पुस्तकें ही हैं. जिस तरह से पौधा हमेशा ऊपर की ओर  जाता है पर उस की जड़ें नीचे की ओर बढ़ती हैं और जड़ें जितना नीचे जाती हैं वह पौधा उतना ही मजबूत पेड़ बन जाता है. इस के बाद देविका ने भी लोगों को एक के बाद एक तथ्य बताए जो यह सिद्ध करते थे कि इंटरनैट के इस युग में भी पुस्तकें को पढ़ना जरूरी है.

जूरी के सदस्यों के सामने ऊहापोह की स्थिति आ गई थी क्योंकि दोनों वक्ताओं ने इतना अच्छा बोला था कि उन की सम झ में ही नहीं आ रहा था कि वे प्रतियोगिता का विजेता किसे घोषित करें. काफी देर चली डिस्कसन के बाद जब परिणाम बताने की बारी आई तो जूरी ने दोनों को ही संयुक्त रूप से विजेता घोषित कर दिया.

कुछ दिनों तक पूरे विश्वविद्यालय में इस प्रतियोगिता की खूब चर्चा होती रही.

एक दिन रजनीश टैगोर लाइब्रेरी में बैठा नोट्स बनाने में लगा था तभी वहां देविका आई. दोनों की निगाहें आपस में टकराईं और एक मुसकराहट का आदानप्रदान भी हुआ.

सामने की टेबल पर देविका को भी कुछ जरूरी नोट्स लेने थे. उन्हें बना लेने के बाद देविका बाहर निकल गई. रजनीश भी पीछेपीछे आया और देविका को आवाज दी, ‘‘अरे मैडम हमें भी साथ ले लो.’’

‘‘आज पता चला कि तकनीक का हवाला देने वाले लोग भी किताबों का सहारा लेते हैं,’’  देविका ने मुसकराते हुए कहा तो बदले में रजनीश ने उसे बताया कि असल में तो किताबों का शौकीन वह भी है पर वादविवाद प्रतियोगिता में रखे गए उस के विचार मात्र प्रतियोगिता जीतने के लिहाज से बोले गए थे. उन विचारों से वह इत्तफाक ही रखे यह कोई जरूरी तो नहीं.

दोनों बात करतेकरते कैंपस में बनी कैंटीन तक आ गए थे. रजनीश ने देविका को चाय का औफर दिया जिसे उस ने बड़ी सहजता से मना कर दिया और वहां से चल दी.

उसे जाते देख कर बिना रोमांचित हुए बिना नहीं रह सका रजनीश. लगभग हर दूसरे दिन दोनों का आमनासामना हो ही जाता. दोनों एकदूसरे की पढ़ाई में मदद करने के साथासाथ तमाम मुद्दों पर बातें भी करते.

देविका को कई बार यह भी लगता कि जिस तरह के जीवनसाथी का सपना उस ने अपने जीवन के लिए मन में सजा रखा है रजनीश में वे सारी खूबियां हैं और कुछ ऐसा ही विचार रजनीश भी देविका के लिए मन में रखता था. दोनों ने एकदूसरे के सामने यह बात प्रकट भी कर दी और कई महीनों के साथ के बाद आखिर वह समय भी आया जब रजनीश और देविका ने एकदूसरे से शादी का वादा कर लिया. पर अगले ही दिन से कई दिनों तक देविका को रजनीश दिखाई नहीं दिया. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा था.

देविका परेशान हो उठी. रजनीश के दोस्तों से भी पूछा पर किसी ने कुछ ठोस बात नहीं बताई. देविका को लगने लगा कि हो न हो रजनीश के साथ या उस के परिवार में कोई हादसा हो गया है पर कुछ भी पता कर पाना उस के बस में नहीं था.

कुछ हफ्तों बाद जब शाम को थकीहारी देविका अपने घर पहुची तो सामने का दृश्य देख कर खुशी से चौंक गई. सामने के कमरे में रजनीश बैठा था और देविका के मांबाप से बातें करने में व्यस्त था. देविका को देख कर उस के चेहरे पर एक मुसकराहट दौड़ गई. देविका ने पापा के चेहरे की तरफ देखा. वे कुछ तनाव में लग रहे थे. रजनीश पापा को बता रहा था कि उसे बैंक में एक क्लर्क की नौकरी मिल गई है, जौब का प्रोफाइल थोड़ा लो जरूर है पर अपने घर की जरूरतों की वजह से उसे नौकरी की जरूरत थी, इसलिए जौइन कर ली.

देविका सीधे किचन में चली गई,थोडी देर बाद वहां मां भी आ गईं और बोलीं, ‘‘यह सब तुम ने हमें पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘पर क्या मां?’’

‘‘यही कि तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो और शादी करना चाहते हो.’’

‘‘हां मां, पर सही समय आने पर मैं आप को बताती ही.’’

‘‘हां, पर अब ये सब हमें बताने की कोई जरूरत नहीं है. तेरे पापा अपने से नीची जाति वाले से कभी तेरी शादी नहीं करेंगे, ‘‘मां के

स्वर में कड़वाहट थी. न जाने कहां खोई हुई थी देविका आज तक. रजनीश से कब उसे प्यार हो गया था यह तो इसे पता भी नहीं चला था और प्यार करतेकरते वह भूल बैठी थी कि इस समाज में शादी के लिए समान जातियों का भी होना जरूरी है. हां, समाज में विजातीय शादियां भी होती हैं पर समाज उन जोड़ों को भला कहां अपना पाता है?

खिड़की से देविका ने रजनीश की तरफ नजर डाली, उस के चेहरे की उदासी देख कर वह सब सम झ गई थी. बचपन से पापा को आदर्श माना था, उन्होंने भी देविका को बड़े नाजों से पाला था और दबाव में भी हमेशा सही फैसला ही लेना सिखाया था.

तभी पापा की आवाज गूंजी. उन्होंने देविका को बुलाया और उस से बिना किसी भूमिका बांधे परिवार या प्यार में से एक को चुन लेने को कहा. उस दिन से पहले ऐसी अजीब हालत में नही फंसी थी देविका.

विधवा विदुर- भाग 2: किस कशमकश में थी दीप्ति

देविका ने सोचना शुरू किया. दिल और दिमाग में एक द्वंद्व चल रहा था पर दिमाग पर दिल हावी हो गया और देविका ने प्यार को चुना. पापा ने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा कि आज से उन लोगों का देविका से कोई वास्ता नहीं रह गया है और वे दोनों इसी समय उन के घर से निकल जाएं.

कोई रास्ता न देख कर देविका और रजनीश ने आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली. रजनीश की पोस्टिंग गाजियाबाद के बैंक में थी, इसलिए बैंक के पास के ही एक महल्ले में 2 कमरों का मकान किराए पर ले लिया. उन के मकान के पास एक दीप्ति नाम की विधवा औरत अपने 4 साल के इकलौते बेटे शान के साथ रहती थी. उन के पति पुलिस में थे और एक दंगे के दौरान शहीद हो गए थे.

दीप्ति और देविका की मुलाकात अकसर मौर्निंग वाक के दौरान होती. देविका बड़े अच्छे सलीके से पेश आती थी दीप्ति से और फिर दोनों दोस्त बन गईं.

देविका और रजनीश दोनो के घर वालों ने उन से अपना नाता तोड़ रखा था जिस की खलिश उन दोनों के मन में हमेशा बनी रहती थी. देविका का शोधकार्य पूरा हो चुका था और उस ने विश्वविद्यालय में प्रवक्ता की नौकरी के लिए आवेदन भी कर दिया था.

कुछ दिनों के बाद देविका का इंटरव्यू हुआ और उसे नौकरी पर रख लिया गया.

दोनों की शादी को 3 साल पूरे होने को आए थे कि देविका गर्भवती हो गई, हालांकि वह अभी बच्चा नहीं चाहती थी फिर भी दोनों ने पहले बच्चे को जन्म देने का फैसला कर लिया.

समय आने पर देविका ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया. उस का नाम परी रखा. रजनीश और देविका बहुत खुश थे.

इस खुशी में रजनीश ने अपने घर वालों को भी शामिल करना चाहा तो उस ने घर फोन मिलाया पर किसी ने फोन नहीं उठाया. जब परी 5 साल की हुई तो उसी समय देश में कोरोना की दूसरी लहर आई और देविका को लील गई.

परी अनाथ हो गई थी. परिवार वाले पहले ही अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ा चुके थे. कहना गलत नहीं होगा कि देविका के जाने से केवल परी ही नहीं बल्कि रजनीश भी अनाथ हो गया था.

एक तो देविका का गम, ऊपर से छोटी बच्ची को संभालना, उस के खानेपीने का ध्यान रखना, उस के कपड़े बदलना उस की हर छोटीबड़ी चीज को संभालना. मातृत्व कितना दुख देने वाला कार्य है यह रजनीश को अच्छी तरह से पता चल गया था.

‘वर्क फ्रौम होम’ भला कब तक चलता. बाहर की जिंदगी में सबकुछ तो नौर्मल हो गया था पर नौर्मल नहीं हुई थी तो रजनीश और परी की जिंदगी.

बच्ची की कई चीजों और जरूरतों को रजनीश बड़े अच्छे से मैनेज कर रहा था पर असली परेशानी तब आई जब उसे परी को छोड़ कर औफिस के लिए जाने का समय आया. आखिर किसके सहारे छोड़े वह परी को.

कौन उस की देखभाल करेगा. सोचता नौकरी ही छोड़ दे. यही तो आखिरी रास्ता बचा है उस के पास.

किसी ने राय दी कि क्रेच में छोड़ दो तो किसी ने बताया कि बोर्डिंग में डाल दो. बोर्डिंग स्कूल वाली बात रजनीश की सम झ में आ गई. बोर्डिंग में डाल देने से परी का ध्यान भी सही से रखा जाएगा और फिर हर महीने खुद रजनीश ही मुलाकात करने चला जाया करेगा.

रजनीश ने मन ही मन सोच लिया कि वह जल्द ही परी को बोर्डिंग में दाखिल करा आएगा और इस बाबत स्कूलों की उस ने जानकारी भी लेनी शुरू कर दी.

‘‘मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं रजनीशजी,’’ एक महिला का स्वर सुन कर रजनीश चौंक गया. मुड़ कर देखा तो दीप्ति अपने बच्चे शान को ले कर खड़ी थी, ‘‘भला बोर्डिंग में परी का एडमिशन कराने से आप की समस्याएं खत्म हो जाएंगी? आप अपनी जिम्मेदारियों से भाग क्यों रहे हैं.’’

दीप्ति की बात सुन कर थोड़ा खीज सा गया रजनीश और फिर उस ने कहा कि तो वह क्या करे? इस बच्ची को कहां ले जाए? नौकरी छोड़ कर बेबीसिटिंग करेगा तो भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.

‘‘आप परी को औफिस जाते समय मेरे घर छोड़ दिया करो और आते समय ले जाया करो. मेरा और मेरे बेटे का मन भी इसके साथ लगा रहेगा और फिर मांबाबूजी भी परी को देख कर खुश होंगे,’’ देविका के प्रति प्रेम दीप्ति के मन से छलक रहा था.

बात थोड़ी अजीब सी जरूर लगी कि कैसे दीप्ति ध्यान रख पाएगी किसी और की बच्ची का. क्यों करेगी वह इतना सब? पर रजनीश की मजबूरी भी थी और यह प्रस्ताव भी अच्छा था. कुछ सोचविचार के बाद उस ने हामी भर दी और वह परी को दीप्ति के पास छोड़ कर औफिस जाने लगा.

बच्ची को एक मां की तरह ध्यान रखने वाली आंटी मिल गई थी, दीप्ति के बूढ़े सासससुर जब अपने पोते और परी को साथ खेलते देखते तो उन्हें बड़ी खुशी मिलती.

औफिस से आते ही रजनीश परी को लेने सीधा दीप्ति के घर चला जाता, जहां पर परी को दीप्ति के बेटे के साथ खेलते देख कर उसे भी बड़ा सुकून मिलता.

दीप्ति के सासससुर रजनीश का दर्द सम झते थे और अकसर शाम की चाय के लिए अपने साथ बैठा लेते थे और कभीकभी खाने पर भी बुला लेते थे. हालांकि इस तरह से दीप्ति के घर पर परी को छोड़ कर जाना और खुद का आनाजाना रजनीश को थोड़ा अजीब तो लगता था पर उस के सामने मजबूरी थी.

विधवा दीप्ति अपनी मर्यादा जानती थी, इसलिए वह रजनीश से अधिक बात नहीं करती और अगर परी के संदर्भ में उसे कुछ कहना भी होता तो वह अपने सासससुर की उपस्थिति में ही रजनीश से बात करती.

‘‘आग और फूस एक पास रखे हों और चिनगारी न भड़के यह तो संभव है पर एक

जवान विधवा और एक विधुर को इस प्रकार से एकदूसरे की मदद करते हुए देख कर भी बातें न बनें यह संभव नही है, सब से पहले दीप्ति की सास से महल्ले की एक औरत ने कहा, ‘‘देखो तुम्हारी बहू बच्ची का खयाल रख रही है यह तो अच्छी बात है पर कहीं उस विधुर का खयाल भी न रखने लगे. सम झा देना अपनी बहू को.’’

विधवा विदुर- भाग 3: किस कशमकश में थी दीप्ति

दीप्ति की सास को यह सुन कर अच्छा तो नहीं लगा पर वह कुछ नहीं बोली और उस ने घर आ कर यह बात जब दीप्ति के ससुर से कही तो वे भी अपना अनुभव बताने लगे कि जब वे सुबह पार्क में टहलने गए थे तब राजेश भी उन से कुछ इसी तरह की बातें कर रहे थे. अब समाज में रहना है तो उस के अनुसार चलना भी तो पड़ेगा ही.

सास ने दीप्ति से कहा कि वे जानते हैं कि उस के आचरण में कहीं कोई कमी नहीं है और उन्हें दीप्ति पर पूरा भरोसा है, लेकिन परी और रजनीश से दूरी बना कर रखने का समय आ गया है.

दीप्ति बहुत कुछ कहना चाहती थी, मगर कह न सकी क्योंकि उसे पता था कि कुछ तो लोग कहेंगे जैसी बातें फिल्मों में तो अच्छी लगती हैं पर असल जिंदगी में तो एक विधवा को मरते दम तक इम्तिहान ही देते रहना पड़ता है. विधवा का कोई अस्तित्व नहीं.

उधर विधुर रजनीश को भी लोग फिर से शादी करने की सलाह देते और उस के न मानने पर कहते कि इधरउधर मुंह मारने से तो अच्छा होता है कि एक ही खूंटे से बंध कर रहा जाए.

लोगों के तानों के आगे 2 सालों तक परी को जो प्यार उस की दीप्ति आंटी से मिल रहा था वह आज बंद हो गया था. रजनीश के सामने फिर से वही बच्ची को पालने वाली समस्या आ रही थी. अब उस के सामने 2 ही रास्ते थे- पहला कि वह दूसरी शादी कर ले और दूसरा यह कि वह परी को बोर्डिंग स्कूल में डाल दे.

रजनीश ने दूसरा रास्ता चुनना ज्यादा बेहतर सम झा क्योंकि दूसरी शादी कर के भी परी को नई मां स्वीकार कर पाए या नहीं इस बात में संदेह था. रजनीश ने परी से बात करी और उसे बोर्डिंग स्कूल में जाने के लिए उस का रुख जानना चाहा. परी वैसे भी मां के अभाव में जल्दी सम झदार हो चुकी थी, इसलिए उस ने बोर्डिंग स्कूल जाने के लिए हामी भर दी.

रजनीश परी को स्कूल में दाखिला दिला कर निश्चिंत हो गया.

एक दिन उस के मोबाइल पर एक फोन आया, उधर से देविका के पापा बोल रहे थे, ‘‘तेरे जीवन में इतना कुछ हो गया पर तूने हमें बताया तक नहीं… हम इतने पराए हो गए क्या?’’

ससुर की आवाज इतने वर्षों के बाद सुन कर रजनीश सिसकता रहा. उन्होंने उसे बताया कि उन्हें तो किसी और से पता चला कि उस की दुनिया उजड़ चुकी है. आखिर कैसे और क्यों? इतना कह कर उन्होंने रजनीश को यह बताया कि पुरानी बातें भूल कर वे लोग गाजियाबाद में उस से मिलने आए हैं.

मां और पापा को अपने फ्लैट पर ले आया था रजनीश, सामने देविका की तसवीर पर माला देख कर काफी व्याकुल हो गए थे उस के मांबाप.

झूठी शान और जातिपाति के भेद में हम डूबे हुए थे और समय रहते सही फैसला नहीं कर पाए थे पर अब उन्हें यह एहसास हो गया था कि रजनीश को नहीं अपनाना उन लोगों की भूल थी. ये सारी बातें रजनीश की सास और ससुर ने उसे बताईं. शायद बढ़ती उम्र और बेटी को त्याग कर अकेलेपन के अनुभव ने उन्हें सही और गलत का बोध करा दिया था और इसलिए वे दोनो यहां आए थे.

‘‘अब हम दोनों यहां आ गए हैं, इसलिए परी की तरफ से तुम्हें चिंता करने की जरूरत

नहीं है.’’

मांबाप की बातें सुन कर रजनीश खुश हो गया और स्कूल में संपर्क कर के परी को वापस घर ले आया. वह अपने नानानानी से मिल कर बहुत खुश हो रही थी. उस ने जीवन में पहली बार बचपन जैसे किसी स्वाद का अनुभव किया था.

आज परी का जन्मदिन था, वह 8 साल की हो चुकी थी. नानानानी के साथ मिल कर परी ने केक काटा और पापा के तो पूरे चेहरे पर ही केक लगा दिया परी ने.

घर के हलकेफुलके माहौल के बीच

रजनीश के ससुर ने कहा, ‘‘बेटे रजनीश, हम जानते हैं कि देविका के जाने के बाद भी तुम ने शादी नहीं करी क्योंकि नई मां आ कर कोई लापरवाही न बरते.’’

रजनीश सम झ नहीं पा रहा था कि उस के ससुर क्या कहना चाह रहे हैं. इस के बाद ससुर ने कहा कि अभी रजनीश का पूरा जीवन बाकी है और परी भी बड़ी हो रही है. इस नाजुक उम्र में मां की बहुत जरूरत रहती है. इसलिए वे चाहते हैं कि रजनीश दोबारा शादी कर ले.

ससुर की यह बात सुन कर रजनीश चौंक गया. वह कुछ बोल नहीं पाया. कुछ देर तक खामोश रहने के बाद बोला और अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए तमाम तर्क भी दिए मसलन नई मां ने अगर परी को नहीं अपनाया तो? कौन करेगा एक बच्चे वाले विदुर से शादी? फिर समाज. समाज क्या कहेगा?

परी अब अपने नाना की गोद से उतर कर दूसरे कमरे में चली गई थीं.

‘‘देखो बेटा, तुम्हारी हर बात का जवाब मैं सिर्फ एक बार में दे सकता हूं अगर तुम कहो तो.’’

रजनीश की आंखों में कई सवाल थे.

तभी सासूमा ने परी को आवाज लगाई.

दूसरे कमरे से परी निकल कर आई,

उस के साथ में दीप्ति भी थी और उस का बेटा शान और दीप्ति के सासससुर भी थे जो रजनीश की तरफ उम्मीद और प्रेम भरी नजरों से देखे जा रहे थे.

रजनीश कुछ सम झ नहीं पाया तो उस के ससुर ने कहा कि इस दुनिया में इंसान को स्वार्थी बनना पड़ता है, दीप्ति भी जिंदगी के सफर में अकेली है और तुम भी और फिर तुम दोनों पर बच्चों की जिम्मेदारी भी है… साथ मिल कर चलोगे तो राह की मुश्किलें भी आसान हो जाएंगी और सफर भी सुहाना हो जाएगा.

‘‘पर पापा… मैं तो एक नीची जाति से हूं और दीप्ति ऊंची जाति की. दीप्ति को उस का परिवार मंजूरी नहीं देगा.’’

‘‘इस का समाधान सब परी ने कर लिया है. वह अकसर दीप्ति से तेरी बातें करती थी और दीप्ति व शान भी तेरे बारे में रुचि रखते थे. जब यह बात हमें पता चली तो हम ने दीप्ति के मम्मीपापा से बात चलाई तो हमें सहमति मिल गई. तुम दोनों की हां का तो देविका को भी इंतजार होगा.’’

परी दीप्ति की उंगली पकड़े हुए अपने

पापा को निहार रही थी. दीप्ति और रजनीश की नजरें टकराईं तो दोनों के होंठों पर हलकी सी मुसकराहट फैल गई, जिस का मतलब था कि एक विधवा और एक विदुर ने अपने बच्चों के जीवन की बेहतरी और खुद के अस्तित्व के

लिए समाज से बिना डरे एक साहस भरा फैसला ले ही लिया.

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